Author : Vivek Mishra

Published on Sep 23, 2022 Updated 0 Hours ago

अमेरिका के लोकतंत्र में दरार साफ़ तौर पर दिख रही है, पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का समर्थन करने वाले बेहद रूढ़िवादी समूहों से लोकतंत्र पर ख़तरा मंडरा रहा है.

‘सामान्य नहीं’: अमेरिका में लोकतंत्र

अमेरिका इस वक़्त इतिहास के अनोखे राजनीतिक लम्हे का सामना कर रहा है क्योंकि अमेरिकी सरकार के तीन अंगों यानी कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के बीच पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के ख़िलाफ़ न्यायिक और खुफ़िया जांच को लेकर विवाद है. वर्तमान में ट्रंप कम-से-कम छह छानबीन का सामना कर रहे हैं जिनमें मार-ए-लागो खुफ़िया फाइल की जांच; 6 जनवरी के कैपिटल दंगा मामले में अमेरिकी न्याय विभाग के नेतृत्व वाली आपराधिक जांच; जॉर्जिया के चुनाव नतीजे की जांच; 6 जनवरी के सेलेक्ट कमेटी की जांच; और न्यूयॉर्क एवं वेस्टचेस्टर गोल्फ क्लब में उनकी व्यावसायिक कार्यप्रणाली के ख़िलाफ़ आपराधिक और नागरिक छानबीन शामिल हैं.

ताज़ा छानबीन में FBI ने इस साल 8 अगस्त को डोनाल्ड ट्रंप के फ्लोरिडा वाले घर से 100 खुफ़िया फाइल और 11,000 सामान्य दस्तावेज़ ज़ब्त किए. ज़ब्त खुफ़िया फाइल में वो फाइल भी शामिल थीं जिन्हें “सबसे ज़्यादा संवेदनशील स्तर” के तहत रखा गया था.

ताज़ा छानबीन में FBI ने इस साल 8 अगस्त को डोनाल्ड ट्रंप के फ्लोरिडा वाले घर से 100 खुफ़िया फाइल और 11,000 सामान्य दस्तावेज़ ज़ब्त किए. ज़ब्त खुफ़िया फाइल में वो फाइल भी शामिल थीं जिन्हें “सबसे ज़्यादा संवेदनशील स्तर” के तहत रखा गया था. इनमें स्पेशल एक्सेस प्रोग्राम (SAP) के मैटेरियल भी शामिल हैं. FBI के द्वारा ट्रंप के घर की तलाशी अमेरिका के न्याय विभाग के आदेश पर ली गई. इसकी वजह ये थी कि डोनाल्ड ट्रंप ने एक ग्रैंड ज्यूरी के द्वारा “खुफ़िया निशान वाले दस्तावेज़ों” को मांगने के समन को नज़रअंदाज़ कर दिया था और राष्ट्रीय अभिलेखागार और रिकॉर्ड प्रशासन के द्वारा जांच एजेंसियों को सरकारी दस्तावेज़ सौंपने के कई अनुरोधों पर ध्यान नहीं दिया जबकि अमेरिका के संघीय क़ानून के तहत दस्तावेज़ सौंपना आवश्यक है.

जिस बात की शुरुआत डोनाल्ड ट्रंप के ख़िलाफ़ अलग-अलग मौजूदा जांच के साथ विधायिका और कार्यपालिका के बीच लड़ाई से हुई, उसमें अब न्यायपालिका भी शामिल हो गई है. पिछले दिनों जज एलीन एम. कैनन ने राष्ट्रपति ट्रंप के मार-ए-लागो वाले घर से ज़ब्त मैटेरियल और दस्तावेज़ों की समीक्षा के लिए एक विशेषज्ञ की नियुक्ति की. इस क़दम को डोनाल्ड ट्रंप की जीत के तौर पर प्रचारित करने के साथ-साथ क़ानूनी विशेषज्ञों के द्वारा दोषपूर्ण बताकर गंभीर आलोचना भी की जा रही है. मोटे तौर पर रिपब्लिक पार्टी के समर्थकों का ये मानना है कि कि न्याय विभाग से ट्रंप को निष्पक्ष सुनवाई नहीं मिल सकती है और इसलिए एक स्वतंत्र मध्यस्थ की आवश्यकता है. ये सोच बताती है कि अमेरिका में दलगत राजनीति के आधार पर न्यायिक प्रणाली में अविश्वास धीरे-धीरे बढ़ रहा है.

अब अगला क़दम ये हो सकता है कि विशेषज्ञ का नाम जज एलीन एम. कैनन के द्वारा तय किया जा सकता है. इससे दस्तावेज़ों के मूल्यांकन की लंबी प्रक्रिया शुरू हो सकती है. एक विकल्प ये है कि न्याय विभाग जज के फ़ैसले के ख़िलाफ़ अपील दायर कर सकता है. वैसे जब तक विशेषज्ञ के द्वारा दस्तावेज़ों की समीक्षा पूरी नहीं होती है या इस मामले में न्यायालय का कोई और आदेश नहीं आता है तब तक पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप के घर से ज़ब्त दस्तावेज़ों का न्याय विभाग के द्वारा मूल्यांकन का काम ठप पड़ गया है. हालांकि राष्ट्रीय खुफिया के निदेशक के कार्यालय के द्वारा की जा रही छानबीन में विशेषज्ञ की नियुक्ति की वजह से रुकावट नहीं आएगी.

विशेषज्ञ की नियुक्ति के फ़ैसले के न्यायिक आधार को पूर्व अटॉर्नी जनरल विलियम बार ने ये कहते हुए चुनौती दी है कि ये ‘काफ़ी दोषपूर्ण’ है. फ़ैसले के समर्थकों ने इसे न्याय संगत बताया है

ताज़ा न्यायिक निर्णय अलग-अलग कारणों से विवाद में आ गया है. पहली बात तो ये कि डोनाल्ड ट्रंप के लिए विशेषज्ञ की नियुक्ति का फ़ैसला व्यापक हो सकता है क्योंकि ये आदेश सिर्फ़ अटॉर्नी-मुवक्किल विशेषाधिकार की जगह लेने तक सीमित नहीं रहेगा बल्कि कार्यकारी विशेषाधिकार की जगह भी लेगा. दूसरी बात ये कि फ्लोरिडा में पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के घर से FBI के द्वारा ज़ब्त दस्तावेज़ों को देखने और उनके मूल्यांकन के लिए एक स्वतंत्र मध्यस्थ की नियुक्ति का क़दम मौजूदा क़ानूनी प्रक्रियाओं में काफ़ी देरी कर सकता है. न्याय विभाग ने दावा किया है कि उसकी छानबीन की टीम ने पहले ही दस्तावेज़ों की जांच कर ली है. आख़िरी बात ये कि विशेषज्ञ की नियुक्ति के फ़ैसले के न्यायिक आधार को पूर्व अटॉर्नी जनरल विलियम बार ने ये कहते हुए चुनौती दी है कि ये ‘काफ़ी दोषपूर्ण’ है. फ़ैसले के समर्थकों ने इसे न्याय संगत बताया है ताकि पूर्व राष्ट्रपति की प्रतिष्ठा को ‘चोट’ नहीं लगे. जज कैनन के सामने भी यही दलील पेश की गई थी.

कार्यकारी विशेषाधिकार की हदें

अमेरिका के संविधान में कार्यकारी विशेषाधिकार की धारा एक बार फिर अमेरिका में उभरती राजनीतिक बहस का केंद्र बन गया है. जज कैनन के द्वारा उठाया गया ताज़ा क़दम एक पूर्व राष्ट्रपति के कार्यकारी विशेषाधिकार की परीक्षा की तरह है जो व्हाइट हाउस छोड़ने के बाद ट्रंप की शक्तियों की हदों का फिर से निर्धारण करता है. इस बात की मज़बूत संभावना है कि अगर मौजूदा छानबीन मुक़दमे की तरफ़ जाती है तो पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप अपने कार्यकारी विशेषाधिकार की मदद ले सकते हैं. अगर वो वास्तव में कार्यकारी विशेषाधिकार की सहायता लेते हैं तो ये साफ़ नहीं है कि परिणाम क्या होगा क्योंकि ज्यूरी ने अभी तक एक पूर्व राष्ट्रपति को दिए जाने वाले कार्यकारी विशेषाधिकार की हदों पर कोई फ़ैसला नहीं लिया है, ख़ास तौर पर तब जब पूर्व राष्ट्रपति किसी अन्य राजनीतिक दल से संबंध रखते हैं. इस मामले में न्यायपालिका की भूमिका महत्वपूर्ण होगी क्योंकि अमेरिका के संविधान में मौजूद कार्यकारी विशेषाधिकार की बात लागू करने के मामले में न्यायिक समीक्षा के सिद्धांत से बंधी हुई है. दूसरे शब्दों में कहें तो कार्यकारी विशेषाधिकार अलग-अलग स्थितियों में अलग-अलग सोच को ज़ाहिर कर सकता है.

इस मामले में ऐतिहासिक उदाहरण निक्सन बनाम सामान्य सेवाओं के प्रशासक का मामला है जिसमें अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट ने दस्तावेज़ों को राष्ट्रीय अभिलेखागार से साझा करने से रोकने की राष्ट्रपति निक्सन की कोशिशों को खारिज कर दिया था. निक्सन के दौर में सुप्रीम कोर्ट ने फ़ैसला दिया था कि एक मौजूदा राष्ट्रपति का कार्यकारी विशेषाधिकार एक पूर्व राष्ट्रपति के मुक़ाबले ज़्यादा होग क्योंकि “जिस कार्यकारी शाखा के नाम पर विशेषाधिकार की सहायता ली जा रही है, उसी के ख़िलाफ़ विशेषाधिकार का दावा” किया गया है. लेकिन वर्तमान समय में इस बात का अनुमान लगाया जा रहा है कि 6 जनवरी की कमेटी और FBI छानबीन को लेकर ट्रंप की क़ानूनी लड़ाई कार्यकारी विशेषाधिकार की हदों का फिर से निर्धारण कर सकती है और आने वाले समय के लिए क़ानूनी और कार्यकारी उदाहरण बन सकती है. चूंकि पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप के ख़िलाफ़ छानबीन का स्वरूप राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा हुआ है, इसलिए कार्यकारी विशेषाधिकार की सहायता लेने के मामले में बाधाएं ज़्यादा हैं. उदाहरण के तौर पर ट्रंप के द्वारा कार्यकारी विशेषाधिकार की मदद लेने के बावजूद सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि 6 जनवरी की कमेटी राष्ट्रीय अभिलेखागार से ट्रंप के व्हाइट हाउस से जुड़े रिकॉर्ड को हासिल कर सकती है.

डोनाल्ड ट्रंप के ख़िलाफ़ छानबीन का भविष्य जो भी हो लेकिन इसकी वजह से नवंबर में होने वाले मध्यावधि चुनाव से पहले माहौल गरम हो गया है. राजनीतिक अभियान की ज़मीन तैयार करते हुए राष्ट्रपति बाइडेन ने 1 सितंबर को डोनाल्ड ट्रंप पर लोकतंत्र के ख़िलाफ़ मुहिम शुरू करने का आरोप लगाते हुए हमला बोला. बाइडेन ने कहा, “डोनाल्ड ट्रंप और मेक अमेरिका ग्रेट अगेन का नारा देने वाले उनके रिपब्लिकन समर्थक ऐसी चरमपंथी विचारधारा की नुमाइंदगी करते हैं जो हमारे गणराज्य की बुनियाद के लिए ख़तरा है”. अपने भाषण में अमेरिका के संविधान और स्वतंत्रता के घोषणा पत्र- दोनों का ज़िक्र करते हुए बाइडेन ने अपने मध्यावधि चुनाव अभियान का रुख़ तय कर दिया है. माना जा रहा है कि बाइडेन अमेरिका के द्वारा उदारवादी लोकतंत्र के स्वरूप के प्रतिनिधित्व के इर्द-गिर्द अपना चुनाव अभियान रखेंगे. हालांकि उनकी पोल रेटिंग 40 के नीचे बनी हुई है, अमेरिका के 57 प्रतिशत लोग मौजूदा राष्ट्रपति को नामंज़ूर कर रहे हैं.

नवंबर में होने वाले मध्यावधि चुनाव के साथ जैसे-जैसे अमेरिका राजनीतिक रूप से गरम माहौल की तरफ़ बढ़ रहा है, वैसे-वैसे डोनाल्ड ट्रंप के ख़िलाफ़ जांच के नतीजे देश में वोटिंग पैटर्न और डोनाल्ड ट्रंप के समर्थकों के बीच सांगठनिक व्यवहार को बदलने में महत्वपूर्ण होंगे. एक तरफ़ जहां राष्ट्रपति बाइडेन की पोल रेटिंग अच्छी नहीं है, वहीं ट्रंप के ख़िलाफ़ छानबीन की वजह से उन्हें सहानुभूति का लाभ मिल सकता है. फिलाडेल्फिया में बाइडेन की ताज़ा चुनावी रैली में ट्रंप के समर्थकों की झलक उस बड़ी राजनीतिक जमघट का संकेत हो सकती है जो ट्रंप इकट्ठा कर सकते हैं. पिछले राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप को 74 मिलियन वोट मिले थे और ऐसा लगता है कि रिपब्लिकन पार्टी में उन्होंने अपना समर्थन अभी भी बहुत ज़्यादा बनाया हुआ है और इस वजह से 2024 के राष्ट्रपति चुनाव में ट्रंप की उम्मीदवारी की संभावना बढ़ जाती है.

पिछले दिनों डेमोक्रेटिक नेशनल कमेटी के स्वागत में अपने चुनावी भाषण के दौरान बाइडेन ने इस बात की तरफ़ ध्यान दिलाया कि लोकतंत्र को ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन का नारा देने वाले रिपब्लिकन’ से निकट भविष्य में ख़तरा है. बाइडेन ने ऐसा कहकर ‘मुख्यधारा के रिपब्लिकन’ से ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन का नारा देने वाले रिपब्लिकन’ को अलग किया. उन्होंने साफ़ तौर पर कहा कि अमेरिका में लोकतांत्रिक स्थिति “सामान्य नहीं” है. वैसे तो बाइडेन का ये भाषण चुनाव में डेमोक्रेटिक पार्टी की संभावनाओं को बढ़ाने वाला हो सकता है लेकिन ये बात सच है कि पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का समर्थन करने वाले बेहद चरमपंथी समूहों से अमेरिका की घरेलू राजनीति पर बड़ा ख़तरा मंडरा रहा है. अमेरिका के एक मौजूदा राष्ट्रपति के द्वारा खुले रूप से ख़तरे के स्वरूप को मानना इस तथ्य के बारे में बताता है कि पिछले कुछ वर्षों में किस तरह लोकतंत्र के मामले में अमेरिका का पतन हुआ है. डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति रहने के दौरान बेहद रूढिवादी हथियारबंद समूहों जैसे कि ओथ कीपर्स और प्राउड ब्वॉयज़ की राजनीतिक लामबंदी के कारण 6 जनवरी 2021 को कैपिटल हिल पर हमला हुआ था. उस वक़्त से अभी तक अमेरिका में लोकतंत्र की स्थिति काफ़ी बदतर हुई है. नवंबर 2021 में यूरोप के एक थिंक-टैंक के द्वारा अमेरिका को पहली बार ‘पतन की ओर लोकतंत्र’ की श्रेणी में डाला गया था. इससे हालात की गंभीरता का पता चलता है.

आज अमेरिका में लोकतंत्र वास्तव में उस मोड़ पर पहुंच गया है जहां रिपब्लिक और डेमोक्रेटिक पार्टी के समर्थक ‘रियल अमेरिका’ और ‘सोल ऑफ द नेशन’ के नारों से बंटे हुए हैं. ये विभाजन अमेरिका में प्रमुख चुनावों- नवंबर 2022 में मध्यावधि और 2024 में राष्ट्रपति चुनाव- तक अलग-अलग स्तर पर सामने आते रहने की संभावना है.

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Vivek Mishra

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Vivek Mishra is a Fellow with ORF’s Strategic Studies Programme. His research interests include America in the Indian Ocean and Indo-Pacific and Asia-Pacific regions, particularly ...

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