Author : Harsh V. Pant

Originally Published जागरण Published on Apr 26, 2025 Commentaries 0 Hours ago

कूटनीतिक कदम यही संकेत करते हैं कि भारत कोई कोर-कसर नहीं छोड़ने वाला. इसके बाद सैन्य मोर्चे पर किसी गतिविधि के जरिये पाकिस्तान को सबक सिखाए जाने की सूरत से भी इन्कार नहीं किया जा सकता.

राजनयिक संतुलन से दंडात्मक रणनीति तक: भारत की बदलती पाकिस्तान नीति

पहलगाम आतंकी हमले के बाद उपजे आक्रोश को देखते हुए भारत सरकार ने कार्रवाई शुरू कर दी है. इसी क्रम में कुछ कूटनीतिक कदम उठाए गए हैं. इनमें सबसे अहम है सिंधु जल संधि को स्थगित करना. इसके अतिरिक्त, राजनयिक उपस्थिति न्यूनतम करने, पाकिस्तानियों के वीजा रद करने और अटारी-वाघा सीमा बंद करने का निर्णय भी लिया गया है.

पाकिस्तान का गठन ही भारत से नफरत के आधार पर हुआ और अपने अस्तित्व में आने के बाद से उसने भारत के साथ अपने संबंध तल्ख बनाए रखे. तल्खी के इस लंबे अध्याय के बीच प्रत्यक्ष एवं परोक्ष युद्धों और निरंतर प्रायोजित आतंकवाद के बावजूद भारत ने 1960 में अस्तित्व में आए सिंधु जल समझौते को कभी स्थगित नहीं किया, लेकिन पहलगाम के बाद ऐसा करने में कोई संकोच नहीं किया. इस स्थगन के कार्यान्वयन और इस मामले के अंतरराष्ट्रीय मंच पर उठने से जुड़े किंतु-परंतु के बीच यह तय है कि यदि इसे अपेक्षित रूप से अमल में लाया जा सका तो पहले से मुश्किलें झेल रहा पाकिस्तान त्राहिमाम करने लगेगा.

पाकिस्तान की खेती-किसानी का एक बड़ा हिस्सा इस समझौते से मिलने वाले पानी पर निर्भर है. पानी रुकने से कृषि उत्पादन घटने और खाद्य सुरक्षा का नया संकट पैदा हो सकता है. कई पाकिस्तानी शहर भी इसी पानी के भरोसे चलते हैं तो जाहिर है कि उनकी रफ्तार थम जाएगी. सिंधु जल समझौते को विश्व के सबसे उदार एवं एकतरफा फायदा पहुंचाने वाले करारों में से एक माना जाता है, जिसका लगभग पूरा लाभ पाकिस्तान ही उठाता आया है.

अतीत में भी कई बार इसे स्थगित करने की बात आई, लेकिन वह आई-गई ही रही, क्योंकि भारत की कभी ऐसी मंशा नहीं रही कि पाकिस्तानी सेना और शासकों की करतूतों की कीमत वहां की जनता चुकाए. यहां तक कि 2016 में उड़ी हमले के बाद भी सिर्फ इस अनुबंध का स्वरूप थोड़ा बदला गया, जिससे भारत को भी कुछ लाभ मिले, पर इसे ठंडे बस्ते में डालने का कदम तब भी नहीं उठाया गया. तब प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते, मगर पहलगाम के बाद लगता है कि भारत का धैर्य अपनी सीमा को पार कर गया, जिसके बाद यह कड़ा कदम उठाना पड़ा.


कूटनीतिक कदम

कूटनीतिक कदम यही संकेत करते हैं कि भारत कोई कोर-कसर नहीं छोड़ने वाला. इसके बाद सैन्य मोर्चे पर किसी गतिविधि के जरिये पाकिस्तान को सबक सिखाए जाने की सूरत से भी इन्कार नहीं किया जा सकता. प्रधानमंत्री मोदी ने कहा भी है कि आतंकियों को उनकी कल्पना से भी परे सजा दी जाएगी. गुरुवार को कई देशों के राजनयिकों के साथ बैठक में भारत ने वैश्विक समुदाय को वस्तुस्थिति से अवगत भी कराया. अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने पहलगाम हमले की कड़ी निंदा करते हुए भारत को हरसंभव सहयोग के लिए आश्वस्त भी किया है. भारत की प्रतिक्रिया और गतिविधियों से पाकिस्तान में डर का माहौल स्पष्ट दिख रहा है. वहां सर्जिकल या एयर स्ट्राइक जैसी किसी कार्रवाई की अटकलें लगाई जा रही हैं.

भारतीय कदमों की प्रतिक्रिया में पाकिस्तान ने शिमला समझौता रद करने और सिंधु जल समझौते को ‘युद्धक कार्रवाई’ करार देते हुए जवाब देने की धमकी दी है. इस सबके बीच सवाल उठता है कि जब पाकिस्तान खस्ताहाल आर्थिकी से लेकर अलगाववाद जैसी तमाम चुनौतियों से जूझ रहा है, तब उसने पहलगाम हमले जैसा दुस्साहस क्यों किया? यहां इसकी अनदेखी न की जाए कि पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर के हालिया जहरीले भाषण के हफ्ते भर के भीतर पहलगाम में वीभत्स हमले को अंजाम दिया गया. इसके कारणों की पड़ताल करें तो पाएंगे कि पाकिस्तान इस समय अस्तित्व के संकट से जूझ रहा है. एक समय अमेरिकी उपयोगिता के केंद्र में रहा पाकिस्तान अब अमेरिकी नीतियों में हाशिए पर पहुंच गया है.

इस्लामिक पहचान और एकजुटता को लेकर खाड़ी देशों के दम पर कूदने वाले पाकिस्तान को पश्चिम एशिया में भारत की निरंतर बढ़ती पैठ से भी बड़ा झटका लगा है. ऐसे में इसे अनदेखा नहीं किया जा सकता कि अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस के अत्यंत महत्वपूर्ण भारत दौरे और प्रधानमंत्री मोदी की सऊदी अरब यात्रा के बीच पाकिस्तान ने भारत को गहरा घाव देने का काम किया. स्पष्ट है कि एक समय अपने संरक्षक रहे इन पक्षों का भारत के पाले में झुकना उस पाकिस्तानी फौज को कतई नहीं पच रहा होगा, जो खुद भारत के प्रति अपने देश की नीति को निर्धारित करती आई है.

पाकिस्तान में बढ़ते अलगाववाद ने भी फौज की चुनौतियां बढ़ाई हैं, जिससे उसकी अहमियत एवं सक्षमता पर सवाल उठ रहे हैं. पिछले महीने ही बलूचिस्तान में सैन्यकर्मियों को ले जा रही ट्रेन के अपहरण को लेकर फौज को शर्मसार होना पड़ा था. ऐसे में भारत विरोधी कार्ड को नए सिरे से खेलना उसकी मजबूरी हो गई थी. जनरल मुनीर का हालिया भाषण इसका स्पष्ट उदाहरण है, जिसमें उन्होंने हिंदू-मुस्लिम पहचान, द्विराष्ट्रवाद का समर्थन और कश्मीर का राग फिर से छेड़ा था.


पहलगाम हमले का सैद्धांतिक दृष्टिकोण

 
पहलगाम हमला उनके इस सैद्धांतिक दृष्टिकोण की मूर्त अभिव्यक्ति है. यह हमला इस लिहाज से भी अलग है कि पूर्व में पाकिस्तान समर्थक आतंकियों ने भारतीय सरकारी या सैन्य प्रतिष्ठानों को ही निशाना बनाया था कि उनकी लड़ाई भारतीय राज्य एवं उसकी व्यवस्था से है, लेकिन इस बार निर्दोष नागरिकों को निशाना बनाया गया. इसीलिए भारत ने भी सिंधु जल समझौता स्थगित करके यही संदेश दिया कि अब यह लड़ाई नागरिकों के स्तर पर भी पहुंच गई है और पाकिस्तानी शासकों की करतूतों की तपिश जनता को भी झेलनी पड़ेगी. भारत का संदेश स्पष्ट है कि यदि पाकिस्तानी जनता जहरीली जिहादी लड़ाई में अपने सैन्य एवं राजनीतिक नेतृत्व द्वारा बरगलाई जाती रहेगी तो उसकी कीमत वह भी चुकाएगी. पहलगाम हमले के पीड़ितों में विभिन्न राज्यों के नागरिकों के शामिल होने के कारण इससे उपजे आक्रोश ने समूचे भारत को और एकजुट करने का काम किया है. इसके अतिरिक्त, व्यापक अंतरराष्ट्रीय सहयोग ने भी भारत के लिए सभी विकल्पों को खोल दिया है.

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