Occasional PapersPublished on Jan 23, 2024
ballistic missiles,Defense,Doctrine,North Korea,Nuclear,PLA,SLBM,Submarines

हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत-फ्रांस त्रिपक्षीय सहयोग: अनिवार्यताएं, फ़ायदे और पहल!

  • Shairee Malhotra
  • THIBAULT FOURNOL

    जुलाई 2023 में जारी किए गए भारत-फ़्रांस हिंद-प्रशांत रोडमैप ने द्विपक्षीय सहयोग के दायरे को हिंद महासागर क्षेत्र (आईओआर) से बढ़ाकर पूरे हिंद-प्रशांत क्षेत्र तक विस्तार दे दिया है. यह पारंपरिक आत्म-केंद्रित दृष्टिकोण से आगे बढ़ते हुए प्रमुख क्षेत्रीय साझेदारों के साथ एक अधिक बहिर्मुखी गतिशीलता को बढ़ावा देने के महत्व को रेखांकित करता है. 2020 में भारत और फ़्रांस द्वारा स्थापित सहकारी त्रिपक्षीय तंत्र, भारत-फ़्रांस-ऑस्ट्रेलिया, और 2023 में गठित, भारत-फ़्रांस-यूएई, इस दिशा में प्रारंभिक कदमों का प्रतिनिधित्व करते हैं. हालांकि त्रिपक्षीय सहयोग भारत की सहयोग प्रथाओं के लिए नए नहीं हैं, हाल के त्रिपक्षीय सहयोगों ने ध्यान का केंद्र रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण और प्रतियोगी इलाके हिंद-प्रशांत क्षेत्र में प्रमुख साझेदारों की ओर स्थानांतरित किया है, ख़ासकर भारत-फ़्रांस संबंधों के संदर्भ में. यह शोध पत्र निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर की तलाश करता है: कौन सी अनिवार्यताएं भारत-फ़्रांस-ऑस्ट्रेलिया और भारत-फ़्रांस-यूएई त्रिपक्षीय सहयोग संगठनों के गठन की ओर ले गईं? देशों के रणनीतिक और आर्थिक हितों को आगे बढ़ाने के लिए वे किस तरह के सहयोग के अवसर प्रदान करते हैं? ये त्रिपक्षीय संगठन एक दूसरे से कैसे भिन्न हैं? उनके तहत किन सहयोग क्षेत्रों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए?

Attribution:

एट्रीब्युशन: शैरी मल्होत्रा और थिबॉल्ट फ़ोरनॉल, "हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत-फ्रांस त्रिपक्षीय सहयोग: अनिवार्यताएं, फ़ायदे और पहल!," ओआरएफ़ सामयिक शोध पत्र संख्या 421, नवंबर 2023, ऑब्ज़र्वर रिसर्च फ़ाउंडेशन.

भूमिका

जुलाई 2023 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पेरिस यात्रा के दौरान जारी किए गए नए भारत-फ़्रांस हिंद-प्रशांत रोडमैप ने एक दिलचस्प सुधार दर्ज किया. पांचवां पैराग्राफ ऑस्ट्रेलिया और यूएई के साथ "बहुपक्षीय व्यवस्थाओं को मज़बूत करने और इस क्षेत्र में नए निर्माण करने" के लिए दोनों राष्ट्रों के बीच एक साझा प्रतिबद्धता की रूपरेखा तैयार करता है.[i] यह कथन भारत और फ़्रांस के क्षेत्रीय स्तर पर जुड़ाव को लेकर कई उल्लेखनीय विकासक्रमों को दर्शाता है. हाल के वर्षों में दोनों देशों के बीच स्थापित सहयोग ढांचे का हवाला देकर, यह 2018 में हिंद महासागर क्षेत्र (आईओआर) में भारत-फ़्रांस सहयोग के संयुक्त रणनीतिक दृष्टिकोण में व्यक्त किए गए इरादों के ठोस सबूत प्रदान करता है[ii] जो "भारत और फ़्रांस के बीच बढ़ते सहयोग में, जब और जैसी आवश्यकता हो, उसके अनुसार अन्य रणनीतिक साझेदारों को जोड़ने और (...) त्रिपक्षीय वार्ता स्थापित करने."  की बात करता है.[iii] केवल त्रिपक्षीय वार्ता का उल्लेख करने के बजाय 'बहुपक्षवाद' शब्द का उपयोग करके यह इस पहल में एक ज़्यादा राजनीतिक और अतिरिक्त वैचारिक आयाम डालता है, जिसे पहले मुख्य रूप से उनकी प्रकृति द्वारा वर्णित किया गया था. संक्षेप में, अपने द्विपक्षीय सहयोग के दायरे को आईओआर से बढ़ाकर पूरे हिंद-प्रशांत क्षेत्र तक विस्तारित करके, यह रोडमैप पारंपरिक आत्म-केंद्रित दृष्टिकोण से आगे बढ़ने के महत्व को रेखांकित करता है और प्रमुख क्षेत्रीय साझेदारों के साथ अधिक बहिर्मुखी गतिशीलता को बढ़ावा देता है. भारत और फ़्रांस द्वारा हाल ही में स्थापित सहकारी तंत्र - 2020 में भारत-फ़्रांस-ऑस्ट्रेलिया (आईएफ़ए) और 2023 में भारत-फ़्रांस-यूएई (आईएफ़यू) - इस दिशा में प्रारंभिक कदमों का प्रतिनिधित्व करते हैं.

दिलचस्प बात यह है कि 'बहुपक्षीय व्यवस्था' वह शब्द नहीं है जो फ़्रांसीसी रणनीतिक शब्दकोश में बार-बार पाया जाता हो, सिवाय यूरोपीय संदर्भ में कुछ प्रकार के समझौतों और परियोजनाओं का वर्णन करने के लिए कभी-कभी उपयोग के अलावा.

परिभाषाओं के निहितार्थ

इस संदर्भ में 'बहुपक्षीय व्यवस्था' शब्द का प्रयोग भारत के अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के दृष्टिकोण में निहित है, जिसे अक्सर उसके गुटनिरपेक्ष रुख से विरासत में मिला माना जाता है. दिलचस्प बात यह है कि 'बहुपक्षीय व्यवस्था' वह शब्द नहीं है जो फ़्रांसीसी रणनीतिक शब्दकोश में बार-बार पाया जाता हो, सिवाय यूरोपीय संदर्भ में कुछ प्रकार के समझौतों और परियोजनाओं का वर्णन करने के लिए कभी-कभी उपयोग के अलावा.[iv] ऐसे मामलों में, 'बहुपक्षीय' अक्सर सीमित संख्या में हितधारकों से जुड़े समझौतों का उल्लेख करते हैं और द्विपक्षीय और बहुपक्षीय व्यवस्थाओं के बीच एक मध्यवर्ती स्थान बनाते हैं;[v] इसलिए, 'बहुपक्षीय' शब्द का प्रयोग 'लघुपक्षीय' के स्थान पर किया जाता है. फ़्रांसीसी संदर्भ में, यह शब्द "स्वैच्छिक कर्ताओं को एक नियामक ढांचे को परिभाषित करने और संयुक्त रूप से परिभाषित प्रयासों को पारस्परिक मान्यता की अनुमति देने के लिए अधिक उन्नत" बातचीत का भी उल्लेख कर सकता है.[6][vi] दूसरी ओर, भारत ने विदेश मंत्री एस. जयशंकर के अनुसार खुद को, "ऐसे बहुपक्षीय समूहों के अध्यवसाय के अगुआ" के रूप में स्थापित किया है.[vii] ये समूह, "सामान्य चिंताओं के दबाव" से उभरते हुए, जयशंकर द्वारा "सुविधा के गठबंधन" के रूप में परिभाषित किए गए हैं और इनकी ख़ासियत "विपरीत प्रतिबद्धताओं के साथ सामंजस्य स्थापित करने वाले" परिणाम-उन्मुख सहयोग दृष्टिकोण हैं.

भले ही दोनों देशों की रणनीतिक शब्दावली में बहुपक्षीय व्यवस्थाओं के आसपास की शब्दावली अलग हो, लेकन इनमें कुछ लघुपक्षीय रूप में व्याख्या करने योग्य अभिसरण भी है जैसे कि तीन कर्ताओं को शामिल करने वाला लचीलापन, संस्थागत संरचना की कमी (कोई स्थायी मुख्यालय या सचिवालय नहीं, कोई संविधान चार्टर नहीं) और अनौपचारिकता (ये अक्सर बहुपक्षीय शिखर सम्मेलनों के बाहरी दायरे में आयोजित होते हैं). संक्षेप में, ऐसे प्रारूप एक तदर्थ और स्वैच्छिक सहयोग प्रणाली का प्रतिनिधित्व करते हैं, "एक विशिष्ट उद्देश्य के लिए आवश्यक 'महत्वपूर्ण समूह' को एकत्र करते हैं, बहुपक्षीयता के साथ जुड़े व्यापक और समावेशी दृष्टिकोण के विपरीत".[viii] आमतौर पर इन व्यवस्थाओं से जुड़े किसी स्थायी संस्थान की कमी को उजागर करते हुए, एलिस पैनीर बताती हैं कि "सरकारों और प्रशासनों के बीच सीधा समन्वय" रक्षा सहयोग की आवश्यकता पर ध्यान देने के लिए एक वैकल्पिक दृष्टिकोण प्रदान करता है, ख़ासकर जब गठबंधन हस्तक्षेप आम बात हो.[ix] सेबास्टियन हॉग और अन्य लघुपक्षीय सहयोगों को "अनौपचारिक, गैर-बाध्यकारी, उद्देश्य-निर्मित साझेदारी और  हितधारकों,  इच्छुकों और सक्षम लोगों के गठबंधन के रूप में परिभाषित करते हैं जो कुछ ख़ास मुद्दों के क्षेत्रों में चुनौतियों का समाधान करने के लिए स्थापित किए गए हैं".[x]

विशिष्ट क्षेत्रों में व्यावहारिक समस्या समाधान पर उनके ज़ोर से परे, लघुपक्षीय सहयोगी ढांचे का एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू भाग लेने वाले कर्ताओं की संरचना है. ये कर्ता अक्सर भौगोलिक निकटता, साझा रणनीतिक संस्कृति या मौजूदा ख़तरों की एक समान समझ जैसे कारकों से जुड़े होते हैं.[xi] भारतीय राजनयिक और सैन्य अधिकारी संस्थागत ढांचे का समर्थन करने के लिए लघुपक्षवाद के मूल्य पर सहमत हैं, जिन्हें सीमित पहल क्षमता माना जाता है और बड़े समूहों के भीतर समन्वय की अंतर्निहित चुनौतियों को दूर करते हैं.[xii] लघुपक्षीय सहयोग का अनौपचारिक और अनुकूलनीय स्वभाव उन्हें उन देशों के लिए एक आरामदायक प्रारूप बनाने की अनुमति देता है जैसे भारत जो औपचारिक सुरक्षा गठबंधनों का विरोधी है. लघुपक्षीय सहयोग सदस्य राज्यों के साझा हितों को आगे बढ़ाने के लिए समाधानों का एक वर्गीकरण लाकर एकल कर्ताओं की सीमित क्षमताओं और गुंजाइशों पर भी ध्यान देते हैं.

हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत और फ़्रांस के साथ त्रिपक्षीय सहयोग

लघुपक्षीय सहयोग निरंतर प्रतिद्वंद्विता भरे और रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण हिंद-प्रशांत क्षेत्र के स्थापत्य का एक हिस्सा रहे हैं, जहां कई ऐसी व्यवस्थाएं हैं, जिनमें क्वाड (भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका) और आई2यू2 (भारत, इज़राइल, यूएई और अमेरिका) शामिल हैं. हिंद-प्रशांत क्षेत्र में, लघुपक्षवाद मुख्य रूप से 'समान विचारधारा वाले साझेदारों' को 'साझा मूल्यों' के समीप एकत्र करने के लिए एक साथ लाता है. बहुपक्षीय संस्थानों की तुलना में उनके प्रत्यक्ष संगठन और कम परिचालन लागत के कारण लघुपक्षीय सहयोग को अधिक प्रभावी माना जाता है. बहुपक्षीय निकायों के भीतर आम सहमति की तलाश से जुड़ी चुनौतियां बताती हैं कि "क्यों कुछ कर्ता समवर्ती रूप से परिचालन या वैचारिक उद्देश्यों को प्राप्त करने या राजनीतिक संबंधों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से अधिक प्रतिबंधित व्यवस्थाओं में निवेश करते हैं".[xiii] इस संदर्भ में, हाल के कई संवादों, विशेष रूप से त्रिपक्षीय वार्ताओं, ने साझेदारी ढांचे के भीतर व्यावहारिक सहयोग तंत्र स्थापित करने का लक्ष्य रखा है. इनमें से कुछ वार्ताओं की पहचान बहुपक्षीय व्यवस्थाओं के संबंध में अपने स्वायत्त स्वभाव से होती है.[xiv] त्रिपक्षीय वार्ताओं में भारत की बढ़ती भागीदारी हिंद-प्रशांत अवधारणा के उदय के साथ हुई है. नई दिल्ली इस तरह के लगभग एक दर्जन प्रारूपों में शामिल हो रही है (टेबल 1 देखें), जिनमें से दस 2010 के दशक के प्रारंभ में शुरू किए गए थे, जिनमें से आधे 2016 के बाद स्थापित हुए हैं, जब यह अवधारणा पहले से ही कई देशों की रणनीतिक शब्दावली में घूम रही थी.

टेबल 1: त्रिपक्षीय सहयोग तंत्र जिनमें भारत शामिल है

त्रिपक्षीय सहयोग तंत्र

सृजन का वर्ष

भारत-चीन-रूस

1990s

भारत-ब्राजील-दक्षिण अफ्रीका

2003

भारत-अमेरिका-जापान

2011

भारत-अमेरिका-अफ़गानिस्तान

2012

भारत-जापान-ऑस्ट्रेलिया

2015

भारत-ईरान-अफ़गानिस्तान

2016

भारत-ओमान-ईरान

2017

भारत-ऑस्ट्रेलिया-इंडोनेशिया

2017

भारत-फ़्रांस-ऑस्ट्रेलिया

2020

भारत-जापान-इटली

2021

भारत-ईरान-आर्मेनिया

2023

भारत-फ़्रांस-यूएई

2023

स्रोतः लेखक का अपना

भारत में त्रिपक्षीय सहयोग का विकास

भले ही त्रिपक्षीय सहयोग भारत की सहयोग कार्यप्रणाली के लिए नए नहीं हैं, जैसा कि 1990 के दशक में भारत-चीन-रूस के प्रारूप और 2003 में ब्राज़ील और दक्षिण अफ़्रीका के साथ आईबीएसए से स्पष्ट हो जाता है, अलबत्ता हाल के त्रिपक्षीय सहयोगों का ध्यान हिंद-प्रशांत क्षेत्र में प्रमुख भागीदारों की ओर स्थानांतरित हो गया है. 2011 से, भारत ने जापान के साथ तीन, ऑस्ट्रेलिया के साथ तीन, अमेरिका के साथ दो, फ़्रांस के साथ दो और इंडोनेशिया और यूएई के साथ एक-एक त्रिपक्षीय समझौते किए हैं. हालांकि, ज़रूरी नहीं कि ये त्रिपक्षीय व्यवस्थाएं समान उद्देश्यों या आकांक्षाओं को साझा करती हों. यद्यपि इनमें से कुछ तदर्थ तंत्र व्यावहारिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं - जैसे कि चाबहार समझौते (2016) के तहत भारत-ईरान-अफ़गानिस्तान साझेदारी, आपूर्ति-श्रृंखला लचीलेपन पर केंद्रित भारत-ऑस्ट्रेलिया-जापान त्रिपक्षीय समझौता, अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे (आईएनएसटीसी) को बढ़ाने के उद्देश्य से भारत-ईरान-आर्मेनिया त्रिपक्षीय समझौता या गैस पाइपलाइनों पर केंद्रित भारत-ईरान-ओमान प्रारूप - पहली नज़र में, इनमें से अधिकांश राजनीतिक और रणनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति करते हैं, जो कभी-कभी ख़तरों की एक समान समझ और साझा मूल्यों के संदर्भ में वैचारिक उद्देश्यों से संबंधित होते हैं.

फ़्रांसीसी पक्ष की बात करें तो, त्रिपक्षीय जुड़ाव 1990 की दशक के शुरुआती दिनों के हैं, लेकिन फ़्रांस की व्यापक सहकारी प्रथाओं के भीतर अपेक्षाकृत सीमित हैं. बहुपक्षीय प्रारूपों में भाग लेने के अलावा, फ़्रांस की हिंद-प्रशांत रणनीति विभिन्न  लघुपक्षीय सहयोग व्यवस्थाओं में उसकी बढ़ती भागीदारी में परिलक्षित होती है. 1992 में ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के साथ फ़्रांज़ (FRANZ) समझौते पर हस्ताक्षर किए गए, कुछ दशकों बाद, विशेष रूप से हिंद-प्रशांत संदर्भ में अन्य अधिक अनौपचारिक और राजनीतिक रूप से उन्मुख त्रिपक्षीय प्रारूपों की स्थापना हुई. फ़्रांज़ व्यवस्था प्रशांत द्वीप राष्ट्रों के लिए प्राकृतिक आपदाओं के दौरान फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड से नागरिक और सैन्य सहायता और संसाधनों के बेहतर समन्वय का लक्ष्य रखती थी, जैसा कि 1998 में पापुआ न्यू गिनी में और फ़िज़ी में चक्रवातों के दौरान (2003, 2012, 2016), सोलोमन द्वीप समूह (2003), नीउए (2004) और वानुअतु (2010, 2015) में दिखा. यह व्यवस्था हिंद-प्रशांत संदर्भ में फ़्रांस के हाल के त्रिपक्षीय सहयोगों से भिन्न है और ऐसा इसकी अधिक संस्थागत प्रकृति (एक हस्ताक्षरित त्रिपक्षीय समझौता), एक अत्यंत अच्छी तरह से परिभाषित महत्वाकांक्षा (प्राकृतिक आपदाओं के दौरान प्रशांत द्वीपों के लिए संसाधनों के पूल में सहायता करना) और इसके परिचालन और कार्रवाई-आधारित प्रकृति (नियमित अनुवर्ती वार्षिक बैठकों के साथ) के कारण है.

सितंबर 2020 में भारत, फ़्रांस और ऑस्ट्रेलिया के बीच एक त्रिपक्षीय तंत्र स्थापित किया गया था, जिसमें वरिष्ठ अधिकारियों की पहली वार्ता कोविड-19 महामारी के दौरान वर्चुअल रूप से आयोजित की गई थी. तीनों देशों के विदेश सचिवों के बीच इस बैठक ने आधिकारिक स्तर पर भारत-फ़्रांस के संदर्भ में त्रिपक्षीय प्रारूप का प्रस्ताव रखा गया.

भारत-फ़्रांस-ऑस्ट्रेलिया त्रिपक्षीय सहयोग

सितंबर 2020 में भारत, फ़्रांस और ऑस्ट्रेलिया के बीच एक त्रिपक्षीय तंत्र स्थापित किया गया था, जिसमें वरिष्ठ अधिकारियों की पहली वार्ता कोविड-19 महामारी के दौरान वर्चुअल रूप से आयोजित की गई थी.[xv] तीनों देशों के विदेश सचिवों के बीच इस बैठक ने आधिकारिक स्तर पर भारत-फ़्रांस के संदर्भ में त्रिपक्षीय प्रारूप का प्रस्ताव रखा गया. यह बैठक तीनों देशों के बीच एक लंबे राजनीतिक संबंध स्थापित करने का भी प्रतीक है, जो उनकी रणनीतिक शब्दावली में हिंद-प्रशांत प्रसार के समानांतर उभरा. ऐसी परिस्थिति में, मई 2018 में ऑस्ट्रेलिया के गार्डन आइलैंड में इमैनुएल मैक्रॉं के भाषण के दौरान राष्ट्रपति स्तर पर हिंद-प्रशांत को लेकर फ़्रांस की समझ सामने आई, जिसके साथ पेरिस-दिल्ली-कैनबरा धुरी के लिए एक आह्वान भी था, जिसे "पूरे क्षेत्र का निर्माण करने और हिंद-प्रशांत में हमारे साझा हितों को आकार देने के लिए बेहद महत्वपूर्ण" माना गया था, जिसमें ऑस्ट्रेलिया और भारत को "इस नए हिंद-प्रशांत गठबंधन और धुरी के लिए महत्वपूर्ण भागीदार" के रूप में वर्णित किया गया था.[xvi]

इस भाषण ने त्रिपक्षीय धुरी और आईओआर में सहयोग के लिए भारत-फ़्रांस संयुक्त रणनीतिक दृष्टिकोण के बीच एक सीधा संबंध बनाया, जिसे दो महीने पहले स्थापित किया गया था. नतीजतन, आधिकारिक त्रिपक्षीय सहयोग से पहले जनवरी 2018 में एक ट्रैक 1.5 बैठक हुई, जिसमें तीनों देशों के विशेषज्ञों और अधिकारियों ने भाग लिया. इसके अलावा आईएफ़यू के विपरीत ज़्यादा अनौपचारिक 1.5 प्रारूप के इसके पहले होने और उद्देश्यों में शुरुआती अस्पष्टता ने भी आईएफ़ए को विशिष्टता प्रदान की. वरिष्ठ अधिकारियों की पहली बैठक के बाद जारी किए गए बयानों में हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सहयोग को मज़बूत और बढ़ाने पर एक ध्यान दिए जाने का अस्पष्ट उल्लेख किया गया था,[xvii] जिसमें विशेष रूप से कोविड-19 महामारी के संदर्भ में व्यापक आर्थिक और भू-रणनीतिक चुनौतियों के बारे में चर्चा की गई थी.[xviii] चर्चा किए गए मुद्दों में समुद्री क्षेत्र और समुद्री वैश्विक कॉमन्स के साथ-साथ बहुपक्षवाद को मज़बूत करना और सुधारना शामिल था. इसलिए, इस पहली बैठक ने "ठोस सहयोग परियोजनाओं",[xix] "त्रिपक्षीय और क्षेत्रीय स्तर पर व्यावहारिक सहयोग" और तीनों हितधारकों के लिए नियमित रूप से मिलने के लिए एक "परिणाम उन्मुख" दृष्टिकोण का आधार तैयार किया.[xx]

चित्र 1: भारत-फ़्रांस-ऑस्ट्रेलिया त्रिपक्षीय सहयोग का घटनाक्रम

स्रोत: लेखकों का अपना

सितंबर 2020 के भारत के बयान ने तीन देशों के भीतर तंत्र के लिए तीन दिशानिर्देशों को पेश किया: परिणाम-उन्मुख सहयोग के उद्देश्य के अनुरूप "उनकी संबंधित ताकतों को जोड़ना"; "क्षेत्रीय संगठनों के माध्यम से" व्यावहारिक सहयोग की आवश्यकता; और त्रिपक्षीय सहयोग के स्थायित्व के लिए एक अंतर्निहित और अपरिहार्य शर्त के रूप में भाग लेने वाले प्रत्येक राष्ट्र के बीच "मज़बूत द्विपक्षीय संबंधों" का महत्व.[xxi] इस तरह के प्रारूपों की चयनात्मकता को अक्सर ऐसे कर्ताओं के समूहों को सक्षम बनाने के रूप में देखा जाता है जो पहले से ही बहुपक्षीय क्षेत्रों में परस्पर क्रिया करते हैं, संस्थागत प्रक्रियाओं में निहित बाधाओं के बिना अधिक प्रभावी ढंग से सहयोग करते हैं.[xxii] इन उद्देश्यों के लेंस के माध्यम से देखे जाने पर, पिछले तीन वर्षों में भारत, फ़्रांस और ऑस्ट्रेलिया के बीच त्रिपक्षीय वार्ता के विकास से कई विचार सामने आते हैं.

परिणाम-उन्मुख कार्रवाई के लिए शक्ति का संयोजन

त्रिपक्षीय सहयोग का शुरुआती रुख, जिसे एक परिणाम-उन्मुख दृष्टिकोण के माध्यम से ठोस सहयोग की ज़रूरत थी, एक ऐसे ख़ास विषय की कमी के कारण प्रभावी नहीं हो पाया, जिस पर तीन देश अनुकूल तरीके से मिलकर काम कर सकते थे. फरवरी 2021 में डिवीजन-चीफ़ स्तर पर आयोजित पहली फोकल प्वाइंट्स मीटिंग (केंद्रीय या मुख्य बिंदुओं पर पहली बैठक) में, "क्षेत्र की सुरक्षा, समृद्धि और सतत विकास को सुनिश्चित करने के लिए ठोस परियोजनाओं को सामने लाने" के उद्देश्य की पुष्टि की गई.[xxiii] हालांकि, सितंबर 2020 में वरिष्ठ अधिकारियों की बैठक के दौरान रखे गए प्रस्तावों के बारे में चर्चा ने प्रारूप की संचालन क्षमता के बारे में संदेह जगाया, जिसकी वजह मुख्य रूप से बयान में उल्लिखित विषयों की संख्या और इस संबंध में आगे की प्रगति के बारे में विस्तार की कमी रही. यह चर्चा संयुक्त त्रिपक्षीय कार्रवाई को दिशा निर्देश देने वाले पांच विषयों पर केंद्रित थी: समुद्री सुरक्षा, आपदाओं में मानवीय सहायता, नीली अर्थव्यवस्था (ब्लू इकॉनॉमी से अर्थ समुद्री संसाधनों का टिकाऊ तरीके से उपयोग करना होता है. नीली अर्थव्यवस्था में आर्थिक विकास, परिवहन सेवाओं, अन्वेषण, आजीविका उद्देश्यों आदि के लिए समुद्री संसाधनों का उपयोग करना शामिल होता है), समुद्री संसाधन और पर्यावरण और बहुपक्षवाद. हालांकि फोकल प्वाइंट्स मीटिंग की स्थापना त्रिपक्षीय सहयोग के संचालन के साथ संरेखित है, पहचाने गए सहयोग अक्षों की संख्या सामूहिक कार्रवाई और संसाधनों के फैलाव को कायम रखती है, जो केवल तभी प्रभावी हो सकती है जब वे सीमित संख्या में विशिष्ट मुद्दों पर ध्यान देते हैं और ठोस, दीर्घकालिक सहयोग परियोजनाओं का समर्थन करते हैं. 

दूसरी फोकल प्वाइंट्स मीटिंग

दूसरी फोकल प्वाइंट्स मीटिंग यानी कि केंद्रीय बिंदुओं पर दूसरी बैठक, जो ऑस्ट्रेलिया-ब्रिटेन-अमेरिका (ऑकस- AUKUS) सुरक्षा साझेदारी की घोषणा के बाद फ्रेंको-ऑस्ट्रेलियाई राजनयिक संकट के कारण आई रुकावट के बाद जून 2023 में हुई (जिसके चलते वरिष्ठ अधिकारियों का दूसरा संवाद भी रुक गया), ने वार्ता के दृष्टिकोण को सुव्यवस्थित करने में योगदान दिया है. तीन स्तंभों पर ध्यान केंद्रित करके: समुद्री सुरक्षा और बचाव, जिसमें मानवीय सहायता और आपदा राहत (एचएडीआर) शामिल है; वैश्विक समुद्री कॉमन्स और पर्यावरण; और बहुपक्षीय जुड़ाव.[xxiv] ये तीन स्तंभ पहले से ही संयुक्त घोषणा में निर्दिष्ट थे, जो त्रिपक्षीय वार्ता को विदेश मंत्रियों के स्तर तक बढ़ाने से सामने आए थे, जो मई, 2021 में पहली बार लंदन में जी7 के दौरान मिले थे.[xxv] फिर भी, कोविड-19 महामारी, म्यांमार की स्थिति, जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद विरोधी और साइबर सुरक्षा सहित सामान्य हित के विषयों की बहुलता ने वार्ता पर ध्यान कम कर दिया.

विषयों की इस विषमता ने शुरू में हितधारकों द्वारा वांछित कार्रवाई-उन्मुख दृष्टिकोण को कमज़ोर कर दिया और विशेष रूप से अन्य क्षेत्रीय भागीदारों के लिए तीनों देशों के बीच सहयोग के संदर्भ में स्पष्टता और दृश्यता की कमी का संदेश दिया. इस वार्ता के अकेले साझा मूल्यों के अभिसरण द्वारा प्रेरित एक विशेष रूप से राजनीतिक पहल बनने का जोखिम है, जिससे क्षेत्रीय सुरक्षा और समृद्धि में कोई ठोस योगदान नहीं होगा.

आपूर्ति-श्रृंखला के लचीलेपन पर ध्यान केंद्रित करने वाला भारत-ऑस्ट्रेलिया-जापान प्रारूप और एचएडीआर पर फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के बीच फ़्रांज़ (FRANZ) व्यवस्था उदाहरण हैं कि त्रिपक्षीय सहयोग कैसे सीमित संख्या में मुद्दों पर प्रभावी ढंग से ध्यान केंद्रित कर सकते हैं (बाद वाले ने हाल ही में एक बड़े ज्वालामुखी विस्फोट के बाद टोंगा राजशाही को बड़े पैमाने पर आपातकालीन सहायता प्रदान करके अपनी मज़बूत कार्यक्षमता साबित की है.). इसलिए, भारत-फ़्रांस-ऑस्ट्रेलिया के संदर्भ में, समुद्री सुरक्षा और समुद्री बचाव के मुद्दों पर एक स्पष्ट ध्यान, पारंपरिक और गैर-पारंपरिक दोनों सुरक्षा दृष्टिकोणों को शामिल करना और एचएडीआर जैसी गतिविधियों को शामिल करना, समुद्र में संगठित अपराध का मुकाबला करना, अवैध मछली पकड़ने का समाधान करना और पर्यावरण समुद्री सुरक्षा के मुद्दों पर विचार करना उचित होगा. यह तरीका और भी अधिक समझ में आता है क्योंकि 2019 में भारत द्वारा शुरू की गई हिंद-प्रशांत महासागर पहल (आईपीओआई) के तहत फ़्रांस के पास  'समुद्री संसाधन' स्तंभ की ज़िम्मेदारी है और ऑस्ट्रेलिया 'समुद्री पारिस्थितिकी' स्तंभ का नेतृत्व करता है.

बहुपक्षीय कार्यक्षेत्रों में व्यावहारिक सहयोग 

बहुपक्षवाद की "पुष्टि और सुधार करने"[xxvi] को प्राथमिकता देने से इतर, क्षेत्र के मुख्य बहुपक्षीय तंत्रों के साथ जुड़ने के लिए आईएफ़ए के घोषित लक्ष्य कुछ पारदेशी मुद्दों पर ध्यान देने के लिए व्यापक क्षेत्रीय विचारशील ढांचे के भीतर किए गए प्रयासों पर उन्हें निर्देशित करने के लिए सीमित संख्या में कर्ताओं से संसाधनों को एकीकृत करके प्रभावी ढंग से योगदान करने की इच्छा को भी दर्शाता है. बहुपक्षीय कार्यक्षेत्रों के भीतर पहचाने गए सामान्य उद्देश्यों को संचालित करके, लघुपक्षीय ढांचे को अतिरिक्त-क्षेत्रीय पहलों की तुलना में क्षेत्रीय रूप से बेहतर ढंग से स्वीकार किया जा सकता है, "जिनका कार्यात्मक महत्व रणनीतिक और राजनीतिक प्रदर्शनों के मुकाबले में गौण लगता है."[xxvii] वरिष्ठ अधिकारियों की पहली बैठकों के बाद भारत के बयान में "आसियान [एसोसिएशन ऑफ साउथ ईस्ट एशियन नेशंस], हिंद महासागर रिम एसोसिएशन [आईओआरए- इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन] और हिंद महासागर आयोग [आईओसी- इंडियन ओशन कमीशन]" जैसे क्षेत्रीय संगठनों के माध्यम से" इस संबंध में व्यावहारिक सहयोग स्थापित करने का उल्लेख किया गया है.[xxviii] कुछ महीने बाद विदेश मंत्रियों की बैठक ने त्रिपक्षीय कार्रवाई के लिए प्रासंगिक क्षेत्रीय बहुपक्षीय संगठनों की विस्तृत श्रेणी को हिंद महासागर नौसेना संगोष्ठी (आईओएनएस- इंडियन ओशन नेवल सिंपोजियम), पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन (ईएएस- ईस्ट एशिया समिट) और पैसिफिक आइलैंड्स फ़ोरम को शामिल करने के लिए विस्तार दिया. इसके अलावा, संयुक्त वक्तव्य हिंद-प्रशांत क्षेत्र से आगे बढ़ा, विश्व स्वास्थ्य संगठन, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद और जी20 जैसे वैश्विक संस्थानों के भीतर समन्वित कार्यों की संभावना पर चर्चा की.[xxix]

तीनों देशों के पास मौजूद कई बहुपक्षीय तंत्रों की वजह से त्रिपक्षीय प्रारूप के अंदर जुटाए गए संसाधनों और सामूहिक कार्रवाई के कमज़ोर होने का जोखिम बढ़ जाता है. इस पहल के ठोस उद्देश्यों और उन्हें प्राप्त करने के लिए नियोजित साधनों के बारे में अस्पष्टता भी क्षेत्रीय भागीदारों से वार्ता की स्पष्टता और कार्यक्षमता की कमी को बनाए रखती है.

तीनों देशों के पास मौजूद कई बहुपक्षीय तंत्रों की वजह से त्रिपक्षीय प्रारूप के अंदर जुटाए गए संसाधनों और सामूहिक कार्रवाई के कमज़ोर होने का जोखिम बढ़ जाता है. इस पहल के ठोस उद्देश्यों और उन्हें प्राप्त करने के लिए नियोजित साधनों के बारे में अस्पष्टता भी क्षेत्रीय भागीदारों से वार्ता की स्पष्टता और कार्यक्षमता की कमी को बनाए रखती है. इसके अलावा, कई बहुपक्षीय निकायों के सदस्यों में सभी तीन देश शामिल नहीं हैं, जिसकी वजह से भी तीनों देशों के बीच व्यावहारिक त्रिपक्षीय सहयोग जटिल हो जाता है, जैसे कि आईओसी, जिसमें ऑस्ट्रेलिया भागीदार देश नहीं है और भारत केवल पर्यवेक्षक का दर्जा रखता है; ईएएस, जहां फ़्रांस अनुपस्थित है; और प्रशांत द्वीप समूह फ़ोरम, जहां भारत और फ़्रांस केवल संवाद भागीदार हैं.[] इसलिए, बहुपक्षीय प्रारूपों के भीतर समन्वय को बढ़ाने के लिए ऐसी प्रक्रिया स्थापित करने से त्रिपक्षीय वार्ता लाभान्वित होगी, जिसमें सभी तीन देश पूरी तरह से संलग्न हैं (देखें संलग्नक).

नीली अर्थव्यवस्था और समुद्री पर्यावरण के क्षेत्रों में, तीनों देश आईओआरए के भीतर क्षेत्रीय स्तर पर सामूहिक रूप से सहमत उद्देश्यों को मूर्त रूप देने और संचालित करने के लिए अपने संयुक्त प्रयासों का लाभ उठा सकते हैं, चाहे मंत्रिस्तरीय सम्मेलनों के माध्यम से[बी] या हाल के वर्षों में किए गए संयुक्त राजनीतिक घोषणापत्रों के माध्यम से.[सी] समुद्री सुरक्षा और सुरक्षा के क्षेत्र में, भारत, फ़्रांस और ऑस्ट्रेलिया तीन नौसेनाओं के बीच तालमेल, समन्वय और अंतर-संचालन को बढ़ाने के लिए त्रिपक्षीय नौसैनिक अभ्यास आयोजित करने के साथ-साथ आईओएनएस की भूमिका को मज़बूत करने और क्षेत्रीय समुद्री सुरक्षा में परिचालन प्रयासों में सकारात्मक योगदान दे सकते हैं. भारत के नेतृत्व वाला सूचना फ़्यूजन सेंटर-हिंद महासागर क्षेत्र में निर्मित त्रिपक्षीय सूचना साझाकरण कार्यशाला, जिसमें फ़्रांस और ऑस्ट्रेलिया द्वारा तैनात संपर्क अधिकारी शामिल हैं, इस दिशा में एक सकारात्मक कदम है.[xxx]

द्विपक्षीय संबंधों की ताकत

त्रिपक्षीय प्रारूप की प्रभावशीलता और कार्यक्षमता के लिए तीनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों की ताकत भी महत्वपूर्ण है. भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच संबंध की तरह, फ़्रांस और भारत के बीच द्विपक्षीय संबंध हाल के वर्षों में काफी मज़बूत हुए हैं. यह मज़बूती भारत-प्रशांत अवधारणा को लेकर साझा वचनबद्धता और अभिसरण समझ के माध्यम से विशेष रूप से स्पष्ट हुई है. दोनों देश रणनीतिक स्वायत्तता और एक बहुध्रुवी दुनिया की महत्वाकांक्षा साझा करते हैं, साथ ही इस अवधारणा द्वारा कवर किए गए भौगोलिक दायरे की एक सामान्य धारणा भी दोनों की एक समान है. दोनों देशों के बीच सहयोग के क्षेत्रों में आतंकवाद विरोध, समुद्री डकैती और संगठित अपराध का मुकाबला, पर्यावरण सुरक्षा और अवैध रूप से मछली पकड़ने के अभियानों के ख़िलाफ़ लड़ाई शामिल हैं. इस बढ़े हुए सहयोग के साथ परिचालन स्तर पर नौसेना सहयोग भी बढ़ा है. इसे 2019 और 2022 में हिंद महासागर में संयुक्त गश्त और मार्च 2018 में एक रसद समर्थन समझौते पर हस्ताक्षर करने के ज़रिये दर्ज भी किया गया है, जिसने भारतीय नौसेना को लारेयूनियन में फ़्रांसीसी सैन्य अड्डे तक पहुंच प्रदान की है. व्यापक क्षेत्रीय स्तर पर, 2022 में घोषित हिंद-प्रशांत पार्क भागीदारी,[xxxi] दोनों देशों की इच्छा का उदाहरण है कि वे व्यापक क्षेत्र के हित के लिए द्विपक्षीय प्रयासों का लाभ उठाएं.

हालांकि, सितंबर 2021 में ऑकस की घोषणा और दोनों देशों के बीच पनडुब्बी सौदे को रद्द करने के बाद फ़्रांस और ऑस्ट्रेलिया के बीच एक अभूतपूर्व राजनयिक संकट ने भी पेरिस-नई दिल्ली-कैनबरा धुरी को प्रभावित किया. इसने सदस्यों के बीच द्विपक्षीय संबंधों में बदलाव को लेकर त्रिपक्षीय तंत्रों की संवेदनशीलता को भी उजागर किया; इस संकट ने त्रिपक्षीय वार्ता में भारत के साथ संवाद को बाधित किया और वरिष्ठ अधिकारियों के दूसरे कार्यकारी समूह के गठन को पटरी से उतार दिया, जिसकी घोषणा 2021 की दूसरे छमाही के लिए की गई थी.[xxxii]

कुछ विशेषज्ञों के अनुसार, कई वजहों के संयोजन ने दोनों देशों के बीच संबंधों के क्रमिक सामान्यीकरण को प्रेरित किया: कैनबरा द्वारा फ़्रांस को हिंद-प्रशांत में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में मान्यता देना; समझौते को रद्द करने के लिए 835 मिलियन अमेरिकी डॉलर का भुगतान; और सबसे महत्वपूर्ण बात, मई 2022 में ऑस्ट्रेलिया में नेतृत्व में परिवर्तन.[xxxiii] यह जुलाई 2022 में पेरिस में नए ऑस्ट्रेलियाई प्रधान मंत्री, एंथनी अल्बानीज़ की यात्रा के दौरान स्पष्ट था, जिसके दौरान ऑस्ट्रेलिया और फ़्रांस ने एक नए सहयोग एजेंडे पर केंद्रित एक घनिष्ठ और मज़बूत संबंध बनाने की अपनी महत्वाकांक्षा व्यक्त की.[xxxiv] सैन्य बुनियादी सुविधाओं तक पारस्परिक पहुंच के बारे में चल रही चर्चाओं के अलावा,[xxxv] जनवरी 2023 में आयोजित दूसरे फ्रेंको-ऑस्ट्रेलियाई 2+2 प्रारूप बैठक (विदेश और रक्षा मंत्री) ने रूस के आक्रमण के ख़िलाफ़ यूक्रेन का समर्थन करने के लिए 155 मिमी गोला-बारूद का उत्पादन करने के लिए एक संयुक्त परियोजना की भी घोषणा की.[xxxvi] बैठक के बाद जारी किए गए संयुक्त बयान ने प्रशांत क्षेत्र में और, अधिक व्यापक रूप से, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में जैव विविधता, एचएडीआर और समुद्री सुरक्षा के बारे में द्विपक्षीय महत्वाकांक्षाओं को भी उजागर किया. यह आईएफ़ए त्रिपक्षीय ढांचे के भीतर ठोस सहयोग प्रयासों की प्रासंगिकता को रेखांकित करता है, ख़ासकर चूंकि ये मुद्दे इस क्षेत्र में फ़्रांस-भारत द्विपक्षीय संबंधों में भी हत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.[xxxvii]

पहली बार मार्च 2023 में रायसीना वार्ता के मौके पर ट्रैक 1.5 प्रारूप में और जून में दूसरी फोकल प्वाइंट बैठक के माध्यम से आधिकारिक तौर पर त्रिपक्षीय वार्ता की बहाली, तीनों देशों को मूल रूप से तैयार किए गए विभिन्न उद्देश्यों को ठोस रूप से लागू करके त्रिपक्षीय पहल पर पुनर्विचार करने के लिए नई संभावनाएं और अवसर प्रदान करती है. इस प्रकार, 2020 से प्राप्त अनुभव के प्रकाश में, परिणाम-उन्मुख दृष्टिकोण के इर्द-गिर्द शक्ति का तालमेल बैठाना, प्रासंगिक बहुपक्षीय तंत्रों के भीतर कार्रवाई का समन्वय करना और मज़बूत द्विपक्षीय संबंध सुनिश्चित करना, जुलाई 2023 के फ़्रांस-भारत रोडमैप में उल्लिखित हिंद-प्रशांत क्षेत्र में फ़्रांस और भारत को शामिल करने वाले नए त्रिपक्षीय तंत्रों के कामकाज के लिए आवश्यक है. यह भारत, फ़्रांस और यूएई के बीच नए त्रिपक्षीय प्रारूप के लिए विशेष रूप से सच है, जिसे फ़रवरी 2023 में औपचारिक रूप दिया गया था.

भारत-फ़्रांस-यूएई त्रिपक्षीय सहयोग

जिस तरह ऑकस त्रिपक्षीय सहयोग, जिसमें अमेरिका और ब्रिटेन द्वारा ऑस्ट्रेलिया को पनडुब्बियों की आपूर्ति शामिल थी, की घोषणा की गई थी, उसी तरह एक अन्य त्रिपक्षीय सहयोग, जिसमें भारत, यूएई और फ़्रांस शामिल थे, भी चल रहा था. हालांकि अभी यह त्रिपक्षीय सहयोग अपनी प्रारंभिक अवस्था में है, सुस्थापित द्विपक्षीय संबंधों द्वारा समर्थित है जिनमें मज़बूत राजनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा अभिसरण हैं.

चित्र 2: भारत-फ़्रांस-यूएई त्रिपक्षीय सहयोग का घटनाक्रम

स्रोत: लेखक का अपना

मज़बूत द्विपक्षीय साझेदारी

फ़्रांस भारत की सबसे पुरानी व्यापक रणनीतिक साझेदारी है, जिस पर 1998 में हस्ताक्षर किए गए थे, जिसमें सुरक्षा और अंतरिक्ष से लेकर जलवायु और नीली अर्थव्यवस्था तक विभिन्न क्षेत्रों में व्यापक सहयोग शामिल है. फ़्रांस एक मज़बूत रक्षा साझेदार के रूप में उभरा है, ख़ासकर जब भारत सैन्य आधुनिकीकरण की तलाश में रूस से वैकल्पिक आपूर्तिकर्ताओं की तलाश कर रहा है. इसी तरह, यूएई ने खाड़ी से अमेरिकियों के पीछे हटने के बाद वैकल्पिक हथियार निर्यातकों की तलाश करते हुए एक सैन्य आधुनिकीकरण कार्यक्रम शुरू किया है. भारत और यूएई फ़्रांसीसी राफ़ेल जेट के ख़रीदार हैं, जो तीन-तरफा संयुक्त अभ्यास और प्रशिक्षण का मार्ग प्रशस्त करते हैं.

साथ ही, 2008 से एक रणनीतिक साझेदारी और कई उच्च स्तरीय दौरों ने फ़्रांस-यूएई संबंधों को भी मज़बूत किया है. दिलचस्प बात यह है कि जिस दिन ऑकस की घोषणा की गई थी (15 सितंबर, 2021), मैक्रॉं पेरिस में अमीराती नेता मोहम्मद बिन ज़ायद की मेज़बानी कर रहे थे. फ़्रांस का पहला खाड़ी सैन्य अड्डा अबू धाबी में है और फ़्रांस की ऊर्जा ज़रूरतों  का बड़ा हिस्सा पश्चिम भारतीय महासागर (डब्ल्यूआईओ) क्षेत्र से गुज़रकर उस तक पहुंचता है. 35,000 प्रवासियों और 600 कंपनियों के साथ खाड़ी में यूएई सबसे बड़े फ़्रांसीसी समुदाय का भी घर है.[xxxviii] सुरक्षा सहयोग बढ़ा है और 2022 में, हुथी के नेतृत्व वाले ड्रोन हमले के बाद फ़्रांस ने दोनों देशों के 1995 के रक्षा समझौते को सक्रिय भी कर दिया है.[xxxix]

भारत-यूएई संबंध विप्रेषण प्रवाह (रेमिटेंस या किसी देश से अपने देश भेजा गया धन) से आगे बढ़कर ऊर्जा, खाद्य सुरक्षा और रक्षा क्षेत्रों में सहयोग शामिल करने की दिशा में आगे बढ़ गए हैं. भारत-यूएई व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौते पर हस्ताक्षर के बाद से संबंध तेज़ी से आगे बढ़े हैं, जिसका लक्ष्य 2022-23 में 48 अरब डॉलर से 2030 तक 100 अरब डॉलर से अधिक गैर-तेल द्विपक्षीय व्यापार को दोगुना करना है.[xl] दोनों देश आर्थिक पूरकता भी साझा करते हैं, जैसे कि तेज़ी से बढ़ती भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए प्राथमिक ऊर्जा आपूर्तिकर्ता का यूएई का दर्जा.

पिछले कुछ वर्षों में, खाड़ी के देशों में अंतर द्वंद्वों के परिणामस्वरूप खाड़ी क्षेत्र सैन्य ठिकानों और व्यावसायिक बंदरगाहों के साथ प्रतिस्पर्धा के बिंदुओं के रूप में उभरा है, जिसमें यूएई सबसे मज़बूत खिलाड़ियों में से एक है.[xli] दूसरी ओर, यूएई और फ़्रांस में लीबिया और पूर्वी भूमध्यसागर जैसे क्षेत्रीय मुद्दों पर सामंजस्य बना है,[xlii] जहां भारत के साथ मिलकर वे तुर्की के साथ चुनौतीपूर्ण संबंधों को संतुलित करने के लिए ग्रीस के साथ संबंधों को मज़बूत कर रहे हैं. पश्चिम एशियाई वास्तविकताओं, जैसे यूएई-इज़राइल संबंधों के सामान्यीकरण, ने इस क्षेत्र की क्षमता को और अधिक बढ़ा दिया है.

जहां आईएफ़ए व्यापक हिंद-प्रशांत परिकल्पना के भीतर मुख्य रूप से प्रशांत पर केंद्रित है, वहीं आईएफ़यू का ध्यान हिंद महासागर, विशेष रूप से तीन महाद्वीपों - एशिया, अफ़्रीका और यूरोप के चौराहे पर स्थित पश्चिम भारतीय महासागर (डब्ल्यूआईओ) उपक्षेत्र है.

भौगोलिक दायरा

जहां आईएफ़ए व्यापक हिंद-प्रशांत परिकल्पना के भीतर मुख्य रूप से प्रशांत पर केंद्रित है, वहीं आईएफ़यू का ध्यान हिंद महासागर, विशेष रूप से तीन महाद्वीपों - एशिया, अफ़्रीका और यूरोप के चौराहे पर स्थित पश्चिम भारतीय महासागर (डब्ल्यूआईओ) उपक्षेत्र है. डब्ल्यूआईओ "लाल सागर से, तटीय पूर्वी अफ़्रीका के साथ, ओमान की खाड़ी और अरब सागर के द्वीप राष्ट्रों तक" फैला हुआ है.[xliii] अंतर्राष्ट्रीय समुद्री व्यापार का एक बड़ा हिस्सा इस क्षेत्र से होकर गुज़रता है, जिसमें संचार के समुद्री मार्ग और महत्वपूर्ण बिंदु शामिल हैं जैसे कि हॉर्मुज़ जलडमरूमध्य, मोज़ाम्बिक चैनल, बाब अल-मंडाब जलडमरूमध्य और अदन की खाड़ी. मत्स्य पालन, प्रवाल भित्तियों और मैंग्रोव की प्राकृतिक संपत्तियों के अलावा, रूस-यूक्रेन युद्ध के संदर्भ में इसके विशाल ऊर्जा संसाधनों के कारण इस क्षेत्र का महत्व बढ़ गया है, जिससे समुद्री सुरक्षा और नौवहन की स्वतंत्रता महत्वपूर्ण हो गई है.

भारत की सागर (SAGAR- सुरक्षा और सभी के लिए क्षेत्र में विकास) परिकल्पना में संपूर्ण हिंद महासागर और डब्ल्यूआईओ उपक्षेत्र शामिल है, जो हिंद-प्रशांत की परिभाषा में आता है और यह "क्षेत्र के साथ फिर से जुड़ने का एक तरीका है", ख़ासकर चीन के बढ़ते प्रभाव के संदर्भ में.[xliv] व्यापक भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा के बीच, डब्ल्यूआईओ भारत के रणनीतिक दृष्टिकोण में एक महत्वपूर्ण क्षेत्र बन जाता है, जैसा कि 2015 की समुद्री रणनीति में इसकी पहचान की गई है,[xlv] जो खाड़ी और मॉरीशस और सेशेल्स जैसे प्रमुख द्वीप राज्यों के साथ संबंधों को अनिवार्य बनाता है. यह एक क्षेत्रीय सुरक्षा प्रदाता के रूप में भारत की नौसेना की उपस्थिति के बारे में भी बताता है, विशेष रूप से गैर-पारंपरिक सुरक्षा क्षेत्रों में जैसे एचएडीआर संचालन और तंज़ानिया और मोज़ाम्बिक जैसे देशों के साथ बंदरगाह के दौरों और संयुक्त नौसैनिक अभ्यास के माध्यम से.[xlvi] भारत पश्चिम एशिया को अपना विस्तारित पड़ोस मानता है और खाड़ी में उसकी हिस्सेदारी में एक बड़ी प्रवासी आबादी की सुरक्षा शामिल है. इसलिए, यूएई के केंद्र में, उसके साथ एक रणनीतिक पदचिह्न (स्ट्रेटेजिक फुटप्रिंट), भारत के लिए महत्वपूर्ण है. अफ्रीका के प्रति अपने झुकाव के साथ, जैसा कि जी 20 की अध्यक्षता के दौरान स्पष्ट था, भारत ने अफ़्रीकी महाद्वीप के साथ संबंधों को भी प्राथमिकता दी है.

इसी तरह, फ्रांस, हिंद-प्रशांत की अपनी विशाल भौगोलिक परिभाषा "जिबूती से पोलिनेशिया तक" के साथ, अपनी हिंद-प्रशांत रणनीति में डब्ल्यूआईओ को प्रमुखता देता है और हिंद महासागर में भारत को अपने पसंदीदा साझेदार के रूप में मानता है.[xlvii] 1.6 मिलियन से अधिक फ़्रांसीसी नागरिकों और प्रमुख अनन्य आर्थिक क्षेत्रों के साथ, फ़्रांस अपने विदेशी क्षेत्रों मायोट्टे और रीयूनियन के माध्यम से डब्ल्यूआईओ में एक स्थानिक शक्ति है. यह फ़्रांस की महत्वपूर्ण सैन्य उपस्थिति की व्याख्या करता है, जिसमें उसके पूर्व उपनिवेश जिबूती में एक सैन्य अड्डा शामिल है, इसके अलावा मायोट्टे, रीयूनियन और यूएई में भी अड्डे हैं.

इस प्रकार, दोनों भारत और फ़्रांस के लिए डब्ल्यूआईओ क्षेत्र के महत्व में निश्चित अभिसरण हैं, जिसके परिणामस्वरूप स्थिर करने वाली शक्तियाँ बनने का लक्ष्य है. फिर भी, भारत की अपनी सीमाओं पर अधिक तात्कालिक सुरक्षा चुनौतियां और अफ़्रीका में औपनिवेशिक असबाब के अलावा यूरोप में फ़्रांस की सुरक्षा चुनौतियां, भारतीय और फ़्रांसीसी क्षमताओं को सीमित करती हैं, जिससे हितों को प्राप्त करने के लिए भागीदारों के साथ सहयोग महत्वपूर्ण हो जाता है. यही वह स्थिति है जहां यूएई का प्रवेश होता है.

हाल के वर्षों में, यूएई ने अधिक महत्वाकांक्षी विदेश नीति विकसित की है, जो मुख्य रूप से तेल-आधारित अर्थव्यवस्था में विविधता लाकर एक प्रमुख क्षेत्रीय केंद्र बनने का इरादा रखता है, एक अधिक संतुलित व्यापार- और ज्ञान-उन्मुख अर्थव्यवस्था की ओर.[xlviii] अंतर-खाड़ी प्रतिद्वंद्वियों के संदर्भ में महाद्वीपों में "नोडों का समूह"[xlix] ('नोड ऑफ नोड्स' एक ऐसे स्थान या संरचना को कहते हैं जो कई अन्य नोडों को एक साथ लेकर आती है, जिससे संबंधित तत्व या जानकारी संग्रहित की जा सकती है. यह आमतौर पर नेटवर्क या बड़ी संरचनाओं में उपयोग होता है जहां एक नोड अन्य नोडों के समूह का हिस्सा हो सकता है और समूह के सभी नोड एक साथ काम करते हैं) बनने के यूएई के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, डब्ल्यूआईओ को श्रीलंका, अफ़गानिस्तान, म्यांमार और मोज़ाम्बिक में संकटों के अतिप्रवाह से सुरक्षित करना; व्यापार मार्गों की स्थिरता सुनिश्चित करना; और कनेक्टिविटी बढ़ाना महत्वपूर्ण है. अपने "बंदरगाहों की श्रृंखला" रणनीति के माध्यम से, यूएई ने क्षेत्र के बंदरगाहों में भारी निवेश किया है और अफ़्रीका में अपने रणनीतिक पदचिह्न का विस्तार किया है.[l] इस प्रकार, यूएई चीन के 'ऋण-जाल कूटनीति' और बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के तहत बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए एक विश्वसनीय विकल्प है. 2017 में हॉर्न ऑफ अफ़्रीका के तट पर जिबूती में एक रणनीतिक आधार जैसे बढ़े हुए नौसैनिक और सैन्य तैनाती ने चीन के परभक्षी निवेश का साथ दिया है.

आईएफ़ए की तुलना में, आईएफ़यू त्रिपक्षीय सहयोग भारत के लिए अधिक उपयोगी हो सकता है क्योंकि उसके हित प्रशांत महासागर के बजाय हिंद महासागर की ओर अधिक उन्मुख हैं. फ़्रांस एक हिंद महासागरीय और प्रशांत महासागरीय देश है, जिसके दोनों महासागरों में विदेशी क्षेत्र हैं.[li] इसके विपरीत, ऑस्ट्रेलिया हिंद-प्रशांत को परिभाषित करने के लिए एक संकीर्ण भौगोलिक दायरे का उपयोग करता है और इसमें केवल पूर्वी हिंद महासागर क्षेत्र (जिसमें डब्ल्यूआईओ नहीं है) शामिल है, जबकि उसका ध्यान प्रशांत महासागर क्षेत्र में अधिक रहता है.[lii] प्रशांत महासागर भी अमेरिकी सहभागिता का केंद्र है, हालांकि उसने अफ़्रीकी देशों को शामिल करने के उद्देश्य से पूरे हिंद महासागर को शामिल करने के लिए हिंद-प्रशांत की अपनी परिभाषा का विस्तार किया है. फिर भी, हालांकि अमेरिका का कुछ ध्यान पूर्वी हिंद महासागर पर जाता है, डब्ल्यूआईओ काफ़ी हद तक नज़रअंदाज़ रहता है,[liii] जिससे एक महत्वपूर्ण रिक्त स्थान रह जाता है जिस पर आईएफ़यू त्रिपक्षीय सहयोग ध्यान दे .

तीसरे रास्ते की तैयारी

आईएफ़यू त्रिपक्षीय सहयोग को आईएफ़ए से अलग करने वाला एक महत्वपूर्ण कारक इसका दृष्टिकोण है. ऑस्ट्रेलिया के विपरीत, जिसका एकध्रुवीय विश्व दृष्टिकोण है- जिसके केंद्र में अमेरिका है , भारत, फ़्रांस और यूएई एक संपन्न बहुध्रुवीय व्यवस्था की आकांक्षा करते हैं जो उन्हें अपने रणनीतिक विकल्पों को बनाए रखने की अनुमति देती है.

आईएफ़यू त्रिपक्षीय सहयोग इन तीन मध्य शक्तियों को एक साथ लाता है, जिनमें से प्रत्येक रणनीतिक स्वायत्तता- "किसी राज्य की स्थिति अपने राष्ट्रीय हितों का ध्यान रखने और बिना किसी अन्य राज्य द्वारा किसी भी तरह से बाध्य किए, अपनी पसंदीदा विदेश नीति अपनाने की क्षमता"[liv]- को संरक्षित करने में गहरी रुचि रखती है. विविधतापूर्ण भागीदारी इस रणनीतिक स्वायत्तता को बढ़ाने का एक साधन है - एक लक्ष्य जिसने अमेरिका-चीन शक्ति प्रतियोगिता के भू-राजनीतिक संदर्भ में अधिक रफ़्तार हासिल की है.

मैक्रॉं ने अप्रैल 2022 में इस दृष्टिकोण को रेखांकित करते हुए कहा, "फ़्रांस का उद्देश्य महान विभाजनों के सामने झुकना नहीं है, जो पंगु बनाते हैं, बल्कि यह जानना है कि प्रत्येक क्षेत्र के साथ आदान-प्रदान कैसे किया जाए और नए गठबंधन का निर्माण कैसे जारी रखा जाए."[lv] भारत के लिए भी, किसी विशेष देश के ख़िलाफ़ क्लब से ज्यादा महत्वपूर्ण है ग्लोबल कॉमन्स को सुरक्षित करने के लिए भागीदारों के साथ सहयोग.[lvi] यूएई की एक 'बहु-संरेखित' विदेश नीति है, जहां यह पारंपरिक साझेदारों जैसे अमेरिका के साथ अपने लाभ को बढ़ाने के लिए भारत और फ़्रांस के साथ-साथ चीन के साथ भी साझेदारी करता है.

इसके अलावा, कई लघुपक्षीय सहयोग (जैसे क्वाड और आई2यू2) और सुरक्षा गठबंधन (जैसे ऑकस) में अमेरिका शामिल है, जिसे अक्सर पश्चिम एशियाई देश क्षेत्र में अस्थिरता पैदा करने वाले संचालक के रूप में देखते हैं. इसके अलावा, ऑकस से फ़्रांस का अपमानजनक अनुभव, यूएई के 5G नेटवर्क में हुआवेई को सीमित करने को लेकर अमेरिकी एफ़-35 लड़ाकू जेट प्राप्त करने से जुड़े दबाव,[lvii] और लक्षद्वीप द्वीपों जैसे क्षेत्रों में अमेरिकी नौसेना की उपस्थिति बढ़ाने पर भारत की आपत्तियों ने[lviii] आईएफ़यू त्रिपक्षीय सहयोग के औचित्य को अधिक विश्वसनीय बना दिया है.

चीन यूएई के आर्थिक विविधीकरण में एक महत्वपूर्ण साझेदार है और द्विपक्षीय सुरक्षा संबंध भी विस्तारित हो रहे हैं, जैसी कि ख़बरें है कि यूएई में एक चीनी सैन्य अड्डा स्थापित किया जा रहा है.[lix] यूएई की "हिंद महासागर, हॉर्न ऑफ अफ़्रीका और लाल सागर में प्रमुख समुद्री चौकियों तक पहुंच को नियंत्रित करने की व्यापारिक महा रणनीति ने अबू धाबी को बीजिंग के लिए एक महत्वपूर्ण साझेदार बना दिया है."[lx] फिर भी, चीन के बारे में यूएई के अलग दृष्टिकोण के बावजूद, रणनीतिक स्वायत्तता के लिए प्राथमिकता का मतलब है कि भारत, फ़्रांस और यूएई अपने विदेशी संबंधों में कठोर शर्तें नहीं लगाते और मतभेदों के बजाय संरेखण पर ध्यान केंद्रित करना चुनते हैं.

सहयोग के प्राथमिक क्षेत्र

कई कारक यूएई को भारत और फ़्रांस के साथ त्रिपक्षीय प्रारूप में शामिल होने के लिए एक आदर्श देश बनाते हैं. इसमें एक प्रगतिशील विदेश नीति, पश्चिम एशिया में एक रणनीतिक स्थान, भारत और फ़्रांस दोनों के साथ मज़बूत द्विपक्षीय साझेदारी, केवल नौ मिलियन लोगों वाले राष्ट्र के पास वित्तीय संपत्ति का खजाना और रणनीतिक स्वायत्तता में साझा रुचि शामिल है.

त्रिपक्षीय सहयोग अपने प्रारंभिक चरण में होने के बावजूद, तीनों देशों के बीच अभिसरण और पूरकता सहयोग के लिए एक मज़बूत प्रेरणा प्रदान करते हैं. निम्नलिखित प्राथमिक क्षेत्र - जिनमें से कुछ फरवरी 2023 में जारी किए गए सहयोग के रोडमैप में पहचाने गए हैं - क्षमता को अधिकतम करने और कार्रवाई-आधारित परिणाम हासिल करने में मदद कर सकते हैं.[lxi]

·       सुरक्षा और रक्षा

घनिष्ठ सहयोग के लिए यह रोडमैप एक क्षेत्र के रूप में रक्षा, जिसमें संयुक्त विकास और सह-उत्पादन शामिल है, की पहचान करता है. फ़्रांसीसी राफ़ेलों की भारतीय और अमीराती ख़रीद मज़बूत नींव प्रदान करती है और साथ ही यह भी दर्शाती है कि फ़्रांस अमेरिका की तुलना में कम शर्तों के साथ एक कम जटिल हथियार आपूर्तिकर्ता है. भारत के राफ़ेलों के लिए अमीराती वायु सेना का हवा में ईंधन भरने का सहयोग पहले से ही महत्वपूर्ण त्रिपक्षीय रक्षा सहयोग का गठन करता है.[lxii] भारत और यूएई अपनी स्वदेशी रक्षा क्षमताओं को विकसित करने का लक्ष्य रखते हैं और फ़्रांस के माध्यम से, त्रिपक्षीय सहयोग प्रौद्योगिकी हस्तांतरण में भूमिका निभा सकता है. तीनों देशों की कंपनियां सह-विकास गतिविधियों में शामिल हैं; उदाहरण के लिए, भारत की एचएएल और यूएई का एज ग्रुप मिसाइल सिस्टम और मानव रहित हवाई वाहनों का सह-विकास करने की योजना बना रहे हैं.[lxiii]

एक अन्य प्रासंगिक क्षेत्र समुद्री सुरक्षा है. ओमान की खाड़ी के त्रिपक्षीय अभ्यास के आधार पर, मौजूदा द्विपक्षीय अभ्यासों को त्रिपक्षीय बनाया जा सकता है ताकि वे विशिष्ट चोक पॉइंट्स पर ध्यान केंद्रित करें और मछली पकड़ने, समुद्री डकैती और अन्य अवैध गतिविधियों की निगरानी कर सकें. त्रिपक्षीय सहयोग डब्ल्यूआईओ के तटीय राज्यों और छोटे द्वीप राज्यों को सुरक्षा विकल्प भी प्रदान कर सकता है, जिनकी क्षमताएं सीमित हैं और स्थिरता के लिए बाहरी शक्तियों पर निर्भर रहते हैं. निगरानी, ​​समुद्री डोमेन जागरूकता और एचएडीआर संचालन जुड़ाव के क्षेत्र हो सकते हैं. समुद्री संसाधनों के पारिस्थितिक उपयोग के माध्यम से ब्लू अर्थव्यवस्था में प्रगति के उद्देश्य से आइपीओआई और भारत-फ़्रांस त्रिकोणीय विकास सहयोग कोष, अपने लक्ष्य के साथ तीसरे देशों से स्थिरता-केंद्रित स्टार्ट-अप्स का समर्थन करने के लिए, रास्ते प्रदान कर सकते हैं.[lxiv]

·       ऊर्जा सहयोग

यह देखते हुए कि सभी तीन देश भारत और फ़्रांस के नेतृत्व में अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (आईएसए) के सदस्य हैं, ऊर्जा परिवर्तन एक प्राथमिकता है. यूएई पारंपरिक जीवाश्म ईंधन के साथ अपने जुड़ाव से दूर हटने की तलाश में है और उसके पास दुनिया में सबसे सस्ती सौर बिजली है, जो प्रति किलोवाट घंटा 2.5 सेंट पड़ती है[lxv]. मौजूदा द्विपक्षीय पहल, जैसे हाइड्रोजन तकनीकों का विकास और नवीकरणीय क्षमता में वृद्धि, को त्रिपक्षीय बनाया जा सकता है. त्रिपक्षीय सहयोग अफ़्रीकी देशों, जिनमें से कई आईएसए के सदस्य हैं और साथ ही जलवायु-संवेदनशील द्वीप राज्यों में स्वच्छ ऊर्जा समाधान प्रदान कर सकता है और जलवायु-लचीला बुनियादी ढांचा बना सकता है.

·       खाद्य सुरक्षा

रूस-यूक्रेन युद्ध के विघटनकारी प्रभाव को देखते हुए, खाद्य सुरक्षा के मुद्दे को भी आईएफ़यू त्रिपक्षीय सहयोग द्वारा संबोधित किया जा सकता है. वैश्विक खाद्य संकटों पर वैश्विक रिपोर्ट का अनुमान है कि 2022 में, 58 देशों में 258 मिलियन लोगों को तीव्र खाद्य असुरक्षा का सामना करना पड़ा था.[lxvi] भारत और यूएई पहले से ही आई2यू2 के माध्यम से इस क्षेत्र में सहयोग कर रहे हैं, जहां अमीरात की वित्तीय मदद से भारत में कृषि पार्क बनाए  जा रहे हैं. फ़्रांस अपने कृषि तकनीकी नवाचारों के लिए जाना जाता है और आई2यू2 के साथ विभिन्न पहलों के एक-दूसरे के ऊपर से गुज़रने की संभावना के बावजूद, इस परिमाण के मुद्दे पर कई कर्ताओं के ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है. इसके अलावा, इज़राइल-फ़िलिस्तीन युद्ध आई2यू2 के तहत कुछ पहलों को प्रभावित कर सकता है, यह देखते हुए कि यह समूह अब्राहम अकॉर्ड्स और इज़राइल और यूएई के बीच संबंधों के सामान्यीकरण पर आधारित है.

·       तीसरी दुनिया के देशों में विकास परियोजनाएं

त्रिपक्षीय सहयोग भारत और जापान के बीच एशिया-अफ़्रीका ग्रोथ कॉरिडोर के उदाहरण से सबक ले सकता है जो अफ़्रीका में विकास परियोजनाओं पर केंद्रित है. भारत और यूएएई के पास पहले से ही तंज़ानिया और केन्या में स्वास्थ्य क्षेत्र में संयुक्त परियोजनाएं हैं. डब्ल्यूआईओ क्षेत्र में कनेक्टिविटी और विकास को बढ़ावा देने के लिए, व्यापार और लॉजिस्टिक्स अवसंरचना (जैसे बंदरगाह) में यूएई की विशेषज्ञता को देखते हुए, इसे प्राथमिकता दी जा सकती है.

त्रिपक्षीय सहयोग का ध्यान हिंद महासागर पर केंद्रित होने के बावजूद, प्रत्येक देश व्यक्तिगत रूप से प्रशांत क्षेत्र में भी बुनियादी ढांचा बना रहा है, जहां मैक्रॉं ने "एक नए साम्राज्यवाद" के ख़िलाफ़ चेतावनी दी थी.[lxvii] यूएएई ने जलवायु-संवेदनशील प्रशांत द्वीपों में नवीकरणीय परियोजनाओं पर 50 मिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक खर्च किए हैं,[lxviii] जबकि भारत फ़िज़ी में एक सुपरस्पेशलिटी कार्डियोलॉजी अस्पताल स्थापित कर रहा है और अपनी सौर स्टार-सी पहल का प्रशांत द्वीप राष्ट्रों तक विस्तारित कर रहा है.[lxix] त्रिपक्षीय सहयोग इनमें से कुछ असंबद्ध प्रयासों का समन्वय कर सकता है और अधिक से अधिक प्रभाव लाने के लिए क्षमताओं को एक साथ जोड़ सकता है.

·       आतंकवाद का विरोध

गैर-राज्य कर्ताओं की चरमपंथी गतिविधियां सभी तीन देशों को प्रभावित करती है और लेकिन इनमें पर्याप्त द्विपक्षीय सहयोग है, जैसे कि वार्षिक आतंकवाद विरोधी कार्य समूहों के माध्यम से. त्रिपक्षीय सहयोग संयुक्त राष्ट्र में अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद पर व्यापक सम्मेलन को अपनाने के लिए ज़ोर दे सकता है, जो आतंकवाद की एक सार्वभौमिक परिभाषा और आतंकवादी समूहों को धन और सुरक्षित आश्रय से वंचित करने के लिए एक कानूनी ढांचा प्रदान करता है.[lxx] आतंकवाद विरोधी समिति के वर्तमान अध्यक्ष के रूप में, यूएई इस्लामिक सहयोग संगठन के अन्य सदस्यों को प्रोत्साहित कर सकता है जो 1996 में भारत द्वारा पहली बार प्रस्तावित सम्मेलन का विरोध करते रहते हैं.

·       सहयोग के अन्य क्षेत्र

यह रोडमैप संयुक्त परियोजनाओं के माध्यम से सांस्कृतिक सहयोग की भी पहचान करता है. अबू धाबी में पहले से ही फ़्रांस के लुवर संग्रहालय की एक शाखा और फ़्रांसीसी विश्वविद्यालयों इन्सीड (INSEAD) और सॉरबोन (Sorbonne) के कई कैंपस हैं. भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान भी अमीराती राजधानी में एक कैंपस खोलने वाला है. हालांकि शैक्षिक आदान-प्रदान बढ़ाने के लिए पर्याप्त गुंजाइश है. उदाहरण के लिए, वर्तमान में केवल 10,000 भारतीय छात्र फ़्रांस में पढ़ते हैं जबकि जर्मनी में 34,000 हैं.[lxxi]

चूंकि फ़्रांस और यूएई ने भारत के यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफ़ेस (यूपीआई) सिस्टम को अपनाया है, जो कैशलेस लेनदेन की सुविधा प्रदान करता है, त्रिपक्षीय सहयोग समावेशी विकास को बढ़ावा देने और डिजिटल विभाजन को कम करने के लिए भारत के डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचे और सेवाओं को वैश्विक दक्षिण के विकासशील देशों तक विस्तारित करने में भूमिका निभा सकता है.

निष्कर्ष

आईएफ़यू तीनों देशों की पूरक श्रेष्ठताओं को एक साथ लाता है - अर्थात्, अमीराती वित्तीय क्षमता, भारतीय मानव संसाधन और फ़्रांसीसी तकनीकें. इन ताक़तों का लाभ उठाकर, त्रिपक्षीय सहयोग डब्ल्यूआईओ और व्यापक हिंद-प्रशांत क्षेत्र दोनों में एक महत्वपूर्ण संतुलनकारी भूमिका निभा सकता है और उन देशों को एक विकल्प प्रदान करता है जो महाशक्ति प्रतियोगिता की बाधाओं से मुक्त हैं. रणनीतिक स्वायत्तता को संरक्षित करने और आम सार्वजनिक वस्तुएं प्रदान करने पर अपने ध्यान के साथ, आईएफ़यू त्रिपक्षीय सहयोग अपने एजेंडे और सामंजस्य को कमज़ोर करने वाले आंतरिक भूराजनीतिक विचलन के प्रति कम संवेदनशील है. फिर भी, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि इनमें से कई परिणाम और आईएफ़यू के माध्यम से सहयोग इस बात पर निर्भर हो सकता है कि इज़राइल-फ़िलिस्तीन युद्ध किस दिशा में बढ़ता है, इस तरह के संघर्ष की प्रकृति और स्तर से जुड़े भूराजनीतिक जोखिमों और अनिश्चितताओं को ध्यान में रखते हुए.

यह शोध पत्र दोनों त्रिपक्षीय सहयोगों के लिए अलग-अलग दृष्टिकोण अपनाता है, एक अधिक आलोचनात्मक दृष्टिकोण आईएफ़ए के लिए अपनाया जाता है, एक पुराना त्रिपक्षीय सहयोग जो अभी तक महत्वपूर्ण परिणाम प्राप्त नहीं कर सका है. 

यह शोध पत्र दोनों त्रिपक्षीय सहयोगों के लिए अलग-अलग दृष्टिकोण अपनाता है, एक अधिक आलोचनात्मक दृष्टिकोण आईएफ़ए के लिए अपनाया जाता है, एक पुराना त्रिपक्षीय सहयोग जो अभी तक महत्वपूर्ण परिणाम प्राप्त नहीं कर सका है. दूसरी ओर, आईएफ़यू अभी अपने शुरुआती चरण में है. इसलिए, शोध  पत्र इस त्रिपक्षीय सहयोग के प्रति अधिक भविष्योन्मुख और सकारात्मक दृष्टिकोण रखता है.

एनेक्स्चर: प्रमुख बहुपक्षीय तंत्रों में सदस्यता

संगठन और समूह (अंतर्राष्ट्रीय)

भारत

फ़्रांस

ऑस्ट्रेलिया

संयुक्त अरब अमीरात

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद

नहीं

हां

नहीं

नहीं

जी20

हाँ

हाँ

हाँ

भारत की अध्यक्षता के दौरान अतिथि देश

जी7

नहीं

हाँ

नहीं

नहीं

ब्रिक्स

हाँ

नहीं

नहीं

नया सदस्य

आर्थिक सहयोग और विकास संगठन

नहीं

हाँ

हाँ

ओईसीडी विकास सहायता समिति (डीएसी) का सदस्य

संगठन (क्षेत्रीय)

भारत

फ़्रांस

ऑस्ट्रेलिया

संयुक्त अरब अमीरात

 

हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (आईओआरए)

 

हाँ

हाँ

हाँ

हाँ

हिंद महासागर आयोग (आईओसी)

पर्यवेक्षक

हाँ

नहीं

नहीं

प्रशांत समुदाय

नहीं

हाँ

हाँ

नहीं

प्रशांत द्वीप समूह फोरम

संवाद भागीदार

संवाद भागीदार (फ्रेंच पोलिनेशिया और न्यू-कैलेडोनिया सदस्य के रूप में)

हाँ

नहीं

 

शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ)

हाँ

नहीं

 

संवाद भागीदार

 

एपीजी (मनी लॉन्ड्रिंग पर एशिया प्रशांत समूह)

हाँ

पर्यवेक्षक

हाँ

पर्यवेक्षक

संवाद और मंच (क्षेत्रीय)

भारत

फ़्रांस

ऑस्ट्रेलिया

संयुक्त अरब अमीरात

पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन (ईएएस)

हाँ

नहीं

हाँ

नहीं

आसियान क्षेत्रीय मंच (एआरएफ)

हाँ

यूरोपीय संघ के माध्यम से सदस्य

हाँ

नहीं

भारत-प्रशांत महासागर पहल (आईपीओआई)

हाँ

हाँ

हाँ

नहीं

एडीएमएम +

हाँ

 

नहीं

हाँ

नहीं

हिंद महासागर नौसेना संगोष्ठी (आईओएनएस)

हाँ

हाँ

हाँ

 

हाँ

 

पश्चिमी प्रशांत नौसेना संगोष्ठी (डब्ल्यूपीएनएस)

 

पर्यवेक्षक

हाँ

हाँ

नहीं

दक्षिण प्रशांत रक्षा मंत्रियों की बैठक (एसपीडीएमएम)

नहीं

हाँ

हाँ

नहीं

एशिया में बातचीत और विश्वास-निर्माण उपायों पर सम्मेलन (सीआईसीए)

हाँ

नहीं

नहीं

हाँ

एशिया-यूरोप बैठक (एएसईएम)

हाँ

 

हाँ

हाँ

नहीं

एशिया-मध्य पूर्व वार्ता (एएमईडी)

हाँ

नहीं

नहीं

हाँ

सूचना साझाकरण केंद्र

(क्षेत्रीय)

भारत

फ़्रांस

ऑस्ट्रेलिया

संयुक्त अरब अमीरात

 

रीकैप (ReCAAP) सूचना साझाकरण केंद्र

हाँ

नहीं

हाँ

नहीं

सूचना संलयन केंद्र (आईएफसी)

नहीं

हाँ

हाँ

नहीं

 

सूचना संलयन केंद्र हिंद महासागर क्षेत्र (आईएफ़सी- आईओआर)

हाँ

हाँ

हाँ

नहीं

 Endnotes


[a] If France is considered a dialogue partner, the territories of French Polynesia and New Caledonia are part of the 18 permanent members of the Forum.

[b] On the blue economy in 2015, 2017, and 2019; on the management and sustainable development of fisheries resources in 2017; or on renewable energies in 2014 and 2018.

[c] Such as the Dhaka Declaration on the Blue Economy in 2019; the Delhi Declaration on Renewable Energy in the Indian Ocean Region in 2018; and the Declaration of IORA on the Principles for Peaceful, Productive and Sustainable Use of the Indian Ocean and its Resources in 2013.

[i] Ministry of External Affairs, Government of India, India-France Indo-Pacific Roadmap, July 14, 2023, https://mea.gov.in/bilateral-documents.htm?dtl/36799/IndiaFrance+IndoPacific+Roadmap.

 

[ii] Ministry of External Affairs, Government of India, Joint Strategic Vision of India-France Cooperation in the Indian Ocean Region, March 10, 2018.

 

[iii] Ministry of External Affairs, Government of India, India-France Indo-Pacific Roadmap

 

[iv]  Ministry of Europe and External Affairs (France), Union européenne – Participation de Jean-Baptiste Lemoyne à la visioconférence des ministres de l’Union européenne chargés du commerce [European Union – Jean-Baptiste Lemoyne takes part in the videoconference of European Union trade ministers], June 9, 2020.

 

[v] Ministry of Europe and Foreign Affairs, French Government, Traité entre la République française et la République italienne. Pour une coopération bilatérale renforcée [Treaty between the French Republic and the Italian Republic. For enhanced bilateral cooperation], November 26, 2021.

 

[vi] Ministry of Europe and Foreign Affairs, French Government, Propositions françaises pour la révision de la stratégie de politique commerciale de l’UE [French proposals for revising the EU’s trade policy strategy], November 20, 2020.

 

[vii] Subrahmanyan Jaishankar, The India Way: Strategies for an Uncertain World, (Harper Collins India, 2020), pp. 37.

 

[viii] Aarshi Tirkey, “Minilateralism: Weighing the Prospects for Cooperation and Governance”, ORF Issue Brief No. 489, September 2021, Observer Research Foundation.

 

[ix] Alice Pannier, “Le ‘minilatéralisme’ : une nouvelle forme de coopération de défense” [Minilateralism: a new form of defence cooperation], No. 1, 2015, p. 37-48, Politique étrangère.

 

[x]  Sung-Mi Kim, Sebastian Haug, and Susan Harris Rimmer, “Minilateralism Revisited: MIKTA as Slender Diplomacy in a Multiplex World,” Global Governance 24, 4, Pg 478 (2018).

 

[xi] Pannier, “Le ‘minilatéralisme’ : une nouvelle forme de coopération de défense”.

 

[xii] Interviews conducted in New Delhi, March 2023.

 

[xiii] Delphine Allès and Thibault Fournol, “Multilateralisms and minilateralisms in the Indo-Pacific. Articulations and convergences in a context of saturation of cooperative arrangements”, Fondation pour la recherche stratégique, June 28, 2023.

 

[xiv] Allès and Fournol, “Multilateralisms and minilateralisms in the Indo-Pacific. Articulations and convergences in a context of saturation of cooperative arrangements”.

 

[xv]  Department of Foreign Affairs and Trade, Government of Australia.

 

[xvi]  French Government, Déclaration de M. Emmanuel Macron, Président de la République, sur les relations entre la France et l’Australie, à Sydney le 2 mai 2018 [Statement by Mr Emmanuel Macron, President of the Republic, on relations between France and Australia, in Sydney on May 2, 2018], May 2, 2018.

 

[xvii]  Ministry of External Affairs, Government of India.

 

[xix] French Embassy in India, The Indo-Pacific: 1st Trilateral Dialogue between France, India and Australia.

 

[xx] Ministry of External Affairs, 1st Senior Officials’ India-France-Australia Trilateral Dialogue.

 

[xxi] Ministry of External Affairs, Government of India.

 

[xxii] Allès and Fournol, “Multilateralisms and minilateralisms in the Indo-Pacific. Articulations and convergences in a context of saturation of cooperative arrangements”.

 

[xxiii] Ministry of Europe and Foreign Affairs, French Government, Indo-Pacific – Trilateral dialogue between France, India and Australia – First focal points meeting, February, 24, 2021.

 

[xxiv] Ministry of External Affairs, Government of India.

 

[xxv] Ministry of External Affairs, Government of India, India-France-Australia Joint Statement on the occasion of the Trilateral Ministerial Dialogue, May 5, 2021.

 

[xxvi] French Embassy in India, The Indo-Pacific: 1st Trilateral Dialogue between France, India and Australia.

 

[xxvii] Allès and Fournol, “Multilateralisms and minilateralisms in the Indo-Pacific. Articulations and convergences in a context of saturation of cooperative arrangements”.

 

[xxviii] Ministry of External Affairs, Government of India.

 

[xxix]  Ministry of External Affairs, Government of India, India-France-Australia Joint Statement on the occasion of the Trilateral Ministerial Dialogue, May 5, 2021.

 

[xxx] Ministry of External Affairs, India-France-Australia Joint Statement on the occasion of the Trilateral Ministerial Dialogue.

 

[xxxi] Ministry of Europe and Foreign Affairs, French Government, Indo-French call for an “Indo-Pacific Parks Partnership” Joint Declaration, February 20, 2022.

 

[xxxii]  Ministry of External Affairs, India-France-Australia Joint Statement on the occasion of the Trilateral Ministerial Dialogue.

 

[xxxiii] Eglantine Staunton, “France-Australia: Salving the wounds of AUKUS”, The InterpreterLowy Institute, February 2, 2023.

 

[xxxiv] Charles Edel and Pierre Morcos, “Time to Reboot Franco-Australian Relations”, Center for Strategic and International Studies, July 7, 2022.

 

[xxxv] Presidency of the French Republic, French Government, Joint statement by France and Australia , July 1, 2022.

 

[xxxvi] Staunton, “France-Australia: Salving the wounds of AUKUS”.

 

[xxxvii] Department of Defence, Government of Australian, Joint statement – Second France-Australia Foreign and Defence Ministerial Consultations, January 30, 2023.

 

[xxxviii] Country Files, The Ministry for Europe and Foreign Affairs, France and United Arab Emirates.

 

[xxxix] Louis Vitrand, “UAE and France: A Key, and Challenging, Relationship”, September 07, 2023, Foreign Policy Research Institute.

 

[xli] Eleonara Ardemagni, “Gulf Powers: Maritime Rivalry in the Western Indian Ocean”, Italian Institute for International Political Studies, April 11, 2018.

 

[xlii] Abel Abdel Ghafar and Silvia Colombo, “France and the UAE: A deepening partnership in uncertain times”, Brookings Institution, October 28, 2021.

 

[xliii] Rushali Saha, “Western Indian Ocean: The Missing Piece in the US Indo-Pacific Strategy,” South Asian Voices, September 26, 2022.

 

[xliv] Shivali Lawale and Talmiz Ahmad, “UAE-India-France Trilateral: A Mechanism to Advance Strategic Autonomy in the Indo-Pacific?”, Asian Journal of Middle Eastern and Islamic Studies, Vol. 15, Issue, January  06, 2022.

 

[xlv]  Indian Navy, Indian Maritime Strategy, 2015.

 

[xlvii] Wada Haruko, “The Indo-Pacific Concept: Geographical Adjustments and Their Implications”, S. Rajaratnam School of International Studies, Working Paper No. 326, March 16, 2020.

 

[xlviii] Mohammed Soliman, ”I2U2 lies at the core of India-UAE relationship”, Hindustan Times, July 18, 2023.

 

[xlix] Eleonara Ardemagni, “Across the Regions: The UAE’s Network Approach to Cooperation”, Italian Institute for International Political Studies, March 10, 2023.

 

[l] Brian Gicheru Kinyua, “UAE’s Overarching Role in African Ports Development”, The Maritime Executive, July 23, 2023.

 

[li] Nicolas Mazzucchi, “The French Strategy for the Indo-Pacific and the issue of European cooperation”, The Hague Centre for Strategic Studies, April, 2023.

 

[lii] Commodore Lalit Kapur (Retd), “Reviving India-France-Australia Trilateral Cooperation in the Indian Ocean”, Delhi Policy Group, Policy Brief July 18, 2022.

 

[liii] Saha, “Western Indian Ocean: The Missing Piece in the US Indo-Pacific Strategy”.

 

[liv] Aravind Devanathan asked: What is ‘strategic autonomy’? How does it help India’s security?”, Institute for Defence Studies and Analyses, January 20, 2015.

 

[lv] The Alternative to a ‘China Versus U.S.’ World”, Asia Society, April 20, 2022.

 

[lvi] Priya Chacko and Jeffrey Wilson, “Australia, Japan and India: A Trilateral Coalition in the Indo-Pacific?”, Perth US Asia Centre, September 2020.

 

[lvii] Nick Wadhams and Sylvia Westall, “Biden Prods UAE to Dump Huawei, Sowing Doubts on Key F-35 Sale”, Bloomberg, June 11, 2021.

 

[lviii] Rezaul H Laskar, Rahul Singh, “India objects to US Navy operations near Lakshadweep”, Hindustan Times, April 10, 2021.

 

[lx] Andreas Krieg, “The UAE’s tilt to China”, Middle East Eye, October 1, 2020.

 

[lxi] [61] French Embassy in New Delhi, France-India-UAE – Establishment of a Trilateral Cooperation Initiative, February 04, 2023.

 

[lxii] Shishir Gupta, “UAE Air Force to help 3 Rafale fighters reach India, 7 more in April”, Hindustan Times, January 22, 2021.

 

[lxv] Ashwani Kumar, “Solar energy is integral element of UAE’s climate response, says Minister”, Khaleej Times, July 25, 2023.

 

[lxvi]  Food Security Information Network, “Global Report on Food Crises 2023”, World Food Programme, May 02, 2023.

 

[lxviii] Department of Economic and Social Affairs, “UAE-Pacific Partnership Fund”, United Nations.

 

[lxxi] Christophe Jaffrelot, “How strategic are France’s relations with India?”, Le Monde Diplomatique, 2023.

 

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Authors

Shairee Malhotra

Shairee Malhotra

Shairee Malhotra is Associate Fellow, Europe with ORF’s Strategic Studies Programme. Her areas of work include Indian foreign policy with a focus on EU-India relations, ...

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THIBAULT FOURNOL

THIBAULT FOURNOL

Thibault Fournol is a Research Fellow at the Fondation pour la recherche stratégique (FRS) in Paris where he coordinates the Observatory of Multilateralism in the ...

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