अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में अब ज्यादा वक्त नहीं. बीजेपी और कांग्रेस जैसे दो प्रमुख दल अभी से अपनी रणनीति को आखिरी रूप देने में जुटे हैं. ऐसे में कोई सोच भी नहीं सकता था कि दोनों दल किसी मुद्दे पर एकमत हो सकते हैं. लेकिन, कनाडा की वजह से यह मुमकिन हो गया. कनाडा में जिस तरह से भारत विरोधी गतिविधियों को हवा दी जा रही है. बीजेपी और कांग्रेस, दोनों ने कनाडा में खालिस्तान समर्थकों के विरुद्ध कार्रवाई ना करने की आलोचना की है. दोनों दलों ने कनाडा के तथाकथित उदारवाद पर चिंता जताई है, जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर घृणित कृत्यों का महिमामंडन करता है.
क्या है पूरा मामला?
4 जून को कनाडा के प्रमुख शहर- ओंटारियो में खालिस्तानी समर्थक समूहों ने एक परेड निकाली. इसमें भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या को दर्शाते हुए एक तख्ती दिखी, जिसमें लिखा था कि यह 'श्री दरबार साहिब पर हमले का बदला' था. परेड का विडियो सोशल मीडिया पर वायरल होते ही भारत ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया दी. विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि इस तरह की चीजें भारत और कनाडा के रिश्तों के लिए अच्छी नहीं हैं. उन्होंने कहा, 'यह काफी गंभीर मसला है. हम यह समझ नहीं पा रहे हैं कि वोटबैंक की राजनीति के अलावा ऐसा करने की क्या जरूरत है. लोग इतिहास से सीखते हैं और उसे दोहराने से बचते हैं. लेकिन, यहां अतीत से सीखने जैसी कोई चीज नजर नहीं आ रही.'
प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के कार्यकाल संभालने के बाद भारत और कनाडा के रिश्ते ज्यादा बेहतर कभी नहीं रहे. हालांकि, पिछले कुछ समय से इसमें थोड़ा सुधार दिखा. वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल व्यापार और निवेश पर मिनिस्टर लेवल की चर्चा के लिए कनाडा गए थे. इससे अर्ली प्रोग्रेस ट्रेड एग्रीमेंट (Early Progress Trade Agreement) पर बातचीत को नई रफ्तार मिली, जो दोनों मुल्कों के व्यापारिक संबंधों को और भी उदार बनाएगी.
4 जून को कनाडा के प्रमुख शहर- ओंटारियो में खालिस्तानी समर्थक समूहों ने एक परेड निकाली. इसमें भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या को दर्शाते हुए एक तख्ती दिखी, जिसमें लिखा था कि यह 'श्री दरबार साहिब पर हमले का बदला' था.
पिछले साल नवंबर में कनाडा ने अपनी इंडो-पैसिफिक स्ट्रैटजी भी जारी की. इसमें चीन 'विघटनकारी ताकत' बताया गया. यह अपनेआप में काफी महत्वपूर्ण बात थी, क्योंकि कनाडा कुछ ही साल पहले तक चीन मुक्त व्यापार समझौते की बात कर रहा था.
इस रणनीति में भारत का जिक्र एक प्रमुख समान विचारधारा वाले भागीदार के रूप में किया गया, जिसके साथ संबंध और बेहतर करने की जरूरत है. इस साल फरवरी में कनाडा की विदेश मंत्री मेलानी जोली (Mélanie Joly) भारत दौरे पर आई थीं. इसे भारत-कनाडा संबंधों की रूपरेखा को नया रूप देने के प्रयास के तौर पर देखा गया. हालांकि, खालिस्तान के मुद्दे पर दोनों मुल्कों के बीच खटास लगातार बढ़ रही है. भारत की तमाम चिंताओं के बावजूद ट्रूडो सरकार ने खालिस्तानियों के विरुद्ध कोई ठोस कदम नहीं उठाया.
कनाडाई प्रशासन के उदासीन रवैया
पिछले सितंबर में ओंटारियो में ही महात्मा गांधी की एक मूर्ति तोड़ी गई और उस पर 'खालिस्तान' लिख दिया गया. इस पर भारत ने सख्त प्रतिक्रिया दी और भारत के खिलाफ खालिस्तानियों के बढ़ते हेट क्राइम को देखते हुए एक ट्रैवल एडवाइजरी जारी की. फिर नवंबर में ब्रैम्पटन में सिख अलगाववादी समूह- सिख फॉर जस्टिस (SFJ) ने खालिस्तान के लिए जनमत संग्रह कराया. यह संगठन भारत में प्रतिबंधित है.
हालांकि, भारत की चिंताओं पर कनाडाई प्रशासन का रवैया हमेशा उदासीन ही रहा. इससे खालिस्तान समर्थकों का हौसला भी लगातार बढ़ रहा है. दूसरे ट्रूडो भारत के अंदरूनी मामलों पर टिप्पणी भी करते रहते हैं. उन्होंने साल 2020 में किसानों के विरोध प्रदर्शन पर सरकार की प्रतिक्रिया की आलोचना भी की थी.
कनाडा में रहने वाले अधिकांश सिख समुदाय को मुट्ठी भर चरमपंथियों के छल-कपट के प्रति कोई सहानुभूति नहीं है. लेकिन, कनाडाई अधिकारी उन चरमपंथियों के खिलाफ कोई एक्शन नहीं लेते, तो वे मनमानी करते रहते हैं और बदनामी पूरे सिख समुदाय की होती है.
यह भी उल्लेखनीय बात हैं कि कनाडा में रहने वाले अधिकांश सिख समुदाय को मुट्ठी भर चरमपंथियों के छल-कपट के प्रति कोई सहानुभूति नहीं है. लेकिन, कनाडाई अधिकारी उन चरमपंथियों के खिलाफ कोई एक्शन नहीं लेते, तो वे मनमानी करते रहते हैं और बदनामी पूरे सिख समुदाय की होती है.
कनाडा सरकार उग्रवाद के खिलाफ मजबूती से खड़े होते नजर नहीं आती. उलटे वह कुछ सबसे हिंसक और आक्रामक समूहों को सहारा देती है. इन चरमपंथी समूहों का सरकारी संस्थानों पर प्रभाव भी बढ़ा है. उन्होंने अपने बाहुबल और धन शक्ति का इस्तेमाल करके राजनीति में भी अपनी पहुंच बढ़ाई है. कनाडा की राजनीति के जाने-माने भारतीय विरोधी और खालिस्तानी हमदर्द सांसद जगमीत सिंह का उदय सिर्फ एक उदाहरण है.
कनाडा को नसीहत
खालिस्तानी आतंकवाद ने भारत को जो जख्म दिए हैं, वे अभी भरे नहीं. ऐसे में भारत सरकार को विदेश में पनप रहे नए खतरे से निपटने के लिए तैयार रहना होगा. वहीं, कनाडा को भी समझना होगा कि वह कुछ समय के लिए वोटबैंक की राजनीति में पड़कर भारत से अपने रिश्तों को और भी खराब तो करेगा ही, साथ ही यह एक शांतिप्रिय और जिम्मेदार राष्ट्र के रूप में कनाडा की छवि को भी नुकसान पहुंचाएगा.
खालिस्तानी उग्रवाद पर सुस्ती से कनाडा की पहचान ऐसे मुल्क के तौर पर बन सकती है, जो न्याय और शांति के बुनियादी सिद्धांतों को भी कायम रखने में नाकाम है. कनाडा को यह समझना होगा कि अब भारत 1980 के दशक वाला कमजोर मुल्क नहीं. अब भारत के कनाडा से अच्छे रिश्ते भले ही ना रहे, लेकिन वह अपनी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता से कोई समझौता नहीं करेगा.
यह लेख मूल रूप से नवभारत टाइम्स में प्रकाशित हो चुका है.
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