Author : Harsh V. Pant

Published on Aug 14, 2023 Commentaries 0 Hours ago
चीन ने क्यों कहा – मोदी-शी में बात हुई?

पिछले हफ्ते भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की बाली में हुई बातचीत को लेकर चीन का बयान आया. यह सम्मेलन पिछले साल हुआ था. इसके करीब आठ महीने बाद उसका जिक्र करके चीन कह रहा है कि वहां प्रधानमंत्री मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी के बीच जो बात हुई थी, उसमें कहा गया था कि आपसी संबंधों को सामान्य बनाने की कोशिश की जाएगी. इतने महीने बाद इस बात का जिक्र करने के कई अर्थ लगाए जा सकते हैं.

  • सबसे बड़ी बात यह है कि 2020 में गलवान में दोनों देशों के फौजियों के बीच हुई हिंसक झड़प के बाद से भारत की स्पष्ट नीति रही है, जिसके बारे में विदेश मंत्री एस जयशंकर कह चुके हैं. उन्होंने कहा था कि भारत और चीन के संबंध सामान्य नहीं हैं. वे सामान्य तब तक नहीं हो सकते, जब तक चीन सीमा पर मार्च 2020 से पहले वाली यथास्थिति न बनाए.
  • पिछले हफ्ते ब्रिक्स की मीटिंग में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने चीन के नए विदेश मंत्री वांग यी से भी यही कहा कि 2020 से भारत-चीन सीमा पर जो स्थिति है, उसने दोनों देशों के बीच भरोसे को धीरे-धीरे खत्म कर दिया है. 

भारत और चीन के संबंध सामान्य नहीं हैं. वे सामान्य तब तक नहीं हो सकते, जब तक चीन सीमा पर मार्च 2020 से पहले वाली यथास्थिति न बनाए.

दूसरी ओर चीन कई तरह की समस्याओं से जूझ रहा है.

  • चीन की आर्थिक हालत उतनी अच्छी नहीं है. जो भी डेटा आ रहे हैं, उनसे पता चलता है कि उसकी इकॉनमी धीमी रफ्तार से बढ़ रही है. चीन में बेरोजगारी बहुत बढ़ गई है.
  • चीन की सरकार अंदरूनी समस्याओं से भी जूझ रही है. कुछ समय पहले जिन्हें विदेश मंत्री बनाया गया था, वह अचानक गायब हो गए. उनकी जगह दूसरे विदेश मंत्री ने पद संभाला है.
  • इन वजहों से वह परेशान है और बैकफुट पर है.
  • चीन के साथ परसेप्शन की भी समस्या है. उसे आक्रामक शक्ति के रूप में देखा जा रहा है, जिसे वह बदलना चाहता है. 

चीन से तुलना करें तो भारत न सिर्फ आर्थिक तौर पर अच्छा कर रहा है, बल्कि एक तरह से दुनिया में सेंटर ऑफ अट्रैक्शन बना हुआ है. बाकी देश उसके साथ जुड़ने की कोशिश कर रहे हैं. चीन इस बात से परेशान होगा कि उसके मुद्दे पर भारत का नैरेटिव ज्यादा मजबूत दिखाई दे रहा है. भारत कह रहा है कि सीमा पर संबंध सामान्य नहीं हैं, तो चीन यह दिखाना चाह रहा है कि हालात बिलकुल सामान्य हैं. संबंधों को सामान्य करने की जिम्मेदारी भारत पर डालकर वह दुनिया को दिखाने की कोशिश कर रहा है कि वह एक शांत और स्टेबल पावर है. लेकिन सचाई यह है कि वह भारत के लिए हर तरफ से परेशानी खड़ी करने की कोशिश कर रहा है.

  • जो बॉर्डर एरिया हैं, वहां लगातार अपनी सेना बनाए हुए है.
  • सीमा क्षेत्रों में इन्फ्रास्ट्रक्चर बनाता जा रहा है.
  • भारत के विदेश मंत्रालय ने बीते हफ्ते ही चीन के सामने यह मुद्दा उठाया कि उसने अरुणाचल के एथलीटों को स्टेपल वीजा दिया है. यह दिखाने के लिए कि वह अरुणाचल को एक डिस्प्यूटेड टेरिटरी मानता है, उसे भारत का अंग नहीं मानता.
  • अगर चीन वाकई भारत के साथ संबंध सुधारने का पक्षधर होता तो इस तरह की जो समस्याएं हैं, उनको थोड़ा कम करता. 

बहरहाल, चीन के साथ और भी मुद्दे हैं, चाहे वह जापान का मामला हो या ताइवान का. मगर ये देश अपनी बात उतने प्रबल तरीके से नहीं रख पाते. वहीं, भारत पूरी सैन्य क्षमता के साथ सीमा पर खड़ा है और चीन को आगे नहीं बढ़ने दे रहा. अंतरराष्ट्रीय पटल पर भी भारत ने जिस तरह से अपनी एंगेजमेंट्स बढ़ाई हैं, उसे देखते हुए चीन चिंतित है. इसलिए ऐसा बयान देकर भारत को दबाव में लाने की कोशिश कर रहा है.

अंतरराष्ट्रीय पटल पर भी भारत ने जिस तरह से अपनी एंगेजमेंट्स बढ़ाई हैं, उसे देखते हुए चीन चिंतित है. इसलिए ऐसा बयान देकर भारत को दबाव में लाने की कोशिश कर रहा है.

उसकी इन तमाम कवायदों का आखिर मतलब क्या है? वह यही तो दिखाना चाहता है कि भारत के प्रधानमंत्री भी चाह रहे थे, इस समस्या का समाधान हो. लेकिन यह बात तो भारत 2020 से कह रहा है कि संबंध सामान्य बनें. सवाल यह है कि किसकी शर्तों पर बनें. आप कनपटी पर बंदूक रखकर तो यह नहीं कह सकते कि जैसा हम चाहें, वैसा करो. या बॉर्डर की जो समस्या है उसे ऐसे हमारे पक्ष में ही हल करो. भारत ने तो यह बात पहले ही स्पष्ट कर दी है कि अगर किसी को पहला कदम उठाना है तो वह है चीन, क्योंकि चीन ने स्टेटस में इकतरफा ढंग से बदलाव करके पुराना फ्रेमवर्क और अंडरस्टैंडिंग तोड़ी है. जब तक भारत में यह विश्वास नहीं आएगा कि चीन भरोसेमंद साथी है, तब तक उससे ईमानदार बातचीत नहीं हो सकती.

तय करे चीन

यह बात भारत ने हर तरह से साफ की है. अभी जब SCO समिट हुआ, उसमें भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बेल्ट एंड रोड इनीशटिव को लेकर यह बात कही थी कि कनेक्टिविटी तो हम सब चाहते हैं लेकिन कनेक्टिविटी किसी की संप्रभुता पर खतरा ना बने, इस बात का ध्यान रखना पड़ेगा. चीन जो पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में इकॉनमिक कॉरिडोर बना रहा है, भारत उस पर पहले से आपत्ति जता रहा है. भारत की रणनीति एकदम साफ रही है, अब यह चीन पर है कि वह उसे किस तरह से लेता है.


यह लेख नवभारत टाइम्स में प्रकाशित हो चुका है.

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