Author : Harsh V. Pant

Published on Jul 21, 2022 Commentaries 0 Hours ago

श्रीलंका के क़र्ज़ जाल में श्रीलंका समेत कई देश फंसते जा रहे हैं. इनमें भारत के कई पड़ोसी देश शामिल हैं. भारत ऐसे देशों की ओर मदद का हाथ बढ़ाकर बड़े भाई की भूमिका में सामने आ रहा है.

#South Asia: संकट के समय पड़ोसियों के लिए बड़े भाई की भूमिका में भारत; चीन के जाल में फंसे श्रीलंका समेत कई देश!

संकट में फंसा श्रीलंका इस समय कई पैमानों पर एक उदाहरण बना हुआ है. सबसे पहला तो यही दर्शाना कि आर्थिक संकट कितनी शीघ्रता से राजनीतिक संकट में बदल जाता है. दूसरा यह कि कई बुनियादी पहलुओं पर मजबूत होने के बावजूद कोई देश कुप्रबंधन और गलत नीतियों के कारण कैसे बर्बाद हो जाता है. तीसरा यह कि अव्यावहारिक योजनाओं के लिए क्षमता से अधिक क़र्ज़ लेना कितना आत्मघाती सिद्ध होता है. इससे भी बड़ी चिंता की बात है कि जिस बीमारी ने श्रीलंका की यह दुर्गति की है, वो दुनिया में इस समय किसी महामारी की तरह फैल रही है.

अर्जेटीना से लेकर घाना, रूस, यूक्रेन, पाकिस्तान, नेपाल और मालदीव जैसे तमाम देश इस समय ऐसी ही आर्थिक मुश्किलों से जूझ रहे हैं, जिनके चलते श्रीलंका का ऐसा पतन हुआ.

कोरोना महामारी ने विश्‍व अर्थव्‍यवस्‍था को पटरी से उतारा

अर्जेटीना से लेकर घाना, रूस, यूक्रेन, पाकिस्तान, नेपाल और मालदीव जैसे तमाम देश इस समय ऐसी ही आर्थिक मुश्किलों से जूझ रहे हैं, जिनके चलते श्रीलंका का ऐसा पतन हुआ. दुनिया भर में आर्थिक मोर्चे पर आई सुस्ती इसकी एक प्रमुख वजह है, जिसकी सुगबुगाहट तो काफी समय से हो रही थी, लेकिन कोविड जैसी वैश्विक महामारी ने उसकी रफ्तार को बढ़ाकर विश्व अर्थव्यवस्था को पटरी से उतार दिया. इसका खामियाजा सभी देशों को भुगतना पड़ रहा है. अंतर सिर्फ इतना है कि कुछ देशों पर यह इतना भारी पड़ रहा है कि उनका अस्तित्व ही खतरे में दिखता है.

असल में चीन तमाम देशों को चकाचौंध वाली ऐसी परियोजनाओं का सब्जबाग दिखाता है, जो आर्थिक रूप से व्यावहारिक नहीं होतीं. इनके लिए वह उन्हें अपनी शर्तों पर क़र्ज़ देता है. चूंकि ये परियोजनाएं किसी सफेद हाथी की भांति होती हैं, तो क़र्ज़ लेने वाले देश के पास उसे चुकाने के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं होते.

चीन के मायाजाल में फंसे कई देश

चीनी क़र्ज़ का जाल भी कई देशों को तबाह करने वाली एक प्रमुख वजह के रूप में उभरा है. दुर्योग से ऐसे कई देश भारत के पड़ोसी हैं. श्रीलंका इसकी प्रत्यक्ष मिसाल है. यही हाल नेपाल और मालदीव का है जबकि इस मामले में पाकिस्तान की स्थिति तो श्रीलंका से भी बदतर है. असल में चीन तमाम देशों को चकाचौंध वाली ऐसी परियोजनाओं का सब्जबाग दिखाता है, जो आर्थिक रूप से व्यावहारिक नहीं होतीं. इनके लिए वह उन्हें अपनी शर्तों पर क़र्ज़ देता है. चूंकि ये परियोजनाएं किसी सफेद हाथी की भांति होती हैं, तो क़र्ज़ लेने वाले देश के पास उसे चुकाने के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं होते. फिर उन देशों को चीन के हाथों अपनी संपत्तियां गंवानी पड़ती हैं और अंतत: वही होता है जो इन दिनों श्रीलंका में हो रहा है.

मुसीबत में फंसे श्रीलंका को भारत की मदद

अपने पड़ोसी देशों में इस प्रकार की आर्थिक बदहाली भारत के लिए स्पष्ट रूप से चिंता का सबब है. इसके न केवल भारतीय अर्थव्यवस्था, बल्कि क्षेत्रीय शांति, सुरक्षा और स्थायित्व के लिए भी गहरे निहितार्थ होंगे. ऐसे में भारत की जिम्मेदारी भी बढ़ जाती है और इस दायित्व की पूर्ति के प्रयास नई दिल्ली ने शुरू भी कर दिए हैं. मुसीबत में फंसे श्रीलंका के लिए जब उसके सबसे बड़े क़र्ज़दाता चीन ने हाथ खड़े कर दिए तो भारत ने ही कोलंबो के लिए मदद का हाथ बढ़ाया. भारत ने मालदीव की भी खासी मदद की है जिससे तात्कालिक तौर पर उसे चीनी क़र्ज़ की मुसीबत से कुछ मोहलत मिल गई है, लेकिन इससे जुड़ी दीर्घकालिक चुनौती अभी भी कायम है.

अपने पड़ोसी देशों में इस प्रकार की आर्थिक बदहाली भारत के लिए स्पष्ट रूप से चिंता का सबब है. इसके न केवल भारतीय अर्थव्यवस्था, बल्कि क्षेत्रीय शांति, सुरक्षा और स्थायित्व के लिए भी गहरे निहितार्थ होंगे.

पड़ोसी देशों के लिए बड़े भाई की भूमिका में भारत

नेपाल के साथ भी भारत बहुत सक्रियता से काम कर रहा है. जहां तक पाकिस्तान का प्रश्न है तो वह भारत से मदद की गुहार नहीं लगाएगा. वहीं उसकी स्थिति ऐसी है कि जल्दी से उसे मदद भी नहीं मिलेगी. ऐसे में पाकिस्तान के पास परमाणु हथियारों और वहां विस्फोटक आंतरिक स्थिति को देखते हुए उसकी मदद को लेकर अंतरराष्ट्रीय समुदाय की प्रतिक्रिया और सहयोग पर सभी की निगाहें लगी होंगी. कुल मिलाकर भारत के लिए यह समय सतर्क रहने और आवश्यकता के अनुसार रणनीति बनाकर आगे बढ़ने का है. वर्तमान परिदृश्य में अपने सधे कदमों से भारत पड़ोसी देशों के सामने अपने बड़े भाई होने की छवि को और पुख्ता कर सकता है.

पड़ोसी देशों में जारी उठापटक का असर भारत पर भी पड़ सकता है. ऐसे में स्थिति को भांपकर उनके अनुसार रणनीति बनाना ही भारत के हित में होगा जो काम नई दिल्ली ने शुरू भी कर दिया है. अपने सधे कदमों से भारत इन देशों के बीच अपने बड़े भाई होने की छवि को और पुख्ता करते हुए रणनीतिक लाभ उठा सकता है.

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यह लेख जागरण में प्रकाशित हो चुका है.

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