Originally Published प्रभात खबर Published on Apr 21, 2023 Commentaries 0 Hours ago

आबादी में आधा हिस्सा महिलाओं का भी है और अगर हम उन्हें बराबरी के साथ विकास यात्रा का सहभागी नहीं बनायेंगे, तो युवा आबादी होने का लाभ भी हमें पूरा नहीं मिल सकेगा.

बड़ी चुनौती भी है बड़ी आबादी

संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष की ताजा रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत की आबादी 142.86 करोड़ हो गयी है, जो चीन की जनसंख्या से 29 लाख अधिक है. इस प्रकार भारत अब दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाला देश बन गया है. इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत की 25 प्रतिशत जनसंख्या की आयु 14 साल से कम है, 18 प्रतिशत लोग 10 से 19 साल की आयु के हैं, 10 से 24 साल के लोग 26 प्रतिशत तथा 15 से 64 साल के लोग 68 प्रतिशत हैं.

बुजुर्गों यानी 65 साल से अधिक आयु के लोगों की संख्या सात प्रतिशत है. इन आंकड़ों से एक बार फिर स्पष्ट होता है कि भारत की जनसंख्या का बहुत बड़ा हिस्सा कामकाजी आयु (15 से 64 साल के बीच) का है. इसे जनसांख्यिकीय लाभांश (डेमोग्राफिक डिविडेंड) कहते हैं. किसी भी देश की तेज तरक्की के लिए इसकी बहुत अहमियत होती है.

बुजुर्गों यानी 65 साल से अधिक आयु के लोगों की संख्या सात प्रतिशत है. इन आंकड़ों से एक बार फिर स्पष्ट होता है कि भारत की जनसंख्या का बहुत बड़ा हिस्सा कामकाजी आयु (15 से 64 साल के बीच) का है. इसे जनसांख्यिकीय लाभांश (डेमोग्राफिक डिविडेंड) कहते हैं. किसी भी देश की तेज तरक्की के लिए इसकी बहुत अहमियत होती है. भारत के इस चरण में होने की बात पहले से भी होती रही है.

आम चुनाव के बाद जनगणना की उम्मीद

पिछले साल भारत सरकार ने युवाओं के बारे में एक रिपोर्ट जारी की थी. जहां तक जनसंख्या की बात है, तो संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट भी एक आकलन ही है. संभव है कि पहले ही हमारी आबादी चीन से अधिक हो चुकी होगी. इसकी सही तस्वीर जनगणना से ही मिलेगी, जो 2021 में महामारी के कारण नहीं हो सकी थी. आशा है कि आम चुनाव के बाद जनगणना हो.

संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट बताती है कि भारत में 15 से 64 साल के कामकाजी लोगों की संख्या 68 प्रतिशत है. यह आंकड़ा इसलिए भी अहम है कि निर्भर लोगों (14 साल से कम आयु के बच्चे और 65 साल या उससे अधिक आयु के बुजुर्ग) की संख्या कम है. कोष का कहना है कि युवा आबादी होने से उपभोग बढ़ेगा और श्रम उपलब्धता भी पर्याप्त रहेगी. स्वाभाविक रूप से ऐसी स्थिति में उत्पादन बढ़ने की संभावना पैदा होती है.

नई चुनौतियां भी

वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, 58.3 प्रतिशत आबादी की आयु 29 साल से कम थी, लेकिन यह स्थिति 2036 में बदलने वाली है. तब यह आंकड़ा 52.9 प्रतिशत हो जायेगा. ऐसा होने की मुख्य वजह यह है कि एक ओर प्रजनन दर में कमी आयी है और दूसरी ओर मृत्यु दर भी घटी है. पर अगर चीन से तुलना करें, तो हमारे यहां प्रजनन दर अपेक्षाकृत कम घटी है. इसीलिए चीन ने तीसरी संतान पैदा करने की अनुमति भी दे दी है. अभी हमारे देश में जनसंख्या वृद्धि की गति बनी रहेगी क्योंकि अलग-अलग राज्यों में प्रजनन दर के रुझान अलग-अलग हैं. दक्षिणी राज्यों में प्रजनन दर में बहुत कमी आयी है, पर उत्तर, पूर्वी और पश्चिमी भारत में अभी भी यह अधिक है.

विकास में जनसांख्यिकीय लाभांश की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, लेकिन हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि अगर युवा जनसंख्या को सही ढंग से तैयार नहीं किया गया, तो इस वरदान को अभिशाप में बदलने में भी देर नहीं लगेगी. आने वाले कुछ वर्षों में बुढ़ाती आबादी के रूप में हमारे सामने जनसंख्या से संबंधित एक नयी चुनौती भी पैदा होने लगेगी, जिसकी ओर विशेषज्ञ पहले से ही संकेत कर रहे हैं. यह संकट चीन, जापान, यूरोप के अनेक देशों में आ चुका है.

भारत सरकार के आकलन के अनुसार, 2021 तक 60 साल से अधिक आयु के लोगों की संख्या 10.1 प्रतिशत हो गयी. ध्यान रहे, यह आकलन है. वास्तविक संख्या इससे अधिक भी हो सकती है. वर्ष 2036 तक यह आंकड़ा 15 प्रतिशत भी हो सकता है, जहां अभी चीन है, उससे भी अधिक. ऐसा होने में बहुत अधिक समय नहीं है. इस तरह, यह कहा जा सकता है कि जनसांख्यिकीय लाभांश का हम लाभ उठा पाने से चूकते जा रहे हैं.

हालांकि बीते दशकों में हमारे देश में शिक्षा और स्वास्थ्य समेत तमाम क्षेत्रों में उल्लेखनीय प्रगति हुई है, पर इतनी बड़ी आबादी के लिए जिस स्तर पर प्रयास होने चाहिए, वैसा नहीं हो सका है. उदाहरण के लिए, शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में सरकारी और निजी क्षेत्र के अधिक निवेश के बावजूद आज भी भारत उन देशों की कतार में है, जो इन मदों में सबसे कम खर्च करते हैं. ऐसे में गुणवत्तापूर्ण कामकाजी आबादी को तैयार नहीं किया जा सकता है.

आबादी में आज जो लोग तीस साल से अधिक आयु के हैं, उनके बारे में बहुत अधिक कर पाना अब संभव नहीं रह गया है. यह आबादी 2036 तक 29 साल से कम आयु के लोगों से अधिक हो जायेगी. कहने का अर्थ यह है कि हमारे पास जो जनसांख्यिकीय लाभांश अभी है, वह धीरे-धीरे हाथ से निकलता जा रहा है. इस पर गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है. विभिन्न आयु वर्गों को अलग-अलग कर देना होगा और उसके अनुसार रणनीति बनानी होगी. सभी को युवा कह देने भर से बात नहीं बनेगी.

कहने का अर्थ यह है कि हमारे पास जो जनसांख्यिकीय लाभांश अभी है, वह धीरे-धीरे हाथ से निकलता जा रहा है. इस पर गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है.

यह लाभांश तभी लाभकारी होगा, जब यह अधिक उपभोग करेगा. उसी स्थिति में विकास हो सकेगा. पर वह उपभोग तभी कर पायेगा, जब उसके पास खरीदने की क्षमता होगी. अभी हम देख रहे हैं कि कम आमदनी के लोग ही नहीं, बल्कि मध्य आय वर्ग के लोग भी आय घटने और खर्च बढ़ने के कारण खर्चों में कटौती कर रहे हैं. महामारी से पैदा हुई स्थितियों का असर कब तक रहेगा, यह कहना मुश्किल है, क्योंकि घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नयी-नयी समस्याएं पैदा हो रही हैं. आमदनी के लिए जरूरी है कि युवाओं के पास समुचित रोजगार हो.

जनसंख्या लाभांश का लाभ उठाने की जरूरत

संक्षेप में कहें, तो हमें अपने जनसांख्यिकीय लाभांश का लाभ उठाने के लिए तेजी से सक्रिय होना पड़ेगा. एक तो कामकाजी लोगों में कौशल विकास पर ध्यान देना होगा और दूसरे, जो बच्चे और किशोर हैं, उनकी अच्छी शिक्षा की व्यवस्था करनी पड़ेगी. चूंकि हमारी आबादी का बहुत बड़ा हिस्सा गरीब है और गांवों में रहता है, तो गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, कौशल प्रशिक्षण और अच्छे रोजगार तक उसकी पहुंच भी सीमित है.

यही बात स्वास्थ्य और पोषण के साथ है. यद्यपि विभिन्न प्रकार के कल्याण कार्यक्रम और योजनाओं के द्वारा समाधान की कोशिशें चल रही हैं, परंतु उनकी गति और उनका प्रभाव बढ़ाना होगा. आबादी में आधा हिस्सा महिलाओं का भी है और अगर हम उन्हें बराबरी के साथ विकास यात्रा का सहभागी नहीं बनायेंगे, तो युवा आबादी होने का लाभ भी हमें पूरा नहीं मिल सकेगा. इसमें आर्थिक और सामाजिक रूप से वंचित समूहों की सहभागिता भी सुनिश्चित करनी होगी.


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