Author : Kabir Taneja

Originally Published हिंदुस्तान टाइम्स Published on Oct 15, 2025 Commentaries 0 Hours ago

भारत–अफ़ग़ानिस्तान संबंधों में अब विचारधारा और पुरानी परंपराओं की जगह व्यावहारिक सोच और पाकिस्तान को लेकर एक समान दृष्टिकोण मुख्य आधार बन गए हैं.

अफ़ग़ानिस्तान के साथ भारत की नई शुरुआत

नेपाल के काठमांडू और नई दिल्ली के बीच उड़ान भरने वाले इंडियन एयरलाइंस के विमान (IC 814) का 24 दिसंबर, 1999 को अपहरण कर लिया गया था. अपहरणकर्ता इस भारतीय विमान को कई शहरों में ले गए और आख़िर में उसे दक्षिणी अफ़ग़ानिस्तान के कंधार में उतारा. ज़ाहिर है कि कंधार तालिबान का वैचारिक गढ़ है. कई दौर की बातचीत के बाद विमान में बंधक बनाए गए यात्रियों को 31 दिसंबर को छोड़ गया और ये संकट समाप्त हुआ. आतंकियों से बातचीत में भारत के वर्तमान राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल मुख्य वार्ताकारों में शामिल थे. उस समय अमीर ख़ान मुत्तक़ी तालिबान शासन में प्रशासनिक मामलों के महानिदेशक थे, यानी तत्कालीन सरकार में एक मध्यम दर्ज़े के अधिकारी थे. उस वाकये के 26 साल बाद एक बार फिर ये दोनों शख्सियत गैर परंपरागत भू-राजनीतिक चर्चा के केंद्र में हैं. दरअसल, काबुल में तालिबान के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार और भारत सरकार के बीच रिश्ते सामान्य होने की राह पर नज़र आ रहे हैं. इसकी वजह यह है कि तालिबान सरकार में अंतरिम विदेश मंत्री अमीर ख़ान मुत्तक़ी पहली बार नई दिल्ली की यात्रा पर हैं.

  • मुत्तक़ी का भारत दौरा तालिबान के लिए राजनीतिक सफलता माना जा रहा है, जबकि भारत यहाँ की सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति है.
  • पाकिस्तान पर भारत और तालिबान का नजरिया मिलता-जुलता. 

 अमेरिकी सेना ने अगस्त 2021 में अफ़ग़ानिस्तान से अचानक वापसी कर ली थी, वो एक अहम और निर्णायक मोड़ था. वर्तमान में जब वैश्विक स्तर पर भारी उथल-पुथल मची हुई है, तब ज़ाहिर तौर पर उस दौर की घटनाओं के महत्व को कहीं न कहीं कम कर दिया है. लेकिन उन घटनाओं को किसी भी लिहाज़ से कम करके नहीं आंका जा सकता है, क्योंकि अमेरिका वहां 20 वर्षों से आंतकवाद के ख़िलाफ़ जंग लड़ रहा था और अचानक अफ़ग़ानिस्तान को उसके हाल पर छोड़कर उसकी सेनाएं वापस लौट गई थी. अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिकी सेनाओं की वापसी की पटकथा 2020 में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के पहले कार्यकाल के दौरान क़तर में दोनों पक्षों के बीच हुए समझौते के बाद लिखी गई थी. कुल मिलाकर तब अमेरिका ने बस पुराने तालिबान की जगह एक नए तालिबान को वहां की सत्ता सौंप दी थी.

 मुत्तक़ी की इस यात्रा के दौरान भारत ने जहां काबुल में स्थित अपने "तकनीक़ी मिशन" को पूर्ण दूतावास का दर्ज़ा देने का ऐलान किया है, वहीं अफ़ग़ान नागरिकों की बेहतरी के मकसद से कई विकास परियोजनाओं में मदद करने के अपने संकल्प को दोहराया है.

भारत-अफ़ग़ानिस्तान संबंध

 अफ़ग़ानिस्तान में जो हालात थे, उनके मद्देनज़र अमेरिका की वहां से वापसी तो तय थी. अमेरिकी सेनाओं के अफ़ग़ानिस्तान की धरती छोड़ने के बाद क्षेत्रीय शक्तियों के सामने अपने हितों की रक्षा का ख़तरा पैदा हो गया था, साथ ही उनके लिए अपना प्रभाव बढ़ाने के अवसर भी बन गए थे. ज़ाहिर है कि अमेरिका की वापसी के बाद वहां की सत्ता पर विद्रोहियों का कब्ज़ा हो गया था. यानी यह सुनिश्चित हो गया था की वहां से तालिबान को हटाना बेहद मुश्किल है. ऐसे में पड़ोसी देशों ने अपने हितों की रक्षा और ज़रूरतों के मुताबिक़ उनसे संबंध बनाने के लिए अपने-अपने हिसाब से रणनीति बनाई और उस पर अमल किया.

 

अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान शासन आने के तुरंत बाद मध्य एशिया के कई देशों ने व्यापक स्तर पर वहां आर्थिक गतिविधियां बढ़ाने का निर्णय लिया. ईरान भी अंतरिम तालिबान सरकार का एक प्रमुख राजनीतिक और आर्थिक साझेदार बन गया. इस बीच भारत ने भी तालिबान सरकार में अंतरिम विदेश मंत्री मुत्तक़ी की मेज़बानी करके अपने इरादे जता दिए हैं. मुत्तक़ी की इस यात्रा के दौरान भारत ने जहां काबुल में स्थित अपने "तकनीक़ी मिशन" को पूर्ण दूतावास का दर्ज़ा देने का ऐलान किया है, वहीं अफ़ग़ान नागरिकों की बेहतरी के मकसद से कई विकास परियोजनाओं में मदद करने के अपने संकल्प को दोहराया है. हालांकि, एक सच्चाई यह भी है कि काबुल के इन पड़ोसी देशों में से कई ने 1990 के दशक में तालिबान विरोधी आंदोलनों बढ़ावा देने में सक्रिय भूमिका निभाई थी.

 तालिबान सरकार ने न सिर्फ़ पहलगाम में हुए आतंकी हमलों की निंदा की थी, बल्कि पाकिस्तान के उस दुष्प्रचार को भी ख़ारिज किया था, जिसमें वो कह रहा था कि भारतीय मिसाइलों ने अफ़ग़ानिस्तान की धरती को निशाना बनाया है.

देखा जाए तो मुत्तक़ी की भारत यात्रा तालिबान के लिए एक बड़ी राजनीतिक जीत है. इस पूरे क्षेत्र में भारत सबसे बड़ी आर्थिक ताक़त है. मौज़ूदा समय में अफ़ग़ानिस्तान की अर्थव्यवस्था बेहाल है. इतना ही नहीं अफ़ग़ानिस्तान तमाम प्रतिबंधों व पैसों की कमी से जूझ रहा है. ऐसे में अगर खाद्य और स्वास्थ्य सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में बड़ा निवेश होता है या फिर कोई देश मदद करता है, तो निश्चित तौर पर यह तालिबान को घरेलू स्तर पर संतुलन बनाने और अपनी स्थिति को मज़बूत करने में सहायक होगा. तालिबान चाहे जितना दिखावा करें और अपनी ताक़त दिखाए, लेकिन वास्तविकता में तालिबान शासन के दौरान अफ़ग़ानिस्तान की हालत बदतर हुई है. पिछले चार वर्षों में, मुल्ला बरादर, सिराजुद्दीन हक्कानी (अंतरिम गृह मंत्री), मुल्ला याकूब (मुल्ला उमर के बेटे और अंतरिम रक्षा मंत्री) और अंतरिम विदेश मंत्री मुत्तक़ी जैसे नेताओं की अगुवाई वाली तालिबानी सरकार ने वैचारिक तौर पर व्यावहारिक नज़रिया अपनाने और उसे लगातार मज़बूती देने की कोशिश की है. कंधार कहीं न कहीं तालिबान सरकार के इस दृष्टिकोण को तालिबान प्रमुख अमीर-उल-मोमिनीन हिबतुल्लाह अखुंदज़ादा के विचारों के लिए एक चुनौती मानने लगा है. हालांकि 2025 में कंधार की इस सोच में बदलाव आया है. इसमें कोई शक नहीं है कि काबुल पर कंधार का कहीं अधिक नियंत्रण है. ख़बरों के मुताबिक़ मुत्तक़ी के भारत दौरे से पहले अखुंदज़ादा ने उन्हें साफ तौर पर बता दिया था कि भारत-अफ़ग़ानिस्तान के द्विपक्षीय रिश्तों को लेकर उन्हें क्या रणनीति अपनानी है और किन मुद्दों पर क्या बातचीत करनी है.

 

भारत का रुख़

नई दिल्ली के नज़रिए से देखें तो वर्तमान हालातों में भारत के लिए मुत्तक़ी की मेज़बानी रणनीतिक तौर पर व्यावहारिक भी थी और ज़रूरी भी थी. हालांकि, यह एक ऐसा क़दम है, जिसमें बेहद सावधानी, कुशलता और संतुलन की आवश्यकता है. आज, पाकिस्तान के मुद्दे पर कहीं न कहीं भारत और तालिबान दोनों की सोच एक सी है. भारत ने 2021 में ही तालिबान के साथ अपने रिश्ते बढ़ाने की दिशा में छोटे-छोटे क़दम उठाने शुरू कर दिए थे. उस समय जनवरी में भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने दुबई में मुत्तक़ी से मुलाक़ात की थी. इसके अलावा, ऑपरेशन सिंदूर से उपजे हालातों के साथ ही तालिबानी शासन में कमज़ोर होती सुरक्षा व्यवस्था के अलावा पाकिस्तानी सेना व पाक ख़ुफिया एजेंसियों के साथ झड़पों और विवादों ने तालिबान को भारत के नज़दीक आने का अवसर प्रदान किया है. तालिबान सरकार ने न सिर्फ़ पहलगाम में हुए आतंकी हमलों की निंदा की थी, बल्कि पाकिस्तान के उस दुष्प्रचार को भी ख़ारिज किया था, जिसमें वो कह रहा था कि भारतीय मिसाइलों ने अफ़ग़ानिस्तान की धरती को निशाना बनाया है. इसी के बाद मई महीने में भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर और मुत्तक़ी के बीच पहली बार फोन पर बातचीत हुई थी. उसके बाद भारत ने कहीं न कहीं तालिबान की उस इच्छा को पूरा करने का काम किया, जो वो चाहता था. यानी भारत ने तालिबान सरकार के नुमाइंदे की नई दिल्ली की आधिकारिक यात्रा और बातचीत की इच्छा को पूरा किया है.

 

पाकिस्तानी सत्ता के गलियारों को भारत और तालिबान सरकार के बीच बढ़ती निकटता हजम नहीं हो रही है और ऐसी ख़बरें आईं कि पाक सेना की ओर से काबुल में तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) के ख़िलाफ़ हवाई हमले किए गए. ज़ाहिर है कि पाक सरकार यह दुष्प्रचार करती है कि आतंकवादी संगठन टीटीपी और रावलपिंडी में बैठे उसके सहयोगियों को भारत का समर्थन हासिल है. जबकि असलियत यह है कि पाकिस्तान सरकार अपने देश में चरमपंथ को जड़ से समाप्त करने में नक़ाम साबित हुई है. दिल्ली स्थित अफ़ग़ान दूतावास में मुत्तक़ी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा कि अफ़ग़ानों के धैर्य की परीक्षा नहीं ली जानी चाहिए, जिस प्रकार से तत्कालीन सोवियत संघ और बाद में अमेरिका ने किया था. तालिबान की ओर से नई दिल्ली से पाकिस्तान को दिया गया यह संदेश फौरी तौर पर भारत के लिए रणनीतिक लिहाज़ के बहुत फायदेमंद है.

 

जहां तक मुत्तक़ी के साथ भारत की बाचतीत की बात है, तो भारत की ओर से मुख्य रूप से विकास के मुद्दे पर ही बात की गई. ज़ाहिर है कि अफ़ग़ानी नागरिक भारत को विकास मदद के लिए ही हमेशा याद करते हैं. भारत ने 2021 में अफ़ग़ान नागरिकों को वीज़ा जारी करना बंद कर दिया था और उसके बाद दोनों देशों के बीच रिश्तों में ऐसी गर्माहट बेहद ज़रूरी हो गई थी. कुल मिलाकर संदेश यही है कि नई दिल्ली अफ़ग़ान लोगों की बेहतरी के लिए चलाई जा रही परियोजनाओं में सहायता देना जारी रखेगी. इसके अलावा, भारत ने पाकिस्तान द्वारा हज़ारों की संख्या में सीमा पार खदेड़े जा रहे विस्थापित अफ़ग़ान शरणार्थियों के लिए आवासों के निर्माण में भी मदद का ऐलान किया है. इस घोषणा ने दोनों देशों के बीच संबंधों में मज़बूती व भरोसे को और ज़्यादा बढ़ाने का काम किया है.

 कुल मिलाकर, मुत्तक़ी का यह दौरा भारत और अफ़ग़ानिस्तान के नए शासकों के बीच एक नया और संवेदनशील रिश्ता शुरू करने के लिहाज़ से बेहद महत्वपूर्ण साबित हुआ है.

आख़िर में, मुत्तक़ी को सामाजिक मुद्दों पर अप्रत्यक्ष प्रतिक्रिया भी मिल सकती है. उन्होंने उत्तर प्रदेश के देवबंद स्थित दारुल उलूम का दौरा किया. दारुल उलूम तालिबान की विचारधारा को पोषित करने वाले देवबंदी आंदोलन का प्रमुख वैचारिक केंद्र है. देवबंद की उनकी यात्रा से अफ़ग़ानिस्तान में और अधिक समावेशी विकास की दिशा में आगे बढ़ने की उम्मीद है. दारुल उलूम के धर्मगुरुओं ने अमेरिका को अफ़ग़ानिस्तान से बाहर निकालने के लिए तालिबान की तारीफ करते हुए वहां सभी के साथ एक समान और समावेशी व्यवहार की बात पर ज़ोर दिया. धर्मगुरुओं ने लड़कियों की शिक्षा की भी बात की, लेकिन लड़कियों और लड़कों के अलग-अलग स्कूल होने की बात भी कही. कुल मिलाकर, मुत्तक़ी का यह दौरा भारत और अफ़ग़ानिस्तान के नए शासकों के बीच एक नया और संवेदनशील रिश्ता शुरू करने के लिहाज़ से बेहद महत्वपूर्ण साबित हुआ है.


यह लेख मूल रूप से हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित हुआ था.

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