Author : Ramanath Jha

Issue BriefsPublished on Aug 21, 2024
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पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप और शहरी म्यूनिसिपल इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार के लिये ‘रणनीतिक प्रयास’!

  • Ramanath Jha

    पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप्स (PPPs) यानी सार्वजनिक-निजी साझेदारी का विश्व और भारत में इतिहास काफ़ी लंबा है. भारतीय सरकार जहां साझेदारी के इस मॉडल का समर्थन करती है, वहीं सरकार को इस म्युनिसिपल इंफ्रास्ट्रक्चर एंड सर्विसेस अर्थात नगरीय ढांचे तथा सुविधा प्रणाली के वितरण में ज़्यादा सफ़लता नहीं मिली है. उसकी सीमित सफ़लता इस बात के बावजूद है कि शहरी आबादी में तेज इज़ाफ़े के साथ ही नागरी सुविधाओं की मांग में भी वृद्धि हुई है. लेकिन अधिकांश मामलों में नगरीय निकायों के पास इन सुविधाओं को मुहैया करवाने की क्षमता नहीं होती है. निश्चित ही विश्व के अनेक शहरों में अब ‘रीम्युनिसिपलाइजेशन’ की मांग तेज हो रही है. इसका मतलब यह है कि स्थानीय प्राधिकरणों को अहम सेवाओं की ज़िम्मेदारी दोबारा सौंपने की मांग हो रही है. इन शहरों के अनुभव में भारत के लिए अहम और मूल्यवान सबक छुपा हो सकता है.

Attribution:

रमानाथ झा, “पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप और शहरी म्यूनिसिपल इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार के लिये ‘रणनीतिक प्रयास’!” ORF इश्यू ब्रीफ नं. 724, अगस्त 2024, ऑर्ब्जवर रिसर्च फाउंडेशन.

प्रस्तावना

 

विश्व बैंक ने पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप्स (PPP) की व्याख्या करते हुए कहा है कि ‘‘सरकार के लिए एक ऐसी प्रणाली, जिसका उपयोग करके वह पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर तथा/या सेवाओं को मुहैया करवाने के लिए निजी क्षेत्र के संसाधन और विशेषज्ञता का उपयोग करती है.’’ PPP मॉडल का मूलभूत आधार इस बात पर केंद्रित है कि इसमें शामिल दोनों पक्ष- सार्वजनिक और निजी क्षेत्र - अपनी-अपनी क्षमताओं विशेष को पहचानते हुए और इसे स्वीकार करते हुए प्रस्तावित बुनियादी ढांचे संबंधी सुविधा या अन्य सेवाओं को प्रदान करने की राह में आने वाली चुनौतियों एवं ज़िम्मेदारियों को साझा रूप से स्वीकार करेंगे. ये चुनौतियां और ज़िम्मेदारियां PPP समझौते में स्पष्ट रूप से तय कर ली जाती हैं. इस समझौते को कानूनी और संगठनात्मक ढांचे का कवच हासिल होता है और इसमें मज़बूत प्रशासनिक और निगरानी व्यवस्था शामिल होती है. इस तरह की परियोजनाओं में निजी निवेश हासिल कर उन्हें इस काम में जोड़ना आसान नहीं  होता. भारतीय सरकार के लिए तो इसमें कुछ पूर्व शर्तें भी होती हैं. ये पूर्व शर्तें निवेशकों के लिए यथोचित लाभ सुनिश्चित करने के लिए एक नीति संबंधी ढांचा बनाने को लेकर होती हैं. यह बात उसी वक़्त लागू होती है जब निवेशक कुशलता का एक स्तर हासिल करते हुए उपयोगकर्ताओं, विशेषत: गरीबों, के हितों की रक्षा करने में सक्षम और सफ़ल साबित हो.

 

अनेक दशकों से भारत समेत अनेक देशों में सार्वजनिक बुनियादी ढांचे और सेवाओं के वितरण के लिए PPP मॉडल का ही उपयोग किया जाता रहा है. ऐसा इसलिए है क्योंकि PPP मॉडल ने नवाचार का उपयोग शुरू करते हुए अधिक निवेश, कुशलता एवं कम लागत सुनिश्चित की है. इसके उदाहरण के रूप में चीन के चेंगदू, चोंगकिंग तथा युन्नान में वॉटर सेक्टर यानी जल क्षेत्र में घाना के सुनयानी में म्युनिसिपल घन कचरा व्यवस्थापन तथा भारत के उत्तरपूरर्व में सड़क विकास के लिए PPP व्यवस्था को देखा जा सकता है. हाल के वर्षों में अनेक देशों में इस मॉडल के कुछ नकारात्मक पहलू, विशेषत: नगरीय सेवाओं के संबंध में देखने को मिले हैं. इन पहलूओं में लागत और समय में लगने वाली देरी, सेवा वितरण में होने वाली कमी तथा शुल्क वृद्धि का समावेश है.

PPPs या सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के बीच इसी तरह की साझेदारियों की शुरुआत अनेक सदियों पहले ही हो गई थी. 400 वर्ष पूर्व ब्रिटेन ने जलमार्गों का उपयोग करते हुए परिवहन संबंधी सेवाओं का प्रबंधन करने की ज़िम्मेदारी एक निजी कंपनी को सौंपी थी

इस ब्रीफ में भारत समेत वैश्विक स्तर पर और PPP मॉडल के उभार और इसकी वजह से होने वाले फ़ायदों की समीक्षा के साथ-साथ वर्तमान में इसकी हो रही आलोचना पर भी चर्चा की गई है. इसके साथ ही यहां ‘रीम्युनिसिपलाइजेशन’ की हालिया बढ़ती मांग पर भी बात की गई है. इस संकल्पना को ‘इन-सोर्सिंग’ या ‘डी-प्राइवेटाइज़ेशन’ भी कहा जाता है. इस संकल्पना से यह बात समझी जाती है कि कैसे अहम म्युनिसिपल सर्विसेस यानी नगरीय सेवाओं को पुन: म्युनिसिपालिटी यानी नगर निकाय को दोबारा सौंपा जाना चाहिए. इसी प्रकार यह भी बात साफ़ हो जाती है कि कैसे उपर दी गई सेवाओं को निजी क्षेत्रों के हाथों से वापस लेकर स्थानीय प्रशासन को सौंपने का प्रावधान किया जाना चाहिए. 

 

पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP) का जन्म

 

PPPs या सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के बीच इसी तरह की साझेदारियों की शुरुआत अनेक सदियों पहले ही हो गई थी. 400 वर्ष पूर्व ब्रिटेन ने जलमार्गों का उपयोग करते हुए परिवहन संबंधी सेवाओं का प्रबंधन करने की ज़िम्मेदारी एक निजी कंपनी को सौंपी थी. यूनाइटेड स्टेट्‌स (US) में 1700 के उत्तरार्ध में ही निजी कंपनियों का सहयोग लेकर राजमार्गों और पुलों का निर्माण किया गया था. [a], 1970 के दशक में चीन ने निजी फर्म की सहायता से अपने चिड़ियाघरों में रखे हुए जानवरों को भोजन मुहैया करवाने का काम सौंपा था, क्योंकि उस वक़्त देश में मीट की राष्ट्रव्यापी कमी देखी जा रही थी. इसके बाद के वर्षों में चीन में PPP मॉडल का तेजी से विस्तार हुआ और 2014 में चीन ने कुछ महत्वपूर्ण दस्तावेज़ प्रस्तुत करते हुए PPPs को बढ़ावा देने की वकालत की. इतना ही नहीं वित्त मंत्रालय ने 1,043 ऐसी परियोजनाओं को हरी झंडी भी दिखाई.

 

इसी प्रकार 21 वीं शताब्दी के शुरुआत दौर में US में भी PPPs काफ़ी प्रासंगिक होने लगे थे. जनवरी 2013 आते-आते 33 राज्यों ने राजमार्गों और पुल परियोजनाओं में PPPs को प्राधिकृत करने वाले कानून पारित कर दिए थे. 1980s में यूनाइटेड किंगडम (UK) में सार्वजनिक उद्योगों एवं उपयोगिताओं का बुरा हाल था. पूंजी निवेश पर ज़्यादा मुनाफ़ा नहीं हो रहा था, जबकि उत्पादकता घट रही थी. लागत बढ़ने के साथ ही श्रमिकों के साथ विवाद बढ़ रहे थे. इन कारणों से उपभोक्ताओं को मिलने वाली सेवाओं की संतुष्टि का स्तर गिर गया और सार्वजनिक उद्योगों एवं उपयोगिताओं से यह काम वापस ले लिया गया. अब इन सेवाओं [b] को निजी हाथों में सौंप दिया गया. इसका उद्देश्य बेहतर प्रबंधन के साथ कुशलता को बढ़ावा देकर श्रमिकों की उत्पादकता को बढ़ाना था. इसके अलावा बेहतर विनियमन भी हासिल किया जाना था. 1990 तक सार्वजनिक क्षेत्र के 40 कारोबार और 600,000 श्रमिकों का निजीकरण हो चुका था.,

 

वैश्विक स्तर पर 1990 के बाद से ही जल के निजीकरण को सक्रियता के साथ प्रोत्साहित किया गया. इसके अलावा शहरी स्थानीय निकाय (ULBs) यदि PPP मॉडल अपनाते थे तो उन्हें बहुराष्ट्रीय कर्ज़ मिलना भी आसान हो जाता था. भारत में हालांकि सरकारी समर्थन और राष्ट्रीय स्तर पर गैर-ULB इंफ्रास्ट्रक्चर में मिली व्यापक सफ़लता के बावजूद PPPs को म्युनिसिपल इंफ्रास्ट्रक्चर में अपना स्थान बनाने में सफ़लता नहीं मिली है. [c] यह बात थोड़ी अचंभित करने वाली है. इसका कारण यह है कि भारत में PPP ढांचे को एक चौथाई सदी पहले ही अपना लिया गया था. इस ढांचे का उपयोग करते हुए मध्य प्रदेश के राऊ-पीथमपुर मार्ग तथा नोएडा टोल ब्रिज की दो परियोजनाओं की शुरूआत की गई थी.

 

PPPs और म्युनिसिपल इंफ्रास्ट्रक्चर  

 

विकासशील देशों ख़ासकर भारत जैसे देशों में लंबे समय से म्युनिसिपल इंफ्रास्ट्रक्चर मुहैया करवाने के लिए PPPs की ज़रूरत को स्वीकारा जा चुका है. वैश्विक स्तर पर स्थानीय निकाय प्रशासन इकाइयों को अधिकांशत: एक समान कार्य को ही अंजाम देना होता है. इसमें जलापूर्ति, सीवरेज, स्वच्छता, धन कचरा व्यवस्थापन, शहरी सड़कों, स्ट्रीट लाइट्‌स और उद्यानों तथा सार्वजनिक उपयोग की भूमि का रखरखाव शामिल है. भारत में भी ULBs को कमोबेश इस तरह के कार्यों को अंजाम देना पड़ता है. लेकिन यहां समस्या इस बात की है कि स्थानीय निकायों के पास न तो निधि होती है और न ही ये सब सुविधाएं मुहैया करवाने की क्षमता ही होती है. इन समस्याओं को देखते हुए स्थानीय निकाय संस्थाओं को निश्चित रूप से बाहरी संस्थाओं और निजी लोगों की सहायता लेकर अपने दायित्वों को पूर्ण करने में आ रही कमी को दूर करना चाहिए. भले ही ऐसा करने के लिए इन संस्थाओं को यह सुविधाएं मुहैया करवाने के अपने एकाधिकार के साथ समझौता ही क्यो न करना पड़े.

सन् 2000 से सार्वजनिक सेवाओं के पुन:नगरीकरण के कुल 835 मामले दर्ज किए गए हैं. ये मामले 45 देशों के 1,600 शहरों से जुड़े हैं., इसमें अनेक यूरोपियन देशों के साथ इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलिपींस, जर्मनी, नॉर्वे, US, चिली और कनाडा का भी समावेश है.

PPPs मॉडल के तहत स्थानीय निकाय प्रशासनिक संस्था एक ऐसा साथी चुन सकती है जो उसके काम के बोझ को कम करते हुए स्थानीय निकाय संस्था के ज़िम्मे आने वाले कुछ कार्यों को करते हुए उसे राहत प्रदान कर सकती है. उदाहरण के लिए निजी संगठन को ऐसे बेहद जटिल और तकनीकी काम सौंपे जा सकते हैं, जिसे करने के लिए ज़रूरी विशेषज्ञता स्थानीय निकाय संस्था के पास उपलब्ध न हो. भारत में अनेक ULBs ने निजी क्षेत्र का सहयोग लेकर बुनियादी सुविधाओं तथा आर्किटेक्चरल डिजाइन वर्क/कार्य से जुड़े जटिल काम पूरे किए हैं. इसी प्रकार परिवहन तथा पर्यावरणीय अध्ययन से जुड़े काम भी निजी संस्थाओं को सौंपे गए हैं. [d] इतना ही नहीं प्रमुख सड़क/वायाडक्ट योजना, ऐतिहासिक महत्व वाली इमारतों के रखरखाव और पुनर्निर्माण जैसे कार्य भी बाहरी संस्थाओं से करवाए गए, क्योंकि स्थानीय निकाय संस्था के पास इन कार्यों को करने के लिए आवश्यक मानव संसाधन अथवा विशेषज्ञता उपलब्ध नहीं थी. इतना ही नहीं गैर-नियमित स्थानीय निकाय कार्य, जैसे कि सिटी मास्टर प्लान बनाने का कार्य, जिनकी समय-समय पर आवश्यकता होती है को भी निजी क्षेत्र के सहयोग से करवाया जा सकता है. PPP मॉडल का उपयोग करके कुछ ऐसे भी काम किए जा सकते हैं, जिनके लिए स्थानीय निकाय संस्था के पास बजटीय प्रावधान नहीं होता है, लेकिन बगैर बजटीय प्रावधान वाले इन कार्यों को करना भी ज़रूरी होता है. हालांकि ये काम प्राथमिकता सूची में काफ़ी नीचे हो सकते हैं.

 

री-म्युनिसिपलाइजेशन या पुन:नगरीकरण की बढ़ती मांग

 

PPPs को बेहद तेज़ी के साथ स्वीकारने वाले देशों ने अब इस मॉडल को लेकर नए सिरे से विचार करना शुरू कर दिया है. वहां अब ‘री-म्युनिसिपलाइज़ेशन’ यानी पुन:नगरीकरण की मांग ज़ोर पकड़ने लगी है. इसके तहत निजी क्षेत्र को सौंपे गए कार्य वापस लेकर सार्वजनिक बुनियादी सुविधाओं और सेवा वितरण का काम वापस स्थानीय निकाय संस्था के कब्ज़े में लेने की बात हो रही है. ऐसा इस वज़ह से हो रहा है कि इस सेमी-प्राइवेटाइजेशन या अर्ध-निजीकरण की वजह से लागत में वृद्धि हो रही है. इतना ही नहीं निजी क्षेत्र ने सेवा प्रदान करने, उसकी समय सीमा और लागत को लेकर जो वादा किया था उसमें और ज़मीनी हकीकत में काफ़ी अंतर देखा जा रहा है. इसी प्रकार अब स्थानीय निकाय संस्थाओं की जिन कमज़ोरियों को ध्यान में रखकर निजी क्षेत्र के साथ हाथ मिलाकर काम करने की योजना बनाई गई थी, उन कमियों को भी दूर करने की कोशिश होने लगी है. इन कमियों में से एक कमी थी क्षमता या कैपेसिटी की कमी. यह बात विशेषत: सेवाओं के प्रबंधन को लेकर देखी जा रही थी. अब ओन्टारियो, कार्डिफ और गुबेन जैसे अनेक स्थानीय निकाय इन कमियों को दूर करने की दिशा में आगे बढ़ चुके हैं. ऐसा करने के लिए ये स्थानीय निकाय कार्पोरटाइजेश[e] का सहारा ले रहे हैं.

 

सन् 2000 से सार्वजनिक सेवाओं के पुन:नगरीकरण के कुल 835 मामले दर्ज किए गए हैं. ये मामले 45 देशों के 1,600 शहरों से जुड़े हैं., इसमें अनेक यूरोपियन देशों के साथ इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलिपींस, जर्मनी, नॉर्वे, US, चिली और कनाडा का भी समावेश है. सार्वजनिक सेवाओं को निजी हाथों से स्थानीय निकाय संस्थाओं के हाथों में वापस लेने के अधिकांश मामले जल, परिवहन, कचरा प्रबंधन, आवास, बिजली संबंधी सेवाओं से जुड़े थे. इसके अलावा कुछ मामलों में शिक्षा, स्वास्थय सेवा और प्रबंधन क्षेत्र की सेवाओं का भी पुन:नगरीकरण किया गया है.

 

उदाहरण के लिए पेरिस में वर्ष 2010 में यह मांग उठने लगी थी कि जलापूर्ति संबंधी सेवाओं के निजीकरण को समाप्त कर दिया जाना चाहिए, ताकि नागरिकों को सस्ती दरों पर पानी उपलब्ध हो सके. इन मांगों का संज्ञान लेकर निजीकरण को रद्द करने का निर्णय लिया गया. इसी प्रकार 2011 में बर्लिन तथा हैम्बर्ग में बिजली आपूर्ति के निजीकरण के ख़िलाफ़ अभियान चलाए गए. जब तीसरी बार बिजली दर वृद्धि का प्रस्ताव आया तो बिजली आपूर्ति सेवा के निजीकरण को रद्द कर 2014 में इसे पुन: सार्वजनिक क्षेत्र के हाथों में सौंप दिया गया. स्पेन में भी पुन:नगरीकरण के ऐसे ही प्रयास, विशेषकर जल सेवा क्षेत्र में देखे गए हैं. उल्लेखनीय बात यह है कि पुन:नगरीकरण के ऐसे सभी मामलों में सार्वजनिक निगम का गठन किया गया है. इन निगमों को ही अब सार्वजनिक सेवाओं के प्रबंधन की ज़िम्मेदारी सौंपी गई है.

 

पिछले 40 वर्षों में अनेक स्वास्थ्य सेवा प्रणाली जैसे US, जर्मनी, क्रोएशिया, दक्षिण कोरिया और स्वीडन की स्वास्थ्य प्रणालियों का निजीकरण किया गया. इन सेवाओं का निजीकरण करने का उद्देश्य यह था कि स्पर्धात्मक बाज़ार में बेहतर गुणवत्ता वाली स्वास्थ्य सेवाएं मरीजों को मुहैया करवाई जाए. इस फ़ैसले में निजी क्षेत्र में देखे जाने वाले मरीज-केंद्रित दृष्टिकोण से जुड़े लचीलेपन का लाभ उठाने की भी मंशा थी. स्वास्थ्य सेवाओं की आउटसोर्सिंग यानी निजीकरण के कारण मरीजों की बेहतर देखभाल के साथ-साथ इस क्षेत्र में नवाचार के साथ स्वास्थ्य सेवाओं को उपलब्ध करवाये जाने की अपेक्षा थी. इसके अलावा यह भी सोच थी कि ऐसा करने से इस महत्वपूर्ण क्षेत्र में ब्यूरोक्रेसी यानी लालफीताशाही को दूर किया जा सकेगा. लेकिन इस तरह के निजीकरण में यह देखा गया कि इससे न केवल मरीज़ों पर आने वाले ख़र्च में वृद्धि हुई है, बल्कि निजी इकाई के मुनाफ़े में भी इज़ाफ़ा हो रहा है. निजी स्वास्थ्य सुविधा केंद्रों में चुनिंदा मरीजों को ही दाख़िल किया जाता था, ताकि अधिक से अधिक मुनाफ़ा सुनिश्चित किया जा सके. इसके अलावा मरीजों को ज़्यादा जांच करने को कहा जाता था और समय से पहले ही अस्पताल से छुट्टी देने के मामले भी देखे गए. इतना ही नहीं कुछ केंद्रों पर कर्मचारियों की संख्या भी अपर्याप्त रखे जाने के मामले देखे गए थे. इसके साथ ही मरीजों के स्वास्थ्य पर पड़ने वाला प्रभाव भी घट रहा था. इन सारी बातों को देखकर अनेक शहरों में स्वास्थ्य सेवाओं को निजी हाथों से वापस लेने के प्रयास होने लगे हैं. 

 

भारत और म्युनिसिपल PPP व्यवस्था

 

भारत में भी अनेक PPP परियोजनाओं को विशेषत: सड़क और परिवहन, एयरपोर्ट्‌स और विमानन, बंदरगाह तथा रेलवे क्षेत्र में अपनाया गया है. लेकिन इन्हें स्थानीय स्तर पर बेहद सीमित सफ़लता मिली है. म्युनिसिपल PPPs ने 21 वीं सदी के अंतिम दशक में ही रफ़्तार पकड़ी थी. भारत में नगरीय ढांचे को मूलत: सार्वजनिक एकाधिकार के रूप में देखा जाता है. इतना ही नहीं चूंकि म्युनिसिपल सेवाओं को सार्वजनिक सेवा माना जाता था, अत: इसकी लागत को वसूलना बेतुका माना जाता था. ऐसे में अधिकांश मामलों में ये वाणिज्यिक यानी व्यापार के लिए अच्छा नहीं माना जाता था. इसी प्रकार एक सोच यह भी थी कि यदि निजी क्षेत्र आएगा तो ज़्यादा से ज़्यादा मुनाफ़ा कमाएगा. उदाहरण के लिए देश में जब अनुशासनहीन निजी बस ऑपरेटर्स ग्राहकों का शोषण करते हैं तो भी इसका विरोध होने लगता है.

भारत में अधिकांश PPP प्रोजेक्ट्‌स केंद्रीय और राज्य स्तर पर हैं. जबकि ULB स्तरीय PPPs छोटे होते हैं और ये अधिकांशत: मूल नगरीय सुविधाओं से अलग होते हैं. इंडिया इंफ्रास्ट्रक्चर रिपोर्ट 2023 के अनुसार, देश के सभी PPP प्रोजेक्ट्‌स में से केवल 10 प्रतिशत ही शहरी क्षेत्रों में थे. ये भी मुख्यत: गुजरात, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में हैं.

इसी प्रकार निजी क्षेत्र में भी स्थानीय निकाय संस्थाओं के साथ मिलकर काम करने को लेकर हिचकिचाहट थी. शहर के बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए इतना ज़्यादा निवेश किया जाना था कि इसकी वसूली करने में लंबा वक़्त लगाने वाला था. इसके अतिरिक्त भारत में स्तरीय प्रशासनिक ढांचे का मतलब यह है कि कोई भी फ़ैसला होने से पहले स्थानीय और राज्य स्तर पर इसे लेकर विचार किया जाएगा. विभिन्न स्तरों पर मंज़ूरी के बाद ही अंतिम निर्णय लिया जा सकेगा. ULBs में काम करने को लेकर अनुभव की कमी और स्थानीय निकायों में मौजूद राजनीतिक और प्रशासनिक माहौल को देखकर भी निजी क्षेत्र अनिश्चितताओं की चिंताओं से प्रभावित दिखाई देता था.

 

इन चिंताओं के बावजूद कुछ मुद्दे ऐसे हैं जिन्हें देखकर म्युनिसिपल इंफ्रास्ट्रक्चर और सर्विसेस में PPP मॉडल को अपनाया जाना चाहिए. भारतीय शहर भौगोलिक और जनसंख्या की दृष्टि से तेज़ी से विस्तारित हो रहे हैं. इससे भी बड़ी बात यह है कि अब मेट्रोपोलिटन शहरों (जिनकी संख्या एक मिलियन से अधिक है) यानी महानगरों की संख्या में भी वृद्धि हो रही है. 2024 में महानगरों की संख्या 65 हो गई है. इन मेट्रो शहरों में भारत की कुल शहरी आबादी अच्छी ख़ासी संख्या में रहती है. 2011 की जनगणना के अनुसार यह आंकड़ा 42.31 प्रतिशत था.

 

इस तेज़ी से हो रहे शहरीकरण के कारण बड़े शहरों में नगरीय बुनियादी ढांचे के साथ कदम के कदम मिलाने की क्षमता का अभाव देखा जा रहा है. बुनियादी ढांचे संबंधी मांग की मात्रा और इसे कम से कम समय में उपलब्ध करवाने की ज़रूरत को देखते हुए ULBs के लिए ऐसा करना संभव नहीं दिखाई देता. इतना ही नहीं वे इस व्यापक स्तर पर आवश्यक बुनियादी ढांचे के लिए संसाधन भी नहीं जुटा सकते हैं. बड़े शहरों को ऐसा बुनियादी ढांचा लगेगा जिसकी गुणवत्ता भी उच्च कोटि की होनी चाहिए. संभव है कि ULBs के पास यह मुहैया करवाने की तकनीक़ी क्षमता भी नहीं हो. इसके अलावा पुरानी पड़ चुकी बुनियादी सुविधाओं का रख-रखाव कर उन्हें उन्नत करना और जर्जर सुविधाओं का पुनर्निर्माण करना भी आवश्यक है. यह ULBs में PPPs के उभार के लिए आदर्श स्थिति है.

 

हालांकि, अभी भी निजी क्षेत्र को मूल नगरीय बुनियादी ढांचे के विकास में शामिल कर यह ढांचा मुहैया करवाने के लिए प्रोत्साहित करने की दिशा में काफ़ी कुछ किया जाना है. भारत में अधिकांश PPP प्रोजेक्ट्‌स केंद्रीय और राज्य स्तर पर हैं. जबकि ULB स्तरीय PPPs छोटे होते हैं और ये अधिकांशत: मूल नगरीय सुविधाओं से अलग होते हैं. इंडिया इंफ्रास्ट्रक्चर रिपोर्ट 2023 के अनुसार, देश के सभी PPP प्रोजेक्ट्‌स में से केवल 10 प्रतिशत ही शहरी क्षेत्रों में थे. ये भी मुख्यत: गुजरात, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में हैं. ULBs में PPP प्रोजेक्ट्‌स को कम मात्रा में अपनाने का मामला संस्थागत क्षमता के अभाव से जुड़ा हुआ है. सीमित मात्रा में शहरी PPPs में भी अधिकांश परिवहन (38 प्रतिशत), घन कचरा व्यवस्थापन (37 प्रतिशत) तथा जलापूर्ति और सीवरेज (25 प्रतिशत) क्षेत्र में ही है.

 

शहरों में PPPs की सीमित सफ़लता को देखते हुए इस तरह की इकाइयों का म्युनिसिपल यानी स्थानीय निकाय की वित्तीय स्थिति सुधारने में योगदान भी कम ही होता है. इसका मुख्य कारण यह है कि बड़े पैमाने पर निजी क्षेत्र के समावेशन के लिए लंबी ठेका अवधि, बड़ा निजी निवेश और विस्तारित निजी ज़िम्मेदारी और जवाबदेही होती है. इसके साथ ही ऐसे PPPs के लिए बड़ी मात्रा में प्राधिकार को सार्वजनिक हाथों से निजी हाथों में सौंपना पड़ता है. इसके अलावा निजी क्षेत्र को मजबूत राजस्व स्रोत और दर सौंपी जाती है ताकि वह अपना निवेश निकालकर मुनाफ़ा कमा सके. लेकिन स्थानीय निकाय प्राधिकारी अपनी शक्ति अथवा सत्ता और बुनियादी सुविधाओं तथा सेवाओं पर नियंत्रण को छोड़ने में असहज होते हैं. उन्हें दर वृद्धि की वजह से होने वाले राजनीतिक जन विरोध की चिंता भी सताती रहती है. PPPs के मार्फ़त निजी समावेशन के कुछ और परिणाम भी निकल सकते हैं. मसलन लंबी और महंगी कानूनी लड़ाई. यह स्थिति दोनों में से किसी भी पक्ष की ओर से अनुबंध के उल्लंघन अथवा पालन में कोताही, लागत और समय में वृद्धि अथवा सेवाओं को प्रदान करने में देरी या फिर गुणवत्ताहीन सेवाओं की आपूर्ति के कारण पैदा हो सकती है.

 

PPPs की आलोचना का मूल कारण यह है कि वे गरीबी संबंधी मुद्दों से निपटने में विफल रहते हैं. उदाहरण के लिए महाराष्ट्र के नागपुर में जलापूर्ति का निजीकरण न केवल पूर्व निर्धारित गुणवत्ता मापदंडों पर ख़रा उतरने में विफ़ल साबित हुआ, बल्कि इसकी वजह से जल दर में वृद्धि भी करनी पड़ी. नागपुर महानगरपालिका संघ, नागरिक समूहों और देश भर के संगठनों ने नागपुर में PPP की विफ़लता के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किया. इसी प्रकार अन्य शहर जहां जल संबंधी सेवाओं का निजीकरण किया गया है, जैसे छत्तीसगढ़ के दुर्ग, मध्य प्रदेश के खंडवा, महाराष्ट्र के लातूर और कर्नाटक के हुबली-धारवाड़ में भी तेज दर वृद्धि के ख़िलाफ़ नागरिकों की अगुवाई में आंदोलन होते दिखाई दिए हैं.

 

इन झटकों के बावजूद भारतीय सरकार और राज्यों में PPPs को लेकर समर्थन देखा जा सकता है. यह समर्थन स्थानीय निकायों की कमज़ोर नगरीय क्षमता और संसाधनों के तीव्र अभाव की वजह से दिखाई देता है. ULBs की क्षमता (विशेषकर छोटे और मध्यम आकार वाले शहरों में) सीमित होती है. ऐसे में वे PPPs को उसकी जटिलता के साथ संभाल पाने में सफ़ल नहीं होते हैं. इसी वजह से ऐसे शहरों की बुनियादी सुविधाओं में PPPs का उपयोग कर इज़ाफ़ा करने वाले मॉडल को शामिल करने की राह में रुकावट आती है. ऐसे में PPP प्रोजेक्ट्‌स के सही अमल के लिए एक संस्थागत ढांचा होना ज़रूरी है. यह ढांचा नियमित सीखना सुनिश्चित करते हुए ऐसी पहल को कुशलता के साथ आगे बढ़ाने के लिए विशेष इकाई मुहैया करवाने का काम करता है. उदाहरण के लिए यह ढांचा ULBs को PPPs के कानूनी और अनुबंध संबंधी पहलू में सहायता करेगा ताकि वे निजी क्षेत्र के साथ बातचीत कर सकें.

 

इसके अतिरिक्त स्थानीय स्तर पर क्षमताओं के व्यापक अभाव को देखते हुए केंद्र और राज्यों को ULBs की सहायता और समर्थन करना चाहिए. इस दृष्टि के साथ इंफ्रास्ट्रक्चर फाइनांस सेक्रेटेरिएट (IFS) ने एक रेफरंस गाइड तैयार की है. इसका उद्देश्य राज्यों को अपना संस्थात्मक ढांचा विकसित करने में सहायता करना है. यह गाइड राज्यों को अपने यहां PPP यूनिट्‌स स्थापित करने के लिए एक ढांचा देकर मार्गदर्शक सिद्धांत मुहैया करवाती है. इसमें अंतर निहित लचीलापन भी है, ताकि राज्यों को अपने यहां अपनी सुविधा को देखकर PPP इकाइयां स्थापित करने में आसानी हो सके.

 केंद्र और राज्यों को इस बात पर विचार करना होगा कि कैसे वे दोनों मिलकर ULBs की सहायता करेंगे. ताकि स्थानीय निकाय PPPs को अपनाने का रास्ता ख़ोजकर उसे स्थापित कर सकें और फिर उसे सफ़लतापूर्वक संचालित करने में सक्षम बन सकें. इस तरह की सहायता के बगैर भारत में मूल नगरीय बुनियादी ढांचे में PPPs को सफ़लता मिलना मुश्किल ही दिखाई देता है.

 

उल्लेखनीय है कि भारत सरकार की योजनाओं में भी PPPs पर केंद्रीत क्षमता वृद्धि पहलू भी शामिल हैं. उदाहरण के लिए जवाहरलाल नेहरु नेशनल अर्बन रिन्यूअल मिशन में यह सोचा गया था कि राज्य और ULBs भी PPPs का गठन कर सकेंगे. इसी प्रकार स्वच्छ भारत मिशन में स्थानीय निकाय और निजी क्षेत्र के बीच सहयोग से स्वच्छता, सफाई और हाइजिन यानी स्वास्थ्य रक्षा को बढ़ावा देने की व्यवस्था की गई है. स्मार्ट सिटीज मिशन ने भी ULBs तथा राज्यों को मिलकर स्मार्ट सिटी परियोजनाओं को लागू करने का समर्थन किया है. अंत में अटल मिशन फॉर रिजुवेनेशन एंड अर्बन ट्रांर्फोमेशन में संस्थागत तथा व्यक्तिगत तौर पर क्षमता वृद्धि की व्यवस्था है. यह वृद्धि फिल्ड वीजिट्‌स, कार्यशाला, सेमीनार्स के माध्यम से होनी है. इसमें मिलियन से अधिक आबादी वाले शहरों को PPPs के गठन का अधिकार भी दिया गया है.

 

केंद्र और राज्यों को सक्रियता के साथ ULBs की वित्तीय स्थिति पर नज़र रखकर उसमें सुधार करना चाहिए. क्योंकि भारतीय ULBs संसाधन जुटाने और वित्तीय स्वायत्तता के मामले में दुनिया की सबसे कमज़ोर ULBs में शामिल हैं. ऐसे में केंद्र और राज्य सरकारों के लिए यह आवश्यक है कि वे स्थानीय प्रशासन को मजबूत करने के लिए अपनी आय में हिस्सेदार बनाएं. इसके लिए एक पूर्वअनुमानित फार्मूले से राशि का हस्तांतरण किया जा सकता है. इसके अलावा अन्य तरीकों [f] से पैसा देकर ULBs को अपना दायित्व अदा करने में सहायता देकर उन्हें सक्षम बनाया जा सकता है. ULBs की दयनीय वित्तीय स्थिति को वस्तु एवं सेवा कर ने और भी मुश्किलों में डाल दिया है. इसका कारण यह है कि इस कर ने आय के सभी स्रोतों को अपने में समाहित कर लिया है. GST की वजह से ULBs की वित्तीय स्थिति पर पड़े नकारात्मक प्रभाव को GST में से कुछ प्रतिशत सीधे शहरों को हस्तांरित करके दूर किया जा सकता है. 

 

निष्कर्ष 

 

भारत में स्थानीय निकाय को संचालित करने वाले निर्णयकर्ताओं में अपनी पकड़ को बनाए रखने की इच्छाशक्ति होती है. इसके अलावा PPPs को लेकर प्रचलित अन्य नकारात्मक भ्रांतियों ने भी PPPs को व्यापक तौर पर अपनाने की राह में रुकावटें पैदा की है. एक महत्वपूर्ण अड़चन यह दिखाई देती है कि निजीकरण से भले ही सेवा की कुशलता और गुणवत्ता में सुधार हो, लेकिन वह समानता के मुद्दे से निपटने के मामले में कमज़ोर साबित होता है. अनेक मामलों में दर वृद्धि के मुकाबले गुणवत्ता में सुधार नहीं देखा गया है. चूंकि, सार्वजनिक सेवाओं को किफ़ायत और सार्वभौमता की दृष्टि से देखा जाता है, अत: PPPs ऐसे मामलों में आदर्श साबित नहीं होगा, जहां सेवा बेहद अहम है और इस सेवा को सभी लोगों की आर्थिक क्षमता के भीतर रखा जाना आवश्यक होता है.

 

नुक़सान वाले PPP प्रोजेक्ट्‌स की स्थिति में सुधार के लिए विशेष रणनीति अपनाई जा सकती है. उदाहरण के लिए जैसे भारत ने वाएबिलिटी गैप फंडिंग स्कीम यानी व्यवहार्यता कमी वित्त पोषण योजना (परियोजना की कुल लागत की 60 प्रतिशत तक) में सुधार किया है. यह सुधार समाजिक क्षेत्र की परियोजनाओं जैसे जल, दूषित जल, घन कचरा प्रबंधन, स्वास्थ्य और शैक्षणिक परियोजनाओं में किया गया है.,

 

PPPs के लिए नगरीय बुनियादी ढांचे सेवाओं में अनेक संभावित मार्ग हैं. लेकिन अधिकांश ULBs, PPPs के मामले में क्षमता के अभाव से जूझते हैं. इसे देखते हुए भारत को एक स्टैंडर्ड कॉन्ट्रैक्चुअल डॉक्टयूमेंट यानी आदर्श अनुबंध दस्तावेज़ तैयार करने पर विचार करना चाहिए. यह दस्तावेज़ विशिष्ठ नगरीय सेवाओं के लिए होगा. इसके अलावा एक राज्य स्तरीय संगठन भी स्थापित होगा जो छोटी ULBs के लिए इन पहलूओं का प्रबंधन करेगा.

 

हालांकि, वैश्विक स्तर पर पुन:नगरीकरण का रवैया अपनाया जा रहा है, लेकिन भारतीय शहरों को फिलहाल इस विकल्प के बारे में सोचना नहीं चाहिए, क्योंकि यहां ULBs तकनीकी और वित्तीय तौर पर बेहद कमज़ोर है. इसके अतिरिक्त ULBs के पास बढ़ती शहरी आबादी की मांग और आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पड़ने वाले दबाव को झेलने की क्षमता भी नहीं है. यह दबाव बुनियादी सुविधाओं और सेवाओं के मामले को लेकर पड़ने वाला दबाव है. इस स्थिति को ग्रामीण क्षेत्रों से बड़ी संख्या में आने वाले गरीब विस्थापित और भी चुनौतीपूर्ण बना रहे है. ये विस्थापित शहर की अर्थव्यवस्था को अहम सेवाएं मुहैया करवाते हैं, लेकिन इन्हें भी एक बेहतर जीवन जीने के लिए मूल नगरी सुविधाएं किफ़ायती दरों पर उपलब्ध होनी चाहिए. ऐसा होने पर ही ग्रामीण क्षेत्र से आने वाले लोग शहरों की स्थानीय अर्थव्यवस्था में उपयोगी योगदान देते रहेंगे. अत: केंद्र और राज्यों को इस बात पर विचार करना होगा कि कैसे वे दोनों मिलकर ULBs की सहायता करेंगे. ताकि स्थानीय निकाय PPPs को अपनाने का रास्ता ख़ोजकर उसे स्थापित कर सकें और फिर उसे सफ़लतापूर्वक संचालित करने में सक्षम बन सकें. इस तरह की सहायता के बगैर भारत में मूल नगरीय बुनियादी ढांचे में PPPs को सफ़लता मिलना मुश्किल ही दिखाई देता है.


Endnotes

[a] For instance, in the eighteenth century, the Charles River Bridge Company was allowed to construct a bridge over the Charles River between Boston and Charlestown in Massachusetts, collect tolls for 40 years, and hand the bridge back to the state at the end of this period.

[b] Including industries such as steel, railways, airways, airports, and aerospace, and utilities such as gas, electricity, telecom, and water.

[c] Some of the most crucial are water, sewerage, solid waste management, traffic administration, and transportation.

[d] Examples of such work are the Comprehensive Mobility Plan Mumbai, Hyderabad, Chennai, and Indore, MTHL and Bandra-Worli bridge designs, environment impact assessment and management plan for Kandla Port.

[e]Corporatisation is a method by which a public service can be delivered by a public organisationby creating a publicly owned entity that functions with operational independence and at arm’s length from its parent public organisation.

[f] A predictable formula-based transfer refers to transfers to ULBs that are based on a basket of criteria that are uniformly used for ULBs without any arbitrary exercise of discretion. Other transfers, inter alia, refer to transfers recommended by Central Finance Commission and State Finance Commissions.

[1] The World Bank, “About Public-Private Partnerships”, https://ppp.worldbank.org/public-private-partnership/about-public-private-partnerships

[2] Deloitte, “What is Public-private Partnerships?”, 2023,  https://www2.deloitte.com/cn/en/pages/real-estate/articles/what-is-public-private-partnerships.html

[3] The World Bank, “About Public-Private Partnerships”, https://ppp.worldbank.org/public-private-partnership/about-public-private-partnerships

[4] Ministry of Housing and Urban Affairs, “Note on PPP in Urban sector”

[5] Deloitte, “What is Public-private Partnerships?”, 2023

[6] Lijin Zhong et al., “Public-Private Partnerships in China’s Urban Water Sector”, Springer Link, February 7, 2008, https://link.springer.com/article/10.1007/s00267-008-9070-1#Tab1

[7] Bernadette Ekua Bedua Afful et al., “Public-private partnership in municipal solid waste management in the Sunyani municipality of Ghana”, Journal of Property, Planning and Environmental Law, December 2023, https://www.emerald.com/insight/content/doi/10.1108/JPPEL-04-2023-0012/full/html

[8] Ministry of Road Transport and Highways, “Public Private Participation”, https://morth.nic.in/public-private-participation-ppp

[9] The Transnational Institute,” The unstoppable rise of remunicipalisation”, April 23, 2018, https://www.tni.org/en/article/the-unstoppable-rise-of-remunicipalisation

[10] Asian Development Bank, “Public-Private Partnerships in Urbanization in the People’s Republic of China”, 2014, https://www.adb.org/sites/default/files/publication/42860/public-private-partnerships-urbanization-prc.pdf

[11] Lorman, “A Brief History of Public Private Partnerships”, July 19, 2018, https://www.lorman.com/resources/a-brief-history-of-public-private-partnerships-16968

[12] Asian Development Bank, “Public-Private Partnerships in Urbanization in the People’s Republic of China”, 2014, https://www.adb.org/sites/default/files/publication/42860/public-private-partnerships-urbanization-prc.pdf

[13] Deloitte, “What is Public-private Partnerships?”, 2023,  https://www2.deloitte.com/cn/en/pages/real-estate/articles/what-is-public-private-partnerships.html

[14] Deloitte, “What is Public-private Partnerships?”, 2023

[15] Lorman, “A Brief History of Public Private Partnerships”

[16] Centre for Public Impact, “Privatising the UK’s nationalized industries in the 1980s”, April 11, 2026, https://www.centreforpublicimpact.org/case-study/privatisation-uk-companies-1970s

[17] John Moore, “British Privatisation – Taking Capitalism to the People”, Harvard Business Review, January-February 1992, https://hbr.org/1992/01/british-privatization-taking-capitalism-to-the-people

[18] Sandeep Hasurkar, “View/25 years of public-private partnerships and the road ahead”, CNBC, August 1,, 2022, https://www.cnbctv18.com/infrastructure/public-private-partnership-model-25-years-and-the-road-ahead-14320792.htm

[19] Ministry of Housing and Urban Affairs, “Note on PPP in Urban sector”, https://mohua.gov.in/upload/uploadfiles/files/Note%20on%20PPP%20in%20Urban%20sector04.pdf

[20] V. Srinivas Chary, “Public Private Partnerships (PPP) in Urban Infrastructure and Service Delivery”, https://icrier.org/pdf/v.srinivas_chary.pdf

[21] Government of Maharashtra, Urban Development Department, “Report of the Committee Transparency, Efficiency and Accountability in Urban Local Bodies”, 2018

[22] Government of Maharashtra, Urban Development Department, “Report of the Committee Transparency, Efficiency and Accountability in Urban Local Bodies”, 2018

[23] Bart Voorn et al., “Re-interpreting re-municipalization: finding equilibrium”, Journal of Economic Policy  Reform, February 11, 2020, https://www.tandfonline.com/doi/full/10.1080/17487870.2019.1701455

[24] Bart Voorn et al., “Re-interpreting re-municipalization: finding equilibrium”, Journal of Economic Policy  Reform, February 11, 2020

[25] Satoko Kishimoto, “The unstoppable rise of remunicipalisation”, Transnational Institute, April 23, 2018

[26] We Own It, “Wordwide:How cities and citizens are turning back privatisation”, June 23, 2017, https://weownit.org.uk/blog/worldwide-how-cities-and-citizens-are-turning-back-privatisation#:~:text=The%20new%20research%20from%20the,1%2C600%20municipalities%20in%2045%20countries.

[27] Stoke Nishimoto et al., “The Future is Public: Towards Democratic Ownership of Public Services”, May 2020, https://www.tni.org/en/publication/the-future-is-public-democratic-ownership-of-public-services

[28] Nishimoto et al., “The Future is Public: Towards Democratic Ownership of Public Services”

[29] Soren Becker, “Our City, Our Grid: The energy remunicipalisation trend in Germany”, Transnational Institute, https://www.google.co.in/search?q=campaigns+in+Berlin+and+Hamburg+against+privatisation+of+energy+supply

[30] Alberto Ruiz-Villaverde et al., “The privatisation of urban water services: Theory and empirical evidence in the case of Spain”, ResearchGate, January 2015, https://www.researchgate.net/publication/281729258_The_privatisation_of_urban_water_services_Theory_and_empirical_evidence_in_the_case_of_Spain

[31] Nishimoto et al., “The Future is Public: Towards Democratic Ownership of Public Services”

[32] Benjamin Goodair, “The effect of health-care privatisation on the quality of care”, The Lancet, March 2024, https://www.thelancet.com/journals/lanpub/article/PIIS2468-2667(24)00003-3/fulltext

[33] Goodair, “The effect of health-care privatisation on the quality of care”

[34] Goodair, “The effect of health-care privatisation on the quality of care”

[35] Ministry of Housing and Urban Affairs, “Note on PPP in Urban sector”

[36] Ministry of Housing and Urban Affairs, “Note on PPP in Urban sector”

[37] Government of Maharashtra, Urban Development Department, “Report of the Committee Transparency, Efficiency and Accountability in Urban Local Bodies”, 2018

[38] Ramanath Jha & Nasrin Siddiqui, “Towards People Friendly Cities”, Inspire Bookspace, 2008, https://www.bookspace.in/products/towards-people-friendly-cities-by-ramnath-jha

[39] Jha and Siddiqui, “Towards People Friendly Cities”

[40] Jha and Siddiqui, “Towards People Friendly Cities”

[41] Pallavi Rao, “Mapped: Indian States with Cities Over 1 Million People”, Visual Capitalist, May 20, 2024, https://www.visualcapitalist.com/mapped-indian-states-with-cities-over-1-million-people/

[42] Anjali Saraswat et al., “Rapid Urbanization of Metropolitan Cities in India: a Review”, ResearchGate, January 2024, https://www.researchgate.net/publication/377849118_Rapid_Urbanizations_of_Metropolitan_Cities_in_India_A_Review

[43]Department of Economic Affairs, “Public Private Partnership in India: List of all PPP Projects”, https://www.pppinindia.gov.in/list_of_all_ppp_projects

[44] Risha Chitlangia, “Only 10% of PPP projects in India are in urban areas. Blame poor planning & low tax collections”, The Print, December 10, 2023, https://theprint.in/india/governance/only-10-of-ppp-projects-in-india-are-in-urban-areas-blame-poor-planning-low-tax-collections/1878357/

[45] Chitlangia, “Only 10% of PPP projects in India are in urban areas. Blame poor planning & low tax collections”

[46] Ramanath Jha, “Remunicipalisation in municipal infrastructure”, Observer Research Foundation, July 15, 2024, https://www.orfonline.org/expert-speak/remunicipalisation-in-municipal-infrastructure

[47]Anjaya Anparthi, “Nagpur’s water privatization gets dubious international recognition”, The Times of India, December 3, 2013, https://timesofindia.indiatimes.com/city/nagpur/nagpurs-water-privatization-gets-dubious-international-recognition/articleshow/26758657.cms

[48]Public Services International, “India; Coalition unites to block PPP water privatisation schemes”, January 25, 2016, https://www.world-psi.org/en/india-coalition-unites-block-ppp-water-privatization-schemes

[49] Gaurav Dwiwedi, “Privatisation and Commercialisation of Water in India”, Citizen Consumer and civic Action Group, September 28, 2016, https://www.cag.org.in/blogs/privatisation-and-commercialisation-water-india#:~:text=For%20instance%2C%20privatisation%20of%20Shivnath,and%20privatisation%20in%20Delhi%20has

[50] Satyanarayana N. Kalidindi, Ashwin Mahalingam & Ganesh Devkar, “Capacity Building for Public Private Partnership Procurement Urban Local Bodies, ResearchGate, November 2007

[51] Infrastructure Finance Secretariat, “Reference Guide for Setting-up State PPP Units”, Department of Economic Affairs, Government of India, June 2023, https://www.pppinindia.gov.in/report/Book%20Reference%20Guide%20for%20PPP%20Unit_1687005415.pdf

[52] Ministry of Urban Employment and Poverty Alleviation, “Jawaharlal Nehru National Urban Renewal Mission: Overview”, Government of India, https://mohua.gov.in/upload/uploadfiles/files/1Mission%20Overview%20English(1).pdf

[53] Ministry of Urban Development, “Toolkit for Public Private Partnerships frameworks in Municipal Solid Waste Management”, Government of India, http://swachhbharaturban.gov.in/writereaddata/tookit-public.pdf

[54] Ministry of Housing and Urban Affairs, “Smart Cities Mission”

[55] Ministry of Housing and Urban Affairs, “Atal Mission for Rejuvenation and Urban Transformation 2.0: Operational Guidelines”, Government of India, October 2021, https://mohua.gov.in/upload/uploadfiles/files/AMRUT-Operational-Guidelines.pdf

[56] HPEC, “Report on Indian Urban Infrastructure and Services”, March 2011,  https://icrier.org/pdf/FinalReport-hpec.pdf

[57] “Report on Indian Urban Infrastructure and Services”

[58] The Central Goods and Services Tax Act, 2017, https://www.indiacode.nic.in/handle/123456789/15689

[59]Satoko Kishimoto,”The unstoppable rise of remunicipalisation”, Transnational Institute, April 23, 2018, https://www.tni.org/en/article/the-unstoppable-rise-of-remunicipalisation

[60] Department of Economic Affairs, Government of India, “Guidelines for Financial Support to Public Private Partnerships in Infrastructure: Viability Gap Funding Scheme”, https://dea.gov.in/sites/default/files/Scan%20of%20Revamped%20VGF%20Guidelines%20alongwith%20all%20Annexures-compressed.pdf

[61] Department of Economic Affairs, Government of India, “Scheme for Financial Support to Public Private Partnerships in Infrastructure (Viability Gap Funding Scheme), https://www.pppinindia.gov.in/vgfguidelines

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