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“रूस के साथ आर्थिक संबंध मज़बूत करने में भारत के निजी क्षेत्र की भूमिका की पड़ताल” ओआरएफ इश्यू ब्रीफ नंबर 750, नवंबर 2024, ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन.
साल 2023 में भारत ने रूस के साथ 65 अरब डॉलर का व्यापार किया.[1] 2022 में हुए 12.34 डॉलर के द्विपक्षीय व्यापार की तुलना में ये काफ़ी ज़्यादा रहा. 2019 में दोनों देशों ने 2023 तक इसे 30 अरब डॉलर करने का लक्ष्य रखा था, उस लिहाज से देखें तो इसमें दोगुने से भी अधिक की वृद्धि रिकॉर्ड की गई.[2] लेकिन व्यापार में इस ज़बरदस्त बढ़ोत्तरी की मुख्य वजह ऊर्जा क्षेत्र में रियायती दर पर तेल की खरीदारी रही. यूक्रेन के साथ चल रहे युद्ध और पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के बाद रूस से रियायती कीमत पर तेल बेचना शुरू किया. भारत आज रूस का एक बड़ा व्यापारिक साझेदार है. हालांकि द्विपक्षीय व्यापार में बड़ा हिस्सा रूस के निर्यात का है.[a] हाल के वर्षों में भारत और रूस के बीच बढ़ती आर्थिक साझेदारी की दो मुख्य वजहें हैं. पहली, यूक्रेन के ख़िलाफ रूस की आक्रामक नीति. 2014 के बाद से ही इसकी वजह से रूस के ख़िलाफ कई तरह के प्रतिबंध और आर्थिक पाबंदियां लगी हैं. यूरोप के बाज़ार तक रूस की पहुंच सीमित हुई है. दूसरी वजह ये है कि इस दौरान भारत में काफ़ी आर्थिक वृद्धि हुई है. इसने धातु, ऊर्जा और कृषि उत्पादों की मांग पैदा की है.
पश्चिमी देशों की तरफ से लगाए गए प्रतिबंधों ने रूस को पूर्वी देशों, खासकर भारत की तरफ देखने को मज़बूर किया, जिससे वो अपने आर्थिक हितों की रक्षा करने के साथ-साथ उन्हें मज़बूत भी कर सके. उधर भारत भी यूरेशियन क्षेत्र में बड़ी भूमिका निभाना चाहता है. भारत इन देशों के साथ अपना व्यापार बढ़ाने और कनेक्टिविटी में सुधार लाने का इच्छुक है. इस काम में वो इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रेड कॉरिडोर (आईएनएसटीसी)[b] और प्रस्तावित पूर्वी समुद्री गलियारे का इस्तेमाल करने की योजना बना रहा है.[c] जुलाई 2024 में भारत और रूस ने वर्ष 2030 तक 100 अरब डॉलर के द्विपक्षीय व्यापार का लक्ष्य रखा है.[3] हालांकि कई लोग ये मानते हैं कि इस लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है,[4] लेकिन इसके लिए दोनों देशों के निजी क्षेत्र के बीच भी आर्थिक सहयोग बढ़ाने की ज़रूरत होगी. इस लक्ष्य को पाने में निजी क्षेत्र की भागीदारी महत्वपूर्ण होगी.
100 अरब डॉलर के व्यापार लक्ष्य को हासिल करने के लिए दोनों देश आपसी सहयोग के कई क्षेत्रों की पहचान कर चुके हैं. साझेदारी को प्रोत्साहित करने के लिए ज़रूरी तंत्र (जैसे कि सैन्य-तकनीकी सहयोग पर अंतर सरकारी आयोग, भारत के व्यापार और उद्योग मंत्रालय और रूस के आर्थिक विकास मंत्रालय के तहत संयुक्त कार्य समूह) की स्थापना की है.[5] 2007 में व्यापार और निवेश पर संयुक्त मंच और भारत-रूस व्यापार परिषद शुरू किए गए. भारत में निवेश करने के इच्छुक रूसी व्यवसायों के लिए 'इन्वेस्ट इंडिया' के नाम से रूस में एक डेस्क भी स्थापित किया गया है. इसके अलावा कुछ संस्थान और व्यापारिक समूह भी दोनों देशों के बीच कारोबारी रिश्ते बनाने के लिए काम कर रहे हैं.[d] [6]इतना ही नहीं व्यापारिक, आर्थिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक सहयोग बढ़ाने के लिए दोनों देशों ने सरकारी स्तर पर कुछ आयोग बनाए हैं. भारत-रूस अंतर सरकारी आयोग जैसी सरकारी संस्थाओं भी बनाई गई हैं. इनका उद्देश्य दोनों देशों के व्यवसायियों के बीच नियमित बैठकों की सुविधा प्रदान करना और द्विपक्षीय सहयोग को मज़बूत करना है।
साल 2023 में रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) ने रूस समेत 18 देशों के बैंकों को भारत में वोस्ट्रो अकाउंट खोलने की मंजूरी दी. इसके ज़रिए इन देशों के लोगों को कुछ तयशुदा भारतीय बैंकों में रूपये रखने की इजाज़त मिली.[7] रूस के निर्यात कारोबारियों ने 2023 में भारत में 34 वोस्ट्रो अकाउंट खोले.[8] इनमें करीब 8 अब अमेरिकी डॉलर से ज़्यादा की रकम जमा था. इस राशि को भारतीय शेयर बाज़ार, मशीनरी और रक्षा उत्पादों में निवेश किया गया था.[9]
हालांकि अब भी रूस में भारतीय निजी क्षेत्र के विकास की काफ़ी संभावनाएं हैं. ये इश्यू ब्रीफ रूस में भारत के निजी क्षेत्र की उपस्थिति का आकलन करता है, साथ ही द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ाने में निजी क्षेत्र की क्या क्षमता का भी मूल्यांकन करता है.
भारत और रूस के बीच व्यापार की शुरूआत के सबूत चौदहवीं सदी में मिलते हैं.[e] अगर आधुनिक युग की बात करें तो [f] भारत और रूस के बीच व्यापारिक संबंध अमूमन सार्वजनिक क्षेत्र में ही रहे थे. भारत एक मिश्रित अर्थव्यवस्था वाला देश है,[g] जबकि सोवियत संघ (रूस से पहले यूएसएसआर) एक नियंत्रित अर्थव्यवस्था वाला देश था.[h] शीतयुद्ध के ख़ात्मे के बाद दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाओं में बहुत ज़्यादा बदलाव आया. भारत में आर्थिक उदारीकरण की शुरुआत हुई. निजी क्षेत्र और विदेशी निवेश को अहमियत दी गई, जबकि रूस ने अपनी अर्थव्यव्यवस्था में बदलाव के लिए ‘शॉक थेरेपी’ का रास्ता चुना. चूंकि दोनों ही देश पश्चिमी देशों के साथ साझेदारी को महत्व दे रहे थे. ऐसे में भारतीय निजी क्षेत्र रूस में अपनी सीमित उपस्थिति ही दर्ज करा सका.
उदाहरण के लिए, 1990 के दशक की शुरुआत में टाटा टी (चाय कंपनी) ने रूस में एक प्रोसेसिंग और पैकेजिंग प्लांट स्थापित करने की कोशिश की, जो नाकाम रही. [i],[10] इसके बाद भारत की दवा कंपनियों ने रूस में कारोबार शुरू किया. डॉक्टर रेड्डीज़ लैब ने इसकी शुरूआत की और उसने रूस की सबसे बड़ी फार्मास्यूटिकल कंपनी बायोमेड के साथ 1992 में एक साझा उपक्रम को लेकर समझौता किया.[11] साल 2000 में उपभोक्ता सामान बनाने वाली कंपनी वीडियो ने रूस की सरकारी कंपनी रशिया इलेक्ट्रॉनिक कॉर्प के साथ मिलकर वोरोनिश में एक प्लांट लगाया. इस प्लांट में टेलीविज़न ट्यूब्स के लिए ग्लास केसिंग बनाने का काम होता था. बाद में कॉमनवेल्थ ऑफ इंडिपेंडेंट स्टेट्स (सीआईएस) [j] में वीडियोकॉन कंपनी टेलीविज़न उत्पादन की बड़ा ब्रांड बनी.[12] 2004 में टाटा मोटर्स और रशियन ऑटोमोबाइल प्लांट, उरल ऑटोमोबाइल्स एंड मोटर्स ने बीच एक समझौता हुआ. इस समझौते के तहत रूसी बाज़ार के लिए 3 साल में 15 हज़ार ट्रकों का निर्माण किया जाना था.[13] हालांकि ये योजना नाकाम रही.[k] ,[14]
करीब इसी दौरान यानी 2007 में कार्बोरंडम यूनिवर्सल लिमिटेड (सीयूएमआई) ने रूसी बाज़ार में प्रवेश किया. मुख्य रूप से सेरामिक बनाने वाली इस कंपनी ने 37 मिलियन डॉलर में रूस की वोल्ज़स्की एब्रेसिव वर्क्स में 84 प्रतिशत की हिस्सेदारी खरीदी.[15] 2008 में इसी कंपनी ने सिलिकॉन कार्बाइड फ्यूज़न प्लांट लगाने के लिए एक और डील की.[l] वोल्गोग्राड क्षेत्र में स्थापित होने वाले इस प्लांट में 50 मिलियन डॉलर का निवेश किया जाना था.
भारतीय फर्म जेवी गोकल ने रूस की यूनिवर्सल फूड टेक्नोलॉजी के साथ 40 मिलियन डॉलर का एक साझा उपक्रम स्थापित किया. इस समझौते के तहत ये कंपनी रूस में चाय की प्रोसेसिंग, पैकेजिंग और सप्लाई करनी थी.[16] 2016 में भारत के सन ग्रुप ने रशियन सॉवर्न इंवेस्टमेंट फंड, चाइना नेशनल गोल्ड ग्रुप और दक्षिण अफ्रीका की कुछ फर्म्स के साथ मिलकर एक संयुक्त उद्यम स्थापित किया. इन ज्वाइंट वेंचर ने साइबेरिया के क्लाइचेवस्कॉय क्षेत्र में सोने के भंडार की खोज और विकास के लिए 500 मिलियन डॉलर का निवेश किया. 2017 में ज्वेलरी फर्म केजीके ग्रुप ने व्लादिवोस्तोक में डायमंड कटिंग यूनिट में 2.8 अरब रूबल्स (करीब 29 मिलियन डॉलर) का निवेश किया.
अक्टूबर 2023 तक रूस में भारतीय कंपनियों का निवेश करीब 16 अरब डॉलर था, जबकि 2011 में ये 6.5 अरब डॉलर ही था. (रूस में भारतीय कंपनियों के निवेश को टेबल 1 में दिखाया गया है).[17]
चित्र 1- रूस में निजी भारतीय फर्म (1992 से अब तक)
| COMPANY | SECTOR |
| Dr Reddy Laboratory | Pharmaceuticals |
| Future Group | Retail |
| Sun Pharma | Pharmaceuticals |
| Glenmark pharmaceutical | Pharmaceuticals |
| Jodas Expoim | Pharmaceuticals |
| Deep Engineering Industries | Engineering Services |
| Tata Consumer products | Tea, |
| Wockhardt | Pharmaceuticals |
| Emami | Pharmaceuticals |
| Aditya Birla | Agribusiness |
| Allied Blenders and Distillers | Alcohol and Tobacco |
| Bajaj Auto | Automotive |
| Airtel | Telecommunications |
| Carborundum Universal | Engineering |
| Cipla | Pharmaceuticals |
| CK Birla Group | Defence, Industrial Equipment |
| Dabur India | Consumer Goods and Clothing |
| Divis labs | Pharmaceuticals |
| Gatik Ship Management | Marine Transportation and Energy (Oil and Gas) |
| HCL | Information Technology |
| HDFC | Finance |
| Hindalco | Metals and Mining |
| Mittal Energy | Energy |
| Indian Institute of Spices Research | Agriculture |
| IndusInd Bank | Finance and Payments |
| JSW Steel | Metals and Mining |
| L&T | Construction and Architecture |
| Naraya (Rosneft 49%) | Energy (Oil and Gas) |
| Pidilite | Chemicals |
| Reliance | Energy (Oil and Gas) |
| Sasaa Electronics | Defence and Electronics |
| Sentro Group | Air Transportation, Finance and Payments, Leasing and Rental, and Logistics |
| Simplex Casting | Engineering and Manufacturing |
| Space Era Materials and Processes | Defence and Manufacturing |
| Stark Logistics | Logistics and Transport |
| Synmedic | Pharmaceuticals and Health care |
| Tata Consultancy Services | Technology |
| Tech Mahindra | Technology |
| Titan | Luxury consumer lifestyle |
| Ultra Tech Cement | Construction and Architecture |
| VA Tech Wabag | Industrial Equipment |
| Infosys (Suspended operations) | Information Technology |
| Mahindra Rise | Automotive |
| Air India | Air Transportation |
| Kotak Mahindra | Finance and Payments |
| PSK Biotech | Pharmaceuticals |
| Maruti Suzuki | Automotive |
| WIPRO | Information Technology |
स्रोत : लेखक द्वारा खुद अलग-अलग जगह से जुटाई जानकारी
भारतीय निजी कंपनियां उन रूसी कंपनियों में भागीदार या फिर उनकी अंतिम खरीदार भी हैं, जिन्होंने भारत में निवेश किया है. उदाहरण के लिए, 2007 में रूसी कंपनी सिस्तेमा ने भारतीय फर्म श्याम टेलीलिंक में 10 प्रतिशत हिस्सेदारी हासिल की. इसके बाद एमटीएस ब्रांड नाम से भारत में मोबाइल सेवा शुरू की. 2016 में रिलायंस कम्युनिकेशंस ने इस पूरी कंपनी का अधिग्रहण कर लिया.[18] 2017 में रूस की सरकारी तेल कंपनी रोसनेफ्ट ने भारतीय प्राइवेट सेक्टर की कंपनी एस्सार ऑयल में 49 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीदी. नई इकाई का नाम नायरा एनर्जी रखा गया. इस सौदे में गुजरात में वाडिनार रिफाइनरी, 3,500 खुदरा दुकानें, 1,000 मेगावाट का पावर प्लांट और एक तेल टर्मिनल की बिक्री शामिल थी.[19]
यूक्रेन में रूस के आक्रमण ने रशिया में कारोबार कर रही भारतीय कंपनियों को मुश्किल में डाल दिया है. हालांकि, भारत उन देशों में शामिल नहीं है, जिसने रूस के ख़िलाफ प्रतिबंध लगाए हों या बैन का समर्थन किया हो. इसके बावज़ूद उन कुछ निजी भारतीय कंपनियों को रूस में अपना कामकाज सस्पेंड करने पर मज़बूर किया गया, जो पश्चिमी देशों में भी कारोबार कर रही हैं. इसकी चपेट में उन क्षेत्रों में काम करने वाली भारतीय कंपनियां भी आ गईं, जिन क्षेत्रों में प्रतिबंध नहीं लगा है. उदाहरण के लिए भारतीय आईटी कंपनी इंफोसिस ने यूक्रेन युद्ध शुरू होते है रूसी बाज़ार से अपना कामकाज समेट लिया क्योंकि उसके मुख्य कारोबारी हित पश्चिमी देशों में हैं. उदाहरण के लिए, भारतीय आईटी फर्म इंफोसिस युद्ध शुरू होने के तुरंत बाद रूसी बाजार से बाहर निकल गई क्योंकि कंपनी के पश्चिम में व्यावसायिक हित थे. हालांकि कुछ भारतीय कंपनियों ने युद्ध के दौरान और उसके बाद भी रूस में अपना काम जारी रखा. एक और भारतीय आईटी कंपनी विप्रो अब भी रूस में काम जारी रखे हुए हैं. मार्च 2024 में विप्रो ने रूस से 26 मिलियन रूबल का मुनाफा कमाया, जबकि पिछले साल उसे 22 मिलियन रूबल का नुकसान हुआ था.[20]
अप्रैल 2022 में टाटा स्टील ने घोषणा की थी कि वो रूस में अपना कारोबार बंद करने जा रहा है. टाटा पावर ने भी रूस के सुदूर पूर्वी कामचटका इलाके में कोयला खदान के लाइसेंस को रद्द करने की मांग की. उसे ये लाइसेंस 2017 में मिला था.[21]
हालांकि, निजी क्षेत्र की ज़्यादातर भारतीय कंपनियां पश्चिमी देशों के बाज़ारों से जुड़ी हैं, इसके बावजूद भारत ऊर्जा क्षेत्र में रूस के एक बड़े खरीदार के तौर पर उभरा. भारत ने रूस से अपनी ऊर्जा खरीदारी उस वक्त बढ़ाई, जब रूस वैश्विक प्रतिबंधों का सामना कर रहा था. (भारत का कहना है कि उसका मुख्य राष्ट्रीय हित अपनी ऊर्जा सुरक्षा को सुनिश्चित करना है)[22]. 2023 में भारत का कुल ऊर्जा आयात बढ़कर 54.5 अरब डॉलर हो गया, यानी भारत और रूस के बीच 65 अरब डॉलर का जो द्विपक्षीय व्यापार है, उसका सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा पेट्रोलियम उत्पादों का आयात है.[23] मई 2024 में रिलायंस इंडस्ट्री ने रूस की रोसनेफ्ट कंपनी से तेल खरीदने का सौदा किया. इस सौदे के तहत रिलायंस हर महीने 4 मिलियन बैरल तेल खरीदेगा और इसका भुगतान रूबल में करेगा.[24] नारया एनर्जी ने भी रूस के एक कारोबारी के साथ हर महीने 8-10 अरब बैरल तेल खरीदने का सौदा किया है. इस सौदे के तहत हर बैरल की कीमत पर 3-3.50 डॉलर की रियायत मिलेगी.[25] सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि रूस से रियायती दरों पर कच्चा तेल खरीदकर भारत ने वैश्विक तेल बाज़ार को काफ़ी हद तक स्थिर रखने में अहम भूमिका निभाई है.[26]
इसी तरह भारत ने रूस से लिक्विफाइड नेचुरल गैस (एलएनजी)की खरीदारी भी बढ़ाना चाहता है. दरअसल भारत का लक्ष्य है कि ऊर्जा की घरेलू खपत में 2030 तक प्राकृतिक गैस की हिस्सेदारी 7 प्रतिशत से बढ़कर 15 प्रतिशत हो जाए.[27] एलएनजी सेक्टर में रूस की अग्रणी कंपनी मॉडर्न फ्यूल टेक्नोलॉजीज ने हैदराबाद की स्पेसनेट एंटरप्राइजेज के साथ एक ज्वाइंट वेंचर की डील की है. इस नए साझा उपक्रम के तहत इनकी योजना 2027 तक भारत में 200 एलएनजी स्टेशन स्थापित करने की है.[28] रूस से एलएलजी के बढ़ते आया से भारत के निजी क्षेत्र के लिए क्रॉस-सेक्टोरल लाभ हैं. लिक्विफाइड नेचुरल गैस का आयात बढ़ने से बंदरगाहों पर एलएनजी टैंकरों और रिगैसिफिकेशन टर्मिनलों (लिक्विफाइड गैस को नेचुरल गैस में बदलने वाले टर्मिनल)के निर्माण के लिए घरेलू मांग पैदा होती है. इतना ही नहीं एलएनजी के आयात में वृद्धि से भारत में स्वच्छ बिजली की लागत भी कम हो सकती है. इससे नेशनल ग्रीन हाइड्रोजन मिशन में भी मदद मिल सकती है, क्योंकि ब्लू हाइड्रोजन फ्यूल बनाने के लिए एलएनजी का ही इस्तेमाल किया जाता है.[29]
| Product label | 2020 (in million US$) | 2021 (in million US$) | Growth (in %) |
| Mineral fuels, mineral oils and products of their distillation; bituminous substances; mineral waxes | 2,110.67 | 5,250.08 | 148 |
| Fertiliser | 595.98 | 773.54 | 31.50 |
| Animal or vegetable fats and oils and their cleavage products; prepared edible fats, animal or vegetable waxex | 293 | 494.13 | 68.65 |
| Salt; sulphur; earth and stone; plastering materials, lime and cement | 104.27 | 121.36 | 15.84 |
| Paper and paperboard; articles of paper pulp, of paper or of paperboard | 121.31 | 147 | 19.29 |
| Nuclear reactors, boilers, machinery and mechanical appliances; parts thereof | 84.05 | 100.24 | 19.26 |
| Iron and Steel | 99.60 | 140.13 | 40.70 |
| Rubber and articles thereof | 102.52 | 145.84 | 42.26 |
| Inorganic chemicals: organic or inorganic compounds of precious metals of rare-earth metals, or radioactive elements or of Isotopes | 125.19 | 125.89 | 0.50 |
| Total imports | $5,485.75 | $9,890.99 | 79.92% |
स्रोत : वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय, भारत सरकार[30]
चित्र 3 : 2022 और 2023 में रूस से प्रमुख आयात (यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद)[m]
| Product label | 2022 (in million US$) | 2023 (in million US$) | Growth (in %) |
| Mineral fuels, mineral oils and products of their distillation; bituminous substances; mineral waxes | 38,814.85 | 54,507.58 | 40 |
| Fertilisers | 3,047.35 | 2,071.43 | -32 |
| Animal or vegetable fats and oils and their cleavage products; prepared edible fats, animal or vegetable waxex | 1,004.11 | 1,309.00 | 30.36 |
| Natural or cultured pearls, precious or semi-precious stones, precious metals, metals clad | 1,350.31 | 1,185.08 | -12.24 |
| Iron and steel | 375.61 | 469.85 | 25 |
| Paper and paperboard; articles of paper pulp, of paper or of paperboard | 163.72 | 134.35 | -17.94 |
| Nuclear reactors, boilers, machinery and mechanical appliances; parts thereof | 187.44 | 85.41 | -54.53 |
| Salt; sulphur; earth and stone; plastering materials, lime and cement | 134.35 | 163.72 | -17.94 |
| Inorganic chemicals: organic or inorganic compounds of precious metals, of rare-earth metals, or radioactive elements or of Isotopes | 73.20 | 100.53 | 37.34 |
| Rubber and articles thereof | 57.01 | 11.70 | -78.48 |
| Total Imports | $46,212.71 | $61,431.24 | 32.93 |
स्रोत : वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय, भारत सरकार[31]
| Product label | 2020 (in million US$) | 2021 (in million US$) | Growth (in %) |
| Pharmaceuticals | 470 | 479.51 | 2.03 |
| Organic Chemicals | 267.38 | 231 | -13.61 |
| Coffee, Tea, Matte, spices | 103.02 | 94.19 | -8.57 |
| Fish and Crustaceans, Molluscs and other aquatic invertebrates | 83.08 | 119.98 | 44.2 |
| Iron and Steel | 137.88 | 239.82 | 73.94 |
| Nuclear reactors, boilers, machinery, and mechanical appliances; parts thereof | 227 | 302.45 | 33.25 |
| Electrical Machinery and equipment and parts thereof: Sound recorders and reproducers, television image and sound recorders and reproducers, and parts | 301.77 | 518.62 | 71.86 |
| Vehicles other than railway or tramway rolling stock and parts and accessories thereof | 88.27 | 127.97 | 44.17 |
| Cereals | 63 | 50.64 | -19.61 |
| Rubber and articles thereof | 37.64 | 55.08 | 46.33 |
| Plastic articles and thereof | 41.26 | 58.87 | 42.68 |
| Total exports | $2,655.52 | $3,254 | 44.62% |
स्रोत : वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय, भारत सरकार[32]
| Product label | 2022 (in million US$) | 2023 (in million US$) | Growth (in %) |
| Aircraft, spacecraft, and parts thereof | 15.72 | 69.69 | 330.65 |
| Pharmaceuticals | 429.59 | 386.67 | -9.99 |
| Fish and Crustaceans, Molluscs and other aquatic invertebrates | 138.74 | 149.42 | 7.70 |
| Coffee, Tea, Matte, spices | 117.90 | 100.70 | -14.58 |
| Inorganic chemicals: organic compounds of precious metals, of rare-earth metals, or radioactive elements or of isotopes | 145.22 | 210.44 | 44.91 |
| Organic chemicals | 307.05 | 336.38 | 9.55 |
| Optical, photographic cinematographic measuring, checking precision, medical or surgical inst. And apparatus parts and accessories thereof; | 75.44 | 146.56 | 86.31 |
| Electrical machinery and equipment and parts thereof; sound recorders and reproducers; television image and sound recorders and reproducers, and parts. | 121.09 | 347.79 | 187.21 |
| nuclear reactors, boilers, machinery and mechanical appliances; parts thereof | 320.92 | 650.27 | 102.63 |
| Iron and Steel | 159.06 | 282.37 | 77.53 |
| Ceramic products | 63.11 | 134.19 | 112.62 |
| Total exports | $3,146.95 | $4,261.31 | 35.41% |
स्रोत : वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय, भारत सरकार[33]
ऊर्जा के अलावा भी कुछ ऐसे क्षेत्र हैं, जहां यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद रूस को भारत का निर्यात बढ़ा है. इसमें स्मार्टफोन[n] (2022 में 10 मिलियन डॉलर से बढ़कर 2023 में 166 मिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया[34]), कंप्यूटर (2022 में 1 मिलियन डॉलर से कम था और 2023 में बढ़कर 26 मिलियन डॉलर हुई[35]), इलेक्ट्रॉनिक मशीनरी और पार्ट्स (2023 में 121 मिलियन डॉलर से बढ़कर 347.79 मिलियन डॉलर), न्यूक्लियर रिएक्टरों के निर्माण में इस्तेमाल होने वाले उपकरण (2022 में 320.92 मिलियन डॉलर से बढ़कर 2023 में 650.27 मिलियन डॉलर हो गया). 2022 से 2023 के बीच भारत से रूस को निर्यात में करीब 35 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई, लेकिन खास बात ये है कि इस वृद्धि के बावज़ूद भारत के टॉप-25 निर्यात देशों में रूस शामिल नहीं है.[36] रूस 28वें स्थान पर है. ये दिखाता है कि भारत और रूस के बीच व्यापार और निवेश संबंधों को बढ़ाने की अभी काफ़ी गुंजाइश है.
खास बात ये है कि पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों की वजह से रूस ने दूसरे देशों के लिए अपने यहां प्रवेश के लिए रास्ता आसान किया है. भारतीय कंपनियां इसका फायदा उठा सकती थीं लेकिन अफसोस की बात ये है कि भारतीय कंपनियां इसका लाभ उठाने में नाकाम दिख रही हैं. वो उस रफ्तार से आगे नहीं बढ़ी, जो कारोबार बढ़ाने के लिए ज़रूरी था, खासकर ऑटोमोबाइल क्षेत्र में. यूक्रेन युद्ध के बाद रूसी बाज़ार से जापानी, दक्षिण कोरियाई और यूरोपीय ऑटो कंपनियां बाहर निकल गईं. भारतीय कंपनियां इस मौके की भुनाने से चूक रही हैं और चीनी ऑटोमोबाइल कंपनियां इसका फायदा उठा रही हैं.[37]
हालांकि, भारत को एक झटका ये भी लगा कि कुछ निजी भारतीय कंपनियां भी पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों की चपेट में आ गए. उदाहरण के लिए, यूक्रेन युद्ध की शुरुआत के बाद से गैटिक शिप मैनेजमेंट रूसी कच्चे तेल के सबसे बड़े ट्रांसपोर्टरों में से एक बन गया. एक वक्त ऐसा भी था जब गैटिक शिप के पास 60 से ज़्यादा पेट्रोलियम टैंकर थे. इनकी कीमत करीब 1.5 अरब डॉलर थी. हालांकि कुछ समय बाद गैटिक ने अपने ज़्यादातर शिप वापस ले लिए. अपना संचालन दुबई से शुरू कर दिया. गैटिक मैनेजमेंट के बेड़े के अधिकांश जहाज टर्की में स्थित कंपनियों में ट्रांसफर कर दिए गए. कंपनी ने इसके लिए "मीडिया द्वारा पैदा किए गए विवादों" को जिम्मेदार ठहराया.[38],[39]
पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों की वजह से 2014 के बाद से इन देशों की कंपनियां रूस को छोड़कर चली गईं थीं. इसकी वजह से रूसी बाज़ार में जो खालीपन आया, उसने भारतीय कंपनियों के लिए यहां व्यापार शुरू करने और फैक्ट्रियां स्थापित करने का अवसर पैदा किया, खासकर ऑटोमोबाइल और कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे सेक्टर में. रूस में दुर्लभ धातुओं के भी महत्वपूर्ण भंडार हैं. भू-विज्ञान, नई खोजों और मॉर्र्न टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने पर भारत और रूस के बीच पहले ही चर्चा हो चुकी है.[40]
रूस में व्यापार करने के लिए अच्छा माहौल है. बिजली सस्ती है. कच्चा माल भी कई देशों की तुलना में सस्ता है. स्पेशल इकोनॉमिक ज़ोन में निवेश करने पर टैक्स में कुछ रियायत भी मिलती है.[41] रूस छोटे और मध्यम उद्योगों की स्थापना के लिए सब्सिडी भी देता है. निवेश की प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए 'सिंगल विंडो सर्विस' भी शुरू की है[42] 2023 में रूस ने भारतीय निवेशकों को लुभाने के लिए एक 'गोल्डन वीज़ा' योजना शुरू की. इस योजना के तहत निवेशक और उनके परिवार को रूस में स्थायी निवास का ऑफर दिया जाता है. इस योजना के तहत निवेश की रकम अलग-अलग है. जैसे कि अगर आप सामाजिक परियोजनाओं में निवेश करना चाहते हैं तो न्यूनतम राशि 215,000 डॉलर और रियल एस्टेट में निवेश के लिए ये रकम 715,000 डॉलर के बीच है. हालांकि ये रकम भी क्षेत्र के अनुसार अलग हो सकती है. उदाहरण के लिए, सुदूर पूर्व रूस में रियल एस्टेट निवेश का मूल्य 360,000 डॉलर है.[43] हालांकि इस योजना से बड़ी भारतीय कंपनियों शायद आकर्षित ना हों, लेकिन मध्यम और छोटे उद्योगों के लिए इस योजना के तहत रूस में कारोबार शुरू करना एक बेहतर विकल्प हो सकता है.
भारत-रूस द्विपक्षीय व्यापार को आसान बनाने के लिए रुपया-रूबल करेंसी एक्सचेंज सिस्टम बनाने की कोशिश भी हुई, लेकिन 2023 में ये वार्ता नाकाम हो गई थी.[44] कहा जा रहा है कि इस बातचीत को फिर से शुरू किया जा रहा है. अगर ऐसा होता है तो भारतीय कंपनियों को रूस में निवेश करने के लिए प्रोत्साहन मिलेगा.[45]
इसके अलावा, यूरेशियन इकोनॉमिक यूनियन [o] के साथ प्रस्तावित मुक्त व्यापार समझौते पर भी जल्द कोई फैसला हो सकता है. हालांकि इस पर बातचीत अभी शुरू होनी है. अगर ये समझौता हो जाता है तो सिमेट्रिकल द्विपक्षीय टैरिफ उदारीकरण सुनिश्चित किया जा सकेगा. इससे भारत से रूस को निर्यात बढ़ सकता है. इतना ही नहीं रूस में भारतीय निवेश को और बढ़ावा मिल सकता है.[46]
हालांकि, भारत सरकार पूरी कोशिश कर रही है कि भारतीय कंपनियां रूस में कारोबार बढ़ाएं. इसके लिए नियमों को सरल बनाया जा रहा है. 'इंवेस्ट इंडिया' जैसे मंचों के ज़रिए सहयोग बढ़ाया जा रहा है. सरकार की कोशिश है कि रूस के सुदूर पूर्व इलाकों तक ये कंपनियां जाएं, लेकिन निजी क्षेत्र की भारतीय कंपनियां अभी इसे प्राथमिकता नहीं दे रही हैं. यही वजह है कि रूस के सुदूर पूर्व के विकास के लिए 1 अरब डॉलर की जो क्रेडिट लाइन सुविधा दी गई है, उसका भी पूरा इस्तेमाल नहीं हो सका है.
रूस में भारतीय निजी क्षेत्र की कंपनियों के पास महत्वपूर्ण उत्पादन सुविधाएं नहीं हैं. इसकी एक वजह भारतीय बाजारों की संरचना है. भारतीय बाज़ार कीमत को लेकर बहुत संवेदनशील है.[47] इसका साइड इफेक्ट ये होता है कि भारतीय कंपनियां रूस में टिके रहने के लिए सही दीर्घकालिक अनुमान नहीं लगा पाती.
ऐतिहासिक रूप से भी देखें तो भारतीय कारोबारी हमेशा से पश्चिमी बाज़ार पर ध्यान देते हैं. यूरेशियाई बाजार को हमेशा से नजरअंदाज़ किया गया है.[48]उदाहरण के लिए, भारतीय आईटी सेक्टर को ही लीजिए. इंडियन आईटी कंपनियों ने इक्कीसवीं सदी में काफ़ी तरक्की की. सस्ते दाम पर अपनी बेहतर सर्विसेज से पश्चिमी बाज़ार को फायदा पहुंचाया, खुद भी मुनाफा कमाया लेकिन रूस में भारतीय आईटी कंपनियों की मौजूदगी ना के बराबर है. ये कंपनियां रूसी बाज़ार ज़ोखिम भरा मानती हैं.[49]
इसके अलावा एक मुश्किल ये है कि रूस के सुदूर पूर्व इलाके में कारोबार करना भारतीय कंपनियों को बहुत फायदेमंद नहीं लगता. इसके तीन मुख्य कारण हैं. पहला, रूस में रेल से माल ढुलाई की लागत बहुत ज़्यादा है. इससे यूरोपीय रूस और रूस के पूर्व के बाज़ारों तक सामान ले जाना महंगा पड़ता है.[50] दूसरा, जापान और दक्षिण कोरिया ने रूस पर प्रतिबंध लगा दिया है. इसका मतलब ये हुआ कि रूस में बने सामान को इन देशों में आसानी से नहीं बेचा जा सकता है.[51] तीसरा, चीन के उत्तरपूर्वी बाज़ार में भी माल बेचना मुश्किल होगा क्योंकि रूस के सुदूर पूर्वी इलाके में भारतीय कंपनियों द्वारा उत्पादित सामान महंगा पड़ेगा. ऐसे में वहां के लोग स्थानीय उत्पाद खरीदना ही पसंद करेंगे. ऐसे में भारतीय कंपनियों के सामने अपना सामान बेचने के लिए रूस या भारत का ही बाज़ार रह जाएगा. ज़ाहिर है इस सूरत में रूस में उत्पादन करना भारतीय कंपनियों के लिए खास फायदेमंद नहीं होता. इसके अलावा रूस के पूर्वी इलाके में श्रमिकों की कमी और मज़दूरी भी ज़्यादा है.[52] इससे इन कंपनियों को दूसरों की अपेक्षा तुलनात्मक लाभ भी कम मिलता है.[53]
भारत को अगर दूसरे देशों की तुलना में प्रतिस्पर्धात्मक लाभ हासिल करना है तो घरेलू उद्योग में वृद्धि होना ज़रूरी है. इसका मतलब ये है कि भारत की औद्योगिक क्षमताओं में सुधार होना चाहिए, लेकिन इसके लिए भारत को भी अपने यहां सुधार करने होंगे. जैसे सकल स्थिर पूंजी निर्माण में निजी गैर-वित्तीय निगमों की हिस्सेदारी बढ़ानी होगी. ये हिस्सेदारी वित्त वर्ष 2022 में 36.3 प्रतिशत से घटकर 2023 में 36.2 प्रतिशत हो गई.[54] निवेश में परिवारों की हिस्सेदारी भी बढ़ानी होगी. ये एक साल में 41.4 प्रतिशत से घटकर 40.5 प्रतिशत हो गई.[55] इसके अलावा श्रमिकों की प्रशिक्षण पर ध्यान देना होगा. फिर चाहे इसके लिए श्रम कानूनों में संशोधन ही क्यों ना कर पड़े. ऐसा करने से ही मैन्युफेक्चर सेक्टर को बढ़ावा मिल सकता है. इसके अलावा भ्रष्टाचार संबंधी मुद्दों को हल भी निकालना होगा.[56]
कनेक्टिविटी अब भी एक बड़ी समस्या बनी हुई है. हालांकि जब प्रस्तावित पूर्वी समुद्री गलियारे का काम पूरा हो जाएगा तो सेंट पीटर्सबर्ग से मुंबई के बीच लगने वाला मौजूदा 40 दिन का समय कम होकर 24 दिन होने की उम्मीद है. फिलहाल माल की ढुलाई के लिए मल्टीमॉडल तरीके इस्तेमाल किए जा रहे हैं. आईएलएसटीसी का उपयोग करने के लिए चाबहार और बंदर अब्बास के बंदरगाहों पर कार्गो को कई बार उतारने और चढ़ाना पड़ता है. इसके बाद सामान को सड़क के रास्ते फिर ईरान के ही बंदर-ए-अंजली बंदरगाह में ले जाया जाता है. फिर इसे कैस्पियन सागर के रास्ते रूस के अस्त्रखान पोर्ट पहुंचाया जाता है. इस रूट से सामान ले जाने में एक मुसीबत ये है कि अमेरिका ने ईरान पर भी प्रतिबंध लगा रखे हैं. इसलिए कई ग्लोबल शिपिंग इंश्योरेंस कंपनियां इस रूट से होकर गुज़रने वाले सामान की बीमा नहीं करतीं.[57] चूंकि निजी कंपनियां इतना ज़ोखिम नहीं उठाना चाहती और इस तरह की मुश्किलों से माल की कीमत भी बढ़ जाती है. जो बाज़ार कीमतों को लेकर संवेदनशील होते हैं, निजी कंपनियों को वहां काम करने के लिए प्रोत्साहित करना बहुत मुश्किल होता है.
कुछ अन्य कारण भी हैं, जो निजी कंपनियों के रूस जाने में रुकावट पैदा कर रहे हैं. एक तो ये कि इन कंपनियों को रूस में मौजूद अवसरों के बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं है. भाषा भी एक बड़ी बाधा है. हालांकि, रूस का व्यापारिक माहौल भारतीय कंपनियों के लिए कुछ चुनौतियां भी पेश करती हैं. रूस में संघीय और क्षेत्रीय स्तरों पर उद्योग और श्रम को लेकर अलग-अलग कानून हैं. प्रवासी श्रमिकों के लिए वर्क परमिट हासिल करना भी काफ़ी जटिल है.[58]
रूस में सरकारी स्वामित्व वाली कंपनियों का प्रभाव अधिक है. ज़्यादा व्यवसायों पर सरकार का एकाधिकार है. निजी कंपनियों के कामकाज में सरकार की सख़्त निगरानी रहती है. इसके अलावा, पारदर्शिता की कमी, कमज़ोर संपत्ति अधिकार और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे रूस में निवेश को जटिल बनाते हैं. रूस में निजी सम्पति का अधिकार भारत जितना मज़बूत नहीं है.[59]
अगर कोई विदेशी कंपनी रूस में कारोबार करना चाहती है तो वहां अपना प्रतिनिधि ऑफिस खोलने के लिए उसे या तो ज्वाइंट स्टॉक कंपनी स्थापित करनी होती है, या किसी रशियन फर्म से साझेदारी करनी होती है.[60] हालांकि भारतीय कंपनियां किसी ना किसी रूसी फर्म के साथ मिलकर काम करती हैं, क्योंकि इससे उनका ज़ोखिम कम होता है. इसके बावज़ूद कुछ चुनौतियां बनी रहती हैं. बड़े पैमाने पर व्यापार करने के लिए जो क्रॉस-बॉर्डर लेनदेन करना होता है, उसकी लागत बहुत ज़्यादा है. इसके अलावा पूंजी को रूस से बाहर ले जाने पर बैंक ऑफ रशिया ने भी कई प्रतिबंध लगा रखे हैं.[61] रूस में उच्च ब्याज दर की वजह से लोन लेना भी महंगा है. इसका अर्थ ये हुआ कि भारतीय कंपनियों को भारतीय बैंकों से पूंजी हासिल करनी होगी लेकिन जब उसे रूबल में बदला जाएगा तो उन्हें रेवेन्यू का नुकसान हो सकता है.
ये बात सही है कि भारत और रूस द्विपक्षीय व्य़ापार बढ़ाने के इच्छुक हैं, लेकिन कारोबार उस रफ्तार से नहीं बढ़ रहा है, जिसकी उम्मीद थी. ऐसे में भारत सरकार को आर्थिक संबंधों को प्रोत्साहित करने के लिए कुछ अतिरिक्त प्रयास करने होंगे. भारत सरकार को ऐसे सिस्टम विकसित करना होगा, जो भारतीय कंपनियों के लिए रूस में निवेश और व्यापार करना आसान बना सके. हालांकि उसने वोस्ट्रो अकाउंट खोलने की मंजूरी दी है, लेकिन इसके अलावा सरकार ऐसे छोटे वित्तीय संस्थानों की स्थापना कर सकती है जो उन करेंसीज़ को प्रोसेस कर सकें, जिन्हें अब तक इजाज़त नहीं मिली है. उन छोटे उद्योगों और स्टार्टअप्स को रूस में कारोबार शुरू करने के लिए लोन की सुविधा दी जा सकती है, जिनकी पश्चिमी देशों में बहुत कम उपस्थिति है. रूस चाहता है कि पश्चिमी देशों की कंपनियों और उनके लगाए प्रतिबंधों से रूसी बाज़ार में जो खालीपन पैदा हुआ है, उसे भारतीय कारोबारी भरें. ऐसे में भारत सरकार को रूस के लिए निर्यात बढ़ाने के तरीकों पर रणनीति बनानी चाहिए.[62] भारत को रूस में उन क्षेत्रों में निवेश बढ़ाना चाहिए, जिनमें विकास की संभावनाएं हैं. जैसे कि इलेक्ट्रॉनिक्स, कंज्यूमर गुड्स और फार्मास्यूटिकल.[63],[64],[65]
इसके अलावा दोनों देशों के लोगों के बीच आदान-प्रदान भी बढ़ाना चाहिए. छात्रों, युवा नेताओं और कारोबारियों को एक-दूसरे के देशों में भेजना चाहिए, जिससे वो भारत और रूस को बेहतर ढंग से समझें और आपसी समझ विकसित हो. इतना ही दोनों देश कोई ऐसा कोर्स भी चला सकते हैं, जहां से बताया जाए कि रूस में व्यापार कैसे किया जा सकता है.
आखिर में ये भी ज़रूरी है कि भारत और रूस एक-दूसरे के यहां पर्यटन क्षेत्र का लाभ उठाएं. पर्यटन उद्योग पर पश्चिमी देशों के प्रतिबंध का कोई असर नहीं पड़ता. भारत के टूरिस्ट ऑपरेटरों को रूस के पर्यटन स्थलों को बढ़ावा देना चाहिए. उसके अलावा रूस के मेडिकल और एजुकेशनल टूरिज्म के बारे में बताना चाहिए. पर्यटन क्षेत्र में बढ़ोत्तरी से भारत और रूस के नागरिकों के बीच बेहतर संबंध बनेंगे और भावनात्मक जुड़ाव भी बढ़ेगा. आगे चलकर इसका फायदा द्विपक्षीय व्यापार में मिल सकता है.
यूक्रेन युद्ध पर भारत की प्रतिक्रिया काफ़ी संतुलित और संयमित थी. यूक्रेन पर आक्रमण और हिंसा की निंदा करने के बावज़ूद भारत ने रूस के साथ अपने संबंधों को बनाए रखा. पश्चिमी देशों द्वारा रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों और इन देशों की कंपनियों के बाहर निकलने के कारण रूसी बाज़ार में एक खालीपन आया है. भारतीय निजी कंपनियों के पास इस बाज़ार को भुनाने का मौका है. रूस के बाज़ार का अभी पूरी तरह दोहन नहीं हुआ है. भारतीय कंपनियों के लिए काफी गुंजाइश है. अगर भारत इस मौके का फायदा उठा सके तो फिर वो यूरेशियन देशों में व्यापार में एक बड़ी भूमिका निभा सकता है. इतना ही नहीं इसके सहारे वो अपनी कुछ अन्य महत्वाकांक्षाएं भी पूरी कर सकता है, जैसे कि मध्य एशिया के बाज़ारों में अपनी उपस्थिति को और मज़बूत करना.
अगर भारत और रूस की सरकारों को घरेलू औद्योगिक चुनौतियों का समाधान करना है तो उन्हें अपने देशों के व्यापारियों में ज़ोखिम लेने की भावना को जगाना होगा. लेकिन इसके लिए दोनों सरकारों को खुद भी ऐसे कदम उठाने होंगे, ऐसा सिस्टम विकसित करना होगा, जिससे निजी कंपनियां व्यापार और निवेश करने के लिए प्रोत्साहित हों. अगर द्विपक्षीय व्यापार बढ़ेगा तो दूसरी चुनौतियों से निपटने में मदद मिलेगी, जैसे कि कनेक्टिविटी और उत्पादन के लिए बाज़ारों की कमी. रूस के बाज़ार में अभी जो अवसर पैदा हुए हैं, भारत को उसे ग्रेटर यूरेशिया क्षेत्र में अपनी रणनीतिक महत्वाकांक्षाओं को आगे बढ़ाने के रूप में भी देखना चाहिए. रूस में चीन अपनी भू-आर्थिक क्षमताओं को मज़बूत कर रहा है. इसका मुकाबला करने के लिए रूसी बाज़ार में भारतीय व्यापार बढ़ाना ज़रूरी है. इन लक्ष्यों को हासिल करने के लिए भारत सरकार को अपने निजी क्षेत्र की हर संभव सहायता करनी चाहिए.
रजोली सिद्धार्थ जयप्रकाश ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में रिसर्च असिस्टेंट हैं.
इस इश्यू ब्रीफ का लेखक महत्वपूर्ण जानकारियां देने के लिए एंबेसडर वेंकटेश वर्मा और अरुण प्रकाश का शुक्रिया अदा करता है.
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Rajoli Siddharth Jayaprakash is a Junior Fellow with the ORF Strategic Studies programme, focusing on Russia’s foreign policy and economy, and India-Russia relations. Siddharth is a ...
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