प्रस्तावना
विश्व में लगभग 970 मिलियन लोग किसी न किसी प्रकार के मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी स्थिति के साथ रहते हैं.[1] मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं के कारण न केवल शारीरिक बल्कि भावनात्मक वेल-बिइंग यानी कल्याण प्रभावित होता है. इसी प्रकार इसकी वजह से कुछ मामलों में दिव्यांगता और अकाल मृत्यु भी हो सकती है. इन बीमारियों में एक्सेसिव एंग्जायटी यानी अत्यधिक चिंता, बायपोलर डिसऑर्डर यानी दोध्रुवी विकार, अवसाद, स्किजोफ्रीनिया अर्थात एक प्रकार का पागलपन और पोस्ट-ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD) यानी किसी हादसे के बाद होने वाला तनाव संबंधी विकार शामिल है.[2] भारत के राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वे (NMHS) 2015-16 में अनुमान लगाया गया था कि देश के 10.6 फीसदी वयस्क मानसिक स्वास्थ्य संबंधी विकार का सामना कर रहे हैं.[3] COVID-19 महामारी की वजह से मोबिलिटी यानी गतिशीलता पर लगी पाबंदियों की वजह से सामाजिक एकाकीपन में हुए इज़ाफ़े के कारण भी मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति बिगड़ी थी. इसी को लेकर "लोनलीनेस पैंडेमिक" यानी "एकाकीपन महामारी" को लेकर चिंताएं भी बढ़ी हैं.[4]
मानसिक स्वास्थ्य का प्रबंधन
फार्मोकोलॉजिकल यानी औषधीय तथा सायकोलॉजिकल यानी मनोवैज्ञानिक हस्तक्षेपों के मिश्रण से किया जाता है. भारत में अब भी इस मामले में काफ़ी कमियां मौजूद हैं. इसी वजह से यहां प्रभावकारी चिकित्सा में रिसर्च एंड डेवलपमेंट (R&D) यानी शोध और अनुसंधान को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है जो टार्गेटेड रेस्पॉन्सेस यानी लक्षित प्रतिक्रियाओं को हासिल कर सके.[5] यह ब्रीफ इस कमी पर प्रकाश डालते हुए इसे दूर करने की फार्मास्यूटिकल यानी औषधिय और बायोटेक्नोलॉजी अर्थात जैव प्रौद्योगिकी उद्योग की महत्वपूर्ण भूमिका को उजागर करता है.
NMHS 2015-16 के अनुसार एक अनुमान है कि भारत में मानसिक स्वास्थ्य संबंधी बीमारियों के उपचार में 70-92 फीसदी की कमी है. इसके प्रमुख कारण जागरुकता का अभाव, विशेषज्ञों की सीमित संख्या और संसाधनों की कमी माना जाता है
भारत में उपचार के दौरान में मौजूद कमियां
NMHS 2015-16 के अनुसार एक अनुमान है कि भारत में मानसिक स्वास्थ्य संबंधी बीमारियों के उपचार में 70-92 फीसदी की कमी है. [a],[6] इसके प्रमुख कारण जागरुकता का अभाव, विशेषज्ञों की सीमित संख्या और संसाधनों की कमी माना जाता है.[7] इसके अलावा इस कमी को बढ़ाने में आवश्यक चिकित्सकीय सुविधाओं तक लोगों की पहुंच में आने वाली परेशानी, ग्रामीण इलाकों में लॉजिस्टिकल यानी आवागमन और अस्पताल तक पहुंचने की व्यवस्था का अभाव, मनोचिकित्सकीय काउंसिलिंग जैसी अतिरिक्त सहायक सुविधाओं का अभाव अहम भूमिका अदा करता है. इसके अलावा मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ा सामाजिक कलंक उपचार की राह में रोड़ा बन जाता है.[8] इन सारी बातों की वजह से मरीज चिकित्सकीय सहायता हासिल करने के लिए जल्दी से हिम्मत नहीं जुटा पाता.[9] सबसे पहली बात तो यह है कि एक अनुमान के अनुसार भारत में मनोचिकित्सकों की संख्या बेहद कम यानी 9,000 या प्रति एक लाख नागरिकों पर 0.75 ही है, जबकि वैश्विक स्तर पर यह औसतन 1.7 होती है.[10] उच्च आय वाले देशों में यह संख्या 8.6 की ऊंचाई को छू जाती है.[11],[12] मानसिक स्वास्थ्य कार्यबल के एक और अहम साझेदार, क्लीनीकल सायकोलॉजिस्ट यानी नैदानिक मनोवैज्ञानिकों की संख्या उपर दिए गए आंकड़ों से आधे से भी कम है. [b],[13]
मानसिक विकार की स्थायी प्रकृति होती है. अत: इसकी वजह से आमतौर पर ऐसे परिवारों पर उपचार के ख़र्च का अत्यधिक बोझ पड़ता है जो बीमा के दायरे से बाहर होते हैं.[14] अनेक मरीज मानसिक बीमारी को हाइपरटेंशन अथवा मधुमेह जैसी शारीरिक बीमारी की तुलना में छोटा मानते हैं. ऐसे में वे इसका उपचार करवाना ज़रूरी नहीं समझते. एक और चुनौती होती है, यह चुनौती हैलुसिनेशंस यानी मतिभ्रम का शिकार हो चुके मरीजों से संबंधित होती है. वे इसे मानसिक बीमारी का लक्षण ही नहीं मानते और इसी वजह से वे उपचार संबंधी हस्तक्षेप से बचते रहते हैं.[15]
जो मरीज उपचार लेने की कोशिश भी करते हैं उन्हें डायग्नोसिस यानी रोग निदान संबंधी चुनौतियों अथवा औषधिय हस्तक्षेपों के प्रभाव संबंधी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. अधिकांश मनोचिकित्सक मरीज की स्वास्थ्य संबंधी स्थितियों का निदान करने के लिए वर्णनात्मक पहलूओं पर ही ध्यान देते हैं.[16] वे डाग्नोस्टिक एंड स्टैटिस्टिकल मैन्यूअल ऑफ मेंटल डिसऑर्डर्स (DSM) पर निर्भर होते हैं. क्लीनिशियनस यानी निदान विशेषज्ञों के बीच लोकप्रिय होने के बावजूद DSM की जटिल मानवीय बर्ताव को बहुत ज़्यादा सरल बनाकर पेश करने के लिए आलोचना की जाती है. इसमें मौजूदा स्थितियों पर अत्यधिक बल दिया जाता है और सांस्कृतिक रूप से विविध आबादी (क्योंकि यह मुख़्यत: यूनाइटेड स्टेट्स में तैयार किया गया था और यह वहां के हालातों पर ही आधारित है) को लेकर इसकी समझ सीमित है.[17] मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े प्रत्येक मामले की प्रकृति सब्जेक्टिव यानी व्यक्तिपरक होती है, जिसमें डायग्नोसिस यानी निदान विचारों और भावनाओं को समझने तथा व्यक्तियों के बिहेवियरल पैटर्न्स यानी बर्ताव संबंधी तरीकों के किया जाता है. ऐसे में क्लीनिशियंस क्षणिक तनावों की वजह से पैदा होने वाले अस्थायी मानसिक स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों जैसे नौकरी चले जाना और स्थायी अथवा दीर्घकालिक मानसिक स्वास्थ्य संबंधी स्थितियों के बीच फ़र्क नहीं कर पाते हैं.[18]
एक और रुकावट औषधिय हस्तेक्षपों की विभिन्न प्रभावकारिता है. मानसिक स्वास्थ्य की स्थितियों को आमतौर पर औषधिय हस्तक्षेपों एवं मनोवैज्ञानिक समुपदेशनों के मिश्रण से ही प्रबंधित किया जाता है.[19] लेकिन मरीज के लिए लिखी या निर्धारित की गई औषधि की सफ़लता की गारंटी नहीं होती. यह बात विशेष रूप से एंटीडेप्रेसेंट्स यानी निराशा, उदासी, विषाद आदि दूर करने वाली दवा पर ख़ास तौर पर लागू होती है. इसी वजह से इन औषधियों को ‘हिट ऑर मिस’ स्ट्रैटेजिस् कहा जाता है.[20] बेहद ज़्यादा अवसाद का शिकार हो चुके मरीजों में मौजूदा तौर पर उपलब्ध औषधियों का या तो कोई असर नहीं होता या फिर मरीजों में इनका प्रतिकार करने की क्षमता होती है.[21] एक और प्रमुख सहायक कारक यह है कि वर्तमान में उपलब्ध अधिकांश मानसिक स्वास्थ्य औषधियों का विकास 50 वर्ष पूर्व किया गया था.[22] उसके बाद हुआ विकास मुख़्यत: सहिष्णुता बढ़ाने या फिर इन औषधियों के साइड इफेक्ट्स को ध्यान में रखकर किया गया है. अनेक मानसिक स्वास्थ्य संबंधी विकारों का उपचार ड्रग थेरेपिज के मिश्रण से किया जाता है, ऐसे में इस दृष्टिकोण में बेहद कम विशेषता या विशिष्टता होती है.[23] इतना ही नहीं औषधियों की गुणवत्ता के साथ होने वाले समझौतों की वजह से भी प्रभावकारिता पर असर पड़ता है. भारतीय बाज़ार में जेनेरिक औषधि निर्माताओं की हिस्सेदार काफ़ी बड़ी है. लेकिन इनके द्वारा निर्मित औषधियों में या उनकी जैवउपलब्धता में शरीर को सक्रियता के साथ प्रभावित करने वाली दवा के हिस्से में वह बात नहीं होती जो उनके समकक्ष ब्रांडेड (स्टैंर्डड) की ओर से तैयार की जाने वाली औषधियों में देखी जाती है.[24] फिजिशियंस अक्सर जेनेरिक डोसेज की ट्राइटेटिंग [c] यानी मात्रा कम-ज़्यादा करते हुए देखे जाते हैं. इसका कारण यह है कि वे यह चाहते है कि मरीज पर औषधियों के इस मिश्रण का ज़्यादा से ज़्यादा असर दिखाई दे.[25]
मानसिक स्वास्थ्य संबंधी विकारों के प्रबंधन एवं उपचार में R&D की धीमी गति के लिए पैथोफिजियोलॉजी (d) से जुड़ी चुनौतियों को मुख्यत: ज़िम्मेदार ठहराया जाता है. इसके अलावा रक्त-बाधाओं को पार करने वाली औषधियों के निर्माण और नई औषधि के विकास की पेचीदा प्रक्रिया भी नई औषधियों के विकास में बाधक हैं. इसके अलावा बड़ी मात्रा में मिलने वाली असफ़लता और R&D पर होने वाला मोटा ख़र्च भी औषधि निर्माता कंपनियों को रोकने का काम करता है.[26] किसी भी दवा की प्रभावकारिता का आकलन करने की राह में विभिन्न लक्षणों के कारण दिक्कतें पैदा होती हैं. दूसरा कारण यह है कि प्रभावकारिता को समझने के लिए कोई विशेष जीवविज्ञान तय नहीं है.[27] इसी प्रकार जटिल न्यूट्रल पाथवेज् और बीमारी की स्थितियों को लेकर समझ का अभाव भी विशेष लक्षणों के लिए थेरेपी यानी उपचारों की राह को मुश्किल बनाता है.[28]
बदलाव के अवसर
बेहतर औषधियों का उत्पादन करने के लिए शोध एवं अनुसंधान (R&D) की गति को बढ़ाने के बेहतरीन अवसर उपलब्ध है. 21वीं सदी में कैंसर, डिजनरेटिव यानी अपजनन सम्बन्धी डिसऑर्डर्स और संक्रामक बीमारियों जैसी घातक स्थितियों के लिए औषधीय उपचार में बहुत तेजी से प्रगति देखी गई है.[29] इन विकृतियों के पीछे मौजूद सेल्यूलर यानी कोशीय तथा मॉलिक्युलर अर्थात आणविक तंत्र का पता लगाने की राह में आने वाली रूकावटों को दूर करने के लिए विस्तृत शोध अध्ययन किए गए हैं, ताकि इनसे निपटने के लिए औषधियों का विकास किया जा सके.[30] मानसिक स्वास्थ्य विकारों के लिए इसी तरह के अध्ययन किए जाने पर अधिक लक्षित उपचार की दिशा में आगे बढ़ा जा सकता है.[31] क्लीनिकल यूज यानी नैदानिक उपयोग की संभावना वाली बेसिक रिसर्च एक्टिविटीज अर्थात मूल शोध गतिविधियों में ज्ञान की कमी को उद्योगों के साथ साझेदारी करते हुए न्यूनतम किया जा सकता है.
घरेलू शोध और अनुसंधान (R&D) के चलते मधुमेह, कैंसर, लीशमैनियासिस (कालाज़ार) और मलेरिया जैसी स्थितियों के लिए औषधियों का निर्माण किया जा चुका है. इसी प्रकार का सहयोग मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के लिए भी हासिल किया जा सकता है.
जेनेरिक औषधि उत्पादन क्षमताओं ने भारत को विश्व का अग्रणी जेनेरिक औषधि आपूर्तिकर्ता भले ही बना दिया हो लेकिन इन औषधियों के निर्माण में लगने वाले एक्टिव फार्मास्यूटिकल इनग्रेडिएंट्स यानी सक्रिय औषधि सामग्री आमतौर पर चीन से ही आती है. [e],[32] भारत को यदि स्पर्धात्मक बने रहना है तो उसे अनूठी औषधियों के विकास में आगे बढ़ना होगा. चीन ने अनूठी औषधियों के उत्पादन में काफ़ी अच्छा प्रदर्शन किया है और अकेले 2023 में ही उसने 30 नई औषधियों का उत्पादन शुरू कर दिया है.[33] भारत को भी इसी प्रकार के ज़ोख़िम भरे और नवाचार से युक्त कदम उठाने होंगे, ताकि वह वैश्विक और घरेलू मांग की ज़रूरतों को पूरा कर सके. एक अनुमान है कि 2030 तक भारत का उभरता जैव तकनीक उद्योग 300 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच जाएगा. ऐसे में भारतीय जैव तकनीक उद्योग फार्मास्यूटिकल क्षेत्र में कोलैबोरेटिव प्रोजेक्ट्स यानी साझेदारी वाले परियोजनाओं पर काम करने के लिए बेहतर स्थिति में है इस स्थिति का लाभ उठाकर वह मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में बायोलॉजिकली यानी जय हो विज्ञान के हिसाब से प्रासंगिक उत्पादों का निर्माण कर सकता है.[34]
घरेलू शोध और अनुसंधान (R&D) के चलते मधुमेह, कैंसर, लीशमैनियासिस (कालाज़ार) और मलेरिया जैसी स्थितियों के लिए औषधियों का निर्माण किया जा चुका है.[35] इसी प्रकार का सहयोग मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के लिए भी हासिल किया जा सकता है. इसके लिए संबद्ध क्षेत्र जैसे नैनोटेक्नोलॉजी का उपयोग किया जा सकता है, ताकि ड्रग डिलीवरी यानी औषधि वितरण की प्रक्रिया को बढ़ाया जा सके. इसके अलावा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का सहयोग लेकर प्रिसिजन साइकियाट्री यानी सटीक मनोचिकित्सा के लिए सहयोग लिया जा सकता है. (यह एक नया क्षेत्र है जो डाटा साइंस, कंप्यूटेशनल साइंस और AI के कारण तेज़ी से उभरा है. इसमें बायोमार्कर्स को विकसित करने के लिए लार्ज बायोलॉजिकल डेटाबेस का उपयोग किया जाता है).[36] बायोमार्कर्स की सहायता से मानसिक स्वास्थ्य विकारों की स्थिति की शिनाख़्त की जाती है और विकारों, विशेष कर न्यूरोडिजनरेटिव की प्रगति पर नज़र रखी जा सकती है. सटीक मनोचिकित्सा से उपचार को अधिक लक्षित किए जाने की उम्मीद है. इसी तरह जिनोमिक्स में होने वाली प्रगति से उपचार में भी सुधार आने की संभावना है अनेक विकारों के लिए मल्टीपल जींस ज़िम्मेदार होते हैं, इसके चलते उपचार करना जटिल हो जाता है.[37]
साइकिडेलिक्स यानी दुस्वप्न औषधियों का एक विशेष समूह है. इस समूह की औषधियों में मौजूद उपचारात्मक क्षमताओं की वजह से इनका उपयोग औषधि का प्रतिकार करने वाले विकारों, PTSD और सब्सटेंस एब्यूज डिसऑर्डर्स जैसी बीमारियों में भी किया जा रहा है.[38] ऐसा पाया गया है कि ये औषधियां चिंता, अवसाद और अन्य नकारात्मक मूड्स को कम करती हैं जिनकी वजह से कॉग्निशन, इमोशन और बिहेवियर यानी संज्ञान, भावना और व्यवहार प्रभावित होता है. भारत में साइकिडेलिक्स को संस्कृतिक और धार्मिक गतिविधियों के साथ जोड़ा जाता है. नवंबर 2024 में भारत में अनुसंधानकर्ताओं ने जानवरों के अध्ययन में न्यूरल पाथवे को लक्षित करने वाले साइकिडेलिक्स की पहचान कर ली थी.[39] यह ख़ोज मानसिक स्वास्थ्य संबंधी विकारों के लिए नई औषधियों के विकास में मदद कर सकती है.
भारत में केवल बायोटेक्नोलॉजी का काम करने वाले 8000 स्टार्टअप्स हैं. ऐसे में भारत इन स्टार्टअप्स का पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप्स (PPPs) के माध्यम से इस क्षेत्र में काम करने के लिए उपयोग कर सकता है.[40] हाल ही में सरकार की ओर से घोषित की गई नीतियां, जिसमें बायोटेक्नोलॉजी फॉर इकोनामिक, एनवायरमेंट एंड एंप्लॉयमेंट (BioE3) यानी अर्थव्यवस्था, पर्यावरण और रोज़गार के लिए जैव प्रौद्योगिकी तथा बायोटेक्नोलॉजी रिसर्च इन्नोवेशन एंड डेवलपमेंट एंटरप्रेन्योरशिप (Bio-RIDE) अर्थात जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान नवाचार और विकास उद्यमिता
का उपयोग करते हुए बीमारियों की स्थिति के पीछे मौजूद फिजियोलॉजी अर्थात शरीर विज्ञान का पता लगाने के लिए मूल शोध अध्ययनों को बढ़ावा दिया जा सकता है. ऐसा करते हुए इसी क्षमता वाले नए उत्पाद तैयार किए जा सकते हैं.[41]
बायोटेक्नोलॉजी इंडस्ट्री रिसर्च अस्सिटेंस काउंसिल (BIRAC) यानी जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद के सहयोग से पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप के माध्यम से अनुसंधान को विभिन्न स्तरों पर बढ़ावा दिया जा सकता है. नेशनल हेल्थ मिशन अर्थात राष्ट्रीय स्वास्थ्य अभियान ने PPPs को स्वास्थ्य सुरक्षा हासिल करने का एक महत्वपूर्ण माध्यम बताया है.[42] PPPs के सहयोग से प्रूफ आफ कॉन्सेप्ट आइडियाज़, इनक्यूबेशन के लिए स्पेस यानी स्थान उपलब्ध करवाने और निवेश के अवसरों के लिए सीड कैपिटल की पहचान की जा सकती है, ताकि भविष्य में इन विचारों को मॉनिटाइज़्ड किया जा सके.[43] बायोटेक को भी फार्मास्यूटिकल क्षेत्र के साथ समन्वय साधते हुए प्रमोशन ऑफ रिसर्च एंड इन्नोवेशन इन फार्मा मेड टेक (PRIP) जैसे सरकारी कार्यक्रमों का लाभ उठाना होगा.[44]
मानसिक स्वास्थ्य विकारों के लिए अधिक उपचारों को प्रोत्साहित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग का भी सहारा लिया जा सकता है. मानसिक स्वास्थ्य विकारों के लिए नवाचार समाधान ख़ोजने के लिए वैश्विक वित्त पोषण एजेंसियां पैसा देने को उत्सुक हैं.[45] उदाहरण के लिए कैंसर उपचार में सुधार करने के लिए शुरू की गई पहल, कैंसर मूनशॉट, ने US में शोध और नवाचार के बीच सेतु बनाया है. इसी तरह की एक और पहल ( QUAD कैंसर मूनशॉट) भारत - प्रशांत में आरंभ हुई है.[46] इसी तरह भारत के विज्ञान एवं तकनीक विभाग (DST) की ओर से की जाने वाली पहल के तहत ड्रग डिस्कवरी यानी औषधि की ख़ोज के लिए ग्लोबल नॉर्थ के देशों के साथ समन्वय किया जा सकता है. इसी प्रकार बायोटेक्नोलॉजी विभाग (DBT) तथा US नेशनल साइंस फाउंडेशन (US-NSF) और इंडो-US साइंस एंड टेक्नोलॉजी फोरम (IUSSTF) के बीच साझेदारी से व्यवसायिक मूल्य की संभावित उपचार पद्धतियों को ख़ोजा जा सकता है.[47] मसलन भारत भी साइकियाट्री कंसोर्सियम, एक ऐसा परोपकारी अनुसंधान समूह जिसे वेलकम ट्रस्ट और फार्मास्यूटिकल कंपनी की ओर से वित्त पोषण दिया जाता है, के साथ मिलकर मानसिक स्वास्थ्य संबंधी स्थितियों के लिए नई औषधियों के विकास और उसके अनुमोदन करने के लिए साझेदारी स्थापित कर सकता है.[48] विभिन्न मानसिक विकारों के साथ जेनेटिक लिंक्स यानी आनुवंशिक कड़ियों को समझने के लिए चल रहे प्रयोग को चला रहे साइकेट्रिक जिनोमिक्स कंसोर्टियम के साथ भारत भी जुड़ सकता है. यह प्रयोग विभिन्न स्थितियों के लिए आनुवंशिक परिणामों को समझने की कोशिश कर रहा है, ताकि उपचार का दृष्टिकोण तय किया जा सके. इस प्रयोग की सारे निष्कर्ष अनुसंधानकर्ताओं के लिए निःशुल्क उपलब्ध हैं.[49]
देश के भीतर ही भारत मनोचिकित्सा में प्रशिक्षण एवं शिक्षा को मजबूती प्रदान करते हुए क्लिनिकल साइकोलॉजी में प्रशिक्षण को सुचारु कर सकता है.[50] इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च (ICMR) की ओर से इंडियन क्लिनिकल ट्रायल एंड एजुकेशन नेटवर्क (INTENT ) नामक पहल शुरू की गई है जो भारत के क्रिटिकल ट्रायल्स को विस्तारित करेगा. इसमें मानसिक स्वास्थ्य के लिए उपचारों का भी समावेश किया गया है ताकि भारतीय आबादी में चिकित्सकीय प्रतिक्रियाओं की गहरी समझ पैदा हो और इसके साथ ही यहां के संस्कृत परिपेक्ष्य को भी समझा जा सके.[51] आईसीएमआर की ओर से एक देशव्यापी कार्यक्रम भी चलाया जा रहा है जिसके तहत मानसिक स्वास्थ्य संबंधी जागरूकता को बढ़ावा देकर छात्रों में आत्महत्या की प्रवृत्ति को घटाने का प्रयास हो रहा है.[52]
COVID -19 महामारी के बाद प्रधानमंत्री की साइंस, टेक्नोलॉजी एंड इनोवेशन एडवाइजरी काउंसिल (PM - STIAC) ने एक मेंटल हेल्थ एंड नॉर्मलसी ऑग्मेंटेशन सिस्टम (MANAS) Mitra (मित्र) की अप्रैल 2021 में शुरुआत की थी. यह मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के साथ-साथ सबूत आधारित अनुसंधान गतिविधियों को प्रोत्साहित कर रहा है.[53] इसके अलावा टेली-MANAS, जो एक टेलीफोन आधारित मानसिक स्वास्थ्य सेवा है, की भी शुरुआत की गई है. पिछले दो वर्षों के दौरान इस सेवा के पास 1.5 मिलियन कॉल्स आ चुके हैं.[54]
निष्कर्ष
मानसिक विकार एक शांत महामारी है यदि इसे रोकने के उपाय नहीं किए गए तो यह लगातार बढ़ती रहेगी. वर्तमान औषधीय और उपचारों में मौजूद सीमित संभावनाओं को बायोटेक्नोलॉजी एंड फार्मास्यूटिकल्स में नवाचार अनुसंधान गतिविधियों के माध्यम से संबोधित किया जा सकता है. इस अनुसंधान के दौरान होने वाली क्रांतिकारी ख़ोज को व्यावसायिक उत्पाद के रूप में सफ़ल बनाने के लिए PPPs का उपयोग किया जा सकता है. भारत के मानसिक स्वास्थ्य चिकित्सा कानून (2017) में किए गए प्रावधानों के अनुसार बीमा कंपनियों को भी मानसिक स्वास्थ्य संबंधी विकारों के लिए अपने कवरेज को बढ़ाना चाहिए.[55]
भारत के मानसिक स्वास्थ्य चिकित्सा कानून (2017) में किए गए प्रावधानों के अनुसार बीमा कंपनियों को भी मानसिक स्वास्थ्य संबंधी विकारों के लिए अपने कवरेज को बढ़ाना चाहिए.
जैसे-जैसे सरकारी और निजी वित्त पोषण वाले बीमा कवरेज में विस्तार होगा वैसे ही अनेक उपचारों पर होने वाला ख़र्च भी काबू में आता चला जाएगा अर्थात उपचार की व्यवहार्यता में इज़ाफ़ा होगा. इसके अलावा अन्य उपायों में शिक्षा में सुधार और मनोचिकित्सा में प्रशिक्षण बेहतर करना, क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट की संख्या में वृद्धि करना और मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता को लेकर एक बेहतर तथा मजबूत पारिस्थितिकी तंत्र उपलब्ध करवाना शामिल है. ऐसा होने पर भारत में मानसिक विकारों के उपचार को लेकर जो मौजूदा ख़ामी है उसको दूर किया जा सकेगा.
(लक्ष्मी रामाकृष्णन, ORF हेल्थ इनीशिएटिव में एसोसिएट फैलो हैं.)
(ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज ऋषिकेश के डॉ. विजय कृष्णन तथा असम डाउन टाउन यूनिवर्सिटी के डॉ. बिस्वा पसुन चैटर्जी की ओर से उपलब्ध विशेष सहयोग को लेखक स्वीकार करता है.)
Endnotes
[a] As of writing, NMHS-2 is underway and is expected to be completed later this year.
[b] Global comparisons are difficult as India did not participate in the 2020 WHO Mental Health Atlas project.
[c] Titrating a drug means increasing its dosage by small amounts over days, weeks or even months to the maximum extent a patient’s body can withstand.
[d] Pathophysiology is the study of how diseases or injuries lead to, or are associated with, abnormal physiological processes.
[e] 75 percent of India’s total API import is from China (based on quantum of API).
[1] World Health Organization, “Mental Health,” November 26, 2024, https://www.who.int/health-topics/mental-health.
[2] World Health Organization, “Mental Disorders,” https://www.who.int/news-room/fact-sheets/detail/mental-disorders; M.S. Gautham et al., “The National Mental Health Survey of India (2016): Prevalence, Socio-Demographic Correlates,” International Journal of Social Psychiatry 66, no.4, March 4, 2020: 361–72, https://doi.org/10.1177/0020764020907941
[3] R.S. Murthy, “National Mental Health Survey of India 2015–2016,” Indian Journal of Psychiatry 59, no. 1 (2017): 21–26, https://doi.org/10.4103/psychiatry.IndianJPsychiatry_102_17
[4] M. Ernst et al., “Loneliness before and during the COVID-19 Pandemic: A Systematic Review with Meta-Analysis,” American Psychologist 77, no. 5 (2022): 660–77, https://doi.org/10.1037/amp0001005
[5] Murthy, “National Mental Health Survey of India 2015–2016”
[6] Murthy, “National Mental Health Survey of India 2015–2016”
[7] Murthy, “National Mental Health Survey of India 2015–2016”
[8] Insights provided during Interview with a clinical psychiatrist.
[9] Insights provided during Interview with a clinical psychiatrist and with a researcher.
[10] S.S. Dutta, “0.75 Psychiatrists per 100,000 People—House Panel Urges Govt to Increase MD Psychiatry Seats,” ThePrint, August 4, 2023, https://theprint.in/india/0-75-psychiatrists-per-100000-people-house-panel-urges-govt-to-increase-md-psychiatry-seats/1701104/.
[11] WHO, Mental Health Atlas 2020, October 2021, Geneva, World Health Organization, 2021, https://iris.who.int/bitstream/handle/10665/345946/9789240036703-eng.pdf?sequence=1; Ministry of Health and Family Welfare, Government of India, https://pib.gov.in/PressNoteDetails.aspx?NoteId=153261&ModuleId=3®=3&lang=1
[12] Dutta, “0.75 Psychiatrists per 100,000 People—House Panel Urges Govt to Increase MD Psychiatry Seats.”
[13] “3,372 Clinical Psychologists Practising in India, Delhi Has the Highest,” Indian Express, August 1, 2023, https://www.newindianexpress.com/nation/2023/Aug/01/3372-clinical-psychologists-practising-in-india-delhi-has-the-highest-centre-2600894.html
[14] V.C.R. Avula et al., “Mental Health Insurance in India: An Examination of Policy Implementation Post-MHCA 2017,” Indian Journal of Psychological Medicine, 2024, https://doi.org/10.1177/02537176241236019
[15] Insights provided during Interview with a clinical psychiatrist.
[16] Insights provided during Interview with a clinical psychiatrist.
[17] M.E. Langa et al., “Cultural Context in DSM Diagnosis: An American Indian Case Illustration of Contradictory Trends,” Transcultural Psychiatry 57, no. 4, August 2020: 567–80, https://doi.org/10.1177/1363461519832473
[18] Insights provided during Interview with a clinical psychiatrist.
[19] Insights provided during Interview with a clinical psychiatrist.
[20] Insights provided during Interview with a clinical psychiatrist.
[21] S.S. Al-Harbi, “Treatment-Resistant Depression: Therapeutic Trends, Challenges, and Future Directions,” Patient Preference and Adherence 6, May 1, 2012: 369–88, https://doi.org/10.2147/PPA.S29716
[22] S.M. Paul et al., “Finding New and Better Treatments for Psychiatric Disorders,” Neuropsychopharmacology 49, no. 1, January 2024: 3–9, https://doi.org/10.1038/s41386-023-01690-5
[23] A.H. Miller et al., “Burning Down the House: Reinventing Drug Discovery in Psychiatry for the Development of Targeted Therapies,” Molecular Psychiatry 28, no. 1, January 2023: 68–75, https://doi.org/10.1038/s41380-022-01887-y
[24] G. R. Kumar, “An Analysis of Generic Medicines in India,” The Hans India, May 10, 2017, https://www.thehansindia.com/posts/index/Hans/2017-05-09/An-analysis-of-generic-medicines-in-India/298834
[25] Insights provided during Interview with a clinical psychiatrist.
[26] J.P. MacEwan et al., “Pharmaceutical Innovation in the Treatment of Schizophrenia and Mental Disorders Compared with Other Diseases,” Innovations in Clinical Neuroscience 13, no. 7–8, August 1, 2016: 17–25, https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pmc/articles/PMC5022985/.
[27] Miller et al., “Burning Down the House: Reinventing Drug Discovery in Psychiatry for the Development of Targeted Therapies.”
[28] S. Loiodice et al., “Neuropsychiatric Drug Development: Perspectives on the Current Landscape, Opportunities and Potential Future Directions,” Drug Discovery Today, November 29, 2024, https://doi.org/10.1016/j.drudis.2024.104255.
[29] Paul et al., “Finding New and Better Treatments for Psychiatric Disorders”
[30] Paul et al., “Finding New and Better Treatments for Psychiatric Disorders”
[31] Miller et al., “Burning Down the House: Reinventing Drug Discovery in Psychiatry for the Development of Targeted Therapies.”
[32] “Government of India Ministry of Chemicals and Fertilisers Department of Pharmaceuticals,” Sansad, January 22, 2025, https://sansad.in/getFile/annex/262/AU181.pdf?source=pqars.
[33] Z. Chen et al., “Chinese Innovative Drug R&D Trends in 2024,” Nature Reviews Drug Discovery 23, no. 11, July 31, 2024: 810–11, https://doi.org/10.1038/d41573-024-00120-5.
[34] Ministry of Science and Technology, Government of India, https://pib.gov.in/PressReleaseIframePage.aspx?PRID=2050446
[35] M. Dikshit ed., Drug Discovery and Drug Development: The Indian Narrative (Springer Nature, 2021).
[36] Loiodice et al., “Neuropsychiatric Drug Development: Perspectives on the Current Landscape, Opportunities and Potential Future Directions.”
[37] Paul et al., “Finding New and Better Treatments for Psychiatric Disorders.”
[38] Yao et al., “Efficacy and Safety of Psychedelics for the Treatment of Mental Disorders,” Psychiatry Research 335, May 1, 2024: 115886, https://doi.org/10.1016/j.psychres.2024.115886.
[39] Tata Institute of Fundamental Research, “Mapping the Neurocircuit for Effects of Psychedelics on Anxiety,” November 19, 2024, https://www.tifr.res.in/maincampus/viewSciFile.php?s=bXdGUTFhZXRCdGhGSGR2ei93Zlprdz09&t=ZEZ1L1Urdjdpc2ovMG95ZHdoVkpSUT09.
[40] BIRAC, India BioEconomy Report 2024, November 15, 2024, https://birac.nic.in/webcontent/IBER_2024.pdf.
[41] Ministry of Science and Technology, Government of India, https://pib.gov.in/PressReleaseIframePage.aspx?PRID=2048569; Cabinet, Government of India, https://pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=2056001#:~:text=The%20Union%20Cabinet%2C%20chaired%20by,new%20component%20namely%20Biomanufacturing%20and
[42] National Health Systems Resource Centre, “Public-Private Partnerships in Health Care under the National Health Mission in India: A Review,” December 8, 2014, https://nhsrcindia.org/sites/default/files/2022-09/PPP%20BOOK%2027.05.2022_0.pdf.
[43] Biotechnology Industry Research Assistance Council, “Index,” 2024, https://birac.nic.in/index.php.
[44] Department of Pharmaceuticals, Government of India, “Scheme for Promotion of Research and Innovation in Pharma MedTech Sector,” November 20, 2024, https://pharmaceuticals.gov.in/schemes/scheme-promotion-research-and-innovation-pharma-medtech-sector-prip.
[45] Loiodice et al., “Neuropsychiatric Drug Development: Perspectives on the Current Landscape, Opportunities and Potential Future Directions.”
[46] U.S. Mission to India, “Fact Sheet: Quad Countries Launch Cancer Moonshot Initiative to Reduce the Burden of Cancer in the Indo-Pacific,” U.S. Embassy & Consulates in India, September 23, 2024, https://in.usembassy.gov/fact-sheet-quad-countries-launch-cancer-moonshot-initiative-to-reduce-the-burden-of-cancer-in-the-indo-pacific/.
[47] National Science Foundation, “OISE Int’l Collaborations-India,” December 8, 2024, https://www.nsf.gov/od/oise/IntlCollaborations/India.jsp; Indo-U.S. Science and Technology Forum, “About IUSSTF,” December 8, 2024, https://iusstf.org/
[48] Psychiatry Consortium, “Psychiatry Consortium | Accelerating Innovative Drug Discovery,” August 23, 2023, https://psychiatryconsortium.org/
[49] PGC, “About Us – PGC,” December 8, 2024, https://pgc.unc.edu/about-us/.
[50] Dutta, “0.75 Psychiatrists per 100,000 People—House Panel Urges Govt to Increase MD Psychiatry Seats”; Y. Afshan, “Clinical Psychology Training in India Needs Central Body, Streamlining to Avoid Dilution of Professional Standards: Study,” The Hindu, December 4, 2024, https://www.thehindu.com/news/national/karnataka/research-paper-evaluates-clinical-psychology-education-and-accreditation-in-india/article68947291.ece.
[51] “ICMR to Expand Its Clinical Trial Network to Provide Solutions for Health Issues,” ET Health World, December 8, 2024, https://health.economictimes.indiatimes.com/news/policy/icmr-to-expand-its-clinical-trial-network-to-provide-solutions-for-health-issues/109649234.
[52] A. Yasmeen, “Mental Health of Students: NIMHANS, State Health and Education Departments Start Deliberations on ICMR Project,” The Hindu, June 6, 2024, https://www.thehindu.com/news/national/karnataka/mental-health-of-students-nimhans-state-health-and-education-departments-start-deliberations-on-icmr-project/article68260142.ece.
[53] Office of the Principal Scientific Adviser, Government of India, “MANAS Mitra: Empowering Mental Well-Being - PM-STIAC Initiative,” December 8, 2024, https://www.psa.gov.in/manas-mitra.
[54] Ministry of Health and Family Welfare, Government of India, http://pib.gov.in/PressNoteDetails.aspx?NoteId=153277.
[55] C.T.L.K. Kumar et al., “Health Insurance for Psychotherapy in India,” Indian Journal of Psychiatry 66, no. 5, May 2024: 466–71, https://doi.org/10.4103/indianjpsychiatry.indianjpsychiatry_979_23.
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