Issue BriefsPublished on Feb 25, 2023
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राजस्व में बढ़ोतरी, पूंजी में कमी: भारत का ‘2023-24’ का रक्षा बजट

  • Laxman Kumar Behera

    इस लेख में 2023-24 के लिए भारत के रक्षा बजट की समीक्षा की गई है. यह भारत के नवीनतम रक्षा आवंटन के लिए आर्थिक संदर्भ को रेखांकित करता है और विकास के कारकों, रक्षा बलों के बीच संसाधनों के व्यापक वितरण और आधुनिकीकरण एवं घरेलू रक्षा उद्योग पर इस वितरण के प्रभावों का अवलोकन करता है. संक्षेप में कहें, तो ताजा रक्षा बजट सरकार द्वारा वन रैंक, वन पेंशन योजना के तहत प्रावधान किए गए सेवानिवृत्ति के लाभों की समीक्षा और चीन के साथ जारी सीमा संकट के आलोक में तैयार किया गया है. इसमें इस बात का भी जिक्र है कि चीन का प्रभावी रूप से सामना करने के लिए भारत को चीनी आधिपत्य का विरोध करने वाले समान विचारधारा वाले देशों के साथ साझेदारी को मज़बूत करने और अपने आधुनिकीकरण के वित्तपोषण को बढ़ाने की आवश्यकता है. 

Attribution:

एट्रिब्यूशन: लक्ष्मण बेहरा, " राजस्व में बढ़ोतरी, पूंजी में कमी: भारत का ‘2023-24’ का रक्षा बजट ," ओआरएफ़ इश्यू ब्रीफ नंबर 614, फरवरी 2023, ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन.

परिचय

वर्ष 2024 के आम चुनाव से पहले अपना पांचवां और वर्तमान मोदी सरकार का अंतिम पूर्ण बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने रक्षा मंत्रालय के लिए 5,935.38 बिलियन रुपए (72.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर (a)) का आवंटन करने की घोषणा की. पूर्वी लद्दाख में लंबे समय से जारी सीमा संकट के बीच रक्षा मंत्रालय[1] का 2023-24 के लिए किया गया आवंटन पिछले वर्ष के आवंटन की तुलना में 13 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाता है.[2]  इस दोहरे अंकों की वृद्धि के प्रमुख कारक क्या हैं (b)और इससे सशस्त्र बलों पर क्या प्रभाव होगा, ख़ासकर उनके आधुनिकीकरण के सिलसिले में? दूसरा अहम सवाल यह है कि भारत के नवीनतम रक्षा आवंटन की तुलना इसके प्रमुख प्रतिद्वंद्वियों, विशेष रूप से चीन के सैन्य ख़र्च से कैसे की जा सकती है.

2020-21 में कोविड-19 महामारी की वज़ह से कमजोरी का शिकार होकर 6.6 प्रतिशत पर पहुंच चुकी भारतीय अर्थव्यवस्था ने उल्लेखनीय सुधार किया और इसके अगले वर्ष उसने कई देशों से आगे निकलते हुए जीडीपी में 8.7 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज़ की.

यह लेख इन सवालों की जांच करता है और रक्षा बलों के बीच आवंटन के व्यापक वितरण और रक्षा अनुसंधान एवं विकास (आरएंडडी) और उत्पादन पर बजट के प्रभाव का अवलोकन करता है. इसकी शुरुआत संदर्भ स्थापित करने और देश के आर्थिक दृष्टिकोण का आकलन प्रदान करने से की गई है. यह रेखांकित करता है कि रक्षा ख़र्च की मज़बूत और दीर्घकालिक स्थिरता के लिए लचीलापन और विकास किस तरह महत्वपूर्ण साबित होगा.

आर्थिक संदर्भ

2020-21 में कोविड-19 महामारी की वज़ह से कमजोरी का शिकार होकर 6.6 प्रतिशत पर पहुंच चुकी भारतीय अर्थव्यवस्था ने उल्लेखनीय सुधार किया और इसके अगले वर्ष उसने कई देशों से आगे निकलते हुए जीडीपी में 8.7 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज़ की. हालांकि, उस समय से विकास की गति धीमी हो गई है, लेकिन इसके बावजूद भारत को एक धुंध भरे वैश्विक आर्थिक परिदृष्य में उज्ज्वल स्थान पर देखा जा रहा है. एक ऐसा परिदृष्य, जो महामारी से जूझा है, रूस-यूक्रेन युद्ध और इसके परिणामस्वरूप ईंधन, भोजन एवं उर्वरक जैसी आवश्यक वस्तुओं की महंगाई से प्रभावित है. वित्त मंत्री के केंद्रीय बजट 2023-24 के भाषण की पूर्व संध्या पर जारी आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23 के आंकड़ों से पता चलता है कि चालू वित्त वर्ष में भारतीय अर्थव्यवस्था के 7.0 प्रतिशत की दर से बढ़ने की संभावना है. यह भारत को दुनिया में सबसे तेज़ी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्था बना देगा. सर्वेक्षण में यह अनुमान भी लगाया गया है कि भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि 2023-24 में 6.0-6.8 प्रतिशत के दायरे में होगी, आधारभूत जीडीपी वृद्धि 6.5 प्रतिशत होगी.[3]

अर्थव्यवस्था के अपेक्षाकृत प्रभावशाली प्रदर्शन के बावजूद, यह विकास के लिए नकारात्मक जोख़िमों की चुनौतियों का सामना कर रही है. ये चुनौतियां वैश्विक उत्पादन में कमी, यूरोपीय संघर्ष को लेकर जारी भू-राजनीतिक अनिश्चितता, महंगाई पर लगाम लगाने के लिए कई देशों के केंद्रीय बैंकों द्वारा मौद्रिक तंगी के कारण पूंजी का बहिर्वाह, सुस्त निर्यात और चालू खाता घाटे के बढ़ने के रूप में हैं. बजट के मोर्चे पर उच्च घाटे के वित्तपोषण (जिसका सहारा सरकार ने 2020 में महामारी के चलते प्रमुख आर्थिक गतिविधियों में जान डालने के लिए लिया) ने मुद्रास्फीति को भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा निर्धारित सहनशील स्तर (4 प्रतिशत कम या अधिक) के पार कर दिया है. उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) अप्रैल-दिसंबर 2022[4] में 6.8 प्रतिशत पर पहुंच गया.

मुद्रास्फीति के दबाव को नियंत्रित करते हुए विकास की गति बनाए रखने के लिए वित्त मंत्री सीतारमण ने अपने नए बजट में दोहरे दृष्टिकोण का पालन किया है : जिसमे पहला दृष्टिकोण है, सार्वजनिक क्षेत्र के नेतृत्व वाले बुनियादी ढांचे के निवेश को दोगुना करना और दूसरा दृष्टिकोण है राजकोषीय दृढ़ीकरण. केंद्र सरकार के 2023-24 के लिए कुल बजटीय पूंजीगत व्यय में 34 प्रतिशत की भारी वृद्धि देखी जा रही है और राज्य सरकारों को उनके पूंजीगत व्यय को बढ़ाने के लिए प्रदान किए गए प्रोत्साहन के साथ यह सकल घरेलू उत्पाद का 4.5 प्रतिशत हिस्सा बैठता है. राजकोषीय दृढ़ीकरण पर वित्त मंत्री ने अपने पूर्ववर्ती बजट में जो नज़रिया पेश किया था, उसने सरकार की कुल उधारी को 2023-24 में सकल घरेलू उत्पाद के 5.9 प्रतिशत तक सीमित कर दिया है, जो वर्ष 2022-23[5] में 6.4 प्रतिशत तक थी.

सशस्त्र बलों के ग़ैर-वेतन राजस्व व्यय में वृद्धि ज़्यादातर 'भंडार' व्यय में वृद्धि के कारण हुई है, जो इन्वेंट्री में मौजूदा उपकरणों की मरम्मत और रख-रखाव के साथ-साथ महत्वपूर्ण गोला-बारूद/पुर्जों की खरीद और तात्कालिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए भी है.

एक ओर जहां सरकार बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचे के निवेश के जरिये अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने का प्रयास करते हुए राजकोषीय कठिन हालात से निपट रही है, वहीं रक्षा आवंटन में 13 प्रतिशत की बढ़ोतरी (683.71 बिलियन रुपए की अतिरिक्त राशि) वास्तव में प्रभावी लगती है. ख़ासकर जब सकल घरेलू उत्पाद के महज 10.5 प्रतिशत बढ़ने का अनुमान है. हालांकि, इस अतिरिक्त आवंटन से रक्षा प्रतिष्ठान पूरी तरह संतुष्ट नहीं हो सकते, जो पिछले कुछ समय से संसाधनों की कमी से जूझ रहे हैं. उदाहरण के लिए पिछले छह वर्षों में रक्षा मंत्रालय की अनुमानित संसाधन ज़रूरतों की तुलना में वार्षिक कमी लगातार 100 बिलियन रुपए से अधिक या 17-23[6]  प्रतिशत की सीमा में रही है. (फिगर 1 देखें) इस नज़रिये से कि नए बजट में प्रदान की गई अतिरिक्त राशि पिछले बजट की कमी को पूरी तरह से पूरा नहीं करती, इस वज़ह से नए बजट वर्ष तक असंतोष की भावना बढ़ सकती है.

चित्र 1 : रक्षा मंत्रालय में संसाधनों की कमी, 2017-18—2022-23.

स्त्रोत : रक्षा विभाग की स्थायी समिति की 26 वीं रिपोर्ट के डेटा का उपयोग करते हुए लेखक का अपना.

रक्षा मंत्रालय का बजट: घटक और विकास के कारक

रक्षा मंत्रालय का नवीनतम बजट भले ही पिछले वर्ष की तुलना में 13 प्रतिशत अधिक हो, लेकिन नवीनतम आवंटन में वृद्धि 2022-23 के संशोधित अनुमानों की तुलना में केवल 1.5 प्रतिशत ही है, जो कि प्रारंभिक आवंटन से अभूतपूर्व रूप से 11 प्रतिशत अधिक है. (596.25 बिलियन रुपए). हालांकि, रक्षा मंत्रालय के बजट के सभी तीन प्रमुख घटकों- रक्षा मंत्रालय (सिविल) (c), रक्षा पेंशन और रक्षा सेवाओं- ने संशोधित अनुमानों में ऊपर की ओर संशोधन में योगदान दिया है (फिगर 1 देखें). इसमें बड़ी वृद्धि पेंशन लाभ और रक्षा सेवाओं के गैर-वेतन राजस्व व्यय में भारी बढ़ोतरी के कारण है. पेंशन का मध्य-वर्षीय संशोधन, जो अकेले ही रक्षा मंत्रालय के कुल बजट की वृद्धि में 57 प्रतिशत (337.18 बिलियन रुपए) है- मोटे तौर पर वन रैंक, वन पेंशन (ओआरओपी) योजना के तहत पेंशन लाभों के संशोधन से प्रेरित है, जिससे अतिरिक्त 281.38 बिलियन का आवंटन किया गया है. पेंशन आवंटन में अचानक और महत्वपूर्ण वृद्धि से भी रक्षा मंत्रालय के संशोधित बजट में इसके हिस्से में 26 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जो नए बजट में फिसलकर 23 प्रतिशत हो गया.

टेबल 1 : रक्षा मंत्रालय के बजट का वितरण  (2022-23 और 2023-24)

स्त्रोत : केंद्रीय बजट पर आधिरत, लेखक के अपने. 

नोट : बीई और आरई क्रमश: बजट अनुमान और संशोधित अनुमान दर्शाते हैं, कोष्ठक में प्रतिशत के आंकड़े रक्षा मंत्रालय के कुल हिस्सेदारी में संबंधित शेयरों को दर्शाते हैं.

संशोधित अनुमानों पर गैर-वेतन राजस्व व्यय का ऊपरी संशोधन अधिकांश रूप से सीमा पर चल रहे संकट से उत्पन्न अत्यावश्यकता की वज़ह से है. सीमा संकट के कारण सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) के पूंजीगत व्यय में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है. बीआरओ का बजट, जो 2022-23 में 35 अरब रुपए आंका गया था, उसे बदलकर संशोधित अनुमान चरण में 45 अरब रुपए और नए बजट में 50 अरब रुपए कर दिया गया. बीआरओ के आवंटन में इस क्रमिक वृद्धि पर टिप्पणी करते हुए रक्षा मंत्रालय ने कहा है कि बढ़ा हुआ आवंटन 'सीमा के बुनियादी ढांचे को बढ़ावा देगा, जिससे सेला सुरंग, नेचिपु सुरंग और सेला छाबरेला सुरंग जैसी रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण रचनओं का निर्माण होगा और इससे सीमा संपर्क में वृद्धि होगी.'[7]

सशस्त्र बलों के ग़ैर-वेतन राजस्व व्यय में वृद्धि ज़्यादातर 'भंडार' व्यय में वृद्धि के कारण हुई है, जो इन्वेंट्री में मौजूदा उपकरणों की मरम्मत और रख-रखाव के साथ-साथ महत्वपूर्ण गोला-बारूद/पुर्जों की खरीद और तात्कालिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए भी है. मुख्य रूप से चीन की आक्रामक गतिविधियों का मुकाबला करने के लिए वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास सशस्त्र बलों की लंबे समय से जारी व्यस्तताओं के बीच पिछले बजट की मध्य-वर्ष की समीक्षा के दौरान 'स्टोर' बजट पर व्यय को 23 प्रतिशत तक संशोधित किया गया था; जो नए बजट में 592 बिलियन रुपए है. रक्षा मंत्रालय ने मध्य-वर्ष के संशोधन में यह भारी वृद्धि की, ताकि चालू वर्ष के दौरान संपूर्ण कैरी ओवर देनदारियों को समाप्त किया जा सके. इस से यह सुनिश्चित हुआ कि रक्षा सेवाओं के अगले वर्ष के परिचालन परिव्यय में कोई क्षति नहीं हो.[8]

सशस्त्र बलों का वेतन और भत्ता (पीएंडए), जो ऐतिहासिक रूप से रक्षा मंत्रालय के वार्षिक बजट में उल्लेखनीय वृद्धि के लिए ज़िम्मेदार रहा है, वह संशोधित अनुमानों पर लगभग स्थिर है. पिछले बजट की तुलना में यह 1,494 अरब रुपए से मामूली (3 प्रतिशत) रूप से बढ़कर 1,545 अरब रुपए हो गया है. वेतन और भत्ते में मामूली वृद्धि काफी हद तक भर्ती पर महामारी-प्रेरित प्रतिबंधों के कारण सशस्त्र बलों की ताकत में कमी और अग्निपथ योजना की शुरुआत के कारण हुई है, जो अभी तक पूर्ण रूप से प्रभावी नहीं हुई है.[9] गैर-अधिकारी संवर्ग कर्मियों की भर्ती के लिए अग्निपथ के एकमात्र योजना होने की वज़ह से सरकार ने नए बजट में 42.66 अरब रुपए आवंटित किए हैं. सशस्त्र बलों के वेतन और भत्ते के साथ इस नई भर्ती योजना में 2023-24 में रक्षा सेवाओं के सभी आवंटनों की कुल 37 प्रतिशत राशि का प्रावधान किया गया है.

संशोधित अनुमान स्तर पर रक्षा मंत्रालय के कुल पूंजीगत व्यय में गिरावट आई है और बीई चरण में मामूली वृद्धि हुई है, जिससे रक्षा मंत्रालय के नवीनतम बजट में कुल पूंजीगत व्यय में गिरावट आई है. (फिगर 2 देखें) (d)  रक्षा मंत्रालय की कुल बजट वृद्धि में पूंजीगत व्यय ने 15 प्रतिशत का योगदान दिया है, जबकि शेष 85 प्रतिशत राजस्व व्यय से आता है. रक्षा मंत्रालय की कुल बजट वृद्धि में राजस्व व्यय के भीतर तीनों बलों के स्टोर बजट का 32 प्रतिशत का योगदान है, इसके बाद पेंशन (27 प्रतिशत) और सशस्त्र बलों के वेतन और भत्तों (अग्निपथ योजना सहित, 7 प्रतिशत) का योगदान है. दूसरे शब्दों में कहें, तो ओआरओपी और सीमा पर तनाव रक्षा मंत्रालय के नवीनतम बजट में वृद्धि के मुख्य कारक रहे हैं.

टेबल 2 : रक्षा मंत्रालय के बजट (2023-24) में राजस्व और पूंजी का हिस्सा.

स्त्रोत : केंद्रीय बजट 2023-24 पर आधारित लेखक का अपना.

 

रक्षा सेवाओं का हिस्सा

2023-24 का बजट सशस्त्र बलों में भारतीय थल सेना का सबसे बड़ा हिस्सा होने के मामले में पिछले बजट से अलग नहीं है. (फिगर 2 देखें)[10] इसी दौरान थल सेना सबसे कम पूंजीगत वृद्धिकर सेवा बनी हुई है. इसके कुल आवंटन का 83 प्रतिशत हिस्सा राजस्व व्यय के लिए निर्धारित किया गया है. (चित्र 3 देखें)

सशस्त्र बलों के लिए आवंटन का एक उल्लेखनीय पहलू यह है कि इसमें नौसेना की हिस्सेदारी 20 प्रतिशत के सर्वकालिक उच्च स्तर तक बढ़ गई है. हालांकि नौसेना के पास अभी भी तीनों सेवाओं में से सबसे कम हिस्सा है. हालांकि, 1963-64 के बाद से उसने एक लंबा सफ़र तय कर लिया है, जब चीन के साथ 1962 के युद्ध के बाद की पृष्ठभूमि में इसकी हिस्सेदारी देश के रक्षा व्यय के तीन प्रतिशत के सर्वकालिक निचले स्तर पर आ गई थी.[11]  बजट की राशि में नौसेना की बढ़ती हिस्सेदारी महाद्वीपीय से लेकर समुद्री सीमाओं तक भारत के संदर्भ में बदलती ख़तरे की धारणाओं का भी संकेत है.

घरेलू अनुसंधान एवं विकास के दृष्टिकोण से DRDO के बजट में 9 प्रतिशत की बढ़ोतरी एक निराशाजनक तस्वीर पेश करती है, क्योंकि रक्षा मंत्रालय के बजट में 13 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. 

हालांकि, यह तय है कि नौसेना का यह रिकॉर्ड हिस्सा अन्य सेवाओं की कीमत पर नहीं आया है. तब भी सशस्त्र सेवाओं के बीच इसने वायु सेना के लिए 14 प्रतिशत और थल सेना के लिए 11 प्रतिशत की तुलना में 17 प्रतिशत की उच्चतम वृद्धि देखी है. बजट में रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) और आयुध कारखानों (जिन्हें सरकार ने सात कॉपोर्रेट संस्थाओं में बदल दिया है) की हिस्सेदारी में गिरावट देखी गई है.

चित्र 2 : रक्षा सेवाओं की राशि (आईएनआर बिलियन) और शेयर (%) (2023-24)

स्त्रोत: केंद्रीय बजट 2023-24 पर आधारित लेखक का अपना.

नोट: सभी रक्षा सेवाओं के टोटल अर्थात कुल में ‘सार्वजनिक उद्यमों में निवेश’ के लिए निर्धारित 13.10 बिलियन आईएनआर पूंजी परिव्यय और गुणवत्ता लेखापरीक्षा महानिदेशालय के पूंजीगत व्यय के लिए 0.20 बिलियन आईएनआर शामिल नहीं है.

टेबल 3 : सशस्त्र बलों के राजस्व और पूंजी का हिस्सा (2023-24)

स्त्रोत : केंद्रीय बजट 2023-24 पर आधारित लेखक का अपना.

आवंटन के निहितार्थ

 

आधुनिकीकरण का संदर्भ

2023-24 के बजट आवंटन में तीनों सेवाओं के बजट में दोहरे अंकों की बढ़ोतरी की गई है. हालांकि, आधुनिकीकरण या पूंजीगत खरीद के पहलू पर वृद्धि कुल मिलाकर 7 प्रतिशत पर नियंत्रित है. थल सेना को अपवाद के रूप में देखें, तो अन्य दो सेवाओं ने अपने बजट में एक अंक की वृद्धि देखी है. (टेबल 4 देखें) दरअसल, रक्षा सेवाओं के कुछ सबसे बड़े आधुनिकीकरण के विषय - अन्य उपकरण (थल सेना), नौसेना बेड़ा (नौसेना) और विमान एवं एयरोइंजिन (वायु सेना) एक तरह से संकुचन देख रहे हैं.

(अनुलग्नक 2, 3 और 4 देखें).

टेबल 4 : सशस्त्र सेना आधुनिकीकरण बजट.

        *अनुमानित आंकड़े

स्त्रोत : केंद्रीय बजट 2023-24 पर आधारित लेखक का अपना.

आधुनिकीकरण बजट में एकल अंक की वृद्धि और प्रमुख खरीद मदों का संकुचन सशस्त्र बलों के लिए निराशा के रूप में सामने आएगा. आखिरकार, रक्षा सेवाएं पिछले कई वर्षों से पूंजीगत ख़रीद बजट में भारी कमी से जूझ रही हैं, जिसके कारण वार्षिक बजटीय प्रावधानों के अनुपूरक के वास्ते एक गैर-व्यपगत (नॉन लैप्सेबल) आधुनिकीकरण कोष के निर्माण की मांग की जा रही है.[12] 2022-23 के पूंजीगत ख़रीद बजट में कुल कमी 534 अरब रुपए या 30 प्रतिशत से अधिक थी. (टेबल 5 देखें)[13] यह देखते हुए कि ख़रीद के लिए अतिरिक्त आवंटन ने पिछले बजट की कमी को पूरा नहीं किया है, यह सशस्त्र बलों के आधुनिकीकरण अभियान पर नकारात्मक प्रभाव डालेगा.

टेबल 5: रक्षा पूंजी अधिग्रहण में संसाधन की कमी (2022-23)

स्त्रोत: रक्षा संबंधी स्थायी समिति, 28वीं रिपोर्ट.

अनुसंधान एवं विकास और उत्पादन

वित्त मंत्री सीतारमण के वित्त वर्ष 2022-23 के बजट भाषण के विपरीत उनकी नई बजटीय घोषणाओं में स्वदेशी अनुसंधान एवं विकास और हथियारों के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए कोई प्रत्यक्ष प्रस्ताव शामिल नहीं था. हालांकि, इसके बावजूद उनके बजट भाषण में कई 'व्यापक' औद्योगिक प्रस्ताव शामिल थे, जिनका घरेलू हथियारों के उत्पादन पर असर पड़ेगा.

घरेलू अनुसंधान एवं विकास के दृष्टिकोण से DRDO के बजट में 9 प्रतिशत की बढ़ोतरी एक निराशाजनक तस्वीर पेश करती है, क्योंकि रक्षा मंत्रालय के बजट में 13 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. यह देखते हुए कि DRDO भारत के रक्षा नवाचार में एक अहम स्तंभ है,[14] आत्मनिर्भरता के क्षेत्र में भारत की प्रगति काफी हद तक इसके प्रदर्शन पर निर्भर है. इसके लिए उसे पर्याप्त रूप से संसाधन प्रदान करने की आवश्यकता है. रक्षा उत्पादन में भारत की आत्मनिर्भरता में सुधार के लिए पिछले कुछ वर्षों में घोषित विभिन्न उपायों के बावजूद यह कार्य एक कठिन चुनौती बना हुआ है. प्रत्यक्ष आयात अभी भी हर साल अरबों डॉलर में होता है. सिर्फ पिछले पांच वर्षों- 2017-18 से 2021-22 तक में ही विदेशी खरीद पर रक्षा मंत्रालय द्वारा 1,938.79 बिलियन रुपए खर्च किए गए हैं.[15]

कहा जा रहा है कि वित्त मंत्री के नए बजट में स्टार्टअप्स और सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योगों (एमएसएमई) की भागीदारी को बढ़ाने के लिए कुछ प्रावधान किए गए हैं ताकि 'नवाचार को बढ़ावा मिले, प्रौद्योगिकी विकास को प्रोत्साहित करने के साथ देश में रक्षा औद्योगिक पारिस्थितिकी तंत्र को मज़बूती मिल सके.'[16] इनोवेशन फॉर डिफेंस एक्सीलेंस (आईडीईएक्स) और डिफेंस टेस्टिंग इंफ्रास्ट्रक्चर स्कीम (डीआरआईएस) के लिए आवंटन क्रमश: 93 प्रतिशत और 95 प्रतिशत बढ़ाकर 1.16 बिलियन और 0.45 बिलियन रुपए कर दिया गया है. हालांकि ये राशियां समग्र अनुसंधान एवं विकास बजट (DRDO के) की तुलना में बहुत कम हो सकती हैं, फिर भी रक्षा मंत्रालय का मानना है कि यह 'देशभर में उज्ज्वल युवा मस्तिष्कों से विचारों का लाभ उठाने के दृष्टिकोण' को पूरा करने में मदद करेगा.[17]

घरेलू उद्योग, विशेष रूप से निजी क्षेत्र को नए बजट ने जश्न मनाने के लिए बहुत कम दिया है. पिछले बजट में, वित्त मंत्री ने कई उपायों का वादा किया था, जैसे- उद्योग द्वारा उपयोग के लिए अनुसंधान एवं विकास बजट का 25 प्रतिशत निर्धारित करना; उद्योग की परीक्षण और प्रमाणन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए एक 'स्वतंत्र नोडल निकाय' का निर्माण; घरेलू उद्योग से ख़रीद के लिए पूंजीगत ख़रीद बजट का 68 प्रतिशत आवंटन (2021-22 के 58 प्रतिशत से अधिक) और DRDO और अन्य[18] के साथ साझेदारी में उद्योग को डिजाइन और विकास करने की अनुमति देने के लिए विशेष प्रयोजन वाहन (एसपीवी) का निर्माण. नए बजट में कोई नया प्रावधान नहीं है. किसी भी मामले में समग्र ख़रीद बजट में धीमी वृद्धि के परिणामस्वरूप कुछ नए अनुबंध होंगे, जिनसे घरेलू उद्योग लाभान्वित हो  सकते हैं.

चीन की चुनौती और भारत के समक्ष विकल्प

चीन के साथ चल रहा सीमा गतिरोध गंभीर सुरक्षा और रणनीतिक चुनौतियों की याद दिलाता है, जिनका सामना भारत को अपने उत्तरी पड़ोसी से करना पड़ रहा है. चीन अपनी सेना पर भारी मात्रा में ख़र्च करता है और भारत निकट भविष्य में बीजिंग के डॉलर-दर-डॉलर के रक्षा ख़र्च की बराबरी करने की स्थिति में नहीं है. उदाहरण के लिए, वर्ष 2021 में भारत के 77 बिलियन[19] अमेरिकी डॉलर की तुलना में चीन का सैन्य खर्च 293 बिलियन अमेरिकी डॉलर था.

भारत को चीन की आक्रामकता का विरोध करने वाले समान विचारधारा वाले देशों के साथ सुरक्षा और रणनीतिक साझेदारी को मज़बूत करने की आवश्यकता है. क्वॉड को भारत द्वारा अंगीकार करना, एयूकेयूएस (e) (ऑस्ट्रलिया, यूनाइटेड किंगडम और अमेरिका के बीच का सुरक्षा समझौता) को इसका मौन समर्थन और भारत-प्रशांत एवं उससे आगे के देशों के साथ रक्षा और सुरक्षा साझेदारी बनाने पर नए सिरे से ध्यान केंद्रित करना भारत की रणनीति और चीन के आधिपत्य को रोकने के लिए भागीदारों के गठबंधन की प्राथमिकता का संकेत देता है. इस तरह के गठबंधन वास्तव में काफी अच्छे हैं, लेकिन इसके साथ ही चीन की तुलना में असमानता को कम करने के लिए अपने रक्षा खर्च को उच्च विकास पथ पर रखना भारत के हित में होगा. भारत को न केवल अपने रक्षा खर्च को निरंतर तरीके से बढ़ाना होगा, बल्कि यह भी सुनिश्चित करना होगा कि अतिरिक्त आवंटन का अधिकतम हिस्सा रक्षा बलों के आधुनिकीकरण पर ख़र्च हो.

निष्कर्ष

भारत के नवीनतम रक्षा आवंटन में 13 प्रतिशत की बढ़ोतरी उल्लेखनीय है, हालांकि यह रक्षा प्रतिष्ठान द्वारा सामना की जा रही मौजूदा कमी को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं है. इसके बावजूद, पिछले आवंटन की तुलना में अधिक राशि का प्रावधान किए जाने से नए बजट में मध्य-वर्ष वृद्धि की संभावना है.

हालांकि, नवीनतम रक्षा बजट में वृद्धि के दौरान राशि समान रूप से वितरित नहीं की गई है, क्योंकि अधिकांश वृद्धि राजस्व व्यय द्वारा संचालित होती है, जिसमें पूंजीगत व्यय का समग्र विकास में मामूली योगदान होता है. मुख्य रूप से पेंशन लाभ में वृद्धि और चीन के साथ सीमा संकट की वज़ह से उत्पन्न अनिवार्यताओं के कारण राजस्व-संचालित विकास स्वाभाविक है. हालांकि, सशस्त्र बलों के आधुनिकीकरण अभियान के लिए बजट में भारी कमी को देखते हुए रक्षा मंत्रालय के पिछले पूंजीगत व्यय में मध्य-वर्ष की गिरावट और नए बजट में मामूली वृद्धि चिंता की वज़ह है. यह रक्षा बलों के निरंतर आधुनिकीकरण के वास्ते जगह बनाए रखते हुए अप्रत्याशित आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए रक्षा बजट के सीमित दायरे को भी प्रकट करता है.

वास्तव में सरकार ने राजस्व व्यय (जिसका रक्षा बजट और इसकी वार्षिक वृद्धि में प्रमुख हिस्सेदारी है) को नियंत्रित करने के लिए हाल के दिनों में दूरगामी सुधार किए हैं, जिसमें कार्मिक मोर्चा यानी भर्तियों का मुद्दा भी शामिल है. हालांकि, अग्निपथ योजना सहित ऐसे सुधारों से प्राप्त होने वाले किसी भी लाभ की लंबी अवधि को देखते हुए, मध्यावधि में राजस्व और पूंजीगत व्यय के बीच एक बेहतर संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता है.

आधुनिकीकरण के ख़र्च को तब तक बढ़ाने की ज़रूरत है, जब तक कि सुधार के लाभ बजट में दिखाई न देने लगें. साथ ही, सरकार को शेष बचे कुछ कार्मिक सुधारों पर ध्यान देने की आवश्यकता है, विशेष रूप से अधिकारी संवर्ग के संबंध में. सैनिकों की भर्ती प्रक्रिया में सुधार के लिए घोषित अग्निपथ योजना की तरह रक्षा मंत्रालय को अब अपने 65,000 से अधिक मज़बूत अधिकारी कैडर में सुधार करने की आवश्यकता है, ताकि न केवल पूर्ववर्ती संसाधनों को बचाया जा सके, बल्कि कैडर को अधिक युवा और देश की सुरक्षा एवं रक्षा चुनौतियां को संभालने के लिए अधिक गतिशील बनाया जा सके.

आधुनिकीकरण के ख़र्च को तब तक बढ़ाने की ज़रूरत है, जब तक कि सुधार के लाभ बजट में दिखाई न देने लगें. साथ ही, सरकार को शेष बचे कुछ कार्मिक सुधारों पर ध्यान देने की आवश्यकता है, विशेष रूप से अधिकारी संवर्ग के संबंध में. 

राजस्व में बढ़ोतरी, पूंजी में कमी वाला बजट भारत की रक्षा व्यवस्था के लिए ठीक शगुन नहीं है.

अनुलग्नक

1: प्रमुख रक्षा बजट सांख्यिकी 

 

नोट: * 2022-23 और 2023-24 के लिए जीडीपी के आंकड़े क्रमश: पहले अग्रिम अनुमान और बजट अनुमान हैं

अनुमानित आंकड़े

स्त्रोत : केंद्रीय बजट 2022-23 और 2023-24 पर आधारित लेखक का अपना.

2: भारतीय सेना का आधुनिकीकरण बजट.

2: भारतीय सेना का आधुनिकीकरण बजट.

नोट: सेना के आंकड़े अनुमानित हैं

स्त्रोत: केंद्रीय बजट 2023-24 पर आधारित लेखक का अपना.

3: भारतीय नौसेना का आधुनिकीकरण बजट.

स्त्रोत: केंद्रीय बजट 2023-24 पर आधारित लेखक का अपना.

4: भारतीय वायुसेना का आधुनिकीकरण बजट.

स्त्रोत: केंद्रीय बजट 2023-24 पर आधारित लेखक का अपना.

(लक्ष्मण बेहरा राष्ट्रीय सुरक्षा अध्ययन विशेष केंद्र, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली में एसोसिएट प्रोफेसर हैं.)


Endnotes

[a] The conversion to US$ is based on the exchange rate of US$1.0=INR 82.

[b] It may be noted that like many countries, India does not define its defence expenditure. In the absence of an official definition, for a long time, the Defence Services Estimates (DSE), an annual publication of the MoD, was the reference point for India’s defence budget. In a break from this past convention, the MoD has in recent years begun using its overall allocations as India’s defence expenditure. This shift in definitional treatment notwithstanding, MoD’s allocations do not still provide the full picture of India’s defence efforts as there are several elements of expenditure which are incurred outside the MoD. Among all the defence related expenditures incurred outside the MoD, four elements stand out. These are Indo-Tibetan Border Police (ITBP), Assam Rifles (AR), Sashastra Seema Bal (SSB) and Border Security Force (BSF) which are under the administrative control of the Ministry of Home Affairs (MHA). Adding the allocations of these organisation to that of the MoD take India’s defence budget to INR 6,418 billion in 2023-24, representing 14.3 per cent of total central government expenditure (CGE) and 2.1 percent of GDP.

[c] The allocations under the MoD (Civil) cater to the expenses of MoD Secretariat and other establishment such as the Border Roads Organisation, Coast Guard, Defence Estimate Organisation, Jammu and Kashmir Light Infantry and Armed Forces Tribunal.

[d]  In the previous budget, the Capital Expenditure’s share was 30 percent.

[e]  The Quad is the quadrilateral security dialogue of India, Japan, the US and Australia; and AUKUS is the military alliance announced in September 2021 by Australia, US and UK to counter Chinse assertiveness in the Indo-Pacific.

[1] Ministry of Finance, Government of India, Union Budget 2023-24, https://www.indiabudget.gov.in/

[2] For an analysis of India’s defence budget 2022-23, see Laxman Kumar Behera, “Bigger, Not Necessarily Better: India’s Defence Budget 2022-23,” ORF Issue Brief No. 523, February 2022, Observer Research Foundation.

[3] Ministry of Finance, Government of India, Economic Survey 2022-23, p. 23.

[4] Press Information Bureau, “Summary of the Economic Survey 2022-23”, January 31, 2023.

[5] Ministry of Finance, Government of India, Union Budget 2023-24.

[6] Standing Committee on Defence, Demands for Grants 2022-23, 26th Report, p. 23.

[7] Press Information Bureau, “Defence gets Rs 5.94 lakh crore in Budget 2023-24, a jump of 13% over previous year”, February 01, 2023.

[8] Press Information Bureau, “Defence gets Rs 5.94 lakh crore in Budget 2023-24”.

[9] For a detailed analysis of Agnipath, See Laxman Kumar Behera and Vinay Kaushal, “The Case for Agnipath,” ORF Issue Brief No. 567, August 2022, Observer Research Foundation.

[10] When compared with MoD’s overall budget, the shares of the army, navy and air force stand at 37 percent, 14 per cent and 17 per cent, respectively.

[11] For a historical trend in India’s defence expenditure, see Laxman Kumar Behera, “Changing contours of Indian defence expenditure: past as prologue”, in Harsh V Pant (ed), Handbook of Indian Defence Policy: Themes, structures and doctrines, Routledge: Oxon, 2016, pp. 235-251.

[12] For a discussion on non-lapsable modernisation fund, see Laxman Kumar Behera and Pabitra Mohan Nayak, “India’s defence expenditure: a trend analysis”, Strategic Analysis, Vol. 45, No. 5, 2021, pp. 395-410.

[13] Standing Committee on Defence, Demands for Grants 2022-23, 28th Report, p. 18.

[14] For a detailed analysis of India’s defence innovation, see Laxman Kumar Behera, “Examining India’s defence innovation performance”, Journal of Strategic Studies, Vol. 44, No. 6, 2021, pp. 830-853.

[15] Lok Sabha, “Import of Defence Items”, Unstarred Question No. 351, Answered on February 03, 2023.

[16] Press Information Bureau, “Defence gets Rs 5.94 lakh crore in Budget 2023-24”.

[17] Press Information Bureau, “Defence gets Rs 5.94 lakh crore in Budget 2023-24”.

[18] For the status on the budget announcements see, Ministry of Finance, Government of India, Union Budget 2022-23 (Implementation of budget announcements 2022-23).

[19] SIPRI Military Expenditure Database, https://milex.sipri.org/sipri

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