परिचय
2017 में G20 की ओर से की गई घोषणाओं में से एक घोषणा थी आधुनिक युग की ग़ुलामी का अंत करना. समूह ने बाल मज़दूरी, जबरन श्रम और मानव तस्करी (trafficking) समेत आधुनिक काल में ग़ुलामी के सभी स्वरूपों को 2025 तक जड़ से ख़त्म करने का लक्ष्य रखा है. इसके लिए तात्कालिक तौर पर और प्रभावी उपाय किए जाने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया है. ये मक़सद संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) के लक्ष्य 8.7 को पूरा करने में मददगार साबित होगा, जिसके तहत 2030 तक जबरन मज़दूरी, आधुनिक ग़ुलामी और मानव तस्करी के ख़ात्मे का आह्वान किया गया है.
महिलाओं और बच्चों की तस्करी उनके बुनियादी मानवाधिकारों का उल्लंघन करती है. इसके बावजूद ये गुनाह अंतरराष्ट्रीय अपराध के सबसे कम समझे जाने वाले स्वरूपों में शामिल है. ऐसे अपराधों के घटित होने से जुड़े आंकड़ों और इस चुनौती के जवाब में दुनिया के देशों द्वारा अमल में लाए गए क़ानूनी क़दमों- दोनों ही मामलों में भारी अंतर मौजूद है.
इस पॉलिसी ब्रीफ़ में भारत और दक्षिण पूर्व एशिया में उसके आस-पास के देशों में तस्करी की शिकार महिलाओं की मौजूदा स्थिति का आकलन किया गया है. इसमें दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया में महिलाओं की तस्करी का ख़ाका पेश करते हुए समस्या के सतत और टिकाऊ समाधान ढूंढने के लिए नीतिगत सिफ़ारिशों को रेखांकित किया गया है. इन उपायों से दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया में तस्करों के चंगुल से आज़ाद महिलाओं और बच्चों को उनकी ज़िंदगी वापस शुरू करने में मदद मिल सकेगी.
चुनौती
मानव तस्करी की वारदात काफ़ी कम दर्ज कराई जाती हैं, नतीजतन इसके दायरे और विस्तार को लेकर व्यापक समझ का अभाव रहता है. दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया, दोनों स्थानों में अनेक कारणों के चलते मानव तस्करी जैसा संगीन अपराध फलता-फूलता रहता है (बॉक्स 1 देखिए).
बॉक्स 1:
मानव तस्करी के कारण
- ग़रीबी
- आर्थिक असुरक्षा
- बेरोज़गारी
- लैंगिक असमानता
- शिक्षा का अभाव
- सस्ते श्रम की मांग
- प्राकृतिक आपदाएं
- संघर्ष के चलते मजबूरी में पलायन
- राजनीतिक अस्थिरता
- सोशल मीडिया से संबंधित मानव तस्करी
- प्रवास के सुरक्षित विकल्पों का अभाव
- धोखाधड़ी, छल-कपट या अपहरण
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स्रोत: TIP 2022 रिपोर्ट
तस्करी के शिकार ज़्यादातर लोग निम्न-कौशल वाले, घरेलू काम में मददगार, यौन कर्मी या अपना ख़ून-पसीना बहाने वाले ग़रीब मज़दूर होते हैं. इस संदर्भ में ये बात ग़ौर करने लायक़ है कि तस्करी की चपेट में आने वाले इलाक़ों और यहां से बाहर की ओर पलायन (या प्रवास) करने वालों में ज़्यादातर महिलाएं होती हैं. एशिया और उससे परे घरेलू सहायक के तौर पर और देखभाल से जुड़े कामकाज की बढ़ती मांग की वजह से ऐसे हालात देखने को मिल रहे हैं. ज़्यादतर मामलों में असुरक्षित और घरेलू कामकाज, हॉस्पिटैलिटी और यौन शोषण जैसे अधिकतर असंगठित क्षेत्रों में बहुसंख्यक रूप से यही महिलाएं काम करती हैं.
पूर्वी दक्षिण एशिया
दक्षिण एशिया में बड़े पैमाने पर मानव तस्करी की घटनाएं होती हैं. इस इलाक़े से तस्करी की शिकार महिलाएं और बच्चे दुनिया के तक़रीबन 40 देशों में पाए गए हैं. तस्करी की शिकार महिलाओं की मंज़िल में खाड़ी का इलाक़ा, पश्चिमी और दक्षिणी यूरोप और यहां तक कि उत्तरी अमेरिका भी शामिल है. कुछ पीड़ितों को दक्षिण पूर्व एशिया और अफ़्रीका के देशों में भी ले जाया गया है (नक़्शा 1 देखिए).
नक़्शा 1: दक्षिण एशिया में मानव तस्करी के मार्ग
स्रोत: UNODC 2022
तस्करी की भेंट चढ़ने वाली महिलाओं की तादाद पर सटीक आंकड़ों का जुगाड़ करना एक विशाल चुनौती है. बहरहाल, सरकारी इकाइयों, ग़ैर-सरकारी संगठनों और मीडिया के हवाले से आई हालिया ख़बरों से पता चलता है कि दक्षिण एशिया के भीतर और बाहर मानव तस्करी में लगातार इज़ाफ़ा हो रहा है. चित्र 1 में इस इलाक़े में घरेलू स्तर पर मानव तस्करी के रुझान देखने को मिल रहे हैं. दक्षिण एशिया में मानव तस्करी के मसले का निपटारा करना बेहद पेचीदा काम है. सार्वभौम नियमनों के अभाव में ये और पेचीदा हो जाता है.
चित्र 1: दक्षिण एशिया में घरेलू स्तर पर मानव तस्करी के रुझान
स्रोत: UNODC 2022
टेबल 1 में दक्षिण एशिया के पूर्वी हिस्से (जिसमें भारत, बांग्लादेश और नेपाल शामिल हैं) में हालात का चित्र दर्शाया गया है. ये इस इलाक़े में मानव तस्करी का अड्डा है. टेबल 2 में उन सरहदी इलाक़ों को दर्शाया गया है जहां से इस इलाक़े में मानव तस्करी की वारदात को अंजाम दिया जाता है.
टेबल 1: पूर्वी दक्षिण एशिया में मानव तस्करी (2020)
देश |
मानव तस्करी के दर्ज मामले |
पीड़ितों का ख़ाका |
भारत |
श्रम के लिए मानव तस्करी (5,156);
बंधुआ मज़दूरी (2,837);
यौन शोषण के लिए तस्करी (1,466);
तस्करी के संभावित पीड़ित (694)
|
53 प्रतिशत – वयस्क;
59 प्रतिशत – महिलाएं;*
41 प्रतिशत – पुरुष;
47 प्रतिशत – बच्चे
|
नेपाल |
यौन शोषण के लिए तस्करी (99)
मज़दूरी के लिए तस्करी (64)
अज्ञात तरीक़े का शोषण (24)
|
107 वयस्क (183 महिला; 4 पुरुष);
80 बच्चे
|
बांग्लादेश |
यौन शोषण के लिए तस्करी (580);
मज़दूरी के लिए तस्करी (6,378);
अज्ञात (717)
|
यौन शोषण के लिए हुई तस्करी के पीड़ित:
महिलाएं: 429
पुरुष: 10
बच्चे: 120
20 LGBTQI+ व्यक्तिविशेष;
श्रम के लिए होने वाली मानव तस्करी के पीड़ित:
पुरुष – 4328;
महिलाएं – 1,902;
बच्चे – 132;
14 LGBTQI+ व्यक्तिविशेष
|
स्रोत: TIP 2022 रिपोर्ट के आधार पर ख़ुद लेखक के
*नोट: ‘स्त्री’ श्रेणी के तहत बच्चियां और वयस्क महिलाएं दोनों आती हैं; ‘महिला’ की श्रेणी में वयस्क महिलाएं; और ‘बच्चियां/लड़कियां/लड़के’ 18 साल से कम उम्र वाले बच्चों को दर्शाते हैं.
टेबल 2: पूर्वी दक्षिण एशिया में मानव तस्करी के गलियारे
मानव तस्करी के गलियारे |
स्थान |
भारत – बांग्लादेश |
दर्शना (बांग्लादेश) – गेदे (भारत)
बांग्लाबंधो (बांग्लादेश) – फुलबाड़ी (भारत)
बुड़ीमारी (बांग्लादेश) – चेंगड़ाबॉन्दो (भारत)
बेनापोल (बांग्लादेश) – पेत्रापोल (भारत)
|
भारत – नेपाल |
नेपाल – काकरभिट्टा, बिराटनगर, भंताबाड़ी, बीरगंज, भैरवा, नेपालगंज, महेंद्र नगर;
भारत – रक्सौल, किशनगंज, महाराजगंज, रुपईडीहा
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दक्षिण-पूर्व एशिया
मानव तस्करी के वैश्विक नेटवर्क (ख़ासतौर से सेक्स के लिए) के साथ दक्षिण पूर्व एशिया के संपर्क जगज़ाहिर हैं. इस इलाक़े में मानव तस्करी के पीड़ितों का 85 प्रतिशत से भी ज़्यादा हिस्सा इंडोनेशिया, लाओ पीपुल्स डेमोक्रेटिक रिपब्लिक, फिलीपींस, म्यांमार, कंबोडिया और वियतनाम जैसे देशों से आता है. इनमें से ज़्यादातर महिलाएं व्यापक रूप से असुरक्षित और असंगठित क्षेत्रो में काम करती हैं. इनमें घरेलू कामकाज और हॉस्पिटैलिटी के साथ-साथ सेक्स उद्योग शामिल है.
कम्बोडिया, लाओ PDR, म्यांमार, थाईलैंड और वियतनाम दक्षिण पूर्व एशिया में मानव तस्करी के मुख्य अड्डे हैं. प्रवासियों की तस्करी के काम में शामिल अपराधी तत्व इस इलाक़े के कुछ देशों को स्रोत, आवागमन (transit) या आख़िरी मंज़िल के तौर पर इस्तेमाल करते हैं. ये तमाम देश ऐसे अपराधों के मार्ग बन गए हैं. टेबल 3 में दक्षिण पूर्व एशिया में मानव तस्करी के गलियारों को प्रदर्शित किया गया है.
टेबल 3: दक्षिण पूर्व एशिया में मानव तस्करी के गलियारे
मानव तस्करी के गलियारे |
स्थान |
कंबोडिया-थाईलैंड |
म्यांमार- कंबोडिया- लाओस
(स्रोत, मंज़िल, और आवागमन बिंदु)
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म्यांमार-थाईलैंड |
शुरुआत और आवागमन |
इंडोनेशिया-मलेशिया |
मलेशिया – आवाजाही मार्ग और मंज़िल देश |
वियतनाम-थाईलैंड-चीन |
वियतनाम – स्रोत और आवागमन मार्ग वाला देश |
लाओस-थाईलैंड |
लाओस – स्रोत और आवाजाही मार्ग वाला देश |
टेबल 4: दक्षिण पूर्व एशिया में मानव तस्करी: एक तस्वीर
देश |
मानव तस्करी के दर्ज मामले (2020, 2021) |
पीड़ितों का ख़ाका |
कंबोडिया |
270 – जबरन शादी;
43 – जबरन मज़दूरी;
<5 – यौन शोषण
|
17 % - महिलाएं;*
15 % - पुरुष;
40 % - स्त्री;
42 % - लड़के
|
म्यांमार |
150 – यौन शोषण;
<5 – जबरन मज़दूरी;
<5 – अन्य प्रकार की मानव तस्करी
|
130 – महिलाएं;
15 – पुरुष;
39 – लड़कियां
|
थाईलैंड |
414 – मानव तस्करी के पीड़ित;
181 – यौन तस्करी;
233 – श्रम के लिए तस्करी;
|
151- पुरुष;
263 – स्त्रियां;
72 – बच्चे;
(414 में से: 312 – थाई; 94 – म्यांमारी; 2 – लाओस के; 6 के देशों का ख़ुलासा नहीं)
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फिलीपींस |
1,802 पीड़ित;
535 – यौन तस्करी;
501 – जबरन मज़दूरी;
766 – ख़ुलासा नहीं
|
551 – पुरुष;
1251 – स्त्रियां
|
*नोट: ‘स्त्री’ श्रेणी के तहत बच्चियां और वयस्क महिलाएं दोनों आती हैं; ‘महिला’ की श्रेणी में वयस्क महिलाएं; और ‘बच्चियां/लड़कियां/लड़के’ 18 साल से कम उम्र वाले बच्चों को दर्शाते हैं.
स्रोत: ख़ुद लेखक के
पीड़ितों का सशक्तिकरण
कौशल विकास
मानव तस्करी के पीड़ितों को दोबारा शिकार बनाए जाने से बचाना और समाज में टिकाऊ रूप से उनको नए सिरे से एकीकृत करना निहायत ज़रूरी है. इसके लिए कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रमों के रूप में पुनर्वास सहायता को बढ़ावा देना अहम हो जाता है. परदेसी पीड़ितों के लिए कौशल विकास से जुड़े कार्यक्रम अस्थायी विकल्प होते हैं, क्योंकि वो इस दौरान अपनी वतन वापसी का इंतज़ार कर रहे होते हैं. कौशल विकास से जुड़े कार्यक्रम मानव तस्करी के पीड़ितों की मदद कर सकते हैं. इसके ज़रिए वो ऐसे हुनर और ज्ञान हासिल कर सकते हैं जो रोज़गार ढूंढने के लिहाज़ से आवश्यक होते हैं. इतना ही नहीं वो अपने बल-बूते छोटे पैमाने पर आय का निर्माण करने वाली आजीविका भी शुरू कर सकते हैं.
हालांकि कौशल विकास के प्रावधान आसान क़वायद नहीं है. दरअसल मानव तस्करी की शिकार महिलाएं शारीरिक और मनोवैज्ञानिक तौर पर भयंकर तकलीफ़ें झेल चुकी होती हैं, लिहाज़ा वो सदमे भरे दौर से गुज़र रही होती हैं. उनकी ऐसी हालत नए कौशल सीखने की उनकी क्षमता में बाधाएं पैदा कर सकती हैं. इसलिए कौशल विकास से जुड़े कार्यक्रम, पीड़ितों की ज़रूरतों और उनकी योग्यताओं के हिसाब से तैयार किए जाने चाहिए. इनमें से कई महिलाओं को शुरुआती रूप से पहले बुनियादी साक्षरता और अंक गणित के ज्ञान की ज़रूरत पड़ सकती है.
आजीविका के अवसर
व्यावसायिक यौन शोषण की शिकार रह चुकी महिलाओं के लिए आजीविका प्रशिक्षण उनके पुनर्वास से जुड़ा औज़ार है. टेबल 5 और 6 में सरकारों और ग़ैर-सरकारी संगठनों (NGOs) द्वारा दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया में शुरू किए गए कार्यक्रमों का संक्षिप्त ब्यौरा दिया गया है.
टेबल 5: दक्षिण एशिया (पूर्व) में कौशल विकास के कार्यक्रम
देश |
सरकारी और ग़ैर-सरकारी योजनाएं |
भारत |
- उज्ज्वला – मानव तस्करी के पीड़ितों के लिए व्यावसायिक प्रशिक्षण;
- रेस्क्यू फ़ाउंडेशन – कौशल प्रशिक्षण मुहैया कराए जाते हैं, जैसे ज्वेलरी डिज़ाइनिंग;
- प्रेरणा – हॉस्पिटैलिटी और कैटरिंग, हाउसकीपिंग, उन्नत कढ़ाई और ज्वैलरी निर्माण का प्रशिक्षण;
- जबाला पार्टनर्स – कैंटीन के साथ-साथ मेट्रो और ट्रैफ़िक नियंत्रण केंद्रों में ग्रीन पुलिस में रोज़गार मुहैया कराना;
- स्किल इंडिया – व्यावसायिक प्रशिक्षण
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बांग्लादेश |
- सेंटर फ़ॉर वूमेन एंड चिल्ड्रेन स्टडीज़ (CWCS) – गारमेंट कारखानों में रोज़गार के मौक़े;
- ढाका एहसानिया मिशन (DAM) –कॉफ़ी शॉप्स या गारमेंट कारखानों में आजीविका के अवसर. उद्यमिता और छोटे कारोबार पर प्रशिक्षण मिलने के बाद 10 पीड़ितों को लघु कारोबारी मदद ग़ैर-नक़द सीड मनी हासिल हुई.
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नेपाल |
- रक्षा – मानव तस्करी के जाल से मुक्त क़रीब 500 महिलाओं को सिलाई-बुनाई में व्यावसायिक प्रशिक्षण;
- जेंटल हार्ट फ़ाउंडेशन (GHF) - दर्ज़ी, कारीगर, हेयर स्टाइलिस्ट, रसोइये, ट्रैकिंग और टूर गाइड्स, और पारा-लीगल्स के तौर पर कौशल विकास
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टेबल 6: दक्षिण पूर्व एशिया में कौशल विकास के कार्यक्रम
देश |
सरकारी और ग़ैर-सरकारी योजनाएं |
थाईलैंड |
- आश्रय और सहायक सेवाओं के प्रावधानों के साथ कौशल विकास के कार्यक्रम
- कुकिंग, सिलाई-बुनाई, और हथकरघा जैसे कार्यों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम; इसे भावी रोज़गार के तौर पर या अपना ख़ुद का कारोबार शुरू करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है.
- अपने ख़ुद के कारोबार शुरू करने में मदद के लिए माइक्रो फाइनेंस कार्यक्रम
- पुनर्वास केंद्रों में सांस्कृतिक और “नैतिक” शिक्षा के सत्र
- पेस्ट्री निर्माण, बुनाई, फूलों से जुड़ी कलाकारी, हेयरड्रेसिंग, और टेलरिंग
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इंडोनेशिया |
- उद्यमिता समेत कौशल विकास के तमाम कार्यक्रम
- उद्यम शुरू करने के लिए तमाम समूह पहलों का प्रस्ताव करते हैं. ये कार्यक्रम कई विषयों पर मार्गदर्शन और सहायता मुहैया कराते हैं. इनमें कारोबार विकास, मार्केटिंग और वित्तीय प्रबंधन शामिल हैं.
- सेक्स वर्क में शामिल महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए कार्यक्रम. इनमें रसोई और खाना बनाने के कौशल से जुड़े कार्यक्रम शामिल हैं.
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मलेशिया |
- शोषण के चक्र को तोड़ने में मदद करने के लिए कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रम. साथ ही बेहतर भविष्य के लिए रास्ता साफ़ करना. इसके लिए ऐसे औज़ार और संसाधन मुहैया कराना जो उनके आत्म-निर्भर बनने के लिए ज़रूरी हों.
- जबरन मज़दूरी कराए जाने और लोगों की तस्करी जैसे मसलों पर अपनी अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं के प्रति ज़्यादा से ज़्यादा अनुपालना की ओर आगे बढ़ने के लिए मलेशियाई सरकार ने कई कार्यक्रम शुरू किए हैं.
- ग़ैर-सरकारी संगठनों के साथ सहयोग का विस्तार. इसके तहत ग़ैर-सरकारी संगठनों को वित्तीय या वस्तुओं और सेवाओं के रूप से दी जाने वाली मदद शामिल है ताकि पीड़ितों को पुनर्वास सेवाएं मुहैया कराई जा सके.
- टेनागानिटा - महिला और बाल तस्करी के चंगुल से मुक्त लोगों के लिए आश्रय सुविधा, जिसमें कौशल प्रशिक्षण और संवर्धन गतिविधियां उपलब्ध कराई जाती हैं.
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कंबोडिया |
- "आज़ादी के लिए सिलाई" कार्यक्रम सिलाई और उद्यमिता कौशल में व्यावसायिक प्रशिक्षण उपलब्ध कराता है. महिलाओं को सामाजिक उद्यमों में रोज़गार दिया जाता है, जिसके तहत उच्च-गुणवत्ता वाले थैलों और एक्सेसरीज़ का निर्माण किया जाता है. इस तरह ऐसे लोगों को आमदनी के टिकाऊ अवसर मिलते हैं. इससे उनके दोबारा मानव तस्करी के जाल में फंसने के जोख़िम घट जाते हैं.
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क्रियान्वयन में ख़ामियां
मानव तस्करी के चंगुल से आज़ाद लोगों को सशक्त बनाने में कौशल विकास कार्यक्रम मददगार साबित होते हैं. ये कार्यक्रम ऐसे तमाम लोगों को अपना सम्मान दोबारा हासिल करने, आमदनी जुटाने, आत्मविश्वास बनाने और स्वतंत्र होकर गुज़र-बसर करने के अवसर प्रदान करते हैं. इन कार्यक्रमों के ऐसे फ़ायदों के बावजूद इस पॉलिसी ब्रीफ़ के लेखकों द्वारा किए गए साक्षात्कारों और इससे जुड़े शोध और समीक्षाओं से कुछ ख़ामियों का पता चला है. G20 द्वारा इसका निपटारा किए जाने की ज़रूरत है.
माध्यम का अभाव: मानव तस्करी की शिकार महिलाओं के लिए उस सदमे से उबरने और समाज में उनके दोबारा एकीकरण के रास्ते में अनेक रुकावटें हैं. ये सफ़र दुश्वारियों से भरा है. सभी पीड़ितों के लिए पुनर्वास की मानकीकृत नीति का अभाव हालात को और विकट बना देता है. मौजूदा पुनर्वास नीतियों का क्रियान्वयन अस्पष्ट है, और आश्रय गृहों या दोबारा एकीकृत किए गए पीड़ितों को लेकर किसी तरह की जांच-पड़ताल नहीं की जाती है. इस सिलसिले में भारत की उज्ज्वला योजना का उदाहरण लिया जा सकता है जो व्यावसायिक यौन शोषण और तस्करी की पीड़ित महिलाओं पर केंद्रित है. बांग्लादेश और नेपाल के साथ भी यही बात लागू होती है.
निरंतर मदद का अभाव: मानव तस्करों के चंगुल में कई साल फंसे रहने और उसके बाद आश्रय गृहों में अच्छा-ख़ासा वक़्त बिताने के बाद पीड़ित महिलाएं जब अपने घर और समुदाय में वापस लौटती हैं, तो उन्हें ढेरों चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. मददगार दस्तावेज़ों का अभाव और फ़ौरी तौर पर आर्थिक मदद की ग़ैर-मौजूदगी उनके लिए चुनौतीपूर्ण हो जाती है. उनके लिए इज़्ज़त के साथ दोबारा अपनी ज़िंदगी खड़ी कर पाना मुश्किल हो जाता है. इस तरह वो ग़रीबी के दलदल में फंस जाती हैं और उनके दोबारा मानव तस्करों का निशाना बनने का ख़तरा रहता है. इतना ही नहीं मानव तस्करी की शिकार होने का कलंक उनकी तकलीफ़ों को और बढ़ा देता है. उन्हें अपनी शिक्षा आगे बढ़ाने, नए हुनर सीखने और रोज़गार के अवसरों की तलाश करने से हतोत्साहित किया जाता है.
शिक्षा की कमी: मानव तस्करी की पीड़ितों के लिए शिक्षा से जुड़े कई कार्यक्रम मौजूद हैं, लेकिन बुनियादी अंक गणित और साक्षरता कौशलों से परे शिक्षा का अभाव होता है.
सतत और टिकाऊ आमदनी का अभाव: व्यवसाय या काम-धंधे से जुड़े कार्यक्रम न्यूनतम आय कमाने में पीड़ितों के लिए भले ही मददगार हों, लेकिन वो आमदनी के टिकाऊ स्रोत मुहैया नहीं कराते. जब तक उनके कामकाज को बाज़ार से उपयुक्त रूप से नहीं जोड़ा जाएगा तब तक वो स्वतंत्र होकर अपना गुज़र-बसर चलाने के लायक़ नहीं बन सकेंगे.
संस्थागत सीमाएं: मानव तस्करों के जाल से आज़ाद महिलाओं के साथ काम करने वाले संगठनों ने इस बात की तस्दीक़ की है कि ऐसे लोगों के लिए आजीविका के नवाचार भरे मॉडल तैयार करने का काम मुश्किलों भरा है. मौजूदा उपाय अपनी आंतरिक क्षमताओं और क्षमताओं के चलते सीमित प्रभाव वाले हैं. इन कार्यक्रमों की निरंतरता सुनिश्चित करने के रास्ते में व्यवस्थित फ़ंडिंग का अभाव एक बड़ी बाधा है.
G20 की भूमिका
2017 में G20 के देशों ने कॉरपोरेट सप्लाई चेन्स में मानवाधिकारों का कड़ाई से पालन किए जाने की क़वायद को बढ़ावा देने की प्रतिबद्धता जताई थी. ये तमाम देश फ़िलहाल मानव तस्करी को प्रभावी रूप से ख़त्म करने को लेकर नीतिगत ढांचों का निर्माण कर रहे हैं. रोज़गार और कौशल विकास, G20 के लिए निरंतर प्रमुख प्राथमिकताओं में शुमार रहा है. 2008 में वाशिंगटन डीसी में G20 के पहले शिखर सम्मेलन के दौरान वैश्विक वित्तीय संकट पर ध्यान केंद्रित किया गया था. जबकि अप्रैल 2009 में लंदन में समूह के दूसरे शिखर सम्मेलन के दौरान सभी नेताओं ने अर्थव्यवस्था के सतत और सुचारू उभार के लिए रोज़गार की अहमियत पर बल दिया था. उसके बाद से G20 के तक़रीबन हरेक अध्यक्ष के मातहत रोज़गार और कौशल को एजेंडे में शामिल किया जाता रहा है. मज़बूत कौशल प्रणालियां समुदायों और समाजों की समृद्धि में बुनियाद का काम करती हैं. G20 की विकासशील और उभरती अर्थव्यवस्थाओं में युवाओं की आबादी अपेक्षाकृत ज़्यादा है. वहां युवा शक्ति से जुड़े इस लाभ (demographic dividend) का भरपूर इस्तेमाल करने के लिए कौशल बेहद अहम हो जाता है.
G20 ट्रेनिंग स्ट्रेटेजी एंड स्किल अप प्रोग्राम का लक्ष्य शिक्षा की प्रासंगिकता और प्रशिक्षण के परिणामों को ऊंचा उठाना है, ताकि श्रम बाज़ार की मांगों को पूरा किया जा सके. साथ ही पुरुषों और महिलाओं, दोनों की रोज़गार से जुड़ी क़ाबिलियत में सुधार लाया जा सके. इस संदर्भ में मानव तस्करी के जाल से आज़ाद लोगों को टैलेंट पूल में शामिल करना अहम हो जाता है. महिला प्रवासी कामगारों के सामने मौजूद चुनौतियों का निपटारा करना और जबरन मज़दूरी और मानव तस्करी के जाल में फंसाने को लेकर उनकी असुरक्षाओं में कमी लाने की ओर G20 के देशों की बड़ी ज़िम्मेदारी है. G20 के देश मानव तस्करी से प्रभावी रूप से दो दो हाथ करने के लिए नीतिगत ढाँचा तैयार करने की दिशा में सक्रिय होकर काम कर रहे हैं, इसके बावजूद दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया में मानव तस्करी के संदर्भों को समग्र रूप से समझे जाने की दरकार है. समावेशी उपायों को क्रियान्वित करने के लिए ऐसी क़वायद निहायत ज़रूरी है.
G20 के लिए सिफ़ारिशें
G20 के लिए सिफ़ारिशें
युवा आबादी वाली उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिए कौशल विकास, ख़ासतौर से अहम है क्योंकि ये आर्थिक प्रगति को दिशा दे सकती है. मानव तस्करी से आज़ाद लोगों को इस प्रतिभा सूची में शामिल किए जाने से उन्हें ना सिर्फ़ रोज़गार के व्यावहारिक अवसर मिलेंगे बल्कि इससे उनके वित्तीय सशक्तिकरण में भी मदद मिलेगी. मानव तस्करी के शिकार लोगों को कार्य बल में शामिल कर G20 के देश महिलाओं के लिए श्रम बाज़ार की सुरक्षा बढ़ा सकते हैं. साथ ही रोज़गार के हालातों में भी सुधार ला सकते हैं. G20 में बेहतर नीतिगत ढांचों के निर्माण में योगदान देने की क्षमता है. इससे दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया में महिलाओं की ज़रूरतों का निपटारा हो सकता है; उनका बचाव सुनिश्चित हो सकता है, उनके अधिकारों को बढ़ावा दिया जा सकता है और लैंगिक समावेश को आगे बढ़ाया जा सकता है.
मानव तस्करी के चंगुल से आज़ाद लोगों को अधिकार देना: मानव तस्करों के क़ैद से छूटने वाली पीड़ितों को उनके प्रशिक्षण के लिए मनमुताबिक व्यवसाय चुनने की आज़ादी देना आवश्यक है. सरकार द्वारा तैयार किए गए कार्यक्रमों में अनिवार्य तौर पर शामिल किए गए कौशल निर्माण की पूर्वनिर्धारित क़वायदों तक उन्हें सीमित नहीं रखा जाना चाहिए. आय का निर्माण करने वाली गतिविधियां, सूक्ष्म उद्यमों की सहूलियत और उन्हें समाज में दोबारा जोड़ने वाले अन्य घटक (मसलन, मनोवैज्ञानिक सहायता और व्यावसायिक प्रशिक्षण) उनकी आज़ादी बढ़ाने के लिहाज़ से प्रभावी साबित हो सकते हैं. ख़ासकर काम-धंधे या उद्यम संभाल लेने के बाद पीड़ितों की आत्मनिर्भरता और आत्म-गौरव में भी इज़ाफ़ा होगा.
इस सिलसिले में यूनाइटेड किंगडम (UK) के अनुभव से सबक़ हासिल किए जा सकते हैं. यहां सरकार ने नेशनल रेफ़रल मैकेनिज़्म (NRM) के नाम से एक कार्यक्रम शुरू किया है. इसके तहत मानव तस्करी के शिकंजे से आज़ाद लोगों से सीधे तौर पर जुड़ाव बनाकर सहायता सेवाओं के लिए निगरानी व्यवस्था तैयार करने में उनकी राय ली जाती है. 2021 में द इंटरनेशनल सर्वाइवर ऑफ़ ट्रैफ़िकिंग एडवाइज़री काउंसिल (ISTAC) का गठन किया गया था. इसमें मानव तस्करी से मुक्ति पाने वाले 21 लोगों को नेतृत्वकारी भूमिका दी गई है. ये तमाम लोग यूरोपीय सुरक्षा और सहयोग संगठन (OSCE) से आते हैं, जो मानव तस्करी से मुक़ाबला करने के लिए ज़रूरी सलाह, मार्गदर्शन और सिफ़ारिशें मुहैया कराते हैं.
इसी प्रकार, 2015 में स्थापित द यूनाइटेड स्टेट्स एडवाइज़री काउंसिल ऑन ह्यूमन ट्रैफ़िकिंग मानव तस्करी के पीड़ितों को अपने विचार, सलाह और सिफ़ारिशें प्रस्तुत करने के लिए एक मंच मुहैया कराता है. इसके ज़रिए वो मानव तस्करी से जंग को लेकर संघीय नीतियों और कार्यक्रमों के बारे में अपने सुझाव दे सकते हैं. फिलीपींस में सक्रिय संस्था द इंटर-एजेंसी काउंसिल अगेंस्ट ट्रैफ़िकिंग ने कुछ साल पहले अपनी ओर से मानव तस्करी के फंदे से आज़ाद लोगों के साथ वर्चुअल फ़ोकस सामूहिक परिचर्चा कार्यक्रम आयोजित किया था. बचावकार्य सेवाओं की गुणवत्ता, मामलों के प्रबंधन और ऐसी सेवाएं मुहैया कराने में पेश आने वाली दिक़्क़तों के बारे में फ़ीडबैक जुटाने के मक़सद से इस क़वायद को अंजाम दिया गया था.
कौशल-विकास कार्यक्रमों का सर्टिफ़िकेशन: प्रादेशिक सरकार/स्थानीय सरकार को प्रामाणिक व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्रों की स्थापना को लेकर पूरी तरह से सक्रिय होना चाहिए. ऐसे केंद्रों के बाज़ार के साथ ठोस संपर्क होने चाहिए और समुदाय की अगुवाई में आजीविका कौशल मुहैया कराने के लिए इन्हें प्लेसमेंट के अवसर भी मुहैया कराने चाहिए. मिसाल के तौर पर भारत के विपला फ़ाउंडेशन ने तकनीकी संगठनों के साथ सहभागिता करके मानव तस्करी के जाल से मुक्त लोगों के प्रशिक्षण की सहूलियत मुहैया कराई है. प्रशिक्षण के बाद ऐसे लोगों को प्रमाण पत्र भी दिए जाते हैं.
कौशल विकास के लिए टिकाऊ कार्यक्रम: कौशल विकास से जुड़े ज़्यादातर कार्यक्रम अल्पकालिक और ग़ैर-टिकाऊ हैं. इस तरह पीड़ित को निरंतरता के साथ देखभाल नहीं मिल पाता और कार्यक्रम पूरा हो जाने के बाद उन्हें अपने हाल पर छोड़ दिया जाता है. वैसे तो पीड़ित के लिए गुज़र-बसर में सहायक आय निर्माण करने वाली गतिविधियां शुरू करने में मदद पहुंचाने वाली माइक्रोफ़ाइनेंस परियोजनाएं वजूद में हैं, लेकिन लंबे समय तक उद्यमिता में सहायता पहुंचाने वाले कार्यक्रमों का अब भी अभाव है. ऐसे में मुमकिन है कि पीड़ित अपने उद्यमों के संचालन और विस्तार के लिए ज़रूरी सूचना और कौशल हासिल किए बिना ही रह जाएं.
शैक्षणिक सहायता: संभव हो तो सस्ती ट्यूशन फ़ीस वाले स्कूलों की तादाद और बढ़ाई जानी चाहिए. इससे मानव तस्करी के अभिशाप से मुक्त लोग अपनी शिक्षा जारी रख सकेंगे. राष्ट्रीय और स्थानीय सरकारों के साथ सहभागिता के ज़रिए तमाम संगठन ऐसे लोगों को शिक्षा प्रणाली से दोबारा जोड़ने में मदद कर सकते हैं. इसके लिए उन्हें वित्तीय और अन्य प्रकार की सहायता भी उपलब्ध करानी होगी. यौन तस्करी के पीड़ितों के बच्चों को भी सहायता दी जा सकती है ताकि वो स्कूल में शिक्षा हासिल कर सकें.
जागरूकता निर्माण: अकेले जानकारी निर्माण की प्रक्रिया दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया के कई हिस्सों में प्रवास से जुड़े शोषण या मानव तस्करी को रोक पाने में नाकाम रही है. ज्ञान में बढ़ोतरी करने, सशक्तिकरण की भावना जगाने और अधिकारों के बारे में जागरूक करने की दिशा में व्यक्तिगत स्तर की दख़लंदाज़ियों का प्रभाव तब तक सीमित ही रहेगा जब तक मानव तस्करी से जुड़ी अन्य असमानताओं (मसलन, बेहतर रोज़गार के अवसर) को लेकर हस्तक्षेप नहीं किए जाते.
फ़ंडिंग: मानव तस्करी के हरेक स्वरूप के पीड़ितों को मद्देनज़र रखते हुए सरकारी बजट में एक विशेष कोष का आवंटन किया जाना चाहिए. मौजूदा कार्यक्रमों की निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए व्यवस्थित फ़ंडिंग अहम साबित होगी.
बाज़ार अवसर: मानव तस्करी के शिकार लोगों द्वारा तैयार किए जाने वाले उत्पादों के लिए स्थिर और व्यवस्थित बाज़ार तैयार किए जाने की दरकार है. मिसाल के तौर पर नेपाल में कपड़ा कंपनियां Elegantees और Mulxify मानव तस्करी के पीड़ितों और तस्करी के ख़तरे की ज़द में रहने वाले लोगों की मदद करते हैं. उन्हें हाथ से तैयार किए जाने वाले वस्त्रों, ज़ेवरातों और एक्सेसरीज़ तैयार करने के काम में जोड़ा जाता है. ज़ेवर बनाने वाली कंपनी परपस ज्वैलरी अपनी नॉन-प्रॉफ़िट संस्था इंटरनेशनल सैंक्चुअरी के ज़रिए कैलिफ़ोर्निया और मुंबई में मानव तस्करी के जाल से बच निकलने वाली महिलाओं को समग्र रूप से देखभाल और रोज़गार के अवसर मुहैया कराती है. इसी तरह साड़ी बाड़ी नाम की संस्था कोलकाता में यौन तस्करी की पीड़ित महिलाओं तक सहायता पहुंचाती है. इन औरतों को सेकेंड-हैंड साड़ियों के ज़रिए थैले, घरेलू सजावट के सामान और बच्चों की देखभाल करने के काम आने वाले उत्पाद बनाने का कौशल सिखाया जाता है. कार्यक्रम का कार्यान्वयन करने वाले लोगों को ऐसे कार्यक्रमों के बारे में निश्चित रूप से जागरूकता बढ़ानी चाहिए.
Endnotes
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https://www.state.gov/reports/2022-trafficking-in-persons-report/bangladesh/
9 Interview with the Officials, the Directorate of Child Rights and Trafficking, Government of West Bengal, by
Anasua Basu Ray Chaudhury, Kolkata, 5 April 2021.
10 Interview with Chandra Kishore, Journalist, on Human trafficking in Nepal and India border and Nepal
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11 AKM Ahsan Ullah and Mallik Akram Hossain. “Gendering cross-border networks in the greater Mekong
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12 Ullah and Hossain. “Gendering,” 273-289.
13 IOM UN Migration, “Covid-19”
14 Ullah and Hossain. “Gendering,” 273-289.
15 Ullah and Hossain. “Gendering,” 273-289.
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17 UNODC 2022, East Asia – Pacific
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20 Tsai Cordisco, et. al. “Perspectives of survivors of human trafficking and sexual exploitation on their
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22 Rescue Foundation, https://rescuefoundation.net/project/art-and-craft/ accessed on 27 March 2023
23 Prerna Anti Trafficking, https://www.preranaantitrafficking.org/ accessed on 27 March 2023
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29 Caballero-Anthony Mely, “A Hidden Scourge”, International Monetary Fund, September 2018,
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30 Mely, “A”
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33 “2022 Trafficking in Persons Report: Malaysia”, US State Department, 2022,
https://www.state.gov/reports/2022-trafficking-in-persons-
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34 Cordisco Tsai, L. et. al., “They Did Not Pay Attention or Want to Listen When We Spoke”: Women’s
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35 Ram Mohan Naidu Kinjarapu, “Skill training and entrepreneurship – inroads to alternate and well-paying
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https://timesofindia.indiatimes.com/blogs/voices/skill-training-and-entrepreneurship-inroads-to-alternate-and-
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36 Kinjarapu, “Skill training”
37 Allie Gardner “Education as a Tool to Combat Human Trafficking”, United Way, January 17, 2023,
https://www.unitedway.org/blog/education-as-a-tool-to-combat-human-trafficking#
38 University of Calcutta, “Sonagachi in Perspective- A Social and Medico-Legal Study”, Department of Women
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39 Interview with Binoy Krishna Mallick, Executive Director, Rights Jessore, on the Human Trafficking situation
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40 Prateek Kukreja, “The G20 in a Post-COVID19 World: Bridging the Skills Gaps”, ORF, November 12, 2020,
https://www.orfonline.org/research/the-g20-in-a-post-covid19-world-bridging-the-skills-gaps/
41 “SKILL-UP Programme: Upgrading skills for the changing world of work”, International Labour
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44 Kinjarapu, “Skill training”
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46 UK Aid, Heart, Foreign. Commonwealth and Development office, “Human Trafficking”
47 “UN Voluntary Trust Fund for Victims of Human Trafficking: 20 new NGO projects selected for emergency
grants under the sixth grant cycle”, UNODC, June 8, 2022,
https://www.unodc.org/unodc/en/frontpage/2022/June/un-voluntary-trust-fund-for-victims-of-human-
trafficking_-20-new-ngo-projects-selected-for-emergency-grants-under-the-sixth-grant-cycle.html
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