Issue BriefsPublished on Jul 26, 2024
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सर्वसम्मतिः नरेंद्र मोदी के 3.0 (तीसरे) कार्यकाल के लिए आर्थिक सुधारों की नई चाबी!

  • Gautam Chikermane

    यह ब्रीफ पिछले एक दशक में भारत में हुए आर्थिक सुधारों की जांच पड़ताल करने के साथ-साथ दूरदर्शी ढंग से तर्क देता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने तीसरे कार्यकाल में आर्थिक सुधारों की दिशा में किए जाने वाली कार्य की शैली में परिवर्तन करने की आवश्यकता हैतीसरे कार्यकाल के साथ देश में उपलब्ध राजनीतिक और नीतिगत निरंतरता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए लाभदायक सिद्ध हो सकती है अगर इस बार पाए गए थोड़े कमज़ोर राजनीतिक जनादेश को सुधारने के लिए कार्य किया जाए. पिछले 10 वर्षों में मोदी ने अपनी कुशल और राजनीतिक सूझबूझ से आर्थिक सुधार की सुई की गति को कमज़ोर नहीं पड़ने दिया लेकिन इस कार्यकाल में उन्हें एक नई सोच के साथ काम करना होगा और वह है आम सहमति से आर्थिक सुधार की लगाम को थामे रखना

Attribution:

गौतम चिकरमाने, “सर्वसम्मतिः नरेंद्र मोदी के 3.0 (तीसरे) कार्यकाल के लिए आर्थिक सुधारों की नई चाबी!”, ओआरएफ इश्यू ब्रीफ नं। 719, जुलाई 2024, ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन.

परिचय

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अगुवाई में पिछले 10 वर्षों में देश में कई महत्वपूर्ण आर्थिक सुधारों की एक श्रृंखला देखी गई जिसमें वस्तु एवं सेवा कर (GST)[1] और इन्सॉल्वेंसी एंड बैंक्रप्ट्सी कोड[2] शामिल हैं जो व्यापार को आसान बनाने की दिशा में उठाया गया कदम है; और जन धन योजना[3] और डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर[4] वित्तीय स्तर पर समावेशी दिशा तय करने के उद्देश्य को आसान बनाने के लिए उठाए गए कदम हैं (see Table 1). हाल के लोकसभा चुनाव के फ़ैसले और प्रधानमंत्री के कार्यकाल के पिछले ट्रैक रिकॉर्ड को अगर बारीकी से देखे तो यह ज्ञात होता है कि आर्थिक सुधार 2029 तक जारी रहने की संभावना है.

टेबल 1. आर्थिक सुधार के लिए उठाए गए प्रमुख कदम  (2014-2024)

 

जन धन योजना

हाइड्रोकार्बन की खोज़ और लाइसेंसिंग की नीति

आधार

इन्सॉल्वेंसी एंड बैंक्रप्ट्सी कोड 

रियल रेगुलेटर 

वस्तु एवं सेवा कर (GST)

आयुष्मान भारत योजना 

पुराने कानूनों का निरस्तीकरण 

एसेट मॉनीटाइज़ेशन  

श्रम सुधार

कृषि सुधार

आर्थिक अपराधों का गैर-अपराधीकरण

आत्मनिर्भर भारत योजना (COVID-19 संक्रमण काल के दौरान घोषित)

पेमेंट सिस्टम 

डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर 

बिजली क्षेत्र में सुधार

उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना

स्रोतः चिकरमाने (2022)

जब 2014 में नरेंद्र मोदी ने अपना पहला कार्यकाल शुरू किया तो उनकी सरकार को 2.04 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की जीडीपी विरासत में मिली थी और आठ वर्षों में भारत की जीडीपी 70 प्रतिशत बढ़कर 2022 तक 3.4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गई. हालांकि  इसी अवधि में वैश्विक GDP भारत से बहुत कम गति से 26 प्रतिशत बढ़कर 100.9 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर हो गई.[5] वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए, भारत की नॉमिनल GDP 293.90 लाख करोड़ रुपये[6] (लगभग 4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर)[7] अनुमानित है, जो पिछले वित्त वर्ष की तुलना में 9.1 प्रतिशत अधिक है. 

यह बात सही है कि पिछले दस साल के सुधारों से अर्थव्यवस्था ने जो गति पकड़ी है वह भारत के विकास की यात्रा को रफ़्तार देती रहेगी. इन सुधारों में कई ऐसे सुधार भी थे जो मूलभूत आर्थिक संरचना में सुधार के लिए किए गए थे और ये कदम संस्थानों की कार्यकुशलता के माध्यम से अर्थव्यवस्था को प्रभावित करते हैं और व्यापार करने के लिए नियामक ढांचे को आसान बनाते हैं.[8] इस गति को तेज करने के लिए, मोदी सरकार को राजनीतिक रूप से अब और अधिक श्रम करने की आवश्यकता है जो आर्थिक रूप से गहन निर्णयों और अधिक प्रशासनिक कुशलता से ही संभव हो पाएगा. मोदी सरकार को इस परिप्रेक्ष्य में अब दो क्षेत्रों में आर्थिक सहमति के साथ काम करना अनिवार्य है. पहला, राजनीतिक सहयोगियों और भागीदारों के साथ आर्थिक सहमति से और दूसरा राज्य सरकारों के साथ सर्वसम्मति के साथ उठाए गए कदम चाहे वह राज्य भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) द्वारा शासित हो या न हो. 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने पहले के दो कार्यकालों में देश के विकास लक्ष्यों को पूरा करने के लिए सुधारों को आगे बढ़ाने की गहन इच्छाशक्ति का प्रदर्शन किया था. अपने तीसरे कार्यकाल में, मोदी को भारत को सुधार के कार्यकाल की तिगड़ी को मूर्त रूप देने के लिए तीसरे महत्वपूर्ण घटक पर काम करने की आवश्यकता होगी. सन 1991 की बाधाओं और 2014-24 की मान्यताओं से प्रवाहित सुधारों को आगे बढ़ाने के लिए एक कुशल नेतृत्व के साथ-साथ मोदी सरकार को 2024 और 2029 के कार्यकाल में आम सहमति के साथ काम करने पर जोर देना होगा.  इस बार शासन NDA सहयोगियों पर निर्भर होने के कारण, विशेष रूप से 16 सीटों वाली तेलुगु देशम पार्टी (TDP) और 12 सीटों वाली जनता दल (यूनाइटेड),[9] मोदी सरकार की आर्थिक सुधार की धारा को राजनीतिक प्रबोधन से सींचना होगा ताकि सुधार की यह धारा अटूट रूप से बहती रहे. 

नीतिगत निरंतरता को बनाए रखने के लिए कुछ सिफारिशें

अपने तीसरे कार्यकाल में, पीएम मोदी को राजनीतिक गतिशीलता के साथ-साथ नीतिगत निरंतरता प्रदान करने की आवश्यकता है.  इस कार्य को करने के लिए नरेंद्र मोदी सरकार को चार मोर्चों पर कार्य करना होगा. 

धन और नौकरी का सृजन करने वालों का प्रोत्साहित करें न की हतोत्साहित

पिछले एक दशक में 2014 और 2024 के बीच, मोदी 1.0 और मोदी 2.0 सरकार  ने तथाकथित 'अतिवादी' नीतियों को दरकिनार कर कल्याणकारी अर्थशास्त्र का सिद्धांत अमल में लिया लेकिन यह सब धन सृजन की कीमत पर नहीं हुआ. मोदी 3.0 यानी नरेंद्र मोदी की तीसरी सरकार को इस रास्ते पर अधिक दृढ़ विश्वास के साथ आगे बढ़ना चाहिए और उन देशों के अनुभवों से सबक लेना चाहिए जिन्होंने समाजवादी नीतियों को तो अपनाया लेकिन वे अपनी अर्थव्यवस्थाओं के विकास और अपने लोगों के लिए समृद्धि लाने में विफ़ल रहे हैं. अर्जेंटीना[10] से वेनेजुएला[11] और उत्तर कोरिया[12], 1991 से पहले के भारत[13] का उदाहरण सबके सामने है. इन देशों के, समाज में हर प्रकार के अभाव,[14] गरीबी[15] और निजी उद्यमों के प्रति गहरे संदेह की स्थिति को हमने देखा है.[16]

प्रधानमंत्री पी वी नरसिम्हा राव द्वारा किए गए 1991 के आर्थिक सुधार के परिणाम हमारे सामने स्पष्ट है. ग्रोथ पिरामिड के सबसे निचले हिस्से में रहने वाले गरीबों के लिए कल्याणकारी योजनाओं को इस पिरामिड के सबसे ऊपर रहने वाले अमीर वर्ग से छीनकर नहीं चलाया जा सकता. ऐसा करना 1991 से पहले के अतिवादी नीतियों के अतीत की वापसी ही होगी. देश का विकास ही धन और जन कल्याण दोनों का एकमात्र रास्ता है. 1991 के बाद भारत में हुए विकास ने भारत में व्याप्त अत्यधिक गरीबी को लगभग समाप्त कर दिया है.[17] कर और निवेश जैसे नीतिगत साधन का उपयोग कर कुशल सार्वजनिक व्यय नीति और रोज़गार सृजन के साथ आगे बढ़ने का रास्ता सबसे सही है. 

एक उभरते हुए देश की अर्थव्यवस्था पर रीडिस्ट्रब्यूशन यानी पुनर्वितरण को लेकर किए जाने वाली बयानबाज़ी का बोझ डालना या फिर धन और नौकरी का सृजन करने वालों को उनके द्वारा लिए गए ज़ोख़िमों और उनमें से कुछ लोगो को मिलने वाले लाभ के लिए उन्हें दंडित करना उभरते भारत को स्वतंत्रता के बाद के पहले चार दशकों के दमनकारी दौर में वापस ले जाने जैसा होगा. बड़े कॉर्पोरेट संस्थाओं के लिए देश में व्याप्त अवमानना और उन्हें छोटा करने की चेष्टा का अंत होना चाहिए. इस बात को आर्थिक रूप से समझना और राजनीतिक रूप से इसे जन जन तक पहुंचाने की ज़रूरत है कि यही बड़ी कॉरपोरेट कंपनिया ही, न कि छोटे और मध्यम उद्यम, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सबसे अधिक प्रतिस्पर्धी बन पाते हैं चाहे वह उद्योग श्रमिकों का उपयोग करने वाले ही क्यों न हो.  प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में निरंतर प्रगति की सीढ़ी पर चढ़ने में भी यही सक्षम होते हैं.[18] अंत में, छोटे होने और छोटे रहने के सभी राजनीतिक गुणों के लिए, यह केवल बड़ी बड़ी कॉरपोरेट कंपनिया सक्षम हो पाती हैं. चाहे जितनी भी छोटे उद्योग और धीमी गति की बात की जाए लेकिन यह भी सत्य है कि श्रम कानून सारे बड़े उद्योगों पर ही लागू होते हैं विशेष रूप से श्रमिक संरक्षण और सुरक्षा के कानून. मोदी सरकार को अपने तीसरे कार्यकाल में उन नीतियों को समाप्त करने की ओर कदम बढ़ाना चाहिए जो बड़ी कंपनियों को आगे बढ़ने में बाधा बनती हैं. 

इस पूरी बात को सही परिप्रेक्ष्य में समझने के लिए यह जानना ज़रूरी है कि भारत में कुल 63 मिलियन औद्योगिक इकाइयां हैं पर इनमें से केवल 1 मिलियन मतलब या कुल उद्योग का केवल 1.6 प्रतिशत ही औपचारिक तौर पर एम्प्लॉयर की श्रेणी में आते हैं. यह इसलिए है  क्योंकि 98 प्रतिशत से अधिक भारतीय एम्प्लॉयर यानी नौकरी प्रदान करने वाले उद्योग शायद जानबूझकर छोटे रहना पसंद करते हैं और इसी कारण से औपचारिक बैंकिंग प्रणाली, श्रेष्ट प्रतिभा, अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी और जटिल आपूर्ति श्रृंखलाओं जैसी सुविधाओं तक उनकी पहुंच सीमित ही रहती है. जहां तक रोज़गार सृजन की बात है, उनमें से अधिकांश न केवल औसतन तीन से कम कर्मचारियों को रोज़गार देते हैं बल्कि उन्हें न्यूनतम मजदूरी या सामाजिक सुरक्षा जैसे कानूनों का पालन करने की भी आवश्यकता नहीं होती है. ऐसा देखा गया है कि छोटी कंपनियां छोटी रहना चाहती हैं और यह इसलिए नहीं कि वे कानूनों से बचना चाहती हैं बल्कि इसलिए क्योंकि औपचारिक क्षेत्र के लिए बने कानूनों और नियमों की शर्तों का अनुपालन बहुत जटिल है और अगर उनका उल्लंघन होता है तो उस स्थिति में उससे निजात पाना उससे भी ज़्यादा परेशानी वाला काम है. एक आंकड़ा इस बात को स्पष्ट करता है, यह आंकड़ा है 400 : इस आकड़े का मतलब है कि जिस क्षण एक उद्यमी औपचारिक अर्थव्यवस्था का हिस्सा बन कर अपना उद्योग चलाना शुरू करता है तो उसे एक वर्ष में 400 से अधिक अनुपालन यानि कम्प्लाइंसेस उसके ऊपर एक साल में लागू हो जाते हैं जो उसे व्यवस्था के औपचारिक पक्ष को निभाने के लिए पूरे करने होते हैं.[19] 21 वीं सदी में भारत की उड़ान का पैमाना उद्योगों के और अर्थव्यस्था के फ़ैलाव पर निर्भर है और मोदी की तीसरी सरकार के पास एक बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी अपने नीतिगत कार्य से कम्प्लाइंसेस यानी अनुपालन सुधारों की है.[20] एक छोटी लेकिन महत्वपूर्ण शुरुआत पिछले कार्यकाल में की गई है[21] लेकिन बड़े पैमाने पर अब भी मौजूद ये कम्प्लाइंसेस आज भारत के विकास की गति को धीमा कर रही हैं. 

यह बात उल्लेखनीय है कि इसके बावजूद न केवल अर्थव्यवस्था आगे बढ़ रही है बल्कि नौकरियों का भी निरंतर सृजन हो रहा है. भारतीय रिजर्व बैंक की एक रिपोर्ट[22] बताती है कि अप्रैल 2023 और मार्च 2024 के बीच भारत में 46.7 मिलियन नई नौकरियों का सृजन हुआ[23] और उसने कृषि, मैन्युफैक्चरिंग और सर्विसेज के 27 उद्योगों[24] में “प्रोविजनल  नौकरियों" की कुल संख्या 643.3 मिलियन कर दी है जो पिछले वर्ष की संख्या 596.7 मिलियन की तुलना में 7.8 प्रतिशत अधिक है. (चित्र 1 देखें) बेरोज़गारी में वृद्धि की जो कहानी अक्सर सुनाई जाती है उस पर गहन चर्चा की ज़रूरत है. और इस चर्चा में उद्योग लगाने वालो की, व्यापारियों और दुकानदारों की बात को तवज्जो दी जानी चाहिए. उनके अनुभव हमारे लिए साक्ष्य समान है जो ये बयान करते है कमी नौकरियों की नहीं पर किसी नौकरी के लिए उपयुक्त और ट्रेनिंग पाए हुए लोगों की है. यह एक ऐसी समस्या है जो केवल भारत के लिए ही नहीं है[25] अपितु सारे वैश्विक बाज़ार के लिए एक चुनौती है.[26]

चित्र. 1. नौकरियों के चार दशक

स्रोतः भारतीय रिजर्व बैंक


केंद्र और राज्यों के बीच की आर्थिक साझेदारी मज़बूत हो 

मोदी सरकार को अपने तीसरे कार्यकाल में यह सुनिश्चित करना चाहिए कि मोदी सरकार द्वारा पहले और दूसरे कार्यकाल में किए गए सुधार राज्यों तक पहुंचे और वह भी उसी विश्वास के साथ जो केंद्र में देखा गया. भारत के संयुक्त विकास का सपना पूरा करने की प्रक्रिया का सबसे बड़ा पड़ाव कई प्रगतिशील राज्यों को साथ लेकर चलना है. यदि भारत को 2032 तक 10 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनना है तो यह महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, गुजरात और कर्नाटक जैसे राज्यों के विकास की यात्रा में मुख़्य कड़ी बने बगैर नहीं हो पाएगा. इन सभी पांच राज्यों को 2032 तक 600 अरब डॉलर से 1 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के लिए 10 से 12 प्रतिशत प्रति वर्ष या उससे अधिक की नॉमिनल दर से विकास करने की आवश्यकता होगी. इन पांच राज्यों के 4.5 ट्रिलियन डॉलर के संयुक्त सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के साथ साथ 5.4 ट्रिलियन डॉलर की शेष राशि अन्य राज्यों से आने की ज़रूरत है.  यद्यपि प्रत्येक राज्य वैसे तो अपने स्तर पर निवेशों को आकर्षित करने का प्रयास कर रहा है जो निश्चय ही रोज़गार पैदा करते हैं लेकिन ये सभी प्रयास या तो राष्ट्रीय विकास की आकांक्षा के अनुरूप नहीं हैं या राष्ट्रीय विकास में तब्दील नहीं हो पाएंगे क्योंकि भारत की राजनीतिक अर्थव्यवस्था की दशा और भारत में लोकतंत्र की विशेषताएं ही कुछ ऐसी है जो विभिन्न परतों में कार्य करती हैं. 

तालिका 2. भारत के दस सबसे बड़े राज्य और उनकी  GSDP 

 

राज्य 

GSDP *

GSDP #

महाराष्ट्र 

31,08,022 

372

तमिलनाडु 

20,71,286 

248

उत्तर प्रदेश

 19,74,532 

237

कर्नाटक 

19,62,725 

235

गुजरात 

19,37,066 

232

पश्चिम बंगाल

 13,63,926 

163

राजस्थान

 12,18,193

 146

मध्य प्रदेश 

11,36,137 

136

आंध्र प्रदेश 

11,33,837 

136

तेलंगाना 

11,28,907 

135

वर्ष 2021 - 2022 के लिए बेस वर्ष 2011 -2012 को लेकर की गई गणना * Crore Rs में  # बिलियन डॉलर में   

स्रोतः भारतीय रिजर्व बैंक

भारत के शीर्ष पांच सबसे बड़े राज्य कई देशों की आर्थिक क्षमता के तुल्य हैं. महाराष्ट्र लगभग दक्षिण अफ्रीका के तुल्य है, तमिलनाडु लगभग न्यूजीलैंड जितना बड़ा है, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक ग्रीस के जितना हैं, और गुजरात की अर्थव्यवस्था तो हंगरी से भी बड़ी है. यदि महाराष्ट्र प्रतिवर्ष 10 प्रतिशत की दर से तरक्की करता है तो वह 2034 तक आज के सऊदी अरब जितना बड़ा हो जाएगा जो अभी एक ट्रिलियन डॉलर का देश है. और गुजरात 660 बिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बन जाएगा, जो आज अर्जेंटीना से भी बड़ा है. इसी अवधि के दौरान अगर अन्य राज्य भी समान विकास दर पर आगे बढ़े तो राजस्थान जैसे मध्यम दर्जे के राज्य वियतनाम के करीब होंगे और तेलंगाना तो दक्षिण अफ्रीका से भी बड़ा हो जाएगा [A ],[27]

जहां तक राजनीति की बात है, नरेंद्र मोदी का तीसरा कार्यकाल 3.0 राष्ट्रीय एकीकरण और राज्यों में उच्च विकास को बढ़ावा देने का काम कर सकता है. यदि इस कार्य में राजनीति एक बाधा बनती है तो वे केंद्र सरकार के साथ काम करने के लिए NDA शासित राज्य सरकारों पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं और उन पर जोर दे सकते हैं. जबकि तीन बड़े राज्य - महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और गुजरात प्रगति की इस दौड़ को पैमाना प्रदान कर सकते हैं, राजस्थान, मध्य प्रदेश और हरियाणा जैसे राज्य अपने छोटे आधारों के कारण विकास को बढ़ावा दे सकते हैं. आर्थिक विषयों पर आम सहमति राज्यों के बीच कॉम्पिटिटिव फेडरलिस्म यानी प्रतिस्पर्धी संघवाद की भावना को बढ़ावा प्रदान कर सकती है.  भूमि, श्रम और कृषि से संबंधित बाज़ार सुधारों को लागू करने के लिए राज्य सरकारों के राजनीतिक और प्रशासनिक समर्थन की आवश्यकता होगी. इसके अलावा राज्यों के अंदर आने वाले शहरों को शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और मनोरंजन से भरपूर रहने योग्य, कुशल और गतिशील केंद्र बनना होगा. घरेलू और वैश्विक शीर्ष प्रतिभाओं को आकर्षित करने के लिए इन राज्यों को उनके औद्योगिक समूहों वाले इलाको को जिसे इंडस्ट्रियल क्लस्टर कहते हैं उसे बढ़ावा देना होगा[28] यह या तो स्वतः ही होगा या फिर इसका व्यवस्थित रूप से निर्माण करना होगा, अधिकांश अवसर में इसका निर्माण ही करना होता है. 

वित्तीय सुधारों की गति को जारी रखना होगा...

रुपए की पूर्ण परिवर्तनीयता तो अभी बाकी है लेकिन इसके अलावा बाज़ार के तीसरे स्तंभ के रूप में अब पूंजी काफ़ी हद तक मौजूद है और भुगतान यानी पेमेंट्स के क्षेत्र में भारत विश्व में अग्रणी देश है.  भारत की UPI (यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस) प्रणाली न केवल दुनिया के लिए एक बेंचमार्क है बल्कि यह आज सबसे तेजी से बढ़ने वाली और सबसे बड़ी प्रणाली भी है. इस उपलब्धि के पैमाने को स्पष्ट करने के लिए यह आकड़ा जानना ज़रूरी है कि भारत एक महीने में यूपीआई पर जितना लेन-देन करता है वह कई देशों के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) से भी अधिक है. केवल मई 2022 में 125 बिलियन अमेरिकी डॉलर का लेनदेन कर यह इथियोपिया के सकल घरेलू उत्पाद के आसपास रहा था और मई 2023 में (179 बिलियन अमेरिकी डॉलर) के लेनदेन के साथ लगभग हंगरी के सकल घरेलू उत्पाद के बराबर था.  मई 2024 में (245 बिलियन अमेरिकी डॉलर (चित्र 2 देखें) का लेनदेन लगभग न्यूजीलैंड का सकल घरेलू उत्पाद जितना है.[29] पिछले 12 महीनों में (US $2.4 ट्रिलियन) UPI पर जो लेनदेन हुए वे रूस, कनाडा या इटली की GDP से अधिक थे. 

चित्र. 2. UPI पर मासिक लेन-देन का मूल्य (करोड़ रुपये में) जुलाई 2016 – मई 2024 के बीच 


स्रोतः नेशनल पेमेंट्स कारपोरेशन ऑफ़ इंडिया (NPCI)

यह भारत के डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर का ही कमाल है जो फ्रांस और सिंगापुर सहित अब तक सात देशों में निर्यात हो चुका है और इसे सॉफ्ट एक्सपोर्ट के नाम से जाना जाता है.[30] इन प्रभावशाली सुधारों को जारी रखने की आवश्यकता है क्योंकि अब भारत गुजरात के GIFT सिटी में बने अंतरराष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र यानी इंटरनेशनल फाइनेंशियल सर्विसेज सेंटर[31] के माध्यम से एक वैश्विक वित्तीय केंद्र बन गया है.[32]

जहां तक वित्तीय सुधारों का सवाल है वे निरंतर हो रहे हैं और हम इस प्रक्रिया में आगे हैं. भारतीय रिजर्व बैंक ने विकास को गति देने और आर्थिक स्थिरता प्रदान करने के बीच एक संतुलन बना लिया है और इस प्रक्रिया में सबसे महत्वपूर्ण मुद्रास्फीति की दर को  +/- 2 प्रतिशत ऊपर या नीचे के साथ 4 प्रतिशत के लक्ष्य पर रखना है.[33]

भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) ने निवेशकों के हित को ध्यान में रखते हुए दुनिया की एक सबसे मजबूत बाज़ार प्रणाली का निर्माण किया है.  जिस गति से निवेशकों ने पिछले सात वर्षों में सिस्टेमेटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (SIP)[34] के माध्यम से इक्विटी में अपना पैसा निवेश किया है वह बाज़ार में निवेशकों के बढ़ते विश्वास का सिर्फ एक छोटा सा पैमाना है.  (चित्र 3 देखे ) 2023-24 के दौरान, कुल SIP 200,000 करोड़ रुपए यानी US $24 बिलियन के करीब था जो पिछले सात वर्षों में प्रति वर्ष 24 प्रतिशत की गति से बड़ा है और भारतीय बाज़ार के लिए ज़्यादा अस्थिर विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों के मुकाबले स्थिरता का कारण बना.[35] बाज़ार में उपलब्ध यह पैसा अब निवेश के लिए नए रास्ते तलाश रहा है जो भारत की बढ़ती अर्थव्यवस्था पूंजी बाज़ारों के माध्यम से पा रही है. 

चित्र. 3. म्यूचुअल फंडों की सिस्टेमेटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (SIP) का बढ़ता स्वरूप

Source: Association of Mutual Funds in India

राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली[36] अब अपने आप में एक मजबूत उत्पाद बन गई है जिसे अब और मजबूत और विस्तारित करने की आवश्यकता है. पेंशन फंड रेगुलेटरी एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी (PFRDA) द्वारा संचालित यह सेवा अभी भारत की माइग्रेंट पापुलेशन (प्रवासी आबादी) के लिए कार्य करने में सक्षम नहीं हुई है. कुल मिलाकर बैंकिंग, सिक्योरिटी मार्किट (प्रतिभूति बाज़ार) और पेंशन की इस तिकड़ी को 'इंडिया स्टोरी’ के साथ बने रहने और कहीं अधिक तेज़ी से आगे बढ़ने की आवश्यकता होगी क्योंकि प्रौद्योगिकी नए अवसरों के साथ कई ख़तरों को भी पैदा करती है जिसका मुकाबला करना होगा.

वित्तीय क्षेत्र के सुधारों की दौड़ में पिछड़ने वाली एकमात्र भारतीय संस्था बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण (IRDA)  है जो उपभोक्ता-केंद्रित संगठन बनने के बजाय एक उद्योग संघ[37] की तरह व्यवहार करती है.  दिलचस्प बात यह है कि यह एकमात्र ऐसी नियामक संस्था है जिसकी स्थापना 1999 हुई थी. इसकी स्थापना होने के बाद से लगातार कई सरकारें इसमें किसी भी प्रकार के सुधार में असमर्थ रही हैं. यह एक ऐसा संगठन बन गई है जिसका नियामक ढांचा अनियंत्रित व्यवहार कर रहा है. IRDA उपभोक्ताओं की कीमत पर उद्योग और उनके एजेंटों की सेवा में लगा है.  मोदी सरकार को इस इकाई पर नीतिगत ध्यान केंद्रित करने और इसके व्यवहार को नियंत्रित करने की आवश्यकता है ताकि ये SEBI से निवेशक के हित में कार्य करने का सबक सीख सकें. उपभोक्ताओं की दृष्टि से IRDA नियामक की ओर से 2004-05 और 2011-12[38] के बीच INR 1.5 ट्रिलियन का अनुमानित नुक़सान हुआ और यह नुक़सान उसके बाद से अब तक और तेजी से बढ़ा होगा.

मैन्युफैक्चरिंग की ओर अधिक नीतिगत ध्यान दिये जाने की ज़रूरत 

बाज़ार के तीन स्तंभों में से एक पूंजी से भी अधिक नरेंद्र मोदी को अपने तीसरे कार्यकाल में कुछ और बातों पर भी ध्यान देने की ज़रूरत है . सरकार को अधिक नीतिगत ध्यान और प्रशासनिक कुशलता भारत को रोज़गार सृजन और इनोवेशन से युक्त धन सृजन के लिए वैश्विक प्रोडक्शन हब बनाने में दिखानी होगी.  उन्हें ऐसी नीतियां और प्रोत्साहन तैयार करने होंगे जो बाजार के पहले दो स्तम्भ भूमि और श्रम (लैंड और लेबर ) को अधिक उत्पादक बना दें. दोनों भूमि और श्रम सुधार भी कृषि सुधारों की तरह बेहद भावनात्मक और राजनीतिक विषय है. भारत के तेजी से विकास के लिए इस कार्यकाल में मोदी सरकार को महत्वपूर्ण सुधार करने होंगे जो तीसरी पीढ़ी के सुधार कहलायेंगे. यह कार्य सरल है, इसके लिए अत्यधिक विनियमन को कम करना होगा और छोटी कंपनियों को आगे बढ़ाने और बड़ी कंपनियों को वैश्विक स्तर प्राप्त करने के लिए मदद करनी होगी.

जैसा कि पहले चर्चा की गई है और चित्र में दर्शाया भी गया है, 2004-05 और 2017-18 के दौरान 475 मिलियन और 455 मिलियन के मामूली बढ़त के आलावा 13 वर्षों में नौकरियों की वृद्धि लगभग सपाट ही रही है लेकिन अब रोज़गार फिर से बढ़ रहा है. इस तथ्य के अलावा नौकरियों की संख्या में बड़ी छलांग तभी आएगी जब उच्च गुणवत्ता, उच्च वेतन वाली नौकरियों के लिए ज़मीन तैयार की जाएगी. यह भारत के आर्थिक आधार को मैन्युफैक्चरिंग की ओर मोड़ेगा. आज भारत में  54.6 प्रतिशत आबादी[39] खेतों पर आश्रित है लेकिन खेती अर्थव्यवस्था को केवल 16.7 प्रतिशत का योगदान देती है. [B],[40] मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र की नौकरियां सबसे पहले कृषि श्रमिकों को भारत की प्रगति में भागीदार बनाएंगी. एक बार जब यह रिश्ता मजबूती से कायम हो जाएगा तो छोटे और सीमांत किसान भी इसका अनुसरण करेंगे. यह सब तब संभव हो पाएगा जब नौकरियों से मिलने वाला वित्तीय लाभ कृषि से मिलने वाले वित्तीय लाभ से अधिक होगा. इन लाभों को कृषि से अधिक स्थिर भी होना होगा. भूमि और कृषि क्षेत्र में कोई भी सुधार मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र के विकास के बिना संभव नहीं है.

वे विश्लेषण जो यह संकेत देने का प्रयास करते हैं कि भारत मैन्युफैक्चरिंग की दौड़ में पिछड़ गया है वे सब अतीत के अनुभवों का विस्तार भविष्य के लिए कर के करते हैं.[41] लेकिन यह जानना यहाँ ज़रूरी है कि अतीत की व्यवस्था में अब मूल चूल परिवर्तन आ चुका है. सच्चाई यह है कि अगले दो दशकों में अकेले एशियाई बाज़ारों से मैन्युफैक्चरिंग की पर्याप्त मांग होने की संभावना है.[42] भारत के उद्योगों को बस इस मांग का लाभ उठाना है और भारत सरकार को इस पूरी प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने में मदद करनी होगी.

सबसे पहले नियामक यानि कम्प्लाइंस कानूनों में सुधारों के माध्यम से केंद्र और राज्य स्तरों पर मैन्युफैक्चरिंग में आ रही बाधाओं को दूर किया जाना चाहिए. दूसरी बात एक विशेष कौशल विकास के अभियान की आवश्यकता है जो उद्योग द्वारा आवश्यक विशिष्ट कार्यों के लिए कार्यबल को तैयार करे. तीसरी बात, सरकार को मैन्युफैक्चरिंग नौकरियों में एक साफ़ और स्थायी वृद्धि प्रदान करने के लिए काम करने की आवश्यकता है ताकि वह श्रम-पूंजी के बीच विश्वास पैदा कर सकें. अंत में, कृषि श्रमिकों को मैन्युफैक्चरिंग में प्रवेश करने का वातावरण बनाना होगा. इस कार्य में दो तरह के प्रोत्साहन सहायक होंगे. ये दोनों प्रोत्साहन एक साथ ही काम करेंगे. पहला उद्यमियों का ज़ोख़िम से जूझने के लिए पर्याप्त पूंजी प्रदान करना और श्रमिकों का उस पूंजी द्वारा बनाई गई क्षमताओं में बदलने के लिए मिलकर काम करना. केंद्र और राज्य सरकारों को भी बिचौलियों और भ्रष्टाचार की बाधा को कम करने के लिए कदम उठाने होंगे.

निष्कर्ष: आर्थिक सहमति के नये युग की ओर मिलजुल कर बढ़ें..

राजनीतिक मतभेदों के बावजूद भारत के समृद्ध और गहरे लोकतंत्र की जड़ो के चलते, सन 2047, स्वतंत्रता की शताब्दी तक विकसित भारत यानी विकसित देश का दर्जा प्राप्त करने के लिए देश की महत्वाकांक्षा का आर्थिक एकता और सहमति एक अनिवार्य घटक है. इसका यह भी मतलब है कि इन नीतियों की सफ़लता अतीत में वापसी को रोकने के लिए भी महत्वपूर्ण है.  सरकारी नौकरियों के माध्यम से मजदूरी पैदा करना, सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के माध्यम से धन और सरकारी खजाने से वित्त पोषित उदारता के माध्यम से कल्याण का विचार 20वीं शताब्दी का है. 21वीं सदी के भारत जैसे गतिशील देश को अतीत की जंग लगी सोच को ख़त्म करने की जरूरत होगी.  पुरानी सोच को विकास के रास्ते में रोड़ा नहीं बनना चाहिए और इसके लिए राजनीतिक, वैचारिक या सांस्कृतिक जड़ता को प्रोत्साहित करने से बचना होगा. विकास के वैकल्पिक मॉडल की सफ़लता ही एक जीवंत 'भारत 2047' की दिशा में एक राजनीतिक सहमति का सृजन कर सकती है. मोदी सरकार की यह ज़िम्मेदारी है कि इस गतिशीलता को निर्देशित कर, देश की जनसंख्या बल का उपयोग कर और अर्थव्यवस्था के हर क्षेत्र में उच्च विकास प्रदान कर के भारत जो अब चार ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) वाला देश बन गया है उसे अब और ऊर्जा और शक्ति प्रदान करे. 

 

प्रधानमंत्री के पहले दो कार्यकालों से ठीक अलग अब सुधारों के प्रति दृढ़ निश्चय को लेकर की जानी वाली बातों से किसी को लुभाना मुश्किल होगा. इस कार्यकाल में आर्थिक सुधारों के लिए दृढ़ निश्चय आवश्यक है किन्तु पर्याप्त नहीं होगा क्योंकि अबकी बार कई अन्य पहलू भी ज़रूरी है जिसमे दक्षतापूर्ण राजनीतिक संवाद और प्रशासनिक तौर पर किए जाने वाले कार्य शामिल हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब तक बैंक खाते ख़ुलवाने के लिए जन धन योजना,[43] किसी भी तरह के परेशानी से मुक्त डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर,[44] लेनदेन में आसानी के लिए पेमेंट सिस्टम[45] और स्वास्थ्य सेवा के लिए आयुष्मान भारत[46] जैसे सुधारों के साथ कुछ महत्वपूर्ण सुधार करने में सफ़ल रहे हैं.

जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विफ़ल रहे हैं वे क्षेत्र हैं भूमि सुधार[47] और कृषि सुधार के क्षेत्र.[48] यदि सरकार द्वारा दिए जाने वाले लाभ सीधे कृषि श्रमिकों तक पहुंचे तो वे बहुत हद तक मानव संसाधन को कृषि से मैन्युफैक्चरिंग की और मोड़ कर इस क्षेत्र में सुधारों को लाने में सक्षम होंगे. स्टेट और मार्केट  के बीच का अविश्वास और तनाव राजनीति से पैदा हुई बात है और उसका समाधान भी सकारात्मक राजनीति में ही है. हाल के दिनों में जैसा हुआ है, उसे देखते हुए अब हर सुधार के कदम को न्यायिक जांच की कसौटी को भी पार करना होगा. अतः किसी भी सुधार को लाने से पहले उसके सारे पहलुओं पर विचार करना होगा और आखिरी पंक्ति के व्यक्ति तक इस सुधार के होने वाले प्रभाव को समझ कर कार्य करना होगा.

 

अंत में, नरेंद्र मोदी के तीसरे कार्यकाल में एक ऐसी औद्योगिक नीति का मसौदा तैयार होना चाहिए जो भारत को विकसित भारत की ओर ले जाए. अब तक भारत ने 1944 से 1991 के बीच नौ औद्योगिक नीतियों को देखा है ( टेबल 3 देखे). स्वतंत्र भारत में तैयार की गई सात नीतियों में से छह ने अर्थव्यवस्था को कंगाली के कगार पर ला दिया था. 1991 में जब प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने संसद में औद्योगिक नीति पर वक्तव्य दिया था, तभी विकास शुरू हुआ. अब जब इस नीति के 33 साल पूरे हो चुके है और कई प्रधानमंत्रियों द्वारा कई नीतियों में प्रगतिशील बातें जोड़ने और 2014 से  2024 के बीच लागू किए गए महत्वपूर्ण सुधारों के बाद, नरेंद्र मोदी के तीसरे कार्यकाल में इन नीतियों और सुधारों के आगे अब नई औद्योगिक नीति को लाकर भारत को अगले पच्चीस साल के लिए विकास के सफ़र में प्रवेश करवाने की ज़रूरत है. 

 

टेबल 3. औद्योगिक नीतियां (1944-1991)

औद्योगिक नीतियां (1944 से 1991 तक) 

नीति

वर्ष 

प्रधानमंत्री

द बॉम्बे प्लान 

1944/1945

आज़ादी से पहले 

स्टेटमेंट ऑफ़ इंडस्ट्रियल पालिसी 

1945

आज़ादी से पहले 

रेसोलुशन

1948

जवाहरलाल नेहरू 

इंडस्ट्रियल पालिसी रेसोलुशन  

1956

जवाहरलाल नेहरू

इंडस्ट्रियल पालिसी 

1973

इंदिरा गांधी 

इंडस्ट्रियल पालिसी 

1977

मोरारजी देसाई 

स्टेटमेंट ऑफ़ इंडस्ट्रियल पालिसी 

1980

इंदिरा गांधी

इंडस्ट्रियल पालिसी

1990

विश्वनाथ प्रताप सिंह 

स्टेटमेंट ऑफ़ इंडस्ट्रियल पालिसी 

1991

पी वी नरसिम्हा राव 

स्रोतः चिकरमाने (2022)[49]

 

मोदी की औद्योगिक नीति को तीन नए और महत्वपूर्ण व्यवधानों और परेशानियों को ध्यान में रखना चाहिए. धन सृजन करने वालों और निजी क्षेत्र को राष्ट्रीय मुख्यधारा में लाकर, उन्होंने अपनी नीतिगत मंशा को पहले ही स्पष्ट कर दिया है और अपने पहले दो कार्यकालों में उन्होंने इस दिशा में पहले ही कदम उठा लिया है.[50] अब उनके शब्दों को नीतिगत कदमों में परिवर्तित करने की आवश्यकता है जिससे छोटे और मध्यम आकार के व्यवसायों को आगे बढ़ने में सहायता मिले. उन्हें इस कार्य में मिशन मोड में काम करने की ज़रूरत है ताकि हर तरफ से भ्रष्टाचार समाप्त हो सके. व्यापार करने की लागत को कम करने और इसे और अधिक कुशल बनाने की भी आवश्यकता है. दूसरी महत्वपूर्ण बात उन्हें अप्रत्याशित पश्चिम देशों और रूस, जो चीन का सामना करने में अब तक सहायक रहा है, के साथ मजबूत संबंध बनाए रखना होगा. तीसरी महत्त्वपूर्ण बात मोदी सरकार को प्रौद्योगिकी और विशेष रूप से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है. इनोवेशन और रेगुलेशन के बीच संतुलन बनाए रखना भी ज़रूरी है.

मोदी सरकार की औद्योगिक नीति को दीर्घकालिक रूप से 'भारत 2047' को ध्यान में रखते हुए अभूतपूर्व सुधारों के श्रीगणेश का कारण बनना होगा. साथ ही उन्हें शार्ट टर्म सुधारों के साथ 2029 और उससे आगे की यात्रा को सशक्त करना चाहिए ताकि धन और कल्याण, विकास और समानता, उद्यम और नौकरियां, अच्छी राजनीति और अच्छे अर्थशास्त्र के बीच का संतुलन हमेशा बना रहे.

 

आगे आने वाले समय करने लायक सुधार के कदम जो कम चुनौतियों का सामना करने की हालत में हैं वे कदम हैं, चार श्रम संहिताओं की अधिसूचना जारी करना,[51] कैपिटल टैक्स  से संबंधित प्रत्यक्ष करों में बदलाव करना; KYC (नो योर कस्टमर) के मानदंडों को बार बार बदलने के अत्याचार को समाप्त करके सुगम वित्तीय मार्ग प्रशस्त करना; पिछले कार्यकाल में शुरू किए गए कंप्लायंस को लेकर हो रहे सुधारों को और तेज़ करना;[52] और फर्मों के लिए एक विशिष्ट उद्यम संख्या (यूनिक एंटरप्राइज़ नंबर) ले के आना जो आधार के जैसा होगा और कंपनियों और सरकारों के बीच सभी वित्तीय या नियामक आवश्यकताओं के लिए संवाद करने का एक साधन बनेगा.[53] और इन सब के बाद थोड़ी सी भी अगर राजनीतिक तौर पर बदलाव लाने की गुंजाइश हो तो तत्काल आवश्यकता है कि भारत की सिविल सर्विसेस और न्यायपालिका दोनो संस्थानों में अब तत्काल सुधार होना चाहिए.  

 

हालांकि ये सुधार पिछले दस वर्षों में किए जा सकते थे लेकिन आज गठबंधन की राजनीति के बीच संभावित खींचतान की गुंजाइश के बावजूद नरेंद्र मोदी सरकार को इन सब घटकों के बीच सामंजस्य स्थापित करते हुए सुधारों की सीढ़ी चढ़नी होगी. नरेंद्र मोदी को राजनीतिक मतभेदों के बीच एक आर्थिक सहमति बनाने की आवश्यकता होगी क्योंकि ये मतभेद अगले पांच वर्षों में सुधारों के लिए सबसे बड़ी चुनौती हो सकते हैं.

Endnotes

[a] This author is not suggesting that an economy grows in a linear, predictable manner, but is only highlighting indicative trend lines.

[b]  The world average is 4.3 percent.

[1] Gautam Chikermane, Reform Nation: From the Constraints of P.V. Narasimha Rao to the Convictions of Narendra Modi (HarperCollins, 2022), pp. 228-229.

[2] Chikermane, Reform Nation, pp. 225-226.

[3] Chikermane, Reform Nation, pp. 220-221

[4] Chikermane, Reform Nation, p. 237.

[5]  World Bank data.

[6] Ministry of Statistics and Programme Implementation, “Second Advance Estimates of National Income, 2023-24, Quarterly Estimates of Gross Domestic Product for the Third Quarter (October-December), 2023-24 and First Revised Estimates of National Income,  Consumption Expenditure, Saving and Capital Formation, 2022-23,” Press Information Bureau, Government of India, 29 February 2024.

[7] International Monetary Fund, “GDP, current prices”.

[8]What are structural reforms?” European Central Bank, 18 October 2017.

[9] Election Commission of India, “General Election to Parliamentary Constituencies: Trends & Results June-2024,” 5 June 2024.

[10] Carrington Clarke and Anne Worthington, “Argentina was one of the world’s richest countries. Now poverty is rife and inflation is over 100 per cent,” Australian Broadcasting Corporation, 4 October 2023.

[11] Daniel Di Martino, “How Socialism Destroyed Venezuela,” Manhattan Institute, 21 March 2019.

[12] Kongdan Oh, “Political Classification and Social Structure in North Korea,” Brookings, 5 June 2003.

[13] See: K.L. Datta, Growth and Development Planning in India (Oxford University Press, 2021), pp. 121-202; and Gautam Chikermane, Reform Nation: From the Constraints of P.V. Narasimha Rao to the Convictions of Narendra Modi, HarperCollins (2022), pp. 58-132.

[14] Datta, Growth and Development Planning in India, p. 127.

[15] Datta, Growth and Development Planning in India, Table 7.1, p. 259; Table 7.2, p. 269; Table 7.3, p. 270.

[16] Datta, Growth and Development Planning in India, p. 3.

[17] Surjit S. Bhalla and Karan Bhasin, “India eliminates extreme poverty,” Brookings, 1 March 2024, https://www.brookings.edu/articles/india-eliminates-extreme-poverty/.

[18]  Rakesh Mohan, “Moving India to a New Growth Trajectory: Need for a Comprehensive Push”, Brookings India, June 2019, p. 59.

[19] Gautam Chikermane and Rishi Agrawal, “8 reforms to end India’s regulatory cholesterol,” Observer Research Foundation, 24 July 2021.

[20] Gautam Chikermane and Rishi Agrawal, Jailed for Doing Business: The 26,134 Imprisonment

Clauses in India’s Business Laws (Observer Research Foundation, 2022), https://www.orfonline.org/wp-content/uploads/2022/02/ORF_Monograph_JailedForDoingBusiness_Final-New-11Feb.pdf.

[21] Gautam Chikermane and Rishi Agrawal, “Jan Vishwas Bill provides a framework for future reforms,” Observer Research Foundation, 10 August 2023, https://www.orfonline.org/expert-speak/jan-vishwas-bill-provides-a-framework-for-future-reforms.

[22] Reserve Bank of India, “Measuring Productivity at the Industry Level-The India KLEMS Database,” 8 July 2024, https://www.rbi.org.in/Scripts/BS_PressReleaseDisplay.aspx?prid=58246.

[23] “Countries in the world by population (2024),” Worldometer, Updated on 16 July 2023, https://www.worldometers.info/world-population/population-by-country/.

[24] These are: Agriculture, Hunting, Forestry and Fishing; Mining and Quarrying; Food Products, Beverages and Tobacco; Textiles, Textile Products, Leather and Footwear; Wood and Products of Wood; Pulp, Paper, Paper Products, Printing and Publishing; Coke, Refined Petroleum Products and Nuclear Fuel; Chemicals and Chemical Products; Rubber and Plastic Products; Other Non-Metallic Mineral Products; Basic Metals and Fabricated Metal Products; Machinery; Electrical and Optical Equipment; Transport Equipment; Manufacturing, recycling; Electricity, Gas and Water Supply; Construction; Trade; Hotels and Restaurants; Transport and Storage; Post and Telecommunication; Financial Intermediation; Business Services; Public Administration and Defense; Compulsory Social Security; Education; Health and Social Work; and Other Services.

[25]  “L&T short of 45,000 workers & techies: MD,” The Times of India, 27 June 2024, https://timesofindia.indiatimes.com/business/india-business/lt-short-of-45000-workers-techies-md/articleshow/111296273.cms.

[26]  “Why is there a global labor shortage?,” Randstad, 25 March 2024, https://www.randstad.in/hr-news/corporate-culture/why-there-a-global-labor-shortage/.

[27] State growth rates are taken at 10 percent; country data sourced from World Bank.

[28] Mercedes Delgado Michael E. Porter Scott Stern, “Clusters, Convergence, and Economic Performance,” Working Paper 18250, National Bureau of Economic Research, July 2012, http://www.nber.org/papers/w18250.

[29] Data sourced from National Payments Corporation of India, and World Bank.

[30]  “List of countries that accept UPI,” National Payments Corporation of India, Undated, https://www.npci.org.in/who-we-are/group-companies/npci-international/list-of-countries.

[31] “International Financial Services Centre,” GIFT City, https://giftgujarat.in/business/ifsc.

[32] “The GIFT Vision,” GIFT City, https://giftgujarat.in/about.

[33] Ministry of Finance, “Monetary Policy Framework Agreement,” Press Information Bureau, Government of India, 7 August 2015, https://pib.gov.in/newsite/PrintRelease.aspx?relid=124605.

[34] “Mutual Fund SIP accounts stood at 8.99 CRORE! And the total amount collected through SIP during June 2024 was ₹ 21,262 crore,” Association of Mutual Funds in India, Undated, https://www.amfiindia.com/mutual-fund.

[35] Gautam Chikermane, “Sensex at 80,000: Financial articulation of India’s growth will likely continue,” Observer Research Foundation, 9 July 2024, https://www.orfonline.org/expert-speak/sensex-at-80-000-financial-articulation-of-india-s-growth-will-likely-continue.

[36] Ministry of Finance, “National Pension System [All Citizen Model],” Department of Financial Services, Undated, https://financialservices.gov.in/beta/en/national-pension-system-all-citizen-model.

[37] Gautam Chikermane, 70 Policies that Shaped India (Observer Research Foundation, 2018), p. 108.

[38] Monika Halan, Renuka Sane and Susan Thomas, “Estimating losses to customers on account of mis-selling life insurance policies in India,” Indira Gandhi Institute of Development Research, April 2013, http://www.igidr.ac.in/pdf/publication/WP-2013-007.pdf.

[39]  “Department at a Glance,” Department of Agriculture and Famers Welfare, Government of India, Undated, https://agriwelfare.gov.in/en/Dept#:~:text=54.6%25%20of%20the%20population%20is,%2C%202011%2D12%20series).

[40] “Agriculture, forestry, and fishing, value added,” World Bank Data, https://data.worldbank.org/indicator/NV.AGR.TOTL.ZS.

[41] Meghnad Desai, “Lot of noise, but clear signals,” Financial Express, 4 January 2016, https://www.financialexpress.com/opinion/column-lot-of-noise-but-clear-signals/187449/lite/.

[42] Rakesh Mohan, “Moving India to the Next Growth Trajectory: Need for a Comprehensive big Big Push,” Brookings India, June 2019, https://www.brookings.edu/wp-content/uploads/2019/06/MOVING-INDIA-_Final-for-printing.pdf.

[43] Ministry of Finance, “Pradhan Mantri Jan-Dhan Yojana (PMJDY) - National Mission for Financial Inclusion, completes seven years of successful implementation,” Press Information Bureau, Government of India, 2 May 2024, https://pib.gov.in/PressReleseDetail.aspx?PRID=1749749.

[44] Saurabh Kumar Tiwari and Anshuman Kamila, “Direct Benefit Transfer in India: A Global Role Model,” Yojana, June 2023, https://www.ies.gov.in/pdfs/dbt-in-india-by-tiwari-and-kamila.pdf.

[45] UPI Product Statistics, National Payments Corporation of India, Undated, https://www.npci.org.in/what-we-do/upi/product-statistics.

[46] Gautam Chikermane and Oommen C. Kurian, “Crossing Five Hurdles on the Path to Universal Health Coverage,” Observer Research Foundation, October 2018, https://www.orfonline.org/wp-content/uploads/2018/10/ORF_OccasionalPaper_172_PMJAY.pdf.

[47] Reuters, “India's Modi accepts defeat on contentious land decree, will change law,” 30 August 2015, https://www.reuters.com/article/idUSKCN0QZ095/.

[48] Gautam Chikermane, “Modi’s U-turn on farm laws: A set back in the history of India’s economic reforms,” 19 November 2021, https://www.orfonline.org/expert-speak/modis-u-turn-on-farm-laws.

[49] Gautam Chikermane, Reform Nation: From the Constraints of P.V. Narasimha Rao to the Convictions of Narendra Modi (HarperCollins, 2022).

[50] See (1) “PM addressed the nation from the ramparts of the Red Fort on the 73rd Independence Day,” Prime Minister’s Office, 15 August 2019, https://www.pmindia.gov.in/en/news_updates/pm-addressed-the-nation-from-the-ramparts-of-the-red-fort-on-the-73rd-independence-day/; (2) “PM’s address from the Red Fort on 75th Independence Day,” Prime Minister’s Office, 15 August 2021, https://www.pmindia.gov.in/en/news_updates/pms-address-from-the-red-fort-on-75th-independence-day/; and “PM’s reply to Motion of Thanks on President’s address in Lok Sabha,” Prime Minister’s Office, 7 February 2022, https://www.pmindia.gov.in/en/news_updates/pms-reply-to-motion-of-thanks-on-presidents-address-in-lok-sabha/.

[51] “New Labour Code for New India: Biggest Labour Reforms in Independent India,” Ministry of Information and Broadcasting, Government of India, Undated, https://labour.gov.in/sites/default/files/labour_code_eng.pdf.

[52] Gautam Chikermane and Rishi Agrawal, “Jan Vishwas Bill provides a framework for future reforms,” Observer Research Foundation, 10 August 2023, https://www.orfonline.org/expert-speak/jan-vishwas-bill-provides-a-framework-for-future-reforms.

[53] Gautam Chikermane and Rishi Agrawal, “8 reforms to end India’s regulatory cholesterol,” Observer Research Foundation, 24 July 2021, https://www.orfonline.org/expert-speak/8-reforms-to-end-indias-regulatory-cholesterol.

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Gautam Chikermane

Gautam Chikermane

Gautam Chikermane is Vice President at Observer Research Foundation, New Delhi. His areas of research are grand strategy, economics, and foreign policy. He speaks to ...

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