Author : Harsh V. Pant

Published on Oct 31, 2019 Commentaries 0 Hours ago

ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन, ब्रिटिश संसद में चल रहे गतिरोध को तोड़ने में उस वक़्त कामयाब हुए थे, जब उन्होंने ब्रेक्ज़िट का ऐसा हल संसद के सामने पेश किया था, जिस में ब्रिटेन के लिए ज़्यादा गुंजाईश थी. लेकिन, ब्रेक्ज़िट को पूरा करने के लिए सिर्फ़ यही काफ़ी नहीं है.

ब्रेक्ज़िट: अपने शुद्धिकरण की तकलीफ़ से गुज़रता ब्रेक्ज़िट डील!

आप ब्रेक्ज़िट जैसी समस्या का समाधान कैसे करते हैं? ऐसा लगता है कि इस सवाल का जवाब किसी को भी नहीं पता है. न तो ब्रिटेन के प्रधानमंत्री को, न ब्रिटिश संसद को और न ही यूरोपीय संसद को जिसके ऊपर ये पूरी प्रक्रिया लाद दी गई है. ब्रिटिश संसद ने प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन के ब्रेक्ज़िट से जुड़े क़ानून को तीन दिनों के अंदर मंज़ूरी देने से इनकार कर दिया है. प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने इस बात के संकेत दिए हैं कि अगर यूरोपीय यूनियन ब्रेक्ज़िट की डेडलाइन जनवरी तक बढ़ाने के पक्ष में फ़ैसला करती है, तो वो आम चुनाव कराने के लिए तैयार हैं.

यानी ये बात अजीब है, मगर अब ब्रेक्ज़िट की गेंद असल में यूरोपीय यूनियन के पाले में है. सवाल ये है कि क्या वो ब्रेक्ज़िट के लिए पहले से तय डेडलाइन 31 अक्टूबर को और बढ़ाने का फ़ैसला करती है? और अगर हां, तो कितनी रियायत ब्रिटेन को मिलेगी? इसी फ़ैसले पर ब्रिटेन और यूरोपीय यूनियन के रिश्ते का भविष्य टिका है.

ब्रिटेन की संसद के निचले सदन यानी हाउस ऑफ़ कॉमन्स ने कुछ ही मिनटों के भीतर ये दिखा दिया था कि ब्रेक्ज़िट के मसले पर ब्रिटेन की राजनीति किन विरोधाभासों की शिकार है. पहले तो हाउस ऑफ़ कॉमन्स ने बोरिस जॉनसन सरकार के विदड्रॉल एग्रीमेंट बिल को मंज़ूरी दे दी. लेकिन, कुछ ही देर बाद इस बिल को तेज़ी से मंज़ूरी देने से इनकार कर दिया. बोरिस जॉनसन अब भी यही कह रहे हैं कि उनका अब भी यही एजेंडा है कि ब्रिटेन को यूरोपीय यूनियन की तरफ़ से दी गई डेडलाइन यानी 31 अक्टूबर से पहले यूरोपीय यूनियन से अलग हो जाना चाहिए. लेकिन, अब वो भविष्य की रणनीति का फ़ैसला, यूरोपीय यूनियन के निर्णय के आने के बाद ही करेंगे.

इस वक़्त ब्रिटिश राजनेताओं की सबसे बड़ी चुनौती ये है कि ब्रेक्ज़िट की वजह से बहुत उठा-पटक न हो और सब कुछ अनुशासित ढ़ंग से हो जाए. इस चक्कर में ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था पर ब्रेग्ज़िट का भारी आर्थिक बोझ पड़ गया है.

ब्रिटेन की लेबर पार्टी के नेता जेरेमी कोर्बिन ने कहा है कि उनकी पार्टी बोरिस जॉनसन की सरकार के साथ मिल कर काम करने के लिए तैयार है. ताकि एक तय समयसीमा के अंदर हाउस ऑफ कॉमन्स, ब्रेक्ज़िट से जुड़े बिल पर चर्चा कर के उसकी समीक्षा कर सके. यूरोपीय यूनियन की परिषद के अध्यक्ष डोनाल्ड टस्क ने संकेत दिया है कि, वो यूरोपीय यूनियन को यही सुझाव देंगे कि वो ब्रेक्ज़िट की डेडलाइन को और आगे बढ़ा दें. हालांकि, फ्रांस ने संकेत दिए हैं कि वो ब्रेक्ज़िट की डेडलाइन को बढ़ाकर 31 जनवरी तक करने की ब्रिटेन की अपील के पक्ष में नहीं है.

अब यूरोपीय यूनियन का विचार विमर्श ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन की उस चिट्ठी के इर्द-गिर्द होगा, जो वो क़ानूनन भेजने को मजबूर हुए थे. क्योंकि उनकी सरकार, ब्रेक्ज़िट के लंबे समय से चले आ रहे प्रस्ताव को संसद से पास कराने में नाकाम रही थी. ऐसा ब्रिटेन के बहुचर्चित बेन एक्ट की वजह से हुआ. जिसके तहत ब्रिटिश प्रधानमंत्री इस बात के लिए बाध्य थे कि वो यूरोपीय यूनियन से ब्रेक्ज़िट के लिए तय डेडलाइन को 31 अक्टूबर से आगे बढ़ाने की गुज़ारिश करें, ताकि बिना यूरोपीय यूनियन से समझौते के ब्रिटेन, यूरोपीय यूनियन से अलग न हो. तो, हालांकि ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन बार-बार ये दावा करते रहे कि वो ब्रेक्ज़िट में और देर करने के बजाय डूब मरना बेहतर समझेंगे. लेकिन, इस वक़्त जो हालात हैं, उन में अब इस बात की संभावना कम ही बची है कि बोरिस जॉनसन, 31 अक्टूबर तक ब्रेक्ज़िट के अपने वादे पर क़ायम रह पाएंगे.

हालांकि, इस वक़्त ब्रिटिश राजनेताओं की सबसे बड़ी चुनौती ये है कि ब्रेक्ज़िट की वजह से बहुत उठा-पटक न हो और सब कुछ अनुशासित ढ़ंग से हो जाए. इस चक्कर में ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था पर ब्रेग्ज़िट का भारी आर्थिक बोझ पड़ गया है, जबकि ब्रिटिश इकोनॉमी की हालत पहले से ही पतली है. इसके अलावा ब्रेग्ज़िट से जुड़े अन्य मसलों जैसे आयरलैंड की सीमा से सामान की आवाजाही ने इस मुद्दे पर वार्ताकारों के हुनर के लिए अन्य चुनौतियां भी खड़ी की हैं.

अगर जॉनसन सरकार ऐसा नहीं कर पाती है, तो बड़े अफ़सोस के साथ कहना पड़ेगा कि इस राजनीतिक मुश्किल का हल आम चुनाव ही होंगे.

ब्रिटिश सांसद बोरिस जॉनसन सरकार से इसलिए नाराज़ हैं क्योंकि सरकार ने ब्रेग्ज़िट बिल को बिना पर्याप्त समीक्षा के ही जल्दबाज़ी में पास कराने की कोशिश की. ब्रितानी सांसद इस बेहद पेचीदा क़ानून के हर पहलू को भली-भांति परखने के लिए समय चाहते हैं. क्योंकि इस क़ानून से ये तय होगा कि भविष्य में ब्रिटेन और यूरोपीय यूनियन के कैसे रिश्ते होंगे. ये इस बात के बावजूद है कि बोरिस जॉनसन की ब्रेग्ज़िट डील को संसद के भीतर और बाहर, पिछली यानी टेरीज़ा मे सरकार की ब्रेग्ज़िट डील के मुक़ाबले काफ़ी ज़्यादा समर्थन मिला है. कुछ सर्वे के मुताबिक़, थेरेसा मे की ब्रेग्ज़िट डील को केवल 16 प्रतिशत मतदाताओं का समर्थन हासिल था, जबकि 30 प्रतिशत लोग इसका विरोध कर रहे थे. वहीं, बोरिस जॉनसन की ब्रेग्ज़िट डील को 31 प्रतिशत वोटर समर्थन दे रहे हैं, जबकि केवल 25 प्रतिशत मतदाता इसके ख़िलाफ़ हैं.

बैंक ऑफ़ इंग्लैंड के गवर्नर ने भी बोरिस जॉनसन सरकार की ब्रेग्ज़िट डील का समर्थन किया है. क्योंकि, इस समझौते में यूरोपीय यूनियन से अलग होने के दौरान आख़िरी दौर में लगने वाले झटकों से बचने का इंतज़ाम है. हालांकि बैंक ऑफ़ इंग्लैंड के गवर्नर ने चेतावनी दी है कि बोरिस जॉनसन की ब्रेग्ज़िट डील से इंग्लैंड की अर्थव्यवस्था को उतनी मज़बूत ख़ुराक नहीं मिल सकेगी, जितनी थेरेसा मे की प्रस्तावित ब्रेग्ज़िट डील से मिलने की संभावना थी.

ये बिल पास नहीं हुआ, तो ये स्वर्ग का सुख नहीं पा रहा है. और, ये पूरी तरह से नकारा भी नहीं गया, तो ये नर्क में भी नहीं गया. तो, इस वक़्त ये बिल शुद्धिकरण की जगह पर पड़ा है.

इसमें कोई दो राय नहीं कि बोरिस जॉनसन ने ब्रेग्ज़िट डील को लेकर चल रही खींचतान ख़त्म करने में कामयाबी हासिल की है. उन्होंने इस मसले का ऐसा हल सामने रखा, जिसके समर्थन की काफ़ी गुंजाईश है. आज जॉनसन सरकार के पास कम से कम ऐसा बिल तो है, जिसका ज़्यादातर ब्रिटिश सांसद समर्थन कर रहे हैं, जो पहले की अव्यवस्था और टकराव की स्थिति से काफ़ी बेहतर है. लेकिन, बोरिस जॉनसन काफ़ी हड़बड़ी में हैं. उन्हें लगता है कि ब्रेग्ज़िट बिल को पास करने में देरी का मतलब है, मामले का और लटक जाना. जॉनसन सरकार के न्याय मंत्री रॉबर्ट बकलैंड ने अपनी सरकार की खीझ को बख़ूबी बयां किया. उन्होंने कहा कि ब्रेग्ज़िट डील को लेकर उनकी सरकार की योजना की जो धार और रफ़्तार थी, ये वाक़ई निराशाजनक है. क्योंकि उनकी सरकार जल्द से जल्द ब्रेग्ज़िट डील को पूरा करना चाहता है. और अगर जॉनसन सरकार ऐसा नहीं कर पाती है, तो बड़े अफ़सोस के साथ कहना पड़ेगा कि इस राजनीतिक मुश्किल का हल आम चुनाव ही होंगे.

तो, अब जबकि यूरोपीय यूनियन ब्रिटिश संसद के इस गतिरोध के प्रति अपना रुख़ तय कर रही है. तो, ऐसे में आम ब्रिटिश नागरिक यही सोच रहे होंगे कि कहीं यूरोपीय यूनियन का फ़ैसला उनके सामने आम चुनाव की शक्ल में तो नहीं आएगा. और जहां तक ब्रेग्ज़िट का सवाल है, तो हाउस ऑफ़ कॉमन्स के नेता जैकब रीस-मॉग के शब्दों में कहें तो, ‘आध्यात्मिक ज़ुबान में कहें तो पोप बेनेडिक्ट सोलहवें ने अनिश्चय की स्थिति को ख़त्म किया था. लेकिन, मैं ये सोच रहा हूं कि ये बिल पास नहीं हुआ, तो ये स्वर्ग का सुख नहीं पा रहा है. और, ये पूरी तरह से नकारा भी नहीं गया, तो ये नर्क में भी नहीं गया. तो, इस वक़्त ये बिल शुद्धिकरण की जगह पर पड़ा है, जहां ये शुद्धिकरण के दर्द से गुज़र रहा है.’ अब ये ब्रेग्ज़िट बिल शुद्धिकरण की तकलीफ़ से कब तक गुज़रेगा, ये अनुमान लगाने के लिए आप स्वतंत्र हैं.


ये लेख मूल रूप से Money Control पे छपा था.

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