सितंबर महीने में ख़बरें आईं थी कि चीन ने नेपाल के हुमला ज़िले के लिमी में कई इलाक़ों पर क़ब्ज़ा कर लिया है, और उसकी सीमा के भीतर नौ इमारतें बना ली हैं. इसके बाद, नेपाल की राजधानी काठमांडू में चीन के दूतावास के बाहर बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए थे. मीडिया के हवाले से ऐसी ख़बरें भी आई थीं कि नेपाल के कृषि मंत्रालय ने हाल ही में एक सर्वे भी किया था. इसमें दावा किया गया था कि नेपाल के चीन की सीमा से लगे ज़िलों दोलखा, गोरखा, धारचुला, हुमला, सिंधुपालReadabilityचौक, संखुवासभा और रसुवा में कई जगह पर चीन ने अवैध रूप से अतिक्रमण किया है. चीन और नेपाल के बीच मौजूदा सीमा विवाद की प्रकृति को समझने के लिए हमें दोनों देशों के बीच हुए सीमा समझौते के ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य को समझना चाहिए.
नेपाल और तिब्बत ने 5 सितंबर 1775 को सीमा पर संबंधों को मज़बूत करने के लिए एक व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. इस समझौते में ये भी कहा गया था कि दोनों देशों के बीच सीमा में कोई बदलाव नहीं होगा. बहादुर शाह ने अपने शासनकाल में नेपाल और तिब्बत के बीच हुए इस व्यापार समझौते पर कड़ा अंसतोष होने का संदेश भेजा था और वर्ष 1778 की गर्मियों में नेपाल ने तिब्बत पर हमला करने के लिए अपनी सेना भेज दी थी. इस हमले के बाद, तिब्बत और नेपाल के दोस्ताना ताल्लुक़ात ख़राब हो गए थे. नेपाल की सेना को पीछे धकेलने के लिए तिब्बत अक्सर चीन से सैन्य मदद लेता था. लेकिन, जब आख़िर में तिब्बत को ये एहसास हो गया कि नेपाल ज़्यादातर सीमावर्ती क्षेत्रों (जैसे कि ख़ासा और कुटी) में अपनी स्थिति मज़बूत करने में सफल रहा है, तब तिब्बत ने नेपाल के साथ फिर से सीमा विवाद सुलझाने की बात करने पर बल देना शुरू किया. इसके बाद नेपाल और तिब्बत के बीच थपाथली की संधि या नेपाल–तिब्बत शांति समझौता हुआ. इस पर 24 मार्च 1856 को दस्तख़त किए गए थे. इस समझौते से नेपाल और तिब्बत के बीच उत्तरी सीमा के विवाद का अंतिम रूप से समाधान हुआ था.
पिछले कुछ दशकों के दौरान, नेपाल और चीन के जैसे संबंध रहे हैं, उन्हें दोस्ती और आपसी समझ की मिसाल कहा जा सकता है. दोनों देशों के बीच संबंध तब और फलने-फूलने लगे, जब तिब्बत का स्वायत्त क्षेत्र चीन का हिस्सा बन गया.
पिछले कुछ दशकों के दौरान, नेपाल और चीन के जैसे संबंध रहे हैं, उन्हें दोस्ती और आपसी समझ की मिसाल कहा जा सकता है. दोनों देशों के बीच संबंध तब और फलने–फूलने लगे, जब तिब्बत का स्वायत्त क्षेत्र चीन का हिस्सा बन गया. तब जाकर पहली बार, चीन और नेपाल के बीच 1439 किलोमीटर लंबी साझा सीमा अस्तित्व में आई. नेपाल और चीन ने अपनी सीमा को स्पष्ट रूप से रेखांकित करने के लिए 21 मार्च 1960 को नेपाल–चीन सीमा समझौता किया. चीन और नेपाल के बीच हुए इस समझौते ने थपाथली की संधि की जगह ली. इस समझौते के साथ ही नेपाल ने न सिर्फ़ तिब्बत पर चीन के अधिकार को मान्यता दी, बल्कि पुराने समझौते से मिले सभी अधिकार और विशिष्ट रियायतों को भी छोड़ दिया. दोनों ही देशों द्वारा सीमा के व्यापक सर्वेक्षण और नक़्शे बनाने के बाद, 5 अक्टूबर 1961 को चीन और नेपाल के बीच एक सीमा समझौते को अंतिम रूप दिया गया. चीन और नेपाल की सीमा के निर्धारण में इलाक़ों के पारंपरिक उपयोग, क़ब्ज़े और सुविधाओं को मानक बनाया गया था. जिन हिस्सों को लेकर विवाद था, उसमें लेन–देन से मसला सुलझाया गया. नेपाल ने अपने क़ब्ज़े वाली क़रीब 1836 वर्ग किलोमीटर ज़मीन चीन को सौंपी, तो चीन ने भी अपने क़ब्ज़े वाले लगभग 2139 वर्ग किलोमीटर इलाक़े चीन को सौंप दिए. इसके अलावा, हिमालय में पानी के बहाव की दिशा को भी उत्तरी क्षेत्र की सीमा के निर्धारण का आधार बनाया गया. इस इलाक़े में कई दर्रे, पर्वतों की चोटियां और चरागाह की ज़मीने हैं. जहां पर भी किसी देश के चरवाहों की ज़मीनें दूसरे देश के हिस्से में थीं, वहां पर ज़मीन के मालिकों को उस देश की नागरिकता अपनाने का विकल्प भी दिया गया.
पंचशील सिद्दांत का पालन
नेपाल और चीन ने अपनी सीमा को मिलकर चिह्नित किया. दोनों देशों के बीच कम से कम 32 इलाक़ों को लेकर संघर्ष हुआ, विवाद और दावे प्रतिदावे हुए. दोनों देशों के बीच सीमा के रेखांकन के दौरान जब भी विवाद उठ खड़ा हुआ, तो इसे शांतिपूर्ण सह अस्तित्व के पंचशील सिद्धांत के ज़रिए सुलझाया गया और दोनों ही देशों ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर एक दूसरे की स्थिति का सम्मान किया. सीमा समझौते के अनुसार, सरहद के सर्वेक्षण और चिह्नीकरण के बाद, दोनों देशों की साझा सर्वे टीम ने 21 जून 1962 से सीमा पर स्थायी खंभे और चिन्ह लगाने शुरू किए. इन्हें पश्चिम से पूरब की ओर एक से 79 की संख्या के क्रम में सीमा पर अलग अलग ठिकानों पर लगाया गया. चीन और नेपाल की सीमा पर ऐसे 48 बड़े और 31 छोटे कंबे और चिह्न लगाए गए थे. इसके अलावा, जिन जगहों पर प्राकृतिक आपदाओं से खंभे उखड़ने का डर था, वैसी 20 जगहों पर वैकल्पिक खंभे भी सीमा की पहचान के लिए लगाए गए. इस तरह से दोनों देशों के बीच 1439.18 किलोमीटर लंबी सीमा का निर्धारण किया गया था.
चीन और नेपाल की सीमा पर ऐसे 48 बड़े और 31 छोटे कंबे और चिह्न लगाए गए थे. इसके अलावा, जिन जगहों पर प्राकृतिक आपदाओं से खंभे उखड़ने का डर था, वैसी 20 जगहों पर वैकल्पिक खंभे भी सीमा की पहचान के लिए लगाए गए.
20 जनवरी 1963 को नेपाल और चीन के बीच सीमा संबंधी प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किए गए, जिसके ज़रिए हर पांच वर्षों में दोनों देशों की बाउंड्री टीमों द्वारा निर्धारित की गई सीमा के निरीक्षण के बुनियादी नियम तय किए गए थे. इस प्रोटोकॉल पर दोनों देशों ने तीन बार नए सिरे से हस्ताक्षर किए और सीमा बताने वाले जो खंभे क्षतिग्रस्त हो गए थे, उनकी जगह नए स्तंभ लगाए गए.
हालांकि, पिछले कुछ दशकों के दौरान नेपाल और चीन के बीच सीमा को लेकर छोटी–मोटी झड़पें भी हुईं. मिसाल के तौर पर, दोलखा ज़िले के लंबागर इलाक़े के उत्तर में स्थित लपचिगौन में सीमा बताने वाला जो स्तम्भ लगाया गया था, उसके बारे में दावा किया गया कि ये नेपाल की सीमा के भीतर लगाया गया था, न कि पहले निर्धारित सीमा पर. ये विवाद केवल छह हेक्टेयर ज़मीन का था, लेकिन इसकी वजह से दोनों देशों के बीच सीमा का चौथा प्रोटोकॉल अब तक अटका हुआ है. एक और विवाद माउंट एवरेस्ट (सागरमाथा) पर अधिकार का भी था. लेकिन 1960 में चाउ–एन–लाई ने अपने काठमांडू दौरे में साफ़ कर दिया कि माउंट एवरेस्ट पर नेपाल की जनता का अधिकार है. इस समय दोनों देशों के बीच माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई को लेकर विवाद उठ खड़ा हुआ है. चीन का दावा है कि माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई 8844.43 मीटर है. वहीं नेपाल का दावा है कि एवरेस्ट 8848 मीटर ऊंचा है. वर्ष 2005 में हुए सर्वेक्षण के बाद, चीन–नेपाल सीमा पर लगे चिह्नों की मरम्मत की गई और कई जगह नए मार्कर भी लगाए गए, जिससे कि सीमा की निगरानी के चौथे प्रोटोकॉल पर सहमति बन सके. लेकिन, दोनों देशों के बीच 57 नंबर के खंभे को लेकर विवाद खड़ा हो गया और इस प्रोटोकॉल पर सहमति नहीं बन सकी. उसके बाद से ही नेपाल और चीन के बीच सीमा पर बातचीत भी बंद है.
वर्ष 2005 में हुए सर्वेक्षण के बाद, चीन-नेपाल सीमा पर लगे चिह्नों की मरम्मत की गई और कई जगह नए मार्कर भी लगाए गए, जिससे कि सीमा की निगरानी के चौथे प्रोटोकॉल पर सहमति बन सके
हाल के सर्वे में चीन द्वारा जिस अतिक्रमण का हवाला दिया गया था, उसका नेपाल और चीन दोनों ही देशों की सरकारों ने खंडन किया है. दोनों देशों ने ये भी कहा है कि वो आपसी बातचीत से सीमा विवाद सुलझाने पर सहमत हो गए हैं. हालांकि, अगर चीन और नेपाल के बीच सीमा विवाद जारी रहता है, तो इससे नेपाल को नुक़सान हो सकता है, क्योंकि घरेलू राजनीति की मजबूरियां, नेपाल को चीन के अतिक्रमण की बात स्वीकार करने की इजाज़त नहीं देंगी. ऐसे में चीन ने उसकी कई हेक्टेयर ज़मीनों पर जो क़ब्ज़ा किया है, वो हमेशा के लिए नेपाल के हाथ से निकल जाएंगी.
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