Author : Pallika Singh

Published on Apr 28, 2021 Updated 0 Hours ago

समस्याओं से पार पाने के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य का एक मज़बूत दृष्टिकोण अपनाने की ज़रूरत है, जो जोख़िम के कारकों को नियंत्रित करने और स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता को बढ़ावा देने के साथ साथ बचाव और इलाज पर भी ध्यान दे सके.

2030 के लिए युवाओं के विकास और स्वास्थ्य का एजेंडा

पूरी दुनिया में युवाओं की बढ़ती आबादी की सबसे ख़ास बात इस समूह में दिखने वाली विविधता है. युवाओं के इस वर्ग ने कई तरह की चुनौतियों, प्राथमिकताओं और हालात का सामना किया है. लेकिन, इनकी बढ़ती संख्या के बावजूद युवाओं की भागीदारी की अक्सर अनदेखी की जाती रही है. इसके साथ साथ राजनीति में उनकी सीमित भागीदारी के कारण नीति निर्माण में उनकी भूमिका पर असर पड़ता है, विशेष रूप से बेरोज़गारी, ख़राब सेहत और रहन-सहन के विषय में. इन बातों का ज़िक्र तो हम अक्सर सुनते हैं. लेकिन, इन्हें लागू करने का काम बहुत ख़राब तरीक़े से होता है. शारीरिक कमियों वाले युवा, LGBTQ युवा, अप्रवासी, दर-बदर और शरणार्थी युवा; संघर्ष और उसके बाद के हालात का सामना करते युवा; और ग्रामीण क्षेत्र के युवा अपनी अपनी परिस्थितियों के अनुसार अक्सर ऐसी चुनौतियां और बाधाएं झेलते हैं.

इस समय दुनिया भर में युवाओं (15-29 वर्ष) की कुल आबादी क़रीब 1.8 अरब है. इनमें से हर पांचवां व्यक्ति (20 प्रतिशत) भारत में रहता है. इसका अर्थ ये है कि इस समय युवाओं और किशोरों की सबसे अधिक आबादी भारत में ही रहती है. 2011 की जनगणना के अनुसार किशोर और युवा भारत की कुल जनसंख्या का 40.1 प्रतिशत हैं. ये युवा न केवल कुल आबादी का एक बड़ा हिस्सा हैं, बल्कि आने वाले समय में सामाजिक-राजनीतिक, आर्थिक और जनसंख्या के विकास का संकेत भी देते हैं.

भारत के लिए दीर्घकालिक चुनौती

चूंकि, युवा किसी भी देश के सबसे अधिक उत्पादक कामकाजी वर्ग होते हैं, तो ये उम्मीद की जा रही है कि युवाओं की बड़ी आबादी की मदद से भारत, वर्ष 2025 तक दुनिया की चौथी बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा. तब विश्व की कुल GDP में भारत का योगदान लगभग 6 प्रतिशत होगा. ऐसे में ज़रूरत इस बात की है कि हम युवाओं को सशक्त बनाएं. जिससे कि वो शिक्षा, रोज़गार, स्वास्थ्य, कौशल विकास, सामुदायिक संपर्क और राजनीति व प्रशासन में अपनी भागीदारी बढ़ाकर समाज में उचित स्थान पा सकें. इसके साथ साथ हम समाज के कमज़ोर वर्गों के युवाओं को वयस्कों से अधिक समान अवसर दे सकते हैं. ग़रीबी और हुनर की कमी के चलते युवाओं के बीच बेरोज़गारी का उच्च स्तर भारत के लिए दीर्घकालिक चुनौती है. 

ज़रूरत इस बात की है कि हम युवाओं को सशक्त बनाएं. जिससे कि वो शिक्षा, रोज़गार, स्वास्थ्य, कौशल विकास, सामुदायिक संपर्क और राजनीति व प्रशासन में अपनी भागीदारी बढ़ाकर समाज में उचित स्थान पा सकें. 

संयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्धारित टिकाऊ विकास के लक्ष्य 2030 (SDGs) के अंतर्गत तमाम देशों से ये अपेक्षा की गई है कि वो अपने नागरिकों को समावेशी और अच्छी गुणवत्ता वाली शिक्षा देंगे. इसके लिए ऐसे प्रयास करने की ज़रूरत है जिससे युवाओं और ख़ास तौर से महिलाओं को शिक्षा के समान अवसर मुफ्त में मिलें. इसके अलावा सभी युवाओं को सम्मानजनक रोज़गार और कामकाजी जगह उपलब्ध कराना बहुत बड़ी चुनौती है. क्योंकि, बहुत से युवा कम वेतन वाली नौकरियां करने को मजबूर हैं. चूंकि उनकी तनख़्वाहें कम हैं, तो नई नौकरियों के लिए होड़ भी अधिक है. अक्सर ठेके पर नौकरी मिलने के कारण इसका युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर बहुत बुरा असर होता है. ऐसे में युवाओं को रोज़गार दिलाने के पर्याप्त अवसर पैदा करने की ज़रूरत है. इसमें भी समाज के कमज़ोर और हाशिए पर पड़े तबक़ों से आने वाले युवाओं, दिव्यांग युवाओं, ग्रामीण क्षेत्र की युवा महिलाओं पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है. इसके लिए युवाओं की शिक्षा में एक बड़ा पहलू उन्हें तकनीकी और पेशेवर प्रशिक्षण देना और कौशल विकास को प्राथमिकता देना होना चाहिए. इससे कामकाजी युवाओं के हुनर की गुणवत्ता बढ़ेगी. कोई भी युवा पीछे न छूट जाए जैसे एजेंडा को विशेष तौर पर भारत में लागू किए जाने की ज़रूरत है. इससे भारत में लगातार बढ़ती बेरोज़गारी की समस्या को कम किया जा सकेगा. संयुक्त राष्ट्र का रोज़गार के प्रति अधिकार आधारित दृष्टिकोण मुफ़्त शिक्षा, संसाधनों और मूलभूत ढांचे पर ज़ोर देता है; इसके अलावा प्रासंगिक व सांस्कृतिक रूप से उचित अच्छे स्कूलों की स्वीकार्यता बढ़ाना; शिक्षा को बदलते हुए परिवेश और समाज की परिवर्तित होती ज़रूरत के हिसाब से तालमेल बैठाते जाना और लैंगिक भेदभाव व ग़रीबी जैसे चुनौतियों से निपटने के लिए तैयार करना ज़रूरी है. बाल विवाह, बाल मज़दूरी और शोषण, बच्चों में कुपोषण जैसी समस्याओं को लगातार प्रयास करके हल किया जा सकता है.

भारत में एक और बात की अनदेखी की जाती है, वो है मानसिक स्वास्थ्य की समस्या. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो की ‘भारत में दुर्घटना से मौतें और आत्महत्या’ नाम की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2019 में 90 हज़ार से अधिक युवाओं ने आत्महत्या की थी.

बरसों से विकास के प्रयासों के बावजूद, युवा महिलाएं आज भी तरक़्क़ी की दौड़ में काफ़ी चुनौतियां झेल रही हैं. फिर चाहे शिक्षा हो, रोज़गार हो या स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियां. हमारा पुरुषवादी समाज इन युवतियों से उनकी ज़िंदगी के शुरुआती दौर में ही उनकी सेहत और शिक्षा के अधिकार छीन लेता है. शौचालयों का अभाव, माहवारी के दौरान साफ़-सफ़ाई की सुविधा की कमी, कम उम्र में शादी और गर्भ धारण करने से युवा महिलाओं की सेहत और उनकी ज़िंदगी का स्तर बेहद ख़राब हो जाता है. कमज़ोर और हाशिए पर पड़ी युवा महिलाएं अपने ख़िलाफ़ लैंगिक हिंसा से भी संघर्ष करती हैं. इससे उनकी सेहत और बेहतरी, विकास के हर स्तर पर ख़राब होती जाती है. संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2015 में ही आकलन किया था कि दुनिया भर में क़रीब एक तिहाई महिलाएं शारीरिक और यौन हिंसा की शिकार होती हैं. इनमें से अधिकतर मामले उनके क़रीबी सेक्सुअल पार्टनर द्वारा हिंसा के होते हैं. या फिर ज़िंदगी में कई बार महिलाएं अपने साझेदार से इतर, अन्य लोगों के हाथों भी यौन हिंसा का शिकार होती हैं.

2030 तक सभी के लिए स्वास्थ्य सेवा का लक्ष्य

वर्ष 2030 तक सभी के लिए स्वास्थ्य सेवा का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए युवाओं की सेहत और उनकी बेहतरी पर विशेष ध्यान देना होगा, क्योंकि युवा ही पूरी दुनिया में टिकाऊ विकास के अगुवा हैं. इसके लिए सबका सशक्तिकरण सुनिश्चित करना होगा, जो समाज के सभी वर्गों की समावेशी साझेदारी और सभी क्षेत्रों के बीच उचित समन्वय से ही हासिल किया जा सकता है. एड्स जैसी गंभीर बीमारी-जिसमें भारत दुनिया भर में तीसरे नंबर पर है-के ख़ात्मे और उसके साथ साथ तपेदिक, मलेरिया और गर्म क्षेत्रों की अन्य उपेक्षित बीमारियों का ख़ात्मा करने को अहमियत देना आवश्यक है. इसके साथ साथ युवा महिलाओं को यौन एवं प्रजनन संबंधी स्वास्थ्य सेवाओं व अच्छी गुणवत्ता की अन्य स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने की अहमियत भी बढ़ गई है. आज ज़रूरत इस बात की भी है कि युवाओं में ड्रग्स का इस्तेमाल रोका जाए, इससे जुड़ी बीमारियों का इलाज किया जाए और सड़क सुरक्षा को लेकर उनके व्यवहार में बदलाव लाने का प्रयास किया जाए. दुनिया भर में सबसे अधिक युवा आबादी होने के बावजूद, भारत स्वास्थ्य के क्षेत्र में सबसे कम व्यय करता है. जबकि युवा ही देश का सबसे अधिक उत्पादक कामकाजी तबक़ा है, और भारत के आर्थिक विकास को और गतिमान कर सकते हैं. भारत में एक और बात की अनदेखी की जाती है, वो है मानसिक स्वास्थ्य की समस्या. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो की ‘भारत में दुर्घटना से मौतें और आत्महत्या’ नाम की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2019 में 90 हज़ार से अधिक युवाओं ने आत्महत्या की थी. ये दक्षिणी पूर्वी एशिया में सबसे अधिक है.

आगे की राह

युवाओं की सेहत से जुड़ी चुनौतियों के समाधान की राह में कई मुश्किलें हैं. जैसे कि सेवाओँ की कमी, जागरूकता का अभाव, मिथक, ग़लत धारणाएं, बदनामी और कई सामाजिक-सांस्कृतिक बाधाएं. इन समस्याओं से पार पाने के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य का एक मज़बूत दृष्टिकोण अपनाने की ज़रूरत है, जो जोखिम के कारकों को नियंत्रित करने और स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता को बढ़ावा देने के साथ साथ बचाव और इलाज पर भी ध्यान दे सके. शराब और ड्रग्स के इस्तेमाल और इन पर निर्भरता से जुड़े सेहत के मसले बहुत बड़ी चिंता का विषय हैं. इनसे निपटने के लिए सभी संबंधित व्यक्तियों यानी-हम उम्र लोगों, अध्यापकों और अभिभावकों-को जागरूक किए जाने की ज़रूरत है. इसके अलावा शराब और ड्रग्स की खुले बाज़ार में उपलब्धता पर भी नियंत्रण पाने की आवश्यकता है, जिसे COTPA एक्ट को सख़्ती से लागू करके हासिल किया जा सकता है. कोई युवा अगर जागरूक है, तो वो आज के दौर की कई चुनौतियों से पार पा सकता है. कॉलेज और स्कूलों में पढ़ रही युवा आबादी को लक्ष्य बनाकर, जैसे कि सामुदायिक स्तर पर इन बुराइयों पर विजय पाने की कोशिश करनी होगी. इन प्रयासों का मक़सद जानकारी की कमी को दूर करना और ऊपर उल्लिखित बाधाओं से पार पाना होना चाहि. तभी हम युवाओं के बीच स्वास्थ्य साक्षरता का लक्ष्य प्राप्त कर सकेंगे.

राजनीतिक रूप से सशक्त युवा न केवल अपनी निजी प्रगति के लिए ज्ञान और ज़रूरी कौशल सीख सकेंगे. बल्कि, उनके अंदर नेतृत्व की क्षमता का विकास करके और नीति निर्माण में क्रांतिकारी बदलाव लाकर युवाओँ को उनके अधिकारों और राष्ट्र के प्रति कर्तव्यों के प्रति सजग बनाकर उनके बीच राष्ट्रीय एकता के भाव को भी बढ़ावा दिया जा सकेगा.

युवाओं की क्षमता का निर्माण और उनके कौशल का विकास करने से उनके ऐसे सशक्तिकरण की शुरुआत होगी, जिसकी आज बेहद सख़्त ज़रूरत है. इसके अलावा, राजनीतिक रूप से सशक्त युवा न केवल अपनी निजी प्रगति के लिए ज्ञान और ज़रूरी कौशल सीख सकेंगे. बल्कि, उनके अंदर नेतृत्व की क्षमता का विकास करके और नीति निर्माण में क्रांतिकारी बदलाव लाकर युवाओँ को उनके अधिकारों और राष्ट्र के प्रति कर्तव्यों के प्रति सजग बनाकर उनके बीच राष्ट्रीय एकता के भाव को भी बढ़ावा दिया जा सकेगा. युवाओं को कम उम्र में शादी, महिला सशक्तिकरण, उनकी पढ़ाई और वित्तीय स्थिरता जैसी चुनौतियों से पार पाने के लिए उन्हें सामाजिक रूप से सशक्त बनाना होगा. युवाओं से जुड़ी नीति में इन बातों का विशेष उल्लेख करना होगा. इसके साथ साथ इन नीतियों को ज़मीनी स्तर पर लागू करने के लिए भी ध्यान देने की ज़रूरत है.

टिकाऊ विकास से जुड़े उम्मीद भरे और सम्मानजनक लक्ष्यों (SDGs) और दुनिया भर के युवाओँ को तरक़्क़ी की पायदान में ऊपर उठाने में उनकी भूमिका, निश्चित रूप से युवाओं को संरक्षण और उनसे संवाद बढ़ाने में मददगार होगी. ज़ाहिर है, आने वाले समय में युवाओं के बेहतर भविष्य की उम्मीद की किरण दिख रही है.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.