Author : Soumya Bhowmick

Published on Aug 16, 2022 Updated 0 Hours ago

एसडीजी की प्राप्ति के लिए लक्षित क्षेत्रों में युवाओं की हिस्सेदारी जरूरी है.

एक लचीले (resilient) समाज के लिए पूंजी के रूप में देश की युवा आबादी!

युवा और एसडीजी

संयुक्त राष्ट्र जनरल असेंबली  के अनुसार, लचीलापन का अर्थ होता है, “एक प्रणाली, समुदाय या समाज की क्षमता जो दुश्वारियों का सामना करते हुए उसका प्रतिरोध कर, उसे समाहित करते हुए अपने-आपको उसके अनुकूल कर, खुद को बदलते हुए एक समयबद्ध और कुशल तरीके से उबर जाए. इसमें जोख़िम प्रबंधन के माध्यम से इसकी आवश्यक बुनियादी संरचनाओं और कार्यो का संरक्षण और बहाली शामिल हैं.” समकालीन संदर्भ में, एक लचीले समाज को जलवायु परिवर्तन, शहरीकरण, वैश्वीकरण, तकनीकी स्वरूप और जनसांख्यिकीय स्वरूप के साथ इस बात को भी ध्यान में रखना चाहिए कि सभी क्षेत्रों में दीर्घकालीन विकास के लिए युवाओं की भूमिका अनिवार्य है.

यूएन सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स (एसडीजी) इस बात का . विशेष उल्लेख करते हैं कि 2030 तक न्यायसंगत प्रगति हासिल करने के लिए हमारे समाजों में लचीलेपन को कैसे आत्मसात करने की आवश्यकता है.

यूएन सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स (एसडीजी) इस बात का विशेष उल्लेख करते हैं कि 2030 तक न्यायसंगत प्रगति हासिल करने के लिए हमारे समाजों में लचीलेपन को कैसे आत्मसात करने की आवश्यकता है. ‘नो पॉवर्टी’ यानी ‘गरीबी का अंत’ पर एसडीजी 1 के भीतर ही लक्ष्य 1.5 में इस बात की चर्चा की गई है कि कैसे गरीबों में लचीलापन विकसित किया जाना है ताकि उन्हें पर्यावरणीय, आर्थिक और सामाजिक आपदाओं से मुकाबला करने के लिए तैयार किया जा सके. एसडीजी 9 में लचीली ढांचागत सुविधाओं के निर्माण की जरूरत की बात की गई है जो समावेशी और दीर्घकालीन औद्योगिकीकरण को बढ़ावा दें, जबकि एसडीजी 11 में शहरों तथा बस्तियों को दीर्घकालीन, समावेशी तथा लचीला बनाने की बात की गई है. शहर की योजना और संगठन में इसके पहले युवाओं की भूमिका या तो सीमित थी अथवा बिलकुल भी नहीं थी. दुनिया की अधिकांश युवा आबादी या तो शहर में रहती है अथवा शहर में रहने की इच्छा रखती है. ऐसे में शहरी क्षेत्र एक निर्णायक कारक बनता दिखाई दे रहा है जो यह तय करेगा कि 2030 तक एसडीजी 11 हकीकत बन सकेगा अथवा नहीं. पुन: 2050 तक 60 प्रतिशत शहरी विकास वैश्विक दक्षिण में होने का अनुमान है, जो इसे फोकस का महत्वपूर्ण क्षेत्र बनाता है.

सभी एसडीजी में युवाओं का विचार किया गया है और उन्हें आंतर पीढ़ी तथा अंतर पीढ़ी अथवा  इंट्रा-जेनेरशनल और इंटर-जेनेरशनल समान भागीदारी में बदलाव लाने वाला एजेंट माना गया है.

एसडीजी की समग्र प्रवृत्ति युवाओं के विकास के लिए काफी अहम है, लेकिन शिक्षा और बेरोजगारी जैसे क्षेत्रों में इसके दीर्घकालीन विकास लक्ष्यों को हासिल करने के लिए यह आवश्यक है कि इसमें युवाओं की भागीदारी हो. सभी एसडीजी में युवाओं का विचार किया गया है और उन्हें आंतर पीढ़ी तथा अंतर पीढ़ी अथवा  इंट्रा-जेनेरशनल और इंटर-जेनेरशनल समान भागीदारी में बदलाव लाने वाला एजेंट माना गया है. एक ओर जहां दुनिया की आधी आबादी की उम्र 30 वर्ष के कम है, वहीं 56 सदस्यों वाले कॉमनवेल्थ देशों के संगठन के कुल 2.5 बिलियन नागरिकों में 60 प्रतिशत आबादी उपरोक्त आयु वर्ग के तहत आती है. ऐसे में इस आबादी के पास भविष्य के लचीले समाज का निर्माण करने की क्षमता रखने वाले संसाधन पर्याप्त मात्रा में मौजूद हैं. एक ओर एशिया और अफ्रीका के पास जहां बड़ी संख्या में युवा नागरिक मौजूद है, वहीं 2012 में 12 से 24 वर्ष आयु वर्ग के लोगों की 18 प्रतिशत आबादी के 2040 तक अफ्रीका में बढ़कर 28 प्रतिशत होने की संभावना है, जबकि इसी अवधि में एशिया इसमें गिरावट देखेगा और वहां इसी अवधि में इसका प्रतिशत 61 से घटकर 52 प्रतिशत रह जाएगा.

चित्र-1: युवा जनसंख्या में क्षेत्रीय विविधताएं

स्त्रोत: यूनाइटेड नेशन्स पॉपुलेशन फंड कैपेसिटी बिल्डिंग फॉर रेसीलियंस 

लचीलेपन के लिए क्षमता निर्माण

ऐसा देखा गया है कि लचीले समाजों के पास महामारी अथवा रूस और यूक्रेन संघर्ष जैसे बाहरी आघातों से उबरने की शक्ति होती है. इस परंपरागत दृष्टिकोण में लचीलेपन को मुकाबला करने वाला माना गया है, रक्षात्मक नहीं. इसमें लचीलेपन को आत्मसात करने की जिम्मेदारी गरीबों, कमज़ोर और समाज से बाहर रहने वाले लोगों पर डाली जाती है. लचीलेपन के निर्माण को वैकल्पिक रूप से एक बहुविषयक दृष्टिकोण के रूप में भी देखा जाना चाहिए जो लोगों और समुदायों के लिए क्षमता निर्माण पर ध्यान केंद्रित करेगा ताकि उन्हें सिस्टम को आगे बढ़ाने में सक्षम बनाया जा सके. इस तरह का समावेशी मॉडल बनाने के लिए इस बात पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता होगी कि आबादी में सबसे कमज़ोर समूह कौन से हैं और कौन-सी श्रेणियों के पास अधिक लचीले समाजों की ओर संक्रमण की सबसे ज्य़ादा ताकत मौजूद है. युवा एक ऐसा आयु वर्ग है जो निम्नलिखित तरीकों से शीघ्र ही मजबूत क्षमता निर्माण और दीर्घकालीन परिवर्तन करने में सक्षम है. 

एक सकारात्मक बदलाव तब होता है, जब कामकाजी उम्र की आबादी गैर-कामकाजी उम्र की आबादी से ज्यादा हो. ऐसे में योजना यह है कि वैश्विक दक्षिण की कामकाजी आबादी में शामिल अधिक युवाओं को कौशल और अन्य सामाजिक सुरक्षा उपायों के माध्यम से शामिल कर लंबी अवधि में आर्थिक प्रगति को प्रोत्साहित किया जाए.

सबसे पहले तो किसी भी देश के पास मौजूद जनसंख्या लाभांश में जब जनसंख्या की आयु संरचना में परिवर्तन दिखाई देता है तो यह उस देश की आर्थिक क्षमता में बदलाव को संदर्भित करता है. एक सकारात्मक बदलाव तब होता है, जब कामकाजी उम्र की आबादी गैर-कामकाजी उम्र की आबादी से ज्यादा हो. ऐसे में योजना यह है कि वैश्विक दक्षिण की कामकाजी आबादी में शामिल अधिक युवाओं को कौशल और अन्य सामाजिक सुरक्षा उपायों के माध्यम से शामिल कर लंबी अवधि में आर्थिक प्रगति को प्रोत्साहित किया जाए.

भारत के जनसंख्या लाभांश को लेकर यूएन के एक अध्ययन से पता चलता है कि विकासशील देशों के जनसंख्या लाभांश में सुधार के लिए दो निवेश किए जाने जरूरी हैं. विकसित देशों की तुलना में, विकासशील और अविकसित देशों में मानव पूंजी निवेश पारंपरिक रूप से कम है. ऐसे में विशेषत: बच्चों और किशोरों के विकास के लिए किये जाने वाले सुधारों से अनुकूल परिणाम मिलेंगे. इसी प्रकार अर्थव्यवस्था के दृष्टिकोण से शिक्षा में निवेश को सबसे उपयोगी क्षेत्रों में किया जाने वाला निवेश के रूप में देखा गया. इसी प्रकार वैश्विक दक्षिण में स्वास्थ्य क्षेत्र में निवेश अपेक्षाकृत कम देखने को मिला. ऐसे में सरकारों की एक महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी यह है कि वह एक अच्छी तरह से काम करने वाली सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली की मौजूदगी सुनिश्चित कर उस तक सबकी पहुंच में सुधार पर ध्यान दें.

दूसरे महामारी की वजह से प्रौद्योगिकी की दुनिया भर में पैठ बढ़ी है. इसकी रफ्त़ार को देखकर यह कहा जा सकता है कि भविष्य में भी इसमें वृद्धि ही होगी. ऐसे में युवाओं को इसका उपयोग करने के लिए प्रशिक्षित करने का अर्थ यह है कि हम भविष्य के कामकाजी युवा तैयार करेंगे. यह देखा गया है कि आरंभिक दिनों में ही बच्चे तकनीक को जल्दी सीख लेते हैं. अब प्रत्येक घर में तकनीकी उपकरणों की मौजूदगी से इसमें इज़ाफा भी देखा गया है. ऐसे में तकनीकी साक्षरता में निवेश के पास ही इस बात की क्षमता है कि वह भविष्य में किसी देश की आर्थिक उन्नति में सहायक साबित होगा या विनाशक.

तीसरेएसडीजी-17 के लक्ष्यों को 2030 तक साकार करने के लिए विभिन्न देशों और यूएन के बीच सहयोग बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया गया है. इस विशेष एसडीजी में युवाओं की भागीदारी पर इस तरह की सांझेदारी की क्षमता को आगे बढ़ाने में अहम भूमिका है. मौजूदा पहलों को पुख्ता करना, वर्तमान योगदान को आगे बढ़ाना, युवाओं की भागीदारी में सुधार करना और उनकी बाधाओं को दूर करना कुछ ऐसे कार्य हैं जो सक्रिय युवाओं की भागीदारी के बगैर संभव नहीं है. अंत में, लचीले समाज के निर्माण के लिए ज़रूरी है कि डिजिटल सहयोग में सुधार हो तथा युवा नेतृत्व को बढ़ावा दिया जाए.

किसी भी देश के मानव पूंजी आधार को बढ़ाने और उसकी अर्थव्यवस्था में विविधता लाने के लिए उत्पादक क्षमताओं को और विकसित किए जाने की ज़रूरत है. ऐसा होने पर ही जहाज़ को किसी बाहरी व्यापक आर्थिक झटका लगते समय डूबने से रोका जा सकता है. अनुसंधान से पता चलता है कि विकसित और विकासशील देशों के बीच बेहतर समन्वय और सहयोग से विज्ञान, प्रौद्योगिकी और उत्पादक क्षमताओं में निवेश को बढ़ावा मिलेगा, जिसे युवा आबादी आगे बढ़ाएगी. घरेलू निवेश की सक्रिय उत्तेजना ही बेहतर जनसांख्यिकीय लाभांश, शिक्षा और स्वास्थ्य सुनिश्चित करेगी और तभी अर्थव्यवस्थाओं को अधिक लचीला बनाने की दिशा में एक लंबा रास्ता तय किया जा सकता है.

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लेखक इस निबंध पर शोध सहायता के लिए एनएलएसआईयू, बेंगलुरु  के रोहन रॉस की भूमिका को स्वीकार करते हैं.

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