Author : Preeti Kapuria

Published on Jul 25, 2022 Updated 0 Hours ago

भारत में युवाओं में कौशल की कमी को दूर करने के लिए उच्च तकनीकी और व्यावसायिक पाठ्यक्रमों को बढ़ाने के आवश्यकता है, ताकि युवाओं की रोज़गार पाने की योग्यता को बढ़ाया जा सके.

विश्व युवा कौशल दिवस 2022: कैसे बढ़ेगा भारतीय युवाओं का कौशल?

संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) ने नवंबर, 2014 में प्रस्ताव 69/145 को पारित कर 15 जुलाई को विश्व युवा कौशल दिवस (WYSD) के रूप में मान्यता दी थी. संयुक्त राष्ट्र महासभा वैश्विक स्तर पर बेरोज़गार युवाओं की बढ़ती संख्या को लेकर चिंतित है.  वर्ष 2013 में दुनिया में बेरोज़गार युवाओं की अनुमानित संख्या 7.45 करोड़ थी और उनमें से अधिकांश युवा विकासशील देशों में निवास करते हैं. यूएनजीए के प्रस्ताव पारित करने के बाद यह दिन प्रत्येक वर्ष युवाओं को रोज़गार, सुविधाजनक कार्यों और उद्यमिता के लिए योग्य बनाने के महत्व का स्मरण कराता है. दीर्घकालिक विकास के 2030 के एजेंडा में युवाओं के लिए कौशल विकास और रोज़गार यानी नौकरियों पर ख़ास ज़ोर दिया गया है. सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) टार्गेट 4.4 में आवश्यक कौशल वाले युवाओं और वयस्कों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि की बात कही गई है, जबकि टार्गेट 8.6 अगले 15 वर्षों में ऐसे युवाओं के प्रतिशत में उल्लेखनीय कमी लाने का आग्रह करता है, जो रोज़गार, शिक्षा या प्रशिक्षण (एनईईटी) पाने की स्थिति में नहीं हैं. वर्ष 2022 के विश्व युवा कौशल विकास दिवस की थीम “भविष्य के लिए युवा कौशल का बदलाव” है. यह थीम युवाओं को कौशल प्रदान करने पर ध्यान आकर्षित करती है. उल्लेखनीय है कि कौशल ही वो योग्यता है, जो उन्हें चुनौतियों का सामना करने के लिए सहज बना सकता है, नौकरियों में उनकी उत्पादकता में सुधार कर सकता है, उनकी रोज़गार क्षमता में वृद्धि कर सकता है और उन्हें भविष्य के लिए पूरी तरह से तैयार कर सकता है.

वर्ष 2022 के विश्व युवा कौशल विकास दिवस की थीम “भविष्य के लिए युवा कौशल का बदलाव” है. यह थीम युवाओं को कौशल प्रदान करने पर ध्यान आकर्षित करती है. उल्लेखनीय है कि कौशल ही वो योग्यता है, जो उन्हें चुनौतियों का सामना करने के लिए सहज बना सकता है.

संयुक्त राष्ट्र के जनसांख्यिकीय अनुमानों के मुताबिक, दुनिया में 180 करोड़ युवा (15 से 29 वर्ष) हैं. विश्व के 20 प्रतिशत युवा यानी लगभग 36.6 करोड़ युवा आबादी भारत में रहती है. अगर भारत की अपनी जनसंख्या के बारे में बात करें तो नए अनुमानों के मुताबिक वर्ष 2020 में 130 करोड़ की कुल आबादी में से क़रीब 27 प्रतिशत युवा हैं, जबकि लगभग 54.2 करोड़ लोग कामकाजी उम्र (15 से 64 वर्ष) के हैं. भारत का श्रम बाज़ार चीन के बाद दूसरे स्थान पर है और संयुक्त राज्य अमेरिका एवं यूरोपीय संघ (ईयू) की तुलना में बहुत बड़ा है. इतना ही नहीं, भारत में वर्ष 2020 से 2050 के मध्य इस कामकाजी आयुवर्ग में 18.3 करोड़ लोग और जुड़ने की उम्मीद है. इसके फलस्वरूप अगले तीन दशकों में बढ़ते हुए वैश्विक कार्यबल में भारत की हिस्सेदारी 22 प्रतिशत हो जाएगी. भारत में बेरोज़गारी की उच्च दर भी एक बहुत बड़ी समस्या है. भारत में वर्ष 2021 में युवाओं में बेरोज़गारी दर 54.1 प्रतिशत थी, जो कि एक साल पहले यानी वर्ष 2020 में 53.79 प्रतिशत थी. जहां तक रोज़गार दर की बात है. तो इसमें वर्ष 2020 में 45.97 प्रतिशत की तुलना में वर्ष 2021 में 46.2 प्रतिशत के साथ मामूली सा सुधार दिखाई दिया है. देश में वेतनभोगी रोज़गार यानी वेतन पाने वाले कर्मिचारियों का हिस्सा वर्ष 2018-19 में 21.9 प्रतिशत था, जो वर्ष  2019-20 में गिरकर 21.3 प्रतिशत हो गया. भारत में असंगठित क्षेत्र 90 प्रतिशत से अधिक कार्यबल को रोज़गार उपलब्ध कराता है. रोज़गार पाने की योग्यता में कमी भारत की माध्यमिक शिक्षा और उच्च संस्थानों में दी जाने वाली शिक्षा के मानकों के साथ-साथ तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण (टीवीईटी) के बुनियादी ढांचे की गुणवत्ता को लेकर चिंता को भी बढ़ाता है.

भारत में वर्ष 2021 में बेरोज़गारी दर 28.26 प्रतिशत थी, जबकि वर्ष 2020 में 24.9 प्रतिशत थी और 2018 में बेरोज़गारी दर 23 प्रतिशत थी. इन आंकड़ों से यह स्पष्ट है संकेत मिलता है कि भारत के मौजूदा संस्थागत प्रशिक्षण ढांचे में व्यापर पैमाने पर बदलाव करने की और उसे प्रासंगिक बनाने की ज़रूरत है.

हाल के वर्षों में भारत ने स्किल इंडिया मिशन के अंतर्गत कौशल विकास, व्यावसायिक प्रशिक्षण और शिक्षा के लिए तरह-तरह की पहलों, कार्यक्रमों और योजनाओं को लॉन्च किया. इनमें नेशनल स्किल डेवलपमेंट मिशन (NSDM), प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY), कौशल विकास एवं उद्यमिता से संबंधित राष्ट्रीय नीति, इंडियन स्किल डेवलपमेंट सर्विस (ISDS), जन शिक्षण संस्थान, SANKALP जैसे कार्यक्रम और योजनाएं शामिल हैं. हालांकि, इन योजनाओं और कार्यक्रमों के बावज़ूद भारत के युवाओं के बीच बेरोज़गारी दर बहुत अधिक है. भारत में वर्ष 2021 में बेरोज़गारी दर 28.26 प्रतिशत थी, जबकि वर्ष 2020 में 24.9 प्रतिशत थी और 2018 में बेरोज़गारी दर 23 प्रतिशत थी. इन आंकड़ों से यह स्पष्ट है संकेत मिलता है कि भारत के मौजूदा संस्थागत प्रशिक्षण ढांचे में व्यापर पैमाने पर बदलाव करने की और उसे प्रासंगिक बनाने की ज़रूरत है. अगर वर्ष 2019-20 की बात करें तो 54.20 करोड़ लोगों में से सिर्फ़ 7.3 करोड़ लोगों यानी लगभग 13 प्रतिशत लोगों को ही किसी प्रकार का व्यावसायिक प्रशिक्षण मिला और उनमें से केवल 3 प्रतिशत लोग ही पूरी तरह से हुनरमंद हो पाए थे. अगर तुलनात्मक रूप से देखें, तो चीन में 24 प्रतिशत श्रमिक, संयुक्त राज्य अमेरिका में 52 प्रतिशत, ब्रिटेन में 68 प्रतिशत और जापान में 80 प्रतिशत श्रमिक कुशल हैं. 

कौशल की कमी पर ध्यान

पूरी दुनिया में देख जाए तो उद्योगों और कंपनियों के मध्य प्रतिस्पर्धा बढ़ गई है. वैश्विक स्तर पर ऐसे कर्मचारियों की ज़रूरत है, जिनके पास इस प्रकार की उच्च दक्षता और योग्यता हो, जो उन्हें ना केवल नवाचार, उत्पाद की गुणवत्ता और सर्विस बढ़ाने के योग्य बनाए, बल्कि उत्पादन की प्रक्रियाओं में उनकी क्षमता में इस स्तर तक बढ़ोतरी करे कि वो पूरी मूल्य श्रृंखला की कमियों को सुधारने में मददगार हो. तेज़ी से हो रहे तकनीकी बदलावों को अपनाने के लिए प्रौद्योगिकियों का उत्पादन करने, उसका उपयोग करने और तकनीकि का प्रसार बढ़ाने में विशेष समझ, ज्ञान और कौशल की आवश्यकता होती है. भारत इन दिनों डिजिटल परिवर्तन के महत्त्वपूर्ण दौर से गुजर रहा है. ऐसे में आने वाले समय में युवाओं के समक्ष लाभ उठाने के नए-नए आर्थिक अवसर सामने आते रहेंगे. हालांकि, इन अवसरों का फ़ायदा उठाने के लिए देश में लोगों, विशेष तौर से युवाओं के कौशल और उनकी योग्यता को बढ़ाने की तत्काल ज़रूरत है. कौशल विकास और कौशल क्षमताओं को बढ़ाना वर्ष 2025 तक 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की डिजिटल अर्थव्यवस्था की संभावना खोलने के लिए एक बड़ी चुनौती है. भारत में कौशल की कमी के लिए कई कारणों को ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है. लेकिन इसकी सबसे प्रमुख वजह है स्कूली शिक्षा के दौरान बच्चों की प्रतिभा को पहचानने और उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए कौशल विकास और शिक्षा को एक साथ नहीं जोड़ा जाना. बहुत कम डिजिटल पहुंच, डिजिटल योग्यता की कमी,  इंटरनेट कनेक्शन की कमी, ज़रूरी उपकरणों की कमी और डेटा की अधिक लागत ने इस समस्या को और बढ़ा दिया है. भारत में कार्यबल के 7 प्रतिशत का प्रतिनिधित्व करने वाले 2.7 करोड़ लोगों को डिजिटल कौशल की आवश्यकता है.

भारत में एक बड़े “जनसांख्यिकीय लाभांश” के मद्देनज़र – देश के अधिकांश लोग 30 वर्ष से कम आयु वर्ग के हैं और वर्ष 2022 में हर महीने लगभग 12.5 लाख नए कामगारों (15 से 29 आयु वर्ग में) के भारत के कार्यबल में शामिल होने का अनुमान है. भारत के लिए इन नए कामगारों के लिए अच्छे वेतन वाली और उत्पादक नौकरियां उपलब्ध कराना एक बड़ी चुनौती बनी रहेगी.

भारत में एक बड़े “जनसांख्यिकीय लाभांश” के मद्देनज़र – देश के अधिकांश लोग 30 वर्ष से कम आयु वर्ग के हैं और वर्ष 2022 में हर महीने लगभग 12.5 लाख नए कामगारों (15 से 29 आयु वर्ग में) के भारत के कार्यबल में शामिल होने का अनुमान है. भारत के लिए इन नए कामगारों के लिए अच्छे वेतन वाली और उत्पादक नौकरियां उपलब्ध कराना एक बड़ी चुनौती बनी रहेगी. शिक्षा और कौशल विकास के माध्यम से इस अवसर का लाभ उठाया जा सकता है. लोगों के कौशल को बढ़ाकर के अतिरिक्त रोज़गार की आवश्यकता को कम नहीं किया जा सकता है. वर्ष 2030 तक भारत में 23 लाख अतिरिक्त नौकरियां सृजित होने की उम्मीद है, जो अमेरिका के बाद दूसरे स्थान पर है. इस दौरान अमेरिका में 27 लाख अतिरिक्त नौकरियां सृजित होने की संभावना है. अनुमान बताते हैं कि कौशल को बढ़ाने और प्रतिभा को तराशने से जुड़े प्रयासों में निवेश, वर्ष 2030 तक संभावित रूप से वैश्विक अर्थव्यवस्था को 6.5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर और भारत की अर्थव्यवस्था को 570 अरब अमेरिकी डॉलर तक बढ़ा सकता है.

अपनी नौकरी और अपने रोज़गार में सफ़ल होने और भविष्य की कार्य चुनौतियों का मुक़ाबला करने की योग्यता हासिल करने के लिए व्यक्तियों की स्किलिंग, अपस्किलिंग और रीस्किलिंग बेहद ज़रूरी है.

ज़ाहिर है कि मानव पूंजी में निवेश आर्थिक विकास की निरंतरता को बनाए रखने के लिए बेहद महत्वपूर्ण है. उच्च तकनीकी और व्यावसायिक कौशल अर्थव्यवस्थाओं की प्रतिस्पर्धा करने की क्षमता में सुधार कर सकते हैं. कौशल विकास, सामाजिक समावेश, उत्पादकता और सभी के लिए अच्छी नौकरियां बढ़ाने में और ग़रीबी को कम करने में भी योगदान कर सकता है. भारत में कार्यबल में कौशल और योग्यता की कमी की समस्या से निपटने के लिए सरकार, उद्योग, शिक्षा और प्रशिक्षण उपलब्ध कराने वालों और सिविल सोसाइटी के बीच साझेदारी पर आधारित नीति और संस्थागत ढांचे की आवश्यकता है. दीर्घकालिक विकास लक्ष्यों के साथ तालमेल बनाते हुए, राष्ट्रीय युवा नीति-2021 लाई गई है. इस नीति में आर्थिक विकास को आगे बढ़ाने में युवाओं की क्षमता में वृद्धि के लिए भारत में युवाओं के विकास को लेकर 10-वर्षीय विज़न का खाका सामने रखा गया है. अपनी नौकरी और अपने रोज़गार में सफ़ल होने और भविष्य की कार्य चुनौतियों का मुक़ाबला करने की योग्यता हासिल करने के लिए व्यक्तियों की स्किलिंग, अपस्किलिंग और रीस्किलिंग बेहद ज़रूरी है. यही तीनों उन्हें भविष्य में आने वाली नई प्रौद्योगिकियों और नए अवसरों का लाभ उठाने के क़ाबिल बनाने की एकमात्र कुंजी भी होगी.

***

लेखक रिसर्च इनपुट उपलब्ध करने के लिए सृष्टि पांडे के योगदान के लिए धन्यवाद व्यक्त करता है.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.