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इस साल का विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस, बेहतर स्वास्थ्य और कल्याण के लिए साफ़ और पौष्टिक खाने पर केंद्रित रहा; सरकारों और समुदायों को चाहिए कि वो इसे सुनिश्चित करने के लिए ज़रूरी क़दम उठाएं.
स्थायी विकास के लक्ष्य 2 (SDG 2) का मक़सद, ‘भुखमरी को ख़त्म करना और ख़ास तौर से कमज़ोर और मुश्किल हालात में फंसे इंसानों, जिनमें नवजात बच्चे भी शामिल हैं, समेत सभी को पूरे साल साफ़, पौष्टिक और पर्याप्त मात्रा में खाना उपलब्ध कराना सुनिश्चित करना है.’ खाने का स्वच्छ होना सार्वजनिक स्वास्थ्य की एक प्राथमिकता है और ये खाद्य सुरक्षा का लक्ष्य हासिल करने का अभिन्न अंग भी है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक़, दुनिया में हर साल प्रदूषित और संक्रमित खाना खाने से पांच लाख लोगों की जान चली जाती है. खाने से होने वाली बीमारियों के सबसे ज़्यादा शिकार बच्चे होते हैं, और हर साल क़रीब सवा लाख बच्चों की मौत इसी वजह से होती है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक़, दुनिया में हर साल प्रदूषित और संक्रमित खाना खाने से पांच लाख लोगों की जान चली जाती है. खाने से होने वाली बीमारियों के सबसे ज़्यादा शिकार बच्चे होते हैं, और हर साल क़रीब सवा लाख बच्चों की मौत इसी वजह से होती है.
खाने से होने वाली बीमारियों से हर साल…
स्रोत: https://foodsafety.osu.edu/
खाने पीने के सामान से होने वाली बीमारी न केवल जनता की सेहत को हानि पहुंचाती है, बल्कि इससे उत्पादकता कम हो जाती है, जो आख़िर में अर्थव्यवस्था के लिए नुक़सानदेह होती है. 2021 की एक रिपोर्ट में खाने से होने वाली बीमारियों के आर्थिक बोझ के बारे में बताया गया है. रिपोर्ट के मुताबिक़, अर्थव्यवस्था पर ये बोझ महंगाई और आमदनी के विकास के तौर पर दिखता है. विश्व बैंक के मुताबिक़, खाद्य पदार्थों की वजह से होने वाली बीमारियों से कम और मध्यम आमदनी वाले देशों पर हर साल 95.2 अरब डॉलर का बोझ पड़ता है और इनके इलाज में क़रीब 15 अरब डॉलर ख़र्च करने पड़ते हैं. एक संस्थागत विश्लेषण से पता चलता है कि खाद्य बाज़ार में साफ़ खाने के मुद्दे का जनता की सेहत पर गहरा असर होता है. खाने से होने वाली बीमारियों से बचने के लिए खाने का स्वच्छ होना बहुत अहम हो जाता है. साफ़-सफ़ाई के लिए जागरूकता फैलाने की ज़रूरत है.
वैसे तो कोविड-19 खाने से होने वाली बीमारी नहीं है. लेकिन, ये इंसान के जीवन, खाद्य सुरक्षा और खाने-पीने के कारोबार के लिए ख़तरा ज़रूर है. खाने-पीने के उद्योग को चाहिए कि वो कोडेक्स एलमेंटैरियस गाइडलाइंस के मुताबिक़ साफ़-सफ़ाई के अच्छे उपाय और खाने को स्वच्छ रखने के प्रबंधन की व्यवस्था को अपनाए, जिससे ग्राहकों की सेहत की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके. इस साल के विश्व स्वच्छ खाद्य दिवस की थीम, ‘सुरक्षित खाना और बेहतर स्वास्थ्य’ बिल्कुल सटीक है, क्योंकि ये लोगों की बेहतर सेहत और कल्याण के लिए साफ़ और पोषक खाने पर ज़ोर देता है. वन हेल्थ का नज़रिया, स्थायी विकास के उन लक्ष्यों (SDG) के मेल का एक ढांचा प्रदान करता है, जो टिकाऊ खाद्य व्यवस्था, स्वच्छ खाने और खाद्य सुरक्षा से जुड़े हुए हैं.
इस साल के विश्व स्वच्छ खाद्य दिवस की थीम, ‘सुरक्षित खाना और बेहतर स्वास्थ्य’ बिल्कुल सटीक है, क्योंकि ये लोगों की बेहतर सेहत और कल्याण के लिए साफ़ और पोषक खाने पर ज़ोर देता है.
खाद्य सुरक्षा, स्थायी विकास के उन 17 लक्ष्यों (SDGs) का लक्ष्य हासिल करने का अभिन्न अंग हैं, जिनका कुछ मक़सदों पर गहरा असर पड़ता है. नीचे की टेबल खाद्य सुरक्षा और टिकाऊ विकास के लक्ष्यों (SDGs) के आपसी संबंध को दर्शाती है:
खाद्य सुरक्षा, स्थायी विकास के उन 17 लक्ष्यों (SDGs) का लक्ष्य हासिल करने का अभिन्न अंग हैं, जिनका कुछ मक़सदों पर गहरा असर पड़ता है. नीचे की टेबल खाद्य सुरक्षा और टिकाऊ विकास के लक्ष्यों (SDGs) के आपसी संबंध को दर्शाती है:
स्थायी विकास के लक्ष्य – खाद्य सुरक्षा पर असर
SDG-1 (कोई ग़रीबी नहीं) ख़राब सेहत ग़रीब करने और उसे बनाए रखने का एक बड़ा कारण होती है. खाने से पैदा होने वाली बीमारियां ख़राब सेहत की एक बड़ी वजह बनती हैं.
SDG-2 (शून्य भुखमरी) खाद्य सुरक्षा, स्वच्छ खाने से जुड़ी है. असुरक्षित खाना नष्ट हो सकता है जिससे नागरिकों के पास भोजन की उपलब्धता और कम हो जाती है
SDG-3 (अच्छी सेहत और कल्याण) खाने से पैदा होने वाली बीमारियां (FBD) सेहत का बोझ बढ़ाती हैं और इससे लोगों की आमदनी पर बोझ और तनाव बढ़ता है, जो लोगों की अच्छी सेहत और बेहतरी पर बुरा असर डाल सकता है.
SDG-5 (लैंगिक समानता) खाना एक लैंगिक वस्तु है और खान-पान से जुड़ी ऐसी कई ग़लत परंपराएं हैं जो आम तौर पर महिलाओं के पोषक भोजन हासिल करने की राह में बाधा बन जाती हैं.
SDG-6 (साफ़ पानी और स्वच्छता) खाने से पैदा होने वाली कई संक्रामक बीमारियां पानी के ज़रिए अन्य लोगों के बीच फैल सकती हैं और इन बीमारियों से संक्रमित जानवर पानी को भी संक्रमित करके उसे कम सुरक्षित बना सकते हैं.
SDG-8 (सम्मानजनक कार्य और आर्थिक विकास) खाने से होने वाली बीमारियां (FBD) की भारी क़ीमत चुकानी पड़ती है, जिसका आर्थिक विकास पर बुरा प्रभाव पड़ता है.
SDG-9 (उद्योग में आविष्कार और मूलभूत ढांचा) खाने की मांग में इज़ाफ़ा होने और लोगों के खान-पान की आदत बदलने के चलते, कृषि और खाद्य आपूर्ति श्रृखलाओं के विकास के साथ-साथ उनमें बड़ी तेज़ी से बदलाव आ रहा है और इसके लिए खाद्य सुरक्षा तय करने की ज़रूरत है. खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए मूलभूत ढांचा एक अहम कड़ी है.
SDG-10 (घटी हुई असमानता) कमज़ोर तबक़ों के बीच खाने से होने वाली बीमारियां (FBD) सबसे आम और गंभीर चुनौती हैं. ख़ास तौर से बच्चों, बुज़ुर्गों, गर्भवती महिलाओं, कुपोषित लोगों और बार-बार बीमार होने वालों के बीच में. इसलिए खाने से होने वाली बीमारियां (FBD) असमानता बढ़ाने में भी बड़ा योगदान दे सकती हैं.
SDG-11 (टिकाऊ शहर और समुदाय) सुरक्षा को लेकर होने वाली चिंताएं शहरी कृषि और गीले सामान बेचने वाले बाज़ारों का जोखिम बढ़ा सकती हैं.
SDG-12 (ज़िम्मेदारी से उपभोग) बड़े पैमाने पर खाने की बर्बादी और नुक़सान कम करने के साथ, जानवरों से बनने वाले खाद्य पदार्थों का उपयोग सीमित करके टिकाऊ विकास और बेहतर सेहत के लक्ष्य हासिल करने को आसान बनाया जा सकता है.
SDG-14 (पानी के नीचे जीवन) आज पोषक प्रोटीन हासिल करने के लिए मछली एक बड़ा अहम स्रोत है. लेकिन इसके संक्रमित होने का ख़तरा भी बहुत ज़्यादा होता है, जिससे बीमारियां और खाने की बर्बादी होती हैं.
SDG-15 (ज़मीन पर जीवन) पालतू जानवरों से मिलने वाले खाने की चीज़ें पोषक तो बहुत होती हैं. लेकिन इनसे खाने से होने वाली बीमारियां (FBD) भी बहुत ज़्यादा होती हैं.
इसे खाद्य सुरक्षा और टिकाऊ विकास के लक्ष्य से लिया गया है
ये हिस्सा खाद्य सुरक्षा और टिकाऊ विकास के लक्ष्य से परिवर्तित किया गया है.
संयुक्त राष्ट्र के औद्योगिक विकास संगठन (UNIDO) की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, स्वच्छ खाने का टिकाऊ आर्थिक और मानव विकास के लिए ज़रूरी सेहत, कृषि और व्यापार नीतियों से गहरा ताल्लुक़ है. विश्व स्वास्थ्य सम्मेलन का प्रस्ताव 73.5 खाने पीने के सामान की स्वच्छता को खाने से होने वाली बीमारियां रोकने और इसके प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए विश्व स्तर पर किए जाने वाले प्रयासों की अहमियत को स्वीकार करता है. खाद्य और कृषि संगठन ( FAO) की एक हालिया रिपोर्ट उन कारणों और तौर-तरीक़ों की पहचान करती है, जो खाने की स्वच्छता पर असर डालते हैं (नीचे की तस्वीर देखें)
आज जब 2030 के एजेंडे को हासिल करने के लिए कृषि आधारित खाद्य व्यवस्था में बदलाव आ रहा है तो दूरदर्शिता के नज़रिए से उन कारकों और ट्रेंड की पहचान की जा रही है, जो मौजूदा कृषि खाद्य व्यवस्था का हिस्सा हैं और उससे जुड़े हैं, और जिनका इस व्यवस्था पर सामान्य रूप से और खाद्य सुरक्षा के लिहाज़ से असर पड़ रहा है, जो कृषि खाद्य व्यवस्थाओं का केंद्रीय तत्व है.
जलवायु परिवर्तन खाद्य व्यवस्था के हर स्तर यानी, उत्पादन, प्रसंस्करण, भंडार और वितरण पर असर डालता है. इसीलिए, पूरी आपूर्ति श्रृंखला में खाने की स्वच्छता सुनिश्चित करना सबसे बड़ी प्राथमिकता है. निम्न और मध्यम आमदनी वाले देशों में किए गए अध्ययनों की एक समीक्षा से पता चलता है कि ग्राहकों के खाना चुनने और खाने की आदतों पर खाद्य सुरक्षा का गहरा असर पड़ता है. अमेरिका में 18 साल और उससे ज़्यादा उम्र के ग्राहकों के बीच किए गए एक सर्वे के मुताबिक़, फलों, सब्ज़ियों और घर में बने खाने की तुलना में कच्चे मांस और रेस्टोरेंट का खाना खाने से खाने से पैदा होने वाली बीमारियों की आशंका लोगों में ज़्यादा पायी गई. 2020 के वेब आधारित सर्वे के मुताबिक़ 56 फ़ीसद ग्राहक खाने की स्वच्छता के बारे में पैकेट के लेबल से जानकारी हासिल करने को प्राथमिकता देते हैं. वहीं, 43 प्रतिशत लोग चाहते हैं कि ये जानकारी उन्हें वेबसाइट से मिले. महामारी के दौरान स्वच्छ खाने की मांग से जुड़ी एक रिपोर्ट के मुताबिक़, खाने में धोखा-धड़ी, साफ़ खाने से जुड़ी सबसे बड़ी धोखा-धड़ी है. इसके बाद निवेश की कमी और एलर्जी पैदा करने वाले तत्व आते हैं.
विश्व खाद्य सुरक्षा सूचकांक के मुताबिक, जिन देशों में खाद्य सुरक्षा के कार्यक्रम नहीं चल रहे हैं, वहां बच्चों में भुखमरी और कम विकास की समस्या ज़्यादा देखी गई है. खाद्य सुरक्षा के 113 देशों वाले सूचकांक में भारत 71वें नंबर पर है. वहीं खाने की गुणवत्ता और स्वच्छता के मामले में वो 100 में से 59.1 अंकों के साथ 74वें स्थान पर है. खाने की गुणवत्ता और स्वच्छता वाली इस सूची में कनाडा पहली पायदान (स्कोर 94.5) पर है. विश्व स्वास्थ्य संगठन की खाद्य सुरक्षा की वैश्विक रणनीति 2022-230 में सदस्य देशों से अपील की गई है कि वो अपने खाने की स्वच्छता की राष्ट्रीय व्यवस्थाओं को खाद्य सुरक्षा, गुणवत्ता, पर्यावरण, कृषि और स्वास्थ्य को लेकर समावेशी नज़रिए के साथ बदलें, सुधार करें और मज़बूत बनाएं.
तमाम महाद्वीपों में की गई केस स्टडीज़ से पता चलता है कि किस तरह सामुदायिक स्तर पर स्वच्छ पानी, साफ़-सफ़ाई और भंडारण पर ध्यान केंद्रित करके किए गए प्रयास खाने की सुरक्षा से जुड़े मानक बेहतर बना सकते हैं और इनसे जनता की सेहत की रक्षा की जा सकती है. भारत का खाद्य सुरक्षा और मानक क़ानून 2006, खाद्य सुरक्षा को ‘खाने को इंसान के उपयोग लायक़ होने का भरोसा’ देने के रूप में परिभाषित करता है. इससे साफ़, संपूर्ण और स्वच्छ खाने की उपलब्धता सुनिश्चित होती है. आज सरकारों को चाहिए कि वो खेत से खाने की प्लेट तक खाने की साफ़-सफ़ाई और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए ज़रूरी क़दम उठाएं.
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Dr. Shoba Suri is a Senior Fellow with ORFs Health Initiative. Shoba is a nutritionist with experience in community and clinical research. She has worked on nutrition, ...
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