Published on Jul 24, 2020 Updated 0 Hours ago

मौजूदा पारंपरिक नियामक और प्रमाणित करने वाली संस्थाओं से इतर, उचित अकादेमिक, अनुसंधान और नई खोज के केंद्र ही आज स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में नए-नए आविष्कार कर रहे हैं. अब उन्हें नई खोज के नियमितीकरण की प्रक्रिया का हिस्सा बनाए जाने की ज़रूरत है.

कोविड-19 के बाद की दुनिया: स्वास्थ्य और तकनीक के क्षेत्र में भारत के लिए अनेक अवसर

नया कोरोना वायरस पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था की बत्तियां बुझा रहा है. स्वास्थ्य का ये वैश्विक संकट अब पूरी दुनिया के लिए आर्थिक क़यामत का रूप ले चुका है. कोविड-19 महामारी के कारण दुनिया पर गंभीर और दूरगामी आर्थिक दुष्प्रभाव पड़ने क़रीब-क़रीब तय हैं. इस समय दुनिया की अधिकतर अर्थव्यवस्थाएं अभी महामारी की इस सुनामी से सदमे में हैं. माना जा रहा है कि इस महामारी से पैदा हुआ आर्थिक संकट 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट या फिर बीसवीं सदी की शुरुआत में आई महान आर्थिक मंदी से भी बुरा साबित हो सकता है. तमाम क्षेत्रों में से स्वास्थ्य का सेक्टर ऐसा है, जहां पर इस महामारी के बुरे प्रभाव का अंदाज़ा पहले से ही लगाया जा सकता है. अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देश, जिन्होंने किसी महामारी की आशंका में पहले अपनी तैयारियों का अभ्यास या ड्रिल किया था, उन्हें भी या तो कोविड-19 से इतनी भारी तबाही का अंदाज़ा नहीं था. या फिर, उन्होंने स्वास्थ्य के किसी संकट से निपटने के लिए किए गए अभ्यासों से कोई सबक़ नहीं लिया था. इसीलिए, जब एक बार महामारी का प्रकोप फैलने लगा, तो इन देशों में जिन चीज़ों की शुरुआत में ही कमी होने लगी थी, वो थी आईसीयू के बिस्तर, वेंटिलेटर और मरीज़ों की देखभाल करने वालों के लिए निजी सुरक्षा के उपकरण. सरकार द्वारा प्रायोजित स्वास्थ्य व्यवस्था वाले देशों में ही इस वायरस से निपटने के प्रयास कारगर होते दिखे. सिंगापुर, ताइवान, न्यूज़ीलैंड और जापान जैसे कुछ गिने चुने देश ही थे, जो इस महामारी से मची तबाही से ख़ुद को बचाने में सफल हो सके. इन देशों के पास इस बात की सुविधा थी, इनके सभी नागरिकों को स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध थीं. ऐसे में जब वायरस का संक्रमण फैलने लगा, तो इन देशों के नागरिकों के पास या तो मुफ़्त में या फिर सरकार की मदद से बेहद कम पैसों में इसका टेस्ट कराने की सुविधा हासिल थी. आर्थिक संकट के दौरान, स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ उठाने का ख़र्च बेहद महत्वपूर्ण हो जाता है.

पिछले कुछ वर्षों के दौरान स्वास्थ्य सेवाओं के अलग अलग पहलुओं की ज़रूरतें पूरी करने में स्टार्अप कंपनियों ने बहुत बड़ा योगदान दिया है. इन कंपनियों ने नए-नए तरीक़े अपनाकर स्वास्थ्य सेक्टर की ज़रूरतों को पूरा करने की कोशिश की है. इस काम में तकनीक ने भी काफ़ी मदद की है

पिछले कुछ वर्षों के दौरान स्वास्थ्य सेवाओं के अलग अलग पहलुओं की ज़रूरतें पूरी करने में स्टार्अप कंपनियों ने बहुत बड़ा योगदान दिया है. इन कंपनियों ने नए-नए तरीक़े अपनाकर स्वास्थ्य सेक्टर की ज़रूरतों को पूरा करने की कोशिश की है. इस काम में तकनीक ने भी काफ़ी मदद की है. एक तो मोबाइल की जीएसएम तकनीक के ज़रिए आज पूरे देश में मोबाइल की सेवाएं उपलब्ध हैं. फिर जिन जगहों पर नेटवर्क ख़राब होता है, वहां पर भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) अपनी मुफ्‍त सैटेलाइट की सेवाएं देता है. ऐसे में आरविंद आई केयर सिस्टम, शंकर नेत्रालय और एलवी प्रसाद नेत्र संस्थान जैसी संस्थाओं ने इस तकनीक का लाभ उठा कर अपनी मोबाइल यूनिट से संवाद स्थापित किया है. और इसकी मदद से ग्रामीण क्षेत्रों में बीमारियों की स्क्रीनिंग की सेवाएं देनी शुरू की हैं. जैसे कि डायबिटीज़ की रेटिनोपैथी. डायबिटीज़ रेटिनोपैथी से शुरुआत में ही दिक़्क़त का पता लगाकर आंखों की रौशनी बचाना या उसे वापस दिलाने का काम इन संगठनों ने किया है. इसके अलावा ग्लूकोमा और मोतियाबिंद का पता लगाकर उसका इलाज करने का काम भी इन संगठनों ने नई तकनीक की मदद से किया है. इन उदाहरणों से स्वास्थ्य के क्षेत्र में नई तकनीक और समाधानों की अहमियत अपने आप स्पष्ट हो जाती है.

अगर भारत अपने स्वास्थ्य सेवाओं की इस तकनीकी तरक़्क़ी का लाभ लेना चाहता है. अपनी घरेलू ज़रूरतों को पूरा करने के अलावा इन तकनीकों का निर्यात अन्य देशों को करना चाहता है, तो भारत के लिए कुछ क़दम उठाने आवश्यक हो जाते हैं. हमें इस बात का यक़ीन है कि कोविड-19 से निपटने के दौरान सामने आई चुनौतियों के अनुभव से भारत ही नहीं, दुनिया के तमाम देश सबक़ ले सकते हैं. इससे हमें एक ऐसी स्वास्थ्य व्यवस्था स्थापित करने में मदद मिलेगी, जो न केवल, शांति काल में लोगों की ज़रूरतों को पूरा कर सकेगी. बल्कि, किसी महामारी के दौरान स्वास्थ्य व्यवस्था पर पड़ने वाले दबावों को भी कम करने में सहयोग करेगी.

भविष्य में किसी महामारी के फैलने की आशंका से निपटने के लिए हमें एक ऐसे इको-सिस्टम का निर्माण करना चाहिए, जो इलाज के नए उपकरणों की खोज को बढ़ावा देने के लिए वित्तीय मदद की विशेष रूप से व्यवस्था करें. चूंकि भारत की अधिकतर आबादी अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है. तो, प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा हमारी जनसंख्या की सबसे अहम ज़रूरत है

स्वास्थ्य के तमाम क्षेत्रों में प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा की भूमिका होती है. ये बीमारियों की रोकथाम करती है. इलाज करती है. लोगों को रोग मुक्ति में मदद करती है और स्वास्थ्य सेवाओं का प्रसार भी करती है. भारत की मौजूदा प्राथमिक स्वास्थ्य व्यवस्था 1940 के दशक में शुरू हुई थी, जब सर जोसेफ विलियम भोर की अध्यक्षता वाली कमेटी ने अपनी रिपोर्ट दी थी. ये रिपोर्ट भारत सरकार ने वर्ष 1943 में स्थापित की थी. अब भारत का प्राथमिक स्वास्थ्य का ये सिस्टम अस्सी साल पुराना हो चुका है. इसकी तमाम कमियां अब साफ दिखती हैं. अब देश की कुल आबादी के एक बड़े हिस्से की इस तक पहुंच नहीं रह गई है. इसकी कई वजहें हैं. जैसे कि इसमें कर्मचारियों की बड़ी तादाद की ज़रूरत होती है. ये महंगी व्यवस्था है, जिसका उतना लाभ नहीं होता, जितना इसमें लगाए जाने वाली पूंजी से होना चाहिए. साथ ही साथ हमारे देश की प्राथमिक चिकित्सा व्यवस्था किसी बीमारी के कारण या उसकी जड़ का पता लगाने का काम नहीं करती. सबके लिए स्वास्थ्य सेवा के लक्ष्य को तभी हासिल किया जा सकता है, जब देश में आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस पर आधारित प्राथमिक स्वास्थ्य व्यवस्था को लोगों की ज़रूरतों तक पहुंचाया जा सके. यानी लोगों के घरों तक नियमित और व्यापक रूप से ये सेवा पहुंचाई जा सके. अगर हम ऐसा कर पाते हैं, तो देश की स्वास्थ्य व्यवस्था के अन्य पहलुओं को भी दुरुस्त किया जा सकता है.

भविष्य में किसी महामारी के फैलने की आशंका से निपटने के लिए हमें एक ऐसे इको-सिस्टम का निर्माण करना चाहिए, जो इलाज के नए उपकरणों की खोज को बढ़ावा देने के लिए वित्तीय मदद की विशेष रूप से व्यवस्था करें. चूंकि भारत की अधिकतर आबादी अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है. तो, प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा हमारी जनसंख्या की सबसे अहम ज़रूरत है. भारत में पहले से ही ऐसे विश्व स्तरीय कॉरपोरेट अस्पताल हैं, जो इलाज की क़ीमत अदा करने में सक्षम लोगों को विश्व स्तरीय इलाज की सेवाएं दे रहे हैं. ऐसे में हमारी हर कोशिश इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए होनी चाहिए कि, स्वास्थ्य सेवाओं तक सभी नागरिकों की पहुंच बन सके. इलाज से बचाव बेहतर है. फिर चाहे वो मेडिकल सेवा की बात हो या देश की अर्थव्यवस्था की ही क्यों न हो.

अपने देश की आबादी की स्वास्थ्य की ज़रूरतों को पूरा करने के साथ साथ हमें महत्वपूर्ण मेडिकल उपकरणों जैसे कि टेस्टिंग किट, निजी सुरक्षा उपकरण, मास्क और गाउन का एक सामरिक भंडार भी तैयार करना चाहिए. इसके अलावा जीवन रक्षक उपकरण जैसे कि वेंटिलेटर और सीपीएपी (Continuous positive airway pressure CPAP) को भी बुरे वक़्त के लिए जुटा कर रखा जाना चाहिए. आज इस महामारी के दौर में हमें इनमें से कई उपकरणों का दूसरे देशों से आयात करना पड़ रहा है. अगर हम इन मेडिकल उपकरणों को भारत में ही बनाने और निर्यात करने को प्रोत्साहन दें, तो इससे देश की अर्थव्यवस्था का भी भला होगा. महामारी की तैयारी हमारी नीतियों और स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने की परिचर्चा का हिस्सा बनना चाहिए. हमें पूरे देश में स्वास्थ्य उपकरणों के निर्माण को तेज़ करना चाहिए, ताकि हमारी नई खोजों को जल्द से जल्द बाज़ार में लाया जा सके. भारत जैसी ज़रूरतों वाले अन्य देश भी इन नई खोजों के निर्यात का बाज़ार बन सकते हैं.

आत्म निर्भरता को बढ़ावा देने के लिए हमें रणनीतिक रूप से योजना बनानी चाहिए. इसके लिए आवश्यक उचित फंड की व्यवस्था करनी चाहिए. तभी हम अपनी ज़रूरतें पूरी कर पाने लायक़ बन सकेंगे. अगर ऐसे प्रोजेक्ट शुरू किए जाते हैं, तो आगे चलकर ये निर्यात से पैसे कमा कर अपना काम ख़ुद चलाने लायक़ बन जाएंगे.

कोविड-19 और इस महामारी के माध्यम से हमारे सामने खड़े अवसरों ने हमें दिखाया है कि देश की बहुत सी स्टार्अप कंपनियों ने कई खोज के ज़रिए इस महामारी से लड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. कोविड-19 को नियंत्रित करने के उपायों ने दिखाया है कि ट्रैकिंग और टेस्टिंग के ज़रिए ही हम इस महामारी का प्रकोप सीमित कर सकते हैं. पर्सनल प्रोटेक्टिव एक्विपमेंट (PPE) का असरदार तरीक़े से उफयोग करने, क्वारंटीन के उपायों का अच्छे से प्रचार करने, प्रभावी क्वारंटीन व्यवस्था बनाने के उपाय करने और ज़रूरी सामानों को नियमित करने के लिए डिजिटल समाधान ने भी इस दौरान महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. कई स्टार्अप कंपनियों ने इन चुनौतियों को स्वीकार करके तुरंत असरदार विकल्प उपलब्ध कराए हैं.

हालांकि, इन कंपनियों की फंडिंग ज़्यादातर मॉलिक्यूलर रिसर्च, दवा की खोज और टीके के विकास में व्यय की गई है. जबकि हमारे देश में ऐसी व्यवस्था की भारी कमी है, जो इन मक़सदों को पूरा कर सके. हमारे देश की ख़ूबी, महंगे इलाज के सस्ते विकल्प तलाशने की रही है.

निजी और सार्वजनिक सुरक्षा के लिए विशुद्ध सॉफ्टवेयर आधारित समाधान तलाशने और नए उपकरणों की खोज के लिए फंडिंग की इस दौरान अक्सर अनदेखी कर दी गई. इस पूरी महामारी के दौरान स्वास्थ्य के क्षेत्र की अधिकतर फंडिंग नई चीज़ों की तलाश करने और पश्चिमी देशों की नक़ल करने में व्यय कर दी गई. जबकि हम भारत में ज़मीनी स्तर पर असरदार विकल्प तलाशने पर ज़ोर दे सकते थे.

मौजूदा पारंपरिक नियामक और प्रमाणित करने वाली संस्थाओं से इतर, उचित अकादेमिक, अनुसंधान और नई खोज के केंद्र ही आज स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में नए-नए आविष्कार कर रहे हैं. अब उन्हें नई खोज के नियमितीकरण की प्रक्रिया का हिस्सा बनाए जाने की ज़रूरत है.

हमारे देश के आविष्कारकों ने जिस समस्या का भी सफल समाधान निकाला, उन्हें नियम कायदों की चुनौतियों से जूझना पड़ा. हमारी स्वास्थ्य सेवाओं में नियामक अनुमतियों को आसानी से हासिल करने की सुविधा ज़रूर जोड़ी जानी चाहिए. इसकी वजह भी है. क्योंकि, स्वास्थ्य सेवा असल में ज़िंदगी और मौत का मसला होती है. दुनियाभर में स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े नियामकों से अनुमति पाना अब एक केंद्रीकृत प्रक्रिया बन चुका है. लेकिन हम अभी भी अन्य देशों के दिखाए रास्ते पर ही चल रहे हैं. उनकी नक़ल करके ही नियम बना रहे हैं. जबकि आज हमें अपने देश की ज़रूरतों के हिसाब से समाधान निकालने और स्थानीय स्तर पर तलाशे जाने वाले विकल्पों को प्रोत्साहन देने की ज़रूरत है.

मौजूदा पारंपरिक नियामक और प्रमाणित करने वाली संस्थाओं से इतर, उचित अकादेमिक, अनुसंधान और नई खोज के केंद्र ही आज स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में नए-नए आविष्कार कर रहे हैं. अब उन्हें नई खोज के नियमितीकरण की प्रक्रिया का हिस्सा बनाए जाने की ज़रूरत है. टेस्ट करने की आसान प्रक्रिया की पहचान की जानी चाहिए, ताकि नए समाधानों का जल्द से जल्द परीक्षण करके उन्हें इस्तेमाल में लाया जा सके. जैसे कोई राह चलता व्यक्ति कैसा मास्क पहने, इसे प्रमाणित करने की प्रक्रिया बहुत लंबी चौड़ी नहीं होनी चाहिए. फ़ैसला लेने की प्रक्रिया का विकेंद्रीकरण भी कोविड-19 की महामारी पर क़ाबू पाने में काफ़ी असरदार साबित हो सकता है.

इस दौर में जो स्टार्अप काफ़ी चर्चित रही हैं और जिन्होंने कोविड-19 से पैदा हुए अवसरों का लाभ उठा कर स्वास्थ्य के क्षेत्र में नए समाधान निकाले हैं, वो इस प्रकार हैं:

  1. कैलिगो टेक्नोलॉजीस: डायबिटीज़ रेटिनोपैथी, सर्विकल और मुंह में अन्य तरह के कैंसर का पता लगाने के लिए मेडिकल तस्वीरों का विश्लेषण करने में आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल करना.
  2. फोर्थ फ्रंटियर: दिल में तनाव (ऑक्सीजन की मांग और आपूर्ति में कमी के संतुलन) का पता लगाने के लिए एक ऐसे उपकरण की खोज, जिसे दूर से संचालित किया जा सकता है. इसे पेशेवर और शौकिया एथलीटों की वर्ज़िश के दौरान प्रयोग किया जा सकता है. इससे एथलीटों को अपने सुरक्षित दायरे में रहते हुए अभ्यास का भरपूर उपयोग करने का अवसर मिलता है.
  3. ऑक्सीजन खुराक प्रणाली (O2Matic): एक हल्के ऑक्सीजन जेनरेटर की खोज (जिसे अभी पेटेंट मिलना बाक़ी है), जिसकी मदद से दिल को7 प्रतिशत तक शुद्ध ऑक्सीजन की आपूर्ति की जा सकती है और इसके लिए बिजली की भी ज़रूरत नहीं होगी. कोविड-19 के बाद ये डिवाइस गेम चेंजर साबित हो सकती है. ख़ास तौर से ऐसे मरीज़ों के लिए, जिन्हें बाहर से ऑक्सीजन देने की ज़रूरत पड़ती है.
  4. निरामयी: शरीर के बाहर से ही ब्रेस्ट कैंसर का पता लगाने के लिए आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस की मदद से चलने वाली डिवाइस की खोज की. इसे बेहद हल्की और आसानी से लाई ले जाने वाली डिवाइस से चलाया जा सकता है.

भारत के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने कई स्वास्थ्य तकनीक मूल्यांकन के केंद्र पूरे देश में स्थापित किए हैं. इन केंद्रों की स्थापना से ये अपेक्षा है कि वो स्टार्अप द्वारा सुझाए जाने वाले नए तकनीकी समाधानों का मूल्यांकन करके उनके इस्तेमाल की इजाज़त दे दें. ऐसी कोशिशों से स्टार्अप को अपने लिए पूंजी जुटाने में भी मदद मिलेगी.

भारत इनोवेशन और नई व प्रभावशाली तकनीक को लागू करने में अपनी ज़िम्मेदारी को बहुत गंभीरता से लेता है. इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च के महानिदेशक डॉक्टर बलराम भार्गव पेशे से दिल के डॉक्टर हैं. डॉक्टर भार्गव ने ब्रिटेन के ग्लास्गो शहर में स्थित रॉयल कॉलेज ऑफ़ फ़िजिशियन्स ऐंड सर्जन्स में एक भाषण के दौरान कहा कि, ‘हम भारत में इनोवेशन का माहौल बनाने को अपनी ज़िम्मेदारी समझते हैं. इसे वित्तीय प्रोत्साहन देना और ये सुनिश्चित करना कि उद्यमी को उनकी मेहनत का उचित इनाम दिलाना भी हमारा फ़र्ज़ है, ताकि नई खोज करने वाले को अपनी तलाश में उचित भागीदारी मिले.’

हमें इस बात का यक़ीन है कि कम लागत और बेहद काबिल लोगों की भारत में निर्माण को बढ़ाने की प्रतिबद्धता के चलते हम अपनी इनोवेटिव सोच को बढ़ावा दे सकते हैं. देश में स्टार्अप संस्कृति को और मज़बूत कर सकते हैं. अब ये हमारे देश के राजनीतिक नेतृत्व की ज़िम्मेदारी है कि वो ऐसा करने के लिए रणनीति तैयार करें, लोगों को प्रोत्साहित करें और हमारे काबिल लोगों को प्रेरित करें ताकि वो विश्व के मंच पर अपना वाजिब हक़ हासिल कर सकें.

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