Author : Shashi Tharoor

Published on Sep 03, 2020 Updated 0 Hours ago

इस साल 'ब्लैक लाइव्स मैटर' संबंधी विरोध प्रदर्शनों ने चर्चिल के ओछेपन की विरासत और उन्हें महानायक का दर्जा दिए जाने पर सवाल उठाए और उनके अपराधों को याद दिलाने के लिए नए सिरे से कोशिशें कीं.

विंस्टन चर्चिल पर ‘पुनर्विचार’ भाग-2: शशि थरूर

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चर्चिल साम्राज्यवाद के कट्टर समर्थक थे और उनके द्वारा कहे गए शब्द ही ख़ुद उन्हें नस्लवाद और यहूदी-विरोध का दोषी ठहराते हैं. उन्होंने ‘यूजनिक्स’ के छद्म विज्ञान का समर्थन किया और उसके तहत “गैर-ज़रूरी” या ‘जिन्हें वो दूसरों से कमतर’ मानते थे ऐसे लोगों को प्रजनन से रोकने की बात कही. उन्होंने महिलाओं के अधिकार सुरक्षित करने की बात कही लेकिन औरतों के लिए मताधिकार मांगने वाली महिलाओं का पुरज़ोर विरोध किया. अपने पूरे करियर के दौरान जिस चीज़ में उनकी सबसे अधिक रुचि थी वह था उनका व्यक्तिगत गौरव व आत्म-प्रचार. ब्रिटिश साम्राज्य ने उन्हें इसके लिए सटीक मंच भी प्रदान किया. कैंडिस मिलार्ड के शब्दों में कहें तो, साम्राज्य भर में हो रहे विद्रोह और संघर्ष उनके लिए “व्यक्तिगत गौरव और उन्नति के अनूठे अवसर” से अधिक कुछ नहीं थे.

अपने जीवन के “सबसे बेहतरीन क्षणों” यानी द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जब वो आखिरकार प्रधानमंत्री बने तब चर्चिल ने जनता में डर और दहशत पैदा करने के लिए आम नागरिकों पर “टेरर बॉबिंग” का समर्थन किया. उन्होंने लिखा कि वो भारी बमबारी के ज़रिए ऐसे हमले चाहते हैं जो ख़ौफ़ पैदा करने वाले और सबकुछ तहस-नहस करने वाले हों. इसका नतीजा था ड्रेसडेन में हुई भयानक बमबारी: उन्होंने इसे लेकर नीतियों पर हस्ताक्षर किए लेकिन लक्ष्य उन्होंने नहीं चुना था. चर्चिल ने जर्मन नागरिकों के खिलाफ़ रसायनिक हथियार इस्तेमाल किए जाने की भी पैरवी की. “मुझे हर उस चीज़ को करने के लिए तैयार रहना होगा जो दुश्मन और उसके आतंक भरे ठिकानों पर ख़त्म कर सके,” साल 1944 में लिखे एक पत्र में चर्चिल ने ये घोषणा की. उन्होंने लिखा: “मुमकिन है कि मुझे ज़हरीली गैस के इस्तेमाल के लिए आपके समर्थन की ज़रूरत पड़े. हम इससे रुर और जर्मनी के दूसरे शहरों को भर देंगे…हमें हर हाल में ऐसा करना ही चाहिए.” एक दूसरा अभियान जिसे ऑपरेशन वेजिटेरियन का नाम दिया गया, इस के तहत जर्मनी के मवेशियों को एंथरैक्स के पैकेट खिलाने की योजना बनी. इससे जर्मन लोग दूध और बीफ़ से वंचित होते साथ ही वो लोग भी संक्रमित होते जो इन मवेशियों के मांस का सेवन करते. इन सभी योजनाओं की अनैतिकता ने चर्चिल को कभी परेशान या विचलित नहीं किया.

केन्या में, श्वेत औपनिवेशिक ताक़तों के लिए रास्ता बनाने के क्रम में चर्चिल ने वहां की उपजाऊ ज़मीन पर बसे स्थानिय नागरिकों को जबरन पुनर्वासित करने में या तो प्रत्यक्ष भूमिका निभाई या फिर उसके लिए नीतियां बनाने का काम किया. इसके चलते 150,000 से अधिक पुरुष, महिलाएं और बच्चे यातना शिविरों में जाने को मज़बूर हुए.

युद्ध के अंतिम दौर में अनैतिकता अपने चरम पर पहुंची जब चर्चिल ने ऑपरेशन कीलहॉल को मंजूरी दी, जिसके तहत दो मिलियन लोगों का अनैच्छिक रूप से यूएसएसआर प्रत्यावर्तन  किया गया. इनमें से कई लोग कभी भी सोवियत नागरिक नहीं थे. रूसी नोबेल पुरस्कार विजेता ब्रायन सोलजेनिट्सिन ने इसकी कड़ी भर्त्सना करते हुए चर्चिल को “90,000 कॉस्सैक सैन्य दस्तों लिए काम करने” का दोषी ठहराया. द गुलाग आर्किपैलेगो में उन्होंने लिखा कि “इन लोगों के साथ कई वृद्धों, महिलाओं और बच्चों को भी सौंपा गया”. इसी तरह पोलैंड, चेकोस्लोवाकिया, यूगोस्लाविया, हंगरी और रोमानिया से जर्मनों के निष्कासन को बेरहमी से अंजाम दिया गया, जिसके परिणामस्वरूप 2.1 मिलियन से ज़्यादा जर्मन नागरिकों की मौत हुई या वो लापता हो गए.

इस सबसे अछूता रहते हुए 15 दिसंबर 144 को चर्चिल ने हाउस ऑफ कॉमन्स में कहा: “लोगों को निकाला जाना अब तक इस्तेमाल किए गए तरीकों में सबसे संतोषजनक और प्रभावशाली है. इससे लोगों के जनसंख्या में मिलने का ख़तरा भी नहीं रहता, ताकि आगे कोई समस्या आए…..हमारी योजना है- पूरी तरह सफाया. मैं इस तरह के स्थानांतरण को लेकर चिंतित नहीं हूं क्योंकि आधुनिक दौर में यह हर तरह मुमकिन है.”

नैतिक-संकोच कभी भी चर्चिल के व्यक्तित्व का बड़ा हिस्सा नहीं था. इस तरह के संकेत मौजूद हैं कि जब उनका बेटा रैंडॉल्फ, लड़ाई के मैदान में था तो उन्होंने अपनी बहू पामेला को अमेरिकी राजदूत एवरेल हैरमैन (जिनसे बाद में पामेला ने शादी की) का मनोरंजन करने के लिए आगे किया. चर्चिल को इस बात से कोई परेशानी नहीं थी कि अमेरिका के साथ निकट संबंध बनाने के लिए वो अपने बेटे के वैवाहिक संबंधों को दांव पर लगा रहे थे.

लेकिन हत्या में उन्हें सेक्स से भी अधिक आनंद मिलता था. अफ़गानिस्तान में, चुलबुले चर्चिल ने, जिनका युद्ध के प्रति प्रेम “औपनिवेशिक अर्थशास्त्र जैसे बोझिल मामलों” से कहीं आगे था, घोषणा की, कि पश्तूनों के लिए “[ब्रिटिश] नस्ल की श्रेष्ठता को पहचानना आवश्यक है” और “ऐसा कोई भी व्यक्ति जो इसका विरोध करेगा बिना किसी संकोच मारा जाएगा”. उन्होंने विस्तार से लिखा कि किस तरह “हमने व्यवस्थित रूप से, गाँव के गाँव और घरों को नष्ट किया, किस तरह कुओं को भर दिया गया, टावर उड़ा दिए गए, बड़े से बड़े छायादार पेड़ों को काट दिया गया, फसलों को जला दिया गया और सज़ा के रूप में जलाशयों को तोड़ दिया गया…पकड़े गए कबायलियों को तुरंत मौत के घाट उतार दिया जाता था.”

केन्या में, श्वेत औपनिवेशिक ताक़तों के लिए रास्ता बनाने के क्रम में चर्चिल ने वहां की उपजाऊ ज़मीन पर बसे स्थानिय नागरिकों को जबरन पुनर्वासित करने में या तो प्रत्यक्ष भूमिका निभाई या फिर उसके लिए नीतियां बनाने का काम किया. इसके चलते 150,000 से अधिक पुरुष, महिलाएं और बच्चे यातना शिविरों में जाने को मज़बूर हुए. चर्चिल के शासन में केनियाई लोगों को प्रताड़ित करने के लिए ब्रिटिश अधिकारियों ने बलात्कार, बधियाकरण, सिगरेट से जलाने और बिजली के झटके देने जैसे तरीकों का इस्तेमाल किया.

एक टेलीविज़न नाटक में चर्चिल का किरदार निभाने वाले अभिनेता रिचर्ड बर्टन ने साहसिक रूप से न्यूयॉर्क टाइम्स  के लिए लिखा: “ख़ुद को इस किरदार के लिए तैयार करने के दौरान,… मुझे एहसास हुआ कि मैं चर्चिल और उनकी तरह के दूसरे लोगों से नफ़रत करता हूं. मैं उनसे पूरी शिद्दत से नफ़रत करता हूं. इतिहास के क्रम में ताक़त के गलियारों में घूमते हुए उनके पास असीम शक्ती थी….ऐसे में ब्रिटिश और एंज़ैक युद्ध बंदियों पर जापानियों द्वारा किए गए अत्याचारों को सुनने के बाद उन्होंने कहा कि, “हम उनका सफाया कर देंगे, हर एक का सफाया, पुरुषों का, महिलाओं का और बच्चों का. धरती पर एक भी जापानी बचा नहीं रहेगा”? बदला लेने की इस तड़प ने मुझे चकित कर दिया और मेरे मन में इस तरह के एकल और बेरहम व्यक्तित्व के प्रति अरुचि पैदा कर दी.” बर्टन को उनकी इस ईमानदारी के लिए बदनाम किया गया और बीबीसी ने उन पर प्रतिबंध लगा दिया, लेकिन उन्होंने चर्चिल की निर्विवाद वास्तविकता को उजागर किया था– और बादशाही के नाम पर खून-खराबा करने के उनके शौक की ओर इशारा किया था.

लेकिन विंस्टन चर्चिल का मुख्य शिकार थे भारतीय- “अमानुषिक धर्म को मानने वाले अमानुषिक लोग”, जैसा कि उन्होंने लोकप्रिय रूप से कहा था. स्वतंत्रता के प्रवर्तक के रूप में चर्चिल की वाहवाही इस मायने में भी बेतपकी और गलत है कि 1941 में उन्होंने खुलकर कहा कि अटलांटिक-चार्टर  के सिद्धांत भारत पर लागू नहीं होंगे. स्वतंत्रता और लोकतंत्र को लेकर चर्चिल की धारणाएं साम्राज्यवाद के मोर्चे पर लड़खड़ा गईं: वो भयावह रूप से नस्लीय व्यक्ति थे, जो दूसरे रंग, जाति या नस्ल के लोगों को अपने समक्ष या अपने जैसे अधिकार दिए जाने के बारे में सोच भी नहीं सकते थे. चर्चिल ने घोषणा की, “गांधी- और उनके गांधीवाद से आज नहीं तो कल निपटना ही होगा और आखिरकार उसे कुचल दिया जाएगा.” उन्होंने बड़े क्रूर और सनसनीखेज़ ढंग से महात्मा गांधी को ज़मीन पर बांध कर उन्हें हाथियों द्वारा रौंद दिए जाने की बात कही.

युद्ध और उसकी ज़रूरत को लेकर चर्चिल का दर्शन बेहद सरल था: वह जापानियों को तबाह कर देंगे, जर्मन नागरिकों को मैदानों में खदेड़कर बमों से तहस-नहस कर देंगे और भारतीयों को भूखा मार देंगे. चर्चिल के व्यक्तिगत निर्णयों की बदौलत 1943 के अकाल में लगभग चार मिलियन बंगाली भूख से मर गए.

ऐसे मामलों में चर्चिल अंग्रेज़ी जमात के सबसे प्रतिक्रियावादी लोगों में थे. उनके विचार इतने चरमपंथी थे कि उन्हें उस समय के अनुकूल कहकर टाला नहीं जा सकता. वास्तव में चर्चिल के बयानों ने उनके समकालीनों को भी बेहद असहज और चकित किया. उनके अपने युद्ध सचिव लियोपोल्ड एम्री ने स्वीकार किया कि वह चर्चिल के रवैये और हिटलर के बीच बहुत कम अंतर देखते हैं.

युद्ध और उसकी ज़रूरत को लेकर चर्चिल का दर्शन बेहद सरल था: वह जापानियों को तबाह कर देंगे, जर्मन नागरिकों को मैदानों में खदेड़कर बमों से तहस-नहस कर देंगे और भारतीयों को भूखा मार देंगे. चर्चिल के व्यक्तिगत निर्णयों की बदौलत 1943 के अकाल में लगभग चार मिलियन बंगाली भूख से मर गए. चर्चिल ने जानबूझकर भारतीय नागरिकों के लिए ज़रूरी अनाज को उन तक पहुंचने से रोका और उसकी आपूर्ति भारत में करने के बजाय ब्रिटिश सैनिकों को की, जिनके पास उस दौरान खाने की कोई कमी नहीं थी. यहां तक यह अनाज उन्होंने ग्रीस और अन्य जगहों पर यूरोपीय भंडार को भरने के लिए भेजा. उन्होंने तर्क दिया कि, “आमतौर पर कम खाकर जीने वाले बंगालियों के लिए भुखमरी ‘इतनी गंभीर समस्या नहीं’ जितनी ‘ग्रीस के हृष्ट-पुष्ट लोगों’ के लिए. टॉमीज़ के नाम से पुकारे जाने वाले ब्रिटिश सैनिकों के लिए अनाज और ब्रिटेन में घरेलू खपत के लिए रोटी (27 मिलियन टन अनाज आयात करने का ज़रूरत से बड़ा लक्ष्य) और यूरोप में बनाए गए बफ़र-स्टॉक यानी अनाज के भंडार (जिन्हें भविष्य में आज़ाद होने वाले ग्रीस और यूगोस्लाविया के नागरिकों के लिए रखा गया) चर्चिल की प्राथमिकता थे, न कि भारत में भुखमरी का शिकार हो रहे लोग. जब उन्हें भारत में मौजूद लोगों की पीड़ा और हालात के बारे में बताया गया तो उन्होंने अपनी चिर-परिचित अंदाज़ में कहा: अकाल भारतीयों की अपनी गलती थी, क्योंकि भारतीयों ने ‘खरगोशों की तरह प्रजनन’ किया.

मधुश्री मुखर्जी ने बंगाल अकाल पर विस्तृत रूप से लिखी अपनी किताब चर्चिल्स सीक्रेट वॉर में बताया है कि किस तरह भारत के अपने अतिरिक्त खाद्यान्न सीलोन निर्यात किए गए थे; ऑस्ट्रेलियाई गेहूं को कलकत्ता के भारतीय बंदरगाह के ज़रिए (जहां सड़कों पर भुखमरी से मरने वालों के शव पड़े थे) भू-मध्यसागर और बाल्कन देशों में भंडारण के लिए भेजा गया ताकि युद्ध के बाद ब्रिटेन में खाद्यान्न संबंधी दबाव कम किया जा सके. इस बीच अमेरिकी और कनाडाई खाद्य सहायता के प्रस्ताव ठुकरा दिए गए थे. एक कॉलोनी के रूप में भारत के पास अपने लिए भोजन आयात करने या अपने भंडार खर्च करने की अनुमति नहीं थी. यहां तक कि अपने स्वयं के जहाजों का उपयोग कर खाद्य सामग्री आयात करने की अनुमति भी नहीं थी. आपूर्ति और मांग के कानून भी मददगार साबित नहीं हुए: अन्य जगहों पर तैनात अपने सैनिकों के लिए खाद्य आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए, ब्रिटिश सरकार ने भारतीय बाज़ार में अनाज के लिए बढ़ी कीमतें तय कीं, जिससे यह अनाज आम भारतीयों के लिए महंगा और उनकी पहुंच से बाहर हो गया. जब कुछ विवेकशील अधिकारियों ने प्रधानमंत्री को एक टेलीग्राम के ज़रिए बताया कि उनके फैसलों से भारत में कितने बड़े पैमाने पर त्रासदी फैली है तो चर्चिल की केवल एक प्रतिक्रिया थी, जिसमें उन्होंने वायसराय, लॉर्ड वेवेल से पूछा: ‘गांधी अब तक क्यों नहीं मरे?’

चर्चिल के बचाव में उनके समर्थक कहते हैं कि इतनी बड़ी संख्या में मौतें युद्ध को लेकर किए गए मुश्किल फैसलों का परिणाम थीं, न कि ये हिटलर या स्टालिन की तरह जानबूझकर की गई हत्याएं. जेनोसाइड रिसर्च जर्नल के संपादक एडम जोन्स इस तर्क से असहमत हैं. उन्होंने चर्चिल को “एक वास्तविक जेनोसोडेयर” यानी नरसंहारक कहा है, जिन्होंने भारतीयों को “नकारा नस्ल” के रूप में देखा और ब्रिटिश वायु सेना प्रमुख से “उन्हें नष्ट करने के लिए अपने कुछ अतिरिक्त हमलावरों को भेजने” का आग्रह किया.

जब इंग्लैंड में पिछले महीने पार्लियामेंट स्क्वायर में चर्चिल की प्रतिमा को नस्लवाद के विरोध में उतारा गया था, तो ऐसी घटना पहली बार नहीं घटी थी. साल 2000 के मई दिवस के विरोध में, प्रदर्शनकारियों ने चर्चिल के मुंह के चारों ओर लाल रंग छिड़ककर उसे मानो खून से सना दिया था और मोहॉक-कट के ज़रिए एक प्रतिष्ठित युद्ध नायक को कॉमिक खलनायक जोकर में बदल दिया था.

इस साल ‘ब्लैक लाइव्स मैटर’ संबंधी विरोध प्रदर्शनों ने चर्चिल के ओछेपन की विरासत और उन्हें महानायक का दर्जा दिए जाने पर सवाल उठाए और उनके अपराधों को याद दिलाने के लिए नए सिरे से कोशिशें कीं. जिन इराक़ियों पर चर्चिल ने ज़हरीली गैस से हमले करवाए, एथेंस की सड़कों पर जिन ग्रीक प्रदर्शनकारियों को 1944 में उनके आदेशों के चलते रौंदा गया और जिसके चलते 28 लोगों की मौत हो गई और 120 लोग अपाहिज हुए, बड़ी संख्या में पश्तून और आयरिश, या बहादुर एंजैक्स जो चर्चिल की वजह से गैलीपोली में अनावश्यक मौत मारे गए, साथ ही उन अफगान, केन्याई और वेल्श खनिकों के साथ स्वयं मेरे जैसे भारतीयों के लिए भी, यह हमेशा एक रहस्य रहेगा कि कुछ दमदार भाषणों के बदले विंस्टन चर्चिल के नाम लिखी हत्याओं और नस्लवाद से रंगे उनके हाथों को अनदेखा कर दिया गया. हम जैसे लोग जो ये नहीं कर पाए वो चर्चिल को एक युद्ध-अपराधी के रूप में याद करेंगे जो शालीनता और मानवता का दुश्मन और एक ऐसा साम्राज्यवादी था जो अश्वेत लोगों पर होने वाले अत्याचार से कभी परेशान नहीं हुआ. जो भारत को स्वतंत्रता दिए जाने के खिलाफ़ लड़ा.

जब इंग्लैंड में पिछले महीने पार्लियामेंट स्क्वायर में चर्चिल की प्रतिमा को नस्लवाद के विरोध में उतारा गया था, तो ऐसी घटना पहली बार नहीं घटी थी. साल 2000 के मई दिवस के विरोध में, प्रदर्शनकारियों ने चर्चिल के मुंह के चारों ओर लाल रंग छिड़ककर उसे मानो खून से सना दिया था और मोहॉक-कट के ज़रिए एक प्रतिष्ठित युद्ध नायक को कॉमिक खलनायक जोकर में बदल दिया था. यह दुनिया भर में बुराई का प्रतीक बन चुके चर्चिल को आधुनिक समय में साकार करने की एक कोशिश थी. आज, बीस साल बाद, इस अनुपयुक्त शख्सियत की विरासत को याद करना अपने समय को पीछे घसीटने जैसा है.

इस लेख के कुछ अंश डॉ. शशि थरूर के पुराने कॉलम Hero or War Criminal? Churchill in Retrospect ओपन पत्रिका 21 जून 2018; The Rest of Us Always Knew Churchill Was a Villain, ब्लूमबर्ग, 16 फरवरी 2019; और Hollywood Rewards a Mass Murderer, गल्फ़ न्यूज़, 14 मार्च 2018 में छप चुके हैं.

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