Author : Gareth Price

Published on Feb 27, 2021 Updated 0 Hours ago

 वैसे तो भारत ने कहा है कि वो भविष्य के झटकों से ख़ुद को बचाने की उम्मीद रखता है लेकिन बिम्सटेक के ज़्यादातर सदस्य ख़ास क्षेत्रों में ज़रूरत से ज़्यादा निर्भरता के बारे में जागरुक हो गए हैं.

क्या महामारी से क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा मिलेगा?

टिकाऊ विकास लक्ष्य 16 का मक़सद है “टिकाऊ विकास के लिए शांतिपूर्ण और समावेशी समाज को प्रोत्साहन.” बढ़ती बातचीत- चाहे वो समुदायों के बीच हो या देशों के बीच- से आम तौर पर सहयोग में बढ़ोतरी होती है और दुश्मनी के बदले सद्भाव का निर्माण होता है. कोविड-19 महामारी से पहले बंगाल की खाड़ी के इर्द-गिर्द के देश, बिम्सटेक (बंगाल की खाड़ी बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग उपक्रम) के तत्वावधान में और द्विपक्षीय तौर पर ज़्यादा क्षेत्रीय हिस्सेदारी- भले ही छोटे आधार पर- के रास्ते पर थे.

लेकिन महामारी की वजह से इस रुझान पर रोक लग गई. महामारी के ज़्यादा प्रकोप वाले देशों में लॉकडाउन के ज़रिए विदेशी हिस्सेदारी को सीमित करने की कोशिश की गई. कई देशों ने अपनी सीमा पर सख़्त पहरा लगा दिया या उसे बंद कर दिया और अंतर्राष्ट्रीय उड़ानों को रोक दिया. महामारी का सेहत पर असर (अभी तक) जहां अलग-अलग देशों में अलग-अलग है लेकिन आर्थिक असर काफ़ी ज़्यादा रहा है. हर जगह विकास की रफ़्तार नाटकीय ढंग से सुस्त हो गई और कई देश मंदी की चपेट में आ गए- ये हाल उन देशों का है जहां कुछ हद तक रोज़गार सृजन के लिए मज़बूत आर्थिक विकास की ज़रूरत है.

हर जगह विकास की रफ़्तार नाटकीय ढंग से सुस्त हो गई और कई देश मंदी की चपेट में आ गए- ये हाल उन देशों का है जहां कुछ हद तक रोज़गार सृजन के लिए मज़बूत आर्थिक विकास की ज़रूरत है.

क्षेत्रीय देशों पर पड़ता प्रतिकूल प्रभाव

बंगाल की खाड़ी के किनारे बसे दक्षिण एशियाई देशों में निश्चित रूप से कुछ आर्थिक चुनौतियां साझा हैं. दूसरे देशों, ख़ास तौर पर खाड़ी के देशों में लॉकडाउन की वजह से पैसे आने में नुक़सान झेलना पड़ा है. श्रीलंका और बांग्लादेश से कपड़े के निर्यात को काफ़ी नुक़सान हुआ है. पर्यटन की बर्बादी ने पूरे क्षेत्र को प्रभावित किया है, भूटान, म्यांमार, श्रीलंका और थाईलैंड को काफ़ी नुक़सान हुआ है. ग़रीबी कम करने में कई दशकों की प्रगति नाकामी का ख़तरा झेल रही है क्योंकि आर्थिक हालात बेहद ख़तरनाक हो गए हैं.

इस बीच, पश्चिमी अर्थव्यवस्थाओं के सिकुड़ने की वजह से विकास सहायता कम होने की आशंका है. हालांकि बंगाल की खाड़ी के किनारे बसे कई देशों को इसकी भरपाई चीन की बढ़ती सहायता और अनुदान से हो सकती है. इसके बावजूद बंगाल की खाड़ी के किनारे बसे कई देशों में एनजीओ और सिविल सोसायटी संगठनों के लिए समर्थन के मामले में पहले से दबाव था. इसके साथ-साथ कोविड-19 की वजह से आई आर्थिक सुस्ती के कारण कर की वसूली पहले से कम थी: 2020-21 की पहली छमाही में पिछले साल के मुक़ाबले भारत के कर राजस्व में 27 प्रतिशत से ज़्यादा की कमी आई. एकमात्र सकारात्मक आर्थिक ख़बर ये रही कि उधार लेने की लागत में ऐतिहासिक कमी आई.

आत्मनिर्भरता की तरफ़ बढ़ता रुझान

आत्मनिर्भरता की तरफ़ बढ़ता रुझान समझा जा सकता है. भारत ने जहां खुले तौर पर कहा है कि वो भविष्य के झटकों से ख़ुद को बचाने की उम्मीद रखता है लेकिन बिम्सटेक के ज़्यादातर सदस्य ख़ास क्षेत्रों में ज़रूरत से ज़्यादा निर्भरता के बारे में जागरुक हो गए हैं. कोविड-19 के झटकों से तो उबर जाएंगे लेकिन दूसरे झटके भी लग रहे हैं या लगने वाले हैं. उदाहरण के तौर पर किसी कंपनी के बिज़नेस ऑपरेशन को वापस उस देश में लाने की कवायद बिम्सटेक के सदस्य देशों में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) के लिए ख़तरा हो सकता है. कोविड-19 ने कई सप्लाई चेन की कमज़ोरी को भी उजागर किया है जो संभवत: उत्पादन की पद्धति में बदलाव ला सकती है. ये हालात प्राकृतिक आपदा जैसे चक्रवात के अलावा है. दीर्घकाल में बिम्सटेक के कई सदस्य जलवायु परिवर्तन के असर से ख़ास तौर पर असुरक्षित हैं.

क्या महामारी बंगाल की खाड़ी के देशों के बीच ज़्यादा हिस्सेदारी को बढ़ावा देने का काम कर सकती है, वो भी तब जब शुरुआती जवाब सीमा को खुला रखने के बदले बंद करना रहा है? महामारी को लेकर बात करें तो भारत वैक्सीन का बड़ा उत्पादक बन रहा है जिसकी स्पष्ट तौर पर व्यापक मांग होगी. चीन पहले से अलग-अलग देशों के साथ समझौते पर हस्ताक्षर कर वैक्सीन उन तक पहुंचाने की मंज़ूरी दे रहा है. अगर भारत अपने बिम्सटेक के पड़ोसियों को प्राथमिकता देता है तो इससे बिम्सटेक को सहारा मिलने की उम्मीद है.

भारत को अपने दक्षिण-पूर्व एशियाई पड़ोसियों को अपनी तरफ़ खींचने में जिन चुनौतियों का सामना करना पड़ा है, उनमें से एक है म्यांमार के ज़रिए इस क्षेत्र तक संपर्क में काफ़ी देरी होना. इसकी तुलना में फार्मास्युटिकल एक ऐसा क्षेत्र है जिसके ज़रिए भारत से मिलने वाले अपेक्षाकृत फ़ायदे को बेहतर ढंग से दिखाया जा सकता है.

महामारी के एक संभावित नतीजे के तौर पर लंबी दूरी की फ्लाइट की मांग में कमी हो सकती है- इसकी एक वजह कोविड-19 का डर है तो दूसरी वजह आर्थिक हालात में गिरावट. पर्यटन के बुरे दिन चालू रह सकते हैं. बिम्सटेक के भीतर क्षेत्रीय पर्यटन को बढ़ावा देकर इसकी भरपाई की जा सकती है. लेकिन ये सही ढंग से काम करे इसके लिए वीज़ा प्रक्रिया को आसान बनाना होगा. ये ऐसा मुद्दा है जिस पर कई वर्षों से चर्चा चल रही है. अगर बिम्सटेक अपने सदस्य देशों के लिए वीज़ा मुक्त या आगमन पर वीज़ा की शुरुआत करता है तो क्षेत्रीय पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा.

भारत को अपने दक्षिण-पूर्व एशियाई पड़ोसियों को अपनी तरफ़ खींचने में जिन चुनौतियों का सामना करना पड़ा है, उनमें से एक है म्यांमार के ज़रिए इस क्षेत्र तक संपर्क में काफ़ी देरी होना. इसकी तुलना में फार्मास्युटिकल एक ऐसा क्षेत्र है जिसके ज़रिए भारत से मिलने वाले अपेक्षाकृत फ़ायदे को बेहतर ढंग से दिखाया जा सकता है.

इसके विकल्प के तौर पर या इसके अतिरिक्त बिम्सटेक आयेयावाडी-चाओ फ्राया-मेकांग आर्थिक सहयोग रणनीति समूह (एसीएमईसीएस जिसमें थाईलैंड, कंबोडिया, लाओस, म्यांमार, थाईलैंड और वियतनाम शामिल हैं) से सीख सकता है. 2013 में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए थाईलैंड और कंबोडिया ने एसीएमईसीएस वीज़ा की शुरुआत की जिसके तहत आने वाले लोगों को दोनों देश घूमने की मंज़ूरी दी गई. एसीएमईसीएस के बाक़ी बचे तीन देश इस योजना में शामिल होने पर विचार कर रहे हैं. लंबी दूरी के यात्रियों से पर्यटन को बढ़ावा मिलने की उम्मीद ज़्यादा है. ऐसे में उनको बिम्सटेक देशों की यात्रा की सुविधा देना काफ़ी आकर्षक रहेगा.

कोविड के बाद पहले से मौजूद कनेक्टिविटी की पहल को विकसित करने की अपार संभावनाएं हैं. भौगोलिक तौर पर पूर्वोत्तर भारत बिम्सटेक के केंद्र में है लेकिन इसके बावजूद ऐतिहासिक तौर पर ये इलाक़ा (भारत के लिए) दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया के बीच कनेक्टिविटी के मामले में दूसरे दर्जे का रहा है. बंटवारे के बाद इस इलाक़े की अर्थव्यवस्था को नुक़सान हुआ. आज़ादी से पहले मुख्य तौर पर कृषि पर आधारित ये इलाक़ा अपनी उपज का रेल के ज़रिए (तत्कालीन) कलकत्ता जैसे बाज़ार में निर्यात करता था. आज़ादी के बाद ये रास्ता बंद हो गया. यहां की उपज (तत्कालीन) पूर्वी पाकिस्तान के रास्ते भेजने में कई दिन लगते थे जिसकी वजह से रास्ते में ही सामान ख़राब होने लगता था. इसी तरह पूर्वोत्तर भारत भेजे जाने वाले सामान पर भी ट्रांसपोर्ट की ज़्यादा लागत का असर पड़ा.

धीरे-धीरे भारत ने बांग्लादेश के ज़रिए पूर्वोत्तर से “आयात” और “निर्यात” का रास्ता सुरक्षित कर लिया. हाल के दिनों में पिछले साल सितंबर में सीमेंट का एक कार्गो बांग्लादेश के ज़रिए नदी से त्रिपुरा तक सबसे पहले पहुंचा. ये क़दम दोनों देशों के लिए फ़ायदेमंद होना चाहिए और ये व्यापक स्वरूप के तौर पर काम कर सकता है. इससे बांग्लादेश के भीतर इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण आसान हो सकता है. इससे ट्रांसपोर्ट की लागत भी आधा होने का अनुमान है.

कोविड के बाद पहले से मौजूद कनेक्टिविटी की पहल को विकसित करने की अपार संभावनाएं हैं. भौगोलिक तौर पर पूर्वोत्तर भारत बिम्सटेक के केंद्र में है लेकिन इसके बावजूद ऐतिहासिक तौर पर ये इलाक़ा (भारत के लिए) दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया के बीच कनेक्टिविटी के मामले में दूसरे दर्जे का रहा है. 

फिलहाल भले ही भारत और बांग्लादेश के बीच सीमा के बाज़ार महामारी की वजह से बंद हों लेकिन ये भी आर्थिक मामले के अलावा लोगों के बीच आपसी संपर्क मुहैया कराने में कामयाब साबित हुए हैं. मेघालय और त्रिपुरा के साथ बांग्लादेश की सीमा पर चार बॉर्डर बाज़ार मौजूद हैं और क़ानूनी व्यापार को मज़बूत बनाकर ग़ैर-क़ानूनी व्यापार करने वालों को कमज़ोर किया जा सकता है. ये चीज़ भी दूसरे बिम्सटेक देशों के लिए आदर्श के तौर पर काम कर सकता है- ख़ास तौर से भारत-म्यांमार के बीच- और इसकी नक़ल की जा सकती है.

महामारी का तात्कालिक असर क़रीब-क़रीब पूरी दुनिया में नकारात्मक रहा है- स्वास्थ्य के मामले में, आर्थिक मामले में और यहां तक कि भू-राजनीतिक मामले में. लेकिन सभी झटके बेहतर निर्माण का अवसर मुहैया कराते हैं और अगर राजनीतिक प्राथमिकता मिले तो इसका इस्तेमाल बंगाल की खाड़ी के इर्द-गिर्द बेहतरीन संबंध बनाने में किया जा सकता है.

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