Author : Shairee Malhotra

Published on Apr 12, 2024 Updated 1 Hours ago

ये देखा जाना बाकी है कि भारत-EFTA के बीच नया व्यापार समझौता, जिसे "आधुनिक, निष्पक्ष और न्यायसंगत" बताया गया है, मौजूदा व्यापार असंतुलन को ठीक करने में सफल होता है या नहीं.

क्या भारत-EFTA व्यापार समझौता भारत के लिए अहम फायदे लेकर आएगा?

10 मार्च को पहली बार भारत ने पश्चिम के चार विकसित देशों के संगठन के साथ एक मुक्त व्यापार समझौते (फ्री ट्रेड एग्रीमेंट या FTA) पर हस्ताक्षर किए. यूरोपियन फ्री ट्रेड एसोसिएशन (EFTA), जो कि यूरोप में एक प्रमुख आर्थिक समूह है, में यूरोपियन यूनियन (EU) से अलग चार देश- स्विट्ज़रलैंड, नॉर्वे, आइसलैंड और लिचटेन्स्टीन- शामिल हैं. 1.30 करोड़ की छोटी जनसंख्या के बावजूद इस समूह की कुल GDP 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से ज़्यादा है और ये सामानों के व्यापार में नौवां सबसे बड़ा संगठन है जबकि सेवाओं के मामले में पांचवां सबसे बड़ा.

यूरोपियन यूनियन (EU), अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम (UK) और चीन के बाद भारत इस समूह का पांचवां सबसे बड़ा व्यापार साझेदार है और 2023 में दोनों तरफ का कुल व्यापार 25 अरब अमेरिकी डॉलर रहा. उस साल भारत ने इस समूह को सिर्फ़ 2 अरब अमेरिकी डॉलर का निर्यात किया जिसमें लोहा एवं इस्पात, रसायन, कीमती पत्थर, मशीनरी, यार्न, दवाई और खेल के सामान शामिल हैं. वहीं EFTA से भारत ने 20 अरब अमेरिकी डॉलर के सामान का आयात किया. इन सामानों में ज़्यादातर स्विट्ज़रलैंड से कोयला, चांदी, मशीनरी उपकरण, इंजीनियरिंग उत्पाद एवं मेडिकल डिवाइस के साथ सोना शामिल हैं. ये आंकड़ा EFTA के चार देशों के साथ भारत का भारी व्यापार घाटा दिखाता है.

पिछले दिनों जिस व्यापार एवं आर्थिक साझेदारी समझौते (TEPA) पर हस्ताक्षर किया गया, उससे दोनों तरफ बाज़ार तक पहुंच बढ़ने, निर्यात में बढ़ोतरी, टैरिफ में कमी, निवेश को बढ़ावा, कारोबार, नौकरी एवं लचीली सप्लाई चेन के लिए अवसर तैयार होने और कुल मिलाकर आर्थिक एकीकरण एवं विकास बढ़ने की उम्मीद की जा रही है.

यूरोपियन यूनियन, अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम और चीन के बाद भारत इस समूह का पांचवां सबसे बड़ा व्यापार साझेदार है और 2023 में दोनों तरफ का कुल व्यापार 25 अरब अमेरिकी डॉलर रहा. 

इस समझौते के लिए बातचीत की शुरुआत 2008 में हुई थी लेकिन 2013 में रुक गई और 21 राउंड की वार्ता के बाद आख़िरकार अप्रैल 2024 में पूरी हुई. वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने समझौते को "आधुनिक, निष्पक्ष एवं न्यायसंगत" और EFTA के साथ भारत के संबंधों में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर बताया.

समझौते में क्या-क्या शामिल

TEPA के 14 चैप्टर हैं जिनमें सामानों का व्यापार, सेवाएं, रूल्स ऑफ ऑरिजिन (किसी उत्पाद को तैयार करने वाले देश का निर्धारण), बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR), निवेश को बढ़ावा, सरकारी ख़रीद और तकनीकी बाधाएं शामिल हैं. पहली बार भारत ने किसी व्यापार समझौते में गैर-व्यापार पहलुओं को शामिल करने की अनुमति दी है जिनमें श्रम मानक, सामाजिक विकास और पर्यावरण सुरक्षा शामिल है.

समझौते के तहत भारत ने अपने 82.7 प्रतिशत टैरिफ लाइन (टैरिफ दरों की सूची) की पेशकश की है जबकि EFTA में शामिल देशों ने 92.2 प्रतिशत की. ये अनुमान लगाया गया है कि इस समझौते से अगले 15 वर्षों में भारत में 10 लाख से ज़्यादा नौकरियां पैदा होंगी और इस तरह बेरोज़गारी में कमी आएगी जो कि भारत के लिए एक प्रमुख मुद्दा है. ये EFTA के देशों में भारत के कुशल प्रोफेशनल्स की आसानी से आवाजाही की सुविधा प्रदान करेगा. इससे IT, वित्त, मैरीटाइम, मनोरंजन और प्रोफेशनल सेवाओं के क्षेत्र में भारत के सेवा निर्यात को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है.

इस समझौते में एक अनूठा हिस्सा निवेश पर चैप्टर है जहां EFTA समूह ने 15 वर्षों में 100 अरब अमेरिकी डॉलर के निवेश की बाध्यकारी प्रतिबद्धता जताई है. निवेश, जो कि ज़्यादातर प्राइवेट सेक्टर से होगा, का लक्ष्य मैन्युफैक्चरिंग और रसायन, फार्मास्यूटिकल्स, मशीनरी, खाद्य प्रसंस्करण, इंफ्रास्ट्रक्चर और परिवहन जैसे उद्योगों में होगा. ख़बरों के मुताबिक भारत ने पहले ही स्विस कंपनियों को अपने रेलवे में निवेश के लिए आमंत्रित किया है. नवीकरणीय, इंफ्रास्ट्रक्चर, इनोवेशन और R&D मे EFTA समूह की मज़बूती भारत की प्राथमिकताओं में मददगार होगी. ये समझौता तकनीकी सहयोग की सुविधा देगा और विश्व स्तरीय तकनीकों तक भारत की पहुंच मुहैया कराएगा.

पहली बार भारत ने किसी व्यापार समझौते में गैर-व्यापार पहलुओं को शामिल करने की अनुमति दी है जिनमें श्रम मानक, सामाजिक विकास और पर्यावरण सुरक्षा शामिल है. 

हालांकि संधि को मंज़ूरी मिलने और लागू करने में कम-से-कम एक साल (या ज़्यादा भी) का समय लगेगा. स्विट्ज़रलैंड के मामले में एक देशव्यापी जनमत संग्रह कराना पड़ सकता है जैसा कि इंडोनेशिया-EFTA फ्री ट्रेड एग्रीमेंट के समय हुआ था जिस पर हस्ताक्षर 2018 में किए गए थे लेकिन लागू 2021 में हुआ.

व्यापार को लेकर एक नया नज़रिया

हाल के वर्षों में देखा गया है कि भारत ने व्यापार को लेकर अपना नज़रिया बदलने और अतीत के संरक्षणवाद, जिसकी वजह से 2019 में आख़िरी समय में भारत रीजनल कंप्रिहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप (RCEP) समझौते से अलग हुआ था, को त्यागने की कोशिश की है. अर्थशास्त्र के साथ जुड़ी भू-राजनीतिक आवश्यकताओं ने व्यापार समझौतों को लेकर अधिक खुलेपन की तरफ प्रमुख प्रेरक के तौर पर काम किया है. यूरोप के देश और भारत- दोनों अपने व्यापार साझेदारों में विविधता लाने और अधिकसमान सोचवाले देशों के पक्ष में सप्लाई चेन में बदलाव लाने की तरफ ध्यान दे रहे हैं.

भारत तेज़ी से ख़ुद को वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ जोड़ रहा है. ऑस्ट्रेलिया और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) के साथ व्यापार समझौतों पर हस्ताक्षर से इसका पता चलता है. इस तेज़ी के साथ व्यापक आंतरिक सुधार, कारोबार करने में आसानी (ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस) में बेहतरी और 2030 तक सालाना निर्यात बढ़ाकर 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर करने की महत्वाकांक्षा है. भारत में आम चुनाव होने वाले हैं और जैसा कि विल्सन सेंटर के माइकल कुगेलमैन कहते हैं, व्यापार समझौतों कोजनता समर्थक, व्यवसाय समर्थक, विकास समर्थक और नौकरी समर्थकके रूप में पेश किया जा रहा है.

समझौते की सीमाएं

समझौतों को इसमें शामिल सभी देशों के लिए फायदेमंद बताए जाने के बावजूद भारत के लिए लाभ सामानों के व्यापार के मामले में सीमित हैं. इसका कारण EFTA समूह में मौजूदा कम टैरिफ दर का होना और ज़्यादातर आयातों का पहले से टैरिफ मुक्त होना है.

विश्व व्यापार संगठन के द्वारा अपने 10 बड़े कृषि निर्यातकों की सूची में भारत को शामिल करने के साथ उसने अपना कृषि निर्यात बढ़ाकर 100 अरब अमेरिकी डॉलर करने का लक्ष्य रखा है.

पिछले दो दशकों में EFTA के कुल 11 अरब अमेरिकी डॉलर के निवेश में से 10 अरब अमेरिकी डॉलर का निवेश स्विट्ज़रलैंड से आया है. ग्लोबल टैक्स रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) के अनुसार 91 प्रतिशत उत्पादों का व्यापार भारत और स्विट्ज़रलैंड के बीच होगा जो कि EFTA समूह में भारत के लिए सबसे महत्वपूर्ण आर्थिक साझेदार है. भारतीय उपभोक्ताओं और आयातकों के हिसाब से देखें तो  टैरिफ में कमी से स्विस चॉकलेट, बिस्कुट, घड़ियों, शराब, मशीनरी उपकरण और मेडिकल डिवाइस की कीमत कम होगी. वहीं स्विट्ज़रलैंड को भारत के निर्यात की बात करें तो 98 प्रतिशत सामानों (जिनमें ज़्यादातर औद्योगिक सामान शामिल हैं) पर पहले से ज़ीरो टैरिफ है. इसके अलावा जनवरी 2024 से स्विट्ज़रलैंड ने सभी देशों से औद्योगिक आयात पर शुल्क ख़त्म करने की नीति को लागू किया है जिससे भारतीय निर्यातकों को होने वाला लाभ ख़त्म हो जाएगा.

दूसरी तरफ EFTA देशों के लिए फायदे स्पष्ट हैं- 1.4 अरब लोगों और यहां के तेज़ी से बढ़ते मिडिल क्लास के विशाल बाज़ार तक अधिक पहुंच. समझौते की वजह से भारत स्विट्ज़रलैंड से 95 प्रतिशत औद्योगिक सामानों पर कस्टम ड्यूटी आंशिक रूप से हटा लेगा और स्विस सामानों का आयात बढ़ाएगा. नॉर्वे के उद्योग मंत्री जैन क्रिश्चियन वेस्त्रे के अनुसार इस समझौते की वजह से नॉर्वे के उत्पादों पर मौजूदा 40 प्रतिशत की टैक्स दर के बदले लगभग ज़ीरो आयात टैक्स लगेगा. इस तरह ये समझौता भारतीय टैरिफ में कमी और बाज़ार तक पहुंच में बढ़ोतरी की वजह से भारतीय निर्यातों के बदले EFTA के भारत को निर्यात पर ज़्यादा सकारात्मक असर डालेगा. इसके बावजूद स्विट्ज़रलैंड से सोने के आयात, जो कि भारत-EFTA के बीच व्यापार का 80 प्रतिशत हिस्सा है, को टैरिफ में कमी से अलग रखा गया है.

डेयरी, कोयला और सोया जैसे कई संवेदनशील भारतीय उत्पादों के अलावा कृषि उत्पाद एग्रीमेंट के दायरे से बाहर बने हुए हैं. रोज़गार में 41 प्रतिशत हिस्से के साथ कृषि क्षेत्र भारत में आजीविका का सबसे बड़ा स्रोत है और 2018 में शुरू व्यापक कृषि निर्यात नीति के समय से भारत का निर्यात तेज़ी से बढ़ा है. विश्व व्यापार संगठन के द्वारा अपने 10 बड़े कृषि निर्यातकों की सूची में भारत को शामिल करने के साथ उसने अपना कृषि निर्यात बढ़ाकर 100 अरब अमेरिकी डॉलर करने का लक्ष्य रखा है. इन महत्वाकांक्षाओं के बावजूद भारतीय उत्पादों की जगह यूरोप के कृषि उत्पादों के लेने के डर से व्यापार से जुड़ी बातचीत में कृषि सेक्टर को लंबे समय से सबसे विवादित बना दिया है. भारत में मौजूदा प्रदर्शनों और किसानों का वोट महत्वपूर्ण होने के साथ भारत ने इस सेक्टर में खुलेपन का विरोध जारी रखा है. इसके साथ-साथ यूरोप की क्वालिटी और सेफ्टी स्टैंडर्ड का पालन करना एक चुनौती है.

वैसे तो समझौते में निवेश का हिस्सा महत्वपूर्ण है लेकिन EFTA देशों के द्वारा निवेश की प्रतिबद्धता से पेंशन और सॉवरेन वेल्थ फंड को बाहर रखा गया है. इसके अलावा, बिज़नेस स्टैंडर्ड की एक समीक्षा के अनुसार FDI के वास्तविकता में बदलने के लिए आने वाले 15 वर्षों तक भारत की नॉमिनल GDP 9 प्रतिशत से अधिक की दर से बढ़ने की आवश्यकता है.

दूसरे समझौतों के लिए खाका?

हाल के वर्षों में यूरोप के देशों के साथ भारत के संबंधों में मज़बूती आई है और कई क्षेत्रों में सहयोग स्थापित हुआ है. आर्थिक भागीदारी में गहराई एक स्वाभाविक प्रगति है. निवेश का हिस्सा भले ही महत्वपूर्ण है लेकिन ये देखा जाना बाकी है कि समझौता भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए व्यापार से जुड़े महत्वपूर्ण फायदे लाने और मौजूदा व्यापार असंतुलन ठीक करने में सफल होता है या नहीं.

एक अधिक सांकेतिक स्तर पर देखें तो यूरोपीय देशों के एक विकसित समूह के साथ व्यापार समझौता को अंतिम रूप देने में भारत की क्षमता भरोसेमंद है, ख़ास तौर पर UK और EU के साथ भारत की चल रही बातचीत को देखते हुए. फिर भी एक बहुत बड़े EU-भारत FTA, जो कि शामिल बाज़ारों के आकार और जटिलता को देखते हुए बहुत ज़्यादा पेचीदा है, के लिए EFTA समझौते के खाका बनने की संभावना कम है.

EFTA समझौते में कृषि, जो कि EU-भारत की बातचीत में भी एक बड़े झगड़े की जड़ है, को बाहर करने का ये मतलब है कि इस बाधा से पार पाने और महत्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर के लिए और कुछ करने की ज़रूरत है. इसका अच्छा पहलू ये है कि श्रम मानकों और इस तरह के दूसरे प्रावधानों को शामिल करने पर भारत की सहमति महत्वपूर्ण है क्योंकि ये मुद्दे EU के लिए अहम हैं. इसके अलावा निवेश का हिस्सा भारत के बाज़ार तक पहुंच के बदले दूसरे विकसित देशों के साथ समझौतों के लिए एक मिसाल तय कर सकता है.

फिलहाल के लिए भारत EFTA के साथ समझौते का जश्न मना सकता है लेकिन EU के साथ FTA असली सुनहरा मौका है.

शायरी मल्होत्रा ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में एसोसिएट फेलो हैं.

 

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