Published on Oct 28, 2021 Updated 0 Hours ago

कम अल्पकाल में ये पूरा क्षेत्र सही सलामत ही नज़र आएगा. ऐसे में मौजूदा वक़्त में अंतरराष्ट्रीय कमोडिटी मार्केट्स और घरेलू उपभोक्ता बाज़ारों पर नज़र रखना सबसे मुफ़ीद होगा.

क्या चीन के एवरग्रैंड संकट की आंच रियल एस्टेट सेक्टर से बाहर भी महसूस होगी?
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रियल एस्टेट क्षेत्र की चीन की विशालतम कंपनी एवरग्रैंड ग्रुप सितंबर 2021 में विदेशी बॉन्ड-होल्डर्स की अदायगी चुकता करने में दो बार असफल रही. असलियत ये है कि 305 अरब डॉलर के भारी-भरकम कर्ज़ तले दबी ये कंपनी ढहने की कगार पर आ गई है. देनदारियां चुकता न कर पाने से भी ज़्यादा चिंताजनक बात ये है कि ग्रुप ने अब तक अपने निवेशकों को उनकी रकम चुकाने को लेकर किसी तरह की वैकल्पिक योजना का एलान नहीं किया है.

एवरग्रैंड के हालात ने दुनिया भर के वित्तीय बाज़ारों में हड़कंप मचा दिया है.

कोरोना संकट से शिथिल पड़ चुकी वैश्विक अर्थव्यवस्था को गति देने में चीन की सबसे अहम भूमिका रही है. महामारी से पहले के कालखंड वाला उत्पादन स्तर हासिल करने वाला चीन दुनिया का पहला देश है. महामारी की मार से मंद पड़ चुके वैश्विक कमोडिटी मार्केट में दोबारा उछाल दर्ज किए जाने के पीछे चीन इकलौता अहम कारक बनकर उभरा है. ज़ाहिर है इस पूरी प्रक्रिया में चीन ने वैश्विक अर्थव्यवस्था में अपनी अहमियत का लोहा मनवाया है.

बहरहाल, अगर चीन के मशहूर प्रॉपर्टी सेक्टर की बात करें तो उसमें तेज़ी का विस्तृत दौर 1990 के दशक के मध्य में शुरू हुआ था. उसके बाद के कालखंड में इस सेक्टर में उछाल का सिलसिला बदस्तूर जारी रहा. इसी का नतीजा है कि आज चीन की तक़रीबन तीन चौथाई पारिवारिक दौलत हाउसिंग सेक्टर से जुड़ी हुई है. चीन के हाई-यील्ड (एचवाई) रियल एस्टेट बॉन्ड में बड़ी तादाद में विदेशी निवेशकों का पैसा लगा हुआ है. लिहाज़ा दूसरे देशों के वित्तीय बाज़ारों तक इस संकट की आंच फैलने का बड़ा ख़तरा पैदा हो गया है.

अगर चीन के मशहूर प्रॉपर्टी सेक्टर की बात करें तो उसमें तेज़ी का विस्तृत दौर 1990 के दशक के मध्य में शुरू हुआ था. उसके बाद के कालखंड में इस सेक्टर में उछाल का सिलसिला बदस्तूर जारी रहा. इसी का नतीजा है कि आज चीन की तक़रीबन तीन चौथाई पारिवारिक दौलत हाउसिंग सेक्टर से जुड़ी हुई है. 

ऐसे में कोई ताज्जुब की बात नहीं है कि चीन का एचवाई बॉन्ड इंडेक्स इस समस्या की आहट के बाद धराशायी हो गया. (चित्र 1). विदेशी निवेशकों ने सितंबर में चीन के डेट पोर्टफ़ोलियो से 8.1 अरब अमेरिकी डॉलर वापस निकाल लिए. पिछले 6 महीनों में बाज़ार से बाहर निकाली गई ये सबसे बड़ी रकम है.

चीन में एवरग्रैंड ग्रुप ने अपना विशाल साम्राज्य बना रखा है. इस ग्रुप के पास क़रीब 300 शहरों में फैले 1300 से भी ज़्यादा हाउसिंग प्रोजेक्ट हैं. इसके साथ ही एक फ़ुटबॉल टीम (ग्वांगझू एफ़सी) भी एवरग्रैंड की बेशुमार मिल्कियत का हिस्सा है. इतना ही नहीं ग्रुप के पास एक आईलैंड हॉलीडे रिज़ॉर्ट भी है. इसमें 58 होटल बने हुए हैं. और तो और डिज़नीलैंड की तर्ज पर तैयार हो रहे 15 थीम पार्क भी एवरग्रैंड ग्रुप की जायदाद में शामिल हैं. कमोबेश ये पूरा साम्राज्य घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाज़ारों से जुटाई गई उधार की रकम पर खड़ा किया गया है. फ़िलहाल एवरग्रैंड के पल्ले अधूरी बनी 800 रिहायशी इमारतें, बिना भुगतान पाए दर्ज़नों सप्लायर्स और क़रीब 10 लाख ऐसे घर ख़रीदार मौजूद हैं, जिन्होंने अपनी जायदाद के बदले आंशिक तौर पर भुगतान कर रखा है.

ग्रुप ने वेल्थ मैनेजमेंट से जुड़े उत्पादों में भी अपने पांव पसार रखे हैं. इनमें से ज़्यादातर प्रोडक्ट्स उसके अपने कर्मचारियों को ही बेचे गए हैं. ज़ाहिर तौर पर मौजूदा हालातों में ग्रुप इनमें से कई उत्पादों पर दी गई गारंटियों का पालन कर पाने में सक्षम नहीं हो सकेगा. अगर कहीसुनी बातों पर भरोसा करें तो इन हालातों में स्पष्ट कारणों से से इनसाइडर सेलिंग भी चालू हो गई है.

एवरग्रैंड आम तौर पर ज़मीनों के लिए बाज़ार भाव से ऊंची बोली लगाया करता था. ज़ाहिर है कि चीनी कंपनियों के बीच इस तरह का रवैया आम है. एवरग्रैंड ने तो जैसे इन तौर-तरीक़ों में महारत हासिल कर ली. चीनी मध्यम वर्ग को घरों का मालिक़ाना हक़ दिलाने का सपना दिखाकर एवरग्रैंड प्रॉपर्टी क्षेत्र की विशालतम कंपनी बन गई. अतीत में इस तरह कृत्रिम रूप से बढ़ी हुई क़ीमत प्रॉपर्टी डेवलपर्स पर असर नहीं डालती थी. इसकी वजह ये थी कि इससे जुड़े जोखिम आख़िरकार फ़्लैट ख़रीदारों और उन ख़रीदों को फ़ाइनेंस करने वाले बैंकों के ऊपर आ जाते थे.

 अगर एवरग्रैंड की बात करें तो उसके प्रॉपर्टी प्रोजेक्ट्स के नॉन-लिक्विड पोर्टफ़ोलियो को घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 300 अरब अमेरिकी डॉलर से ज़्यादा की देनदारियों के ज़रिए फ़ाइनेंस किया गया है. इनमें से 80 प्रतिशत देनदारियां अल्पकालिक हैं. लिक्विडिटी के मामले में एवरग्रैंड ग्रुप में बहुत बड़ा असंतुलन है. 

ऐसे तौर-तरीक़े अभी हाल तक परिवारों, रियल एस्टेट डेवलपर्स, बैंकों और स्थानीय प्रशासन के मनमाफ़िक़ नतीजे देते रहे. इसकी वजह ये थी कि घरों की क़ीमतें लगातार बढ़ती जा रही थीं. रिहाइशी संपत्तियों की बढ़ती क़ीमतों से ज़मीन के भाव में लाई गई बनावटी तेज़ी का निपटारा हो जा रहा था. बहरहाल एक सीमा के बाद इन हालातों के दुष्परिणाम सामने आने ही थे. एक हद के बाद मकानों की बढ़ती क़ीमतों को बर्दाश्त करने की क्षमता और घरेलू कर्ज़ों पर यक़ीनी तौर पर इसका असर दिखना तय था. ये प्रभाव इस बार सामने दिखाई दिया.

कोविड-19 महामारी की मार ने घरेलू कर्ज़ों के स्तर को और बढ़ा दिया. इस वक़्त घरेलू कर्ज़ों का बोझ चटकने की कगार पर है या कई मामलों में उस हद को भी पार कर चुका है 

थ्री रेड लाइंस

ये सारा फ़साद 2020 में पीपुल्स बैंक ऑफ़ चाइना (पीबीसी) और आवास मंत्रालय द्वारा रियल एस्टेट कंपनियों के लिए नए फ़ाइनेंसिंग नियमों के एलान के साथ शुरू हुआ. चीनी रियल एस्टेट क्षेत्र के लिए घोषित इन लक्ष्मण रेखाओं को तब से अक्सर “थ्री रेड लाइंस” कहा जाने लगा है. ये नियम हैं-

  • देनदारियों और परिसंपत्तियों के अनुपात पर 70 प्रतिशत की अधिकतम सीमा तय की गई है. हालांकि ठेके पर बेची गई परियोजनाओं से हासिल एडवांस रकम को इस दायरे से अलग रखा गया है.
  • शुद्ध ऋण और इक्विटी के बीच 100 प्रतिशत की सीमा
  • नकद और छोटी अवधि के कर्ज़ का अनुपात कम से कम 1 होना चाहिए

उधारी पर लगाई गई इन पाबंदियों का मकसद मुख्य रूप से हाउसिंग सेक्टर में किसी तरह का बुलबुला आने से रोकना था. अक्सर देखा गया है कि इस तरह के बुलबुले का परिणाम उस सेक्टर का पूरी तरह से धराशायी होना होता है. इस सिलसिले में चीन का इरादा किसी भी सूरत में जापान द्वारा की गई ग़लतियों को दोहराने से बचने का था. जापान ने 1990 के दशक के मध्य में ज़रूरत से ज़्यादा ऋण दिए जाने की समस्या पर लगाम लगाने की कोई कोशिश नहीं की. इतना ही नहीं उसने दीवालिया हो चुके देनदारों को तत्काल बंद करने में भी भारी ढिलाई बरती. इन ग़लतियों का जापानी अर्थव्यवस्था की वृद्धि पर दीर्घकालीन प्रभाव पड़ा.

अगर एवरग्रैंड की बात करें तो उसके प्रॉपर्टी प्रोजेक्ट्स के नॉन-लिक्विड पोर्टफ़ोलियो को घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 300 अरब अमेरिकी डॉलर से ज़्यादा की देनदारियों के ज़रिए फ़ाइनेंस किया गया है. इनमें से 80 प्रतिशत देनदारियां अल्पकालिक हैं. लिक्विडिटी के मामले में एवरग्रैंड ग्रुप में बहुत बड़ा असंतुलन है. ज़ाहिर तौर पर चीन की रियल एस्टेट कंपनियों की बढ़ोतरी में नकदी के प्रवाह की हमेशा से बेहद अहम भूमिका रही है. आम तौर पर ये कंपनियां ऋण द्वारा संचालित पॉन्ज़ी योजनाओं की तरह कार्य करती हैं. साफ़ है कि इस सेक्टर की दूसरी कंपनियों की तरह एवरग्रैंड को भी इन “तीन लक्ष्मण रेखाओं” का पालन करने में काफ़ी मशक्कत करनी पड़ी. सितंबर 2020 में भी एवरग्रैंड में नकदी की संभावित किल्लत और संकट से जुड़ी ख़बरें सामने आई थीं. इससे थोड़े समय के लिए लिक्विडिटी को लेकर दहशत का माहौल बन गया था.

चीन के प्रॉपर्टी सेक्टर में संकट के बादल मंडराने तय

इन तमाम हालातों में चीन के प्रॉपर्टी सेक्टर में संकट के बादल मंडराने तय थे. अक्टूबर 2021 की शुरुआत में फैन्टेशिया होल्डिंग्स 20.6 करोड़ अमेरिकी डॉलर के बॉन्ड की रकम की अदायगी में नाकाम रही. अब एक और डेवलपर साइनिक होल्डिंग्स को अपनी रेटिंग में गिरावट का सामना करना पड़ रहा है. उसकी कुछ इकाइयां स्थानीय कर्ज़दाताओं को ब्याज़ की रकम अदा करने में नाकाम रही थीं.

अगर कमोडिटी मार्केट के रुझानों पर ध्यान दें तो वहां भी शुरुआती तौर पर दबाव और संकट के स्पष्ट संकेत दिखाई दे रहे हैं. इनमें स्टील सेक्टर सबसे प्रमुख है. रियल एस्टेट सेक्टर के साथ क़रीबी जुड़ाव की वजह से स्टील जैसे उत्पादों पर इस तरह का दबाव स्वाभाविक है. बहरहाल ये समस्या सिर्फ़ कमोडिटी मार्केट से ही जुड़ी हुई नहीं है. चीन के उपभोक्ताओं पर भी कर्ज़ का काफ़ी बोझ चढ़ गया है (चित्र 2). हालांकि अर्थव्यवस्था में उत्पादन का स्तर महामारी से पहले वाली स्थिति तक पहुंच गया है, लेकिन वहां के घरेलू उपभोक्ता साफ़ तौर पर इस रफ़्तार के साथ क़दम मिला पाने में नाकाम रहे हैं. 2020 के ज़्यादातर कालखंड में सांकेतिक खुदरा बिक्री का स्तर 6 साल के रुझानों के मुक़ाबले काफ़ी नीचे रहा है. हाल के वक़्त में इसमें 11 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई (चित्र 3). चीन में घरेलू उपभोक्ता मांग स्पष्ट रूप से काफ़ी नीचे है. हाल के समय तक घरेलू मोर्चे पर मांग के अभाव को चीन से होने वाले निर्यात के ज़रिए संतुलित करने में मदद मिली है.

चीनी वित्तीय बाज़ार का स्वभाव अपारदर्शी

चीनी वित्तीय बाज़ार का स्वभाव अपारदर्शी, अस्पष्ट और सरकारी आदेशों के ज़रिए संचालित होने वाले बाज़ार जैसा है. आलोचक अक्सर इस बात को रेखांकित करते हैं. इस सिलसिले में एक बड़ी आलोचना आर्थिक व्यवस्था में पूंजी के ग़लत आवंटन को लेकर होती है. मिसाल के तौर पर चीन के हाई-टेक सेक्टर को ले सकते हैं. इस सेक्टर को चीन में रियल एस्टेट सेक्टर के मुक़ाबले हमेशा ही पूंजी का अभाव झेलना पड़ता है. पीबीसी ने “तीन लक्ष्मण रेखाएं” तय करते वक़्त शायद इस मुद्दे को भी ध्यान में रखने की कोशिश की है. इस प्रक्रिया में इसने व्यावहारिक तौर पर रियल एस्टेट सेक्टर की आंतरिक व्यवस्थागत ख़ामियों को बड़े आकार और विकराल रूप में सबके सामने ला दिया है.

ऐसी प्रबल संभावना है कि चीन हाउसिंग सेक्टर में भी क़ीमतों को नीचे आने से रोकने की हर संभव कोशिश करेगा. लिहाज़ा कम से कम अल्पकाल में ये पूरा क्षेत्र सही सलामत ही नज़र आएगा. ऐसे में मौजूदा वक़्त में अंतरराष्ट्रीय कमोडिटी मार्केट्स और घरेलू उपभोक्ता बाज़ारों पर नज़र रखना सबसे मुफ़ीद होगा. 

चीन के हाउसिंग मार्केट में फ़ंड से जुड़े इस संकट के शुरुआती लक्षण ढूंढ पाना आसान नहीं है. इस तरह की क़वायद से अक्सर ग़लत नतीजे ही निकलते हैं. इसकी वजह ये है कि चीनी ढांचे में कम से कम अल्पकाल में सरकार द्वारा फ़ंडिंग से जुड़े तंत्र के सुचारू रूप से संचालन के ही आसार रहते हैं. ऐसे में ऐसी प्रबल संभावना है कि चीन हाउसिंग सेक्टर में भी क़ीमतों को नीचे आने से रोकने की हर संभव कोशिश करेगा. लिहाज़ा कम से कम अल्पकाल में ये पूरा क्षेत्र सही सलामत ही नज़र आएगा. ऐसे में मौजूदा वक़्त में अंतरराष्ट्रीय कमोडिटी मार्केट्स और घरेलू उपभोक्ता बाज़ारों पर नज़र रखना सबसे मुफ़ीद होगा. भविष्य में अगर किसी तरह का संकट शुरू होता है तो इन क्षेत्रों में उसके संकेत सबसे पहले और साफ़ तौर पर दिखाई देंगे.

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