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अमेरिका में संकुचित राष्ट्रवाद में वृद्धि और रूस व चीन जैसे पहले से ही संकुचित राज्यों का मज़बूत होना, संयुक्त राष्ट्र के प्रमुख अधिदेशों (मैंडेट्स) को कमज़ोर कर रहा है और गंभीर प्रगतिशील सुधार को रोक रहा है.
तेज़ी से बढ़ते वैश्वीकरण और कई सारी वैश्विक चुनौतियों व संकटों का सामना कर रही, 21वीं सदी की इस दुनिया में वैश्विक गवर्नेंस के लिए पर्याप्त प्रणालियों का अभाव है. इन चुनौतियों व संकटों में से जो तीन सबसे साफ़ नज़र आते हैं, वे हैं – अस्तित्व के लिए ख़तरा बना जलवायु परिवर्तन संकट, एक साथ आ रहीं महामारियां, और अंतरराष्ट्रीय क़ानून के शासन का बार-बार उल्लंघन. हाल के वर्षों में, उन्नत और उदीयमान देशों में बढ़ते संकुचित राष्ट्रवाद ने इन्हें और गंभीर बनाया है, जो संयुक्त राष्ट्र (यूएन) के प्रमुख अधिदेशों को कमज़ोर कर रहा है. कई मौजूदा व उभरते संकटों तथा पारराष्ट्रीय चुनौतियों से, तालमेल बिठाकर काम करने वाली प्रभावी वैश्विक व क्षेत्रीय गवर्नेंस प्रणालियों द्वारा ही गंभीर ढंग से निपटा जा सकता है. ऐसी प्रणालियों की गैरमौजूदगी में, दुनिया के सामने कोई आसान हाल नहीं रह जाता.
हाल के वर्षों में, उन्नत और उदीयमान देशों में बढ़ते संकुचित राष्ट्रवाद ने इन्हें और गंभीर बनाया है, जो संयुक्त राष्ट्र (यूएन) के प्रमुख अधिदेशों को कमज़ोर कर रहा है. कई मौजूदा व उभरते संकटों तथा पारराष्ट्रीय चुनौतियों से, तालमेल बिठाकर काम करने वाली प्रभावी वैश्विक व क्षेत्रीय गवर्नेंस प्रणालियों द्वारा ही गंभीर ढंग से निपटा जा सकता है.
इतिहास ने दिखाया है कि भविष्योन्मुखी, उदार, वैश्विक गवर्नेंस प्रणालियों की स्थापना के गंभीर प्रयास केवल विश्व युद्ध जैसे गंभीर संकटों के बाद किये जाते हैं. हालांकि तब भी वे विफल हो सकते हैं, जैसा कि प्रथम विश्व युद्ध के बाद लीग ऑफ नेशन्स के साथ हुआ था. 1945 में स्थापित और वैश्विक शांति व सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध संयुक्त राष्ट्र (यूएन), एक वैश्विक गवर्नेंस संस्था निर्मित करने का दूसरा गंभीर प्रयास था. यह भी उसी तरह से द्वितीय विश्व युद्ध के बाद स्थापित हुआ. द्वितीय विश्व युद्ध के विजेता एक प्रगतिशील ढांचा बनाने में सफल हुए क्योंकि वे अभी-अभी जिससे गुज़रे थे उसके दोहराव से बचने के लिए दृढ़प्रतिज्ञ थे, और क्योंकि इसके शिल्पकारों में रूज़वेल्ट और चर्चिल जैसे कुशल राजनेता शामिल थे जो संकीर्ण राष्ट्रीय हितों पर वैश्विक शांति व सुरक्षा को तरजीह देना चाह रहे थे.
फिर भी, यूएन को कभी एक ऐसी सच्ची वैश्विक गवर्नेंस संस्था के रूप में डिज़ाइन नहीं किया गया था जिसके लिए सदस्य राष्ट्र जवाबदेह हों, बल्कि यह एक अंतर-सरकारी संस्था के रूप में है जो अपने सदस्य राष्ट्रों के प्रति जवाबदेह है. यहां तक कि इसके सबसे विज़नरी संस्थापक भी नहीं चाहते थे कि उनके राष्ट्रीय हित व्यापक क्षेत्रीय और वैश्विक संस्थाओं के प्रति जवाबदेह हों. इसलिए, मित्र विजेता देश संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में ‘परमानेंट 5’ (पी5) बन गये, जिन्होंने वीटो पावर को ख़ुद तक सीमित रखा और सुनिश्चित किया कि उनके राष्ट्रीय हित कभी ख़तरे में नहीं आएं. यह शुरुआती डिज़ाइन आज की बहुत भिन्न दुनिया में एक बढ़ता हुआ बोझ बन गयी है. आज का दौर तीखी होती चुनौतियों का है जिसे लगभग सभी महाद्वीपों में बढ़ते संकुचित राष्ट्रवाद के परिदृश्य के बीच सच्चे वैश्विक समाधानों की ज़रूरत है.
यूएन चार्टर और ‘मानवाधिकार की सार्वभौमिक घोषणा’ (यूडीएचआर) पिछली सदी के सबसे प्रेरणादायी दस्तावेज हैं. यूएन के तीन मुख्य स्तंभ – शांति व सुरक्षा, मानवाधिकार, और विकास – समय की कसौटी पर खरे उतरे हैं और, कुल मिलाकर , दुनिया और उसके नागरिकों को ठीक ढंग से मुहैया हुए हैं.
इन सबके बावजूद, यूएन चार्टर और ‘मानवाधिकार की सार्वभौमिक घोषणा’ (यूडीएचआर) पिछली सदी के सबसे प्रेरणादायी दस्तावेज हैं. यूएन के तीन मुख्य स्तंभ – शांति व सुरक्षा, मानवाधिकार, और विकास – समय की कसौटी पर खरे उतरे हैं और, कुल मिलाकर , दुनिया और उसके नागरिकों को ठीक ढंग से मुहैया हुए हैं. इन तीन स्तंभों के तहत बड़ी उपलब्धियों में इन दिशाओं में किये गये महत्वपूर्ण योगदान शामिल हैं : तीसरे विश्व युद्ध को रोकना, वि-औपनिवेशीकरण की निगरानी करना, दुनिया के बड़े हिस्से में मानवाधिकार के सार्वभौमिक मानकीकृत मानदंडों और संस्थाओं को अपनाया जाना, मानवीय संकटों के दौरान करोड़ों ज़िंदगियों को बचाना, जीवन को ख़तरे में डालने वाली बीमारियों का उन्मूलन करना, और विश्व इतिहास में सच्चे अर्थों में वैश्विक, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय विकास की सबसे तेज़ गति को ख़ासा सुगम बनाना.
अगर, यूएन का अस्तित्व नहीं होता, तो इसे फ़ौरन सृजित करना पड़ता, लेकिन यह साफ़ है कि आज इस प्रगतिशील और प्रेरणादायी यूएन चार्टर व यूडीएचआर पर कभी सहमति नहीं बन सकती. यह बात बड़े और ताक़तवर संकुचित राज्यों की संख्या, और सत्ता के पदों पर कुशल राजनेताओं की लगभग पूर्ण गैरमौजूदगी को देखते हुए कही जा सकती है. बड़ा सवाल यह नहीं है कि क्या यूएन को होना चाहिए, बल्कि यह है कि क्या एक ऐसी दुनिया में, जहां वीटो पावर से लैस पी5 देशों समेत शक्तिशाली देशों में संकुचित राष्ट्रवाद बढ़ रहा है, यूएन का, सबसे उल्लेखनीय रूप से यूएनएससी का (जिसके ज़्यादातर सदस्य राष्ट्र और बाह्य पर्यवेक्षक इसे 21वीं सदी के लिए प्रासंगिक बनाने की स्पष्ट ज़रूरत पर सहमत हैं) बहुत ज़रूरी संरचनात्मक सुधार संभव है.
इस अति महत्वपूर्ण सवाल का जवाब देने से पहले, हमें यह समझने की ज़रूरत है कि यूएन की कोई, ख़ासकर संरचनात्मक, आलोचना उसके कर्मियों, एजेंसियों, या यहां तक कि महासचिव को लक्षित नहीं होनी चाहिए, बल्कि सदस्य राष्ट्रों, ख़ासकर उन बड़े और सबसे शक्तिशाली राष्ट्रों को लक्षित होनी चाहिए जो यूएन की कार्रवाइयों या उनके न होने के लिए ज़िम्मेदार हैं. इसका मतलब हुआ कि कोई भी गंभीर संरचनात्मक सुधार तभी संभव हो सकेगा, जब बड़े व शक्तिशाली यूएन सदस्य राष्ट्रों, ख़ासकर पी5 (और मौजूदा वैश्विक स्थितियों में ख़ास तौर पर अमेरिका, चीन और रूस) के भीतर गंभीर सुधार या पुनर्विचार पहले घटित हो. यूएनएससी का स्थायी सदस्य बनने की इच्छा रखने वाले, भारत, ब्राज़ील, तुर्की और दक्षिण अफ्रीका जैसे महत्वपूर्ण उदीयमान देशों को भी इसे प्राथमिकता देनी चाहिए. सचिवालय और संयुक्त राष्ट्र के अंगों के सुधार काफ़ी अहम हैं और उन्हें अवश्य जारी रहना चाहिए, लेकिन यूएन निकायों का प्रगतिशील सुधार तब तक संभव नहीं होगा जब तक कि पहले उन यूएन राष्ट्रों की सोच व नीतियों में सुधार न हो, जो विभिन्न यूएन इकाइयों के गवर्नेंस निकायों में दबदबा रखते हैं.
सचिवालय और संयुक्त राष्ट्र के अंगों के सुधार काफ़ी अहम हैं और उन्हें अवश्य जारी रहना चाहिए, लेकिन यूएन निकायों का प्रगतिशील सुधार तब तक संभव नहीं होगा जब तक कि पहले उन यूएन राष्ट्रों की सोच व नीतियों में सुधार न हो, जो विभिन्न यूएन इकाइयों के गवर्नेंस निकायों में दबदबा रखते हैं.
इस संदर्भ में, अमेरिका में अनुदार राष्ट्रवाद में वृद्धि और रूस व चीन जैसे पहले से संकुचित राज्यों के मज़बूत होने व गहराने से यूएन के तीनों मुख्य स्तंभों पर विपरीत प्रभाव पड़ा है. रूस का यूक्रेन पर आक्रमण यूएन चार्टर का उल्लंघन करता है, और स्थायी मध्यस्थता न्यायालय (पीसीए) के 2016 के दक्षिण चीन सागर संबंधी आदेश को मानने की चीन की अनिच्छा अंतरराष्ट्रीय क़ानून की अवज्ञा करती है. ये दोनों पहले स्तंभ – शांति व सुरक्षा को कमज़ोर करते हैं. चीनी सरकार के लंबे और गंभीर दबाव के चलते, चीन में वीगर मुसलमानों पर संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायोग की रिपोर्ट जारी होने में ख़ासी देरी मानवाधिकारों – दूसरे स्तंभ – को कमज़ोर करती है. इसी तरह, राष्ट्रपति ट्रंप ने डब्ल्यूएचओ (कोविड-19 वैश्विक महामारी के बीच) और संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन कन्वेंशन से अमेरिका को बाहर कर तीसरे स्तंभ – विकास – को कमज़ोर किया. ट्रंप की कार्रवाइयों के बावजूद, तीसरे स्तंभ के, सामान्यत: संकुचित राष्ट्रवादी राज्यों के रुख़ और नीतियों से प्रभावित होने की संभावना कम होती है. तो भी, जलवायु परिवर्तन (जो शायद 21वीं सदी का सबसे गंभीर वैश्विक विकास और सुरक्षा संकट है) पर किसी सफल कार्रवाई के लिए, प्रभावी ढंग से काम करने वाले यूएनएससी की ज़रूरत होगी, न कि अभी के लकवाग्रस्त और काम में अक्षम यूएनएससी की.
केवल ऊपर ज़िक्र किये गये उदाहरणों पर ही बात करें तो, यह संभावना नहीं दिखती कि निकट भविष्य में यूएनएससी तथा यूएन के शांति व सुरक्षा के दूसरे पहलुओं और मानवाधिकार ढांचे का उपयुक्त और वांछित सुधार (जो 21वीं सदी के लिए प्रासंगिक हो) संभव हो सकेगा. एक संभावित दृष्टिकोण, जिसके लिए यूएन चार्टर में किसी बदलाव की आवश्यकता नहीं होगी, संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) के लिए यूएनएससी की जवाबदेही को मज़बूत करना है जो यूएन चार्टर में पहले से परिकल्पित है. इस संदर्भ में, 2020 में लिकटेंस्टाइन द्वारा शुरू की गयी ‘वीटो पहल’, जिसका लक्ष्य पी5 द्वारा वीटो पावर इस्तेमाल किये जाने की राजनीतिक क़ीमत को बढ़ाना है, समयानुकूल थी और बहुत ज़रूरी उम्मीद मुहैया कराती है. यूक्रेन में रूस के युद्ध से ख़ासा सुगम बने, एक यूएनजीए प्रस्ताव को 26 अप्रैल 2022 को, तीन पी5 देशों – अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस के सक्रिय समर्थन से, बिना मतदान के, आम सहमति से स्वीकार किया गया, साथ ही इसके तुरंत प्रभावी होने की अनुमति दी गयी. सभी पी5 सदस्य अब अपने भविष्य के ‘वीटो’ पर यूएनजीए में पूरी यूएन सदस्यता के समक्ष सफाई देने के दबाव में होंगे. यह सही दिशा में संरचनात्मक सुधार है, लेकिन ख़ास तौर पर इसे चीन और रूस द्वारा पूरी तरह लागू किये जाने की ज़रूरत है, क्योंकि 2011 से 2022 के बीच 29 वीटो में से, 12 बार अपने वीटो पावर का इस्तेमाल रूस और चीन ने संयुक्त रूप से किया, जबकि रूस ने अपने वीटो का इस्तेमाल इसके अलावा 13 बार अकेले किया, जो 25 वीटो की बड़ी संख्या बनती है.
यूएनएससी द्वारा छोड़े गये गंभीर सुरक्षा गैप में यूएनजीए को दाख़िल होने की इजाज़त देने वाली ‘यूनाइटिंग फॉर पीस’ प्रणाली के साथ-साथ, इसे यूएनएससी को यूएनजीए (जो बिना वीटो पावर का, सार्वभौमिक सदस्यता वाला कहीं ज़्यादा लोकतांत्रिक निकाय है) के प्रति ज़्यादा जवाबदेही की ओर ले जाना चाहिए. इस प्रणाली का हाल में इस्तेमाल एक यूएनजीए प्रस्ताव और मतदान में किया गया, जिसने यूएन मानवाधिकार परिषद से रूस को निष्कासित किया. जिस तरह के रूपांतरकारी संरचनात्मक सुधार की सचमुच ज़रूरत है उसके बरअक्स ऐसे सुधार छोटे-मोटे लग सकते हैं, लेकिन वे सही दिशा में बढ़ने की राह बनाने के लिए उपयोगी हो सकते हैं. ये उन ज़्यादा गहन सुधारों की भूमिका के रूप में हो सकते हैं, जो संयुक्त राष्ट्र को 21वीं सदी की चुनौतियों से निपटने में सही मायनों में प्रभावी बनाने में मदद करेंगे.
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Kamal Malhotra is Non-Resident Senior Research Fellow at Boston Universitys Global Development Policy Center. He led the UN in Vietnam Turkey Malaysia Singapore and Brunei ...
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