Author : Sayantan Haldar

Expert Speak Raisina Debates
Published on Sep 08, 2025 Updated 0 Hours ago

वैसे तो हाल के दिनों में अमेरिका और उसके क्वॉड साझेदारों के बीच तनाव क्वॉड देशों के बीच कूटनीतिक संबंधों में गिरावट की ओर इशारा करता है. लेकिन ऐसा लगता है कि ये समूह फिलहाल एक ख़राब दौर का सामना कर रहा है, ये कहना जल्दबाज़ी होगी कि ये समूह बिखर जाएगा.

इंडो-पैसिफिक सुरक्षा के लिए क्वॉड क्यों ज़रूरी है?

Image Source: गेटी

इंडो-पैसिफिक में एक प्रभावी मिनीलेटरल समूह के रूप में क्वॉड का सामर्थ्य समय की कसौटी पर खरा उतरा है. शुरुआत में ये समूह 2004 में हिंद महासागर में आई सुनामी के बाद मानवीय सहायता और आपदा राहत (HADR) के प्रयासों में समन्वय के लिए गठजोड़ के रूप में शुरू हुआ. 2007 में जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंज़ो आबे ने इस सामूहिक प्रयास की कल्पना व्यापक इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने और नियम आधारित व्यवस्था स्थापित करने के लिए एक प्रभावी तरीके के रूप में की. वैसे तो इस समूह को सीमित सफलता मिली क्योंकि सदस्य देश एक ऐसे ढांचे के तहत और अधिक भागीदारी के लिए झिझक रहे थे, क्योंकि यह ढांचा चीन को नियंत्रित करने की रणनीति जैसा प्रतीत हो रहा था लेकिन 2017 में विदेश मंत्री स्तर की बातचीत के साथ इसने फिर से गति पकड़ ली. 2021 से क्वॉड ने सालाना शिखर सम्मेलनों और कई तरह की पहल के माध्यम से अपने सहयोग को गहरा किया है. इस तरह तेज़ी से जटिल होते जा रहे इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में बहुआयामी सहयोग को मज़बूत करने के लिए कार्रवाई योग्य रणनीतियों को आसान बनाया गया है. 

संक्रमणकाल से गुज़रता क्वॉड 

अमेरिका में दूसरी बार ट्रंप प्रशासन के सत्ता संभालने के बाद से दुनिया ने अलग-अलग रणनीतिक क्षेत्रों में अमेरिकी भागीदारी की प्रकृति और चरित्र में नए बदलाव को अपनाया है. इसलिए राष्ट्रपति ट्रंप की विदेश नीति ने सभी बड़ी ताकतों को अपने सामरिक हितों को पूरा करने के लिए लगातार प्रयासों में सहयोग को अधिकतम करने के लिए अपनी रणनीतियों को फिर से संतुलित करने के लिए प्रेरित किया है. इस संदर्भ में क्वॉड का मामला काफी जटिल लगता है. वैसे तो ऐसी कोई बड़ी घटना नहीं हुई है जिससे ये पता चले कि ये समूह आने वाले समय में बिखरने वाला है लेकिन अमेरिका और दूसरे सदस्य देशों- भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया- के बीच मौन तनाव ने इस समूह के भविष्य को लेकर चिंता पैदा की है. इस अर्थ में ऐसा लगता है कि क्वॉड एक संक्रमणकाल से गुज़र रहा है जहां सभी सदस्य देश अपनी रणनीतियों को फिर से केंद्रित कर रहे हैं ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि इस क्षेत्र की व्यापक चुनौतियों का प्रभावी ढंग से समाधान किया जा सके और इसके साझा हितों को कुशलता से आगे बढ़ाया जा सके. 

क्वॉड एक संक्रमणकाल से गुज़र रहा है जहां सभी सदस्य देश अपनी रणनीतियों को फिर से केंद्रित कर रहे हैं ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि इस क्षेत्र की व्यापक चुनौतियों का प्रभावी ढंग से समाधान किया जा सके और इसके साझा हितों को कुशलता से आगे बढ़ाया जा सके. 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच सकारात्मक सौहार्दपूर्ण संबंधों की बहाली के बावजूद ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच युद्धविराम कराने में अमेरिकी प्रशासन के द्वारा अपनी भूमिका पर लगातार ज़ोर, वैश्विक स्तर पर कश्मीर मुद्दे पर भारत और पाकिस्तान को लगातार समान तराजू पर रखने और रूस से भारत के तेल ख़रीदने पर टैरिफ लागू करने का नतीजा लंबे समय के बाद भारत-अमेरिका कूटनीतिक संबंधों में गिरावट के रूप में निकला है. अमेरिका और भारत के साथ-साथ अन्य क्वॉड साझेदारों के बीच अंतर्निहित तनाव ने 2025 के अंत में भारत की मेज़बानी में आयोजित होने वाले क्वॉड नेताओं के शिखर सम्मेलन की संभावना को लेकर सवाल खड़े कर दिए हैं. बढ़ते तनाव के बीच इंडो-पैसिफिक में उभरती सुरक्षा गतिशीलता एक समूह के रूप में क्वॉड की महत्वपूर्ण उपयोगिता की याद दिलाती है क्योंकि क्वॉड ने पिछले कुछ वर्षों में इंडो-पैसिफिक में बहुआयामी सुरक्षा मुद्दों पर अपने सहयोग के दायरे का विस्तार किया है. 

वैसे तो 2017 में क्वॉड का प्रारंभिक पुनरुत्थान इंडो-पैसिफिक में नियम आधारित व्यवस्था को आकार देने और संरक्षण करने के विचार पर आधारित था लेकिन इस समूह ने व्यवस्थित रूप से कई अन्य पहलुओं में अपने सहयोग का विस्तार किया है जो इस क्षेत्र में समग्र सुरक्षा संरचना के साथ अटूट रूप से जुड़ी हुई हैं. इंडो-पैसिफिक में समुद्री सुरक्षा के इस गतिशील और बहुआयामी दृष्टिकोण का आदर्श सार इस विचार पर आधारित था कि इस क्षेत्र में वैश्विक कल्याण प्रदान करने के लिए क्वॉड एक किरदार के रूप में उभरना चाहता है. इंडो-पैसिफिक में अंतर्राष्ट्रीय हित के रूप में समुद्री सुरक्षा का समर्थन करने के इस दृष्टिकोण ने भी चीन के साथ स्पष्ट प्रतिस्पर्धा से बचाकर समूह को अन्य छोटे किरदारों के लिए अधिक प्रभावी और स्वीकार्य बनाया है. 

पिछले कुछ वर्षों में क्वॉड के द्वारा घोषित और शुरू की गई कई पहलों- जिनमें समुद्री सुरक्षा जागरूकता के लिए इंडो-पैसिफिक साझेदारी, क्वॉड-एट-सी शिप ऑब्ज़र्वर मिशन, इंडो-पैसिफिक लॉजिस्टिक नेटवर्क शामिल हैं- के माध्यम से इस समूह ने कार्रवाई योग्य रणनीतियों, जिसके माध्यम से इसने इंडो-पैसिफिक में समुद्री सुरक्षा संरचना को मज़बूत करने का प्रयास किया है, को आगे बढ़ाने की कोशिश की है. इंडो-पैसिफिक के अलग-अलग देशों में चीन की कूटनीतिक और रणनीतिक उपस्थिति की प्रकृति और चरित्र को देखते हुए क्वॉड ने चीन के साथ सीधी प्रतिस्पर्धा को टालते हुए समुद्री सुरक्षा और विकास साझेदारी का एक वैकल्पिक मॉडल प्रदान करने का उचित प्रयास किया. इससे ये सुनिश्चित हुआ कि इंडो-पैसिफिक के देश ख़ुद को इस क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा और संघर्ष के बीच नहीं पाएं. 

 वैसे तो लगता है कि अमेरिका और उसके क्वॉड साझेदारों के बीच कूटनीतिक संबंध अभी निचले स्तर पर है, लेकिन ये कहना जल्दबाज़ी होगी कि ये समूह गायब हो रहा है. बदलाव के इस दौर का प्रभावी उपयोग ये याद दिलाने के लिए करना चाहिए कि इंडो-पैसिफिक की सुरक्षा के लिए क्वॉड क्यों ज़रूरी है.  

ध्यान देने की बात है कि बहुआयामी समुद्री सुरक्षा के एजेंडे पर सहयोग बढ़ाने के लिए निरंतर प्रयासों की आवश्यकता के साथ इंडो-पैसिफिक एक जटिल क्षेत्र के रूप में उभर रहा है. ये इंडो-पैसिफिक में अनुकूल समुद्री सुरक्षा का माहौल तैयार करने में क्वॉड की भूमिका को अपरिहार्य बनाता है. महत्वपूर्ण बात ये है कि क्वॉड के सभी साझेदार इंडो-पैसिफिक में सहयोग को आकार देने और मज़बूत करने में अहम भूमिका निभाते हैं. जहां एक पसंदीदा सुरक्षा साझेदार के रूप में भारत की भूमिका हिंद महासागर में क्वॉड की उपस्थिति महत्वपूर्ण रूप से बढ़ाती है, वहीं अमेरिका भी व्यापक इंडो-पैसिफिक में एक अहम भूमिका अदा करता है. दक्षिण चीन सागर और ताइवान स्ट्रेट जैसे इंडो-पैसिफिक के अलग-अलग रणनीतिक क्षेत्रों में बढ़ते तनाव के साथ ये अमेरिका के लिए आवश्यक है कि वो पूरे इंडो-पैसिफिक में अधिक सहयोग को बढ़ावा देना जारी रखे. इस संबंध में क्वॉड अमेरिका के लिए इंडो-पैसिफिक की सुरक्षा संरचना से जुड़े रहने के उद्देश्य से एक महत्वपूर्ण ढांचा है. वैसे तो आलोचक ये दलील दे सकते हैं कि क्वॉड सैन्य रूप से दक्षिण चीन सागर के तनाव या ताइवान स्ट्रेट में शामिल नहीं है लेकिन इस समूह के द्वारा इन भौगोलिक क्षेत्रों में बिगड़ते सुरक्षा माहौल को ठीक करने की आवश्यकता को लेकर लगातार वकालत करना ये संकेत देता है कि इंडो-पैसिफिक में समग्र समुद्री सुरक्षा के वातावरण में उसकी भागीदारी है. 

क्वॉड के द्वारा विकसित बहुआयामी एजेंडा

चूंकि अमेरिका अन्य क्वॉड साझेदारों के साथ अपने संबंधों को सुधारने के प्रयास कर रहा है, ऐसे में इंडो-पैसिफिक में सहयोग और सामूहिक कार्रवाई की आवश्यकता इस समूह की उपयोगिता की याद दिलाती रहेगी. क्वॉड के द्वारा विकसित बहुआयामी एजेंडा इंडो-पैसिफिक में जटिल समुद्री सुरक्षा के एजेंडे को आसान बनाने में कार्रवाई योग्य रणनीतियों को शुरू करने में सफल रहा है. जैसे-जैसे इस क्षेत्र में चुनौतियां बढ़ती जा रही हैं, वैसे-वैसे इंडो-पैसिफिक में सामरिक हित रखने वाले देशों के लिए ये अनिवार्य होगा कि वो सहयोग बढ़ाएं. इंडो-पैसिफिक में चुनौतियों को कम करने और सहयोग को बढ़ाने के लिए क्वॉड एक प्रभावी तंत्र के रूप में विकसित हुआ है. वैसे तो लगता है कि अमेरिका और उसके क्वॉड साझेदारों के बीच कूटनीतिक संबंध अभी निचले स्तर पर है, लेकिन ये कहना जल्दबाज़ी होगी कि ये समूह गायब हो रहा है. बदलाव के इस दौर का प्रभावी उपयोग ये याद दिलाने के लिए करना चाहिए कि इंडो-पैसिफिक की सुरक्षा के लिए क्वॉड क्यों ज़रूरी है.    


सायंतन हालदार ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटजिक स्टडीज़ प्रोग्राम में एसोसिएट फेलो हैं.

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