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जलवायु मंत्री क्रिस बोवेन के ऑस्ट्रेलिया को “दुनिया की ग्रीन हाइड्रोजन राजधानी” कहने के कुछ महीनों बाद, कई परियोजनाएं रुक गई हैं और कई अब भी अनिश्चितता में हैं.
Image Source: Getty Images
ग्रीन हाइड्रोजन, स्वच्छ ईंधन वाले भविष्य की तरफ़ बढ़ने का सबसे उम्मीद भरा रास्ता दिखाती है. ये कार्बन उत्सर्जन से निजात पाने के एक प्रमुख स्तंभ के तौर पर उभरी है. ख़ास तौर से स्टील उद्योग और भारी परिवहन जैसे उद्योगों के लिए जहां कार्बन उत्सर्जन कम कर पाना दुश्वार साबित हो रहा है. ग्रीन हाइड्रोजन का निर्माण अक्षय ऊर्जा से बनी बिजली का इस्तेमाल करते हुए पानी को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में तोड़कर किया जाता है. प्राकृतिक गैस जैसे जीवाश्म ईंधनों से बनाई जाने वाली ग्रे हाइड्रोजन बड़ी मात्रा में ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन करती है. वहीं ब्लू हाइड्रोजन इस प्रक्रिया को कार्बन कैप्चर की व्यवस्थाओं के साथ मिला देती है, ताकि उत्सर्जन कम किया जा सके. वहीं, ग्रीन हाइड्रोजन से उत्सर्जन शून्य हो जाता है और भविष्य में इसके दुनिया में एक प्रमुख निर्यात बनने की संभावनाएं जताई जा रही हैं.
ब्लू हाइड्रोजन इस प्रक्रिया को कार्बन कैप्चर की व्यवस्थाओं के साथ मिला देती है, ताकि उत्सर्जन कम किया जा सके. वहीं, ग्रीन हाइड्रोजन से उत्सर्जन शून्य हो जाता है और भविष्य में इसके दुनिया में एक प्रमुख निर्यात बनने की संभावनाएं जताई जा रही हैं.
अभी हाल तक ऑस्ट्रेलिया, ग्रीन हाइड्रोजन के अग्रणी उत्पादकों और निर्यातकों में से एक बनने जा रहा था. ऑस्ट्रेलिया की हरित ऊर्जा वाली विशाल कंपनी फोर्टेस्क्यू ने जर्मनी की ऊर्जा कंपनी E.ON के साथ अक्षय ऊर्जा के इस स्रोत की आपूर्ति करने का सौदा किया था. ऐसे में सवाल ये है कि अचानक ऑस्ट्रेलिया में ये उद्योग बिखरने क्यों लगा है?
विनियमन में निरंतरता की कमी और ज़बरदस्त मुक़ाबले में जीते गए चुनाव के परिदृश्य में ऑस्ट्रेलिया के ग्रीन हाइड्रोजन उद्योग को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा है. हाल के महीनों में परियोजनाएं रद्द करने, विनिवेश और संदेह पैदा करने वाले सवाल इस उद्योग पर मंडराते दिखे हैं.
बढ़ती लागत और बदलती प्राथमिकताओं की वजह से हाल के दिनों में ऑस्ट्रेलिया के कई राज्यों की सरकारों ने वित्तीय सहायता से हाथ खींच लिया, जिसकी वजह से कई परियोजनाएं गर्त में चली गई. क्वींसलैंड में लिबरल नेशनल पार्टी की चुनावी जीत के बाद जब एक अरब डॉलर की बेहद अहम फंडिंग रोक दी गई, तो ऑस्ट्रेलिया में ग्रीन हाइड्रोजन की एक प्रमुख परियोजना CQ-H2 को रद्द करना पड़ा. न्यू साउथ वेल्स में ओरिजिन एनर्जी, हंटर घाटी में ‘हाइड्रोजन हब’ क़ायम करने की योजना से पीछे हट गई. दक्षिणी ऑस्ट्रेलिया में भी व्हायला में समर्पित हाइड्रोजन दफ़्तर स्थापित करने की परियोजना को उस वक़्त ख़त्म कर दिया गया, जब इसके लिए तय 600 अरब ऑस्ट्रेलियन डॉलर के फंड को कहीं और लगाने का फ़ैसला किया गया.
ग्रीन हाइड्रोजन के विरोधियों द्वारा इसको लेकर आशंकाएं जताने वाली बयानबाज़ी ने भी ऑस्ट्रेलिया में कार्बन उत्सर्जन समाप्त करने की योजनाओं को धक्का पहुंचाया है. मई महीने में ऑस्ट्रेलिया के आम चुनावों से पहले रूढ़िवादी गठबंधन ने ग्रीन हाइड्रोजन पर ख़र्च की ये कहकर आलोचना की थी कि ये तो महज़ एक ‘फैंटेसी’ है. महंगाई की ऊंची दर और ऊर्जा की बढ़ती क़ीमतों से जूझते ऑस्ट्रेलिया में इस तरह का प्रचार अभियान एक बड़े तबक़े के बीच लोकप्रिय हुआ. जब ग्रीन एनर्जी का राजनीतिकरण होता है, और इसको पार्टियों के बीच खींचतान का मुद्दा बनाकर बढ़ती लागत के नाम पर इसकी आलोचना की जाती है, तो बदक़िस्मती से इसका नतीजा यही निकलता है कि इस सेक्टर की वकालत करना बहुत चुनौती भरा हो जाता है और इसके लिए सरकारी फंडिंग जुटाना तो उससे भी मुश्किल हो जाता है.
हालांकि, पहले ऑस्ट्रेलिया में ग्रीन हाइड्रोजन क्रांति की वकालत करने वाली लेबर पार्टी आख़िरकार चुनाव में जीत गई. लेकिन, स्वच्छ ईंधन को लेकर लोगों की सोच निश्चित रूप से बदल गई है. ग्रीन हाइड्रोजन की महत्वाकांक्षा, प्रधानमंत्री एंथनी अल्बानीज़ की सरकार की ‘फ्यूचर मेड इन ऑस्ट्रेलिया’ नीति का हिस्सा रहेगी. लेकिन, इस सिलसिले में काम अभी बाक़ी है. इस परिवर्तन की चुनौतियों और ऑस्ट्रेलिया के बढ़ते कोयला निर्यात से स्पष्टता के साथ निपटने से ही आशंकाएं दूर होंगी. स्वच्छ ईंधन की परियोजनाओं को नीतिगत समानता और सरकारी पूंजी निवेश के ज़रिए दोबारा जीवित करने से इस सेक्टर में फिर जान डाली जा सकती है.
ऑस्ट्रेलिया में प्रस्तावित हाइड्रोजन हब और परियोजनाओं का ठिकाना एवं वर्तमान स्थिति. साल्ट कैवर्न में ग्रीन हाइड्रोजन भंडारण की भारी क्षमता है (मार्च 2023)

Source: Australian Government | Geoscience Australia
कोयले के बढ़ते आयात से इतर, अल्बानीज़ की सरकार की ऑस्ट्रेलिया में कोयला खदानों के विस्तार को इजाज़त देते रहने के लिए भी आलोचना की जा रही है. पिछले चुनावों से पहले अल्बानीज़ सरकार ने एक संघीय पर्यावरण संरक्षण संस्था की स्थापना को भी ठंडे बस्ते में डाल दिया था. हालांकि, हाल के दिनों में कुछ उपलब्धियां हासिल हुई हैं. क्योंकि न्यू साउथ वेल्श की एक अदालत ने राज्य की सबसे बड़ी कोयला खदान के विस्तार पर रोक लगा दी थी. जानकारों का कहना है कि ये उद्योग अब ऐसे दौर में पहुंच चुका है, जिसे कुछ लोग मोहभंग का दौर भी कहते हैं. ये बात किसी भी नई और यथास्थिति बदलने वाली तकनीक पर लागू होती है, जो शुरुआती उत्साह के बाद ऐसे दौर से गुज़रती है. ग्रीन हाइड्रोजन को हम हर मसले का हल नहीं कह सकते हैं, जैसा इसे प्रचारित किया गया था. लेकिन, अत्यधिक कार्बन उत्सर्जन वाले उद्योगों में इसकी भूमिका को नकारा नहीं जा सकता है. ग्रीन हाइड्रोजन पहले ही कारगर होती दिख रही है और जैसे जैसे आपूर्ति श्रृंखलाओं की कमज़ोरियां दूर होती रहेंगी और ग्रे स्टील की लागतर बढ़ती जाएगी, तो इसका उपयोग निश्चित रूप से और बढ़ता दिखेगा.
ऑस्ट्रेलिया और बाक़ी की दुनिया को ऑस्ट्रेलिया में ग्रीन हाइड्रोजन सेक्टर को लगे झटकों से निराश नहीं होना चाहिए. ऐसी चुनौतियां तो आनी ही थीं. जब हरित परिवर्तन को पूरी तरह से बाज़ार की ताक़तों के भरोसे छोड़ दिया जाता है, तो फ़ौरी तौर पर इसके ज़्यादातर देशों में विवादित होने और महंगा साबित होने का अंदेशा रहता है. मध्यम और दूरगामी अवधि में ठोस नीतिगत समर्थन और पर्याप्त वित्तीय सहायता के ज़रिए लागत कम होती जाएगी और उद्योग के तौर-तरीक़ों में सुधार आएगा. ग्रीन हाइड्रोजन की परियोजनाएं तब तक लाभप्रद नहीं होंगी, जब तक पर्याप्त सरकारी सहयोग के जरिए शुरुआती बाधाओं से पार नहीं पाया जाता. सरकार को अपनी ऊर्जा सुरक्षा के लिए आगे आकर स्वच्छ ईंधन को समर्थन देना होगा.
जलवायु परिवर्तन से निपटने के मामले में अमेरिका के किसी ठोस क़दम उठाने से पीछे हटने के बाद, ऑस्ट्रेलिया को ये समझना होगा कि वो हिंद प्रशांत को कार्बन उत्सर्जन से मुक्त करने में अहम भूमिका निभा सकता है.
ऑस्ट्रेलिया के तजुर्बे से बाक़ी दुनिया ये सीख सकती है कि हरित ऊर्जा का भविष्य हमेशा सीधा-सपाट नहीं हो सकता है और इसके प्रयासों की राह में रोड़े आने की आशंका बनी रहेगी. ये चुनौतियां अक्सर सरकार की बदलती प्राथमिकताओं, अपर्याप्त नीतिगत समर्थन के अभाव और वित्तीय अनिश्चितता के कारण और भी जटिल हो जाएंगी. आज ज़रूरत पुराने जीवाश्व ईंधन को फ़ौरी राजनीतिक लाभ के लिए बढ़ावा देने के बजाय ऊर्जा सुरक्षा को अक्षय ऊर्जा स्रोतों के ज़रिए प्राथमिकता देने वाले दूरगामी दृष्टिकोण की है. जलवायु परिवर्तन से निपटने के मामले में अमेरिका के किसी ठोस क़दम उठाने से पीछे हटने के बाद, ऑस्ट्रेलिया को ये समझना होगा कि वो हिंद प्रशांत को कार्बन उत्सर्जन से मुक्त करने में अहम भूमिका निभा सकता है. जापान में ग्रीन हाइड्रोजन की मांग बढ़ती जा रही है. ऐसे में, ऑस्ट्रेलिया को चाहिए कि वो जापान के साथ स्टील निर्माण की टिकाऊ परियोजनाओं में सहयोग करे. इससे भी हिंद प्रशांत में जलवायु के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाया जा सकता है.
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Krishna Vohra is a Junior Fellow at the Centre for Economy and Growth. His primary research areas include energy, technology, and the geopolitics of climate ...
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