Author : Anchal Vohra

Published on Sep 23, 2021 Updated 0 Hours ago

ईरान के नए राष्ट्रपति को वास्तविक सहयोगी मानने में अमेरिका को काफी विचार करना पड़ा.

ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रैसी ने न्यूक्लियर समझौते की पुनर्बहाली में देरी क्यों की?

ईरान के सुप्रीम नेता अयातुल्लाह अली ख़ामेनी ने जैसे ही मुल्क के कट्टर शिया धार्मिक नेता इब्राहिम रैसी को एक आधिकारिक कार्यक्रम में राष्ट्रपति घोषित किया, रैसी ने अमेरिका के साथ समझौतावादी  रूख़ अख़्तियार करने में देरी नहीं की.

एक टेलीविज़न भाषण में रैसी ने कहा कि “हम चाहेंगे कि अमेरिका ने ईरान पर जो अत्याचारी प्रतिबंध लगाए हैं उन्हें हटा ले”. कुछ लोगों ने अमेरिका में इसे इस रूप में देखा कि रैसी अपने बयान के ज़रिए फिर से न्यूक्लियर समझौते की अमेरिका की मांग के लिए उसकी भूमिका को और व्यापक करना चाहते हैं. लेकिन उन्हें ईरान के कट्टरपथियों की चिंता भी सता रही है जैसा कि उन्होंने कहा कि वो ईरान की अर्थव्यवस्था को “विदेशियों की इच्छा” पर नहीं छोड़ने वाले हैं. इस तरह के परस्पर विरोधी बयानों से अमेरिका  के लिए यह समझ पाना मुश्किल हो गया कि आखिर रैसी अपने रूख़ से बातचीत किस दिशा में ले जाना चाहते हैं.

बाइडेन प्रशासन ने इस साल की शुरुआत में, साल 2015 में ओबामा प्रशासन ने जिस ईरान को न्यूक्लियर बम बनाने से रोकने के लिए ऐतिहासिक न्यूक्लियर समझौता किया था, उसे फिर से पुनर्जीवित करने के लिए बातचीत की शुरुआत की. 


बाइडेन प्रशासन ने इस साल की शुरुआत में, साल 2015 में ओबामा प्रशासन ने जिस ईरान को न्यूक्लियर बम बनाने से रोकने के लिए ऐतिहासिक न्यूक्लियर समझौता किया था, उसे फिर से पुनर्जीवित करने के लिए बातचीत की शुरुआत की. 2018 में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान पर सख़्त प्रतिबंधों की इसलिए वकालत की थी क्योंकि वह नहीं चाहते थे कि ईरान अपनी मिलिशिया का इस्तेमाल इज़रायल और अमेरिका के अरब सहयोगियों के ख़िलाफ़ कर सके.

विएना में इसे लेकर वार्ता का आयोजन किया गया जिसमें इस समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले पांच दूसरे मुल्क भी शामिल थे और सब कुछ ठीक ही चल रहा था जब रैसी ने जून के मध्य में चुनाव जीता. उन्होंने ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी की जगह ली जो उनके मुकाबले कम कट्टर माने जाते थे. रायसी को ख़ामेनी का करीबी माना जाता है. सुप्रीम नेता ने उनकी भरपूर तारीफ की है और उन्हें “परिश्रमी, अनुभवी और मशहूर” बताया. बावजूद इसके कि उन्होंने चुनाव जीता, एक ऐसा ऐतिहासिक चुनाव जिसमें ईरान के चुनावी इतिहास में सबसे कम मतदाताओं ने हिस्सा लिया, और जिसे उन्होंने बिना किसी मुकाबले के जीता क्योंकि उन्हें जो कोई भी चुनाव में हरा सकता था उन्हें अयोग्य करार दे दिया गया.

रैसी पर मानवाधिकार उल्लंघन के मामले


हालांकि, अयातुल्लाह रैसी का जीवन गंभीर मानवाधिकार उल्लंघन के आरोपों से घिरा हुआ है और तो और अमेरिका ने खुद उनपर प्रतिबंध लगाया हुआ था. 80 के दशक में जिस डेथ कमिटी ने हज़ारों ईरानी असंतुष्टों को फांसी की सजा दे दी थी उसकी जांच करने वाले 60 वर्ष के न्यायाधीश के ख़िलाफ़ कार्यकर्ताओं ने जांच की मांग की है. एमनेस्टी इंटरनेशनल ने कहा कि “बावजूद इस बात के कि उनके विरुद्ध मानवता के ख़िलाफ़ जुर्म, हत्या, जबर्दस्ती गायब करा देने और यातना के मामलों में जांच जारी है रैसी राष्ट्रपति पद तक पहुंचे. यह इस बात की ओर इशारा करता है कि ईरान में दंड देना चलन में है”. “2018 में हमारे संगठन ने साबित किया कि कैसे इब्राहिम रैसी ‘डेथ कमीशन’ के सदस्य थे जो लोगों को जबरन गायब कर दिया करता था, उन्हें अवैध रूप से बंधक बनाता था, और 1988 में तेहरान के पास ईविन और गोहारदश्त जेल में हज़ारों राजनीतिक असंतुष्टों को फांसी पर लटका देता था. उन पीड़ितों के साथ क्या परिस्थितयां थीं, उनका शव कहां गायब हो गया, आज तक ऐसी जानकारी को ईरान के अधिकारियों द्वारा व्यवस्थित तरीके से छिपाया जाता है, जो मानवता के ख़िलाफ़ जुर्म को बढ़ावा देता है”.

अमेरिकी प्रतिबंधों के दबाव में ईरान की अर्थव्यवस्था दिनों दिन बदहाल होती जा रही है जिसकी वजह से रैसी पर घरेलू दबाव बढ़ता ही जा रहा है. रैसी जो भी बयान देते हैं, उससे उन पर इस क्षेत्र में आक्रामक रूख़ अपनाने का आरोप लग जाता है.

अमेरिकी प्रतिबंधों के दबाव में ईरान की अर्थव्यवस्था दिनों दिन बदहाल होती जा रही है जिसकी वजह से रैसी पर घरेलू दबाव बढ़ता ही जा रहा है. रैसी जो भी बयान देते हैं, उससे उन पर इस क्षेत्र में आक्रामक रूख़ अपनाने का आरोप लग जाता है. इस महीने की शुरुआत में ओमान की खाड़ी में ब्रिटिश कंपनी के एक तेल के टैंकर पर हमला कराने का आरोप ईरान पर लगा. 2019 के बाद इज़रायल, सउदी और अमीरात जहाजों पर हुए अपरोक्ष समुद्री हमलों में से यह काफी ज़बर्दस्त हमला था.  दो नाविक जिसमें एक ब्रिटिश नागरिक था, दोनों ही एम वी मर्सर स्ट्रीट मर्चेंट जहाज पर मौजूद थे, जिनकी इस हमले में मौत हो गई. इसका नतीजा यह हुआ कि ब्रिटेन ने ईरान के राजदूत को समन भेजा और ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने इस घटना को “अपमानजनक” बताया. अमेरिका और इज़रायल दोनों ने ईरान को जिम्मेदार बताया.

वॉशिंगटन में रैसी को लेकर विरोधाभास

वॉशिंगटन में अमेरिकी विदेश मंत्री एंथनी ब्लिंकन ने कहा कि अमेरिका को भरोसा है कि इस घटना के पीछे ईरान का ही हाथ है. ब्लिंकन ने कहा कि “यह ईरान द्वारा किए गए हमलों जैसा ही है जिसमें  हमले के लिए बारूदी ड्रोन का इस्तेमाल किया गया था”. “अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा में कारोबारी उदेश्य से एक शांतिपूर्ण जहाज़ पर हमले को लेकर कोई भी बयान उचित नहीं ठहराया जा सकता. ईरान की कार्रवाई समुद्री सीमा में स्वतंत्र आवाजाही और कारोबार को लेकर सीधा ख़तरा है”. हाल ही में कैबिनेट की बैठक में इज़रायल के प्रधानमंत्री नफ्ताली बेनेट ने कहा कि असल में इज़रायल ना कि इंग्लैंड इस हमले के निशाने पर था, क्योंकि यह जहाज इज़रायल से संबंधित था. प्रधानमंत्री बेनेट ने अपने ट्विटर अकाउंट पर लिखा कि “हम अपने तरीके से ईरान को संदेश देना जानते हैं”

अमेरिका अभी भी रैसी को गंभीर सहयोगी के रूप में देखने के लिए संघर्ष करता नजर आ रहा है. ईरान और अमेरिका के बीच 20 जून को छठे दौर की वार्ता रद्द हो गई है जो अभी तक शुरू नहीं हो पाई है. 

ईरान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता सईद ख़ातीबज़ादेह ने सभी तरह के आरोपों को ख़ारिज कर दिया और बदले में इज़रायल पर बदनाम करने का आरोप लगाया. ख़ातीबज़ादेह ने धमकी देते हुए इज़रायल को कहा कि “हवा से खिलवाड़ करने वालों को तूफान का सामना करना पड़ता है”. इसके बाद से सीरिया में इज़रायल ने ईरान के टारगेट पर निशाना साधना शुरू किया है, जिसकी भारी कीमत ईरान को चुकानी पड़ सकती है. अमेरिका अभी भी रैसी को गंभीर सहयोगी के रूप में देखने के लिए संघर्ष करता नजर आ रहा है. ईरान और अमेरिका के बीच 20 जून को छठे दौर की वार्ता रद्द हो गई है जो अभी तक शुरू नहीं हो पाई है. अभी तक इस संबंध में किसी ने चुप्पी नहीं तोड़ी है कि आखिर फिर से दोनों मुल्कों के बीच बातचीत की शुरुआत कब होगी.

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