Published on Dec 26, 2023 Updated 0 Hours ago
वैश्विक बाज़ार: 2024 में क्या रहेगी दशा-दिशा?

ये लेख हमारी श्रृंखला “व्हॉट टू एक्सपेक्ट इन 2024” का हिस्सा है.


तनावपूर्ण भू-राजनीति और अस्थिर अर्थव्यवस्थाएं ये सुनिश्चित करेंगी कि 2024 में वैश्विक बाज़ार में उथल-पुथल रहे. अस्थिरता पर फलने-फूलने वाले कारोबारियों के लिए ये एक समृद्ध वर्ष होगा और निवेश के लंबे परिप्रेक्ष्य वाले निवेशकों के लिए ये 12 महीने अनिश्चितता भरे होंगे. संपत्ति बनाने वाले अपने पोर्टफोलियो में डर और लालच का अनुभव करेंगे- डर, बाज़ार के धड़ाम होने का, और लालच, ऐसी गिरावट के चलते आने वाले अवसरों का. अपनी संपत्ति पर गुज़र-बसर कर रहे लोग अपने-आप को निरंतर एक आवंटन युद्ध की स्थिति में पाएंगे. कभी वो ऊंचा रिटर्न देने वाली इक्विटी की ओर रुख़ करते दिखेंगे तो कभी सुरक्षा की ख़ातिर निम्न-रिटर्न बॉन्ड्स की ओर वापसी करते नज़र आएंगे. 2024 में पूंजी संरक्षण, पूंजी वृद्धि के साथ समान रूप से मेल खाएगा. 

फरवरी में इंडोनेशिया, मार्च में भारत और रूस, मई में दक्षिण अफ्रीका, जून में यूरोपीय संसद के साथ-साथ मैक्सिको, और नवंबर में अमेरिका में चुनाव होंगे. इनमें से, वित्तीय समुदाय भारत और अमेरिका पर सबसे बारीक़ी से निगाह रखेंगे

स्थानीय राजनीति भू-राजनीति में नीतिगत अनिश्चितता जोड़ देगी. G21 के सात क्षेत्राधिकारों में चुनाव 2024 में मुद्रा और बाज़ारों को प्रभावित करेगी. फरवरी में इंडोनेशिया, मार्च में भारत और रूस, मई में दक्षिण अफ्रीका, जून में यूरोपीय संसद के साथ-साथ मैक्सिको, और नवंबर में अमेरिका में चुनाव होंगे. इनमें से, वित्तीय समुदाय भारत और अमेरिका पर सबसे बारीक़ी से निगाह रखेंगे-अमेरिका पर इसलिए क्योंकि वो कई कारणों से पूरी दुनिया के लिए पूंजी का एजेंडा तय करता है, जिसमें नवाचार टेक्नोलॉजी के निर्माण से लेकर मुद्रा की छपाई तक शामिल है, और भारत पर इसलिए क्योंकि ज़बरदस्त ताक़त जुटा रही दुनिया की सबसे तेज़ गति से बढ़ती अर्थव्यवस्था को ये चुनाव क़ानून के राज का सुरक्षित दायरा उपलब्ध कराएंगे.   

परिपक्व वैश्विक निवेशक, जिनकी पूंजी तैनाती का दायरा और मियाद लंबी है, पूंजी के दीर्घकालिक चक्र में आगे बढ़ेंगे. सॉवरिन वेल्थ फंड्स या निजी इक्विटी जैसे निवेशकों के लिए चुनौती अधिक स्पष्ट होगी-लोकतंत्र की ओर उड़ान. हालांकि अरबों डॉलर को एक भूगोल से दूसरे भूगोल में स्थानांतरित करना आसान नहीं हो सकता. ये चीन में वित्तीय निवेशकों के लिए ख़ासतौर से कठिन होगा, जहां पूंजी के निकास (मिसाल के तौर पर टेक्नोलॉजी इकाइयों के प्रवेश के लिए संचालन दीवारों जैसी) के सामने अवरोध मनमर्ज़ी से कभी भी खड़े किए जा सकते हैं. वित्तीय बदलावों का तीसरा चरण उन कंपनियों की पूंजी का होगा जिनकी बिक्री और मुनाफ़ों के लिए चीन पर अत्यधिक निर्भरता है लेकिन वो मुक्त स्टॉक एक्सचेंजों पर सूचबद्ध हैं.  

पैमाने और आकार के साथ-साथ मानवीय आकांक्षाओं और वित्तीय टेक्नोलॉजी की सक्षमता के संदर्भ में 2024 से आगे भारत ही पसंदीदा स्थान होगा. अमेरिका, चीन, यूरोपीय संघ और जापान के बाद दुनिया के पांचवें सबसे बड़े स्टॉक एक्सचेंज के नाते 2023 में भारत की अल्प-कालिक रिटर्न 16.8 प्रतिशत है, जो अमेरिका के नैस्डैक (43.5) और जापान (29.2 प्रतिशत) से नीचे है, लेकिन अमेरिका के डाउ (12.6 प्रतिशत) और चीन (6.4 प्रतिशत) से ज़्यादा है. चूंकि इक्विटी को दीर्घकालिक परिप्रेक्ष्य की आवश्यकता होती है, तो भारत का 5 साल का रिटर्न 83.1 प्रतिशत है, जो नैस्डैक के बाद दूसरे स्थान पर है. अगर इसमें अगले दो वर्षों में दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था की क्षमता, संघीय सरकार द्वारा वैश्विक कंपनियों और निवेशकों को दिए गए न्योते में सुस्पष्ट परिवर्तन, और अमेरिका के साथ एक गहरा और मज़बूत भू-राजनीतिक तालमेल जोड़ दें तो भारत एक ऐसा ठिकाना बन जाएगा जिसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता. 

भारतीय बाज़ार के लिए मूल्य-से-आय (प्राइस-टू-अर्निंग) गुणक 22.5 के उच्च स्तर पर है, जो अमेरिका के 20.5, ताइवान के 15.5, फ्रांस के 14.5, ऑस्ट्रेलिया के 14.2, जापान के 13.7 या जर्मनी के 11.9 से ज़्यादा है. ये भारत की वृद्धि को उसकी उच्च क़ीमत के भीतर दर्शाता है. हालांकि इसका ये मतलब नहीं है कि वैश्विक निवेशकों के लिए सब कुछ आसान रहेगा. भारतीय निवेशकों (जिनके रिटर्न का दायरा रुपए में होता है) के विपरीत अंतरराष्ट्रीय पूंजी को अपनी भौगोलिक गणना में मुद्रा के उतार-चढ़ाव को ध्यान में रखना होता है. मज़बूत होते डॉलर की वजह से पिछले 12 महीनों में भारतीय रुपये में 3.3 प्रतिशत तक की गिरावट देखी गई है, जो यूरो या ऑस्ट्रेलियाई डॉलर में आई गिरावटों के अनुरूप है. पिछले पांच वर्षों में भारतीय रुपये में 15 प्रतिशत की गिरावट आ चुकी है. 

मुद्रा में ये विमू्ल्यन (डेप्रिसिएशन) स्टॉक बाज़ारों के रिटर्न को प्रभावित करता है. मिसाल के तौर पर जापानी येन के मूल्य में गिरावट (पिछले 11 महीनों में 15 प्रतिशत की गिरावट और पिछले पांच वर्षों में 26 प्रतिशत की गिरावट) ने जनवरी 2023 से स्टॉक बाज़ार के 26 प्रतिशत रिटर्न और पिछले 5 वर्षों में 50 प्रतिशत रिटर्न को बेअसर कर दिया है. हालांकि जापान आज अचानक निवेश के ज़्यादा योग्य बन गया है. महज़ मूल्य के संदर्भ में वही कंपनियां विदेशी पूंजी के लिए सस्ती दर पर उपलब्ध है. दुनिया के सबसे महान निवेशक वॉरेन बफेट ने जून 2023 में जापान की पांच ट्रेडिंग कंपनियों- इटोचू, मारुबेनी, मित्सुबिशी, मित्सुई और सुमीतोमो में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाकर 8.5 प्रतिशत कर ली, जो इस बात का संकेत है कि जापान एक बेशक़ीमती ठिकाना है. 

जापान, भारत और चीन

एक देश के तौर पर जापान तीन ख़तरों- चीन, मुद्रा विमूल्यन और बुज़ुर्ग होती आबादी- का सामना कर रहा है. इनमें से हरेक ख़तरा अपनी बाज़ार अभिव्यक्ति में अद्वितीय है. जापान इन ख़तरों से कैसे निपटता है, ये देखना बाक़ी है. मोटे तौर पर, जापान, चीन को साधने में सक्षम रहेगा और विमूल्यन से भी लाभ भी कमाएगा. लेकिन जापानी कंपनियों को दक्ष बनाने के लिए वो अपने लोगों को कैसे संगठित करेगा, ये बड़ी चुनौती होगी. अमेरिका के विपरीत, जापान प्रतिभा का आयात करने के ख़िलाफ़ है; उसकी संस्कृति महिला कामगारों के ख़िलाफ़ रही है और वहां की जनसांख्यिकी प्रतिकूल है- जापान का आयु निर्भरता अनुपात 1992 में 43 था जो 2022 में उछलकर 71 हो गया है, जो अर्थव्यवस्था को कमज़ोर बना रहा है. जापान के उलट भारत और इंडोनेशिया में आयु निर्भरता अनुपात 47 है. 

दूसरी ओर, 46.2 खरब अमेरिकी डॉलर के विशाल आकार (चीन से सात गुणा, जापान से आठ गुणा और भारत से 13 गुणा ज़्यादा) के बावजूद अमेरिकी स्टॉक बाज़ार रिटर्न देना जारी रखेंगे. सभी अमेरिकी कंपनियों से नहीं, बल्कि इसकी टेक्नोलॉजी कंपनियों से, जो नवाचार की प्रवृति के अभूतपूर्व और ताक़तवर इकोसिस्टम से लैस हैं, और कुशल लोगों के विशाल प्रतिभा समूह और जोख़िम पूंजी के साथ गहरा जुड़ाव रखते हैं. हालांकि जनवरी से अब तक डाउ जोंस पर रिटर्न 3.5 प्रतिशत है, लेकिन नैस्डैक पर सूचीबद्ध टेक्नोलॉजी कंपनियों का रिटर्न 32.8 प्रतिशत है. लंबे, पांच-साल वाले दायरों के आंकड़े भी मिलते जुलते हैं- जो क्रमश: 34.9 प्रतिशत और 90.4 प्रतिशत हैं. इस तथ्य को जोड़कर कि अमेरिकी डॉलर एक आरक्षित मुद्रा है जिसे मर्ज़ी के मुताबिक छापा जा सकता है, और अमेरिका ही वो बेंचमार्क है जिसके इर्द-गिर्द वैश्विक ब्याज़ दरें मंडराती रहती हैं, ऐसे में हमारे सामने सिलिकॉन वैली और सिएटल के मौजूद टेक अवसरों की गतिशीलता और ऑस्टेन में उनका विस्तार सामने आता है. 

भू-राजनीति और सामरिक ज़ोर से लेकर भू-अर्थशास्त्र और सुरक्षा से लोकतंत्र की ओर वापसी की उड़ान तक- सभी बड़ी सरकारी क़वायदें अगले 12 महीनों में वैश्विक वित्त के प्रमुख वाहक होंगे. केवल व्यापक अर्थशास्त्र ही नहीं, बल्कि रणनीतिक अर्थशास्त्र भी स्मार्ट मनी की दिशा तय करेगा.

यही वजह है कि 2024 में स्मार्ट मनी अमेरिका की तकनीकी कंपनियों, तेज़ी से बढ़ते भारत, और इंडोनेशिया, वियतनाम और शायद सऊदी अरब जैसे कुछ छोटे पैमाने वाले भी क्षेत्राधिकारों में जाएगी. ये या तो यूरोप में बनी रहेगी या वहां से निकल जाएगी. हालांकि यूरोप को पहले रूस-चीन दरार की मरम्मत करनी होगी और अगले कुछ वर्षों में उसे दुरुस्त करना होगा. स्मार्ट मनी चीन और रूस से बाहर निकल जाएगी, जहां उसे एकमुश्त काट-छांट झेलनी पड़ सकती है- यूक्रेन पर रूसी आक्रमण और चीन में कुल मिलाकर रियल एस्टेट संकट के चलते आई आर्थिक गिरावट और अतिमहत्वाकांक्षी राजनीतिक विस्फोट के चलते रिटर्न की उम्मीदें एक नए निम्नतम स्तर पर हैं. भू-राजनीति और सामरिक ज़ोर से लेकर भू-अर्थशास्त्र और सुरक्षा से लोकतंत्र की ओर वापसी की उड़ान तक- सभी बड़ी सरकारी क़वायदें अगले 12 महीनों में वैश्विक वित्त के प्रमुख वाहक होंगे. केवल व्यापक अर्थशास्त्र ही नहीं, बल्कि रणनीतिक अर्थशास्त्र भी स्मार्ट मनी की दिशा तय करेगा. 2024 में विशिष्ट अवसर इसी दिशा में और इसके द्वारा लाई जाने वाले अस्थिरता के परिप्रेक्ष्य के भीतर बने रहेंगे. 


गौतम चिकरमाने ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में वाइस प्रेसिडेंट हैं.

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