Author : Anchal Vohra

Published on Jul 26, 2021 Updated 0 Hours ago

फ़लस्तीनी लोगों की नज़र में हमास वो आख़िरी संगठन है जो इज़राइल की ताक़त को चुनौती दे सकता है

फ़लिस्तिनियों के बीच, आतंकी संगठन ‘हमास’ की बढ़ती लोकप्रियता की वजह क्या है?

मई महीने में रमादान महीने की शुरुआत में इज़राइली पुलिस, भीड़ नियंत्रित करने और इबादत कर रहे यहूदियों पर कथित तौर पर पथराव करने वाले लोगों को सबक सिखाने के लिए, अल अक्सा मस्जिद में जबरन अंदर घुस आयी. ज़ाहिर है उन्हें इसके नतीजों और प्रतिघात का बख़ूबी अंदाज़ा भी रहा होगा.

इज़राइल की इस कार्रवाई ने लगे हाथों हमास को एक अभूतपूर्व मौका दे दिया. हमास – जो कि एक फ़लस्तीनी समूह है, और जिसका सशस्त्र व राजनीतिक विंग है और जिसे इज़राइल, अमेरिका और यूरोप ने आतंकवादी संगठन करार दिया है –  उसे  फलस्तीनी लोगों की नजरों में ऊंचा उठने का मौका दे दिया। 

हमास ने इज़रायली शहरों पर हजारों रॉकेट दागे. इन हमलों में हमास के लड़ाकों द्वारा पहली बार तेल अवीव और यरूशलम शहरों के काफ़ी अंदर तक रॉकेट से निशाना साधा गया. इसके जवाब में इज़राइल ने गाज़ा पर हवाई हमला कर दिया और 20 गुना ज्य़ादा फ़लस्तीनी नागरिकों को मार गिराया जिनमें करीब 66 बच्चे भी शामिल थे. साथ ही कई इमारतों को जमींदोज़ कर दिया जिससे हज़ारों लोग बेघर हो गए.    

हमास ने इज़रायली शहरों पर हजारों रॉकेट दागे. इन हमलों में हमास के लड़ाकों द्वारा पहली बार तेल अवीव और यरूशलम शहरों के काफ़ी अंदर तक रॉकेट से निशाना साधा गया.

लेकिन फ़लस्तीनी लोगों की नज़र में हमास वो आख़िरी संगठन है जो इज़राइल की ताक़त को चुनौती दे सकता है. फ़लस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास इस दौरान ज्य़ादातर समय नदारद ही रहे और वैसे भी यह माना जा रहा है कि शांति प्रक्रिया में उन्हें इज़राइल से धोख़ा मिला है. पिछले कुछ सालों में उनकी विश्वसनीयता पर भी सवाल खड़े हुए हैं, क्योंकि उन पर वेस्ट बैंक में एक प्रभावहीन और भ्रष्ट व्यवस्था का नेतृत्व करने का आरोप है. 

हमास के पक्ष में पोल

मिस्र की मध्यस्थता से होने वाले सीज़फायर पर हस्ताक्षर हुए, जिसके बाद फलस्तीनियों ने अल अक्सा मस्जिद पर इबादत के दौरान हमास के झंडे लहराए और तुरंत वहां एक पोल का आयोजन किया गया. इस पोल में फ़लस्तीनी जनता ने हमास के संगठन के प्रति अपना समर्थन ज़ाहिर किया. 15 जून को शोध संस्था Palestinian Centre for Policy and Survey Research द्वारा जारी किये गए एक पोल नतीजों के अनुसार, इसी साल 2021 के मई महीने में हमास ने इज़राइल के खिलाफ़ हुए संघर्ष में जीत हासिल की है.  इस नज़रिये से जनता के रवैये में बड़ा बदलाव आता हुआ दिखा है, जो अब्बास के नेतृत्व वाली फ़लस्तीनी सत्ता के ख़िलाफ़ और हमास के पक्ष में होता हुआ दिखायी दे रहा है. इसके साथ ही इस विचार को भी बल मिला कि हथियार उठाकर स्वतंत्रता हासिल की जा सकती है.   

इस पोल में कहा गया कि करीब तीन चौथाई फ़लस्तीनी ये मानते हैं कि इस इस्लामिक संगठन ने हाल ही में हुए टकराव में इज़राइल को हराया है. उन्हें यह एहसास हुआ है कि इस संगठन ने उनके देश की भावी राजधानी के रूप में येरूशलम पर फ़लस्तीन के दावे का बचाव करने में तब सफ़ल हुआ है, जब इज़राइल पूर्वी येरूशलम के करीब स्थित शेख जर्रा0ह से फ़लस्तीनियों को हटाने की कोशिश की, और इस्लाम के पवित्र स्थल का अनादर करने के लिए इज़राइल को सबक सिखाया है. पोल में शामिल होने वाले 53 प्रतिशत फ़लस्तीनी मानते हैं कि अब हमास को उनका प्रतिनिधित्व और अगुवाई करनी चाहिए. अब्बास की फ़तह पार्टी को केवल 14 प्रतिशत लोगों का साथ मिला. 

फ़लिस्तिनियों  के बीच हमास की बढ़ती लोकप्रियता का एक कारण उसके द्वारा इज़राइल पर दागे गए चार हज़ार से अधिक रॉकेट भी हैं. इससे फलस्तीनी लोगों को यह महसूस हुआ है कि हमास ऐसे वक्त पर उनके साथ खड़ा है, जब उनके अपने नेता, अंतरराष्ट्रीय समुदाय और प्रमुख अरब देशों ने उनका और फ़लीस्तीन से जुड़े मुद्दों का साथ छोड़ दिया है. 

इस पोल में कहा गया कि करीब तीन चौथाई फ़लस्तीनी ये मानते हैं कि इस इस्लामिक संगठन ने हाल ही में हुए टकराव में इज़राइल को हराया है. 

हालांकि, हमास के उदय की पृष्ठभूमि फलस्तीनी लोगों की वो बेबसी थी जो उन्होंने डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल के दौरान महसूस की थी. ट्रंप ने न सिर्फ़ अमेरिकी दूतावास को विवादित येरूशलम में स्थानांतरित कर दिया था  बल्कि एक ऐसी शांति योजना की भी पेशकश की थी- जिसे डील ऑफ़ द सेंचुरी कहा गया था, और जिसमें द्वी-राज्यीय या दो राज्यों का समाधान नहीं था. साथ ही उन्होंने पूर्वी यरूशलम को भावी फ़लस्तीनी राज्य की राजधानी बनाए जाने की मांग को भी नज़रअंदाज़ किया था. पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति ने लाखों फ़लस्तीनी शरणार्थियों की देश वापसी और वेस्ट बैंक में ग़ैरकानूनी रूप से बसे इज़राइल के यहूदियों को वापिस भेजने से इनकार कर दिया था.    

चुनाव न करवाने की ग़लती

राष्ट्रपति महमूद अब्बास ने मई में होने वाले चुनाव को कराने से मना कर दिया था जिससे भी उनकी वैधता पर असर पड़ा. अब्बास ने 15 सालों में पहली बार होने वाले चुनाव को निरस्त कर दिया था. उनका कहना था कि चूंकि, इज़राइल पूर्वी यरूशलम में मतदान की अनुमति नहीं देगा इसलिये चुनाव निरस्त कर देना चाहिये. उनके इस फैसले के लिए उनके आलोचकों ने उन्हें अनियंत्रित शासक करार दिया और कहा कि ऐसा करने की  असली वजह उनके मन में चुनाव में हार का डर था. 

इससे पहले मार्च में हुए एक पोल में Palestinian Centre for Policy and Survey Research ने, चुनाव संचालित होने की सूरत में, अब्बास की फ़तह पार्टी को हमास के मुक़ाबले थोड़ी बढ़त दी थी. इस पोल में बताया गया- हमास की परिवर्तन और सुधार सूची को 34 प्रतिशत लाभ मिलेगा, फ़तह को 38 प्रतिशत और 2006 के चुनाव में प्रतिभाग करने वाली अन्य सूचियों को कुल 8 प्रतिशत लाभ होगा, जबकि 20 प्रतिशत ने अब तक निर्णय नहीं लिया है.

हमास की बढ़ती लोकप्रियता न सिर्फ़ फ़लस्तीनी सत्ता के लिए एक धक्का है बल्कि इज़राइल और अमेरिका के लिए भी है, जो शांति के लिए अब्बास पर भरोसा कर रहे थे.

हमास की बढ़ती लोकप्रियता न सिर्फ़ फ़लस्तीनी सत्ता के लिए एक धक्का है बल्कि इज़राइल और अमेरिका के लिए भी है, जो शांति के लिए अब्बास पर भरोसा कर रहे थे. लेकिन उनकी स्टेटस को या यथा पूर्व स्थिती को बरक़रार रखने की ज़िद और ट्रंप के अधीन फ़लस्तीनी जनआकांक्षाओं को ख़ारिज करने की नीति अब्बास के लिए महंगा और हमास के लिए फ़ायदेमंद साबित हुआ. 

अब, बाइडेन प्रशासन फ़लस्तीनी सत्ता के माध्यम से गाज़ा के लिए पुनर्निर्माण सहायता उपलब्ध करा रहा है, जिसके ज़रिये वो अब्बास की इमेज सुधारकर, पहले की तरह बनाना चाहता है. हालांकि, यह अभी भी साफ़ नहीं है कि इसके लिए अमेरिका कब और किस तरह के राजनीतिक सुलह का दबाव बनाएगा. जितनी जल्दी बातचीत दोबारा शुरू होगी, ये अब्बास के लिए अपनी खोई ज़मीन पाने की कोशिश में उतना ही बेहतर होगा.  

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