अपने विशाल महासागरों की वजह से पृथ्वी को अक्सर ‘नीला संगमरमर’ कहकर पुकारा जाता है. ये महासागर पृथ्वी पर कुल जीवन का 99 फ़ीसदी स्थान मुहैया कराते हैं. इनमें हाईड्रोकार्बन के भरपूर भंडार मौजूद हैं. इतना ही नहीं ये सस्ते और कम ईंधन की खपत करने वाले परिवहन माध्यमों के संचालन के अवसर भी उपलब्ध कराते हैं. महासागर आर्थिक गतिविधियों का एक प्रमुख स्रोत हैं और विश्व की जीडीपी में लगभग 5 फ़ीसदी का योगदान देते हैं. मछली पकड़ने जैसी गतिविधियां खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करती हैं लिहाजा सामाजिक दृष्टि से भी महासागरों की अहम भूमिका है. ये पर्यावरण के लिहाज से भी बेहद महत्वपूर्ण हैं क्योंकि ये महासागर ही जलवायु के प्राथमिक नियामक होते हैं. महासागरों की इन तमाम भूमिकाओं- आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरण से संबंधित- में से किसी एक को दूसरे के मुक़ाबले वरीयता दिए जाने से विकास की एक असंतुलित या एकतरफ़ा व्यवस्था ही उभर कर सामने आएगी. पिछले कुछ सालों में सामुद्रिक संसाधनों की बढ़ती मांग ने महासागर के पारिस्थितिक तंत्र पर दबाव बढ़ाया है. ऐसे में ऊपर बताए गए तीनों परिप्रेक्ष्यों में संतुलन बिठाकर महासागरों का पोषण किए जाने की ज़रूरत है.
इन आवश्यकताओं के जवाब में ‘ब्लू इकोनामी’ (इस शब्दावली का इस्तेमाल पहली बार 2004 में गुंटेर पाउली ने किया था) की परिकल्पना सामने आई है. इसके तहत सतत विकास के लक्ष्य को ध्यान में रखकर पर्यावरण को किसी भी प्रकार से नुकसान पहुंचाए बिना समुद्री संसाधनों पर आधारित अर्थव्यवस्था के ज़रिए सामाजिक-आर्थिक विकास की परिकल्पना की गई है. इस परिकल्पना के तहत महासागरों को विकास के लिए ज़रूरी स्थान के तौर पर देखा जाता है. इसमें संसाधनों के दोहन और संरक्षण में संतुलन पर ज़ोर दिया जाता है. चूंकि प्रकृति की अपनी व्यवस्था में कोई भी ‘बेकार उत्पाद’ नहीं होता है, लिहाजा इसी से प्रभावित होकर ब्लू इकोनामी में सभी प्रजातियों की बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने पर ज़ोर दिया जाता है. इस सिलसिले में एक प्रजाति से लिए बेकार हो चुके पदार्थ को दूसरी प्रजाति के लिए ज़रूरी पोषक तत्व के रूप में तब्दील किया जाता है. ब्लू इकोनामी उत्पादन और उपभोग की स्थानीय प्रणाली पर आधारित है. इसके तहत उन्नतिशील कारोबारी तरीकों को अपनाने की कोशिश की जाती है ताकि संसाधनों तक पहुंच के मामले में समानता लाई जा सके, विकास में सबकी सहभागिता हो और मुनाफ़े में सबको हिस्सा मिले.
सामुद्रिक संसाधनों पर आधारित आर्थिक गतिविधियां सीधे तौर पर संयुक्त राष्ट्र के एसडीजी 14 से जुड़ी हुई हैं. इसके तहत सतत विकास सुनिश्चित करने के लिए महासागरों, समुद्रों और सामुद्रिक संसाधनों के टिकाऊ दोहन पर ज़ोर दिया गया है.
संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 2015 में अपनाया गया सतत विकास एजेंडा 2030 और ब्लू इकोनामी की परिकल्पना आपस में जुड़े हुए हैं. ब्लू इकोनामी के तहत सतत विकास या एसडीजी के 17 लक्ष्यों में से कई पर पहले से ही ध्यान दिया गया है. इसके अंतर्गत ‘एक उत्तरदायी उपभोग और उत्पादन व्यवस्था’ से लेकर ‘पर्यावरण के मोर्चे पर किए जाने वाले कार्य’ तक शामिल हैं. सामुद्रिक संसाधनों पर आधारित आर्थिक गतिविधियां सीधे तौर पर संयुक्त राष्ट्र के एसडीजी 14 से जुड़ी हुई हैं. इसके तहत सतत विकास सुनिश्चित करने के लिए महासागरों, समुद्रों और सामुद्रिक संसाधनों के टिकाऊ दोहन पर ज़ोर दिया गया है.
हालांकि, भारतीय संदर्भ में ये माना जाता है कि ब्लू इकोनामी से संबंधित गतिविधियों के एक बहुत बड़े हिस्से का कोई लेखाजोखा ही नहीं रहता. फिर भी मौजूदा समय में ये देश की अर्थव्यवस्था का 4.1 फ़ीसदी हिस्सा है. इसमें मुख्य तौर पर मछली पालन, खुले समुद्र में तेल निकालने और गहरे समुद्र में खनन जैसी गतिविधियां शामिल हैं. हिंद महासागर क्षेत्र (आईओआर) में प्रचुर मात्रा में प्राकृतिक संसाधन मौजूद हैं. यहां मत्स्य और खनिज के मामले में व्यापक आर्थिक अवसर उपलब्ध हैं. आंकड़ों के हिसाब से देखें तो ये दोनों ही गतिविधियां आर्थिक रूप से सबसे ज़्यादा व्यवहार्य हैं. भारत के पास 20 लाख वर्ग किमी से कुछ ज़्यादा सामुद्रिक स्थान उपलब्ध है. इसमें से अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में अब तक करीब 15 लाख वर्ग किमी क्षेत्र में सामुद्रिक संसाधनों की पड़ताल की जा चुकी है.
भारत के पास दुनिया में सांतवां सबसे लंबा समुद्री तट मौजूद है. इतने बड़े इलाक़े में उपलब्ध संभावनाओं की तलाश में भारत सरकार के मुख्य कार्यक्रम- सागरमाला और मेक इन इंडिया ख़ासतौर से मददगार साबित हो सकते हैं. इस सिलसिले में एसडीजी 14 की मुख्य धारणाओं का पालन भी सुनिश्चित किया जा सकता है. विकास के स्तर, राजनीतिक ढांचे और गहरे जड़ जमाए सांस्कृतिक आचार-विचारों के मामलों में मौजूद विषमताओं के चलते भारत ब्लू इकोनामी की दिशा में किए जा रहे तमाम प्रयासों के प्रति बड़ी चुनौतियों का सामना कर रहा है. इसी वजह से ब्लू इकोनामी के संचालन के लिए एक व्यवस्था की स्थापना की ज़रूरत और बढ़ जाती है. इस व्यवस्था का लक्ष्य सतत विकास हासिल करने के लिए ज़रूरी संतुलन पर बल देना है.
भारत के पास दुनिया में सांतवां सबसे लंबा समुद्री तट मौजूद है. इतने बड़े इलाक़े में उपलब्ध संभावनाओं की तलाश में भारत सरकार के मुख्य कार्यक्रम- सागरमाला और मेक इन इंडिया ख़ासतौर से मददगार साबित हो सकते हैं.
ब्लू इकोनामी को विदेश नीति के स्तर पर जगह देने की ज़रूरत
एकाकी रूप से विभिन्न देशों द्वारा सामुद्रिक संसाधनों के टिकाऊ दोहन के प्रयासों में बहुपक्षीय स्तर पर मदद किया जाना भी ज़रूरी हो जाता है. ब्लू इकोनामी के विकास के मुद्दे को जबतक विदेश नीति के स्तर पर जगह नहीं दी जाएगी तबतक ऐसी परियोजनाएं दुनिया की महासागरीय संपदा के मामले में किसी भी तरह का अहम प्रभाव छोड़ने में पिछड़ती रहेंगी.
हिंद महासागर के इलाक़े की बात करें तो हिंद महासागर तटीय क्षेत्रीय सहयोग संघ (आईओआरए) 2014 से ही अर्थव्यवस्था के कई क्षेत्रों में क्षमता निर्माण के कार्यक्रमों पर अमल करता आ रहा है. इनमें बाक़ी तमाम गतिविधियों के अलावा मत्स्य संसाधनों के टिकाऊ प्रबंधन और विकास, मछली व्यापार, सामुद्रिक स्थान नियोजन, महासागरीय पूर्वानुमान/वेधशाला और नवीकरणीय ऊर्जा शामिल हैं. इन तमाम उपायों को 2017-2021 के लिए घोषित आईओआरए की कार्ययोजना में जोड़ा गया है. इसके तहत सदस्य देशों में ब्लू इकोनामी के विकास को बढ़ावा देने के उपाय किए गए हैं. इसके साथ ही आईओआरए हिंद महासागर ब्लू कार्बन हब का लक्ष्य ब्लू कार्बन इकोसिस्टम के बारे में जानकारी जुटाना और उसको फिर से बहाल करना है. इसके ज़रिए आजीविका के बेहतर उपाय और जलवायु-परिवर्तन से जुड़ी लचीली नीतियां तय करने में मदद मिलेगी. इसी तरह ब्लू इकोनामी बिम्सटेक और आसियान के सदस्य देशों के बीच सहयोग स्थापित करने में केंद्रीय भूमिका निभा रही है. सदस्य देशों की योजना अंतरसरकारी विशेषज्ञ समूह की स्थापना करने की है. ये समूह ब्लू इकोनामी के बारे में कार्ययोजना तय करेगा और इससे जुड़े तमाम पक्षों की बैठकों की मेज़बानी करेगा. इस पूरी कवायद का मकसद इस परिकल्पना की बेहतर समझ विकसित करना और इसके बाद आसानी से अमल में लाने लायक ज़रूरी सूचनाओं से लैस नीतियां बनाना है.
आगे चलकर उत्तरदायी सरकारी ढांचे और विदेश नीति की सुसंगत व्यवस्था की मदद से ब्लू इकोनामीओं के लिए तय की जाने वाली रणनीतियों में तकनीक के प्रयोग का ध्यान रखना होगा. तकनीक में तीव्र गति से परिवर्तन होते हैं, जो कारोबार चलाने और सेवाएं प्रदान करने के मौजूदा तरीकों को पल भर में सिर के बल पलटने की क्षमता रखते हैं. कोविड-19 ने वैश्विक स्तर पर बड़े-बड़े बदलाव ला दिए हैं. ऐसे में ब्लू इकोनामी के विकास के लिए भी एक सुसम्बद्ध रूपरेखा की आवश्यकता है. इसमें तमाम पक्षों के बीच भागीदारी होनी चाहिए ताकि सबके लिए समावेशी प्रगति सुनिश्चित हो सके.
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