Published on Apr 15, 2021 Updated 0 Hours ago

शहरी क्षेत्र की योजनाओं के लिए सीधे वित्तीय सहयोग में वृद्धि का बज़ट में कोई ख़ास संकेत नहीं दिखता है.

2021 के बज़ट में शहरों के लिए क्या है?

कोविड-19 की महामारी ने भारत के शहरों पर बहुत ही बुरा असर डाला है. आज भारत की एक तिहाई आबादी शहरों में ही रहती है और देश का दो तिहाई आर्थिक उत्पादन शहरों में ही होता है. महानगर, जो हमारी अर्थव्यवस्था के बड़े केंद्र बिंदु और वैश्विक व्यापार के द्वार हैं, वो इस महामारी के बड़े केंद्र बन गए. पिछले वर्ष महामारी रोकने के लिए लगे लॉकडाउन के दौरान करोड़ों लोगों की नौकरियां चली गईं. इसके बाद महानगरों में रहने वाले बाहरी मज़दूरों का बड़े स्तर पर ग्रामीण क्षेत्रों की ओर पलायन देखने को मिला था. कोविड-19 ने शहरों में सामाजिक भेदभाव की खाई को और भी चौड़ा कर दिया है. इस दौरान हमारे शहरों की व्यवस्था में गहरी जड़ें जमाए बैठी सामाजिक आर्थिक असमानताएं खुलकर सामने  गईं. हम बरसों से इन असमानताओं की अनदेखी करते  रहे थे, फिर चाहे वो पानी और साफसफाई के साधनों तक पहुंच हो, स्वास्थ्य सेवाएं हों या डिजिटल कनेक्टिविटी, महामारी ने समाज के अलग अलग वर्गों की खाई को हमारे सामने खोलकर रख दिया.

अब ज़रूरी ये है कि हम अपने महानगरों में गतिविधियों को दोबारा तेज़ गति वाली पटरी पर लौटाएं. ये बात दस लाख से अधिक आबादी वाले शहरों पर ख़ास तौर से लागू होती है. शहरों में गतिविधियां बढ़ेंगी, तो रोज़गार के नए मौक़े पैदा होंगे. इससे हम भारत में तेज़ी से बढ़ रहे युवाओं की रोज़ीरोटी संबंधी आकांक्षाएं पूरी कर सकेंगे. सवाल ये है कि महामारी के बाद आया पहला पूर्णकालिक बज़ट, हमारे शहरों की अर्थव्यवस्था को दोबारा चालू करने में क्या मदद करेगा? क्या हम बज़ट प्रावधानों की मदद से बेहतर, स्वस्थ और अधिक मानवीय शहरों का निर्माण कर सकेंगे? बज़ट का विश्लेषण करें, तो इन सवालों के जवाब की मिलीजुली तस्वीर बनती है. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने वित्त वर्ष 2021-22 के केंद्रीय बज़ट में शहरों के मूलभूत ढांचे से जुड़े कई समस्याओं का समाधान तलाशने की कोशिश की है. केंद्रीय बज़ट में शहरी विकास के लिए आवंटित रक़म जो वित्त वर्ष 2020-21 में 50,040 करोड़ थी, वो इस साल के बज़ट में बढ़कर 54,581 करोड़ हो गई है. यानी शहरों के विकास के लिए बज़ट आवंटन लगभग 9.07 प्रतिशत बढ़ाया गया है. इसकी तुलना में शहरों के विकास के लिए केंद्र सरकार जो रक़म राज्यों के खाते में डालती है, वो इस साल भी वित्तीय वर्ष 2020-21 के बराबर यानी 24,845 करोड़ रुपए रहा है. इसके अलावा शहरी स्थानीय निकायों (ULBs) को केंद्र सरकार से मिलने वाली वित्तीय मदद में कमी की गई है. वित्त वर्ष  2019-20  में ये रक़म 25,098 करोड़ रुपए थी, तो इस साल के बज़ट में इस मद में केवल 22,114 करोड़ रुपयों का प्रावधान किया गया है. यानी इसमें 11.89 फ़ीसद की कटौती की गई है.

केंद्रीय बज़ट में शहरी विकास के लिए आवंटित रक़म जो वित्त वर्ष 2020-21 में 50,040 करोड़ थी, वो इस साल के बज़ट में बढ़कर 54,581 करोड़ हो गई है. 

वित्त मंत्री के भाषण में जिन मुद्दों का ज़िक्र

वित्त मंत्री ने अपने भाषण में शहरों से जुड़े जिन मुद्दों का ज़िक्र किया था, उन्हें मोटे तौर पर सफाई, आवाजाही और रिहाइश के तीन वर्गों में बांटा जा सकता है. वित्तीय वर्ष 2021-22 के लिए आर्थिक सर्वेक्षण और 15वें वित्त आयोग की रिपोर्ट ने कोविड महामारी के दौर में शहरों में सैनिटेशन और पानी की सेवाओं के बारे में ज़ोर देने की बात कही है. चूंकि साफसफाई इस सरकार की प्राथमिकताओं के केंद्र में है, तो बज़ट में स्वच्छ भारत मिशन के बारे में बज़ट में नए प्रावधान किए गए हैं. बज़ट भाषण में स्वच्छ भारत मिशन 2.0 अभियान की शुरुआत की घोषणा करते हुए, वित्त मंत्री ने कहा कि इस योजना का लक्ष्य संपूर्ण मल प्रबंधन और गंदे पानी का ट्रीटमेंट, कचरे को उसके स्रोत से ही वर्गीकृत करने, सिंगलयूज़ प्लास्टिक का प्रयोग कम करने, निर्माण क्षेत्र और तोड़फोड़ से पैदा होने वाले कचरे के प्रबंधन और कचरा जमा करने वाले ठिकानों के जैविक पुनरुत्थान पर ज़ोर दिया जाएगा. स्वच्छ भारत मिशन का दूसरा चरण अगले पांच वर्षों में चलाया जाएगा. इसके लिए 1.41 लाख करोड़ रुपए के बज़ट का प्रावधान किया गया है. इसके अलावा, दस लाख से अधिक आबादी वाले देश के 42 बड़े शहरों में वायु प्रदूषण से निपटने के लिए 2,217 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया है. इसके साथ साथ देश के 4,378 शहरी निकायों में अगले पांच साल में हर घर तक पाइप से पानी पहुंचाने का लक्ष्य हासिल करने के लिए वित्त मंत्री ने जल जीवन मिशन (शहरी) कार्यक्रम की शुरुआत की घोषणा की. इस योजना के लिए अगले पांच वर्षों के दौरान 2.87 लाख करोड़ रुपयों का प्रावधान किया गया है.

स्वच्छ और हरित सार्वजनिक परिवहन प्रणाली पर ज़ोर

शहरों में परिवहन सेवाओं के विकास के लिए वित्त मंत्री ने बस और रेल आधारित सेवाओं का ज़िक्र किया. उन्होंने बज़ट भाषण में बताया कि इस समय देश में 702 किलोमीटर का मेट्रो रेल नेटवर्क है. इसके अलावा देश के 27 शहरों में मेट्रो की 1,016 किलोमीटर लाइन बिछाने पर काम चल रहा है. बज़ट में घोषणा की गई कि रेल आधारित सार्वजनिक परिवहन सेवा को दूसरी पायदान के शहरों और टियर-1 शहरों के बाहरी इलाक़ों तक भी पहुंचाया जाएगा. इसके लिए प्राथमिक रूप से मेट्रोलाइट और मेट्रोनियो सेवाएं तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा. आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय द्वारा जारी दिशानिर्देशों के अनुसार, मेट्रोलाइट ट्रेनों में तीन कोच होंगे और इनसे एक बार में 300 यात्री सफर कर सकेंगे. मेट्रोलाइट की अधिकतम रफ़्तार 60 किलोमीटर प्रति घंटे होगी. ये ट्रेनें 750 वोल्ट की डायरेक्ट करेंट वाली ओवरहेड लाइनों के ज़रिए चलाई जाएंगी. इसके अलावा मेट्रोलाइट के लिए 1,435 मिलीमीटर चौड़ी मानक गेज वाली रेलवे लाइनें बिछाई जाएंगी. मेट्रोलाइट ट्रेनों की लागत, पारंपरिक मेट्रो की तलना में केवल 40 प्रतिशत होती है और इनका रखरखाव भी सस्ता होता है. मेट्रोनियो ट्रेन, तो मेट्रोलाइट से भी सस्ती होती हैं. इन्हें सड़कों के स्लैब पर चलाया जा सकता है. इनमें रबर के टायर लगे होते हैं. हल्की ट्रेन सेवाओं को शहरी परिवहन सेवा का हिस्सा बनाने से स्वच्छ और हरित सार्वजनिक परिवहन प्रणाली को सस्ती लागत से चलाया जा सकेगा. बज़ट में ये घोषणा भी की गई कि केंद्र सरकार, कोच्चि (1,957 करोड़ रुपए), चेन्नई (63,246 करोड़ रुपए), बैंगलुरू (14,788 करोड़ रुपए), नागपुर (59,575 करोड़ रुपए और नासिक (2092 करोड़ रुपए) में मेट्रो सेवाओं के विस्तार के लिए अपने हिस्से की रक़म देगी.

हल्की ट्रेन सेवाओं को शहरी परिवहन सेवा का हिस्सा बनाने से स्वच्छ और हरित सार्वजनिक परिवहन प्रणाली को सस्ती लागत से चलाया जा सकेगा.

वित्त मंत्री ने शहरी बस सेवाओं के विस्तार के लिए भी एक योजना की घोषणा की. इसके लिए निजी और सार्वजनिक क्षेत्र की भागीदारी का नया मॉडल अपनाया जाएगा. इस योजना के अंतर्गत शहरी बस सेवाओं में 20 हज़ार नई बसें शामिल की जाएंगी; इस मक़सद से बज़ट में 18 हज़ार करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है. लेकिन, ‘निजी और सार्वजनिक क्षेत्र की भागीदारी वाला ये नया मॉडल कौन सा आकार लेगा और इससे सार्वजनिक क्षेत्र की बस परिवहन सेवाओं में कौन सा बदलाव आएगा, अभी ये स्पष्ट होना बाक़ी है.

रिहाइश के मोर्चे पर सरकार ने सस्ती दरों पर किराए के मकान उपलब्ध कराने की योजना की घोषणा की थी. ये योजना प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY) के तहत चलाई जाएगी. इसमें भी सार्वजनिक क्षेत्र के साथ प्राइवेट सेक्टर को भागीदार बनाया जाएगा. इस योजना को लागू करने के लिए मई 2020 में घोषित किए गए आर्थिक स्टिमुलस पैकेज की मदद ली जाएगी. 2021-22 के बज़ट में अप्रत्यक्ष उपायों से सस्ती रिहाइशी योजनाओं को बढ़ावा देने की बात कही गई है. इसके लिए ऐसी योजनाएं चलाने वालों को टैक्स में रियायतें देने का प्रावधान किया गया है. इसी तरह से व्यक्तिगत घर ख़रीदारों को इनकम टैक्स में 1.5 लाख रुपए की छूट देने की योजना मार्च 2022 तक बढ़ा दी गई है.

डिजिटलीकरण को नई गति

इस महामारी के चलते डिजिटलीकरण को नई गति मिली है. ऐसे मे वित्त मंत्री से ये उम्मीद की गई थी कि वो NDA सरकार की महत्वाकांक्षी योजना- स्मार्ट सिटी मिशन-के लिए और फंड का एलान करेंगी. इसके अलावा, स्मार्ट सिटी मिशन के तहत विकसित किए गए एकीकृत कमांड और कंट्रोल सेंटर महामारी के ख़िलाफ़ हमारी लड़ाई में काफ़ी मददगार साबित हो रहे हैं. इनके माध्यम से वायरस के प्रकोप, अस्पतालों में बेड की उपलब्धता और आपातकालीन मेडिकल सहायता को उचित व्यक्ति तक पहुंचाने में सहयोग मिल रहा है. लेकिन, ये प्रतिष्ठित योजना भी 2021-22 के बज़ट में अतिरिक्त फंड पाने से वंचित रह गई. इसी तरह, सरकार के AMRUT मिशन के लिए   फंड का आवंटन भी 2020-21 के बज़ट प्रावधान के बराबर ही रखा गया है.

स्मार्ट सिटी मिशन और अमृत मिशन, दोनों योजनाओं को एनडीए सरकार ने 2015 में शुरू किया था. इससे ये उम्मीद जगी थी कि डिजिटल तकनीक और प्रबंधन की सही नीतियों की मदद से जल्द ही भारत के शहर भी अंतरराष्ट्रीय मानकों के बराबर पहुंच जाएंगे. लेकिन, शुरुआत के पांच साल बाद आज भी ये योजनाएं फंड के कम इस्तेमाल की चुनौती से जूझ रही हैं. वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिए संशोधित बज़ट में स्मार्ट सिटी के लिए फंड के आवंटन में भारी कटौती करके पहले के 6,450 करोड़ रुपए से घटाकर 3,050 करोड़ रुपए कर दिया गया था. वहीं, अमृत योजना के अंतर्गत आवंटित कुल 7,300 करोड़ रुपयों में से 850 करोड़ रुपए की कटौती की गई थी. इससे पहले साल के बज़ट में दोनों योजनाओं के लिए बराबर की रक़म यानी 6,450 करोड़ रुपए स्मार्ट सिटी और 7,300 करोड़ रुपए अमृत मिशन के लिए आवंटित किए गए थे.

ये उम्मीद की जा रही थी कि बज़ट में सरकार, महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोज़गार गारंटी योजना (MNREGA) की तर्ज पर शहरी रोज़गार गारंटी योजना की शुरुआत कर सकती है, जिससे कि शहरों में रहने वाले ग़रीब लोगों की मुश्किलें कुछ कम की जा सकें. लेकिन, केंद्रीय बज़ट में ऐसा कोई एलान नहीं किया गया.

कोविड-19 के चलते लगाए गए लॉकडाउन का सबसे बुरा असर शहरों में काम करने वाले असंगठित क्षेत्र के कामगारों पर पड़ा था. ऐसे में ये उम्मीद की जा रही थी कि बज़ट में सरकार, महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोज़गार गारंटी योजना (MNREGA) की तर्ज पर शहरी रोज़गार गारंटी योजना की शुरुआत कर सकती है, जिससे कि शहरों में रहने वाले ग़रीब लोगों की मुश्किलें कुछ कम की जा सकें. लेकिन, केंद्रीय बज़ट में ऐसा कोई एलान नहीं किया गया.

बज़ट में शहरों में चलाई जा रही ग़रीबी उन्मूलन योजनादीनदयाल अंत्योदय योजना राष्ट्रीय शहरी रोज़गार मिशन (DAY-NULM) के लिए भी अतिरिक्त फंड का प्रावधान नहीं किया गया. इस योजना के अंतर्गत अलग अलग राज्यों में दर्ज कराए गए स्वयं सहायता समूहों ने 6.80 करोड़ मास्क और 2,84,000 लीटर हैंड सैनिटाइज़र बनाकर कोविड-19 महामारी से लड़ने में काफ़ी मदद की थी. इसके अलावा इस मिशन से क़रीब 21 लाख लोगों को रोज़गार मिला है. लेकिन, 2021-22 के बज़ट में दीनदयाल अंत्योदय योजना के लिए केवल 795 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैंयही रक़म वित्त वर्ष 2019-20 के बज़ट में भी इस योजना को दी गई थी. इसके साथ साथ प्रधानमंत्री स्वनिधि (प्रधानमंत्री स्ट्रीट वेंडर आत्मनिर्भर निधि) के लिए 200 करोड़ रुपए और निर्माण कौशल विकास योजना के लिए 100 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है. ग़रीबी उन्मूलन की इन योजनाओं के लिए बज़ट में और फंड का प्रावधान किए जाने से शहर में रह रहे ग़रीब लोगों की रोज़ीरोटी से जुड़ी चुनौतियां, इस मुश्किल दौर में कम की जा सकती थीं.

दीनदयाल अंत्योदय योजना और प्रधानमंत्री स्वनिधि और निर्माण कौशल विकास योजनाओं के लिए कुल बज़ट आवंटन को जोड़ दें तो ये रक़म मात्र 1095 करोड़ रुपए बैठती है, जो ग्रामीण क्षेत्र की ग़रीबी उन्मूलन योजनाओं का महज़ 10 प्रतिशत ही है. ग्रामीण रोज़गार योजनाआजीविका के लिए वित्तीय वर्ष 2019-20 में 10,005 करोड़ रुपए दिए गए थे. वहीं, इस साल के बज़ट में इस योजना को 14,473 करोड़ रुपयों का प्रावधान किया गया है. यानी पिछले साल की तुलना में इसके बज़ट में 44.65 प्रतिशत की भारी बढ़ोत्तरी की गई है. हालांकि, भारत के शहरों में अब ग़रीबी तेज़ी से पांव पसार रही है. लेकिन, ऐसा लगता है कि नीति निर्माताओं को इस बदलाव का एहसास बहुत सीमित स्तर पर ही है.

कुल मिलाकर कहें, तो इस साल के बज़ट में शहरी बुनियादी ढांचे के विकास के लिए आपूर्ति पर ज़्यादा ज़ोर दिया गया है. 

कुल मिलाकर कहें, तो इस साल के बज़ट में शहरी बुनियादी ढांचे के विकास के लिए आपूर्ति पर ज़्यादा ज़ोर दिया गया है. वहीं, शहरों में विकास की बड़ी योजनाओं के लिए सरकार निजी क्षेत्र की भागीदारी पर ज़ोर दे रही है. मेट्रो रेल सेवाओं को छोड़ दें, तो शहरी क्षेत्र की योजनाओं के लिए प्रत्यक्ष बज़ट आवंटन में कोई ख़ास वृद्धि इस बज़ट में नहीं की गई है.

हालांकि, शहरी विकास के लिए पूंजी का प्रवाह आने वाले समय में बढ़ सकता है. वित्त मंत्री ने बज़ट के साथ-साथ संसद में पंद्रहवें वित्त आयोग की रिपोर्ट को भी संसद में पेश किया था. 15वें वित्त आयोग ने शहरी स्थानीय निकायों के लिए अगले पांच वर्षों में 1.21 लाख करोड़ रुपए देने का प्रावधान रखा है. जबकि 14वें वित्त आयोग की रिपोर्ट में इस मद में केवल 87,000 करोड़ रुपए ही रखे गए थे. भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए दस लाख से अधिक आबादी वाले शहरों की अहमियत को स्वीकार करते हुए, पंद्रहवें वित्त आयोग ने 38,196 करोड़ रुपए 5 करोड़ से अधिक आबादी वाले शहरों के अच्छे प्रदर्शन के प्रोत्साहन के लिए रखे हैं. इसी तरह छोटे स्थानीय निकायों के लिए बुनियादी मदद की व्यवस्था भी की गई है. इसके साथ साथ. पंद्रहवें वित्त आयोग ने शहरी एवं ग्रामीण स्थानीय निकायों के लिए 70,051 करोड़ रुपयों का प्रावधान इसलिए किया है, जिससे वो अपने यहां सार्वजनिक स्वास्थ्य के मूलभूत ढांचे एवं प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों का विकास कर सकें. अगर वित्त आयोग के इन सभी सुझावों को सही तरीक़े से लागू किया गया, तो इनसे भारतीय शहरों की वित्तीय स्थिति में काफ़ी सुधार आ सकता है. इसके अलावा भारत के शहरों में अमीरों और ग़रीबों के लिए स्वास्थ्य सेवाओं के अंतर को भी कम किया जा सकेगा. लेकिन, शहरी स्थानीय निकाय इन अतिरिक्त फंड का अधिकतम उपयोग कर सकें, इसके लिए उनकी तकनीकी और प्रबंधन संबंधी क्षमताओं को सुधारने पर लगातार ध्यान देने की ज़रूरत होगी.

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