Author : Ramanath Jha

Published on Sep 03, 2022 Updated 0 Hours ago

2011 के दिल्ली नगर निगम (संशोधन) अधिनियम ने एमसीडी को उत्तरी दिल्ली नगर निगम, दक्षिणी दिल्ली नगर निगम और पूर्वी दिल्ली नगर निगम में विभाजित कर दिया गया, जबकि नई दिल्ली नगर परिषद और दिल्ली छावनी बोर्ड को अछूता छोड़ दिया गया.

Delhi Municipal Corporation: दिल्ली में कैसे हुआ नगर निगमों का विभाजन, क्या कहता है अधिनियम?

Delhi Municipal Corporation: साल 2011 से पहले राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (Delhi NCR) में तीन नगरपालिका संस्थाओं में से एक एमसीडी (MCD-Delhi Municipal Corporation) हुआ करती थी, जो 1,397.3 वर्ग किमी के क्षेत्र और 11,007,835 की आबादी को कवर करती थी. [ix] दूसरे दो निकाय नई दिल्ली नगर परिषद थे, जिनका क्षेत्रफल 42.7 वर्ग किमी था और 257,803, [x] की आबादी और दिल्ली छावनी बोर्ड, 33.92 वर्ग किमी के क्षेत्र और 116,352 की आबादी के साथ यह अस्तित्व में था. [xi] 2011 के दिल्ली नगर निगम (संशोधन) अधिनियम (Delhi Municipal Corporation) ने एमसीडी को उत्तरी दिल्ली नगर निगम, दक्षिणी दिल्ली नगर निगम और पूर्वी दिल्ली नगर निगम में विभाजित कर दिया गया, जबकि नई दिल्ली नगर परिषद और दिल्ली छावनी बोर्ड को अछूता छोड़ दिया गया.

बताया जाता है कि दिल्ली में ज़रूरी नागरिक सेवाओं की बिगड़ती स्थिति को लेकर ही एमसीडी (Delhi Municipal Corporation) का तीन हिस्सों में विभाजन किया गया था. सालों से कई समितियां, जैसे कि बालकृष्णन समिति (1989), [xii] ने इस मुद्दे का अध्ययन किया है और यह सलाह दी है कि अखंड एमसीडी को ख़त्म कर इसे कई कॉम्पैक्ट नगर पालिकाओं में बदल दिया जाना चाहिए. [xiii] वीरेंद्र प्रकाश समिति (2001) [xiv] ने सिफारिश की कि एमसीडी को चार निगमों और दो परिषदों में विभाजित किया जाना चाहिए, जबकि मंत्रियों के समूह ने इसे पांच में विभाजित करने का सुझाव दिया था. [xv] हालांकि समितियां विभाजन से बनने वाले निगमों की संख्या पर अलग राय रखती थीं लेकिन एमसीडी को विभाजित करने की उनकी सिफारिशें इसकी सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए थीं.

दिल्ली में ज़रूरी नागरिक सेवाओं की बिगड़ती स्थिति को लेकर ही एमसीडी का तीन हिस्सों में विभाजन किया गया था. सालों से कई समितियां, जैसे कि बालकृष्णन समिति (1989), [xii] ने इस मुद्दे का अध्ययन किया है और यह सलाह दी है कि अखंड एमसीडी को ख़त्म कर इसे कई कॉम्पैक्ट नगर पालिकाओं में बदल दिया जाना चाहिए.

2011 के अधिनियम के साथ जो फाइनेंसियल मेमोरेंडम शामिल है उसके मुताबिक, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के कॉनसोलिडेटेड फंड से किसी भी तरह की अतिरिक्त फंडिंग की ज़रूरत नहीं थी. [xvi] इसी तरह किसी नए भवन, अन्य बुनियादी ढांचा और कर्मचारियों की ज़रूरत भी नहीं थी, सिर्फ 2011 कानून की धारा 89 के तहत आयुक्तों और अन्य वैधानिक भूमिकाओं (जैसे नगरपालिका इंजीनियर, स्वास्थ्य अधिकारी, शिक्षा अधिकारी, मुख्य लेखाकार, नगरपालिका सचिव और मुख्य लेखा परीक्षक) के लिए लोगों की ज़रूरत थी. [xvii]

एमसीडी के विभाजन के एक दशक के बाद 2022 के अधिनियम ने तीन हिस्सों में इसे बांटने के ख़िलाफ़ तर्क दिए और विलय के कारणों को बताया. इस अधिनियम में अपने आकलन में एमसीडी को विभाजित करने का मुख्य उद्देश्य तीन कॉम्पैक्ट नगरपालिका संस्थाओं के ज़रिए नागरिक सेवाओं के वितरण में सुधार करना बताया था, [xviii] लेकिन यह लक्ष्य हासिल नहीं किया जा सका.  इसने यह स्पष्ट किया कि दिल्ली के नगरपालिका के कामकाज का विभाजन “क्षेत्रीय विभाजनों और राजस्व-सृजन क्षमता को लेकर असमान था. परिणामस्वरूप, तीनों निगमों के लिए उनके दायित्वों की तुलना में उपलब्ध संसाधनों में बहुत बड़ा अंतर था”.[xix] इसके अलावा यह अंतर समय के साथ लगातार बढ़ता रहा और तीनों निगमों को वित्तीय समस्याओं का सामना करना पड़ा, जो उन्हें वेतन देने और नगरपालिका कर्मचारियों को सेवानिवृत्ति लाभ मुहैया कराने सहित अपने संविदात्मक और वैधानिक दायित्वों को पूरा करने में रुकावट पैदा करते थे, जिससे नागरिक सेवाओं के रख-रखाव का काम चौपट होता गया. [xx]

इसका नतीजा यह हुआ कि  2022 अधिनियम ने (i) तीनों नगर निगमों को एक सिंगल, एकीकृत और अच्छी तरह से सुसज्जित इकाई में विलय कर दिया; (ii) समन्वित और रणनीतिक योजना और संसाधनों के बेहतर इस्तेमाल के लिए एक मज़बूत तंत्र सुनिश्चित करना; और (iii) अधिक पारदर्शिता, बेहतर शासन और नागरिक सेवाओं की बेहतर डिलीवरी लाने पर जोर दिया. ख़ास तौर से राष्ट्रीय राजधानी के रूप में दिल्ली की स्थिति को देखते हुए, अधिनियम में कहा गया है कि “इसे वित्तीय कठिनाई और कार्यात्मक अनिश्चितताओं के अधीन नहीं किया जा सकता है”।

नगर निगमों के विलय को समझना

विलय आमतौर पर दो प्रकार के हो सकते हैं. पहला, वैसे सीमावर्ती गांवों का निगम निकायों में विलय जहां तेजी से शहरीकरण हुआ है. ऐसे शहरी कस्बाई क्षेत्रों का एकीकरण, शहरीकरण की प्रक्रिया का ही एक हिस्सा है, [xxii] ख़ासकर तब जबकि ऐसे इलाक़ों में ग्रामीण कानून शहरी विकास को स्थायी रूप से सपोर्ट नहीं कर सकते. इन क्षेत्रों को नगर निकायों में शामिल करने का प्राथमिक उद्देश्य आसपास के गांवों में पड़ोसी नगरपालिका के समान ही सेवाएं देना होता है, जिससे पूरा कस्बा एक समान इकाई के रूप में उभर सके.

गांव वालों को यह डर सताने लगा कि बिना सेवाओं के बेहतर वितरण और केंद्रीकरण के उन्हें अतिरिक्त टैक्स देना पड़ सकता है; गांव के नेताओं को ऐसे विलय उनके राजनीतिक वर्चस्व में कमी की वजह लगने लगी और यूएलबी के कंपोनेंट पर पकड़ कमज़ोर होने की वज़ह दिखने लगी; इसके साथ ही नगर निगम प्रशासन को यह चिंता सताने लगी कि बिना राजस्व के उन पर ज़िम्मेदारी बढ़ सकती है;

पिछले दशक में कई शहर – जैसे उत्तर प्रदेश में प्रयागराज; आंध्र प्रदेश में मंगलगिरी; [xxiii] गुजरात में अहमदाबाद, वडोदरा और सूरत; तमिलनाडु में कोयंबटूर और चेन्नई; और महाराष्ट्र में पुणे और सतारा – ने गांवों को अपनी नगरपालिका सीमाओं में शामिल किया है. [xxiv] हालांकि ये विलय आम तौर पर लोकप्रिय नहीं थे और कभी-कभी ग्रामीणों, गांव के नेताओं और यहां तक कि नगरपालिका प्रशासन और नगर पार्षदों के विरोध का भी इसे सामना करना पड़ता था. [xxv] गांव वालों को यह डर सताने लगा कि बिना सेवाओं के बेहतर वितरण और केंद्रीकरण के उन्हें अतिरिक्त टैक्स देना पड़ सकता है; गांव के नेताओं को ऐसे विलय उनके राजनीतिक वर्चस्व में कमी की वजह लगने लगी और यूएलबी के कंपोनेंट पर पकड़ कमज़ोर होने की वज़ह दिखने लगी; इसके साथ ही नगर निगम प्रशासन को यह चिंता सताने लगी कि बिना राजस्व के उन पर ज़िम्मेदारी बढ़ सकती है; यहां तक कि पार्षदों को नगरपालिका के वित्त का एक छोटा हिस्सा ही मिलने का डर सताने लगा क्योंकि इसी फंड को उन्हें विलय किए गए गांवों से नए बनाए गए वार्डों के साथ साझा करना पड़ता. हालांकि इस तरह के विलय में एकीकृत शहरी नियोजन और स्थिरता की ज़रूरत को आख़िरकार बल मिला.

दूसरे प्रकार का विलय निकटवर्ती नगरपालिका संस्थाओं का एक बड़ी एकल नगरपालिका में शामिल होना होता है (जैसा कि एमसीडी के मामले में). भारत में ऐसे विलय के कुछ उदाहरण मौज़ूद हैं. मिसाल के तौर पर, साल 2006 में 10 नगर परिषद – वेजालपुर, मेमनगर, चांदलोदिया, शारकेज-ओकाफ, काली, जोधपुर, घाटलोदिया, वस्त्रल, रानिप और रामोल – को गुजरात में अहमदाबाद नगर निगम (एएमसी) के साथ मिला दिया गया था और साल 2020 में, बोपल घुमा की नगर पालिका को एएमसी में मिला दिया गया था. [xxvii] उदाहरणों में साल 2010 में कोयंबटूर नगर निगम (तमिलनाडु) में तीन नगर पालिकाओं का विलय शामिल है ;[xxviii] पेथापुर नगरपालिका का 2020 में गांधीनगर नगर निगम (गुजरात) के साथ; और 2021 में पुणे महानगर क्षेत्र विकास प्राधिकरण (महाराष्ट्र) के साथ पिंपरी चिंचवाड़ न्यू टाउन डेवलपमेंट अथॉरिटी का विलय शामिल है. [xxix] अप्रैल 2022 में, पश्चिम बंगाल में बाली नगर पालिका को हावड़ा नगर निगम के साथ विलय कर दिया गया ताकि बेहतर नागरिक सुविधाएं, तेजी से विकास कार्य वहां सुनिश्चित किया जा सके और विश्व बैंक जैसी अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों से धन प्राप्त किया जा सके. [xxx]

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नोट: यह लेख RAMANATH JHA द्वारा लिखे गये ओआरएफ़ हिंदी के लॉन्ग फॉर्म सामयिक रिसर्च पेपर “#Urban Planning: दिल्ली की तीन नगरपालिका निकायों के विलय और उसके परिणाम का निष्पक्ष विश्लेषण” से लिया गया एक छोटा सा हिस्सा है. इस पेपर को विस्तार से पढ़ने के लिये आगे दिये गये occasional paper के हिंदी लिंक को क्लिक करें, जिसका शीर्षक है- #Urban Planning: दिल्ली की तीन नगरपालिका निकायों के विलय और उसके परिणाम का निष्पक्ष विश्लेषण

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