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चीन हमेशा से ये मानता रहा है कि दक्षिणी चीन सागर का मसला बहुपक्षीय नहीं है. बल्कि ये उसके और आसियान के अन्य सदस्य देशों के साथ अलग अलग द्विपक्षीय विवाद है. वहीं, ARF में सदस्य देश खुलकर अपनी चिंताएं व्यक्त करते हैं.
आसियान क्षेत्रीय मंच (ARF) की 28वीं वार्षिक मंत्रि-स्तरीय बैठक 6 अगस्त 2021 को आयोजित की गई. इस बैठक की अध्यक्षता ब्रुनेई ने की थी. बैठक के बाद मंच ने 35 पैराग्राफ का एक विस्तृत घोषणापत्र भी जारी किया गया. मंच की वर्चुअल बैठक में शामिल भारतीय प्रतिनिधि मंडल की अगुवाई नए विदेश राज्यमंत्री डॉक्टर राजकुमार रंजन सिंह कर रहे थे. 9 अगस्त को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण के अनुसार, विदेश राज्य मंत्री ने भी समुद्री सुरक्षा के क्षेत्र में सहयोग. हिंद प्रशांत क्षेत्र, आतंकवाद के ख़तरे, समुद्र से संबंधित संयुक्त राष्ट्र के नियम-क़ानून (UNCLOS) और साइबर सुरक्षा के विषयों पर बात की.
2021 में भारत ने संयुक्त राष्ट्र के समुद्री क़ानूनों और नियमों को लागू करने के तौर-तरीक़ों पर आसियान क्षेत्रीय मंच की कार्यशाला की सह-अध्यक्षता की थी. भारत 2021-22 के दौरान, इंडोनेशिया और अमेरिका के साथ मिलकर समुद्री सुरक्षा पर आसियान क्षेत्रीय मंच की अंतर सत्र बैठक की सह-अध्यक्षता भी करेगा. इसके अलावा भारत, फिलीपींस, पापुआ न्यू गिनी और अमेरिका के साथ मिलकर अंतरराष्ट्रीय पोत और बंदरगाह सुविधा सुरक्षा कोड (ISPS Code) पर भी एक कार्यशाला का आयोजन करने वाला है.
ARF की कोशिश सकारात्मक संवाद को बढ़ावा देने और साझा हितों और चिंताओं से जुड़े राजनीतिक और सुरक्षा संबंधी मुद्दों पर सलाह मशविरा करने की है; और इसका लक्ष्य एशिया प्रशांत क्षेत्र में आपसी विश्वास को बढ़ावा देने के साथ साथ रक्षात्मक कूटनीति को मौक़ा देने की कोशिशों में अहम योगदान देना भी है.
हाल के वर्षों में भारत ने आसियान क्षेत्रीय मंच (ARF) को लेकर अपनी दिलचस्पी दोबारा जगाई है. ये समुद्री सुरक्षा को लेकर भारत की बढ़ती दिलचस्पी के हिसाब से ठीक भी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अपने संबोधन में जिन बातों का ज़िक्र किया था, उनमें से कई ऐसी हैं जिन्हें केंद्र में रखकर भारत, आसियान क्षेत्रीय मंच के बीच सहयोग बढ़ाने पर ध्यान दे रहा है. ये विषय इस क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा को चीन से पैदा हुए ख़तरे से जुड़े हुए हैं.
आसियान में एआरएफ सबसे पुराना और सबसे बड़ा केंद्रीय संस्थान है. इसकी स्थापना 1993 में हुई थी और इसकी पहली बैठक 1994 में हुई थी. आसियान क्षेत्रीय मंच में 27 सदस्य देश हैं. इनमें आसियान के 10 देश, दस संवाद सहयोगी देश और सात अन्य राष्ट्र शामिल हैं.
आसियान क्षेत्रीय मंच की शुरुआत शीत युद्ध के ख़ात्मे के तुरंत बाद हुई थी और इसमें वो सभी देश शामिल थे, जो आसियान से संवाद कर रहे थे. इसके चलते, दक्षिण एशिया से बांग्लादेश, श्रीलंका और पाकिस्तान शामिल हुए. वहीं, आसियान में शामिल होने की आकांक्षा रखने वाले पापुआ न्यू गिनी और तिमोर लेस्ट भी इसका हिस्सा बने; मंगोलिया और उत्तर कोरिया भी इसके सदस्य हैं. पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन से इतर जो अन्य देश इसका हिस्सा हैं, उनमें कनाडा और यूरोपीय संघ शामिल हैं. CLMV देश यानी कंबोडिया, लाओस, म्यांमार और वियतनाम, आसियान का हिस्सा तब बने जब ARF की शुरुआत हो चुकी थी.
‘ARF की कोशिश सकारात्मक संवाद को बढ़ावा देने और साझा हितों और चिंताओं से जुड़े राजनीतिक और सुरक्षा संबंधी मुद्दों पर सलाह मशविरा करने की है; और इसका लक्ष्य एशिया प्रशांत क्षेत्र में आपसी विश्वास को बढ़ावा देने के साथ साथ रक्षात्मक कूटनीति को मौक़ा देने की कोशिशों में अहम योगदान देना भी है.’ 2004 में जब ARF ने अपनी स्थापना के दस बरस पूरे कर लिए थे, तब 2005 में पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन की शुरुआत की तैयारी हो रही थी और उसके साथ साथ संवाद साझीदारों के साथ आसियान+1 के शिखर सम्मेलन भी शुरू हो चुके थे. भारत 1992 में आसियान का क्षेत्रीय सहयोगी बना था और 1996 में वो संवाद साझीदार बन गया था. 2002 में आसियान और भारत के बीच शिखर सम्मेलन के स्तर की साझेदारी की शुरुआत हुई और 1997 में जापान, कोरिया और चीन के साथ आसियान+3 सम्मेलन की शुरुआत हुई थी.
ARF की हालिया बैठक ने दिखाया है कि महामारी और ग़ैर-पारंपरिक ख़तरों के अलावा ARF मुख्य रूप से आसियान को परमाणु हथियारों से मुक्त रहने पर ज़ोर देता रहा है. इसी वजह से ये मंच उत्तर कोरिया की एटमी महत्वाकांक्षाओं और दक्षिणी चीन सागर के हालात को लेकर चिंतित है.
ARF विदेश मंत्रियों की अगुवाई वाला मंच था, जिसकी बैठकें हर साल अगस्त में आसियान की मंत्रि-स्तरीय बैठकों के साथ हुआ करती थीं. 2005 में पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन की शुरुआत के साथ ही उनके विदेश मंत्रियों की बैठक भी साथ होने लगी. आसियान+1 के विदेश मंत्रियों की संवाद साझीदारों के विदेश मंत्रियों के साथ बैठक भी उसी दौरान होने लगी. इसी वजह से जो ARF 1994 में अपने तरह का अनूठा आयोजन था, वो धीरे धीर अपनी अहमियत गंवा बैठा.
क्षेत्रीय सुरक्षा ढांचे में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका के बावजूद ARF तीन अन्य कारणों से ज़्यादा प्रासंगिक बन सका. पहला कारण तो ये था कि आसियान से जुड़े संगठनों में ये विदेश मंत्रियों का सबसे बड़ा मंच था. दूसरी बात ये कि इसके 27 सदस्य देश अलग अलग क्षेत्रों से आते थे और इससे मंच की अहमियत और बढ़ गई. तीसरी वजह ये रही कि एआरएफ ने ‘एशिया प्रशांत क्षेत्र में खुलकर राजनीतिक और सुरक्षा संबंधी सहयोग के संवाद को बढ़ावा देने का मंच प्रदान किया.’
ARF का मक़सद आपसी विश्वास को बढ़ावा देना था. इसके बाद ये मंच रक्षात्मक कूटनीति और विवादों के निपटारे की अगुवाई भी कर सकता था. आम सहमति, विश्वास बहाली और ऐसी रफ़्तार से तरक़्क़ी जिससे किसी भी सदस्य देश की चिंता न बढ़े जैसी आसियान की ख़ूबियां ही शुरुआत से ARF की गतिविधियों पर हावी रही हैं. आसियान ख़ुद भी इस वैल्यू चेन में आगे नहीं बढ़ सका, तो ARF ने भी प्रगति नहीं की. पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन और ADMM+ ज़्यादा अच्छी, संगठित और ख़ास विषयों पर केंद्रित बैठकें थीं.
ARF में ट्रैक 1.5 और ट्रैक 2 के स्तर भी हैं. विशेषज्ञ और मशहूर हस्तियों (EEP) की बैठकें (ट्रैक 1.5) 2006 से ही आयोजित हो रही हैं. 2015 में इसने क्षेत्र के नए संस्थानों के बीच बेहतर तालमेल के सुझाव दिए. इसने सुझाव दिया कि ‘ARF को ख़ुद को बातचीत के मंच के बजाय समस्या के समाधान वाले संस्थान के रूप में बदलना होगा’; इसने ARF का सचिवालय APEC के साथ ही करने का सुझाव दिया. इसके सुझावों से आसियान देशों में आशंका पैदा हो गई, और नतीजा ये हुआ कि बात सुझावों से आगे बढ़ी ही नहीं.
2019 में जब EEP की 13वीं बैठक जापान में हुई, तो भारत उससे ग़ैरमौजूद रहा. EEP ने सुझाव दिया कि ARF के एजेंडे को और व्यापक बनाकर इसे नया रूप और नई ताज़गी दी जाए. महामारी ने ARF को ये मौक़ा मुहैया भी कराया.
ट्रैक 2 स्तर पर एशिया प्रशांत क्षेत्र में सुरक्षा सहयोग की परिषद (CSCAP) और आसियान के सामरिक और अंतरराष्ट्रीय अध्ययन संस्थान (ASEAN-ISIS) आज भी आपस में जुड़े हुए हैं. इन दोनों की ट्रैक से कुछ ख़ास फ़ायदा तो नहीं हुआ है. लेकिन ये कम से कम ARF को एक रास्ते पर बनाए रखने में ज़रूर सफल रहे हैं.
कुछ ख़ास दिलचस्पी वाले मसलों पर, ARF ने वार्षिक अंतर सत्रीय बैठकें शुरू की हैं. इस वक़्त ऐसी चार बैठकें हो रही हैं. जो आतंकवाद निरोध और बहुराष्ट्रीय अपराधों, समुद्री सुरक्षा, आपदा राहत और हथियारों के अप्रसार और निरस्त्रीकरण पर काम कर रही हैं.
चीन की गतिविधियों के चलते 2012 से दक्षिणी चीन सागर का इलाक़ा विवादित हो गया है. भारत ने ARF के प्रति अपने नज़रिए में बदलाव लाते हुए इसे गंभीरता से लेना शुरू किया है; भारत इसकी कुछ गतिविधियों की सक्रिय रूप से मेज़बानी भी कर रहा है. आसियान के कुछ देश, पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन के सदस्य, कनाडा और यूरोपीय संघ इसकी सालाना होने वाली 25 गतिविधियों के प्रमुख अध्यक्ष हैं.
ARF की अहमियत इसीलिए है, क्योंकि ये अमेरिका, क्वाड और चीन के बीच बढ़ती होड़ का एक मंच उपलब्ध कराता है.
ARF की हालिया बैठक ने दिखाया है कि महामारी और ग़ैर-पारंपरिक ख़तरों के अलावा ARF मुख्य रूप से आसियान को परमाणु हथियारों से मुक्त रहने पर ज़ोर देता रहा है. इसी वजह से ये मंच उत्तर कोरिया की एटमी महत्वाकांक्षाओं और दक्षिणी चीन सागर के हालात को लेकर चिंतित है.
चीन हमेशा से ये मानता रहा है कि दक्षिणी चीन सागर का मसला बहुपक्षीय नहीं है. बल्कि ये उसके और आसियान के अन्य सदस्य देशों के साथ अलग अलग द्विपक्षीय विवाद है. वहीं, ARF में सदस्य देश खुलकर अपनी चिंताएं व्यक्त करते हैं.
एआरएफ में उत्तर कोरिया को लेकर अक्सर चर्चा होती है. क्योंकि ये इकलौता क्षेत्रीय संगठन है, जिसका सदस्य उत्तर कोरिया भी है. उत्तर कोरिया ARF की बैठकों में हमेशा शामिल होता है; आम तौर पर उसके विदेश मंत्री ही बैठक में शामिल होते हैं. लेकिन, पिछले तीन वर्षों से इंडोनेशिया में उत्तर कोरिया के राजदूत अपने देश की नुमाइंदगी करते हैं.
बहुत से देश जो उत्तर कोरिया को लेकर चिंतित हैं, वो एआरएफ का इस्तेमाल उत्तर कोरिया की भूमिका और उसकी महत्वाकांक्षाओं की आलोचना के लिए करते हैं. इसके बदले में उत्तर कोरिया, इस मंच का इस्तेमाल अपनी स्थिति स्पष्ट करने के लिए करता है, क्योंकि इ क्षेत्र में ख़ुद को व्यक्त करने के लिए उत्तर कोरिया के विकल्प बहुत सीमित हैं. वैसे तो ARF के समर्थक ये बात नहीं मानते हैं. पर, सच यही है कि उत्तर कोरिया का मुद्दा ही ऐसा मसला है, जो ARF को प्रासंगिक बनाए हुए है.
ARF मूल रूप से ऐसे स्वैच्छिक विषयों पर चर्चा करता है, जिस पर सदस्य देश चर्चा के लिए राज़ी हों. चूंकि चुनाव के लिए कई संस्थाएं मौजूद हैं, तो ARF पर किन विषयों पर चर्चा होनी है, इसे लेकर खींचतान भी होती है.
ARF कोई संस्थान होने के बजाय एक मंच है. इसलिए, पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन की तरह इसका अपना कोई सचिवालय नहीं है. आज पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन और ARF दोनों की छोटी छोटी इकाइयां आसियान के सचिवालय में हैं. उनके वित्तीय और मानव संसाधन बहुत सीमित हैं. इस कमी का असर ARF की बैठकों के बाद की गतिविधियों पर भी पड़ता है. ARF ने ख़ुद को मज़बूत बनाए जाने की अपील की है; ये अपील उसने आसियान देशों से की है. लेकिन ये देश ख़ुद पर ध्यान तो केंद्रित रखना चाहते हैं. मगर, इसके लिए अपने संसाधन बढ़ाने के इच्छुक नहीं हैं.
ARF उतनी ही तेज़ी और मज़बूती से काम कर सकता है, जितना आसियान चाहेगा. आसियान ही इसकी असली पहचान है. कुछ देश इसे बाधा के रूप में देखते हैं; लेकिन, सच तो ये है कि ARF अभी भी काम इसीलिए कर पा रहा है क्योंकि ये आपसी खींचतान के बीच तालमेल का एक मंच बना हुआ है. ARF की अहमियत इसीलिए है, क्योंकि ये अमेरिका, क्वाड और चीन के बीच बढ़ती होड़ का एक मंच उपलब्ध कराता है.
पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश और पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन से अलग अन्य देश भी ARF की बैठकों को काफ़ी मूल्यवान मानते हैं. क्योंकि, उन्हें इस मंच पर एक साथ कई देशों के विदेश मंत्रियों से मिलने का मौक़ा जो मिलता है. वर्चुअल बैठक से उनके हाथ से ये विकल्प छिन जाता है.
ARF असल में बिना शिखर सम्मेलन के विदेश मंत्रियों की अगुवाई वाला मंच है. इसी वजह से ये मंच मोटे तौर पर अधिकारियों द्वारा संचालित है और मंत्री इसे अगस्त के अपने बेहद व्यस्त कार्यक्रम में आराम के मौक़े के तौर पर लेते हैं.
चूंकि विदेश मंत्रियों के पास इस मंच को देने के लिए बहुत कम वक़्त होता है, तो इसके प्रस्तावों का ड्राफ्ट अधिकारी पेश करते हैं और ये दो स्तर की जाने वाली प्रक्रिया होती है. जबकि, पूर्वी एशिया और आसियान का शिखर सम्मेलन के दौरान ये प्रक्रिया तीन स्तर की होती है, जिसमें ख़ुद शिखर सम्मेलन शामिल होता है.
बड़ी ख़ामोशी से ARF जो काम बहुत अच्छे तरीक़े से कर रहा है, वो क्षमता निर्माण का प्रयास है. हनोई प्लान ऑफ़ एक्शन (2020-25) के तहत ऐसी कई गतिविधियां हैं, जिन पर वार्षिक रिपोर्ट पेश की जाती है. इन्हें लागू करने की ज़िम्मेदारी सह अध्यक्षों और एक या दो साझीदार देशों की मर्ज़ी के ऊपर छोड़ दी जाती हैं. इस मामले में सभी 27 सदस्य देश सक्रिय नहीं होते हैं.
अंतर सत्रीय बैठकों के मोर्चे पर इस योजना ने साइबर सुरक्षा, रक्षा संवाद, शांति स्थापना के अभियान और विश्वास बहाली के उपायों को भी शामिल किया है. इसका मक़सद ARF के अध्यक्ष की शक्तियों को बढ़ाना है. लेकिन ये वही देश होता है जो आसियान का अध्यक्ष हो! इस योजना के तहत मंच फंड और आसियान सचिवालय के अंदर एक मज़बूत इकाई की मांग करता है, जो ख़ुद से ही अपील करने जैसा है. ARF ख़ुद को क्षेत्रीय सुरक्षा के प्रमुख स्तंभ के रूप में पेश करता है; हालांकि, इसके साथ उसके ऊपर जो और ज़िम्मेदारियां आती हैं, उन्हें स्वीकार नहीं किया जाता.
ARF सुरक्षा से जुड़े मसलों को हल नहीं कर सकता न ही वो ग़ैर पारंपरिक सुरक्षा के मसलों पर प्रतिक्रिया नहीं दे सकता है. फिर भी ARF अप्रासंगिक नहीं है. ARF क्षेत्रीय किरदारों के बीच संवाद का एक मंच प्रदान करता है और ग़ैर पारंपरिक सुरक्षा ख़तरों के मोर्चे पर व्यवहारिक सहयोग को बढ़ावा देने की इच्छा रखता है. कई बार इसकी कमज़ोरियां ही इसकी ताक़त बन जाती हैं.
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Gurjit Singh has served as Indias ambassador to Germany Indonesia Ethiopia ASEAN and the African Union. He is the Chair of CII Task Force on ...
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