Published on Feb 24, 2021 Updated 0 Hours ago

जो बाइडेन के राष्ट्रपति काल में एक तरह से पिछले चार साल में चले आ रहे कई ट्रेंड बदलेंगे. ख़ासतौर पर वैश्विक संस्थाओं, लोकतंत्र को बढ़ावा देने और इमिग्रेशन नीतियों में बदलाव आ सकता है

ट्रंप की अमेरिका फ़र्स्ट पॉलिसी से क्या फंस गए हैं बाइडेन?

डोनाल्ड ट्रंप 2016 में जब अमेरिका के राष्ट्रपति चुने गए तो वहां विदेश नीति को नियंत्रित करने वालों को झटका लगा था. तब तक रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक पार्टी के बीच अमेरिका की विदेश नीति के जिन पहलुओं पर सहमति बनी हुई थी, ट्रंप ने उनमें से कईयों के बुनियादी सिद्धांत पर सवाल खड़ा किया था. मसलन, लंबे समय से अमेरिका के सहयोगी रहे देशों की सुरक्षा की गारंटी. खुली अंतरराष्ट्रीय व्यापार व्यवस्था से होने वाले फ़ायदों पर भरोसा. दुनियाभर में अमेरिका की पसंद थोपने के लिए सेना का इस्तेमाल. वैश्विक संघर्षों को रोकने या सुलझाने के लिए वैश्विक संस्थाओं में संसाधन झोंकना. यह सोच कि कुशल पेशेवरों के आने से अमेरिका की अर्थव्यवस्था को फ़ायदा होगा. लोकतंत्र और मुक्त व्यापार से उदारवाद बढ़ेगा आदि.

चार साल के राजकाज के दौरान ट्रंप ने इनमें से कई नीतियों को पलट दिया या उन पर सवाल खड़े किए. यूरोप, जापान या दक्षिण कोरिया की सुरक्षा पर पैसा ख़र्च करके अमेरिकियों को क्या लाभ हुआ? क्या खुली व्यापार व्यवस्था से वाकई अमेरिका के मध्य वर्ग को फ़ायदा हुआ क्योंकि इससे तो मैन्युफैक्चरिंग और रोज़गार चीन शिफ्ट हो गए?

क्या अमेरिका दुनिया में कई जगहों पर अंतहीन युद्ध में फंस गया है, जिसकी उसके बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही है. इन युद्धों से निकट भविष्य में क्या हासिल करना है, इसे लेकर उसकी सोच भी साफ नहीं है. वे मुर्दा अंतरराष्ट्रीय संस्थान, जो अमेरिका की ताकत पर लगाम लगाते हैं, वे किसी भी तरह से उसके लिए मददगार हैं? इमिग्रेशन यानी प्रवासियों को लेकर दिखाई गई उदारता से अमेरिका की सांस्कृतिक पहचान मिट रही है? क्या वाकई उनसे वेल्थ क्रिएशन में कोई मदद मिल रही है? क्या लोकतंत्र और मुक्त व्यापार को बढ़ावा देना फ़ायदेमंद है, जबकि इनका अमेरिका के चीन और रूस जैसे प्रतिद्वंद्वियों पर कोई असर नहीं हो रहा? ये वे सवाल हैं, जो अमेरिका के ज़्यादातर मतदाताओं ने किए थे और इनका सटीक जवाब उन्हें अमेरिका की विदेश नीति बनाने वालों से शायद ही कभी मिला था.

जिन अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं और समझौतों से ट्रंप पीछे हट गए थे, बाइडेन उनसे फिर से जुड़ सकते हैं. मिसाल के लिए, पेरिस क्लाइमेट एग्रीमेंट और विश्व स्वास्थ्य संगठन.

जो बाइडेन के राष्ट्रपति काल में पिछले चार साल से चले आ रहे इनमें से कई ट्रेंड बदलेंगे. ख़ासतौर पर वैश्विक संस्थाओं, लोकतंत्र को बढ़ावा देने और इमिग्रेशन पर उनकी नीतियां ट्रंप सरकार से अलग हो सकती हैं. जिन अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं और समझौतों से ट्रंप पीछे हट गए थे, बाइडेन उनसे फिर से जुड़ सकते हैं. मिसाल के लिए, पेरिस क्लाइमेट एग्रीमेंट और विश्व स्वास्थ्य संगठन.

बाइडेन की नीतियों से कौन ख़ुश होंगे

उन्होंने लोकतंत्र पर एक सम्मेलन आयोजित करने का वादा किया है. बाइडेन अमेरिका और दूसरे मुल्कों में लोकतंत्र की जड़ें फिर से गहरी करना चाहते हैं. हालांकि, हाल में अमेरिका में जो घटनाक्रम सामने आए हैं, उन्हें देखते हुए उनका रुख इन पर आक्रामक नहीं रहने वाला. बाइडेन सार्वजनिक रूप से प्रवासियों को लेकर उदार रुख की बात भी कह चुके हैं. चाहे बात शरणार्थियों की हो, कुशल पेशेवरों की या स्थायी प्रवासियों की. डेमोक्रेटिक पार्टी के अंदर उनका जो राजनीतिक आधार है, वह इनसे ख़ुशहोगा.

लेकिन दूसरे देशों के साथ गठबंधन, व्यापार और सैन्य दखल जैसे मुद्दों पर बाइडेन के लिए पिछली सरकार की नीतियों को पूरी तरह से पलटना संभव नहीं होगा. उसकी वजह यह है कि ट्रंप इन पर बहस को नई दिशा देने में सफल रहे. इतना ही नहीं, उनके उठाए कुछ मुद्दों से लेफ्ट भी सहमत दिखा. यह सही है कि बाइडेन ‘अलांयस फ़र्स्ट’ वाली विदेश नीति को पुनर्जीवित करने की कोशिश करेंगे, लेकिन वह सहयोगी देशों से ख़ामोशी और सम्मान के साथ इसका अधिक आर्थिक बोझ उठाने को भी कहते रहेंगे. कुछ वैसे ही, जैसे बराक ओबामा ने अपने राष्ट्रपति काल में किया था.

अमेरिका शायद कई जगहों पर सैन्य दबदबा बनाए रखे, लेकिन वह निकट भविष्य में नए मोर्चे खोलने से बचेगा. इसकी बजाय उसका ध्यान चुनिंदा जगहों पर सैन्य दखल देने या दुनिया की सबसे बड़ी ताकत बने रहने पर हो सकता है.

बाइडेन शायद ट्रंप की तरह व्यापार घाटे पर हाय तौबा न मचाएं, लेकिन अपनी व्यापार नीति में वह मध्य वर्ग के लिए रोजगार बढ़ाने को प्राथमिकता दे सकते हैं. उनके लिए ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप (टीपीपी) जैसे महत्वाकांक्षी व्यापार समझौतों को अमेरिकी कांग्रेस से पास कराना मुश्किल होगा. इसके साथ इराक, सीरिया और अफगानिस्तान में सैन्य दख़लबनाए रखना भी न ही राजनीतिक और न ही आर्थिक तौर पर संभव नहीं होगा. अमेरिका शायद कई जगहों पर सैन्य दबदबा बनाए रखे, लेकिन वह निकट भविष्य में नए मोर्चे खोलने से बचेगा. इसकी बजाय उसका ध्यान चुनिंदा जगहों पर सैन्य दखल देने या दुनिया की सबसे बड़ी ताकत बने रहने पर हो सकता है.

कुल मिलाकर, डोनाल्ड ट्रंप की कई विदेश नीतियों को ख़त्म कर दिया जाएगा, लेकिन उनकी अमेरिका फ़र्स्ट नीति के कुछ पहलुओं को निकट भविष्य में जारी रखा जाएगा. असल में इन नीतियों से न सिर्फ अमेरिका में दक्षिणपंथी ताकतें इत्तेफाक रखती हैं बल्कि वहां पॉलिटिकल लेफ्ट का भी एक वर्ग इनसे सहमत है.

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