Author : Oommen C. Kurian

Published on Jan 05, 2022 Updated 0 Hours ago

चीन के प्राधिकारवादी (authoritarian) मॉडल और भारत के लोकतांत्रिक मॉडल की सफलताओं का विश्लेषण.

कोविड-19 महामारी से निपटने के दौरान भारतीय और चीनी तौर-तरीकों में कितना फर्क़ दिखा!

दुनिया में चार तरह के स्थानिक इंसानी कोरोनावायरस (endemic human coronaviruses)- 229ई, एनएल63, ओसी43, और एचकेयू1 हैं, और इनसे विभिन्न देशों के लोग सामान्यत: संक्रमित होते रहते हैं. विशेषज्ञों के मुताबिक़, सार्स-कोव-2 वायरस (SARS-CoV-2) जल्द ही पांचवा स्थानिक इंसानी कोरोनावायरस बनने जा रहा है. जब कोविड-19 वैक्सीन की आपूर्ति की कहीं कोई क़िल्लत नहीं रह जायेगी, सार्स-कोव-2 वायरस एक आसानी से प्रबंधित किया जा सकने वाले जोख़िम बनकर रह जायेगा. हालांकि, बीते दो साले डरावने सपने की तरह रहे हैं, जहां एक नये हत्यारे वायरस ने एक ऐसी आबादी के बीच तांडव मचाया जो इम्युनोलॉजी से लगभग अनजान थी.

अगर सार्वजनिक रूप से उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर बात करें, तो मोटामोटी समतुल्य आबादी के बावजूद, दोनों देशों में महामारी जिस तरह से आगे बढ़ी, उसमें बहुत ज्यादा अंतर रहा है.

चीन और भारत में मिलाकर दुनिया की 40 फ़ीसद आबादी है. अर्थव्यवस्था को गंभीर नुक़सान के बावजूद, दोनों देशों ने शुरू में ही कड़े लॉकडाउन लगा दिये थे. हालांकि, वैक्सीन के आ जाने तक की अंतरिम अवधि में, चीन (जिसके यहां से महामारी की शुरुआत हुई) वायरस को भारत समेत दूसरे देशों के मुक़ाबले कहीं ज्यादा दक्षता से समेट (contain) कर रखने, और कोविड-19 से मौतों को कम-से-कम रखने में सक्षम था. अगर सार्वजनिक रूप से उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर बात करें, तो मोटामोटी समतुल्य आबादी के बावजूद, दोनों देशों में महामारी जिस तरह से आगे बढ़ी, उसमें बहुत ज्यादा अंतर रहा है.

महामारी के असर और उससे निपटने के लिए चीन सरकार द्वारा उठाये गये क़दमों से जुड़ी सूचनाओं पर पाबंदियों के चलते, चीन में कोविड-19 के असर को परिमाणात्मक रूप से बता पाना कठिन काम है. प्राधिकारवादी (authoritarian) शासन व्यवस्था और सूचनाओं पर कड़े नियंत्रण को देखते हुए, चीन की स्थिति की अन्य देशों से तुलना करना चुनौतियों से भरा है. हालांकि, भारत की तरह ही बड़ी और विविधतापूर्ण आबादी होने के बावजूद, चीन नये मामलों और मौतों को उल्लेखनीय ढंग से नियंत्रित रखने में सक्षम रहा (ग्राफ 1). इसके साथ ही, दो लहर देख चुके भारत के बारे में बहुतों का मानना है कि एक बार फिर मामले बढ़ने जा रहे हैं.

ग्राफ 1 : भारत में दो लहरों में और उसी दौरान चीन में कोविड-19 के मामले और मौतें

स्रोत : द वर्ल्ड बैंक डाटा पोर्टल

अन्य बीमारियों की तुलना में कोविड-19 से हुई मौतों के आंकड़ों में भी भारत और चीन के बीच बड़ा अंतर देखने को मिला है. जनवरी 2020 और सितंबर 2021 के बीच, जब दैनिक आधार पर कोविड-19 से मौतों के सर्वोच्च स्तर देखने को मिले, भारत में कोविड-19 से मौतों की संख्या इस्कैमिक हृदय रोगों (जो भारत में मौतों का सबसे बड़ा कारण हैं) से होने वाली मौतों के समतुल्य थी. जबकि, चीन में कोविड-19 से मौतों की संख्या 23वें सबसे बड़े कारण (मस्तिष्क एवं केंद्रीय तंत्रिका तंत्र के कैंसर) के समतुल्य रही. जैसाकि ग्राफ 2 में दिखाया गया है, कोविड -19 का गंभीरता अनुपात (severity ratio) 2020-21 में कोविड-19 से हुई मौतों को 2019 में दूसरे सभी कारणों से हुई मौतों की तुलना में सात दिन के औसत के रूप में व्यक्त करता है. अध्ययन में अपनाये गये तरीक़े के अनुसार, शीर्ष-कारण गंभीरता अनुपात (top-cause severity ratio) 2019 में कारण विशेष से हुई मौतों को 2019 में सभी कारणों से हुई मौतों (बतौर सालाना औसत) के मुक़ाबले दिखाता है.

 जनवरी 2020 और सितंबर 2021 के बीच, जब दैनिक आधार पर कोविड-19 से मौतों के सर्वोच्च स्तर देखने को मिले, भारत में कोविड-19 से मौतों की संख्या इस्कैमिक हृदय रोगों (जो भारत में मौतों का सबसे बड़ा कारण हैं) से होने वाली मौतों के समतुल्य थी. जबकि, चीन में कोविड-19 से मौतों की संख्या 23वें सबसे बड़े कारण (मस्तिष्क एवं केंद्रीय तंत्रिका तंत्र के कैंसर) के समतुल्य रही. 

ग्राफ 2 : कोविड-19 का गंभीरता अनुपात (severity ratio) और 2019 में मौत का शीर्ष कारण

स्रोत : द वर्ल्ड बैंक डाटा एनालिटिक्स

चीन को मिला केंद्रीकृत व्यवस्था का लाभ

यह विडंबना ही है कि, चीन में स्वतंत्रता के सामान्य अभाव ने ही उसके नागरिकों को उस दौर में आवाजाही की ठीकठाक आजादी प्रदान की जब दुनिया के ज्यादातर हिस्से लॉकडाउन से गुज़र रहे थे. शुरुआत में, इस वैश्विक महामारी की उत्पत्ति से जुड़े तथ्यों को चीन द्वारा सक्रियतापूर्वक दबाये जाने और इसके प्रसार के बारे में भ्रमित करने के लिए उसकी विश्वव्यापी आलोचना हुई थी.

हालांकि, अध्ययनों ने दिखाया है कि एक बार जब जोख़िम स्पष्ट हो गये, तो चीनी प्राधिकरणों (authorities) ने लॉकडाउन कर दिया और आवाजाही को इस स्तर तक घटा दिया जैसा आधुनिक युग में कभी देखा नहीं गया था. लोगों की आवाजाही को नियंत्रित करने के अलावा, टेस्ट किट, मास्क और व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (पीपीई) का अभाव सरकार के लिए एक और बड़ी चुनौती थी. एक अति केंद्रीकृत राजनीतिक प्रणाली ने यह सुनिश्चित किया कि चीन मानव संसाधन व अन्य संसाधनों को कम प्रभावित क्षेत्रों से अधिक प्रभावित क्षेत्रों में स्थानांतरित कर सका. बड़ी संख्या मेडिकल वॉलेंटियर अधिक संक्रमण वाली जगहों पर तेजी से पहुंच गये, जिसने अपेक्षाकृत कम समय में वायरस को विभिन्न स्थानों में रोक कर रखने (containment) में मदद की. आरंभिक लहर से सीखे गये सबक और कंटेनमेंट का बीते साल जून महीने में बीजिंग में फिर से शुरू हुए संक्रमण को रोकने में प्रभावी ढंग से इस्तेमाल हुआ.

पार्टी और सरकारी ढांचे के बीच सहजीवी संबंध को देखते हुए, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी भी अपने ज़मीनी नेटवर्क को सरकारी मशीनरी की एक प्रभावशाली शाखा के रूप में तैनात करने में सक्षम थी. विश्लेषकों ने पाया कि आवासीय समितियों ने सरकारी मशीनरी के संपूरक के रूप में बेहद अहम भूमिका निभायी. पार्टी के इन साधनों ने ज़मीन पर महामारी से निपटने के अभियान के प्रभावी संचालन और उस पर राजनीतिक नियंत्रण सुनिश्चित करने में मुख्य तत्व की तरह काम किया.

 एक अति केंद्रीकृत राजनीतिक प्रणाली ने यह सुनिश्चित किया कि चीन मानव संसाधन व अन्य संसाधनों को कम प्रभावित क्षेत्रों से अधिक प्रभावित क्षेत्रों में स्थानांतरित कर सका. बड़ी संख्या मेडिकल वॉलेंटियर अधिक संक्रमण वाली जगहों पर तेजी से पहुंच गये, जिसने अपेक्षाकृत कम समय में वायरस को विभिन्न स्थानों में रोक कर रखने (containment) में मदद की. 

निरंकुश सार्वजनिक स्वास्थ्य उपायों का इस्तेमाल करते हुए, चीन और भारत महामारी से निपटने के लिए पूरी कड़ाई के साथ पेश आये. चीन के मामले में काफ़ी ज्यादा मददगार यह रहा कि उसके पास एक ऐसी आबादी थी जो दशकों से प्राधिकारवादी (authoritarian) राज्य के फ़रमानों को चुपचाप मानने की अभ्यस्त है, तथा जिसे सरकार पर भरोसा करने और उसके कहे के मुताबिक़ काम करने के लिए अनुकूलित किया गया है. और राज्य कोविड-19 से निपटने में शक्ति एवं संकल्प के लगभग प्रतीकात्मक कृत्यों के साथ पेश आया, जिनमें दो हफ्ते में एक विशाल अस्पताल बनाना, फैक्ट्रियों को पीपीई का निर्माण बढ़ाने का आदेश देना, अनुपालन सुनिश्चित करना, और कोविड-19 के इलाज का ख़र्च राज्य द्वारा उठाना शामिल था. शोधकर्ताओं का कहना है कि आवाजाही और लोगों के व्यवहार पर नियंत्रण चीन में इसलिए ज्यादा ज्यादा सख्ती से लागू हुआ क्योंकि वहां जो आबादी है वह प्राधिकारवाद के साथ जीने की अभ्यस्त है, और वे सामाजिक व्यवस्था और सामाजिक नियंत्रण के बीच संतुलन बिठाने के लिए ज्यादा तैयार नज़र आते हैं. इंस्टीट्यूट ऑफ चाइनीज स्टडीज द्वारा किये अध्ययन में पाया गया कि चीन के पटरी पर लौटने में सबसे उल्लेखनीय पहलू यह रहा कि आर्थिक गतिविधियों की बहाली को मुख्यत: निर्देशों के ज़रिये हासिल किया गया. सार्वजनिक स्वास्थ्य उपाय कमांड-एंड-कंट्रोल के ढांचे के भीतर ही बिल्कुल सटीकता से लागू किये गये.

दूसरी तरफ़ भारत के मामले में, स्वास्थ्य देखभाल के ढांचे की अपनी गंभीर मजबूरियां तो थीं ही, साथ ही इस बुनियादी भरोसे का अभाव था कि राज्य के पास अपनी आबादी के लिए समर्थन (support systems) मुहैया कराने की क्षमता है. भरोसे का यह अभाव दशकों के दौरान सामाजिक क्षेत्रों में कम निवेश से उपजा है. इसने कोविड-19 से निपटने के उपायों को लागू करने की दक्षता को प्रभावित किया. भारत की अफरा-तफरी और प्राधिकारवादी सटीकता के बीच का साफ़ फ़र्क़ सबसे ज्यादा अच्छे ढंगे से आवाजाही पर नियंत्रण के मामले में देखा गया. मामले लगातार बढ़ रहे होने के बावजूद, भारत में केंद्र, राज्य और स्थानीय स्तर के प्राधिकारी (authorities) बड़े स्तर पर हो रहे राजनीतिक या धार्मिक जुटान को रोकने के अनिच्छुक थे या फिर अक्षम थे.

कुछ इसी तरह की बात एक ताजा रिसर्च भी बताती है, जो भारत और चीन के सार्वजनिक स्वास्थ्य संबंधी निरोधक उपायों (containment measures) की तुलना करते हुए की गयी है. उसने पाया कि जिस दौरान देश वैक्सीन का इंतज़ार कर रहा था, उस दौरान समय रहते सख्ती के साथ शहरों को बंद करने के क़दमों, आक्रामक ढंग से मरीज़ों की पहचान (screening), और पहचान में आये मामलों की निगरानी (tracking) ने संक्रमण के आबादी के स्तर पर प्रसार को नियंत्रित करने में मदद की. इसके उलट, भारत में कठोर उपाय बहुत असमान ढंग से लागू हो सके. दूसरे शब्दों में कहें तो, चीन में आबादी के स्तर पर सार्वजनिक स्वास्थ्य उपायों का अनुपालन बाध्यकारी था, जबकि भारत में यह स्वैच्छिक था. और इसी वजह से, भारत में इन उपायों की सफलता जोखिम को लेकर नेतृत्व की, साथ ही साथ लोगों की, अपनी व्यक्तिगत धारणाओं से तय हुई.

 इंस्टीट्यूट ऑफ चाइनीज स्टडीज द्वारा किये अध्ययन में पाया गया कि चीन के पटरी पर लौटने में सबसे उल्लेखनीय पहलू यह रहा कि आर्थिक गतिविधियों की बहाली को मुख्यत: निर्देशों के ज़रिये हासिल किया गया. 

भारत में, राजनीतिक कारणों से उपाय अप्रभावी ढंग से लागू हुए; जबकि चीन में महामारी से निपटने के उपाय भी राजनीतिक रंग लिये हुए थे और इनका इस्तेमाल वाजिब असहमतियों को दबाने के लिए किया गया, जैसाकि हांगकांग में देखने को मिला. हांगकांग ने कोरोनावायरस का प्रसार प्रभावी ढंग से रोकने के लिए स्मार्ट सर्विलांस, क्वारेंटाइन और फेस मास्क व स्कूलों की बंदी जैसे सोशल डिस्टेंसिंग उपायों को लागू किया. हालांकि, चीन पर आरोप लगा कि उसने प्रसार का स्तर निम्न होने पर भी कोविड नियंत्रण उपायों के बहाने का इस्तेमाल लोगों के विरोध को ख़ामोश करने में किया.

ऐसे अध्ययन हैं जो इंगित करते हैं कि चीन की प्राधिकारवादी राजनीतिक प्रणाली और सूचनाओं पर उसके सख्त नियंत्रण ने कोविड की शुरुआत के दौरान झूठी खबरों/ अफ़वाहों के प्रचार-प्रसार पर दूसरे देशों की तुलना में प्रभावी ढंग से लगाम लगायी. चीनियों ने सेंसरशिप और सरकारी कार्रवाइयों को जायज़ ठहराने के लिए ‘सामाजिक ज़िम्मेदारी’, ‘सामाजिक सुरक्षा’ और ‘सामाजिक व्यवस्था’ पर जोर दिया. चीनी प्राधिकारियों द्वारा सूचना महामारी (infodemic) पर सफलतापूर्वक लगाम लगाने और वास्तविक महामारी के प्रसार की चेन तोड़ने में दिखायी गयी एक जैसी मुस्तैदी उल्लेखनीय है. वहीं भारत में, वायरस के साथ-साथ सूचना महामारी को रोकने के उपायों की प्रभावशालिता राज्य के बल से लागू होने के बजाय लोगों द्वारा स्वैच्छिक अनुपालन पर ही ज्यादा निर्भर रही.

वैक्सीन का उत्पादन

वैक्सीन का उत्पादन बढ़ाना ही यह तय करने जा रहा था कि कोई देश कितनी जल्दी पटरी पर लौट सकता है. महामारी से पूर्व दुनिया का सबसे बड़ा वैक्सीन उत्पादक होने के बावजूद, भारत समय पर उत्पादन का स्तर बढ़ाने में विफल हो गया, जबकि चीन ने चंद महीनों में ही वैक्सीन का उत्पादन कई गुना बढ़ा लिया. इसी के नतीजतन उसने देश के भीतर विशाल आबादी को वैक्सीन लगायी और साथ ही इसका इस्तेमाल विदेशों में आक्रामक वैक्सीन कूटनीति के लिए किया. भारत में वैक्सीन लगने की शुरुआत धीमी रही और उसके लिए रोज एक करोड़ (10 million) वैक्सीन देना सितंबर 2020 में जाकर ही संभव हो पाया. वहीं चीन कई महीने पहले ही इस स्तर तक पहुंच गया था (ग्राफ 3).  हालांकि दिलचस्प ढंग से, 15 देशों के नौजवानों के बीच 31 अगस्त से 6 सितंबर के दौरान एक इंटरव्यू आधारित सर्वेक्षण ने दिखाया कि चीन के साथ भारत भी वैक्सीन को लेकर भरोसे के लिहाज़ से दुनिया के सबसे ऊपर के देशों में शामिल था. ऐसा सूचना महामारी के बावजूद हुआ.

ग्राफ 3: भारत और चीन में रोज दी गयीं वैक्सीन की ख़ुराक

स्रोत : ब्लूमबर्ग कोविड-19 वैक्सीन ट्रैकर

तुलनात्मक शोध में पाया गया कि वैक्सीन के इंतज़ार के दौरान, निवारण रणनीति (mitigation strategy) की जगह निरोधक रणनीति (containment strategy) ने बेहतर काम किया. लेकिन वायरस के प्रसार को सीमित करने में शुरुआती निरोधक रणनीति को भारत में सीमित सफलता ही मिली थी. इसका मतलब था कि असल फोकस निवारण पर था, वह भी एक ऐसे सार्वजनिक स्वास्थ्य तंत्र के भरोसे जो इसके लिए ज़रूरी साजो-सामान से लैस नहीं था. शुक्र है कि भारत एक युवा देश है, जिसकी आधी के क़रीब आबादी की उम्र 25 साल से कम है, और इसने कुल जनहानि को कम रखने में निश्चित रूप से मदद की. वरना, इससे कहीं ज्यादा नुक़सान हो सकता था.

ग्राफ 4 : लोगों का प्रतिशत, जो यह सोचता है कि उनकी सरकार ने महामारी को ठीक से संभाला

स्रोत : YouGov COVID-19 Tracker UK

इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि भारत ने इंसानी ज़िंदगियों के रूप में कोविड-19 की बड़ी क़ीमत चुकायी है. हालांकि, अनुमान से उलट, भारत में ऐसे नागरिकों का प्रतिशत लगातार ऊंचा रहा है जो यह सोचते हैं कि सरकार ने महामारी को ‘बहुत’ या ‘कुछ हद तक’ ठीक से संभाला है. 

सभी पहलुओं को ध्यान में रखकर बात करें तो, भारत और चीन के बीच महामारी से निपटने के अपने-अपने तौर-तरीक़ों में सबसे साफ़ फ़र्क़ नज़र आया मामलों और मौतों की संख्या जैसे नतीजों के रूप में. ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि भारत में कोविड-19 ने भारत के शासकीय ढांचे (governance structure) के ऐतिहासिक रूप से सबसे कमज़ोर अंग- यानी उसके सार्वजनिक स्वास्थ्य तंत्र- को इंतहाई दबाव के इम्तिहान से गुज़रने पर मजबूर कर दिया. चीन में, जिस प्राधिकारवादी शासन प्रणाली ने शुरुआत में महामारी के बारे में सूचनाओं को दबाने की कोशिश की, उसी ने वैक्सीन उत्पादन बढ़ पाने तक, वायरस का प्रसार रोकने में राज्य मशीनरी की पूरी ताकत झोंक दी, और सफलता हासिल की. इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि भारत ने इंसानी ज़िंदगियों के रूप में कोविड-19 की बड़ी क़ीमत चुकायी है. हालांकि, अनुमान से उलट, भारत में ऐसे नागरिकों का प्रतिशत लगातार ऊंचा रहा है जो यह सोचते हैं कि सरकार ने महामारी को ‘बहुत’ या ‘कुछ हद तक’ ठीक से संभाला है. इसमें गिरावट केवल विनाशकारी लहरों के दौरान ही दिखी (ग्राफ 4). इस बारे में चीन का डाटा क्यों नहीं है, यह समझ पाना कोई मुश्किल काम नहीं है.

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