Published on Jun 06, 2022 Updated 0 Hours ago

रूस पर लागू प्रतिबंधों से मध्य एशियाई देश कैसे प्रभावित हो रहे हैं?

रूस के ख़िलाफ़ पश्चिम की पाबंदियां: मध्य एशियाई देशों के रुख़ की पड़ताल

मध्य एशियाई देशों की राजनीतिक, आर्थिक और बुनियादी ढांचों से जुड़े मसलों में रूस के साथ गहरी पारस्परिक निर्भरता है. यूक्रेन संकट के चलते पश्चिमी देशों द्वारा रूस पर लगाई गई पाबंदियों का इन देशों पर भी असर पड़ सकता है. दरअसल इस इलाक़े के कई देश यूरेशियाई आर्थिक संघ (EAEU) के सहयोगी हैं. कज़ाकिस्तान और किर्गिस्तान पूर्णकालिक सदस्य हैं जबकि उज़्बेकिस्तान दिसंबर 2020 से पर्यवेक्षक के तौर पर इससे जुड़ा हुआ है. हालांकि इन हक़ीक़तों के बावजूद रूस पर लगी पाबंदियों के इन देशों पर निश्चित प्रभाव दिखाई दे सकते हैं. EAEU की ग़ैर-मौजूदगी में भी इस इलाक़े के तक़रीबन सभी देशों के लिए रूस एक अहम कारोबारी साथी और निवेशक रहा है. इस तरह के एकीकरण से सिर्फ़ संस्थागत स्वरूप हासिल होता है और मौजूदा गहरे संवाद की निरंतरता बन जाती है. मध्य एशिया के सभी देशों के रूस के साथ गहन द्विपक्षीय संबंध हैं. नेतृत्व के स्तर पर, विभागों के बीच और इलाक़ाई तौर पर इन देशों के बीच सघन सियासी संवाद क़ायम है. यहां के तमाम देशों की राष्ट्रीय मुद्राओं में भी ऊंचे स्तर का जुड़ाव है. यही वजह है कि इस साल फ़रवरी के अंत में रूसी मुद्रा रुबल में तेज़ गिरावट के बाद यहां की तक़रीबन सभी मुद्राओं ने अपना शिखर छू लिया था. हालांकि इसके फ़ौरन बाद रुबल में सुधार आ गया और वो विश्व की प्रमुख मुद्राओं के मुक़ाबले पूर्ववर्ती स्तरों पर आ गया. 

इस इलाक़े के कई देश यूरेशियाई आर्थिक संघ (EAEU) के सहयोगी हैं. कज़ाकिस्तान और किर्गिस्तान पूर्णकालिक सदस्य हैं जबकि उज़्बेकिस्तान दिसंबर 2020 से पर्यवेक्षक के तौर पर इससे जुड़ा हुआ है. हालांकि इन हक़ीक़तों के बावजूद रूस पर लगी पाबंदियों के इन देशों पर निश्चित प्रभाव दिखाई दे सकते हैं.

इन देशों के लिए रूस की अहमियत 

मौजूदा हालात में इस इलाक़े के देश कई नई भूराजनीतिक हक़ीक़तों से दो-चार हो रहे हैं. दरअसल इन देशों के लिए सबसे संवेदनशील मुद्दों में से एक मसला रूस में विशाल संख्या में मौजूद मध्य एशियाई प्रवासियों से जुड़ी है. पाबंदियों के चलते रूसी अर्थव्यवस्था में सुस्ती आने से इनकी आय पर भारी असर पड़ा है. नतीजतन उनके द्वारा अपने देश भेजी जाने वाली रकम में भी गिरावट आई है. दरअसल इस रकम की यहां की सामाजिक-आर्थिक स्थिरता में बेहद अहम भूमिका रहती है. ताजिकिस्तान पर ख़ासतौर से ये बात लागू होती है. रूस में रहने वाले ताज़िकिस्तान के प्रवासियों द्वारा भेजी गई रकम वहां की जीडीपी के तक़रीबन 30 फ़ीसदी हिस्से के बराबर है. किर्गिस्तान और उज़्बेकिस्तान के लिए भी ये हस्तांतरण बेहद अहम हैं. लिहाज़ा इस रकम में किसी तरह की गिरावट आने या (उससे भी बदतर हालात में) रूस में नौकरियां गंवाने के चलते वहां रहने वाले प्रवासियों की बड़े पैमाने पर घर वापसी से इस पूरे इलाक़े में गंभीर सामाजिक तनाव का माहौल बन सकता है. 

भले ही दूसरों के मुक़ाबले कम लेकिन तुर्कमेनिस्तान के लिए भी रूस के ख़िलाफ़ लगी पाबंदियों के (कम से कम बाहरी तौर पर) प्रभाव साफ़ हैं. दरअसल तुर्कमेनिस्तान की विदेश नीति एकाकी या अलग-थलग रहने वाली है. रूस में यहां के प्रवासी कामगारों की तादाद सीमित है. इसके अलावा रूस के साथ यहां का कारोबारी टर्नओवर भी कोई ख़ास नहीं है. लिहाज़ा तुर्कमेनिस्तान के पास इन पाबंदियों से पार पाने के अपेक्षाकृत कम अवसर मौजूद हैं. 

बैंकिंग सेक्टर की सीमित संभावनाओं और रूस के साथ सीधी सरहद की ग़ैर-मौजूदगी के चलते किर्गिस्तान के लिए पाबंदियों के ख़िलाफ़ एक व्यापक केंद्र बनकर उभरने के रास्ते में कई मुश्किलें मौजूद हैं. 

किर्गिस्तान उन चंद देशों में है, जो रूसी मदद से जुड़ने को तैयार बैठे हैं. दरअसल किर्गिस्तान अनौपचारिक तौर पर वित्तीय और तकनीकी अड्डा बनकर उभरने की संभावनाओं पर विचार कर रहा है. इस क़वायद के ज़रिए मुद्रा और वित्तीय लेनदेन पर लगी पाबंदियों से निपटना मुमकिन हो सकेगा. इसके साथ ही उन वस्तुओं और तकनीकी की आपूर्ति भी सुनिश्चित हो सकेगी जिनकी सीधी सुपुर्दगी पर रोक लगी हुई है. कुछ हद तक तुर्कमेनिस्तान फ़रवरी के आख़िर और मार्च की शुरुआत में ख़ुद को वित्तीय केंद्र के तौर पर स्थापित करने में कामयाब भी रहा. उस वक़्त रूसी बैंकों और कंपनियों पर डॉलर और यूरो की ख़रीद करने को लेकर पाबंदियां आयद की गई थीं. बाज़ार के हिस्सेदारों ने किर्गिस्तान की राजधानी के बैंकों और विदेशी मुद्रा का लेन-देन करने वाले संस्थानों (exchangers) में रुबलों के बदले डॉलरों की ख़रीद में भारी बढ़ोतरी होने की बात पर ग़ौर किया था. दरअसल ये रूसी कंपनियों की गतिविधियों का नतीजा था. उन कंपनियों ने मुद्रा की ख़रीद से जुड़े अवसरों का जमकर लाभ उठाया था. बहरहाल, बैंकिंग सेक्टर की सीमित संभावनाओं और रूस के साथ सीधी सरहद की ग़ैर-मौजूदगी के चलते किर्गिस्तान के लिए पाबंदियों के ख़िलाफ़ एक व्यापक केंद्र बनकर उभरने के रास्ते में कई मुश्किलें मौजूद हैं. 

आधिकारिक तौर पर ताशकंद कहीं ज़्यादा यथार्थवादी रुख़ अपनाता है. रूस के ख़िलाफ़ लगी पाबंदियों को उज़्बेकिस्तान क्षेत्रीय व्यापार में अपना रसूख़ बढ़ाने के अवसर के तौर पर देखता है. मिसाल के तौर पर अपने ऑटोमोटिव उद्योग के लिए वो रूसी बाज़ार के खालीपन को भरने की क़वायदों पर ध्यान दे रहा है. हाल ही में संपन्न पहले ताशकंद अंतरराष्ट्रीय निवेश मंच के दौरान उज़्बेकिस्तान के शीर्ष अधिकारियों और बड़े कारोबारियों ने नई हक़ीक़तों का लाभ उठाने को लेकर अपनी योजनाओं के बारे में विस्तार से चर्चा की. वो इसके ज़रिए अपने देश की अर्थव्यवस्था और निर्यात क्षमताओं में मज़बूती लाना चाहते हैं. यहां एक और अहम सवाल खड़ा होता है. दरअसल रूस के साथ उज़्बेकिस्तान को जोड़ने के लिए पक्के तौर पर परिवहन से जुड़े बुनियादी ढांचा विकल्पों का अभाव है. ऐसे में उज़्बेकिस्तान के लिए हालात मुश्किलों भरे हो जाते हैं.

हैरानी की बात ये है कि इस इलाक़े में रूस के सबसे क़रीबी मुल्क कज़ाकिस्तान ने सबसे ज़्यादा रूस-विरोधी रुख़ अख़्तियार किया. राष्ट्रपति के प्रशासनिक अमले के फ़र्स्ट डिप्टी हेड तिमूर सुलेमिनोव के बेबाक़ बयान से ये बात पूरी तरह से ज़ाहिर हो गई.

कज़ाकिस्तान का रूस-विरोधी रुख़ 

हैरानी की बात ये है कि इस इलाक़े में रूस के सबसे क़रीबी मुल्क कज़ाकिस्तान ने सबसे ज़्यादा रूस-विरोधी रुख़ अख़्तियार किया. राष्ट्रपति के प्रशासनिक अमले के फ़र्स्ट डिप्टी हेड तिमूर सुलेमिनोव के बेबाक़ बयान से ये बात पूरी तरह से ज़ाहिर हो गई. उन्होंने दो टूक लब्ज़ों में कहा कि “रूस के ख़िलाफ़ अमेरिका और यूरोपीय संघ द्वारा लगाई गई पाबंदियों को नाकाम करने का मोहरा कज़ाकिस्तान नहीं बनेगा.” कज़ाकिस्तान का ये रुख़ ख़ासतौर से चुनौतीपूर्ण दिखाई देता है. दरअसल यही वो मुल्क है जिसके पास मुश्किल हालात में फंसे रूस की मदद करने के सबसे ज़्यादा अवसर मौजूद हैं. दोनों ही देश एक विशाल सरहद साझा करते हैं. दोनों के बीच परिवहन का सुविकसित बुनियादी ढांचा है और यहां की आर्थिक विकास का स्तर भी अपेक्षाकृत ऊंचा है. 

मध्य एशिया के पांच देशों के सामने बड़ी दुविधा की स्थिति है. वो रूस के साथ सहयोग बढ़ाकर नए अवसरों का भरपूर लाभ उठा सकते हैं, लेकिन इसके लिए उन्हें पश्चिम का दबाव झेलना होगा.

हालांकि पाबंदियों में पलीता लगाने की रूसी हसरतों के रास्ते की मुख्य रुकावट बुनियादी ढांचों से जुड़ी दिक़्क़तें नहीं हैं. दरअसल यहां के तमाम मुल्क पश्चिम के दबाव से डरते हैं. यही वजह है कि मध्य एशिया के पांच देशों ने एक तटस्थ लीक पर चलते हुए यूक्रेन संकट से ख़ुद को दूर ही रखा है. इस तरह ये तमाम देश प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से पश्चिमी पाबंदियों की ज़द में आने के ख़तरों को कम करने की जुगत में लगे रहे. हालांकि इन हालातों के बावजूद इस इलाक़े के देश अमेरिका और उसके मित्र देशों की ओर से भारी दबाव झेल रहे हैं. अमेरिका समेत उसके तमाम साथी देश पाबंदियों और रोक को नाकाम करने की किसी भी कोशिश पर पैनी निगाह बनाए हुए हैं. यही वजह है कि हाल ही में अमेरिका के शीर्ष राजनयिकों और अधिकारियों ने बार-बार मध्य एशिया के दौरे किए हैं. आधिकारिक तौर पर वो आर्थिक और मानवतावादी सहयोग पर चर्चा करते हैं, लेकिन अमेरिका की ओर से ये नसीहत देने की पूरी कोशिश की जाती है कि इस इलाक़े के तमाम देश मौजूदा हालातों में रूस की किसी भी तरह से मदद न करें. इस तरह से अमेरिका ने इन देशों के सामने लक्ष्मण रेखा खींच दी है. उसने साफ़ कर दिया है कि रूस को किसी भी तरह की मदद उसे कतई मंज़ूर नहीं है. 

लिहाज़ा मध्य एशिया के पांच देशों के सामने बड़ी दुविधा की स्थिति है. वो रूस के साथ सहयोग बढ़ाकर नए अवसरों का भरपूर लाभ उठा सकते हैं, लेकिन इसके लिए उन्हें पश्चिम का दबाव झेलना होगा. या फिर वो पश्चिम की पाबंदियों से डरकर ख़ुद को हो रहे नुक़सान के बावजूद रूस के साथ आर्थिक और सियासी संवाद के स्तरों में कमी ला सकते हैं.

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