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यूक्रेन और पश्चिमी एशिया में भौतिक युद्धों के जारी रहने के बावजूद आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) लगातार हमारा ध्यान खींचने में सफल हो रहा है. इसका सैम ऑल्टमैन और OpenAI के इर्द-गिर्द जारी नाटक से कोई संबंध नहीं है. हालांकि इस बात के संकेत हैं कि AI से जुड़े कुछ घटनाक्रमों के कारण ही उनकी बर्खास्तगी हुई होगी.
रॉयटर्स के मुताबिक ऑल्टमैन को बर्खास्त करने वाले बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स को अनेक शोधकर्ताओं ने लिखित रूप से “एक ताक़तवर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के खोज की चेतावनी दी थी जो उनके मुताबिक मानवता के लिए ख़तरा बन सकती है.” ये आर्टिफिशियल जनरल इंटेलिजेंस (AGI) पर “प्रोजेक्ट Q*” से संबंधित हो सकता है जो स्वायत्त प्रणालियों से जुड़ता है, जो कुछ कार्यों में इंसानों से आगे निकल सकता है. 2023 में विज्ञान और प्रौद्योगिकी पर जारी नेटो की एक रिपोर्ट में AGI को “AI नवाचार का दुर्लभ लक्ष्य” क़रार देते हुए ये कहा गया था कि उसे इस दिशा में अगले 20 वर्षों के भीतर किसी सफलता की उम्मीद नहीं है.
ये आर्टिफिशियल जनरल इंटेलिजेंस (AGI) पर “प्रोजेक्ट Q*” से संबंधित हो सकता है जो स्वायत्त प्रणालियों से जुड़ता है, जो कुछ कार्यों में इंसानों से आगे निकल सकता है..
हाल ही में सैन फ्रांसिस्को में आयोजित एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग (APEC) की बैठक के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन और चीनी राष्ट्रपति शी का शिखर सम्मेलन अमेरिका-चीन सैन्य संचार और फ़ेंटेनाइल के ख़िलाफ़ मादक पदार्थ-विरोधी सहयोग पर केंद्रित रहा. हालांकि दोनों पक्षों द्वारा बेहद कम ब्योरा दिए जाने के चलते तीसरे घटनाक्रम ने कम ध्यान आकर्षित किया. ये घटनाक्रम AI से संबंधित है.
शिखर सम्मेलन के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में बाइडेन ने कहा “हम आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से जुड़े जोख़िम और सुरक्षा मसलों पर चर्चा के लिए अपने विशेषज्ञों को एक साथ ला रहे हैं.” उन्होंने बताया कि वो दुनिया में जहां भी गए “हर बड़ा नेता आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर बात करना चाहता है.”
ख़बरों के मुताबिक चीनी पक्ष इस क्षेत्र में अमेरिकी पहल (ख़ासतौर से परमाणु हथियारों के लिए AI कमांड और नियंत्रण प्रणालियों के लिए) को लेकर अनुकूलता दिखा रहा था. हालांकि शिखर सम्मेलन में इसका खुलकर उल्लेख नहीं किया गया, लेकिन ये वो क्षेत्र था जो दोनों देशों के बीच एक समझौते का रूप ले सकता है. इससे ये सुनिश्चित किया जा सकेगा कि परमाणु हथियारों का कमांड और नियंत्रण हमेशा इंसानी हाथों में रहे.
ख़बरों के मुताबिक, APEC के तमाम पैनलों में हिस्सा लेने वाले गूगल के सुंदर पिचाई या OpenAI के सैम ऑल्टमैन जैसे प्रौद्योगिकी जगत के नेताओं ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर AI के नियमन के विचार का मोटे तौर पर समर्थन किया.
अमेरिकी सरकार ने इस मुद्दे पर एक महत्वपूर्ण कार्यकारी आदेश के साथ नेतृत्वकारी भूमिका ली है और AI के सैन्य उपयोगों के विषय पर वैश्विक मानकों को आगे बढ़ाया है. 30 अक्टूबर को जारी आदेश में कहा गया है कि अमेरिका ये सुनिश्चित करना चाहता है कि वो ना सिर्फ़ AI के विकास में बल्कि “आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के जोख़िमों के प्रबंधन” की भी “अगुवाई करे”. आदेश में इन प्रमुख कार्रवाइयों का निर्देश दिया गया: 1) सबसे ताक़तवर AI प्रणालियों के डेवलपर्स के लिए उनके सुरक्षा परीक्षण परिणामों और अन्य सूचनाओं को सरकार के साथ साझा करने की ज़रूरत; 2) AI प्रणालियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए मानकों, उपकरणों और परीक्षणों का विकास; 3) “ख़तरनाक जैविक सामग्रियों के विकास” में AI के उपयोग से जुड़े जोख़िमों के ख़िलाफ़ बचाव; 4) AI के संरक्षित और सुरक्षित उपयोग को समर्थन देने के लिए अन्य देशों के साथ काम करना.
दुनिया में जहां भी गए “हर बड़ा नेता आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर बात करना चाहता है.
अमेरिका इस साल की शुरुआत से ही इस मसले पर सक्रिय रहा है. फरवरी में अमेरिकी रक्षा विभाग ने नैतिक नियमनों में पैराग्राफ जोड़कर स्वायत्त हथियारों के विकास पर अपने नियमों में संशोधन का निर्देश जारी किया. नए हथियारों के कार्यक्रमों को इनका निश्चित रूप से पालन करना होगा. साथ ही अपने कार्यक्रमों की निगरानी के लिए एक नया स्वायत्त हथियार प्रणाली कार्य समूह भी तैयार करना होगा. इस क़वायद का मक़सद ऐसी प्रणालियों के विकास में अड़चन डालना नहीं था, बल्कि समीक्षा प्रक्रियाओं को स्पष्ट रूप से रेखांकित करके इसमें मदद करना था.
उसी महीने, द हेग में अमेरिकी विदेश विभाग ने “आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और स्वायत्तता के ज़िम्मेदारी भरे सैन्य उपयोग के लिए राजनीतिक घोषणापत्र” सामने रखा, जिसमें अमेरिका का सामान्य दृष्टिकोण प्रस्तुत किया गया. तब से 47 देश (मुख्य रूप से अमेरिका के सहयोगी) इसे अनुमोदित कर चुके हैं, हालांकि भारत या चीन ने ऐसा नहीं किया है. बयान में ऐसे हथियारों पर प्रतिबंध की बात नहीं कही गई है, लेकिन “नैतिक और ज़िम्मेदारी” भरे उपयोग को बढ़ावा देने और ये सुनिश्चित करने की बात ज़रूर कही गई है कि ऐसी प्रणालियां “मानवीय कमांड और नियंत्रण की ज़िम्मेदार श्रृंखला के भीतर” काम करें.
अमेरिकी नेशनल इंटेलिजेंस काउंसिल की 2021 की “फ्यूचर ऑफ द बैटलफील्ड” रिपोर्ट में कहा गया है कि भविष्य के युद्धों में स्वायत्त प्रणालियां और AI द्वारा अहम भूमिका निभाए जाने के आसार हैं. ऐसी प्रणालियों और AI ने टेक्नोलॉजियों को सक्षम बनाने में अहम भूमिका निभाई है, जिससे “मौजूदा प्लेटफॉर्मों को मानव संपर्क के घटते स्तर के साथ काम करने की छूट मिल गई...”
न्यूयॉर्क टाइम्स के लेख में बताया गया है कि यूक्रेन युद्ध ने एक ऐसा वातावरण बनाया जहां रेडियो संचार और GPS लगातार जाम हो रहे हैं, जिससे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में उन्नति को रफ़्तार मिल गई है. पूर्व में, ड्रोन अपने मिशनों को अंजाम देने के लिए मानवीय ऑपरेटरों पर निर्भर रहते थे, लेकिन अब उन्हें स्वायत्त बनाने को लेकर सॉफ्टवेयर का विकास हो रहा है.
संयुक्त राष्ट्र के सरकारी विशेषज्ञों का समूह पिछले कुछ समय से AI के नियमन के मसले पर चर्चा करता आ रहा है, लेकिन वो अब तक सर्वसम्मति तक नहीं पहुंच पाया है. हालांकि ऑस्ट्रिया द्वारा एक मसौदा प्रस्ताव पेश किया गया है जिसमें संयुक्त राष्ट्र महासचिव से विचार जुटाने और रिपोर्ट पेश करने का आह्वान किया गया. संयुक्त राष्ट्र महासभा में ये प्रस्ताव 164-5 से पारित हुआ, अमेरिका इस प्रस्ताव के समर्थन में था, जबकि रूस इसके ख़िलाफ़ रहा और चीन मतदान से ग़ैर-हाज़िर रहा. तीनों बड़े किरदार- अमेरिका, रूस और चीन चाहते हैं कि वास्तविक निर्णय विशेषज्ञों के समूह द्वारा लिया जाए.
वैसे तो प्रमुख शक्तियों के बीच जारी बहस में सैन्य प्रयोग से जुड़े विचार हावी हैं, लेकिन भारत की सार्वजनिक चिंताएं कुछ अलग दिखाई देती हैं. हाल ही में प्रधानमंत्री ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के उपयोग से तैयार किए जाने वाले डीपफेक वीडियो पर चिंता व्यक्त की है. ये चिंता डीपफेक तैयार करने में AI के उपयोग से जुड़ी है, जिससे झूठी सूचनाओं का प्रसार होता है. साथ ही विभाजनकारी सामग्री को विस्तार देने में एल्गोरिदम का इस्तेमाल भी परेशानी का सबब बना हुआ है. AI का उपयोग करके भारतीय मनोरंजन उद्योग को चोट पहुंचाने पर भी चिंताएं ज़ाहिर की जा रही हैं.
सैन्य ऐप्लिकेशनों वाली तकनीक को लेकर दुनिया का अनुभव ये है कि यहां के देश इस दिशा में आगे बढ़ने में संकोच नहीं करेंगे, चाहे इससे जुड़े नैतिक मसले और चिंताएं कुछ भी क्यों ना हों.
2018 में नीति आयोग द्वारा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर राष्ट्रीय रणनीति जारी की गई, जो आर्थिक या सामाजिक लाभ के लिए AI के दोहन से ज़्यादा जुड़ी है. पिछली जुलाई में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इतिहास में पहली बार आयोजित "रक्षा में AI सम्मेलन " के दौरान 75 नव विकसित AI तकनीकों की शुरुआत की. ख़बरों के मुताबिक उन्होंने कहा कि "रक्षा क्षेत्र में AI और बिग डेटा जैसी तकनीकों का समय उपयोग इसलिए सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण है ताकि हम प्रौद्योगिकी रेखा में पीछे न छूट जाएं और हम हमारी सशस्त्र सेवाओं के लिए टेक्नोलॉजी का अधिकतम लाभ उठाने के क़ाबिल बन सकें." फ़िलहाल इस बात के कोई संकेत नहीं हैं कि भारत आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के ज़्यादा परेशानी पैदा करने वाले पहलुओं को लेकर चिंतित है, हालांकि यही बातें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चिंता पैदा कर रही हैं.
सैन्य उद्देश्यों के लिए AI के उपयोग के नियमन के मसले पर दुनिया स्पष्ट रूप से निर्णायक बिंदु पर है. सैन्य ऐप्लिकेशनों वाली तकनीक को लेकर दुनिया का अनुभव ये है कि यहां के देश इस दिशा में आगे बढ़ने में संकोच नहीं करेंगे, चाहे इससे जुड़े नैतिक मसले और चिंताएं कुछ भी क्यों ना हों.
संयुक्त राष्ट्र का अनुभव बताता है कि दुनिया के देश एक वैश्विक नियामक सत्ता के लिए अपनी वचनबद्धता देने को तैयार नहीं हैं. हालांकि, जैसा कि परमाणु हथियारों के मामले में है, ये देश इसके सैन्य उपयोग के नियमन के लिए द्विपक्षीय या मिनीलैट्रल व्यवस्थाओं में प्रवेश को इच्छुक हो सकते हैं.
दुर्भाग्य से AI के सैन्य ऐप्लिकेशनों के नियमन से जुड़े आह्वान एक ऐसे समय पर सामने आ रहे हैं जब दुनिया में परमाणु हथियारों की नियमन व्यवस्था नाकाम होती जा रही है. निश्चित तौर पर ये शुभ संकेत नहीं हैं.
मनोज जोशी ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में प्रतिष्ठित फेलो हैं.
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Manoj Joshi is a Distinguished Fellow at the ORF. He has been a journalist specialising on national and international politics and is a commentator and ...
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