Expert Speak Raisina Debates
Published on Jan 08, 2024 Updated 0 Hours ago

दोनों ही दलों के नेताओं के व्यक्तित्वों के सीमित प्रभाव को देखते हुए, ऐसा लग रहा है कि 2024 का अमेरिकी चुनाव मुद्दों पर आधारित अभियान के ज़रिए लड़ा जाएगा.

2024 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव: एक लेखा-जोखा

अमेरिका में राज्यों के प्राथमिक चुनाव इस साल मार्च से सितंबर के दौरान होने प्रस्तावित हैं. इनके साथ ही अमेरिका राष्ट्रपति चुनाव के बेहद अहम साल में दाखिल हो गया है. बहुत कम ही ऐसे अमेरिकी वयस्क नागरिक होंगे, जो 2024 में जो बाइडेन और डोनाल्ड ट्रंप के बीच मुक़ाबला होते देखना चाहते हैं. लेकिन ऐसा लग रहा है कि राष्ट्रपति चुनाव में मुक़ाबला इन्हीं दोनों के बीच होगा. रिपब्लिकन पार्टी के खेमे में ट्रंप अपने सबसे नज़दीकी प्रतिद्वंदी रॉन डेसेंटिस से 46 प्रतिशत के अंतर से आगे चल रहे हैं. कुछ पूर्वानुमान बता रहे हैं कि काफ़ी समर्थन बटोर रही, निक्की हेली बहुत जल्द रॉन डेसेंटिस को छोड़कर, रिपब्लिकन पार्टी में दूसरा स्थान हासिल कर सकती हैं. अब तक रिपब्लिकन पार्टी की सभी परिचर्चाओं से ट्रंप के ग़ैरहाज़िर रहने के बावजूद, उनकी लोकप्रियता पर कोई ख़ास असर नहीं पड़ा है. इसके उलट, बड़े घातक रूप से रिपब्लिकन पार्टी के भीतरट्रंप के बग़ैर ट्रंपवादका चलन ज़ोर पकड़ चुका है. डेमोक्रेटिक पार्टी के खेमे में जो बाइडेन तन्हा लड़ाई लड़ रहे हैं और उन्होंने अपने चुनाव अभियान को विशेष रूप से ट्रंप का मुक़ाबला करने पर केंद्रित रखा है. जहां तक मुद्दों की बात है, तो रिपब्लिकन पार्टी, दक्षिणी राज्यों की सीमा से घुसपैठ, संघीय सरकार का बजट ग़लत दिशा में ले जाकर ख़ास तौर से जलवायु परिवर्तन और मूलभूत ढांचे के क्षेत्र में ख़र्च करने औरवोकवादजैसे मसलों पर बाइडेन प्रशासन को घेर रही है. वहीं, जो बाइडेन ने अपने अभियान कोबाइडेनॉमिक्सके ज़रिए अर्थव्यवस्था को मज़बूती देने, लोकतंत्र को बहाल करने, कामकाजी तबक़े पर ज़ोर देने और पूरी दुनिया में दोस्तों और साझीदारों का भरोसा दोबारा जीतने जैसे मुद्दों पर केंद्रित रखा है.

जो बाइडेन ने अपने अभियान को ‘बाइडेनॉमिक्स’ के ज़रिए अर्थव्यवस्था को मज़बूती देने, लोकतंत्र को बहाल करने, कामकाजी तबक़े पर ज़ोर देने और पूरी दुनिया में दोस्तों और साझीदारों का भरोसा दोबारा जीतने जैसे मुद्दों पर केंद्रित रखा है.

आत्मा बचाने की लड़ाई

2024 के अमेरिकी चुनाव मुद्दों पर आधारित अभियानों पर चल रहे हैं, क्योंकि दोनों ही दलों के उम्मीदवार ऐसे नहीं हैं, जिनके पास अपने चमत्कारी व्यक्तित्व से माहौल बदल देने की क्षमता हो. जो बाइडेन और ट्रंप की बात करें, तो ऐसा लगता है कि अपनी छवि के दम पर ट्रंप के पास वोट बटोरने की क्षमता ज़्यादा है. उम्र के आठवें दशक में चल रहे ट्रंप के मुक़ाबले में अस्सी पार हो चुके जो बाइडेन हैं और मीडिया में दोनों ही नेताओं कीबहुत साफ छवि होने के लिए आलोचना की जा रही है. डॉनल्ड ट्रंप के खिलाफ कई मामले चल रहे हैं और उनको सज़ा होने की आशंका है, जिससे चुनावों में उनकी लोकप्रियता को चोट पहुंचने की संभावना है. वहीं जो बाइडेन, उन तमाम आरोपों से ख़ुद को दूर रखने की कोशिश कर रहे हैं, जो उनके बेटे हंटर बाइडेन पर लगे हैं. पिछले कुछ वर्षों के दौरान अमेरिका में रजिस्टर्ड स्वतंत्र मतदाताओं की तादाद काफ़ी बढ़ गई है. इससे ये भी पता चलता है कि 2024 में मुद्दे, उम्मीदवारों की छवि पर भारी पड़ सकते हैं. फिर भी, अमेरिका के राष्ट्रपति चुनावों में उम्मीदवारों का व्यक्तित्व, सियासी नैरेटिव गढ़ने में एक अहम भूमिका निभाता रहा है. 1992 के चुनावों में तत्कालीन राष्ट्रपति हर्बर्ट वॉकर बुश ने अपने कार्यकाल में पूर्व सोवियत संघ के पतन में अहम भूमिका निभाई थी और 1991 के पहले खाड़ी युद्ध में भी अमेरिका को जीत दिलाई थी. फिर भी, उन्हें तुलनात्मक रूप से नए और युवा नेता बिल क्लिंटन ने मात दे दी थी. मौजूदा चुनाव में जो बाइडेन केकमज़ोर नेतृत्वसी बहुत चर्चा हो रही है, जबकि उन्होंने बहुत सी सफलताएं प्राप्त की हैं. मतदाताओं के बीच सबसे बड़ी चिंता बाइडेन के राष्ट्रपति का एक और कार्यकाल पूरा करने की क्षमता को लेकर है. न्यूयॉर्क टाइम्स और सिएना कॉलेज द्वारा कराए गए एक सर्वे और ओहियो, जॉर्जिया और एरिज़ोना के स्विंग राज्यों में प्राइमरी चुनाव के दौरान मतदाताओं ने बहुत ज़ोर शोर से राष्ट्रपति बाइडेन की उम्र का मसला उठाया था. बाइडेन, सात स्विंग राज्यों- एरिज़ोना, जॉर्जिया, मिशिगन, नवादा, नॉर्थ कैरोलिना, पेंसिल्वेनिया और विस्कॉन्सिन में ट्रंप से पीछे चल रहे हैं.

अमेरिका में सियासी और सामाजिक स्थिरता के बड़े सवाल, 2024 के राष्ट्रपति चुनाव के अहम मुद्दे हैं. यहां तक कि ख़ुद राष्ट्रपति बाइडेन, ट्रंप केमेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ (MAGA) और 6 जनवरी के कैपिटॉल हिल दंगों का हवाला देकर लोगों को इनके प्रति सचेत कर रहे हैं. चुनाव में फ़र्ज़ीवाड़े और नतीजों की चोरी को लेकर हल्ला-गुल्ला, 6 जनवरी के विद्रोह और वैक्सीन का विरोध, ट्रंप के अभियान के बहुचर्चित मसले हैं. रिपब्लिकन पार्टी के नेताओं ने भी ऐसे ही मसलों पर बाइडेन को घेरा है. इस मुद्दे पर जनता के बीच विभाजन, को भयंकर ध्रुवीकरण का नतीजा माना जा रहा है, जो 2016 और 2020 के चुनावों के दौरान भी दिखा था. शहरी अव्यवस्था की समस्या ने भी अमेरिका की सियासी पहेली को और उलझा दिया है. नस्लवादी हत्याओं, अपराधियों की पनाह बन चुके शहरों और तेज़ी से बढ़ रहे अपराध और गैंग की हिंसा को लेकर मतदाता बुरी तरह बंटे हुए हैं. बाइडेन ने अपना चुनाव अभियान, ‘देश की आत्मा बचाने के संघर्षपर केंद्रित कर रखा है. ब्लैक लाइव्स मैटर बनाम ऑल लाइव्स मैटर के एक दूसरे के विपरीत चलाए जा रहे अभियान और ग़ज़ा में इजरायल और हमास के बीच जंग की वजह से पूरे देश में बढ़ रहा यहूदी विरोध, अमेरिकी समाज को छिन्न भिन्न हो जाने के मुहाने पर ले आया है. घरेलू चुनावों में इन मुद्दों ने बड़ी तेज़ी से अपनी जगह बढ़ा ली है और इनका असर 2024 के चुनाव पर भी पड़ने की आशंका है. मिसाल के तौर पर एक पोल में पता चला था कि ग़ज़ा में युद्ध विराम में देरी की वजह से जो बाइडेन के युवा वोटरों का समर्थन खो देने की आशंका है. डेमोक्रेटिक पार्टी, प्रगतिशील घरेलू मसलों पर ज़ोर देती रही है. इसमें गर्भपात जैसा मुद्दा उल्लेखनीय है. 2022 के मध्यावधि चुनावों के दौरान, कई अहम राज्यों में गर्भपात के अधिकार का मुद्दा बहुत अहम हो गया था. ये बात ओहियो राज्य में साफ़ तौर पर दिखी थी, जहां मतदाताओं ने गर्भपात और बच्चे पैदा करने के अधिकारों की गारंटी देने वाले संविधान संशोधन को मंज़ूरी दी थी. वहीं, जॉर्जिया और पेंसिल्वेनिया के चुनावों में भी ये केंद्रीय मुद्दा बना रहा था.

दक्षिणी सीमा पर पनाह मांगने वाले अप्रवासियों की उमड़ती भीड़ और पनाह मांगने वालों की रिकॉर्ड तादाद के चलते अमेरिका में अप्रवासियों की बाढ़ एक ज्वलंत मुद्दा है. रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक पार्टी के बीच अप्रवासियों का मुद्दा निर्णायक बनकर लौटा है और इस वक़्त यूक्रेन को सहायता देने वाले विधेयक के लटकने की बड़ी वजह ये मसला ही है. अपने कार्यकाल की शुरुआत में बाइडेन ने ट्रंप की अप्रवास नीतियों को पलट दिया था, जिसे नरमपंथी रुख़ के तौर पर देखा गया, जिससे अमेरिका आने वाले अप्रवासियों की बाढ़ गई. आज हालत बेक़ाबू हो रहे हैं, और अब बाइडेन प्रशासन ने ट्रंप सरकार के दौर में दक्षिणी सीमा पर बनाई जा रही दीवार का एक हिस्सा बनाने और सीमा पर एजेंटों की तादाद बढ़ाने का फ़ैसला किया है.

ऐतिहासिक रूप से देखें, तो तेल गैस के बढ़ते दामों ने हमेशा ही अमेरिका के राष्ट्रपति चुनावों पर प्रमुखता से असर डाला है.

बाइडेन प्रशासन कई नीतिगत विधेयकों को पारित कराने में सफल रहा है. इसमें द्विपक्षीय सहमति वाला मूलभूत ढांचे का समझौता, अमेरिकन रेस्क्यू प्लान और चिप्स एवं साइंस एक्ट प्रमुख हैं. हालांकि महगाई और विदेश नीति के फ़ैसले, ख़ास तौर से अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी का बाइडेन की चुनावी रेटिंग्स पर गहरा असर पड़ा है. ऐतिहासिक रूप से देखें, तो तेल गैस के बढ़ते दामों ने हमेशा ही अमेरिका के राष्ट्रपति चुनावों पर प्रमुखता से असर डाला है. इसका सबसे बड़ा उदाहरण तो 1980 के चुनाव थे, जब जिम्मी कार्टर इसी वजह से रोनाल्ड रीगन से चुनाव हार गए थे. मध्य पूर्व और यूरोप में युद्ध के चलते, और बाइडेन की ग्रीन डील को लेकर रिपब्लिकन पार्टी द्वारा संशय जताने की वजह से इस बार भी ऊर्जा की सियासत, चुनावी मुहिम के केंद्र में रहेगी. 

विदेश नीति

अमेरिका में घरेलू मुद्दे बहुत नज़दीकी से विदेश नीति से जुड़े रहे है और चीन चिंता का सबसे बड़ा विषय है. इस चिंता ने केवल अमेरिका की नीतियां बनाने वाले कुलीन वर्ग को फ़िक्र में डाला है, बल्कि अमेरिकी जनता पर भी इसका असर पड़ रहा है. अमेरिका के 59 प्रतिशत लोग चीन के प्रति नकारात्मक नज़रिया रखते हैं, और दोनों देशों के बीच बढ़ते सैन्य और आर्थिक तनाव की वजह से अमेरिकी जनता चीन को या तो दुश्मन देश मानती है या फिर ऐसा देश जिसका रवैया दोस्ताना नहीं है. चीन के ख़तरे से निपटना एक केंद्रीय मुद्दा बन गया है, जिसकी वजह से दोनों ही पार्टियां चीन के प्रति ज़्यादा कड़ा रवैया अपनाने की बात कह रही हैं.

रिपब्लिकन पार्टी के वाद-विवाद में बहस चीन का मुक़ाबला करने और ख़ास तौर से दक्षिणी चीन सागर और ताइवान को लेकर तनाव को देखते हुए, जंगी जहाज़ों की संख्या बढ़ाकर, नौसेना की ताक़त बढ़ाने के इर्द गिर्द घूमती रही है. चीन से मुक़ाबला करने के मामले में जो एक अहम चुनौती अमेरिका के लिए है, वो ये कि चीन की अगुवाई वाले निवेश का विकल्प कैसे मुहैया कराया जाए. ये बात अमेरिकाज़ शिखर सम्मेलन के दौरान प्रमुखता से उभरी थी. ये कोशिश अमेरिका केबिल्ड बैक बेटरयोजना या फिर हिंद प्रशांत आर्थिक रूप-रेखा से मेल खाती है. ट्रंप के शासनकाल में चीन के ऊपर बढ़ाए गए व्यापार कर, मोटा-मोटी बाइडेन के कार्यकाल में भी जारी रहे हैं और इन्हें दोनों ही पार्टियों से ख़ूब समर्थन मिलता रहा है. इससे पता चलता है कि चीन को लेकर सभी दलों की राय एक है. चीन के साथ विवाद के तमाम मसलों के बीच, फेंटानिल को लेकर बढ़ती चिंता सबसे अलग दिखती है. कई राजनेता इसे बहुत भयंकर ख़तरा बता रहे हैं. डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता हाल ही में फेंटानिल को लेकर चीन के साथ हुए समझौते का हवाला देकर मज़बूत रुख़ अपनाने का दावा करते हैं. वहीं, रिपब्लिकन पार्टी के नेता चीन से मुक़ाबला करने की बाइडेन की नीतियों को कमज़ोर बताते हैं. उनकी इस बात को अमेरिकी संसद के निचले सदन में भी समर्थन मिलता है.

डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता हाल ही में फेंटानिल को लेकर चीन के साथ हुए समझौते का हवाला देकर मज़बूत रुख़ अपनाने का दावा करते हैं. वहीं, रिपब्लिकन पार्टी के नेता चीन से मुक़ाबला करने की बाइडेन की नीतियों को कमज़ोर बताते हैं.

यूक्रेन और इज़राइल को बाइडेन द्वारा मज़बूती से समर्थन देने के बावजूद, उनकी पार्टी इन मसलों पर बंटी हुई है और तरक़्क़ीपसंद तबक़ा, समर्थन वापस लेने और गाजा में युद्ध विराम की वकालत कर रहा है. इज़राइल और हमास के युद्ध की वजह से युवा मतदाताओं के बीच बाइडेन की लोकप्रियता पहले ही उतार पर है. ये बात ट्रंप के लिए और भी मुफ़ीद साबित हो सकती है. नवंबर में रिपब्लिकन पार्टी की तीसरी प्राइमरी डिबेट में पूछे गए ज़्यादातर सवाल राष्ट्रीय सुरक्षा, नौकरियों, व्यापार और सैन्य शक्ति से जुड़े थे. इस समय चल रहे युद्धों को लेकर बाइडेन प्रशासन के मज़बूत रवैये के बावजूद, उनकी पोल रेटिंग लगातार नीचे रह रही है. भले ही डॉनल्ड ट्रंप अब तक के पोल में आगे चल रहे हों, लेकिन कोलोराडो के सुप्रीम कोर्ट द्वारा ट्रंप के किसी सार्वजनिक पद पर रहने पर रोक लगाने का हालिया फ़ैसला उनके लिए बड़ा झटका है, ख़ास तौर से इसलिए भी क्योंकि इससे अन्य राज्यों में भी इसी तरह के मुक़दमों और फैसलों की बाढ़ सकती है. ट्रंप ने मतदाताओं के बीच, इज़राइल को अपने मज़बूत समर्थन को इस तर्क से रेखांकित किया है कि उन्होंने राजधानी को यरुशलम स्थानांतरित कराने में मदद दी और अपने कार्यकाल के आख़िरी दिनों में मध्य पूर्व के लिए एक शांति समझौते की योजना भी तैयार की थी.

इन मसलों के अलावा, अमेरिकी संसद पर सियासी नियंत्रण भी आने वाले चुनाव का केंद्रीय मुद्दा होगा क्योंकि निचले सदन और सीनेट में भी सीटें खाली होंगी और उन पर चुनाव होंगे. हालिया इतिहास को देखें, तो ज़्यादातर राष्ट्रपतियों को विभाजित कांग्रेस से ही जूझना पड़ा है. इस साल सीनेट की 33 सीटों पर चुनाव होंगे. इनमें से 10 सीटों पर रिपब्लिकन, 20 पर डेमोक्रेटिक पार्टी और 3 पर निर्दलीय क़ाबिज़ हैं. वहीं, 119वीं कांग्रेस के लिए हाउस ऑफ रिप्रेज़ेंटेटिव्स की सभी 435 सीटों पर इस साल द्विवार्षिक चुनाव होंगे. निचले सदन की मौजूदा स्थिति में रिपब्लिकन पार्टी का क़ब्ज़ा है, जबकि सीनेट में डेमोक्रेटिक पार्टी को मामूली बढ़त हासिल है. ट्रंप हों या बाइडेन, दोनों ही नेता यही चाहेंगे कि उन्हें बंटी हुई संसद मिले.

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