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भारत में जीवन प्रत्याशा बढ़ रही है, साथ ही परिवारों के भीतर बुजुर्गों के देखभाल की व्यवस्था दरक रही है. इन हालातों में भारत में 80 साल से ज़्यादा आयु के नागरिकों को गरिमापूर्ण और ख़ुशहाल जीवन प्रदान करने के लिए तत्काल न केवल महंगाई दर पर आधारित सार्वभौमिक पेंशन की सुविधा सुनिश्चित की जानी चाहिए, बल्कि उनकी देखभाल के लिए पुख़्ता नीतिगत क़दम भी उठाए जाने चाहिए.
Image Source: Getty
हरियाणा के गुरुग्राम में हाल ही में एक बुजुर्ग दंपति की अनदेखी और दुर्व्यवहार का मामला काफ़ी सुर्खियों में रहा था. बुजुर्ग दंपति का बेटा विदेश में रहता है और उसने अपने माता-पिता को बेसहारा छोड़ दिया, सालों से उनकी कोई सुध नहीं ली. इस घटना ने एक बार फिर भारत में बुजुर्गों की देखभाल से जुड़ी चिंताओं को बहस के केंद्र में ला दिया है. वर्ष 2025 में भारत की कुल आबादी में बुजुर्गों की कुल संख्या लगभग 10.1 प्रतिशत है. कुल आबादी में वृद्धों की जनसंख्या वर्ष 2031 में 13.1 फीसदी, जबकि वर्ष 2050 में 20 प्रतिशत तक पहुंचने की संभावना है. अगर राज्यों में बुजुर्गों की आबादी पर नज़र डालें, तो 16.5 प्रतिशत के साथ केरल में बुजुर्गों की संख्या सबसे अधिक है, उसके बाद नंबर आता है तमिलनाडु का, जहां कुल आबादी में वृद्धजनों की तादाद 13.6 फीसदी है, जबकि हिमाचल प्रदेश में 13.1 प्रतिशत और पंजाब में कुल जनसंख्या में बुजुर्गों की हिस्सेदारी 12.6 प्रतिशत है. भारत में बुजुर्गों की आबादी लगातार बढ़ रही है, बावज़ूद इसके आम चर्चाओं और विमर्श में इनकी समस्याओं और ज़रूरतों पर कोई ख़ास ध्यान नहीं दिया जाता है. केंद्र और राज्य सरकारों की ओर से हालांकि वरिष्ठ नागरिकों की देखभाल और उनकी बेहतरी के लिए कुछ कल्याणकारी पहलें चलाई गई हैं. लेकिन ज़मीनी सच्चाई यही है कि न तो बुजुर्गों से जुड़े मुद्दों और उनकी समस्याओं को कभी समाचारों में जगह मिलती है और न ही देश में राजनीतिक लिहाज़ से बुजुर्गों की कोई अहमियत है. ज़ाहिर है कि भारत जैसे देश में, जहां की राजनीति में देखा जाए तो हर स्तर पर बुजुर्गों का ही वर्चस्व है, वहां बुजुर्ग आबादी की इस प्रकार की अनदेखी कहीं न कहीं बेहद हैरान करने वाली है. हाल ही में गुरुग्राम के मामले में भी ऐसा ही हुआ है. जब कभी बुजुर्गों के साथ दुर्व्यवहार और उनकी अनदेखी से जुड़ी इस तरह की ख़बरें सामने आती हैं, तो ऐसी घटनाएं निश्चित तौर पर हमें बुजुर्गों की देखभाल और उनकी सुरक्षा के बारे गंभीरता से सोचने के लिए प्रेरित करती हैं.
भारत में बुजुर्गों की आबादी लगातार बढ़ रही है, बावज़ूद इसके आम चर्चाओं और विमर्श में इनकी समस्याओं और ज़रूरतों पर कोई ख़ास ध्यान नहीं दिया जाता है.
भारत एक ऐसा देश है, जहां बड़े-बुजुर्गों के प्रति अत्यधिक आदर और सम्मान का भाव होता है, बच्चे अपने माता-पिता और घर के बुजुर्गों की अच्छे से देखभाल करते हैं. पारंपरिक तौर पर देखें तो देश में घर के बुजुर्गों की देखभाल और उनकी सुख-सुविधाओं की ज़िम्मेदारी परिवार के बच्चों की ही होती है. लेकिन पिछले दो-तीन दशकों के जिस प्रकार से जनसांख्यिकीय में बदलाव आया है और सामाजिक-आर्थिक रूप से व्यापक परिवर्तन हुआ है, उन हालातों में बुजुर्गों की देखरेख की इस पारंपरिक परिपाटी में भी बदलाव की ज़रूरत महसूस की जाने लगी है. सबसे पहली और अहम बात तो यह है कि भारतीयों की औसत उम्र पहले की तुलना में अधिक हो गई है, यानी अब वे पहले की अपेक्षा ज़्यादा जीते हैं. देश की आज़ादी के बाद से भारत की जीवन प्रत्याशा यानी लोगों की औसत आयु में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है. चित्र 1 में दिए गए विवरण में साफ तौर पर बताया गया है कि वर्तमान में 60 वर्ष की आयु के पुरुषों के लिए अनुमानित रूप से जीवन प्रत्याशा 17.5 वर्ष है और महिलाओं के लिए 19 वर्ष है. यानी 60 साल की आयु के बाद पुरुषों की जीने की अनुमानित उम्र 77.5 वर्ष है, जबकि महिलाओं के जीने की अनुमानित उम्र 79 वर्ष है. इतना ही नहीं देश में वृद्धजनों की आबादी में भी 80 साल से ज़्यादा आयु के लोगों की संख्या में तेज़ बढ़ोतरी दर्ज़ की गई है. इंडिया एजिंग रिपोर्ट -2023 के मुताबिक़ वर्ष 2000 से 2022 के बीच देश की कुल आबादी में 34 फीसदी का इज़ाफा हुआ है, जबकि इस दौरान 80 वर्ष से अधिक आयु के बुजुर्गों की आबादी में 128 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. जनसंख्या से जुड़े अनुमानों के मुताबिक़ वर्ष 2022 और 2050 के बीच देश में 80 वर्ष से अधिक आयु वर्ग के वृद्धों की आबादी में 279 प्रतिशत का इज़ाफा होगा, जबकि इसी अवधि के दौरान कुल जनसंख्या वृद्धि घटकर सिर्फ़ 18 फीसद रह जाएगी. इतना ही नहीं, अनुमान यह भी जताया गया है कि इन 80 वर्ष से ज़्यादा उम्र के लोगों की आबादी में अत्यधिक आश्रित वृद्ध महिलाओं की संख्या सबसे अधिक होगी. ज़ाहिर है कि आने वाले वर्षों में इन बुजुर्गों की देखभाल से संबंधित आवश्यकताओं में भी वृद्धि होगी, यानी इसके लिए तमाम विशेष इंतज़ाम करने की ज़रूरत पड़ेगी.
दूसरी बड़ी बात यह है कि भारत में संयुक्त परिवार होते हैं और देखा जाए तो ये परिवार ही बुजुर्गों की देखरेख की बुनियाद हैं. लेकिन पिछले कुछ वर्षों में संयुक्त परिवार भी तेज़ी से समाप्त होते जा रहे हैं, क्योंकि लोगों को नौकरी और काम-काज के सिलसिले में अपने घरों से दूर शहरों में जाना पड़ता है, इससे वृद्ध लोग परिवारों से छूट जाते हैं और परिवार की पीढ़ियों के बीच का रिश्ता भी इससे प्रभावित हो रहा है. तीसरी वजह यह है कि भारत में परिवारों के सदस्यों की देखभाल की ज़िम्मेदारी आमतौर पर घर की महिलाओं की ही होती है. हालांकि. देश में कामकाजी और नौकरीपेशा महिलाओं की संख्या अपेक्षाकृत कम है, लेकिन अगर शहरों की बात की जाए तो वहां महिलाओं का अपने घरों से बाहर निकलकर नौकरी करना अब सामान्य सी बात हो गई है. ऐसे में घर में बुजुर्गों की देखभाल करने वालों की कमी हो गई है. इसके अतिरिक्त, परिवार भी अब छोटे हो गए हैं, यानी परिवारों में अमूमन अब बच्चे कम होते हैं, इसलिए पहले की तरह घर के बुजुर्गों की देखभाल की ज़िम्मेदारी भाइयों और बहनों के बीच बांटने की संभावना भी समाप्त सी हो गई है. यानी घर में एक या दो बच्चे होते हैं और आख़िर में परिवार के बड़ों और बुजुर्गों के देखभाल की ज़िम्मेदारी उन्हीं पर आ जाती है.
चित्र 1 : वर्ष 2015-19 के बीच विभिन्न राज्यों में लैंगिक आधार पर 60 वर्ष की आयु में जीवन प्रत्याशा
Source: India Ageing Report 2023
भारत में बुजुर्गों में वित्तीय असुरक्षा यानी बुढ़ापे में नियमित आमदनी नहीं होने के पीछे सबसे बड़ा कारण व्यापक पेंशन कवरेज नहीं होना है. आंकड़ों पर नज़र डालें तो भारत में कभी संगठित सेक्टर में काम कर चुके लगभग 73.7 प्रतिशत बुजुर्ग पुरुषों और 89.2 प्रतिशत बुजुर्ग महिलाओं को कोई पेंशन नहीं मिलती है. बुजुर्गों ने अपने काम करने के वर्षों के दौरान जो पैसा बचाया होता है, ज़्यादातर मामलों में वही बुढ़ापे में उनके जीवन-यापन का एक मात्र सहारा होता है. ज़ाहिर है कि समय के साथ बढ़ती महंगाई और वर्ष 2000 के बाद फिक्स डिपोजिट में मिलने वाले ब्याज में कमी होने से बुजुर्गों को अपनी बचत से अधिक आमदनी नहीं होती है और इससे उन्हें अपनी रोज़मर्रा की ज़रूरतों को पूरा करने में बहुत कठिनाई का सामना करना पड़ता है. इसके अलावा, पैसों की कमी से वे अपनी ज़रूरत की चीज़ें भी नहीं ख़रीद पाते हैं. इतना ही नहीं, अस्सी साल से अधिक उम्र के लोगों का स्वास्थ्य देखभाल और बीमारियों के इलाज पर होने वाला ख़र्च भी ज़्यादा होता है. इन सबके चलते वृद्ध लोगों को तमाम दिक़्क़तों से जूझना पड़ता है. एक अहम बात यह भी है कि 80 साल से अधिक उम्र के लोगों के बच्चे भी खुद वरिष्ठ नागरिक की श्रेणी में आ चुके होते हैं और नौकरी से रिटायर हो चुके होते हैं. यानी उनके पास भी अपने 80 साल से ज़्यादा उम्र वाले माता-पिता की देखभाल करने और उनके लिए सुविधाएं जुटाने के लिए पैसों की कमी होती है, साथ ही शारीरिक रूप से भी इसके लिए सक्षम नहीं होते हैं. ऐसे में यह ज़रूरी हो जाता है कि समाज और सरकार के स्तर पर अस्सी साल की आयु से अधिक के वृद्धजनों की देखभाल के लिए प्रयास किए जाएं.
देश में कामकाजी और नौकरीपेशा महिलाओं की संख्या अपेक्षाकृत कम है, लेकिन अगर शहरों की बात की जाए तो वहां महिलाओं का अपने घरों से बाहर निकलकर नौकरी करना अब सामान्य सी बात हो गई है.
अगर वर्तमान में बुजुर्गों को दी जाने वाली इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना (IGNOAPS) की बात की जाए, तो इसके तहत तो सामाजिक पेंशन दी जा रही है, उसका लाभ अत्यधिक ग़रीब तबके के बुजुर्गों को ही मिल रहा है. इसके अंतर्गत दी जाने वाली राशि इतनी कम होती है कि इससे बुजुर्गों के बुनियादी ख़र्चे भी पूरे नहीं हो पाते हैं. इसकी वजह यह है कि केंद्र सरकार की ओर से इसमें केवल 500 रुपये प्रति माह का योगदान दिया जाता है. चित्र 2 में दिए गए आंकड़ों से साफ पता चलता है कि भारत में अलग-अलग राज्यों में बुजुर्गों को दी जाने वाली पेंशन राशि में काफ़ी अंतर है. इनमें से हरियाणा (3,000 रुपये), आंध्र प्रदेश (2,750 रुपये), दिल्ली (2,500 रुपये) और सिक्किम (2,500 रुपये) जैसे राज्यों में बुजुर्गों को अपेक्षाकृत ज़्यादा पेंशन राशि दी जाती है, क्योंकि इन राज्यों में राज्य सरकार अपनी तरफ से बुजुर्गों की पेंशन राशि में अधिक योगदान देती है. वहीं अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, बिहार, दमन और दीव, गोवा, मणिपुर और नागालैंड जैसे राज्यों में 80 वर्ष से ज़्यादा आयु के बुजुर्ग नागरिकों को पेंशन के रूप में महज 500 रुपये ही मिलते हैं. दरअसल, ये राज्य और केंद्र शासित प्रदेश अपनी तरफ से वृद्धावस्था पेंशन में कोई योगदान नहीं देते हैं, इसलिए बुजुर्गों के केवल केंद्र द्वारा मुहैया की जा रही पेंशन राशि ही प्रदान की जाती है.
चित्र 2: अलग-अलग राज्यों द्वारा IGNOAPS के अंतर्गत 80 वर्ष से अधिक उम्र के बुजुर्गों को किया जाने वाला नकद हस्तांतरण
स्रोत: संसदीय प्रश्न, श्रम एवं रोज़गार मंत्रालय, राज्य सभा, अतारांकित प्रश्न संख्या 2495, 10.08.2023
नोट:
*गहरे रंग वाले इलाक़ों में बुजुर्गों को कम पेंशन राशि प्राप्त होती है
**लेखक द्वारा फ्लोरिश का उपयोग करके बनाया गया मानचित्र
वर्ष 2002 में वृद्धावस्था पर दूसरी वर्ल्ड असेंबली यानी विश्व सभा की बैठक में स्वीकृत किए गए मैड्रिड इंटरनेशनल प्लान ऑफ एक्शन ऑन एजिंग एंड पॉलिटिकल डिक्लेरेशन में, ऐसे समाज के निर्माण पर ज़ोर दिया गया, जो ‘सभी उम्र के लोगों के लिए’ अनुकूल हो. इसके प्रावधान बुजुर्गों की देखभाल और उनके कल्याण से जुड़ी नीतियों को बनाने में एक दिशा-निर्देश की तरह काम करते हैं. यह डिक्लेरेशन तीन प्रमुख नीतिगत प्राथमिकताओं पर बल देता है:
i) वृद्धावस्था और विकास, यानी बुजुर्गों को विकास प्रक्रिया में पूर्ण भागीदार बनने और इसके लाभों को उनके साथ बांटने में मदद करना.
ii) वृद्धावस्था में स्वास्थ्य और कल्याण से जुड़ी योजनाओं को प्रोत्साहित करना.
iii) बुजुर्गों की सहूलियत के लिए आवश्यक ढांचा विकसित करना, साथ ही उसे सक्षम बनाने के लिए प्रयास करना.
ऐसा नहीं है कि भारत सरकार ने वृद्धजनों की देखभाल के लिए कुछ नहीं किया है. सरकार ने बुजुर्गों की व्यापक देखभाल से जुड़ी तमाम पहलें शुरू की हैं. इन पहलों में राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम के अंतर्गत ग़रीबों के लिए चलाई जा रहीं सामाजिक पेंशन योजनाएं शामिल हैं. इनमें इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना (IGNOAPS) और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय विधवा पेंशन योजना (IGNWPS) प्रमुख हैं. इसके अलावा, कोविड-19 महामारी के दौरान भी सरकार ने बुजुर्गों का ख़ास ध्यान रखा और वैक्सीनेशन में उन्हें प्राथमिकता दी थी. इतना ही नहीं, केंद्र सरकार ने हाल ही में आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के तहत 70 वर्ष से अधिक आयु के सभी वरिष्ठ नागरिकों को शामिल करने और उन्हें सार्वभौमिक स्वास्थ्य बीमा कवरेज की सुविधा देने का ऐलान किया था. केंद्र सरकार माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण एवं कल्याण अधिनियम भी लेकर आई है और इसके ज़रिए बुजुर्गों की सुरक्षा और कल्याण को सुनिश्चित किया है. इसके अलावा, सरकार ने वरिष्ठ नागरिकों के कल्याण के लिए तमाम नीतिगत क़दम भी उठाए हैं. देश के तमाम राज्यों ने भी, ख़ास तौर पर केरल ने वृद्धों के कल्याण और उनकी सुविधाओं के लिए कई नीतिगत पहलें एवं योजनाएं शुरू की हैं.
भारत में अगर अत्यधिक वृद्ध नागरिकों के लिए जीवन के आख़िरी सालों में गरिमापूर्ण, सेहतमंद, ख़ुशहाल, संतोषजनक और चिंतामुक्त जीवन सुनिश्चित करना है, तो इसके लिए गंभीरता से कोशिश करनी होगी. इसके लिए, मैड्रिड इंटरनेशनल प्लान ऑफ एक्शन के तहत प्रस्तावित किए गए तीन नीतिगत दिशा-निर्देशों के मुताबिक़ 80 वर्ष से अधिक आयु के बुजुर्गों के लिए विशेष रूप से तैयार किए गए देखभाल कार्यक्रम बनाने और उन्हें अमल में लाने की ज़रूरत है. इसके पहले सुझाव के अनुसार 80 वर्ष से ज़्यादा उम्र के लोगों को विकास से जुड़े लाभों में साझीदार बनाया जाना चाहिए. इसके साथ ही इस आयु वर्ग के ग़रीबी रेखा के नीचे गुजर-बसर करने वाले बुजुर्गों के लिए ही नहीं, बल्कि सभी इनकम ग्रुप के वृद्धों के लिए मुद्रास्फ़ीति सूचकांक पर आधारित सार्वभौमिक पेंशन यानी महंगाई दर पर आधारित पेंशन शुरू की जानी चाहिए, जो महंगाई दर बढ़ने के साथ बढ़नी चाहिए. कहने का मतलब है कि इन वयोवृद्ध लोगों को पेंशन में इतनी राशि ज़रूर दी जानी चाहिए, जिससे वे अपने खान-पान, दवाइयों, चिकित्सीय जांच, डॉक्टरों से इलाज कराने, आवास और गर्म कपड़ों का ख़र्चा आसानी से उठा सकें. ऐसा किया जाना, इसलिए भी बहुत ज़रूरी है, क्योंकि आर्थिक तौर पर संपन्न तमाम परिवारों को भी अपने बुजुर्ग परिजनों के बीमार होने पर उनके इलाज आदि के बेतहाशा ख़र्च को पूरा करने में दिक़्क़तों से जूझ़ना पड़ रहा है. ख़ास तौर पर ऐसे परिवार, जिनमें वृद्ध माता-पिता की ज़िम्मेदारी उठाने वाले लोग खुद रिटायर हो चुके हैं, उन्हें बहुत ज़्यादा परेशानी होती है.
एक अहम बात यह भी है कि 80 साल से अधिक उम्र के लोगों के बच्चे भी खुद वरिष्ठ नागरिक की श्रेणी में आ चुके होते हैं और नौकरी से रिटायर हो चुके होते हैं.
वृद्धों की देखभाल के लिए मैड्रिड इंटरनेशनल प्लान ऑफ एक्शन के दूसरे दिशा-निर्देश में वृद्धावस्था में स्वास्थ्य और कल्याण को बढ़ावा देने की बात कही गई है. इसके अनुरूप भारत सरकार ने कुछ महीनों पहले 70 वर्ष से अधिक आयु के वरिष्ठ नागरिकों के लिए सार्वभौमिक स्वास्थ्य बीमा कार्यक्रम का ऐलान किया है, जो कि एक सराहनीय क़दम है. लेकिन इस हेल्थ बीमा कवरेज योजना के अंतर्गत बुजुर्गों को बीमारी के दौरान अस्पताल में भर्ती होने पर ही लाभ मिलता है. जबकि 80 साल से अधिक उम्र के लोगों को रोज़मर्रा के जीवन में ओपीडी, चिकित्सीय सलाह, दवाओं, मेडिकल जांचों और फिजियोथेरेपी सहित तमाम स्वास्थ्य सेवाओं की ज़रूरत पड़ती है और इन सबमें बहुत अधिक ख़र्च होता है. तीसरे दिशा-निर्देश में बुजुर्गों की देखभाल के लिए एक सहायक ढांचा विकसित करने की बात कही गई है. इसके लिए स्थानीय प्रशासन और नगर निकायों को सिविल सोसाइटी के संगठनों के साथ मिलकर एक ऐसा समुदाय-आधारित देखभाल मॉडल विकसित करना चाहिए, जो बुजुर्गों के लिए मददगार हो और जिन परिवारों में बुजुर्ग सदस्य हैं, उनको संबल देने वाला हो. अगर स्थानीय नगर निकाय या नगर निगम जैसे संस्थानों और सामाजिक संगठनों बीच बेहतर तालमेल स्थापित होगा, तो इससे निश्चित रूप से बुजुर्गों की देखभाल करने वालों को मदद मिलेगी. उदाहरण के तौर पर इससे देखभाल करने वालों को प्रशिक्षित करने, उन्हें जानकारी उपलब्ध कराने और देखभाल से जुड़ी ज़िम्मेदारियों को साझा करने में मदद मिलेगी. इसके अलावा, इमरजेंसी के दौरान बुजुर्गों तक सहायता पहुंचाने और उनके साथ होने वाली दुर्व्यवहार की घटनाओं को कम करने में भी यह मददगार होगा. ज़ाहिर है कि शहरों में इस प्रकार की सामुदायिक सहायता बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि भारत के ग्रामीण इलाक़ों के विपरीत शहरी क्षेत्रों में पारंपरिक रूप से लोगों के बीच ज़्यादा मेलजोल नहीं होता है, इससे बुजुर्गों को काफ़ी अकेलापन महसूस होता है. पश्चिम देशों की तुलना में भारत एक ऐसा देश है, जहां युवाओं की संख्या बहुत अधिक है. ऐसे में प्रभावशाली वालंटियर प्रोग्राम्स यानी स्वयंसेवी कार्यक्रमों के ज़रिए इन युवाओं का इस्तेमाल दिव्यांग, बीमार या फिर अकेले रहने वाले बुजुर्गों तक मदद पहुंचाने के लिए किया जा सकता है. जीवन के आख़िरी दिनों में जी रहे बेहद वृद्ध लोगों के पास अगर सामाजिक कार्यकर्ता नियमित रूप पहुंचते हैं और उनका हालचाल जानते हैं, अगर उनके पड़ोसियों और आसपास के लोगों के बीच मज़बूत रिश्ता क़ायम होता है और अगर युवाओं को बुजुर्गों की देखभाल के लिए स्वैच्छिक रूप से प्रोत्साहित किया जाता है, तो निश्चित तौर पर यह सभी चीज़ें वृद्धावस्था की परेशानियों से जूझ रहे लोगों के लिए बहुत सहायक साबित हो सकती हैं. एक और अहम बात यह है कि अगर अति वृद्ध लोगों की देखभाल करना घर पर मुमकिन नहीं है, तो उनके लिए इसके विकल्प भी उपलब्ध होना चाहिए, जैसे कि उन्हें किसी दूसरी जगह पर रखने और देखभाल की सुविधा विकसित की जानी चाहिए. कुल मिलाकर, निचोड़ यह है कि भारत को अपने 80 साल से ज़्यादा उम्र के नागरिकों के लिए गरिमापूर्ण और ख़ुशहाल जीवन सुनिश्चित करने के लिए उन्हें न केवल महंगाई दर के अनुरूप सार्वभौमिक पेंशन प्रदान करना चाहिए, बल्कि उनकी समुचित देखभाल के लिए एक ऐसी व्यवस्था विकसित करनी चाहिए, जिसमें समुदाय की पूरी भागीदारी हो, यानी बुजुर्गों की देखभाल एक सामूहिक और सामाजिक ज़िम्मेदारी हो.
मालांचा चक्रबर्ती ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में सीनियर फेलो और डिप्टी डायरेक्टर (रिसर्च) हैं.
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Dr Malancha Chakrabarty is Senior Fellow and Deputy Director (Research) at the Observer Research Foundation where she coordinates the research centre Centre for New Economic ...
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