Published on Jul 30, 2023 Updated 0 Hours ago

आज दुनिया का शक्ति संतुलन बिगड़ चुका है. ऐसे वक्त में जब चीन और रूस रणनीतिक साझेदारी विकसित कर रहे हैं, पश्चिमी नेतृत्व वाली वैश्विक व्यवस्था का भविष्य इस बात पर निर्भर होगा कि वह यूक्रेन संकट का कितना प्रभावी ढंग से जवाब देता है.

यूक्रेन संकट और वैश्विक व्यवस्था: क्या रूस की आक्रामकता से तेज होगा वैश्विक ध्रुवीकरण
यूक्रेन संकट और वैश्विक व्यवस्था: क्या रूस की आक्रामकता से तेज होगा वैश्विक ध्रुवीकरण

यूक्रेन पर रूसी हमले ने मौजूदा वैश्विक सुरक्षा व्यवस्था की जड़ें हिला कर रख दी हैं. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद एक बार फिर कठघरे में खड़ी है. सैन्य संगठन नाटो सीधे तौर पर लड़ाई में शामिल नहीं है, लेकिन यूक्रेन की पराजय उसके लिए भी संकट का क्षण है. कई महीनों से रूसी सेना के यूक्रेन की सीमाओं पर जमावड़े और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन द्वारा डोनेत्स्क और लुहान्स्क के रूसी समर्थित क्षेत्रों को स्वतंत्र करने की मंशा की गंभीरता को नाटो भांप नहीं पाया, जिसका परिणाम एक परिहार्य मानवीय त्रासदी के रूप में हम सबके सामने है. पुतिन ने रूस की परमाणु शक्ति का हवाला देकर समस्त यूरोप का राजनीतिक तापमान बढ़ा दिया है और नाटो को अपनी सैन्य तैयारियों पर ध्यान देने के लिए विवश कर दिया है. यूक्रेन बिना किसी शर्त के रूस के साथ शांतिवार्ता के लिए तैयार हो गया है. यूक्रेन के ‘ नाजीकरण के प्रभाव को समाप्त करने ‘ यानी ‘ विनाजीकरण ‘ की आड़ में पुतिन यूक्रेन को सैन्य तौर पर पंगु बनाना चाहते हैं परन्तु ट्रांस अटलांटिक गठबंधन यूक्रेन युद्ध टालने में कारगर साबित नहीं हुआ है. इसमें कोई संदेह नहीं कि जहां पुतिन ने संकल्प की दृढ़ता दिखाई है , जिसको कि दुस्साहस ही कहा जाएगा , वहीं पश्चिमी देश अपनी प्रतिक्रिया में असंगत नज़र आ रहे हैं. जो लोग यह मानते थे कि पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की एकपक्षीय नीतियों ने इस गठबंधन की जड़ें कमजोर की हैं उनके पास इस बात का कोई जवाब नहीं है कि बाडेन ट्रांस – अटलांटिक जुड़ाव को गहरा करने में विफल रहे हैं.

पुतिन ने रूस की परमाणु शक्ति का हवाला देकर समस्त यूरोप का राजनीतिक तापमान बढ़ा दिया है और नाटो को अपनी सैन्य तैयारियों पर ध्यान देने के लिए विवश कर दिया है. यूक्रेन बिना किसी शर्त के रूस के साथ शांतिवार्ता के लिए तैयार हो गया है.

पश्चिमी देशों और रूस के बीच संतुलन कायम करना होगा

अब तक का घटनाक्रम यही बताता है कि पुतिन रणनीतिक ज़ोखिम उठाने को तैयार हैं , और पश्चिम के पास फिलहाल इसका कोई तोड़ नहीं है. संभवतः इसी कारण संघर्ष की शुरुआत से ही ‘ पहल ‘ रूस के साथ रही है. शीत युद्ध के बाद यूरोपीय सुरक्षा व्यवस्था के पुनर्गठन की अपनी पुरानी मांग को हिंसक रूप से उजागर करने के लिए पुतिन ने यूक्रेन संकट का बखूबी उपयोग किया है. लेकिन यह क्षण पश्चिमी देशों में इच्छाशक्ति और नेतृत्व की कमी और लचर प्रतिक्रिया के लिए याद किया जाएगा. एक कमजोर देश की सम्प्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का बेरहमी से उल्लंघन किया गया है और रूस द्वारा इस भाँडे शक्ति प्रदर्शन की निंदा नहीं करने में भारत की लाचारी असहज करने वाली है. हालांकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का पुतिन से फोन पर हिंसा को रोकने का आग्रह करना , यूक्रेन के राष्ट्रपति बोलोडिमीर जेलेंस्की को टेलीफोन वार्ता पर सहानुभूति प्रकट करना और यूक्रेन को मानवतावादी सहायता प्रदान करने का निर्णय करना भारतीय नीति में बदलाव का संकेत दे रहा है. दरअसल भारत की सबसे पहली चिंता यूक्रेन में अपने नागरिकों की सुरक्षा और वैश्विक अर्थव्यवस्था पर इस संकट के विपरीत प्रभाव को लेकर है. लेकिन इस बात में कोई संदेह नहीं होना चाहिए कि भारत को अब पश्चिमी देशों और रूस के साथ अपने संबंधों के बीच संतुलन कायम करना होगा. भारत अपनी रक्षा जरूरतों के लिए रूस पर बहुत निर्भर है. ऐसे समय में जब भारतीय सैनिक वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीनी आक्रामकता का सामना कर रहे हैं तो रूस का विरोध कर भारत अपने पैरों पर कुल्हाड़ी नहीं मारना चाहेगा. हालांकि रूस द्वारा यूक्रेन की सम्प्रभुता का उल्लंघन एक ऐसा मुद्दा है जिसकी अनदेखी घातक है क्योंकि भारत ने इंडो – पैसिफिक क्षेत्र में ‘ नियम – आधारित ‘ व्यवस्था की हमेशा वकालत की है.

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का पुतिन से फोन पर हिंसा को रोकने का आग्रह करना , यूक्रेन के राष्ट्रपति बोलोडिमीर जेलेंस्की को टेलीफ़ोन वार्ता पर सहानुभूति प्रकट करना और यूक्रेन को मानवतावादी सहायता प्रदान करने का निर्णय करना भारतीय नीति में बदलाव का संकेत दे रहा है.

बिगड़ता शक्ति संतुलन

आज दुनिया का शक्ति संतुलन बिगड़ चुका है. ऐसे वक्त में जब चीन और रूस रणनीतिक साझेदारी विकसित कर रहे हैं, पश्चिमी नेतृत्व वाली वैश्विक व्यवस्था का भविष्य इस बात पर निर्भर होगा कि वह यूक्रेन संकट का कितना प्रभावी ढंग से जवाब देता है. भारत के लिए सबसे बड़ा ख़तरा यह है कि कहीं पश्चिमी देशों का ध्यान इंडो – पेसिफिक क्षेत्र से हट न जाए. यदि ऐसा हुआ तो रूस – चीन की धुरी मज़बूत ही होगी क्योंकि दोनों राष्ट्र पश्चिमी जगत का मुकाबला करने के लिए तैयार हैं. पुतिन की पहली पसंद तो यूक्रेन में शासन परिवर्तन लाने की रही है लेकिन आम यूक्रेनी नागरिकों द्वारा साहसी प्रतिरोध और राष्ट्रपति

आज दुनिया का शक्ति संतुलन बिगड़ चुका है. ऐसे वक्त में जब चीन और रूस रणनीतिक साझेदारी विकसित कर रहे हैं, पश्चिमी नेतृत्व वाली वैश्विक व्यवस्था का भविष्य इस बात पर निर्भर होगा कि वह यूक्रेन संकट का कितना प्रभावी ढंग से जवाब देता है.

विदेश नीति को परिभाषित करने की ज़रूरत 

जेलेंस्की द्वारा स्वयं को एक योद्धा के तौर पर प्रस्तुत करने के बाद यह इतना आसान नहीं होगा. पुतिन के प्रशंसक उनको बाइडेन की तुलना में अधिक कुशल रणनीतिकार के रूप में सराहेंगे और उनकी जीत का दावा भी करेंगे लेकिन पुतिन की पैंतरेबाजी दीर्घकाल में रूस की समस्याओं में ही बढ़ोतरी करेगी. प्रमुख पश्चिमी देशों में यूक्रेन पर हमले के ख़िलाफ जनाक्रोश ट्रांस- अटलांटिक एकता को फिर से मज़बूत कर सकता है. आर्थिक नुकसान की परवाह न करते हुए जर्मनी ने भी पुतिन के ख़िलाफ कड़े कदम उठाने का निर्णय किया है जो अप्रत्याशित है. यदि स्वीडन और फिनलैंड जैसे तटस्थ देश ऐसे हालात में नाटो में शामिल होने पर गंभीरता से विचार करें तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए. अमेरिका और यूरोपीय संघ द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों की फौरी मार को तो पुतिन झेल जाएंगे लेकिन धीरे – धीरे इसका असर आम रूसी जनता पर अवश्य पड़ेगा. यूक्रेन पर आक्रमण के बाद पुतिन की निर्भरता चीनी नेता शी जिनपिंग पर और बढ़ने वाली है. भारत ने रूस के साथ रिश्ते साधने का पुरजोर प्रयास किया है पर इस साझेदारी की नींव दिन प्रतिदिन कमजोर होती जा रही है. सोशल मीडिया पर भयंकर विनाश की तस्वीरें और आहत यूक्रेनवासियों को बेघर होता देखने के बाद भारत में भी पुतिन की छवि को बहुत ज़्यादा नुक़सान पहुंचा है. आज पुतिन जो भूमिका निभाते नजर आ रहे हैं और दुनिया जिस नई व्यवस्था के मुहाने पर खड़ी नज़र आ रही है , भारत को रूस व पश्चिमी देशों के साथ – साथ अपने रिश्तों को ही नहीं , बल्कि अपनी विदेश नीति को भी फिर से परिभाषित करना होगा.


यह आर्टिकल मूल रूप से पत्रिका में प्रकाशित हो चुका है.

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Authors

Harsh V. Pant

Harsh V. Pant

Professor Harsh V. Pant is Vice President – Studies and Foreign Policy at Observer Research Foundation, New Delhi. He is a Professor of International Relations ...

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Vinay Kaura

Vinay Kaura

Vinay Kaura PhD is Assistant Professor in the Department of International Affairs and Security Studies and Deputy Director of Centre for Peace &amp: Conflict Studies ...

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