-
CENTRES
Progammes & Centres
Location
ईरान के साथ विवाद को गहराने के ट्रंप के फ़ैसले से घरेलू और विदेशी स्तर पर इसे लेकर आलोचना करने वालों या इसे लेकर गुस्साए लोगों की संख्या बढ़ गई है. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि कहीं उनका सबसे दुस्साहसिक कदम उनकी सबसे बड़ी गलती न बन जाए.
Image Source: Getty
यूनाइटेड स्टेट्स (US) के राष्ट्रपति के रूप में अपने दूसरे कार्यकाल में डोनाल्ड ट्रंप खुद की छवि को एक बेहद कठोर नेता के रूप में प्रोजेक्ट करना जारी रखे हुए हैं. वे अपने ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ (MAGA) के समर्थकों को अपनी निर्भीक वाकपटुता से बरकरार रख रहे हैं. इसके लिए वे कभी देश के भीतर कानून-व्यवस्था को नए तरीके से लागू करते है तो कभी खुद को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इंटरवेंशनिस्ट सुपरपॉवर यानी हस्तक्षेपकर्ता महाशक्ति के रूप में पुनः स्थापित करते हैं. 22 जून 2025 को ट्रंप ने ईरान के तीन महत्वपूर्ण परमाणु केंद्रों -नतांज, इस्फ़हान और फोर्दो- पर बम गिराने का फ़ैसला किया. इसके साथ ही अमेरिकी सैन्य शक्ति का एक नया युग आरंभ हो गया. सितंबर 2019 में ओबामा प्रशासन के दौरान इस बात का पहली बार सार्वजनिक तौर पर खुलासा हुआ था कि तेहरान के पास एक गुप्त परमाणु सुविधा है. इसके बाद से ही लगातार US के प्रत्येक प्रशासन ने इस बात का आकलन किया है कि किस तरह ईरान को परमाणु हथियार हासिल करने से रोका जाए. अब 22 जून को उठाया गया कदम उन सारे प्रशासनों के आकलन का प्रतिनिधित्व करता है.
ईरान पर किया गया यह हमला अमेरिकी सरकारी मशीनरी, जिसमें ट्रंप के रिपब्लिकन समर्थकों का आधार और US कांग्रेस शामिल हैं, में बहस का मुद्दा बन गया है.
ईरान को ट्रंप की ओर से दी जा रही धमकियों को वैश्विक स्तर पर या तो खोखला माना गया था या फिर यह सोचा जा रहा था कि वे अपनी धमकी पर ख़रे उतरेंगे इस बात संभावना बेहद सीमित हैं. ईरान पर किया गया यह हमला अमेरिकी सरकारी मशीनरी, जिसमें ट्रंप के रिपब्लिकन समर्थकों का आधार और US कांग्रेस शामिल हैं, में बहस का मुद्दा बन गया है. सरकार के भीतर ही डायरेक्टर ऑफ नेशनल इंटेलिजेंस (DNI) तुलसी गबार्ड और राष्ट्रपति ट्रंप के बीच इसे लेकर विचारों की असहमति दिखाई दे रही है. यह असहमति उस वक़्त स्पष्ट की गई जब ट्रंप ने कहा था कि ‘शी इज रांग’ अर्थात ‘वह (गबार्ड) गलत हैं’. इस बात को लेकर भी चर्चाएं हैं कि जे. डी. वैंस भी ईरान पर हमला करने के फ़ैसले को लेकर सहमत नहीं थे. लेकिन इन चर्चाओं पर पूर्णविराम लगाते हुए वैंस ने तुरंत एक बयान जारी कर खुद को राष्ट्रपति के पक्ष में दिखाने का प्रयास किया. उनके इस बयान में ईरान पर किए गए हमले को लेकर तैयार हो रही प्रतिकूलता को जायज ठहराने के लिए कुछ अप्रत्यक्ष उपसंदर्भ भी शामिल किए गए.
ट्रंप के कट्टर समर्थकों जैसे टकर कार्लसन और जॉर्जिया से प्रतिनिधि मारजोरी टेलर ग्रीन ने खुले तौर पर ईरान पर हमले की वकालत की थी. ट्रंप का रिपब्लिकन आधार इस वक़्त एक अहम मोड़ पर है. उनके इस आधार में नियोकंर्जवेटिव्स (नियोकांस) यानी नवरुढ़िवादी तथा MAGA विंग के बीच वैचारिक मतभेद बढ़ने लगे हैं. नियोकांस को परंपरागत रूप से US सेना की मजबूत मौजूदगी और मजबूत विदेश नीति का समर्थक माना गया है. ट्रंप समर्थकों का यह आधार ऐसी विदेश नीति चाहता है जिसमें आवश्यकता पड़ने पर विदेशों में हस्तक्षेप करने की अनुमति दी जाए. ट्रंप के वर्तमान दायरे में टेड क्रूज और लिंडसे ग्राहम को इस वर्ग का सर्वश्रेष्ठ प्रतिनिधि कहा जा सकता है. दूसरी ओर रिपब्लिकन पार्टी में MAGA खेमे में पार्टी का ऐसा वर्ग शामिल है जो राष्ट्रवादी एवं लोकलुभावन नीतियों का पक्षधर है. यह वर्ग चाहता है कि इन नीतियों में घरेलू मुद्दों को अधिक तवज़्ज़ो दी जानी चाहिए और विदेशी उलझनों अर्थात बाहरी युद्धों एवं सैन्य हस्तक्षेपों को लेकर सतर्क रवैया या दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए. ग्रीन, गबार्ड एवं कार्लसन को इस वर्ग के सबसे सार्वजनिक उदाहरण के रूप में देखा जा सकता है.
US कांग्रेस में डेमोक्रेटिक पार्टी के सदस्य इस बात को लेकर ट्रंप से नाराज हैं कि ट्रंप ने ईरान पर हमला करने से पहले न तो उन्हें सूचित किया और न ही कांग्रेस से अनुमति ली थी.
इसके अलावा US कांग्रेस में डेमोक्रेटिक पार्टी के सदस्य इस बात को लेकर ट्रंप से नाराज हैं कि ट्रंप ने ईरान पर हमला करने से पहले न तो उन्हें सूचित किया और न ही कांग्रेस से अनुमति ली थी. ऐसे में अब यह वर्ग US वॉर पॉवर्स रेज्युलेशन यानी अमेरिकी युद्ध शक्ति प्रस्ताव में संशोधन को समर्थन देने को लेकर दृढ़ दिखाई दे रहे हैं. 1973 में वियतनाम युद्ध के बाद पेश किए गए वॉर पावर्स एक्ट में यह प्रावधान है कि US को सेना की तैनाती के 48 घंटों के भीतर US कांग्रेस को सूचित करना होगा. इसी प्रकार सेना की तैनाती को जारी रखने को यदि कांग्रेस से मंजूरी नहीं मिलती है तो 60 दिनों के भीतर US सैनिकों को वापस बुलाना होगा. इसके अलावा यह भी व्यवस्था की गई है कि यदि 60 दिनों की आरंभिक समय सीमा में सैनिकों की घर वापसी संभव नहीं होती है तो 30 दिनों का अतिरिक्त समय दिया जा सकता है.
US कांग्रेस में शामिल डेमोक्रेट्स ट्रंप की आलोचना करते हुए वॉर पावर्स एक्ट में संशोधन करने के पक्षधर हैं, ताकि राष्ट्रपति के अधिकारों पर अंकुश लगाया जा सके. इसका कारण यह है कि ईरान पर बम गिराने के बाद अब US ईरान संघर्ष में आधिकारिक रूप से उतर गया है. अत: अब US को मध्य पूर्व में अपनी सैन्य प्रतिबद्धताओं में विस्तार करने पर मजबूर होना पड़ेगा. प्रतिनिधि रो खन्ना एवं थॉमस मैसी ने एक द्विदलीय वॉर पॉवर्स रेज्युलेशन पेश किया है, जिसमें ईरान संघर्ष में शामिल होने से रोक लगाई गई है. उम्मीद की जा रही है कि US कांग्रेस की इन पहलों से ट्रंप पर दबाव बढ़ेगा. हालांकि इस बात की संभावना है कि ट्रंप इन चुनौतियों से बचने का रास्ता निकाल लेंगे, क्योंकि संघर्ष क्षेत्र में किसी अमेरिकी सैनिक की प्रत्यक्ष तैनाती नहीं की गई है. इस क्षेत्र में पहले से मौजूद 40,000 अमेरिकी सैनिक US को एक निवासी रणनीतिक लाभ उपलब्ध कराते हैं. ऐसे में अल्पावधि में मैदान पर सैनिकों को उतारने की ज़रूरत नहीं है. हालांकि काफ़ी कुछ क्षेत्रीय गतिकी पर निर्भर करता है. यानी ईरान को मिलने वाले समर्थन चाहे वह क्षेत्र के भीतर हो या क्षेत्र के बाहर हो इस पर काफ़ी कुछ निर्भर करता है. इस वक़्त ईरान के प्रतिनिधि या समर्थित समूह की हालत ख़स्ता है. इजराइल की ओर से किए गए हमलों के कारण वे एक ओर कुआं और एक ओर खाई वाली स्थिति में फंसे हुए हैं. इजराइली हमलों ने उन्हें असहाय कर दिया है, लेकिन वे अपने संरक्षक ईरान के प्रति समर्पित या प्रतिबद्ध हैं. इसका कारण यह है कि ईरान ने बुरे वक़्त में हमेशा उनका साथ दिया है. इसी प्रकार यमन ने यह घोषणा कर दी है कि वह इजराइल और US के ख़िलाफ़ युद्ध में शामिल हो रहा है. इसके अलावा बाहरी तौर पर रूस एवं चीन को संभावित रूप से निर्णायक बाहरी कारक के रूप में देखा जा रहा है. लेकिन उन दोनों की ही इसमें शामिल होने की इच्छा कम दिखाई दे रही है. ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अरागची ने जब 22 जून 2025 को मास्को की यात्रा की तो उन्हें पुतिन ने भरोसा दिलाया कि “अपने स्तर पर हम ईरानी नागरिकों की सहायता करने की कोशिशों में जुटे हैं.”
ईरान के तीन परमाणु ठिकानों पर एक रात हमला करने का निर्णय लेते वक़्त स्वयं ट्रंप का भी इरादा यह रहा होगा कि इस एक हमले से ईरान पर दबाव बढ़ाया जा सकता है. लेकिन US हमले के लगभग तुरंत बाद ईरान की ओर से इजरायल पर किए गए जवाबी हमले और उसकी ‘चिरस्थायी परिणामों’ को भुगतने को लेकर दी गई चेतावनी से संकेत मिलता है कि मध्य पूर्व के इस लंबे खींच रहे संघर्ष में US के शामिल होने, विशेषत: इजरायल के समर्थन में, की संभावना अधिक है. यह बात आरंभिक अभियान के दौरान ट्रंप की ओर से किए गए वादे के ख़िलाफ़ है और इससे यह संकेत मिलता है कि अमेरिका अब संभवत: मध्य पूर्व में एक नए युद्ध में उतर गया है. इस क्षेत्र में अमेरिका की प्रतिबद्धता दो कारकों पर निर्भर करेगी. पहला ईरानी जवाब की प्रकृति, तीव्रता और अवधि. दूसरा कारक यह होगा कि क्या दबाव में आकर ईरान शांति वार्ता में शामिल होगा और वह परमाणु समृद्धिकरण को लेकर US की शर्तों को स्वीकार करने के लिए तैयार होगा? इन सारे मुद्दों को लेकर आरंभिक संकेत तो निराशाजनक दिखाई दे रहे है. इसके अलावा अगर ईरान की जवाबी कार्रवाई में अमेरिकी ठिकानों, सैनिकों या संपत्तियों को लक्ष्य बनाया गया तो इस क्षेत्र में चल रहे संघर्ष की प्रकृति में बहुत तेजी से बदलाव आएगा और फिर कुछ भी हो सकता है. ईरानी संसद ने इस क्षेत्र में आने वाले होर्मुज जलडमरूमध्य को बंद करने का प्रस्ताव पारित कर दिया है. इस फ़ैसले की वजह से इस क्षेत्र से गुजरने वाला तेल आपूर्ति मार्ग बंद हो जाएगा.
ईरान एक ऐसा देश है जो इस वक़्त शांति और संघर्ष के जबरन लादे गए दोहरे मुहाने पर खड़ा है. ऐसे में इस बात की संभावना अधिक है कि वह संघर्ष करना पसंद करेगा. हालांकि यह जवाबी संघर्ष श्रेणीबद्ध होगा. अगर किसी अमेरिकी संपत्ति पर हमला किया भी जाएगा तो यह केवल प्रातिनिधिक स्वरूप का होगा. ईरान अब इस बिंदु पर पहुंच चुका है कि उसे यह दृढ़ विश्वास हो गया है कि बाहरी ख़तरों से उसे अगर कोई चीज बचा सकती है तो वह केवल परमाणु हथियार ही है. परमाणु हथियार ही शांति का निर्णायक गारंटीकर्ता होने की उसकी धारणा अब और भी ठोस हो गई है. US की ओर से उसके परमाणु ठिकानों पर किए जाने वाले हमले की पूर्वसूचना मिलते ही ईरान ने अपने समृद्ध यूरेनियम को किसी दूसरे ठिकाने पर पहुंचा दिया था. इस तथ्य के साथ ही US अधिकारियों ने भी स्वीकार किया है कि उनकी ओर से फोर्दो पर किया गया हमला वहां मौजूद भूमिगत सुविधा को पूर्णत: नष्ट करने में विफ़ल रहा है. ये सारी बातें इस बात का संकेत हैं कि ईरान भविष्य में परमाणु समृद्धिकरण की ओर जल्दी लौट सकता है. ऐसे में दीर्घावधि में ईरान रूस एवं चीन की धुरी को शामिल कर उनसे मिलने वाले आश्वासन पर भरोसा करने का निर्णय ले सकता है.
ये सारी बातें इस बात का संकेत हैं कि ईरान भविष्य में परमाणु समृद्धिकरण की ओर जल्दी लौट सकता है. ऐसे में दीर्घावधि में ईरान रूस एवं चीन की धुरी को शामिल कर उनसे मिलने वाले आश्वासन पर भरोसा करने का निर्णय ले सकता है.
ट्रंप के लिए ईरान पर किया गया सीधा हमला उनकी विदेश नीति का सबसे बड़ा जुआ या दांव कहा जा सकता है. इजराइल और US के लिए यह तथ्य भी सहायक है कि ईरान पर हुआ हमला 7 अक्टूबर 2023 की हिंसा की परिणति का प्रतिनिधित्व करता है. इसके चलते इस क्षेत्र में ईरान के प्रतिनिधि पहले के मुकाबले बहुत ज़्यादा कमज़ोर हो गए है. ऐसे में वे जवाबी हमला करने के लिए क्षेत्रीय समन्वय साधने के लिए असंभव है. यदि ईरान कुछ वक़्त के लिए सैन्य प्रतिकार -विशेषत: इजराइल के ख़िलाफ़ कुछ देर के लिए बैलिस्टिक मिसाइल हमले- करने में सक्षम हो जाता है तो यह ट्रंप की स्थिति को चुनौतीपूर्ण बना देगा. कतर और ईराक में US सैन्य ठिकानों पर अमेरिका तथा कतर को पूर्व सूचना देने के बाद किए गए ईरानी मिसाइल हमले इस बात का संकेत देते हैं कि जल्द ही युद्ध के बाहर कोई समाधान निकाला जा सकता है. घरेलू स्तर पर ट्रंप के स्वयंघोषित युद्ध-विरोधी रवैये को डेमोक्रेट्स चुनौती देंगे. इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी उनकी विश्वसनीयता को आघात पहुंचा है. इसका कारण यह है कि उन्होंने कम से कम दो अवसरों पर ईरान को अपने लक्ष्यों और समयावधि को लेकर जानबूझकर गुमराह किया था. इसी वजह से उस वक़्त कोई आश्चर्य नहीं हुआ जब ट्रंप की ओर से ईरान और इजरायल के बीच सीजफायर यानी युद्ध विराम के समझौते को लेकर किए गए दावों के बावजूद इजराइल पर हुए ईरानी हमले में तीन लोगों की जान गई. इजराइल की ओर से इसका जवाब दिया जाएगा. ऐसे में दोनों पक्षों की ओर से वर्तमान संघर्ष में हो रहे हमले और जवाबी हमले ख़त्म होने की बात बेहद नाजुक डोर से बंधी दिखाई देती है. ऐसे में इन तथ्यों का मिश्रण ट्रंप के उभरते सिद्धांत का सबसे कड़ा पहलू-ईरान पर हमला-उनका सबसे कमज़ोर पहलू भी साबित हो सकता है.
विवेक मिश्रा, ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटेजिक स्टडीज प्रोग्राम में डेप्युटी डायरेक्टर हैं.
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.
Vivek Mishra is Deputy Director – Strategic Studies Programme at the Observer Research Foundation. His work focuses on US foreign policy, domestic politics in the US, ...
Read More +