Author : Amoha Basrur

Expert Speak Digital Frontiers
Published on Aug 28, 2025 Updated 0 Hours ago

आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस के विकास के साथ साथ स्वदेश में चिप निर्माण को प्राथमिकता देकर अमेरिका का AI एक्शन प्लान ये दिखाता है कि तकनीक के क्षेत्र में अग्रणी बने रहने के उसके विज़न में हार्डवेयर पर नियंत्रण की भूमिका केंद्रीय है

सेमीकंडक्टर निर्माण के लिए ट्रंप का AI एक्शन प्लान

Image Source: Getty Images

ट्रंप प्रशासन ने 23 जुलाई 2025 को अमेरिका के AI एक्शन प्लान का अनावरण किया. इसका स्पष्ट रूप से मक़सद ‘आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस में दुनिया के ऊपर अपना दबदबा बनाए रखना’ है. ये एक्शन प्लान, विनियमन के ज़रिए तेज़ी से आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस का विकास करके और मॉडल से लेकर एप्लिकेशन तक उन्नत हार्डवेयर को अमेरिका की तकनीक के पूरे स्टैक को निर्यात करके अपना मक़सद हासिल करने का लक्ष्य रखता है. सेमीकंडक्टर इस इकोसिस्टम का अहम अंग हैं और एक्शन प्लान में इस उद्योग को स्वदेश वापस लाना है. इसके लिए ये एक्शन प्लान, सेमीकंडक्टर निर्माण और उन डेटा केंद्रों की स्थापना के विनियमन को आसान बनाने की बात करता है, जिसे ये चिप चलाएंगी. आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस के विकास के साथ साथ चिप के निर्माण को प्राथमिकता देकर, ये एक्शन प्लान ये रेखांकित करता है कि तकनीक के क्षेत्र में नेतृत्व के उसके दृष्टिकोण में हार्डवेयर पर नियंत्रण की भूमिका केंद्रीय है.

आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस के विकास के साथ साथ चिप के निर्माण को प्राथमिकता देकर, ये एक्शन प्लान ये रेखांकित करता है कि तकनीक के क्षेत्र में नेतृत्व के उसके दृष्टिकोण में हार्डवेयर पर नियंत्रण की भूमिका केंद्रीय है.

AI की कार्य योजना में सेमीकंडक्टर

इस योजना के तीन स्तंभ हैं: नवाचार, मूलभूत ढांचा और अंतरराष्ट्रीय कूटनीति एवं सुरक्षा. एक्शन प्लान के दूसरे और तीसरे स्तंभ विशेष रूप से सेमीकंडक्टर की चर्चा करते हैं, जिसमें से तीसरे स्तंभ का ज़ोर निर्यात पर नियंत्रण, वैश्विक तालमेल और व्यापक प्रभाव रखने वाले सुरक्षा के जोखिम शामिल हैं. 

 

एक्शन प्लान के दूसरे स्तंभ में ऐसे नए आधारभूत ढांचे के निर्माण पर ध्यान केंद्रित किया गया है, जिसकी ज़रूरत आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस को होगी. इसमें मंज़ूर किए गए सुगम डेटा केंद्रों और सेमीकंडक्टर निर्माण की सुविधाओं का निर्माण करना है, जिसमें ज़ोर ऐसी विरोधी तकनीक से बचने पर है, जो अमेरिका के मूलभूत ढांचे को चोट पहुंचा सकता है. ट्रंप प्रशासन की योजना है कि वो चिप्स से फंडिंग वाली परियोजनाओं के लिए नियमन की शर्तों में काफ़ी हद तक कटौती करें और AI के उन्नत औज़ारों को निर्माण के साथ जोड़ने में तेज़ी लाए.

 

इस कार्य योजना के तीसरे स्तंभ में आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस की गणना की शक्ति तक पहुंच पर ज़ोर दिया गया है, और ये कहा गया है कि ये आर्थिक और सैन्य क्षमताओं के लिए आवश्यक है. यानी दुश्मनों की इस तकनीक तक पहुंच को सीमित करना राष्ट्रीय सुरक्षा की एक ज़रूरत बना दिया गया है. इस स्तंभ का एक प्रमुख पहलू निर्यात पर नियंत्रण को सख़्ती से लागू करना है. इस योजना में तौर-तरीक़ों में नवाचार पर ज़ोर दिया गया है; इसमें सुझाव दिया गया है कि AI की उन्नत चिप्स की लोकेशन की पुष्टि की मौजूदा ख़ूबियों का इस्तेमाल करने के साथ साथ नए फीचर भी विकसित किए जाएं. इस सुझाव को पहले उन विधेयकों में भी शामिल किया गया था, जिनको इस चिंता के साथ पेश किया गया था कि जिन सेमीकंडक्टर को चीन को निर्यात करने से रोकने के क़दम उठाए गए थे, वो भी अमेरिका के प्रतिबंधों के बावजूद चीन के हाथ लग रही हैं. पहले एक कण भौतिक विज्ञानी रह चुके इलिनॉय राज्य के डेमोक्रेटिक पार्टी के सांसद बिल फोस्टर ने कहा है कि बिक्री के बाच चिप को ट्रैक करने की तकनीक आसानी से उपलब्ध है और इसका बहुत सा हिस्सा मौजूदा चिप्स में भी मौजूद है. गूगल पहले से ही सुरक्षा कारणों से अपनी कंपनी की आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस वाली चिप्स की लोकेशन को अपने डेटा केंद्रों के विशाल नेटवर्क में ट्रैक करता है.

 

इस कार्य योजना में चिप के अंतिम उपयोग की निगरानी का दायरा बढ़ाने की बात कही गई है, ख़ास तौर से उन देशों में जहां अमेरिकन चिप के घोषित उद्देश्यों से इतर इस्तेमाल होने का अंदेशा है और इसके लिए एक्शन प्लान में चिप निर्माण और उसके निर्यात पर नए नियंत्रण विकसित करने पर बल दिया गया है. जहां अमेरिका और उसके साथी देशों ने प्रमुख व्यवस्थाओं पर निर्यात नियंत्रण का शिकंजा कस दिया है. लेकिन, चिप निर्माण की उप-व्यवस्थाओं का ज़िक्र ये दिखाता है कि अमेरिका की निर्यात नीतियां भविष्य में किस दिशा का रुख़ करने वाली हैं.

 

सेमीकंडक्टर नीति का विकास

हाल के वर्षों में सेमीकंडक्टर को लेकर अमेरिका द्वारा अपनी नीतियों में बार-बार बदलाव होते और कभी सख़्ती तो कभी नरमी लाते देखा गया है. किसी ख़ास देश द्वारा कितनी क्षमता वाली चिप अमेरिका से ख़रीदी जा सकती है, इसकी पाबंदी लगाने वाले AI डिफ्यूज़न रूल जैसे बाइडेन प्रशासन के विनियमन को वापस लेने के अलावा भी ट्रंप ने अपने पूर्ववर्ती राष्ट्रपति की कई नीतियों को पलटा है. एनविडिया के सीईओ जेनसेन हुआंग के साथ एक बैठक के बाद ट्रंप ने H20 चिप्स की चीन को बिक्री पर लगी रोक हटा ली थी. AMD ने भी अपने MI308 एक्सेलरेटर्स का निर्यात चीन को फिर से शुरू कर दिया है. पहले इसकी इजाज़त नहीं थी. वैसे तो सेमीकंडक्टर उद्योग ने इन रियायतों का स्वागत किया है. लेकिन, ऐसी रियायतें AI एक्शन प्लान के साथ टकराव वाली हैं. क्योंकि एक्शन प्लान में इन्हीं तकनीकों को चीन के हाथ लगने से रोकने की कोशिश की जा रही है. अब ये देखने वाली बात होगी की सख़्त नियमों में ये तब्दीली सिर्फ़ एक बार के लिए है या फिर चीन के प्रति भविष्य में भी ये नरमी जारी रहेगी.

 

ट्रंप, सरकारी पैसे का इस्तेमाल करके घरेलू निर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देने के सख़्त ख़िलाफ़ हैं, और वो बाइडेन के दौर के चिप्स एक्ट में बदलाव करके निर्माताओं का योगदान बढ़ाने पर ज़ोर दे रहे हैं. बाइडेन की रणनीति निवेश और सब्सिडी के लालच से निर्माताओं को लुभाने की थी. अब तक ट्रंप ने टैरिफ की छड़ी का इस्तेमाल करने की नीति पर अमल किया है. ट्रंप ने दावा किया है कि उन्होंने ताइवान की सेमीकंडक्टर बनाने वाली कंपनी (TSMC) को 100 प्रतिशत टैरिफ लगाने की धमकी देकर ही, उससे अमेरिका में अपने कारोबार में 100 बिलियन डॉलर के निवेश के लिए हामी भरवाई है. वैसे तो टैरिफ एक हद तक ही कंपनियों पर अमेरिका में निवेश करने का दबाव बना सकते हैं. लेकिन, इनको लगाने का एक जोखिम ये भी है कि इससे चिप बेहद महंगे हो जाएंगे और अमेरिका की आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस के विकास की रफ़्तार धीमी हो सकती है. श्रम और रख-रखाव की भारी लागत के चलते, अगर अमेरिकी सरकार इन कंपनियों को सब्सिडी देती भी है, तो अमेरिका में एक सामान्य सी चिप मैन्युफैक्चरिंग इकाई लगाना, ताइवान से 10 प्रतिशत अधिक महंगा पड़ेगा और ताइवान की तुलना में ऐसी ही फैक्ट्री अमेरिका में संचालित करने की लागत 35 प्रतिशत अधिक होगी.

 

वैसे तो अमेरिका के AI एक्शन प्लान में सेमीकंडक्टर निर्माण को वापस अमेरिका लाने के लिए टैरिफ का दांव इस्तेमाल करने का ज़िक्र नहीं है. लेकिन, सेमीकंडक्टर के आयात पर इस वक़्त अमेरिका में राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से जांच चल रही है. इससे पहले, ट्रंप के पहले कार्यकाल के दौरान की गई पड़तालों के नतीजे ही ट्रंप के मौजूदा कार्यकाल में स्टील, एल्युमिनियम और ऑटो उद्योग पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाने का आधार बने थे, और ट्रंप ने ख़ुद ये संकेत दिया है कि अभी टैरिफ़ की ये दरें और ऊपर जा सकती हैं. कुल मिलाकर, अमेरिका को वैश्विक निर्यातक और उद्योग में अग्रणी बनाने के साथ साथ अमेरिकी तकनीक से प्रतिद्वंदियों को होने वाले फ़ायदों को सीमित करने के बीच संतुलन बनाना एक मुश्किल काम होने वाला है. 

कुल मिलाकर, अमेरिका को वैश्विक निर्यातक और उद्योग में अग्रणी बनाने के साथ साथ अमेरिकी तकनीक से प्रतिद्वंदियों को होने वाले फ़ायदों को सीमित करने के बीच संतुलन बनाना एक मुश्किल काम होने वाला है. 

भारत पर क्या असर होगा?

जो बाइडेन के दौर की नीति में भारत को AI चिप निर्यात की पाबंदियों के मामले में मध्यम दर्जे में रखा गया था. जिससे भारत को उन 18 देशों की सूची से बाहर रखा गया था, जिनको अमेरिका की उन्नत AI चिप दी जा सकती थी. ट्रंप ने इस नीति को लागू होने से पहले ही दफ़ा कर दिया. इससे भारत की कंपनियों के लिए आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस से जुड़ा हार्डवेयर हासिल करने में आसानी हो गई. अमेरिका के नए AI एक्शन प्लान का निर्यात बढ़ाने का जो लक्ष्य है, उससे भारत को AI क्षेत्र में अपनी महत्वाकांक्षाएं पूरी करने में मदद मिल सकती है. लेकिन, इससे अमेरिकी चिप तक पहुंच को लेकर निश्चित होना जोखिम भरा हो सकता है. ट्रंप का अनिश्चितता भरा रवैया, जिसका उदाहरण हमने हाल ही में 25 प्रतिशत टैरिफ और रूस से तेल ख़रीदने पर जुर्माने के स्वरूप लगाए गए 25 प्रतिशत अतिरिक्त टैरिफ इस बात की चेतावनी हैं कि अमेरिका के AI सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर पर ज़रूरत से ज़्यादा निर्भरता, भारत के लिए एक सामरिक कमज़ोरी बन सकती है.

 

निष्कर्ष

आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस को लेकर विज़न में चिप्स की केंद्रीयता को देखते हुए ये सेक्टर उसके सामरिक एजेंडे में बेहद उच्च स्थान पर आता है. लेकिन, अमेरिका को अपने ‘अमेरिका फर्स्ट’ के एजेंडे का संतुलन अपने वैश्विक संबंधों के विकास और नेतृत्व के साथ भी बिठाना होगा. निर्यात पर नियंत्रण तभी अधिक प्रभावी होते हैं, जब वो संकीर्ण, लागू करने योग्य और साथी देशों के साथ तालमेल वाले हों. वैश्विक आम सहमति से पहले इकतरफ़ा पाबंदियां लगाने का असर उल्टा भी हो सकता है और इससे उन लक्ष्यों को ही चोट पहुंच सकती है, जिन्हें हासिल करने के लिए ये प्रतिबंध लगाए जा रहे हैं. विनियमन में कटौती करने से लागत तो कम हो जाती है. लेकिन, टैरिफ लगाने से  लागत में आई कमी के फ़ायदे ख़त्म हो जाते हैं. यानी टैरिफ लगाने से प्रगति की रफ़्तार धीमी पड़ सकती है. आख़िर में, हो सकता है कि ‘अमेरिका फर्स्ट’ का नारा घरेलू स्तर पर ख़ूब चर्चित हो. लेकिन, विदेश में इसका फ़ायदा नहीं होगा. अमेरिका अकेले ही तेज़ रफ़्तार से आगे नहीं बढ़ सकता है. जैसा कि AI एक्शन प्लान पर चर्चा के दौरान सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री एसोसिएशन ने सुझाव दिया था कि अमेरिका को अनुसंधान और विकास (R&D), कामगारों और निर्माण से जुड़े दूसरे सामानों के लिए साझीदार देशों के साथ सहयोग करने की ज़रूरत है.

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