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Published on Dec 17, 2024 Updated 0 Hours ago

चीन को लेकर ट्रंप की इस सोच में एक बड़ा योगदान इस बात का भी है कि उनकी नज़र में 2020 में वो इसलिए राष्ट्रपति चुनाव हारे थे, क्योंकि शी जिनपिंग कोविड-19 की महामारी के प्रसार को ठीक ढंग से क़ाबू में नहीं कर पाये थे.

ट्रंप की वापसी: क्यों डर रहा है चीन तकनीकी जंग, ताइवान और कोविड की सच्चाई से?

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जो बाइडेन प्रशासन द्वारा चीन के ऊपर तकनीकी पाबंदियां लगाने पर फिर से ज़ोर देने और ट्रंप की सत्ता में वापसी के बाद फिर से व्यापार कर लगाने की धमकियां देने की वजह से चीन और अमेरिका के बीच तनाव बढ़ गया है. चीन के रणनीतिकारों को लगता है कि आने वाले समय में दोनों देशों के रिश्तों का भविष्य बहुत अच्छा नहीं होगा.

चीन के रणनीतिकारों को लगता है कि आने वाले समय में दोनों देशों के रिश्तों का भविष्य बहुत अच्छा नहीं होगा.

अमेरिका के नए नियम

बाइडेन प्रशासन ने सेमीकंडक्टर के क्षेत्र में तकनीकी प्रतिबंधों का दायरा बढ़ाते हुए व्यापारिक ब्लैकलिस्ट में चीन की 140 नई संस्थाओं को डाल दिया है. नए नियमों के निशाने पर सेमीकंडक्टर निर्माण और चिप बनाने वाले उपकरणों और डिज़ाइन करने वाले सॉफ्टवेयर से जुड़े चीन के सहयोगी इकोसिस्टम हैं. अमेरिकी सरकार ने आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस के एप्लिकेशन में इस्तेमाल होने वाली मेमोरी चिप के निर्यात पर भी सख़्ती बढ़ा दी है. चीन पर लगी नई पाबंदियों के दायरे में वो उत्पाद भी शामिल हैं, जिन्हें अमेरिकी तकनीक की मदद से दूसरे देशों में बनाया जाता है, और चीन के अलावा इनका असर दक्षिण कोरिया, ताइवान और सिंगापुर जैसे देशों पर भी पड़ने का डर है. अमेरिका की इस ब्लैकलिस्ट वो निजी इक्विटी कंपनियां भी शामिल हैं, जिन्होंने चीन के तकनीकी सेक्टर के विकास में निवेश किया हुआ है. अमेरिका की नज़र में ये कंपनियां, चीन को सेमीकंडक्टर के निर्माण की उस संवेदनशील क्षमता में आत्मनिर्भरता बढ़ाने में मदद कर रही थीं, जो अमेरिका और उसके सहयोगियों केरक्षा औद्योगिक आधारके लिए बेहद अहम है. अमेरिका के नए नियम, बाइडेन प्रशासन द्वारा पूर्व में तैयार की गई उन योजनाओं को आगे बढ़ाती हैं, जिन्हें पिछले तीन सालों के दौरान तैयार किया गया है, ताकि चीन को संवेदनशील तकनीक हासिल करने से रोका जा सके.

 

बाइडेन प्रशासन ने चीन को उन्नत तकनीक हासिल करने से रोकने के क़दम तो उठाए ही हैं. इनके अलावा, निर्वाचित राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने चीन, मेक्सिको और कनाडा पर व्यापार कर थोपने के अपने इरादे ज़ाहिर कर दिए हैं, ताकि इन देशों को अपने यहां से अवैध अप्रवास और ड्रग्स की अमेरिका को तस्करी रोकने के लिए मजबूर किया जा सके.

 चीन को लेकर ट्रंप की इस सोच में एक बड़ा योगदान इस बात का भी है कि उनकी नज़र में 2020 में वो इसलिए राष्ट्रपति चुनाव हारे थे, क्योंकि शी जिनपिंग कोविड-19 की महामारी के प्रसार को ठीक ढंग से क़ाबू में नहीं कर पाये थे. चीन के विद्वानों को लगता है कि ट्रंप के मन में बैठी इस दुश्मनी की वजह से उनके मौजूदा कार्यकाल में चीन के साथ रिश्ते मुश्किल भरे होंगे

चाइना इंस्टीट्यूट ऑफ कंटेंपरेरी इंटरनेशनल रिलेशंस के झैंग झिशिन कहते हैं कि ट्रंप के पहले कार्यकाल के दौर से ही, चीन के उभार के प्रति अमेरिका में नफ़रत बढ़ती जा रही है और इसी वजह से चीन की प्रगति को रोकने की कोशिशें की जा रही हैं. झैंग का आकलन है कि चीन के उभार की वजह से अमेरिका का रणनीतिक समुदाय चीन के प्रतिबहुत कड़ा रुख़दिखा रहा है. ऐसे में चीन से मेल-जोल या संपर्क बढ़ाने की किसी भी कोशिश कोराजनीतिक रूप से नुक़सानदेहऔरकमज़ोरी के प्रदर्शनके रूप में देखा जाता है.

 

चाइना इंस्टीट्यूट ऑफ कंटेंपरेरी इंटरनेशनल रिलेशंस में इंस्टीट्यूट ऑफ अमेरिकन स्टडीज़ के शी गुआन्नान का आकलन है कि बाइडेन प्रशासन चीन को लेकर ऐसी नीति पर चल रहा है, जिसमें चीन के उभार को नियंत्रित करने के साथ साथ उसके साथ संवाद का रास्ता खुला रखा जाए. ये मूल्यांकन अमेरिका के नए नेतृत्व की सोच के ठीक उलट है. शी का मानना है कि ट्रंप ने राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेशी संबंधों के विभाग में जिन लोगों को नामित किया है, वोअमेरिका फर्स्टके सूत्र वाक्य पर यक़ीन रखते हैं और चीन को लेकर पूर्वाग्रह के शिकार हैं. शंघाई इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनेशनल रिलेशंस में सेंटर फॉर अमेरिकन स्टडीज़ के सु लियुचियांग का तर्क है कि अपने पहले कार्यकाल में ट्रंप को रिपब्लिकन पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को अपनी कैबिनेट में शामिल करना पड़ा था, क्योंकि उनके पास अपनी टीम नहीं थी. लियुचियांग का कहना है कि इस बार ट्रंप ने ऐसे नेताओं को कैबिनेट में जगह दी है, जोमुख्यधारा का हिस्सा नहींहैं. इस बार ट्रंप ने अपनी कैबिनेट में उनके पहले कार्यकाल में विदेश मंत्री रहे माइक पॉम्पियो और संयुक्त राष्ट्र में अमेरिकी राजदूत रही निकी हेली को जगह नहीं दी है. क्योंकि इन नेताओं को ट्रंप अपने प्रति कम वफ़ादार मानते हैं. लियुचियांग का आकलन है कि ट्रंप ने दूसरे कार्यकाल में जैसी कैबिनेट बनाई है, उससे प्रशासनिक क्षमता शायद बढ़ जाए, लेकिन इससे नीतियों के मामले में एक इको चैंबर बनने या एक जैसी राय वाले लोगों का जमावड़ा होने का भी अंदेशा होगा.

 

चीन के सामरिक विशेषज्ञों की चिंता

चीन के सामरिक विशेषज्ञों को डर है कि ट्रंप, अमेरिका के व्यापार घाटे और चीन केअनुचितव्यापारिक व्यवहार के मुद्दे उठाएंगे. चीन के ऊपर नया ट्रंप प्रशासन व्यापार कर थोप सकता है. उसको दिया गया सबसे पसंदीदा देश का दर्जा वापस ले सकता है और चीन अमेरिका के बीच व्यापार युद्ध के नए दौर की शुरुआत कर सकता है. विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में चीन को आशंका है कि ट्रंप के नेतृत्व में अमेरिका, चीन पर और अधिक तकनीकी पाबंदियां लगाएगा और दोनों देशों के बीच तकनीकी मामले में दूरी बनाने का सिलसिला तेज़ कर सकता है. चीन के रणनीतिकार ऐसा इसलिए कह रहे हैं, क्योंकि अपने पहले कार्यकाल में ट्रंप ने चीन की बड़ी संचार कंपनियों जैसे कि हुआवेई के लिए तकनीकी पहुंच सीमित कर दी थी. चीन को लगता है कि अमेरिका आगे भी ऐसी ही नीतियों पर चलता रहेगा.

 अब चीन की कम्युनिस्ट पार्टी को आशंका है कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के तौर पर माइक वाल्ज़ और विदेश मंत्री के तौर पर मार्को रूबियो का नामांकन होने का मतलब है कि ताइवान को लेकर अमेरिका ‘सामरिक दुविधा’ के बजाय ‘सामरिक साफगोई’ की तरफ़ बढ़ेगा.

वैसे तो चीन के रणनीतिकार ये मानते हैं कि बाइडेन प्रशासन ने आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस और सेमीकंडक्टर्स जैसे क्षेत्रों से चीन को होने वाले निर्यात को नियंत्रित किया है. लेकिन, उनकी आशंका ये है कि ट्रंप के दूसरे कार्यकाल के दौरान, उनकी पूरी सरकार चीन के ख़िलाफ़ और तकनीकी प्रतिबंध लगाने और तकनीकी युद्ध को बढ़ावा देगी.

 

चीन को लेकर ट्रंप की इस सोच में एक बड़ा योगदान इस बात का भी है कि उनकी नज़र में 2020 में वो इसलिए राष्ट्रपति चुनाव हारे थे, क्योंकि शी जिनपिंग कोविड-19 की महामारी के प्रसार को ठीक ढंग से क़ाबू में नहीं कर पाये थे. चीन के विद्वानों को लगता है कि ट्रंप के मन में बैठी इस दुश्मनी की वजह से उनके मौजूदा कार्यकाल में चीन के साथ रिश्ते मुश्किल भरे होंगे, क्योंकि अमेरिका एक बार फिर से कोविड-19 की उत्पत्ति का पता लगाने की मुहिम छेड़ सकता है. 2020 में जब अमेरिका ने कोरोना वायरस की महामारी की उत्पत्ति का पता लगाने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा जांच कराने के लिए समर्थन जुटाने की मुहिम शुरू की थी, तब चीन ने ऑस्ट्रेलिया से होने वाले आयात पर पाबंदी लगा दी थी.

 

चीन के रणनीतिकार ताइवान के मसले पर भी आशंकित हैं. अपने पहले कार्यकाल में ट्रंप ने अमेरिका की कूटनीतिक परंपरा को तोड़ते हुए ताइवान की राष्ट्रपति साई इंग-वेन से सीधे बात की थी. जबकि 1970 के दशक में अमेरिका ने ताइवान के बजाय चीन को मान्यता दी थी. ट्रंप प्रशासन ने ताइवान को हथियार बेचने पर भी ज़ोर दिया था. अब चीन की कम्युनिस्ट पार्टी को आशंका है कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के तौर पर माइक वाल्ज़ और विदेश मंत्री के तौर पर मार्को रूबियो का नामांकन होने का मतलब है कि ताइवान को लेकर अमेरिकासामरिक दुविधाके बजायसामरिक साफगोईकी तरफ़ बढ़ेगा.

 

चीन के रणनीतिकारों का अंदाज़ा 

चीन का आकलन है कि ट्रंप काअमेरिका फर्स्टका नारा, अमेरिका की गठबंधन व्यवस्था की भावना के ख़िलाफ़ है. चीन के रणनीतिकारों को लगता है कि बाइडेन प्रशासन ने अमेरिका केनाख़ुशसहयोगियों को दोबारा मना लिया था. वहीं ट्रंप इन सहयोगियों को एकबोझके तौर पर देखते हैं और हो सकता है कि वो अमेरिका की गठबंधन व्यवस्था के पुनर्गठन की कोशिश करें. चीन के रणनीतिकारों का ये भी अंदाज़ा है कि यूक्रेन को लेकर भी ट्रंप अमेरिका की प्राथमिकताएं बदलेंगे, जिसकी वजह से यूरोप पर यूक्रेन की मदद का बोझ बढ़ जाएगा. इसके साथ साथ ट्रंप की स्तता में वापसी से यूरोप में भी दक्षिणपंथी नेताओं की जीत का सिलसिला शुरू हो सकता है. चीन के रणनीतिकारों ने भविष्यवाणी की है कि इससे यूरोपीय संघ और अमेरिका में तनातनी बढ़ सकती है.


चीन के रणनीतिकार ये मान रहे हैं कि अमेरिका के नए सत्ताधारी वर्ग के विचारों का दोनों देशों के आर्थिक संबंधों और वैज्ञानिक सहयोग पर ही नहीं आपसी रिश्तों पर भी गहरा असर होगा. चीन को इस बात का भी डर है कि ट्रंप की दूसरी कैबिनेट में चीन के प्रति कट्टर रवैया रखने वालों की नियुक्ति से भू-राजनीतिक दरारें फिर से बढ़ सकती हैं.

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