Published on Feb 22, 2024 Updated 7 Days ago

जलवायु परिवर्तन के तेज़ होते असर के बीच क्लाइमेट-स्मार्ट एग्रीकल्चर एक मज़बूत एग्री-फूड सिस्टम बनाने का भरोसा देता है, मौजूदा पहलों को तेज़ करने की सख़्त ज़रूरत है.

जलवायु परिवर्तन और स्मार्ट कृषि: टिकाऊ भविष्य के लिए रणनीतियां, रुकावटें और दूरदर्शिता

ये लेख हमारी- रायसीना एडिट 2024 सीरीज़ का एक भाग है


दुनिया भर में 4.62 अरब एकड़ खेती की ज़मीन, 8 अरब एकड़ चारागाह और 10 अरब एकड़ जंगल की ज़मीन के साथ खाद्य प्रणाली वैश्विक ग्रीनहाउस गैस (GHG) में लगभग 22 प्रतिशत का योगदान करती है. साथ ही जैव विविधता को नुकसान पहुंचाने के अलावा 70 प्रतिशत मीठे पानी के संसाधनों की खपत भी करती है. 2050 तक दुनिया के 9.7 अरब लोगों की ज़रूरत को पूरा करने के लिए वैश्विक खाद्य की ख़पत में अच्छी-ख़ासी बढ़ोतरी का अनुमान है. आबादी में इस तरह की बढ़ोतरी से प्राकृतिक संसाधनों पर और ज़्यादा दबाव बढ़ेगा, ग्रीन हाउस गैस में बढ़ोतरी होगी और अलग-अलग देशों के बीच असमानता में वृद्धि होगी. विश्व बैंक का पूर्वानुमान है कि जलवायु परिवर्तन 2030 तक अफ्रीका के लगभग 4.3 करोड़ लोगों को ग़रीबी में धकेल सकता है. वहीं इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट (IFPRI) सावधान करता है कि कृषि उपज में कमी और सप्लाई चेन में रुकावट से 9 करोड़ भारतीयों को भुखमरी का सामना करना पड़ सकता है. एग्री-फूड (कृषि-खाद्य) सेक्टर में जलवायु परिवर्तन के असर को कम करने के लिए बड़े क़दम उठाए बिना पेरिस समझौते के लक्ष्यों को हासिल नहीं किया जा सकता है. फिर भी, टिकाऊ खाद्य उत्पादन की पद्धतियों को अपनाए बिना अधिक व्यापक खाद्य असुरक्षा की आशंका है. हम एक विरोधाभास का सामना कर रहे हैं: कृषि एक ऐसा सेक्टर है जो जलवायु परिवर्तन के असर के मामले में सबसे ज़्यादा असुरक्षित है लेकिन कृषि सेक्टर अनिवार्य रूप से जलवायु परिवर्तन में योगदान भी देता है. इस तरह वैश्विक एग्री-फूड सिस्टम को जलवायु आपात का समाधान, दुनिया के लिए खाने का इंतज़ाम और अपने उत्सर्जन को कम करना चाहिए.

क्या ये चुनौती अवसर बन सकती है? जलवायु के मामले में स्मार्ट खेती (क्लाइमेट-स्मार्ट एग्रीकल्चर या CSA) कृषि में सकारात्मक बदलाव ला सकती है. इस तरह की खेती उत्पादकता एवं आमदनी बढ़ा सकती है, जलवायु ख़तरों से असुरक्षा कम कर सकती है और वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड कम करने की प्रक्रिया में बढ़ोतरी करके ग्रीन हाउस गैस घटा सकती है. इन तीन लक्ष्यों के प्रबंधन के लिए सही जोड़ की तलाश CSA को जलवायु के मामले में स्मार्ट बनाती है. CSA का असर स्थानीय स्थितियों के अनुसार समाधानों को शामिल करते हुए उत्पादकता को संतुलित करने, अनुकूलता और जलवायु परिवर्तन की गंभीरता को कम करने की इसकी क्षमता में है. इसकी बदलाव की क्षमता और अनुकूलनशीलता इसे कम आमदनी वाले देशों समेत व्यापक इस्तेमाल के लिए उपयुक्त बनाती है.

हम एक विरोधाभास का सामना कर रहे हैं: कृषि एक ऐसा सेक्टर है जो जलवायु परिवर्तन के असर के मामले में सबसे ज़्यादा असुरक्षित है लेकिन कृषि सेक्टर अनिवार्य रूप से जलवायु परिवर्तन में योगदान भी देता है.

कृषि पद्धति को बढ़ावा

टिकाऊ विकास के लिए CSA के दृष्टिकोण को व्यापक समर्थन मिल रहा है. COP28 (दुबई में आयोजित संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन) में CSA को बढ़ाने की तरफ AIM (एग्रीकल्चर इनोवेशन मिशन) फॉर क्लाइमेट के द्वारा 55 देशों को इकट्ठा करने से और विश्व बैंक की फंडिंग में देखी गई आठ गुना बढ़ोतरी, जो बढ़कर लगभग 3 अरब अमेरिकी डॉलर का फंड हो गया है, से इसके समर्थन का पता चलता है. ऐसा समर्थन CSA की बढ़ती स्वीकार्यता से जुड़ा है, ख़ास तौर पर अफ्रीका में जहां रेगिस्तान में बढ़ोतरी ग़रीबी, खाद्य असुरक्षा और संघर्ष को तेज़ करती है. 2045 तक मिट्टी की गुणवत्ता में कमी की वजह से पर्यावरण प्रवासियों (माइग्रेंट्स) की संख्या बढ़कर 13.5 करोड़ होने का अनुमान सामाजिक तनाव और हिंसा को बढ़ाने वाली भूमि प्रतिस्पर्धा का समाधान करने की आवश्यकता को उजागर करता है. CSA की पद्धति इन तनावों को कम करने और कृषि उत्पादकता को बढ़ाकर एवं नौकरी के अवसर बनाकर आर्थिक विकास को तेज़ करने का भरोसा देती है. इस दिशा में ग्रेट ग्रीन वॉल फॉर सहारा एंड साहेल इनिशिएटिव (GGWSSI) सबसे महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय प्रयास है. ये अफ्रीका के 11 देशों में 2030 तक 8,000 किमी जंगली पट्टी तैयार करके रेगिस्तान के क्षेत्र में बढ़ोतरी से निपटने की सबसे बड़ी अंतरराष्ट्रीय कोशिश है. इसके तहत स्थानीय टिकाऊ पद्धतियों के ज़रिए पर्यावरण और सामाजिक-आर्थिक सुधार की दिशा में प्रयास हो रहा है. हालांकि ये पहल अभी केवल 20 प्रतिशत पूरी हुई है लेकिन इसके परिणामों के पुनर्मूल्यांकन की आवश्यकता है. इसी तरह, भले ही कुछ CSA प्रोजेक्ट (जैसे कि अलकामा; मोआ टेक्नोलॉजी; खेती) शानदार नतीजे दिखाते हैं लेकिन तब भी उनकी व्यापक सफलता की राह में अलग-अलग चुनौतियों से रुकावट आती है. 

CSA को अपनाने में सबसे बड़ी बाधा शुरुआत में बड़ी लागत और पैदावार से जुड़े ख़तरे हैं. कम लाभ की सोच, अनुमानित एवं वास्तविक जोखिम और वित्त मुहैया कराने वालों एवं छोटे किसानों के बीच कम संपर्क की वजह से लेन-देन की ऊंची लागत CSA के लिए फंड को हासिल करने में रुकावट डालती है. जब फंड मिल जाता है तो कर्ज़ देने वाले कृषि जोखिमों से ख़ुद को बचाने के लिए अक्सर ब्याज दर बढ़ा देते हैं और कर्ज़ का मापदंड सख़्त कर देते हैं. ये उपाय अनिवार्य रूप से बाज़ार के समीकरण को प्रभावित करते हैं और CSA प्रोजेक्ट पर अमल के लिए ज़रूरी वित्तीय आवश्यकताओं की असरदार ढंग से पहचान और पूरा करने की योग्यता को सीमित कर देते हैं.

CSA में विविधता है लेकिन इसे अपनाने के लिए पहले से ट्रेनिंग और स्थापित दृष्टिकोणों की उपलब्धता की आवश्यकता है. अक्सर खेती की पद्धतियों में बदलाव के लिए स्थापित आदतों में परिवर्तन की ज़रूरत होती है

दूसरी रुकावट है कि CSA को असरदार ढंग से अमल में लाने के लिए ज़रूरी तकनीकी हुनर और मानव संसाधनों की अक्सर कमी होती है. वैसे तो CSA में विविधता है लेकिन इसे अपनाने के लिए पहले से ट्रेनिंग और स्थापित दृष्टिकोणों की उपलब्धता की आवश्यकता है. अक्सर खेती की पद्धतियों में बदलाव के लिए स्थापित आदतों में परिवर्तन की ज़रूरत होती है जिसका किसान विरोध कर सकते हैं, विशेष तौर पर तब जब तत्काल लाभ नहीं मिल रहा है. दोनों ही परिदृश्यों में पर्याप्त फंडिंग की कमी एक महत्वपूर्ण अड़चन के तौर पर उभरती है. ये ऐसा कारण है जिस पर उचित तकनीक और इंफ्रास्ट्रक्चर की उपलब्धता भी बहुत ज़्यादा निर्भर करती है.

तीसरा, जलवायु के दृष्टिकोण से स्मार्ट कृषि के उत्पादों के लिए बाज़ार को अभी भी बढ़ने की ज़रूरत है. ये अधिक पैसा चुकाने के लिए तैयार ग्राहकों को तलाशने की क्षमता को सीमित करती है. इसके परिणामस्वरूप, किसानों के लिए CSA को अमल में लाने पर खर्च की गई रकम की भरपाई और CSA की तरफ अपने बदलाव को आर्थिक रूप से लाभदायक बनाना कठिन हो सकता है.

चौथा, कई देशों में CSA को अपनाने में सरकारी और नियामक (रेगुलेटरी) रुकावटें मौजूद हैं. प्रोत्साहन और पर्याप्त नियामक रूप-रेखा की कमी अक्सर असंगठित स्थानीय, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय नीतियों एवं पद्धतियों के साथ जुड़ी होती हैं. इसका ये मतलब है कि स्थानीय स्तर पर उठाए गए कदमों को राष्ट्रीय स्तर पर समर्थन या स्वीकार्यता नहीं मिल सकती है या इसके उलट भी हो सकता है. इसी तरह कृषि क्षेत्र और कृषि से जुड़े दूसरे क्षेत्रों के बीच तालमेल की कमी है.

अंत में, CSA का लक्ष्य जलवायु परिवर्तन को लेकर खेती की प्रणालियों के सामर्थ्य को बेहतर बनाना होने के बावजूद जलवायु में बहुत ज़्यादा बदलाव इनमें से कुछ पद्धतियों की अनुकूलन क्षमता या किसानों के द्वारा उन्हें जल्दी से अमल में लाने की क्षमता को पार कर सकता है.

समस्या का समाधान

विश्व बैंक और खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) के प्रकाशन वैश्विक CSA परियोजनाओं की विस्तृत श्रेणी में कृषि की उत्पादकता में अच्छी बढ़ोतरी, जलवायु संकट के प्रति बढ़ी हुई अनुकूलनशीलता और उत्सर्जन में ध्यान देने योग्य कमी के साक्ष्य प्रदान करते हैं. इसलिए, ऊपर बताई गई चुनौतियों का समाधान करना इस रणनीति को व्यापक और सिद्ध बनाने के लिए अनिवार्य है. इस रणनीति में धरती की पारिस्थितिक (इकोलॉजिकल) अखंडता बरकरार रखते हुए भोजन उपलब्ध कराने की संभावना है. यहां कुछ सुझाव है जिन्हें शामिल किया जा सकता है:

1) शुरुआत में भारी खर्च के जवाब के रूप में एक मज़बूत कृषि सप्लाई चेन की स्थापना ज़रूरी है क्योंकि सिर्फ सरकारी पैसे पर निर्भरता अपर्याप्त है. इस तरह बाज़ार से प्रेरित उन पहलों को शुरू करने का सुझाव दिया जाता है जो अलग-अलग पैमानों और किस्मों की कृषि संस्थाओं को समायोजित करती है. इस तरह सुनिश्चित किया जा सकता है कि वित्तीय समर्थन अनुरोध करने वाली संस्था के स्वरूप पर निर्भर नहीं है. ऐसा दृष्टिकोण निवेश को बढ़ावा दे सकता है या जलवायु के मामले में स्मार्ट सिद्धांतों के साथ जुड़ी व्यापक बाज़ार पहल को प्रोत्साहित कर सकता है.

2) प्रमाण के आधार का विस्तार करना CSA को अमल में लाने के लिए एक ज़रूरी कार्रवाई है. ये तकनीकी कौशलों और मानव संसाधनों की कमी का समाधान करने के लिए भी एक असरदार रणनीति है जो सोच-समझकर लिए गए फैसले के लिए पर्याप्त ट्रेनिंग प्रोग्राम को विकसित करने में उपयोगी जानकारी प्रदान करता है. इसके अलावा खेती में टिकाऊ पद्धतियों और तकनीकी प्रगति को तेज़ करने से इनोवेशन को प्रेरणा मिलती है और वित्तीय संसाधनों तक पहुंच में सुधार होता है.

CSA उत्पादकों को टिकाऊ उत्पादों के इच्छुक उपभोक्ताओं और रिटेलर्स के साथ जोड़ने वाले मार्केट प्लैटफॉर्म की स्थापना या उत्पादों की वहनीयता (सस्टेनेबिलिटी) को प्रमाणित करने वाली सर्टिफिकेशन योजनाओं की शुरुआत उपभोक्ताओं के बीच आकर्षण में बढ़ोतरी करेगी.

3) जो किसान CSA की पद्धतियों को अमल में लाते हैं, उन्हें वित्तीय प्रोत्साहन- जैसे कि अनुदान, टैक्स क्रेडिट या कम ब्याज वाला कर्ज़- मुहैया कराना अनिवार्य है. क्लाइमेट-स्मार्ट उत्पादों के लिए किसानों को अधिक पैसा देने के उद्देश्य से कंपनियों को प्रोत्साहित करके कार्बन इनसेट के माध्यम से उत्सर्जन में कमी लाई जा सकती है. इस तरह उत्पादकों को CSA अपनाने की लागत और इसके साथ जुड़े जोखिमों के लिए प्रभावी ढंग से इनाम दिया जा सकता है. इसके अलावा CSA उत्पादकों को टिकाऊ उत्पादों के इच्छुक उपभोक्ताओं और रिटेलर्स के साथ जोड़ने वाले मार्केट प्लैटफॉर्म की स्थापना या उत्पादों की वहनीयता (सस्टेनेबिलिटी) को प्रमाणित करने वाली सर्टिफिकेशन योजनाओं की शुरुआत उपभोक्ताओं के बीच आकर्षण में बढ़ोतरी करेगी.

4) CSA के असरदार इस्तेमाल के लिए अनुकूल नीतिगत रूप-रेखा मुहैया कराना महत्वपूर्ण है. सरकारें मौजूदा नीतियों में सुधार करके या बाधाओं को ख़त्म करने वाली और प्रोत्साहन मुहैया कराने वाली नई नीतियां बनाकर इस सेक्टर को लोगों के द्वारा अपनाने की तरफ ले जा सकती हैं. सक्षम बनाने वाले प्लैटफॉर्म को लागू करना जैसे कि जलवायु के दृष्टिकोण से स्मार्ट अर्थव्यवस्था-आधारित क्रेडिट रेटिंग सिस्टम, अलग-अलग तरीकों को सुव्यवस्थित बनाने एवं बिचौलियों पर निर्भरता कम करने के लिए बाज़ार संपर्क और सलाहकार सेवाएं इस कोशिश में सहायता देंगी.

5) वैश्विक स्तर पर CSA के लिए फंडिंग बढ़ाना अनिवार्य है- विशेष रूप से चरम जलवायु घटनाओं की चुनौतियों का समाधान करने के लिए. एग्री-फूड सिस्टम को वैश्विक जलवायु फंडिंग का सिर्फ 4 प्रतिशत हिस्सा मिलता है जबकि ये वैश्विक ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन में एक-तिहाई योगदान करता है. ये असंतुलन इस क्षेत्र के महत्व के हिसाब से वित्तीय फंड में फेरबदल ज़रूरी बनाता है. वास्तव में सार्वजनिक फंड- सरकारों, बहुपक्षीय एजेंसियों और जलवायु फंड से- प्राइवेट सेक्टर से महत्वपूर्ण निवेश दिलाने में प्रेरक के तौर पर काम कर सकता है. इसका नतीजा कृषि क्षेत्र के जलवायु सामर्थ्य को अधिकतम करने में निकलेगा. 

आगे की राह

जलवायु परिवर्तन के बढ़ते बहुपक्षीय प्रभावों के बीच एक टिकाऊ एग्री-फूड सिस्टम के लिए CSA ज़रूरी है. लेकिन मौजूदा प्रभावों को बढ़ाया जा सकता है और इसे बढ़ाना भी चाहिए. CSA के असर को अधिकतम करने के लिए सरकारों, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों, प्राइवेट सेक्टर और स्थानीय समुदायों के बीच सहयोग ज़रूरी शर्त है. फिर भी इसकी पूरी संभावना को हासिल करने के लिए जलवायु के संकटकाल के द्वारा पेश की गई चुनौतियों का समाधान करने वाली अंतरराष्ट्रीय नीतियां मूलभूत हैं क्योंकि ये राष्ट्रीय सीमाओं के पार तक हैं और उनके लिए वैश्विक प्रतिक्रिया और रणनीतियों की आवश्यकता है. अब राष्ट्रीय और स्थानीय कोशिशों को निर्देशित करने के लिए ज़रूरी कदम के तालमेल में अंतर्राष्ट्रीय संस्थान और बहुपक्षीय मंच पहले से कहीं अधिक प्रमुख भूमिका निभाते हैं. ये उस समय और भी सच हो जाता है जब एक सेक्टर, जिस पर मानवता का अस्तित्व आधारित है, ख़तरे में है. 

स्टीफेनिया पेटरूज़ेली रिसर्चर और फ्यूचर फूड इंस्टीट्यूट में कंटेंट स्पेशलिस्ट हैं.

 

 

 

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