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जब वन्यजीव संरक्षण और टिकाऊ फसल उत्पादन के बीच संतुलन की बात हो तो, भारत नेतृत्वकारी भूमिका निबाह सकता है.
हाल ही में उत्तर प्रदेश के पीलीभीत में एक दीवार पर बैठी बाघिन का वीडियो वायरल हुआ है. गांव तक पहुंचने के लिए ये बाघिन खेतों को पार कर गई थी; वहां वह एक दीवार पर बैठ गई और वहां उसे देखने के लिए भीड़ जुट गई. पिछले साल जुलाई में भी एक बाघ इसी इलाके में एक खेत से होकर निकला था. उसके पीछे एक किसान ने ट्रैक्टर चलाता दिख रहा था. स्थानीय समुदायों के लिए बाघों और अन्य बड़े स्तनधारियों का खेतों में नज़र आना अक्सर सामान्य बात होती है- लुप्तप्राय वन्यजीवों के लिए ये कृषि क्षेत्र आवास या आवाजाही के गलियारे हैं. तब भी, कुछ मुठभेड़ों के कारण ज़मीन और संसाधनों के लिए कड़ी प्रतिस्पर्धा सामने आ जाती है और इसके साथ ही किसानों को इसकी मनोवैज्ञानिक कीमत भी चुकानी पड़ती है.
किसान को नुक़सान साबित करने के तरीके पर ज़ोर देने के बजाय, हमारा प्रस्ताव एक बाज़ार-आधारित समाधान का है, जिसमें जब वन्यजीव ऐसे खेतों का इस्तेमाल करते हैं जिनमें फ़सल होती है तो उससे होने वाले नुक़सान को समायोजित किया जाएगा.
मौजूदा समय में जानवरों के फ़सलों को नुक़सान पहुंचाने पर वन विभाग के क्षति पूर्ति करने का प्रावधान है लेकिन यह क्षति पूर्ति फ़ॉर्म भरे जाने और नुक़सान साबित करने पर निर्भर करती है. किसान को नुक़सान साबित करने के तरीके पर ज़ोर देने के बजाय, हमारा प्रस्ताव एक बाज़ार-आधारित समाधान का है, जिसमें जब वन्यजीव ऐसे खेतों का इस्तेमाल करते हैं जिनमें फ़सल होती है तो उससे होने वाले नुक़सान को समायोजित किया जाएगा. हमारा सुझाव है कि वन्यजीव-अनुकूल उत्पादों के लिए एक ढांचा तैयार किया जाए जिसके मददगार बाज़ार-आधारित दृष्टिकोण हों, यह बाज़ार में किसानों की भागीदारी को बढ़ाएगा और वन्यजीव-अनुकूल उत्पादों का मूल्य संवर्द्धन करेगा.
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ़-इंडिया के अधिकृत किए गए एक अप्रकाशित बाज़ार-आधारित उपभोक्ता अवधारणा अध्ययन से कुछ काम के परिणाम हासिल हुए हैं. यह सर्वेक्षण गुरुग्राम, बेंगलुरु और मुंबई (जिन्हें उनकी ऊंची बाज़ार कीमतों के लिए चुना गया), इंदौर (जाने-माने मध्य भारतीय जंगलों के पास स्थित होने के चलते) और कोच्चि (जो प्रकृति-आधारित या जैविक उत्पादों के लिए एक मौजूदा बाज़ार है) में किया गया था. यह पाया गया कि उच्च-श्रेणी उपभोक्ता किसी एक अकेले प्रमाणीकरण की तुलना में प्रमाणीकरण के समुच्चय को अधिक महत्व देते हैं. उदाहरण के लिए, अध्ययन में शामिल लोगों ने कहा कि वे ऐसे वन्यजीव-अनुकूल उत्पादों के लिए अधिक मूल्य का भुगतान करने को तैयार हैं जो जैविक भी हों. अध्ययन में यह भी पाया गया कि लोग उन उत्पादों में अधिक रुचि रखते हैं जिनका वे सीधे उपयोग/उपभोग कर सकते हैं, जैसे दालें/संतरे. उच्च श्रेणी के उपभोक्ता वन्यजीव-अनुकूल उत्पादों के लिए प्रमाणित जैविक कीमतों के मुकाबले, विशिष्ट उत्पाद श्रेणी के आधार पर, 13 प्रतिशत से 40 प्रतिशत तक अधिक भुगतान करने को तैयार हैं. इससे गैर-जैविक उत्पादों की तुलना में ज़्यादा भुगतान करने की इच्छा का आंकड़ा 30 से 70 फ़ीसदी तक पहुंच जाता है.
वन्यजीव-अनुकूल उत्पाद ढांचे का उद्देश्य यह पहचानना और समझना है कि वन्यजीव संरक्षण और टिकाऊ फसल उत्पादन कैसे हासिल किया जा सकता है जिससे वन्यजीवों को होने वाले नुक़सान कम हो और साथ ही आजीविका भी सुनिश्चित की जाए.
दिसंबर 2022 में आयोजित जैविक विविधता पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के पक्षकारों के 15वें सम्मेलन में, भारत (जीबीएफ़) पर सहमत हो गया. इस विस्तृत ढांचे में प्रकृति के संरक्षण और टिकाऊ कृषि के लिए नई प्रतिबद्धताओं को शामिल किया गया है. 2030 तक, हमें अनिवार्य रूप से प्रजातियों के विलुप्त होने को रोकना होगा, अपनी 30 प्रतिशत भूमि और पानी की सुरक्षा करनी होगी, कृषि को अधिक टिकाऊ बनाना होगा और कीटनाशकों के अतिरेक को 50 प्रतिशत तक कम करना होगा. प्रजातियों के संरक्षण से अर्थ केवल संरक्षित क्षेत्रों में जानवरों को लेकर नहीं है; यह खेतों और बड़े भूदृश्यों में वन्यजीवों के साथ परस्पर व्यवहार के प्रबंधन के बारे में भी है. कई अनुमानों के अनुसार, भारत में 20 प्रतिशत से अधिक बाघ संरक्षित वन क्षेत्रों से बाहर हैं. हाथियों के मामले में यह संख्या और भी अधिक है - हाथियों का 60 से 80 फ़ीसदी इलाक़ा संरक्षित क्षेत्रों के बाहर है. कृषि क्षेत्र उस पच्चीकारी या मोज़ैक का हिस्सा हैं जिसका इस्तेमाल जंगली जानवर सुरक्षित आवास की ओर बढ़ते समय करते हैं. ग्रेट इंडियन बस्टर्ड या सोन चिड़िया जैसी कुछ गंभीर रूप से लुप्तप्राय प्रजातियों के लिए, कृषि भू-दृश्य उनके वास्तविक आवास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं. इसलिए वन्यजीवों की सुरक्षा और कृषक समुदायों की मदद की कुंजी वन्यजीव-अनुकूल, संघर्ष-मुक्त कृषि क्षेत्रों को बनाए रखना है. वन्यजीव-अनुकूल उत्पाद वाला दृष्टिकोण वैश्विक जैव विविधता ढांचे के तहत कई लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करेगा.
वन्यजीव-अनुकूल उत्पाद ढांचे का उद्देश्य यह पहचानना और समझना है कि वन्यजीव संरक्षण और टिकाऊ फसल उत्पादन कैसे हासिल किया जा सकता है जिससे वन्यजीवों को होने वाले नुक़सान कम हो और साथ ही आजीविका भी सुनिश्चित की जाए. वन्यजीव-अनुकूल उत्पादों के लिए प्रमाणीकरण मौजूद हैं. इसके उदाहरणों में कंबोडिया के इबिस चावल और चाय शामिल हैं जिनका उत्पादन इस तरह किया जाता है जो हाथियों के लिए अनुकूल है. ये फ़सलें उत्पादन प्रक्रिया में जानवरों को नुक़सान नहीं पहुंचाती हैं और इसलिए अधिमूल्य (प्रीमियम) पर बेची जाती हैं. तथापि, भारत में ऐसी प्रथाओं को अब भी पूरी तरह से मुख्यधारा में शामिल नहीं किया गया है. नीचे दिए गए अनुच्छेद और तालिका में हम वन्यजीव-अनुकूल उत्पादों के लिए एक व्यावहारिक दृष्टिकोण की रूपरेखा तैयार करेंगे.
इसके अलावा, एक कृषि-पारिस्थितिकी दृष्टिकोण को अपनाया जाएगा, जो मानव स्वास्थ्य, जैव विविधता और वन्य जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव को रोकने के लिए रसायनों के अत्यधिक उपयोग से बचेगा. जैविक तरीके से या रसायनों का न्यूनतम उपयोग कर फ़सलें उगाने से उत्पाद अधिक स्वास्थ्य लाभ प्रदान करेगा और वन्यजीवों के ज़हरीले पदार्थों का उपभोग करने की आशंका कम हो जाएगी. उत्पाद के लिए अधिमूल्य - बिक्री मूल्य - रसायनों के उपयोग में कमी से लेकर पूरी तरह से जैविक उत्पादन तक की श्रेणियों के आधार पर तय किया जा सकता है. मृदा का पुनर्जीवन करने और विविध परागण में सहायता के लिए फ़सल विविधता को प्रोत्साहित किया जाएगा. इस अवधारणा को नीचे तालिका 1 में विस्तार से बताया गया है.
एक और लक्ष्य यह सुनिश्चित करना होगा कि किसी संसाधन का अति-निष्कर्षण या सामान का अतिउत्पादन न हो; इसके बजाय, उद्देश्य उचित व्यापार प्रथाओं का उपयोग करके छोटे पैमाने पर लेकिन सतत रूप से उत्पादित सामान होगा (कृपया तालिका 1 में बिंदु 4 देखें).
तालिका 1. वन्यजीव अनुकूल उत्पादों के लिए अवधारणा सांचा
अवधारणा | मानदंड सीमाएं | और पूर्वानुमान |
1. 'वन्यजीव अनुकूल' |
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जानवरों को खेतों से खदेड़ा जा सकता है शुरुआत में, यह भारी वन्यजीव आबादी वाले चुनिंदा क्षेत्रों के लिए होगा |
2. सतत या टिकाऊ |
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प्रक्रिया-आधारित है, और समयसीमा या परिणामों का पूरी तरह से अनुमान नहीं लगाया जा सकता. पुनर्योजी कृषि में समय लग सकता है. |
3. आवास/वन्यजीव गलियारे के रूप में खेत |
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इसमें ध्यान पहले से ही जैव विविधता वाले क्षेत्रों पर रहेगा, जैसे कि बाघ अभ्यारण्य से लगते क्षेत्रों और जैव विविधता की अधिकता वाले इलाक़े. दरअसल, अन्य क्षेत्रों को कवर नहीं किया जा सकता है. |
4. व्यापार एक उचित/समुदाय अनुकूल अवधारणा है |
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एक प्रमाणीकरण और निगरानी प्रणाली की ज़रूरत होती है. |
दूसरी बात यह है कि, इस अवधारणा को उन भौगोलिक स्थानों पर केंद्रित करके संचालित किया जा सकता है जहां लुप्तप्राय जानवरों की आबादी है या संरक्षण के लिए प्राथमिकता वाले स्थान शामिल हैं. उदाहरण के लिए, इस अवधारणा को बाघ अभयारण्यों के मध्यवर्ती क्षेत्रों, संरक्षित क्षेत्रों के पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्रों और दो बाघ अभयारण्यों के बीच वन्यजीव गलियारों में लागू किया जा सकता है, जहां उच्च या संकटग्रस्त वन्यजीव आबादी वाले स्थान हैं.
अंत में, किसानों को ध्यानपूर्वक मदद और बाज़ार संपर्क प्रदान करना और ऐसे संकेतक पेश करना अनिवार्य होगा जिनका मूल्यांकन किसी तीसरे पक्ष द्वारा किया जा सके.
नैतिक और टिकाऊ उपभोग के बारे में बढ़ती वैश्विक जागरूकता वन्यजीव-अनुकूल उत्पादों के लिए अनुकूल वातावरण को बढ़ावा देती है. सचेत उपभोक्ता सक्रिय रूप से अपने मूल्यों से मेल खाती वस्तुओं की तलाश करते हैं, जिससे नैतिक प्रक्रियाओं और वन्यजीव संरक्षण में योगदान देने वाले उत्पादों की मांग बढ़ जाती है. इससे वैध वन्यजीव-अनुकूल विशेषताओं को सत्यापित करने और उत्पादों के वास्तविक संरक्षण प्रभाव को जानने के उपभोक्ता के अधिकार को स्वीकार करने पर चर्चा किए जाने की प्रेरणा मिलती है.
अंत में, किसानों को ध्यानपूर्वक मदद और बाज़ार संपर्क प्रदान करना और ऐसे संकेतक पेश करना अनिवार्य होगा जिनका मूल्यांकन किसी तीसरे पक्ष द्वारा किया जा सके.
क्या ऐसे हरे-भरे खेत होना संभव है, जो लोगों और वन्य जीवन दोनों के लिए अनुकूल हों? इस दृष्टिकोण के परिणाम आने में समय लगेगा और यह सभी जगहों के लिए रामबाण साबित नहीं होगा. फिर भी, हमारा मानना है कि यह संभव है और इसे संचालित करने के लिए भारत सही स्थिति में है.
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Neha Sinha is a conservation biologist and Head of Policy and Communications at WWF-India. ...
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