Author : Pratnashree Basu

Expert Speak Raisina Debates
Published on Aug 01, 2025 Updated 0 Hours ago

संयुक्त ऑपरेशन कमान (JJOC) की स्थापना के साथ जापान अपने कमांड इंफ्रास्ट्रक्चर को आधुनिक बनाने की दिशा में एक निर्णायक क़दम उठा रहा है. हिंद-प्रशांत क्षेत्र में लगातार बिगड़ते हालातों और बढ़ते टकरावों के बीच जापान का यह क़दम उसकी रणनीतिक प्राथमिकताओं को ऑपरेशनल ज़रूरतों के साथ एकीकृत करता है.

जापान में सैन्य एकीकृत कमान की दिशा में बड़ा कदम

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जापान ने मार्च 2025 में ज्वाइंट ऑपरेशन कमांड (JJOC) की स्थापना की थी. जापान का यह क़दम द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अपनी रक्षा तैयारियों और क्षमताओं में बदलाव के लिहाज़ से बेहद महत्वपूर्ण है. क्षेत्र में अचानक पैदा होने वाली विपरीत परिस्थितियों और अलग-अलग तरह के तमाम ख़तरों से निपटने के लिए JJOC बहुत कारगर है, क्योंकि इसके माध्यम से टोक्यो ज़्यादा बेहतर तरीक़े से, एकीकृत और ज़िम्मेदारी के साथ न केवल ऐसे ख़तरों का सामना कर सकता है, बल्कि कमान व नियंत्रण के लिए एक मज़बूत व्यवस्था स्थापित कर सकता है. ज़ाहिर है कि जापान ने JJOC का गठन 2022 के अपने राष्ट्रीय रक्षा रणनीति और रक्षा निर्माण कार्यक्रम के तहत किया है. अपने इस कार्यक्रम के तहत जापान ने "ग्रे ज़ोन" से जुड़े हालातों, यानी दिखाई नहीं देने वाली चुनौतियों को पहचाना है, साथ ही ताइवान पर किसी आक्रामक कार्रवाई के दौरान ज़रूरी तैयारियों को भी पहचाना है. इतना ही नहीं टोक्यो ने इस कार्यक्रम के अंतर्गत जापान आत्मरक्षा बलों (JSDF) यानी थल, जल और वायु सेना के साथ ही साइबर और अंतरिक्ष युद्ध जैसे लड़ाई के नए मोर्चों पर खुद को सशक्त करने के लिए इन सभी के बीच निर्बाध तालमेल की ज़रूरत को भी बखूबी समझा है. कहने का मतलब है कि जापान के JJOC के गठन के पीछे जो सबसे बड़ा कारण माना जाता है, वह यह है कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद के समय में जापान फिलहाल सबसे गंभीर और जटिल सुरक्षा संकट का सामना कर रहा है.

जापान में हमेशा से ही एक स्थायी संयुक्त ऑपरेशन कमान के गठन की ज़रूरत महसूस की जाती रही है और इस दिशा में समय-समय पर प्रयास भी किए जाते रहे हैं.

जापान में हमेशा से ही एक स्थायी संयुक्त ऑपरेशन कमान के गठन की ज़रूरत महसूस की जाती रही है और इस दिशा में समय-समय पर प्रयास भी किए जाते रहे हैं. जापान ने मध्य प्रशांत क्षेत्र में वर्ष 1943 में एक संयुक्त बल की स्थापना की थी, जिसके तहत एक आर्मी यूनिट को नौसेना के नियंत्रण में रखा गया था. हालांकि, जापान की यह कोशिश परवान नहीं चढ़ पाई, क्योंकि टोक्यो में इसी तरह की सैन्य कमान पहले से मौजूद थीं, जिनमें आर्मी और नौसेना, दोनों ही अलग-अलग कमांड बनाती थीं और स्वतंत्र तरीक़े से काम करती थीं. यानी अलग-अलग सेनाओं के बीच एकीकृत ऑपरेशन नियंत्रण जैसे कोई चीज़ नहीं थी. जापान ने वर्ष 2006 में इसी प्रकार से ज्वाइंट स्टाफ ऑफिस की भी स्थापना की थी. यह सेनाओं के बीच बेहतर तालमेल का काम करता था, लेकिन इसके पास सेनाओं के संयुक्त अभियानों की रियल-टाइम निगरानी करने की कोई संस्थागत क्षमता नहीं थी, साथ ही यह अस्थाई तौर पर ही काम करता था. जापान में वर्ष 2011 में आई तोहोकू आपदा के दौरान इस ज्वाइंट स्टाफ ऑफिस की कमियां और अक्षमताएं खुलकर सामने आ गई थीं. तोहोकू आपदा के दौरान जापान के तत्कालीन चीफ ऑफ स्टाफ को आपदा से निपटने के लिए रणनीतिक तैयारी भी करनी पड़ी और रोज़ाना समय-समय पर चलाए जाने वाले अलग-अलग राहत व बचाव कार्यों को भी संचालित करना पड़ा. यानी काम इतना बढ़ गया कि चीफ ऑफ स्टाफ उसके साथ सामंजस्य नहीं बैठा पाए. जापान में साल 2024 में नोटो प्रायद्वीप में आए विनाशकारी भूकंप के दौरान भी ज्वाइंट स्टाफ ऑफिस कि अक्षमताओं को एक बार फिर सामने लाने का काम किया. इसकी वजह यह थी इतने बड़े भूकंप के प्रभाव से निपटने के लिए रणनीतिक क़दम उठाने और राहत-बचाव अभियान चलाने की ज़िम्मेदारी सिर्फ़ चीफ ऑफ स्टाफ पर ही थी. बीते वर्षों में सामने आई इन घटनाओं और उनसे निपटने में मिली नाक़ामी से ज़ाहिर हो गया था कि जापान को शांतिकाल और संकटकाल, दोनों ही परिस्थितियों में ऑपरेशनल गतिविधियों की अगुवाई करने के लिए एक समर्पित कमांड की ज़रूरत है.

 

जापान का  संयुक्त ऑपरेशन कमान

जापान की यह JJOC कमांड टोक्यो के इचिगाया में रक्षा मंत्रालय के मुख्यालय में स्थित होगी. इस कमांड में फिलहाल शुरुआती दौर में क़रीब 240 कर्मचारी तैनात होंगे, जिनकी संख्या भविष्य में 280 करने की योजना है. जेजेओसी कमान का नेतृत्व जापान वायु आत्मरक्षा बल के लेफ्टिनेंट जनरल केनिचिरो नागुमो करेंगे, वर्तमान में वे इस महत्वपूर्ण कमांड के पहले कमांडर हैं. लेफ्टिनेंट जनरल नागुमो के पास परिचालन योजनाएं बनाने और उन्हें धरातल पर लागू करने का पूरा अधिकार होगा. जापान की इस JJOC कमान में कई पश्चिमी देशों की ज्वाइंट ऑपरेशनल कमांड्स की तरह ही इंटेलिजेंस, ऑपरेशन, लॉजिस्टिक्स, संचार, क़ानूनी मामलों और दूसरी तमाम कार्रवाईयों के लिए अलग-अलग विभाग होंगे.

 

जापान की इस संयुक्त ऑपरेशन कमान का प्रमुख काम जापान के आत्मरक्षा बलों के ज़मीन, हवा और समुद्र में चलाए जा रहे अभियानों के साथ ही साइबर और अंतरिक्ष क्षेत्रों में चलाए जाने वाले अभियानों का रियल टाइम संचालन और समन्वय करना है. JJOC  के दायित्वों में आपदा राहत और अन्य शांतिकालीन अभियानों को संचालित करना और संकट के समय उचित प्रतिक्रिया देना, साथ ही युद्ध के दौरान ऑपरेशन्स को संचालित करना शामिल है. कुल मिलाकर JJOC के गठन का मुख्य मकसद विपरीत हालातों में जवाबी कार्रवाई की क्षमता को बढ़ाना है, साथ ही यह सुनिश्चित करना है कि सामान्य परिस्थितियों में और युद्ध के दौरान JSDF बगैर किसी अड़चन के पूरी क्षमता के साथ सामंजस्य स्थापित करते हुए कार्य करे.

कुल मिलाकर JJOC के गठन का मुख्य मकसद विपरीत हालातों में जवाबी कार्रवाई की क्षमता को बढ़ाना है, साथ ही यह सुनिश्चित करना है कि सामान्य परिस्थितियों में और युद्ध के दौरान JSDF बगैर किसी अड़चन के पूरी क्षमता के साथ सामंजस्य स्थापित करते हुए कार्य करे.

JJOC के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल केनिचिरो नागुमो यूएस इंडो-पैसिफिक कमान के कमांडर की तरह काम करेंगे और अपग्रेड किए गए यूएस फोर्सेज जापान (USFJ) के साथ समन्वय स्थापित करेंगे. यानी जापान और अमेरिका के बीच जो सैन्स संबंध लगातार प्रगाढ़ हो रहे हैं, JJOC कहीं न कहीं उनके बीच की महत्वपूर्ण कड़ी होगा. ज़ाहिर है कि जुलाई 2024 में अमेरिका ने जापान के साथ साझा सैन्य अभियानों को संचालित करने, सैन्य गठजोड़ को मज़बूत करने और पारस्परिक सैन्य तालमेल को सशक्त करने के लिए USFJ की भूमिका का विस्तार करने का ऐलान किया था. अमेरिका के इस क़दम को USFJ के गठन के बाद जापान में इसकी मौज़ूदगी और भूमिका में सबसे बड़ा बदलाव माना जा रहा है. JJOC का गठन इस प्रकार से किया गया है कि वो यूएस फोर्सेज जापान के साथ बेहतर तरीक़े से तालमेल स्थापित करे और एक ऐसा साझा ढांचा विकसित करे, जो जापान के ज्वाइंट ऑपरेशन कमांड के मकसद और लक्ष्यों को पूरा करने का काम करें. यानी यह प्रयास एक प्रकार से JJOC और यूएस इंडो-पैसिफिक कमान को साथ लाएगा और क्षेत्र में पैदा होने वाली विपरीत परिस्थितियों और युद्ध जैसे संकटों के दौरान ख़ास तौर पर ताइवान पर चीन की आक्रामकता या फिर पूर्वी चीन सागर में किस उथल-पुथल के दौरान संयुक्त योजना बनाएगा और जवाबी कार्रवाई करेगा. हालांकि, ताज़ा ख़बरों पर गौर करें तो अमेरिका और जापान के बीच सैन्य गठजोड़ को मज़बूत करने के इन प्रयासों में देरी हो सकती है, या फिर इनमें कटौती की जा सकती है, क्योंकि पेंटागन पर अपने रक्षा बजट को कम करने का दबाव है. इस कारण से अमेरिका-जापान रक्षा गठजोड़ को सशक्त बनाने के प्रयासों को लेकर अनिश्चितता गहराती जा रही है.

 

जापान तेज़ी से बदलती क्षेत्रीय रक्षा परिस्थितियों में अपनी जवाबी कार्रवाई की क्षमता बढ़ाने की कोशिश में जुटा हुआ है और JJOC का गठन इसी दिशा में उसका एक मज़बूत क़दम है. ज़ाहिर है कि विपरीत हालातों के दौरान सेनाओं के बीच बिना समय गंवाए सामंजस्य स्थापित करने और दुश्मन पर सटीक कार्रवाई करने की ज़रूरत होती है और जापान ने इसी मकसद से JJOC की स्थापना की है. ख़ास तौर पर मिसाइल अटैक के समय या फिर अपने क्षेत्र में दुश्मन के प्रवेश को तत्काल रोकने के लिए एक ऐसी संस्थागत कमांड की सख्त ज़रूरत होती है, जो तुरंत कार्रवाई करने का निर्देश दे और पल-पल की गतिविधियों पर पैनी नज़र रखते हुए आगे की रणनीति बनाए. ज़ाहिर है कि टोक्यो नई मिसाइल प्रणालियों और ड्रोन्स को अपने सेना में शामिल कर रहा है और उन्हें मोर्चों पर तैनात करने में जुटा हुआ है. ऐसे में जापान को अपने वर्तमान सैन्य हथियारों के साथ इन उन्नत मिसाइलों और ड्रोन्स के इस्तेमाल के बीच तालमेल स्थापित करने के लिए संयुक्त ऑपरेशन कमान की बहुत अधिक ज़रूरत होगी.

 

निष्कर्ष

जापान का JJOC गठन करने का मकसद सिर्फ़ एक नए कमांड ऑफिस की स्थापना नहीं है, बल्कि इससे कहीं ज़्यादा है. जापान इसके ज़रिए अपनी सेनाओं के बीच बेहतर तालमेल स्थापित करना चाहता और और विपरीत परिस्थितियों में साझा प्रतिक्रिया को सटीक बनाना चाहता है. यानी जापान जहां इसके ज़रिए अपनी मारक क्षमता और आक्रामकता को धार देना चाहता है, वहीं अपनी सैन्य ताक़त को बढ़ाना चाहता है. जापान की यह कोशिश कितनी कामयाब होती है, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि JJOC अमेरिका-जापान सैन्य गठजोड़ के साथ कितने असरदार तरीक़े से सामंजस्य स्थापित कर पाता है और सीमापार युद्ध अभियानों को किस कुशलता के साथ संचालित कर पाता है. इसके अलावा, जिस प्रकार से जापान इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अपनी सुरक्षा प्रतिबद्धताओं को सशक्त कर रहा है, ऐसे में उम्मीद है कि JJOC न केवल जापान की राष्ट्रीय सुरक्षा में एक मज़बूत कड़ी स्थापित होगा, बल्कि क्षेत्रीय सुरक्षा के लिहाज़ से भी बेहद कारगर साबित होगा. JJOC का गठन दिखाता है कि जापान अब द्वितीय विश्व युद्ध के बाद के समय में अपनी रक्षा तैयारियों को लेकर बेहद सजग और गंभीर है और देश में एक एकीकृत सैन्य कमांड की जो कमी थी उसकी भरपाई करने के लिए बेहद मज़बूती के साथ क़दम आगे बढ़ा रहा है. क्षेत्र में मची भू-राजनीतिक उथल-पुथल, ख़ास तौर पर ताइवान को लेकर चीन के आक्रामक रवैये, उत्तर कोरिया की ओर से पैदा होने वाले मिसाइल ख़तरों और पूर्वी एवं दक्षिण चीन सागर में चीन की आक्रामकता की वजह से बढ़ते तनाव के बीच अमेरिका हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपने सहयोगी राष्ट्रों के साथ सैन्य गठबंधनों को मज़बूत करना चाहता है. इस लिहाज़ से देखा जाए तो जापान का JJOC गठन का फैसला बेहद महत्वपूर्ण है और अमेरिका के साथ मिलकर क्षेत्र में शांति स्थापित करने के प्रयासों को आगे बढ़ाने वाला है, साथ ही किसी भी आक्रामकता का मुंहतोड़ जवाब देने वाला भी है.

जिस प्रकार से जापान इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अपनी सुरक्षा प्रतिबद्धताओं को सशक्त कर रहा है, ऐसे में उम्मीद है कि JJOC न केवल जापान की राष्ट्रीय सुरक्षा में एक मज़बूत कड़ी स्थापित होगा, बल्कि क्षेत्रीय सुरक्षा के लिहाज़ से भी बेहद कारगर साबित होगा.

हिंद-प्रशांत क्षेत्र में मची हलचल के मद्देनज़र JJOC न केवल जापान की रक्षा ताक़त को बढ़ाता है, बल्कि अलग-अलग प्रकार के ख़तरों से निपटने की उसकी क्षमता में भी इज़ाफा करता है. ज़ाहिर है कि आने वाले दिनों में इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में ख़तरे और ज़्यादा बढ़ने की संभावना है, ऐसे में JJOC बेहद कारगर साबित हो सकता है. कुल मिलाकर JJOC जहां एक तरफ जापान को अपने तरीक़े से सैन्य ऑपरेशनों को संचालित करने में सक्षम बनाता है, वहीं क्षेत्र में मौज़ूद अमेरिकी सैन्य बलों के साथ बेहतर तरीक़े से तालमेल स्थापित करते हुए दोनों देशों के सैन्य गठजोड़ को भी सशक्त करने का काम करता है. यानी JJOC हिंद-प्रशांत क्षेत्र में न केवल जापान-अमेरिका सैन्य गठजोड़ का दबदबा स्थापित कर रहा है, बल्कि अपने दम पर सैन्य अभियानों को कुशलतापूर्वक संचालित करने की जापान की क्षमता को भी बढ़ा रहा है.


प्रत्नाश्री बसु ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में एसोसिएट फेलो हैं.

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Pratnashree Basu

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Pratnashree Basu is an Associate Fellow with the Strategic Studies Programme. She covers the Indo-Pacific region, with a focus on Japan’s role in the region. ...

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