Author : Nilanjan Ghosh

Published on Jul 10, 2020 Updated 0 Hours ago

गंगा जल बंटवारा समझौता 2026 में ख़त्म हो जाएगा. ये याद रखना चाहिए कि फरक्का बैराज को हटाने से समस्या का समाधान नहीं हो जाएगा बल्कि अंतर्राज्यीय लड़ाई और बढ़ जाएगी.

डेल्टा पर ख़तरा: 2026 के गंगा जल बंटवारे से कुछ उम्मीदें

भारत और बांग्लादेश में सुंदरबन डेल्टा पर ख़तरा बना हुआ है. डेल्टा के भारतीय इलाक़े में पिछले दिनों आए सुपर साइक्लोन ने एक बार फिर ग्लोबल वार्मिंग और क्लाइमेट चेंज से इस पर अत्यंत ख़तरे को उजागर किया है. उच्च तीव्रता वाली घटनाओं के अनुपात में बढ़ोतरी इसकी गवाही देती है जिसकी वजह ज़्यादातर बंगाल की खाड़ी में समुद्री सतह का बढ़ता तापमान है. समुद्र का स्तर पिछले दशक में हर साल 8 मिमी-12 मिमी की दर से बढ़ा है (या पिछले पांच दशक में 4-5 मिमी सालाना की दर से) जिसकी वजह से डेल्टा की ज़मीन को नुक़सान हुआ है और खारापन बढ़ा है. इसके कारण द्वीप-समूह की धान पर आधारित कृषि को नुक़सान हुआ है. डेल्टा पर दबाव की दोनों वजहें ग्लोबल वार्मिंग और क्लाइमेट चेंज की वजह से है लेकिन डेल्टा इसलिए भी सिकुड़ रहा है क्योंकि इकोसिस्टम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा यानी मिट्टी बनने में दिक़्क़त आ रही है. ये परेशानी भारतीय सुंदरबन डेल्टा में और ज़्यादा है. ये डेल्टा मुख्यत: गंगा और उसकी सहायक नदियों (ख़ास तौर पर कोसी) की तरफ़ से लाए गए गाद से बना है.

व्यापक स्तर पर देखें तो सुंदरबन डेल्टा गंगा-ब्रह्मपुत्र-मेघना डेल्टा का हिस्सा है और गंगा और ब्रह्मपुत्र की मुख्यधारा और उनकी सहायक नदियों के ज़रिए बहने वाले गाद से बना है. सुंदरबन डेल्टा का भारतीय हिस्सा पूरी तरह से गंगा डेल्टा में आता है. डेल्टा में मिट्टी बनने में गड़बड़ी की मुख्य वजह फरक्का बैराज (1975 में बना) है जो बांग्लादेश सीमा से 16.5 किमी. दूर है. कथित तौर पर फरक्का बैराज ताज़ा पानी के प्रवाह को रोकने के लिए ज़िम्मेदार है जिसकी वजह से पानी खारा होता है और पानी का मौसम नहीं होने पर भारतीय सुंदरबन डेल्टा सूख जाता है.

शुरुआत के समय से ही (बल्कि डिज़ाइन के चरण से ही जब बांग्लादेश को पूर्वी पाकिस्तान कहा जाता था) बैराज भारत-बांग्लादेश अंतर्राष्ट्रीय जल संबंध को लेकर विवाद का बिंदु रहा है. बैराज बनाने का मक़सद भागीरथी-हुगली चैनल (गंगा की एक शाखा) में प्रवाह को बढ़ाना था ताकि गाद को बाहर कर कोलकाता (पहले कलकत्ता) पोर्ट को पुनर्जीवित किया जा सके. बांग्लादेश को हमेशा इस बात की आशंका थी कि बैराज बिना बारिश के मौसम में गंगा का प्रवाह बांग्लादेश में कम कर देगा. भारतीय तकनीकी तंत्र के भीतर की जिन आवाज़ों ने इस परियोजना का विरोध किया, जैसे कि बंगाल के इंजीनियर कपिल भट्टाचार्य, उन्हें नज़रअंदाज़ कर दिया गया.

1996 की गंगा संधि

बांग्लादेश और भारत के बीच 1996 का गंगा जल बंटवारा समझौता मुख्य रूप से दोनों देशों के बीच गतिरोध को दूर करने के लिए किया गया. समझौते में हर साल जनवरी से मई के बीच सूखे मौसम में फरक्का बैराज से पानी के प्रवाह की समय-सारणी निश्चित थी. संधि के मुताबिक़ अगर बैराज में पानी 75,000 क्यूसेक से ज़्यादा होता है तो भारत 40,000 क्यूसेक तक पानी निकाल सकता है. अगर बैराज में पानी की उपलब्धता 70,000 क्यूसेक से कम हो जाती है तो दोनों देशों के बीच पानी बराबर मात्रा में बांटा जाएगा. वहीं बैराज में पानी की उपलब्धता 70,000-75,000 क्यूसेक के बीच होती है तो बांग्लादेश को 35,000 क्यूसेक पानी मिलेगा. इस समझौते की मियाद 30 साल है.

इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता कि फरक्का बैराज अल्पकालीन आर्थिक फ़ायदे की सोच पर आधारित परियोजना का एक आदर्श उदाहरण है जिसमें इकोसिस्टम, जीविका और लंबे समय की चिंताओं को छोड़ दिया गया है

तब से लेकर भारत के द्वारा समझौते के सख़्ती से पालन करने की वजह से दोनों देशों के बीच हालात बिगड़ने से बचते रहे. लेकिन समस्या कहीं और है. इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता कि फरक्का बैराज अल्पकालीन आर्थिक फ़ायदे की सोच पर आधारित परियोजना का एक आदर्श उदाहरण है जिसमें इकोसिस्टम, जीविका और लंबे समय की चिंताओं को छोड़ दिया गया है. वास्तव में गंगा जल पानी बंटवारा समझौता उसी सोच का नतीजा है जिसके तहत भारत के जल-शासन प्रणाली में ‘अंकगणित जलविज्ञान’ को बैठा दिया गया है. ‘अंकगणित जलविज्ञान’ इस बात को नहीं मानता है कि हिमालय से निकली एक नदी काफ़ी मात्रा में गाद लेकर चलती है जो मिट्टी को उपजाऊ बनाता है और मिट्टी भी बनाता है.1996 के समझौते में सिर्फ़ पानी के प्रवाह का ज़िक्र है. ये बात कहीं नहीं है कि गाद से कैसे निपटें या इकोसिस्टम में गाद की क्या भूमिका है.

कुछ तबक़ों में ये महसूस भी किया जाता है कि फरक्का के प्रवाह के विपरीत में कई अन्य निर्माण (जैसे भीमगोडा या नरोरा में निर्माण) भी गाद के लिए ज़िम्मेदार हैं. इसकी वजह से डेल्टा में मिट्टी के निर्माण में बाधा आती है. इस पर सफ़ाई देने की ज़रूरत है क्योंकि फरक्का में जमा गाद का बड़ा हिस्सा कोसी नदी (बिहार में गंगा की एक सहायक नदी जिसकी उत्पति नेपाल में है) लेकर आती है. वास्तव में कुछ सबूत संकेत देते हैं कि अधिकतर डेल्टा कोसी के गाद से बना है जो अब बैराज में फंस रहा है.

फरक्का बैराज के साथ मौजूदा समस्या पानी के प्रवाह से ज़्यादा गाद के प्रवाह से है. पिछले 4-5 सालों के दौरान बैराज पश्चिम बंगाल और बिहार के बीच अंतर्राज्यीय विवाद के रूप में भी उभरा है. बिहार के मुख्यमंत्री ने तो इसको तोड़ने की भी मांग की है. गाद जमने से कोसी और गंगा में बाढ़ के दौरान पानी प्रवाह के उलट बहने लगा जिसकी वजह से बिहार में बाढ़ से काफ़ी नुक़सान हुआ. ये एकमात्र स्वीकार्य सफ़ाई लगती है हालांकि दलील का साबित होना बाक़ी है.

फरक्का बैराज के साथ मौजूदा समस्या पानी के प्रवाह से ज़्यादा गाद के प्रवाह से है. पिछले 4-5 सालों के दौरान बैराज पश्चिम बंगाल और बिहार के बीच अंतर्राज्यीय विवाद के रूप में भी उभरा है. बिहार के मुख्यमंत्री ने तो इसको तोड़ने की भी मांग की है

सुंदरबन के संरक्षण को लेकर बांग्लादेश-भारत समझौता

भारत और बांग्लादेश- दोनों देशों की सरकारें मानती हैं कि सीमा के दोनों तरफ़ सुंदरबन को समग्र और सहयोगी दृष्टिकोण की ज़रूरत है. इस सोच की वजह से 6 सितंबर 2011 को सुंदरबन के संरक्षण पर समझौता हुआ. इस समझौते के साथ शुरुआत से दिक़्क़त है कि ये जंगल के संरक्षण तक सीमित है. इसमें सुंदरबन के सामने व्यापक चुनौतियों का ज़िक्र नहीं है. हालांकि समझौता इकोसिस्टम के महत्व को मान्यता देता है लेकिन इसमें विकास को लेकर सर्वांगीण दृष्टिकोण का अभाव है. ग्लोबल वार्मिंग और क्लाइमेट चेंज के ख़तरे को लेकर इकोसिस्टम की शुद्धता की तरफ़ ध्यान नहीं है. साथ ही डेल्टा क्षेत्र के सिकुड़ने की वजह का भी ज़िक्र नहीं है. सर्वांगीण शासन प्रणाली के विकास में ये बड़ा फ़ैसला है.

2026 में गंगा जल बंटवारा समझौते को बदलना

ये मुख्य मुद्दा है. गंगा जल बंटवारा समझौता 2026 में ख़त्म हो जाएगा. ये याद रखना चाहिए कि फरक्का बैराज को हटाने से समस्या का समाधान नहीं हो जाएगा बल्कि अंतर्राज्यीय लड़ाई और बढ़ जाएगी. बैराज बनाने का एक सकारात्मक नतीजा है कि बिना बारिश के मौसम में पश्चिम बंगाल के घनी आबादी वाले इलाक़ों में पानी की समस्या में सुधार हो गया है. भागीरथी-हुगली चैनल में पानी के बेहतर प्रवाह की वजह से ऐसा हो पाया है. इसकी वजह से बढ़ते हुए महानगर कोलकाता में पानी की ज़रूरत को पूरा किया जा सका है. फरक्का को हटाने से राज्य के इस हिस्से में लोगों और इकोसिस्टम पर नकारात्मक असर पड़ेगा.

दुर्भाग्य है कि दक्षिण एशिया में ‘पर्यावरणीय प्रवाह’ नियम भी सख़्ती से पानी के बहाव की व्यवस्था को मानता है और गाद को नज़रअंदाज़ करता है. अगर डेल्टा को बचाना है तो शुरुआत में ही इसे ठीक करना होगा.

इसलिए 2026 में फरक्का को लेकर निचली गंगा में शामिल अलग-अलग हिस्सेदारों के बीच फ़ायदे के तरीक़े को लेकर महत्वपूर्ण फ़ैसले लेने की ज़रूरत पड़ेगी. उस समय नदी प्रणाली को लेकर सोच-समझकर लिया गया फ़ैसला अहम होगा. निश्चित रूप से गाद को फ़ायदे के बंटवारे की संधि से जोड़ना होगा. बल्कि डेल्टा अर्थव्यवस्था की चिंता को ध्यान में रखते हुए समझौता होना चाहिए. इसके लिए स्वतंत्र डाटा और ज़रूरी रिसर्च की ज़रूरत होगी जिसके ज़रिए फरक्का में गाद के बारे में बताया जाए. किस तरह ये अलग-अलग नदियों में प्रवाह के ज़रिए डेल्टा के मिट्टी बनाने के काम को पुनर्जीवित कर देगा. दुर्भाग्य है कि दक्षिण एशिया में ‘पर्यावरणीय प्रवाह’ नियम भी सख़्ती से पानी के बहाव की व्यवस्था को मानता है और गाद को नज़रअंदाज़ करता है. अगर डेल्टा को बचाना है तो शुरुआत में ही इसे ठीक करना होगा.

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