Author : Manoj Joshi

Expert Speak War Fare
Published on Mar 26, 2025 Updated 0 Hours ago

अमेरिका की ओर से यूक्रेन को दी जाने वाली सैन्य सहायता पर रोक ने रूस से युद्ध लड़ रहे यूक्रेन की स्थिति कमज़ोर करने का काम किया है. ज़ाहिर है कि अमेरिका के इस फैसले से सामरिक लिहाज़ से रूस को बढ़त मिली है, साथ ही सवाल उठ रहे हैं कि कीव इस युद्ध को जारी रख पाएगा या नहीं.

यूक्रेन को हथियारों की आपूर्ति पर खतरा, अमेरिका की रणनीति क्या होगी?

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रूस-यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने के लिए कोशिशें जारी हैं और इसके लिए हर तरह के पैंतरे अजमाए जा रहे हैं. हालांकि, रूस-यूक्रेन युद्ध की समाप्ति के लिए योजना क्या होगी, इसको लेकर व्यापक सवाल क़ायम हैं. सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि क्या दोनों देश शांति बहाली की योजना को लेकर सहमत होंगे और उन्हें इसके लिए राज़ी किया जा सकता है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उनके प्रशासन की ओर से अपनी शर्तों के मुताबिक़ यूक्रेनी राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की पर युद्ध को ख़त्म करने के लिए दबाव डाला जा रहा है. इसके लिए ट्रंप प्रशासन ने यूक्रेन को हथियारों की आपूर्ति और गोपनीय जानकारी साझा करने पर रोक लगा दी थी, हालांकि बाद में इसे बहाल भी कर दिया गया. अमेरिका ने 30 दिन के युद्ध विराम के लिए एक खाका तैयार किया है और यूक्रेन ने अब इस पर अपनी रजामंदी जता दी है, लेकिन राष्ट्रपति ट्रंप के साथ लंबी टेलीफोन वार्ता के बाद भी रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन इसके लिए तैयार नहीं हैं.

 हाल ही में अमेरिका ने जिस प्रकार से युद्धरत यूक्रेन को सैन्य हथियारों की आपूर्ति और ख़ुफ़िया जानकारी देने पर फौरी रोक लगा दी थी, उसने कीव ही नहीं, दूसरे यूरोपीय देशों के भी दिमाग ठिकाने लगा दिए हैं.

हाल ही में अमेरिका ने जिस प्रकार से युद्धरत यूक्रेन को सैन्य हथियारों की आपूर्ति और ख़ुफ़िया जानकारी देने पर फौरी रोक लगा दी थी, उसने कीव ही नहीं, दूसरे यूरोपीय देशों के भी दिमाग ठिकाने लगा दिए हैं. हालांकि, यूरोपीय देशों ने यूक्रेन को दी जाने वाली मदद को दोगुना करने का वादा किया है, लेकिन सच्चाई यह है कि यूक्रेन और यूरोप को रूसी प्रकोप से बचाने में अमेरिका एक दीवार की तरह खड़ा हुआ है. अमेरिकी सैन्य रक्षा प्रणालियां रूस की तरफ से दागी जाने वाली लंबी दूरी की मिसाइलों और ड्रोन हमलों से बचाने में अहम भूमिका निभाती हैं. इसके अलावा, अमेरिकी सैन्य प्रणालियां रूस पर निशाना साधने के लिए HIMARS-निर्देशित मल्टीपल लॉन्च रॉकेट सिस्टम के लिए लक्ष्य निर्धारण करने के साथ ही, लंबी दूरी के हमलों के लिए सटीक लक्ष्य तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या यूक्रेन बगैर अमेरिकी सैन्य मदद के रूस के साथ लड़ाई जारी रख सकता है. अगर यूक्रेन ऐसा करने में सक्षम है, तो सवाल यह है कि वह कितने वक़्त तक युद्ध के मैदान में टिका रह सकता है.

 

वर्तमान ज़मीनी हक़ीक़त पर नज़र डालें, तो फिलहाल रूसी सेना का यूक्रेन के 20 प्रतिशत हिस्से पर कब्ज़ा है. पिछले एक साल से रूसी सेना अपने नुक़सान की परवाह किए बगैर युद्ध के मैदान पर मुस्तैदी से डटी हुई है और बड़ी तादाद में तैनात उसके सैनिक लगातार यूक्रेन पर दबाव बनाए हुए है. बावजूद इसके रूसी सेना को ज़्यादा कुछ हासिल नहीं हो पाया है.

 

युद्ध सामग्री पर रोक

युद्ध अध्ययन संस्थान के मुताबिक़ वर्ष 2024 में रूसी सेना ने यूक्रेन पर कई ताबड़तोड़ हमले किए थे, लेकिन इसके बाद भी रूसी सेना “न तो यूक्रेन की रक्षा पंक्ति को भेदने में क़ामयाब हो पाई और न ही यूक्रेनी सैनिकों को बहुत दूर तक खदेड़ने में सफल रही है”. अगस्त 2024 में बताया गया था कि रूसी सैनिक पूर्वी यूक्रेन के पोक्रोवोस्क शहर से 10 किलोमीटर दूर पहुंच चुके हैं. इस बात को 6 महीने बीत चुके हैं, लेकिन रूसी सैनिक अभी तक शहर में दाखिल नहीं हो पाए हैं. हालांकि, यूक्रेन ने अपने इस शहर को एहतियातन लगभग खाली करा लिया है. एक ज़मीनी हक़ीक़त यह भी है कि पिछले साल यूक्रेन ने रूस के कुर्स्क ज़िले के एक बड़े हिस्से पर नियंत्रण हासिल कर लिया था, हालांकि अब रूसी सेना ने शहर के ज़्यादातर हिस्सों से यूक्रेनी सेना को खदेड़ दिया है. इसकी एक वजह अमेरिका की ओर से यूक्रेन को साझा की जाने वाली ख़ुफ़िया जानकारी पर अस्थाई रोक भी हो सकती है और इसी के चलते कुर्स्क में रूसी सैनिकों ने बढ़त हासिल करके यूक्रेनी सेना को बाहर निकाल दिया है.

 अभी यह देखना शेष हैं कि अमेरिका राष्ट्रपति पुतिन पर अमेरिका-यूक्रेन युद्ध विराम प्रस्ताव को स्वीकार करने और उसके बाद शांति बहाली के लिए बातचीत की मेज पर लाने के लिए दबाव डाल पाता है या नहीं.

वास्तविकता यह है कि यूक्रेन के एक बड़े भू-भाग पर रूस ने कब्ज़ा किया हुआ है और यूक्रेन के पास रूसी कब्ज़े वाले अपने इलाक़ों को मुक्त कराने के साधन नहीं हैं. यूक्रेन के पूर्व अमेरिकी सहयोगियों ने भी साफ तौर पर कह दिया है कि वह रूस के हाथों में जा चुके अपने इलाक़ों को दोबारा हासिल करने के बारे में न सोचे और उन्हें भूल जाए. इस दौरान, रूस की तरफ से यूक्रेन पर हमले लगातार जारी हैं. रूसी रॉकेट और ड्रोन यूक्रेनी शहरों पर कहर ढा रहे हैं और पावर ग्रिड, स्कूलों, रिहायशी इलाक़ों व सार्वजनिक बुनियादी ढांचे को तबाह कर रहे हैं.

 

अमेरिका की ओर से युद्धरत रूस और यूक्रेन के बीच शांति की बहाली के प्रयासों पर नज़र डालें, तो अब तक अमेरिका की कोशिश कीव पर दबाव डालने की ही रही है. अमेरिका ने जिस प्रकार से ऐलान किया है कि यूक्रेन की नाटो सदस्यता पर विचार नहीं किया जाएगा और जिस तरह से उसने यूक्रेन से रूसी कब्ज़े में जा चुके अपने इलाक़ों को भूल जाने को कहा है, उसने कहीं न कहीं रूसी पक्ष को मज़बूत किया है और मॉस्को को सौदेबाजी में बढ़त दिलाने का काम किया है. इसके साथ ही अमेरिका ने जिस तरह से यूक्रेन को सैन्य मदद रोकने और ख़ुफ़िया सूचनाओं की जानकारी साझा करने पर रोक लगाने का झटका दिया है, उसने कीव की स्थिति को और ज़्यादा कमज़ोर बना दिया है. युद्ध अध्ययन संस्थान के आकलन के मुताबिक़ अमेरिका के इन क़दमों से रूसियों का यूक्रेन पर अपना सैन्य दबदबा बढ़ाने का इरादा और मज़बूत हो सकता है. अब तक, रूसियों ने शांति वार्ता के दौरान यूक्रेन को किसी भी तरह की रियायत देने या किसी भी तरह के प्रस्ताव को स्वीकार करने से इनकार कर दिया है, साथ ही बातचीत के जरिए यूक्रेन के साथ युद्ध विराम की किसी भी संभावना को भी नामंज़ूर कर दिया है. हालांकि, अभी यह देखना शेष हैं कि अमेरिका राष्ट्रपति पुतिन पर अमेरिका-यूक्रेन युद्ध विराम प्रस्ताव को स्वीकार करने और उसके बाद शांति बहाली के लिए बातचीत की मेज पर लाने के लिए दबाव डाल पाता है या नहीं.

 

इन्हीं सब वजहों से फिलहाल रूस-यूक्रेन युद्ध के समाप्त होने की कोई संभावना नज़र नहीं आ रही है और हमें इसके लिए तैयार रहना चाहिए कि दोनों देशों के बीच यह लड़ाई आने वाले महीनों या वर्षों में यू हीं बदस्तूर जारी रह सकती है. यूक्रेन को सबसे ज़्यादा सैन्य मदद और दूसरी सहायता उपलब्ध कराने वाले देशों में अमेरिका का नाम सबसे ऊपर है. अमेरिका ने यूक्रेन को 64 बिलियन अमेरिकी डॉलर की सैन्य सहायता उपलब्ध कराई है और लगभग इतनी ही गैर-सैन्य मदद भी मुहैया कराई है. इतना ही नहीं, यूरोपीय देश भी अब अपनी सुरक्षा को पुख्ता करने और सुरक्षा के मामले में आत्मनिर्भर बनने में जोरशोर से जुटे हुए हैं, साथ ही यूक्रेन की भी हर संभव मदद कर रहे हैं. ज़ाहिर है कि अगर यूक्रेन-रूस के बीच शांति समझौता नहीं होता है, तो हालात ऐसे ही बने रहेंगे.

 

यूक्रेन की रणनीति

यूक्रेन ने अमेरिकी सहायता के एक बड़े हिस्से को अमेरिकी सैन्य साज़ो-सामान ख़रीदने और अपने सैनिकों को प्रशिक्षित करने पर ख़र्च किया है. इतना ही नहीं, यूक्रेन को तोपों के लिए गोला-बारूद, बख्तरबंद वाहनों, उन्नत वायु रक्षा प्रणाली, टैंक रोधी मिसाइलों और लंबी दूरी तक लक्ष्य भेदने की क्षमता वाली मिसाइलों की जो आपूर्ति की गई है, वो युद्ध के दौरान यूक्रेनी सेना के बहुत काम आई है. अगर यूरोप से मिलने वाली सैन्य सहायता को देखें, तो अमेरिका की तुलना में यूरोपीय देशों ने मिलकर यूक्रेन को अधिक सैन्य मदद प्रदान (66 बिलियन अमेरिकी डॉलर) की है. हालांकि, यूरोप के अलग-अलग देशों से मिली सैन्य मदद जहां थोड़ी-थोड़ी मात्रा में होती है, वहीं इसमें विभिन्न प्रकार से हथियार, गोला-बारूद और सैन्य रक्षा प्रणालियां शामिल होती हैं. लेकिन, यूरोपीय देशों की सैन्य मदद की तुलना में अमेरिका द्वारा उपलब्ध कराए गए सैन्य उपकरण और रक्षा प्रणालियां बेहद उन्नत और विकसित हैं. जैसे कि अमेरिका की ओर से यूक्रेन को उन्नत पैट्रियट मिसाइलें दी गईं हैं, गौरतलब है कि केवल यही अमेरिकी मिसाइलें ऐसी हैं, जो रूसी मिसाइलों को भेद सकती हैं और रूसी हमले को नाकाम कर सकती हैं.

 

लंदन के इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्ट्रैटेजिक स्टडीज (IISS) के महानिदेशक बास्टियन गीगेरिच के मुताबिक़ रूस-यूक्रेन युद्ध में वर्ष 2024 के दौरान किसी भी पक्ष को कोई ख़ास रणनीतिक फायदा नहीं हुआ है. उन्होंने यह भी कहा कि “यूक्रेन की तुलना में रूसी सेना को मामूली फायदा ज़रूर हासिल हुआ है, लेकिन इसके लिए रूस को भारी नुक़सान उठाना पड़ा है, बड़ी संख्या में उसके सैनिक मारे गए हैं और घायल हुए हैं, साथ ही उसे सैन्य साज़ो-सामान की भी भारी हानि हुई है." गीगेरिच ने यह भी बताया कि रूस में गोला-बारूद और दूसरे सैन्य उपकरणों की कमी होने लगी है और इस वक़्त रूस इसकी भरपाई के लिए उत्तर कोरिया व ईरान से होने वाली आपूर्ति पर निर्भर है. हालांकि, इस दौरान रूसी रक्षा उद्योग ने अपनी क्षमता को बढ़ाने का काम किया है और रक्षा उत्पादन को बढ़ाने में जुटा है. बावज़ूद इसके रूसी रक्षा उद्योग भविष्य में युद्ध के मैदान में होने वाले नुक़सान की घरेलू स्तर पर भरपाई करने पाने में सक्षम नहीं हो पाएगा. IISS ने अनुमान जताया है कि रूस के पास वर्ष 2026 के शुरुआती महीनों तक तो सैन्य उपकरण और गोला-बारूद उपलब्ध हो सकता है, लेकिन इसके बाद अगर युद्ध यूं ही चलता रहा तो लड़ाई को आक्रमकता के साथ लड़ने के लिए रूस के पास अपने प्रमुख युद्धक टैंक की भारी कमी हो जाएगी.

 

देखा जाए तो यूक्रेन के हालात भी बहुत अच्छे नहीं है, फिर भी वो युद्ध में अपनी पूरी दम लगाए हुए है और रूस जैसे बड़े दुश्मन देश को कड़ी टक्कर दे रहा है. इस लड़ाई में रूस को भारी जनहानि का सामना करना पड़ा है. वर्ष 2023 से अपने हमलों और आक्रामक सैन्य कार्रवाइयों के दौरान बड़ी संख्या में रूसी सैनिकों को जान गंवानी पड़ी है और बदले में उसे छिटपुट लाभ ही मिला है. अनुमान के मुताबिक़ रूसी सेना ने यूक्रेन के साथ युद्ध के दौरान 1,50,000 से 2,00,000 सैनिकों को खोया है, जिनमें से आधे सैनिकों ने वर्ष 2024 में जान गंवाई है.

 रूस के ख़िलाफ यूक्रेन की युद्ध रणनीति की सबसे बड़ी ख़ासियत युद्ध के मैदान में उसके द्वारा अपनाए जाने वाले नए-नए तरीक़े हैं. रूस पर मारक हमला करने के लिए यूक्रेन ने ख़ास तरह के UAVs विकसित किए हैं.

रूस के ख़िलाफ यूक्रेन की युद्ध रणनीति की सबसे बड़ी ख़ासियत युद्ध के मैदान में उसके द्वारा अपनाए जाने वाले नए-नए तरीक़े हैं. रूस पर मारक हमला करने के लिए यूक्रेन ने ख़ास तरह के UAVs विकसित किए हैं. हालांकि, देखा जाए तो यूक्रेन ने रूस के हमलों से अपना बखूबी बचाव किया है और उसे काफ़ी हद तक अपने इलाक़ों में घुसने से रोकने में क़ामयाबी पाई है, लेकिन रूस के हाथों गंवा चुके अपने क्षेत्रों को आज़ाद कराने में यूक्रेन को ज़्यादा सफलता नहीं मिली है. जिस तरह से यूक्रेन को मिलने वाली अमेरिकी सैन्य सहायता पर आशंका के बादल मंडरा रहे हैं, उसके मद्देनज़र आने वाले दिनों में अगर यूरोपीय देश अपनी तरफ से सैन्य मदद नहीं बढ़ाते हैं, तो यूक्रेन की हालत और पतली हो सकती है. इन सबके बावज़ूद, फिलहाल जो ज़मीनी हालात हैं, उन्हें देखते हुए ऐसा कई नहीं लगता है कि यूक्रेन की रक्षा पंक्ति इतनी आसानी से भेदी जा सकती है, या वो इतनी आसानी से अपने हथियार डाल सकता है.

 

यूक्रेन ने जिस तरह से युद्ध के दौरान नई-नई तकनीक़ों को अपनाया है, ख़ास तौर पर जिस प्रकार से लड़ाई के मौदान में ड्रोन्स का इस्तेमाल किया है, उसने कहीं न कहीं इस लड़ाई के स्वरूप को ही पूरी तरह से बदल दिया है. रूस-यूक्रेन युद्ध के शुरुआती दौर में तोपों, मिसाइलों, युद्धक टैंकों और खाई युद्ध यानी ज़मीन में खोदी गई खाइयों के ज़रिए दुश्मन पर हमले की रणनीतियों पर ज़ोर था. हालांकि, वर्तमान में भी युद्ध के ये सभी तौर-तरीक़े बेहद अहम बने हुए हैं, लेकिन जहां तक दुश्मन देश के सैनिकों को मारने की बात है, तो इसमें सबसे अधिक क़ामयाबी ड्रोन्स हमलों में मिली है. रूस और यूक्रेन दोनों देशों की सेनाएं ड्रोन्स का जमकर इस्तेमाल करती हैं. इसमें जहां रूस के पास ड्रोन्स की बहुत अधिक संख्या है, वहीं यूक्रेन की ख़ासियत ड्रोन्स अटैक में नए-नए तरीक़ों और तकनीक़ों का उपयोग है. एक तरफ, जहां यूक्रेन के रोबोटिक समुद्री युद्ध पोतों ने रूसी नौसेना को यूक्रेन के समुद्र से खदेड़ दिया है, वहीं दूसरी तरफ यूक्रेन के ज़मीनी हमला करने वाले ड्रोन्स भी अब युद्ध के मौदान में अपनी ज़बरदस्त मौज़ूदगी दर्ज़ करा रहे हैं. दिसंबर के महीने में यूक्रेन ने खार्कीव के मोर्चे रूसी ठिकानों पर चौतरफा ड्रोन हमला किया था. इसमें हवाई टोही ड्रोन्स और हमलावर ड्रोन्स से हमला करने के बाद राइफलों और मशीनगनों से लैस लगभग 50 मानवरहित ज़मीनी हथियारबंद गाड़ियों का इस्तेमाल करते हुए ज़बरदस्त ड्रोन हमले को अंज़ाम दिया था.

 

गौरतलब है कि हमलावर ड्रोन्स तभी ज़्यादा कारगर सिद्ध होते हैं, जब उन्हें दूसरे हथियारों, जैसे कि तोपों और युद्धक टैंकों के साथ हमले में इस्तेमाल किया जाता है. यूक्रेन की थल सेना बहुत मज़बूत नहीं है, लेकिन उसने इस कमज़ोरी को दूर करने के लिए दुश्मन के ख़िलाफ़ अपनी ड्रोन ताक़त का बखूबी उपयोग किया है.

 

यूक्रेन के मुताबिक़ उसने वर्ष 2024 में दस लाख से ज़्यादा FPV ड्रोन्स यानी फर्स्ट पर्सन व्यू ड्रोन्स बनाए हैं. इन ड्रोन्स की मदद से पायलट को ऑनबोर्ड कैमरे से लाइव वीडियो दिखता है, जिससे पायलट ड्रोन की मदद से दुश्मन के लक्ष्य को सटीक तरीक़े से देख सकता है. यूक्रेन का कहना है कि वो इस साल इन एफपीवी ड्रोन का उत्पादन तीन गुना करने की योजना पर काम कर रहा है. यूक्रेन के पास हमलावर ड्रोन की एक विस्तृत रेंज मौज़ूद है, इसमें छोटी दूरी तक मार करने वाले FPV ड्रोन्स से लेकर ईरान में निर्मित बड़े शाहेड्स ड्रोन्स और यूक्रेन में निर्मित मोहजर 6 या TU-141 ड्रोन्स शामिल हैं. इन ड्रोन्स का उपयोग दुश्मन के इलाक़े की निगरानी करने और ख़ुफ़िया जानकारी जुटाने के लिए किया जा सकता है, साथ ही इन्हें बम गिराने, मोर्टार राउंड क्लस्टर बमों को गिराने के लिए भी इस्तेमाल में लिया जा सकता है. इसके अलावा, इन ड्रोन्स को युद्ध के मैदान में थर्मोबैरिक बम यानी वैक्यूम या एरोसोल बम गिराने में भी इस्तेमाल किया जा सकता है.

 

इसके अतिरिक्त, यूक्रेन ने डेल्टा बैटलफील्ड मैनेजमेंट सिस्टम के रूप एक बहुत ही क्रांतिकारी इनोवेशन किया है. इस प्रणाली के ज़रिए यूक्रेन उपग्रहों, ड्रोन्स, रडारों, ज़मीन पर स्थापित सेंसर्स, फ्रंटलाइन रिपोर्ट्स से मिले अलग-अलग आंकड़ों और जानकारियों को एक ही इंटरफेस में एकीकृत करता है. इन सभी जानकारियों के निष्कर्ष को यूक्रेनी सेनाओं को रियल टाइम पर उपलब्ध कराया जाता है, जिससे उन्हें अपने अगले क़दम की तैयारी में मदद मिलती है. ख़बरों के मुताबिक़ यूक्रेन का एवेंजर्स एआई प्लेटफॉर्म इस डेल्टा बैटलफील्ड मैनेजमेंट सिस्टम से जुड़ा हुआ है. बताया जाता है कि यूक्रेन की इस प्रणाली में अमेरिका की पैलंटिर एआई कंपनी का सॉफ्टवेयर इस्तेमाल किया गया है.

 जिस प्रकार से यूक्रेन द्वारा अपनी ड्रोन आर्मी को तेज़ी के साथ विकसित किया जा रहा है, साथ ही जिस तरह से अपने गोला-बारूद और उन्नत सैन्य साज़ो-सामान, हथियारों और सैन्य उपकरणों का उत्पादन बढ़ाया जा रहा है, उससे यह तय है कि आने वाले दिनों में रूस के लिए यूक्रेन पर जीत हासिल करना कतई आसान नहीं होगा, बल्कि यह असंभव सा होगा.

इसी प्रकार से वर्तमान में इलेक्ट्रॉनिक युद्ध भी एक ऐसा क्षेत्र जहां तेज़ी के साथ परिवर्तन हो रहा है. इलेक्ट्रॉनिक युद्ध लड़ने में रूस को महारत हासिल है, लेकिन यूक्रेन युद्ध क्षेत्र में अपने तकनीक़ी नवाचारों की बदौलत रूस का मुक़ाबला करने में जुटा हुआ है. ज़ाहिर है कि ज़्यादातर ड्रोन्स को उड़ान भरने के लिए इलेक्ट्रॉनिक सिग्नल की ज़रूरत होती है. इसने युद्ध के मैदान पर GPS प्रणाली, मिलिट्री कम्युनिकेशन, नेविगेशन, रडार और निगरानी प्रणालियों को निष्क्रिय करने के लिए सिग्नल को जाम करने वाली प्रणालियों को बढ़ावा दिया है. युद्ध क्षेत्र में GPS जैमिंग यानी उपग्रह से प्राप्त सिग्नल को पूरी तरह से ब्लॉक कर दिए जाने की तकनीक़ अमेरिकी GPS-निर्देशित बमबारी को बेअसर कर देती है. यूक्रेन ने GPS-निर्देशित बमों को दागने की प्रक्रिया को सिग्नल ब्लॉक करके रोकने की दुश्मन की चाल से पार पाने के लिए निगरानी ड्रोन पर एक लेजर डेजिग्नेटर लगाया है. इसके साथ ही सिग्नल जैमिंग की समस्या के निजात पाने के लिए यूक्रेनी सेना ने अपने ड्रोन्स और रोबोट्स के लिए विशेष "फ्रीक्वेंसी हॉपिंग" तकनीक़ विकसित की है. इतना नहीं, यूक्रेन अब AI निर्देशित टोही ड्रोन्स को भी विकसित कर रहा है. इसके अलावा, रूस और यूक्रेन दोनों ही अपने कम दूरी के ड्रोन को संचालित करने के लिए फाइबर-ऑप्टिक केबल का इस्तेमाल कर रहे हैं. इस तकनीक़ के ज़रिए संचालित किए जाने वाले ड्रोन्स युद्ध में बेहद कारगर साबित हुए हैं.

 

आगे की राह 

निसंदेह तौर पर अगर अमेरिका द्वारा यूक्रेन को दी जाने वाली सैन्य मदद और दूसरी सहायता पर स्थाई रोक लगा दी जाती है, तो इससे यूक्रेनी सेनाएं कमज़ोर होंगी और यह रूस को अपना दबदबा बनाने में मददगार होगा. ज़ाहिर है कि वर्तमान में अमेरिका का झुकाव रूस के प्रति अधिक है और इन हालातों में रूस को अपनी शर्तों पर शांति बहाली या युद्ध विराम के लिए सौदेबाजी में बढ़त हासिल होती है. लेकिन दूसरी तरफ यूक्रेन मज़बूती के साथ युद्ध के मैदान पर डटा हुआ है और चाहे अमेरिका का समर्थन मिले या न मिले, लेकिन वो अपने इरादों पर दृढ़ता के साथ क़ायम है. इसके अलावा, जिस प्रकार से यूक्रेन द्वारा अपनी ड्रोन आर्मी को तेज़ी के साथ विकसित किया जा रहा है, साथ ही जिस तरह से अपने गोला-बारूद और उन्नत सैन्य साज़ो-सामान, हथियारों और सैन्य उपकरणों का उत्पादन बढ़ाया जा रहा है, उससे यह तय है कि आने वाले दिनों में रूस के लिए यूक्रेन पर जीत हासिल करना कतई आसान नहीं होगा, बल्कि यह असंभव सा होगा.


मनोज जोशी ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में डिस्टिंग्विश्ड फेलो हैं.

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Manoj Joshi

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Manoj Joshi is a Distinguished Fellow at the ORF. He has been a journalist specialising on national and international politics and is a commentator and ...

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